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Swami Vivekananda Speech: पढ़िए स्वामी विवेकानंद के शिकागो में दिए गए महान भाषण के मुख्‍य अंश

विश्व धर्म परिषद में अपने भाषण के प्रारंभ में जब स्वामी विवेकानंद ने अमेरिकी भाइयों और बहनों कहा तो सभा के लोगों के द्वारा करतल ध्वनि से पूरा सदन गूंज उठा। उनका भाषण सुनकर विद्वान चकित हो गए।

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स्वामी विवेकानन्द का विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में दिया गया भाषण

 स्वामी विवेकानंद.

स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। विवेकानंद का जब भी जि़क्र आता है उनके इस भाषण की चर्चा जरूर होती है। पढ़ें विवेकानंद का यह भाषण...

अमेरिका के बहनो और भाइयो, आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।

मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्त्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था। और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है। भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है: जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं।वर्तमान सम्मेलन जोकि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है: जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं।

सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं।

अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।

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स्वामी विवेकानन्द का ऐतिहासिक शिकागो भाषण - Swami Vivekananda Chicago Speech in Hindi

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शिकागो में शून्य पर ही क्यों बोले स्वामी विवेकानंद, जानिए

सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले विवेकानंद का जिक्र जब कभी भी आएगा उनके अमेरिका में दिए गए यादगार भाषण की चर्चा जरूर होगी। यह एक ऐसा भाषण था जिसने भारत की अतुल्य विरासत और ज्ञान का डंका बजा दिया था।.

VIVEKANANDA- India TV Hindi

शिकागो में शून्य पर ही क्यों बोले स्वामी विवेकानंद : बेहद कम उम्र में अपने ज्ञान का लोहा मनवाने वाले और देश के युवाओं को आजाद भारत का सपना दिखाने वाले स्वामी विवेकानंद की आज जयंती है। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले विवेकानंद का जिक्र जब कभी भी आएगा उनके अमेरिका में दिए गए यादगार भाषण की चर्चा जरूर होगी। यह एक ऐसा भाषण था जिसने भारत की अतुल्य विरासत और ज्ञान का डंका बजा दिया था। अधिकांश लोग जानते हैं कि स्वामी जी ने यहां पर शून्य पर भाषण दिया था, लेकिन बेहद कम लोग ही ऐसे हैं जिन्हें यह मालूम है कि उन्होंने शून्य पर ही क्यों भाषण दिया। तो जानिए शिकागो में शून्य पर क्यों बोले थे स्वामी जी।

विवेकांनद के कुछ विचार :  “ जीतना बड़ा संघर्ष होगा,जीत उतनी ही शानदार होगी “ “एक समय में एक काम करो,और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्‍मा उसमें डाल दो और बाकी सब भूल जाओ। “ “ जब तक आप खुद पर विश्‍वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्‍वास नहीं कर सकते।“

विवेकानंद शून्य पर ही क्यों बोले : : यह एक दिलचस्प कहानी है। विवेकानंद साल 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने गए थे। जब वो वहां पहुंचे तो आयोजकों ने उनके नाम के आगे शून्य लिख दिया था। जानकारी के मुताबिक ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि कुछ लोग उन्हें परेशान करना चाहते थे। जानकारी के मुताबिक विवेकानंद जब भाषण देने के लिए खड़े हुए तब उनके सामने दो पेड़ों के बीच में एक सफेद कपड़ा बंधा हुआ पाया जिसके बीच में एक ब्लैक डॉट था। स्वामी विवेकानंद पूरी बात को अच्छे से भांप चुके थे। इसलिए उन्होंने यहां पर अपने भाषण की शुरूआत शून्य से ही की। 

आगे पढ़ें: विवेकानंद को उनकी गुरु मां ने दी बड़ी सीख

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Chicago Speech

11 september 1893, this speech was given by swami vivekananda at parliament of world's religions, chicago on 11th of september 1893.

vivekananda speech on zero in hindi

Response to Welcome

It fills my heart with joy unspeakable to rise in response to the warm and cordial welcome which you have given us. I thank you in the name of the most ancient order of monks in the world; I thank you in the name of the mother of religions, and I thank you in the name of the millions and millions of Hindu people of all classes and sects.

Today is the 11th of September. on this day in 1893 #SwamiVivekananda shared his world-famous speech at the World's Parliament of Religions at Chicago and given the message "We believe not only in universal toleration, but we accept all religions as true". pic.twitter.com/Kd0LfPzpEk — Swami Vivekananda (@vivekexpress) September 11, 2021

My thanks, also, to some of the speakers on this platform who, referring to the delegates from the Orient, have told you that these men from far-off nations may well claim the honour of bearing to different lands the idea of toleration. I am proud to belong to a religion which has taught the world both tolerance and universal acceptance. We believe not only in universal toleration, but we accept all religions as true. I am proud to belong to a nation which has sheltered the persecuted and the refugees of all religions and all nations of the earth. I am proud to tell you that we have gathered in our bosom the purest remnant of the Israelites, who came to southern India and took refuge with us in the very year in which their holy temple was shattered to pieces by Roman tyranny. I am proud to belong to the religion which has sheltered and is still fostering the remnant of the grand Zoroastrian nation. I will quote to you, brethren, a few lines from a hymn which I remember to have repeated from my earliest boyhood, which is every day repeated by millions of human beings: ‘As the different streams having their sources in different places all mingle their water in the sea, so, O Lord, the different paths which men take through different tendencies, various though they appear, crooked or straight, all lead to Thee.’

The present convention, which is one of the most august assemblies ever held, is in itself a vindication, a declaration to the world, of the wonderful doctrine preached in the Gita: ‘Whosoever comes to Me, through whatsoever form, I reach him; all men are struggling through paths which in the end lead to Me.’ Sectarianism, bigotry, and its horrible descendant, fanaticism, have long possessed this beautiful earth. They have filled the earth with violence, drenched it often and often with human blood, destroyed civilization, and sent whole nations to despair. Had it not been for these horrible demons, human society would be far more advanced than it is now. But their time is come; and I fervently hope that the bell that tolled this morning in honour of this convention may be the death-knell of all fanaticism, of all persecutions with the sword or with the pen, and of all uncharitable feelings between persons wending their way to the same goal.

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Swami Vivekananda Speech: शिकागो की धर्म संसद में दिया था स्वामी विवेकानंद ने ऐतिहासिक भाषण, सुनिए यहां

 swami vivekananda speech in hindi: स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण की शुरुआत हिंदी में 'अमेरिका के भाइयों और बहनों' के साथ की। भारत के इतिहास में यह दिन गर्व और सम्मान की घटना के तौर पर दर्ज हो गया।.

Swami Vivekananda Speech in Hindi: When Swami Vivekananda Gave Iconic Speech in 1893 At World Religion Conference in Chicago

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Swami Vivekananda Speech in Hindi: When Swami Vivekananda Gave Iconic Speech in 1893 At World Religion Conference in Chicago

स्वामी विवेकानंद के भाषण की मुख्य बातें

  • अपने भाषण की शुरुआत उन्होंने अमेरिका के लोगों को हिंदी में संबोधित करते हुए की। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा-'अमेरिका के मेरे भाइयों और बहनों' मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के सताए लोगों को शरण में रखा है।
  • मैं आपको अपने देश की प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से भी धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है।

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Swami Vivekananda and His 1893 Speech

Photo of Swami Vivekananda in Chicago in 1893 with the handwritten words “one infinite pure and holy—beyond thought beyond qualities I bow down to thee”

Swami Vivekananda (1863–1902) is best known in the United States for his groundbreaking speech to the 1893 World’s Parliament of Religions in which he introduced Hinduism to America and called for religious tolerance and an end to fanaticism. Born Narendranath Dutta, he was the chief disciple of the 19th-century mystic Ramakrishna and the founder of Ramakrishna Mission. Swami Vivekananda is also considered a key figure in the introduction of Vedanta and Yoga to the West and is credited with raising the profile of Hinduism to that of a world religion.

Speech delivered by Swami Vivekananda on September 11, 1893, at the first World’s Parliament of Religions on the site of the present-day Art Institute

Sisters and Brothers of America,

It fills my heart with joy unspeakable to rise in response to the warm and cordial welcome which you have given us. I thank you in the name of the most ancient order of monks in the world, I thank you in the name of the mother of religions, and I thank you in the name of millions and millions of Hindu people of all classes and sects.

My thanks, also, to some of the speakers on this platform who, referring to the delegates from the Orient, have told you that these men from far-off nations may well claim the honor of bearing to different lands the idea of toleration. I am proud to belong to a religion which has taught the world both tolerance and universal acceptance. We believe not only in universal toleration, but we accept all religions as true. I am proud to belong to a nation which has sheltered the persecuted and the refugees of all religions and all nations of the earth. I am proud to tell you that we have gathered in our bosom the purest remnant of the Israelites, who came to Southern India and took refuge with us in the very year in which their holy temple was shat­tered to pieces by Roman tyranny. I am proud to belong to the religion which has sheltered and is still fostering the remnant of the grand Zoroastrian nation. I will quote to you, brethren, a few lines from a hymn which I remember to have repeated from my earliest boyhood, which is every day repeated by millions of human beings: “As the different streams having their sources in different paths which men take through different tendencies, various though they appear, crooked or straight, all lead to Thee.”

The present convention, which is one of the most august assemblies ever held, is in itself a vindication, a declaration to the world of the wonderful doctrine preached in the Gita: “Whosoever comes to Me, through whatsoever form, I reach him; all men are struggling through paths which in the end lead to me.” Sectarianism, bigotry, and its horrible descen­dant, fanaticism, have long possessed this beautiful earth. They have filled the earth with vio­lence, drenched it often and often with human blood, destroyed civilization and sent whole nations to despair. Had it not been for these horrible demons, human society would be far more advanced than it is now. But their time is come; and I fervently hope that the bell that tolled this morning in honor of this convention may be the death-knell of all fanaticism, of all persecutions with the sword or with the pen, and of all uncharitable feelings between persons wending their way to the same goal.

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स्वामी विवेकानन्द का जीवन परिचय

vivekananda speech on zero in hindi

By अंशिका

स्वामी विवेकानंद (swami vivekananda biography in hindi)

स्वामी विवेकानंद एक हिंदु भिक्षु थे। अपने जीवन में वे एक साधारण सन्यासी थे, लेकिन उनके अनमोल विचार आज भी लोगों द्वारा याद किये जाते हैं। एक भिक्षु के अलावा वह एक भक्ति बुद्धि के जीव के साथ-साथ एक विचारक और बहुत अच्छे वक्ता भी थे।

स्वामी विवेकानंद के गुरू का नाम स्वामी रामकृष्ण परमहंस था। उन्होनें अपने गुरू की विचारधारा को अपनाया और उसका प्रचार किया। विवेकानंद ने गुरू की शिक्षा को एक नया कीर्तिमान दिया। विवेकानंद समाजसेवा मे विश्वास रखते थे। वह गरीबों की मदद करते व उनके दुख दर्दो का निवारण करते।

विवेकानंद देश और पूरे विश्व मे हिन्दू धर्म के प्रति काम करते थे व उन्होंने विश्व मे हिंदू धर्म का प्रचार किया और इसकी विशेषताएं बताई।

विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी को हुआ था, और यह दिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में भारत मे मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद के उपदेशो से कई देशो के युवाओ को जीवन की राह मिली है। उनके उपदेशो मे भाईचारे और प्रेम से रहने की सीख मिलती है।

विषय-सूचि

स्वामी विवेकानंद का शुरूआती जीवन और शिक्षा

विवेकानंद का नाम बचपन में नरेंद्रनाथ था। उनका जन्म एक बंगाली परिवार मे कोलकाता में हुआ था। विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्ता था और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। वह अपने आठ भाई-बहनों मे सबसे बड़े थे।

विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को मकर संक्रांति के दिन हुआ। उनके पिता पेशे से वकील थे और माता एक भक्त रूपी महिला थी। भुवनेश्वरी देवी का अपने बेटे की सोच पर बहुत प्रभाव था।

एक युवा के रूप में वह संगीत मे बेहद रूचि रखते थे। उन्हें गाना और बजाना बहुत पसंद था। वह बचपन से ही बुद्धिमान थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई मेट्रोपाॅलिटन संस्थान और कलकत्ता के प्रेसीडेंसी काॅलेज से की थी। पढ़ाई और धार्मिक विद्या के साथ उन्हें खेल मे भी रूचि थी।

उन्होंने कुछ खेलो के बारे में ज्ञान अर्जित किया जैसे कुश्ती और जिम्नास्टिक। विवेकानंद को पढ़ने का शौक था, उन्होंने हिंदु शास्त्रो को पढ़ा जैसे भागवत गीता और उपनिषद्।

भक्ति भाव और रामकृष्ण परमहंस के साथ रिश्ता

स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस

विवेकानंद की मां भगवान की भक्त थी। यही कारण था कि विवेकानंद को भक्ति के विषय मे रूचि थी। उनकी परवरिश एक धार्मिक माहौल मे हुई और वे आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़े। उन्होंने कुछ समय के लिए केशव चंद्र के ब्रहमो आंदोलन मे साथ दिया। ब्रहमो आंदोलन में यह विचारधारा थी कि मूर्ति की पूजा नही होनी चाहिए और वह अंधविश्वास के खिलाफ थे। उनकी विचार धारा कुछ धार्मिक बातों के खिलाफ थी। स्काॅटिश चर्च काॅलेज के प्रिंसिपल ने विवेकानंद को पहली बार श्री रामकृष्ण के बारे में बताया।

स्वामी विवेकानंद ने कई धर्मो के बारे में पढ़ा और उन्होनें विद्ववानों से पूछा कि क्या आपने भगवान को देखा है, परंतु हर बार उन्हें किसी के जवाब से संतुष्टि नही मिली।

एक समय की बात है जब स्वामी विवेकानंद काली मंदिर में रामकृष्ण से मिले तो उन्होंने उनसे वही सवाल पूूछा। तब रामकृष्ण ने एक संतोषजनक उत्तर दिया। वह उत्तर था,

हां, मैने भगवान को देखा। मैं आपके अंदर भगवान को देखता हूँ। भगवान हर किसी के अंदर स्थापित है।

स्वामी विवेकानंद इस उत्तर से प्रभावित हुए और वह यह जवाब सुनकर आश्र्चयचकित रह गए। समय बीतता गया और विवेकानंद और रामकृष्णा का रिश्ता भी मजबूत होता गया।

स्वामी विवेकानंद का हिन्दू धर्म की ओर झुकाव

सन् 1884 में विवेकानंद के पिता की मृत्यु हुई और उनका परिवार आर्थिक तंगी से ग्रसित हो गया। यह पूरी बात विवेकानंद ने अपने गुरू को बताई और उनसे अनुरोध किया कि भगवान से वह प्रार्थना करे और उनके परिवार को इस समस्या से बाहर निकाले।

परंतु रामकृष्ण ने उन्हें यह कहा कि वह खुद जा कर मंदिर में पूजा अर्चना करें। जब विवेकानंद मंदिर गए और पूजा करना शुरू किया तो उन्होंने दौलत की जगह देवी से बेरागय और विवेक मांगा।

एक संयासी का जीवन

स्वामी विवेकानंद और उनके शिष्य

1885 के दौरान रामकृष्ण की तबीयत खराब हो गई। बाद में पता चला कि उन्हें गले मे कैंसर की बीमारी थी। रामकृष्ण सिंतबर 1885 में श्यामपुकुर नामक स्थान पर रहने गए थे। कुछ महीनों बाद स्वामी विवेकनंद भी एक किराये के घर मे रहने लगे। उन्हें किराए का घर कोस्सिपोरे कलकत्ता में मिला। उस स्थान पर उन्हें कुछ युवा मिले, जो रामकृष्ण को गुरू मानते थे और उन्होंने अपने गुरू की देखभाल की।

16 अगस्त 1886 में स्वामी विवेकानंद के गुरू रामकृष्ण परमहंस ने अपना शरीर त्याग दिया।

श्री रामकृष्ण की मृत्यु के बाद स्वामी विवेकानंद और उनके पांच मित्रों ने बरनगर नाम के एक स्थान पर आश्रय लिया। 1887 में सभी रामकृष्ण भक्तों ने विश्व से सारे नाते तोड़े और संयासी धर्म की शपथ लेकर जीवन व्यापान करने की चेष्ठा की।

यह संघ दक्षिणा और मधुकरी पर निर्भर रहता था। 1886 में स्वामी विवेकानंद ने गणित की पढ़ाई छोड़ दी व भारत के भ्रमण पर चले गए। उन्होंने अपने दौरे में लोगो की समस्या को जाना और उनकी समस्या सुलझाने में जीवन व्यतीत किया। विवेकानंद का मानना था अगर किसी की समस्या का निवारण करना है तो उस स्थान के रीति रिवाज़, सभ्यता व सामाजिक ढाँचे को जानना होगा।

विश्व धार्मिक संसद मे उपेदश

स्वामी विवेकानंद शिकागो

अपने भ्रमण के दौरान स्वामी विवेकानंद को विश्व धार्मिक संसद के बारे मे पता चला। उन्हें पता चला कि यह संसद शिकागो मे 1893 में आयोजित हो रहा है। स्वामी विवेकानंद इस संसद में भारत की, हिंदु धर्म की और अपने गुरू की विचारधारा का प्रदर्शन करना चाहते थे। विवेकानंद को उनके मदरास के भक्तो द्वारा आर्थिक रूप से सहायता मिली जिससे कि उनका शिकागो जाना निश्चत हुआ। 31 मई, 1893 को स्वामी विवेकानंद, अजित सिंह और खेतरी के राजा शिकागो की ओर बंबई से रवाना हुए।

11 सितंबर 1893 को वह बड़ी मुसीबतों के बाद शिकागो शहर पहुचे। मंच का स्वागत विवेकानंद ने कुछ इस प्रकार किया कि सब आश्र्चयचकित रह गए। उन्होंने कहा ’मेरे अमेरिकी भाई बहनों’। उन्होंने विश्व के मानसपटल पर अपने सूत्रो की और हिंदू धर्म की व्याख्या की । आगे चलकर 1894 में उन्होंने वेदांता सोसाइटी आॅफ न्यू यार्क का गठन किया। अगले तीन वर्षो तक विवेकानंद अमेरीका में ही रहे। स्वामी विवेकानंद ने विश्व भर में अपने उपदेशो और हिन्दू धर्म का प्रचार किया।

स्वामी विवेकानंद के उपदेश व उनका मिशन

स्वामी विवेकानंद मृत्यु

1897 में स्वामी विवेकानंद वापस भारत आए और देश मे उनका भव्य स्वागत हुआ। पूरे देश मे कई भाषणो के बाद वह कलकत्ता गए और 1 मई 1897 को रामकृष्ण मिशन की शुरूआत की। यह मिशन कर्म योग और गरीबो की मदद के लिए स्थापित किया गया था।

कुछ समय बाद इस मिशन ने कई स्कूलों का निर्माण कराया, अस्पताल खुलवाए और वेदांता पर आधारित कई कार्यक्रम कराए। स्वामी विवेकानंद अपने गुरू और वेदांता की विचारधारा से प्रभावित थे।

स्वामी विवेकानंद एक देशभक्त थे। स्वामी विवेकानंद ने यह बताया कि ’जागो, उठो और जब तक लक्ष्य तक नहीं पहुंच जाते तब तक रूको मत।’

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु

स्वामी विवेकानंद की भविष्यवाणी के अनुसार मृत्यु के समय उनकी आयु सिर्फ चालीस वर्ष की थी। 4 जुलाई 1902 को वह बेलुर गए और वहां जाकर उन्होंने भक्तो को संस्कृत का पाठ दिया।

ऐसा करने के बाद उन्होंने अपने कमरे मे आराम किया और ध्यान के दौरान अपना शरीर त्यागा। सभी ने इस समाधि को महासमाधि का नाम दिया और गंगा के किनारे उनका संस्कार किया गया।

ज्ञान की वसीयत

विश्व के मानसपटल पर स्वामी विवेकानंद ने भारत की छवी प्रदर्शित की थी। महान संत द्वारा भारतीय और विदेशियो को प्रेम और भाईचारे से रहने का उपदेश दिया गया। सुभाष चंद्र बोस ने एक बार कहा था कि ’स्वामी जी ने दक्षिण और पूर्व को मिलाया है, धर्म और विज्ञान को जोड़ा है, वर्तमान और भूतकाल को मिलाया है। इसी कारण से वह महान है, देशवासियो को उनके उपदेशो से और ज्ञान से हिम्मत मिली है।’

स्वामी जी ने दक्षिणी सभ्यता को समझाया और हिंदु शास्त्रो का भी प्रचार किया। उनका मानना था कि हिंदुस्तान मे गरीबी है परंतु विश्व की संस्कृति में भारत का अनमोल योगदान है।

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स्वामी विवेकानंद पर भाषण

Speech on Swami Vivekananda in Hindi: स्वामी विवेकानंद भारत के सबसे प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेताओं में से एक थे। इसके साथ साथ वो एक विपुल विचारक, महान वक्ता और परम देशभक्त थे।

साल 1893 में शिकागो में आयोजित धर्म संसद में उन्होंने हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। इसके बाद पूरी दुनिया में उनको ख्याति मिली थी। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी साल 1863 को हुआ था और उनकी मृत्यु 4 जुलाई 1904 के दिन हुई थी।

Speech-on-Swami-Vivekananda-in-Hindi

हम इस आर्टिकल में आपको  स्वामी विवेकानंद पर स्पीच ( Speech on Swami Vivekananda in Hindi )  के बारे में बेहद सरल भाषा में माहिति प्रदान करेंगे। यह भाषण हर कक्षा के विद्यार्थियों के लिए मददगार साबित होगा।

स्वामी विवेकानंद पर भाषण (500 शब्द)

आदरणीय महोदय और मेरे प्यारे साथियों,

सबको मेरा नमस्कार।

आप सभी ने मुझे इस मंच पर एक महान व्यक्तित्व स्वामी विवेकानंद के बारे में बोलने का मौका दिया। उसके लिए में आप सबका आभारी हूँ। आप सब भी स्वामी विवेकानंद के नाम से परिचित जरूर होंगे। स्वामी विवेकांनद वो महान हस्ती थे, जिन्होंने पूरी दुनिया को हिन्दू धर्म का परिचय करवाया और भारत का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया।

साल 1863 को 12 जनवरी के दिन कोलकाता में उनका जन्म हुआ था। बचपन में उनका नाम नरेन्द्र था। बचपन में ही उनके पिता की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उनकी माता द्वारा घर में धार्मिक कार्य अधिक होते थे, इसलिए पढ़ाई से ज्यादा उनकी रूचि अध्यात्मिक की और ज्यादा थी।

उन्हें बचपन से ही परमात्मा को पाने की तीव्र इच्छा थी। विवेकानंदजी की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी, इसलिए उन्होंने केवल 25 साल की उम्र में ही वेद, पुराण, बाइबल, कुरआन, गुरुग्रंथ साहिब, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, साहित्य और संगीत तमाम का ज्ञान ले लिया था।

फिर भी उनके किसी प्रकार का संतोष प्राप्त नहीं हुआ। अंत में उन्हें रामकृष्ण परमहंस की शरण मिली। रामकृष्ण ने नरेंद्र को जीवन की सही दिशा दिखाई और उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। उन्होंने रामकृष्ण को अपना गुरु बना लिया और केवल 25 साल की उम्र में ही सन्यासी बनकर पूरी दुनिया में घूमने लगे।

साल 1983 के दौरान शिकागो में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी, तब भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वामी विवेकानंदजी अपने विचार लोगों के सामने व्यक्त किये। भाईयों और बहनों शब्दों के साथ अपने भाषण की शुरुआत करते हुए उन्होंने वहां के लोगों का दिल जीत लिया।

चारों ओर तालियों की गड़गड़ाट होने लगी। अमेरिका में इनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया। उन्होंने पश्चिम में भी भारतीय आध्यात्मिकता का संदेश फैलाया।

खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने उन्हें स्वामी विवेकांनद नाम दिया और ये नाम आज पूरी दुनिया में मशहूर हो गया। उन्होंने मानव जाति की सेवा के लिए और लोगों में आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में उजागर करने के लिए रामकृष्‍ण मिशन और रामकृष्‍ण मठ की स्‍थापना की।

स्वामी विवेकांनद वो महान संत थे, जिन्होंने राष्ट्रीय चेतना को नया आयाम दिया और हिंदुओं को एक धर्म में विश्वास करना सिखाया। उनका जन्‍म दिन देश भर में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

स्वामी जी हमेशा कहा करते थे की उठो, जागो और ध्येय प्राप्ति तक रुको नहीं। अगर आपको खुद पर भरोसा नहीं है तो आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।

उनके विचार आज भी कई युवा के लिए पथप्रदर्शक बने है। केवल 39 साल की उम्र में ही उनकी मृत्यु हो गई। सच में स्वामी विवेकांनद एक असाधारण पुरुष थे। हमें उनके अधूरे कार्य को पूरे करने की कोशिश करनी चाहिए।

अंत में मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि हमें इस महापुरुष के जीवन से प्रेरणा लेकर अपनी जीवन को बहेतरीन बनाना चाहिए। अब मैं यहाँ मेरे शब्दों को विराम देना चाहता हूँ। मुझे शांति से सुनने के लिए आप सबका धन्यवाद।

यह भी पढ़े: स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

Speech on Swami Vivekananda in Hindi (500 शब्द)

आदरणीय प्राचार्य, शिक्षकगण और मेरे प्यारे मित्रों,

यहाँ उपस्थित सभी श्रोतागणों को मेरी तरफ से राष्ट्रीय युवा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। आज 12 जनवरी को सभी भारतीय राष्ट्रीय युवा दिवस मना रहे है। यह दिन आध्यात्मिक विचारों वाले और एक असाधारण व्यक्तित्व को धारण करने वाले स्वामी विवेकानंद को श्रद्धांजलि देने के रूप में मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानंद एक प्रसिद्ध संत विचारक, दार्शनिक और लेखक और हिंदू नेता थे। उनके विशाल ज्ञान और आकर्षक चरित्र की वजह से वो ना सिर्फ भारत में बल्कि पश्चिम संस्कृति में भी काफी मशहूर थे।

उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में दत्ता परिवार में हुआ था। बचपन में उनका नाम नरेंद्र दत्त था। उनकी माता काफी धर्मपरायण व्यक्ति थी। उनके घर में रोज़ पूजा पाठ और कीर्तन होता था। नरेंद्र के जीवन को आकार देने में उनकी माता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

बचपन से ही उन्हें परमेश्वर के बारे में जानने की भारी उत्सुकता थी। वह अक्सर पवित्र मठाधीशों और भिक्षुओं से सवाल करते थे कि क्या उन सभी ने कभी भगवान को देखा है।

लेकिन उन्हें सिर्फ रामकृष्ण ने सही मार्ग बताया और भगवान के प्रति उनकी शंकाओं को दूर किया और रामकृष्ण परमहंस ने नरेन से कहा कि कोई भी ईश्वर को नहीं देख सकता क्योंकि वह एक सर्वशक्तिमान प्राणी है, लेकिन वह ईश्वर को एक समान रूप में देख सकता है। मनुष्य केवल मानवता की सेवा करके ईश्वर का अनुभव कर सकता है।

महज 25 साल की उम्र में उन्होंने सन्यास ले लिया और गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए। अपने गुरु की याद में उन्होंने मई, 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। रामकृष्ण मिशन जरूरतमंदों और गरीबों को स्वैच्छिक कल्याण कार्य प्रदान करती है।

स्वामी विवेकानंद अमेरिका की यात्रा करने वाले पहले भारतीय और हिंदू भिक्षु भी थे। साल 1893 में उन्होंने शिकागो में आयोजित घर्म परिषद में हिन्दू धर्म के विचार को साझा किया। उनके विचार सुनकर वह मौजूद सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए। पहले दिन के संबोधन के बाद वो इतने मशहूर हुए कि अमरीका में भी उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी।

ज़रूरतमंदों की सेवा करने में स्वामी विवेकानंद इतना तल्लीन रहते थे कि वे अपनी सेहत पर ध्यान ही नहीं देते थे। अपने 39 साल के अल्प जीवन में उन्होंने लगभग 31 बीमारियों का सामना किया।

आखिर में 4 जुलाई, 1902 को उनका निधन हो गया। 39 वर्षों में, स्वामी विवेकानंद ने मानवता के लिए कई उत्कृष्ट कार्य किये, जिनकी वजह से आज भी उन्हें याद किया जाता है।

राष्ट्रीय युवा दिवस को मनाने के पीछे हमारा यह मकसद होता है कि हम स्वामी विवेकानंद को न सिर्फ याद करें, बल्कि उनके जीवन से हम कुछ गुण अपने जीवन में भी उतारें।

स्वामी जी को युवा पर काफी विश्वास था उनका मानना था कि युवा में वो शक्ति होती है, जो देश की पूरी स्थिति बदल देती है। वो युवा को हमेशा यही कहते थे कि तुम जैसा सोचोगे वैसा ही बन जाओगे। जितना कठिन तुम्हारा संघर्ष होगा तुम्हारी जीत उतनी ही शानदार होगी।

अब में यहाँ अपने शब्दों को विराम देना चाहता हूँ। आप सब ने मेरे भाषण को शांति से सुना इसके लिए मैं आप सबका शुक्रियां अदा करना चाहता हूँ। धन्यवाद।

यह भी पढ़े: स्वामी विवेकानन्द का शिकागो में दिया गया भाषण

आदरणीय अतिथि और मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,

हमारे देश में समय-समय पर परिस्थितियों के अनुसार संतों और महापुरूषों ने जन्म लिया है और अपने देश की दुखद परिस्थितियों से मुक्ति दिलाकर पूरे विश्व को एक सुखद संदेश दिया है। इससे हमारे देश की भूमि गौरवान्वित और गौरवशाली हो गई है। इसने पूरी दुनिया में एक सम्मानजनक स्थान अर्जित किया है।

स्वामी विवेकानंद का नाम उन महापुरुषों में है, जिन्होंने देश को प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुँचाया है, जो संपूर्ण मानव जाति के जीवन के अर्थ के सबसे मधुर दूतों में से एक हैं। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 फरवरी 1863 को महानगर कलकत्ता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्रनाथ था। बचपन के दिनों में वो बहुत नटखट थे।

उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। पांच साल की उम्र में, लड़के नरेंद्रनाथ को मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूट स्कूल में भेज दिया गया था। लेकिन पढ़ाई में रुचि न होने के कारण बालक नरेंद्रनाथ पूरा समय खेलकूद में ही व्यतीत करते थे। 1879 में, नरेंद्रनाथ को जनरल असेंबली कॉलेज में भर्ती कराया गया था।

स्वामी जी अपने पिता से नहीं लेकिन माता श्री के भारतीय धार्मिक लोकाचार का गहरा प्रभाव था। यही कारण है कि स्वामी जी अपने जीवन के शुरूआती दिनों से ही धार्मिक प्रवृत्ति में उलझे रहे और धर्म के प्रति आस्थावान बने रहे।

ईश्वर के ज्ञान की लालसा में अपने बेचैन मन की शांति के लिए उन्होंने तत्कालीन संत-महात्मा रामकृष्ण परमहंस जी के ज्ञान की छाया ग्रहण की। परमहंस ने स्वामी जी की योग्यता की परीक्षा ली।

उनसे साफ-साफ कहा- ‘आप कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। ईश्वर ने आपको केवल सभी मानव जाति के कल्याण के लिए भेजा है।’ स्वामी रामकृष्ण के इस उत्साही भाषण को सुनकर नरेंद्रनाथ ने अपनी भक्ति और श्रद्धा को ही अपना कर्तव्य समझ लिया। परिणामस्वरूप, वे परमहंस जी के परम शिष्य और अनुयायी बन गए।

पिता श्री की मृत्यु के बाद परिवार का भार संभालने के बजाय, नरेंद्र ने संन्यास के मार्ग पर चलने का विचार किया। लेकिन स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें कहा की, “साधारण तपस्वियों की तरह अपना कीमती जीवन एकांत में व्यर्थ न गवाएं।

ईश्वर को देखना है तो मनुष्य की ही सेवा करो।” और स्वामी जी ने  इस आदेश का पालन करते हुए अपने कर्तव्य पथ को उचित माना। वे ज्ञान और ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए विदेश भी घूमे।

1881 में नरेंद्रनाथ का त्याग करके स्वामी विवेकानंद बने। अमेरिका के शिकागो में धर्म सम्मेलन की घोषणा सुनकर वहां पहुंचे और अपनी अद्भुत विवेक क्षमता से सभी को चकित कर दिया।

11 सितंबर, 1883 को जब सम्मेलन शुरू हुआ और जब स्वामीजी सभी धर्माध्यक्षों और धर्माध्यक्षों के सामने बोलने लगे, भाइयों और बहनों, तो वहाँ का सारा माहौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

स्वामी विवेकानंद का जीवन और शिक्षाएं भारत के साथ-साथ दुनिया के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। वह आध्यात्मिकता, शांति और सार्वभौमिक भाईचारे के प्रवर्तक थे। ऐसे महान व्यक्तित्व का अगर एक गुण भी हम अपने जीवन में उतार ले तो हमारा जीवन भी धन्य बन जायेगा। धन्यवाद।

यह भी पढ़े: स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कैसे और कब हुई थी?

मेरे प्यारे श्रोतागणों,

सबको मेरा प्यार भरा नमस्कार।

आज मैं आपके साथ स्वामी विवेकांनद के बारे में कुछ विचार साझा करना चाहती हूँ। भारत में एक नई जागृति की शुरुआत करने वाले लोगों में स्वामी विवेकानंद का नाम प्रमुख है। हर भारतीय स्वामी विवेकानंद का नाम आज भी मान सम्मान के साथ लेते है।

उनका जन्म वर्ष 1863 में कलकत्ता में हिन्दु परिवार में हुआ था। माता पिता ने उनका नाम नरेन्द्र रखा था। नरेन्द्र बचपन से ही काफी जिज्ञासु प्रकार का बालक था। बुद्धिमान दिमाग और उच्च सोच जैसे उसे उपहार में मिला था।

उनके पिता विश्वनाथ दत्ता अंग्रेजी और फारसी के अच्छे जानकार थे। वह कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक सफल वकील थे। उनकी मां एक करिश्माई महिला थी, जिन्होंने बचपन से ही नरेन को प्रभावित किया था। उन्होंने पहले नरेन को अंग्रेजी का पाठ पढ़ाया, फिर उन्हें बंगाली वर्णमाला से परिचित कराया।

उन्होंने बी.ए. करने के बाद कानून का अभ्यास किया। उनकी माता उन्हें वकील बनाना चाहती थी। लेकिन नरेन्द्र को अध्यात्मिक की ओर ज्यादा रूचि थी। पिता की मृत्यु के बाद उनके घर की स्थितिअच्छी नहीं थी। इसलिए वो आगे पढ़ाई नहीं कर पाया।

आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की चाह में नरेन्द्र सबसे अधिक समय साधु-संतों के साथ व्यतीत करते थे, जिसके दौरान वो स्वामी रामकृष्ण के संपर्क में आए। स्वामी रामकृष्ण ने नरेन्द्र को काफी प्रभावित किया। नरेन्द्र उनका अनुयायी बन गया।

स्वामी रामकृष्ण ने नरेन्द्र को बताया कि ईश्वर दर्शन के लिए एक मात्र उपाय मानवजाति की सेवा है। उन्होंने अपने गुरु के अंतिम समय तक उनकी सेवा की और उनकी याद में 1897 वर्ष को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।

रामकृष्ण मिशन एक ऐसे साधुओं और सन्यासियों का संगठन है, जो रामकृष्ण परमहंस के उपदेशों को आम जनता तक पंहुचा सके और दु:खी और ज़रूरतमंदों की  नि:स्वार्थ सेवा कर सकें। विश्व सर्व धर्म सम्मलेन, 1883 में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने के लिए स्वामी विवेकानंद जी शिकागो गये।

लेकिन उन्हें वहां तुच्छ माना गया। काफी प्रयासों के बाद उन्हें मंच पर बोलने का मौका मिला। ‘मेरे भाइयों और बहनों’ सुनते ही वहां उपस्थित करीब 7 हज़ार लोगों ने उनके लिए जोरों से तालियां बजायी।

स्वामी विवेकानंद एक बेहतरीन लेखक भी थे। उन्होंने कर्म योग, राज योग, वेदांत शास्त्र और भक्ति योग जैसी किताबें लिखी, जिसे लोग आज भी बड़ी दिलचस्पी के साथ पढ़ते है।

ज़रूरतमंदों की सेवा करने में स्वामी विवेकानंद इतना मशगूल हो गए थे कि वो अपनी सेहत का ध्यान नही रख पा रहे थे। जिसके चलते वो महज 39 वर्ष की आयु में ही 31 बीमारियों से ग्रसित हो गये थे।

उन्होंने अपनी भविष्यवाणी में कहा था कि वे 40 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर सकेंगे और उनकी यह बात सच हो गई। 4 जुलाई 1902 के दिन उनकी मृत्यु 39 वर्ष की आयु में हुई।

स्वामी विवेकानंद जैसे महान व्यक्तित्व को श्रद्धांजलि देने के रूप में भारत में उनका जन्म दिवस राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। हमें इस दिवस को सार्थक बनाने के लिए स्वामी विवेकानंद के अधूरे काम को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए। मैं यही मेरे विचार समाप्त करना चाहती हूँ। शुक्रिया।

हम उम्मीद करते हैं कि आपको स्वामी विवेकानंद पर भाषण हिंदी में (swami vivekananda par bhashan) पसंद आये होंगे। इसे आगे शेयर जरूर करें और कोई सुझाव या सवाल हो तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

  • गाँधी जयंती पर भाषण
  • एपीजे अब्दुल कलाम पर भाषण
  • शिक्षक दिवस पर भाषण
  • युवा दिवस पर प्रेरणादायी विचार

Rahul Singh Tanwar

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Swami Vivekananda Speech & Quotes in hindi: इस राष्ट्रीय युवा दिवस 2024 पर पढ़ें स्वामी विवेकानंद का शानदार भाषण और सफ़लता के मूलमंत्र

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राष्ट्रीय युवा दिवस 2024 : स्वामी विवेकानंद द्वारा सिखाएं सफलता के मूल मंत्र (Swami Vivekananda Speech & Quotes in hindi, Swami Vivekananda Chicago Speech in hindi, Motivational Quotes in hindi)

भारत में हर साल 12 जनवरी का दिन राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day 2024) के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन स्वामी विवेकानंद जयंती (Swami Vivekananda Jayanti 2024) भी मनाई जाती है।

स्वामी विवेकानंद जी एक ऐसे महान व्यक्तित्व थे तीनों ने संपूर्ण विश्व को भारतीय दर्शनिकता और आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाया था तथा भारतीय युवा शक्ति का लोहा मनवाया था।

स्वामी विवेकानंद जी को आज भी शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में उनके शानदार भाषण के लिए याद किया जाता है। जब भी स्वामी विवेकानंद जी की बात की जाती है तो शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में उनके भाषण की चर्चा जरूर होती है। स्वामी विवेकानंद जी का यह भाषण एक ऐसा भाषण था जिसने संपूर्ण विश्व में भारतवर्ष की सभ्यता और संस्कृति को एक मजबूत छवि के साथ प्रस्तुत किया।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य और हम सबके प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद जी ने अपने जीवन में अध्यात्म की उन गहराइयों को छू लिया था साधारण मनुष्य जिनकी कल्पना भी नहीं कर सकता। इसीलिए स्वामी विवेकानंद जी को एक असामान्य पुरुष माना जाता था।

राष्ट्रीय युवा दिवस 2023 (National Youth Day 2024) और स्वामी विवेकानंद जयंती 2024 (Swami Vivekananda Jayanti 2024) के विशेष अवसर पर हम आपके लिए स्वामी विवेकानंद जी का शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में दिया गया वह भाषण लेकर आए हैं, जिसने संपूर्ण विश्व में सनातन सभ्यता और संस्कृति का परचम लहरा दिया था।

इसके अलावा हम आपको National Youth Day 2024 के खास मौके पर विवेकानंद जी द्वारा दिए गए सफलता के उन मूल मंत्रों के बारे में भी बताएंगे जिनका अनुसरण करके लोग जीवन की दर्शनिकता और गुणवत्ता को समझ पाते हैं और सफलता की ओर अग्रसर होते हैं।

  • राष्ट्रीय युवा दिवस क्यों मनाया जाता है?
  • राष्ट्रीय युवा दिवस 2024 पर भेंजे हार्दिक शुभकामनाएं

विषय–सूची

स्वामी विवेकानंद जी का भाषण और सफ़लता के मूलमंत्र (Swami Vivekananda Speech & Quotes in hindi)

स्वामी विवेकानंद जी का शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में भाषण (swami vivekananda speech in chicago world religion conference in hindi).

स्वामी विवेकानंद जी ने 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया था और एक जोरदार भाषण के साथ पश्चिमी देशों और पूरी दुनिया को भारतीय सनातन सभ्यता और संस्कृति का दर्पण दिखाया था।

कहा जाता है कि अपने भाषण में जब स्वामी विवेकानंद जी ने अमेरिका के लोगों को संबोधित करते हुए भाइयों एवं बहनों शब्द का प्रयोग किया तो पूरा कॉन्फ्रेंस हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज गया।

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स्वामी विवेकानंद ने शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में सम्बोधित करते हुये कहा?

अमेरिका के भाइयों और बहनों!

आप लोगों ने जिसे स्नेह के साथ मेरा जोरदार स्वागत किया है उससे मेरा ह्रदय भर आया है। मैं आप लोगों को दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी सनातन संस्कृति की तरफ से धन्यवाद देता हूं और अपने लाखों-करोड़ों हिंदू भाई बहनों की तरफ से आप सब का आभार व्यक्त करता हूं।

इसके अलावा मैं उन सभी वक्ता गणों का भी धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने अपने भाषण में यह व्यक्त किया कि इस दुनिया में सहिष्णुता और सहनशीलता का भाव पूर्वी देशों से ही फैला है। मुझे स्वयं पर गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और इसकी सार्वभौमिकता का पाठ पढ़ाया।

लेकिन हम केवल सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते अपितु हम विश्व के सभी धर्मों को समान रूप से सत्य मानकर स्वीकार करते हैं। मुझे इस बात के लिए भी गर्व है कि मैं उस देश से आता हूं जहां दुनिया भर के देशों और धर्मों से सताए गए लोगों को संरक्षण और पनाह दी जाती है।

मुझे गर्व है कि हमने अपने ह्रदय में इसराइल की वह पवित्र स्मृतियां संजो कर रखी हैं जिनके धार्मिक स्थलों को रोमन आक्रमणकारियों ने तहस-नहस कर खंडहर बना दिया था तब जाकर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली। मुझे इस बात का भी गर्व है कि हमने पारसी धर्म के लोगों को अपने देश में शरण दी और आज भी उन्हें पाल-पोष रहे हैं।

मैं इस विशेष मौके पर आप लोगों को एक श्लोक सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से लगातार स्मरण किया है और रोज़ करोड़ों लोग इसे दोहराते हैं। जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकलकर नदियां अंततः समुद्र में विलीन हो जाती हैं ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग (धर्म) चुनते हैं। यह मार्ग केवल देखने में भिन्न है लेकिन इनका ध्येय केवल एक है। यह सभी मार्ग ईश्वर तक ही जाते हैं।

वर्तमान सम्मेलन जिसे मैं आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है वह स्वयं गीता के इस श्लोक का प्रत्यक्ष प्रमाण है। जो मुझ तक पहुंचता है फिर चाहे जैसा भी हो मैं उसे अपना लेता हूं। लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं भटकते हैं परेशान होते हैं लेकिन आखिरकार मुझ में मिल जाते हैं।

सांप्रदायिकता कट्टरता और इनका वंशज धार्मिक हठ ने बहुत लंबे समय से संपूर्ण विश्व और पृथ्वी को जकड़ रखा है। इन चीजों ने संपूर्ण पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है, ना जाने कितनी बार यह धरती लहू के रंगों में रंग चुकी है, न जाने कितनी सभ्यताएं और देश मिटाए जा चुके हैं।

अगर इस पृथ्वी पर सांप्रदायिकता कट्टरता और हठधर्मिता जैसे भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज मौजूदा स्थिति से काफी ज्यादा उन्नत होता। लेकिन अब उनका समय समाप्त हो चुका है और मैं आशा करता हूं कि आज इस पवित्र विश्व धर्म सम्मेलन का शंखनाद इन सभी सांप्रदायिकता कट्टरता और हठधर्मिता का नाश कर देगा, फिर चाहे हथियार तलवार हो या कलम।

यह लेख उस भाषण का प्रारूप है जिसे स्वामी विवेकानंद जी द्वारा शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में दिया गया था।

स्वामी विवेकानंद द्वारा बताए गए सफलता के 20 मूल मंत्र (Swami vivekananda Quotes in hindi)

  • एक समय में केवल एक दिशा में काम करो और इस काम में खुद को पूरा झोंक दो ताकि तुम्हें सिर्फ तुम्हारा उद्देश्य याद रहे बाकी सब भूल जाओ।
  • इस ब्रह्मांड की सारी शक्तियां हमारी मुट्ठी में है लेकिन हम खुद ही अपनी आंख बंद कर लेते हैं और फिर अंधकार से डर कर रोते हैं।
  • उठो जागो और तब तक प्रयत्न करते रहो जब तक अपने ध्येय को हासिल न कर लो।
  • अगर जीवन में सफल होना है तो एक विचार निर्धारित करो और उसमें राम जाओ। केवल उसी के बारे में सोचो उसी के सपने देखो और उसी के लिए जियो। अपने शरीर और मस्तिष्क को उच्च विचार की भावनाओं में डूब जाने दो।
  • व्यक्ति का सबसे बड़ा धर्म है स्वयं के प्रति ईमानदार होना। स्वयं को धोखे में मत रखो, सच की तलाश करो। अपने ऊपर सदैव विश्वास करो और अपने आत्मविश्वास को कमजोर मत होने दो।
  • मस्तिष्क और ह्रदय की भावनाओं की टकरार में सदैव अपने हृदय की सुनो। और तत्काल निर्णय लेने की क्षमता रखो। निर्णय लेने के बाद उससे विमुख होना कायरता होती है इसीलिए निर्णय लेने के बाद पुनर्विचार मत करो बल्कि उस निर्णय को सही साबित करो।
  • आत्मविश्वास की कमी व्यक्ति को कायर बना देती है। स्वयं पर अटूट विश्वास रखो।
  • तुम्हें ना कोई कुछ न पढ़ा सकता है ना सिखा सकता है। तुम्हें सारी चीज है खुद से सीख नहीं होंगी, आत्मा से बड़ा शिक्षक कोई नहीं है।
  • व्यक्ति का आचरण उसके बाहरी स्वरूप का निर्माण करता है। सुंदर आचरण के लोगों में सदैव सभ्यता झलकती है।
  • शक्ति जीवन है जबकि निर्बलता मृत्यु, प्रेम जीवन है जबकि घृणा और ईर्ष्या मृत्यु, विस्तार ही जीवन है जबकि संकुचन सदैव मृत्यु की ओर होता है।
  • जब व्यक्ति के सामने कोई समस्या आ खड़ी हो तो उसे समझ लेना चाहिए कि उसने गलत रास्ता और गलत निर्णय चुना है।
  • व्यक्ति जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है। शक्ति खुद को सबल मानने से आती है जबकि खुद को निर्बल मानने न से केवल निर्बलता हाथ लगती है।
  • ज्ञान रूपी प्रकाश में संसार के सभी अंधेरों को नष्ट कर देने की शक्ति होती है इसलिए ज्ञानी बनो और संसार के अंधेरों को दूर करो।
  • व्यक्ति का भय और अधूरी वासनाएं हीं दुख का सबसे बड़ा कारण है। संसार में सुखी होना है तो अपने ही वासनाओं पर नियंत्रण करो और संतोष करना सीखो।
  • जो स्वयं पर विश्वास नहीं करता वह सचमुच एक नास्तिक है जो ईश्वर पर भी विश्वास नहीं करता।
  • सनातन संस्कृति आध्यात्मिकता की अजर, अमर आधार शिला है।
  • व्यक्ति का सबसे बड़ा है साथी उसका श्रेष्ठ विचार होता है। जिस व्यक्ति के साथ श्रेष्ठ विचार होते हैं वह कभी खुद को अकेला महसूस नहीं करता।
  • असंभव की सीमा को लांघना संभव की सीमा को जानने का एकमात्र तरीका है। दूसरे शब्दों में संसार में असंभव नाम की कोई भी चीज नहीं है।
  • हर निर्णय को तीन परीक्षाओं से होकर गुजरना पड़ता है जिनमें उपहास, बाधाएं और स्वीकृति शामिल है। जिसने उपहास और विरोध की बाधाओं को पार कर लिया उसका निर्णय स्वीकृति को प्राप्त होता है।
  • ईश्वर का निवास सजीव प्राणियों के ह्रदय में होता है उसकी तलाश कहीं और नहीं करनी चाहिए।
  • हम दूसरों के साथ जितना अच्छा व्यवहार करते हैं हमारा हृदय उतना ही पवित्र होता जाता है। और ध्यान रखिए पवित्र ह्रदय में ही ईश्वर का निवास होता है जबकि अपवित्र ह्रदय में केवल राक्षस रह सकता है।

तो दोस्तों इस आर्टिकल के जरिए हमने आपको स्वामी विवेकानंद की शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में दी गई Speech और उनके द्वारा बताए गए सफलता के मूल मंत्र के बारे में बताया। उम्मीद करते हैं कि निश्चय ही इन मूल मंत्रों को जानने के बाद आपको इनसे प्रेरणा मिली होगी और आपको हमारा यह आर्टिकल भी पसंद आया होगा।

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vivekananda speech on zero in hindi

स्वामी विवेकानंद जी का भाषण | Swami Vivekananda Speech In Hindi

Swami Vivekananda Speech  – स्वामी विवेकानंद जी के वाणी से निकला हर एक शब्द अमृत के समान है. स्वामी विवेकानंद हमेशा से युवाओं को प्रेरित करते आये है, विश्व धर्म सम्मेलन में उन्होंने दिया भाषण अपने आप में एक अमृतवाणी है.

Swami Vivekananda Speech

हमें बहुत प्रसन्नता हो रही है की हम GyaniPandit.com पर हिंदी में अनुवादित स्वामी विवेकानंद जी का भाषण आप सब के लिए पब्लिश कर रहें है.

स्वामी विवेकानंद जी का भाषण | Swami Vivekananda Speech

विश्व धर्म सम्मेलन में दिया गया संदेश शिकागो, 11 सितंबर 1893

अमेरिका के बहनों और भाइयों…

आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय बेहद प्रसन्नता से भर गया है. मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूँ. मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद कहूँगा और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका कृतज्ञता व्यक्त करता हूं.

मेरा धन्यवाद उन कुछ वक्ताओं के लिये भी है जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूरपूरब के देशों से फैला है. मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक ग्रहण करने का पाठ पढ़ाया है.

हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में ही स्वीकार करते हैं. मुझे बेहद गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूँ, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के अस्वस्थ और अत्याचारित लोगों को शरण दी है.

मुझे यह बताते हुए बहुत गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इजराइलियों की पवित्र स्मृति याँ संभालकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर नष्ट कर दिया था और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी.

मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ , जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें प्यार से पाल-पोस रहा है. भाइयों, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियाँ सुनाना चाहूँगा जिसे मैंने अपने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है.

जिस तरह बिलकुल भिन्न स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियाँ अंत में समुद्र में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है. वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं.

वर्तमान सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र समारोहों में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है – जो भी मुझ तक आता है, चाहे फिर वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुँचते हैं.

सांप्रदायिकताएँ, धर्माधता और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं. इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है. कितनी बार ही यह भूमि खून से लाल हुई है. कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं. अगर ये भयानक दैत्य नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है.

मुझे पूरी आशा है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगे.

स्वामी विवेकानंद का अंतिम सेशन में दिया गया संदेश

उन सभी महान आत्माओ का मै शुक्रियादा करता हु जिनका बड़ा ह्रदय हो और जिनमे प्यार की सच्चाई हो और जिन्होंने प्रभुत्व की सच्चाई का अनुभव कीया हो. उदार एवं भावुकता को दिखाने वालो का भी मै शुक्रियादा करना चाहता हु. मै उन सभी श्रोताओ का भी शुक्रियादा करना चाहता हु जिन्होंने शांति पूर्वक हमारे धार्मिक विचारो को सुना और अपनी सहमति दर्शायी.

इस सम्मेलन की सभी मधुर बाते मुझे समय-समय पर याद आती रहेंगी. उन सभी का मै विशेष शुक्रियादा करना चाहता हु जिन्होंने अपनी उपस्थिति से मेरे विचारो को और भी महान बनाया.

बहोत सी बाते यहाँ धार्मिक एकता को लेकर ही कही गयी थी. लेकीन मै यहाँ स्वयं के भाषण को साहसिक बताने के लिये नही आया हु. लेकीन यहाँ यदि किसी को यह आशा है की यह एकता किसी के लिये या किसी एक धर्म के लिये सफलता बनकर आएँगी और दूसरे के लिए विनाश बनकर आएँगी, तो मै उन्हेंसे कहना चाहता हु की, “भाइयो, आपकी आशा बिल्कुल असंभव है.”

क्या मै धार्मिक एकता में किसी क्रिस्चियन को हिन्दू बनने के लिए कह रहा हु?

भगवान ऐसा करने से हमेशा मुझे रोकेंगे.

क्या मै किसी हिन्दू या बुद्ध को क्रिस्चियन बनने के लिये कह रहा हु? निश्चित ही भगवान ऐसा नही होने देंगे. बीज हमेशा जमीन के निचे ही बोये जाते है और धरती और हवा और पानी उसी के आसपास होते है. तो क्या वह बीज धरती, हवा और पानी बन जाता है? नही ना, बल्कि वह एक पौधा बन जाता है. वह अपने ही नियमो के तहत बढ़ता जाता है. साधारण तौर पर धरती, हवा और पानी भी उस बीज में मिल जाते है और एक पौधे के रूप में जीवित हो जाते है.

और ऐसा ही धर्म के विषय में भी होता है. क्रिस्चियन कभी भी हिन्दू नही बनेगा और एक बुद्धिस्ट और हिन्दू कभी क्रिस्चियन नही बनेंगे. लेकिन धार्मिक एकता के समय हमें विकास के नियम पर चलते समय एक दुसरे को समझकर चलते हुए विकास करने की जरुरत है.

यदि विश्व धर्म सम्मेलन दुनिया को यदि कुछ दिखा सकता है तो वह यह होंगा- धर्मो की पवित्रता, शुद्धता और पुण्यता.

क्योकि धर्मो से ही इंसान के चरित्र का निर्माण होता है, यदि धार्मिक एकता के समय भी कोई यह सोचता है की उसी के धर्म का विस्तार हो और दुसरे धर्मो का विनाश हो तो ऐसे लोगो के लिये मुझे दिल से लज्जा महसुस होती है. मेरे अनुसार सभी धर्मो के धर्मग्रंथो पर एक ही वाक्य लिखा होना चाहिये:

” मदद करे और लडे नही” “एक दूजे का साथ दे, ना की अलग करे” “शांति और करुणा से रहे, ना की हिंसा करे”.

स्वामी विवेकानंदजी पर अन्य लेख:

  • स्वामी विवेकानंद की प्रेरक जीवनी
  • स्वामी विवेकानंद के जीवन के 11 प्रेरणादायक संदेश
  • स्वामी विवेकानंद जी के प्रेरक प्रसंग
  • स्वामी विवेकानंद के सुविचार
  • स्वामी विवेकानंद के सर्वश्रेष्ठ विचार

Please Note:  आपके पास Swami Vivekananda Speech In Hindi मैं और Information हैं, या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो तुरंत हमें कमेंट मैं लिखे हम इस अपडेट करते रहेंगे. अगर आपको Swami Vivekananda Speech In Hindi  From World’s Parliament Of Religions, Chicago 11th September अच्छी लगे तो जरुर Share कीजिये. E-MAIL Subscription करे और पायें Swami Vivekananda Speech In Hindi And More New Article आपके ईमेल पर.

18 thoughts on “स्वामी विवेकानंद जी का भाषण | Swami Vivekananda Speech In Hindi”

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Kripaya chicago ke sabhi bhashano ka Hindi anuwad den .dhanywad!

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स्वामी जी विचार हमेशा प्रेरणादायक रहें हैं और रहेंगे

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मुझे इससे खुशी मिली है

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Swami Vivekananda Jayanti Speech in Hindi : स्वामी विवेकानंद जयंती पर दे सकते हैं यह आसान भाषण

Swami vivekananda jayanti speech in hindi : स्वामी विवेकानंद जयंती और राष्ट्रीय युवा दिवस होने के चलते स्कूल, कॉलेजों में भाषण व निबंध प्रतियोगिताएं होती हैं। आप यहां से इसका उदाहरण देख सकते हैं।.

Swami Vivekananda Jayanti Speech in Hindi : स्वामी विवेकानंद जयंती पर दे सकते हैं यह आसान भाषण

Swami Vivekananda Jayanti Speech : हर वर्ष 12 जनवरी को करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्त्रोत स्वामी विवेकानंद की जयंती मनाई जाती है। इस दिन को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस ( National Youth Day )  के तौर पर भी मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद के ओजपूर्ण विचार हमेशा से युवाओं को प्रेरित करते रहे हैं इसलिए साल 1985 में भारत सरकार ने स्वामी जी के जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाने का फैसला लिया। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकता में पिता विश्वनाथ दत्त और माता भुवनेश्वरी देवी के घर हुआ था। वह बेहद कम उम्र में विश्व विख्यात प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु बन गए थे। 1893 में अमेरिका के शिकागो में हुए विश्‍व धार्मिक सम्‍मेलन में उन्‍होंने जब भारत और हिंदुत्‍व का प्रतिनिधित्‍व किया तो उनके विचारों से पूरी दुनिया उनकी ओर आकर्षित हुई। स्वामी विवेकानंद जयंती और राष्ट्रीय युवा दिवस होने के चलते स्कूल, कॉलेजों में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इनमें विवेकानंद से जुड़े भाषण, निबंध व पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिताएं भी होती हैं। अगर आप भाषण या निबंध प्रतियोगिता में हिस्से ले रहे हैं तो नीचे इसका उदाहरण देख सकते हैं। 

Speech On Swami Vivekananda Jayanti : यहां देखें भाषण का एक उदाहरण यहां उपस्थित प्रधानाचार्य महोदय, आदरणीय शिक्षकगण और मेरे प्यारे साथियों। सबसे पहले मैं आप सभी को धन्यवाद देना चाहता हूं कि आप सभी ने मुझे इस मंच से महान आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद पर अपने विचार व्यक्त करने का अवसर दिया। स्वामी विवेकानंद वो शख्स हैं जिससे आज सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के करोड़ो युवा प्रेरणा लेते हैं। उनके अनमोल विचार और कहीं गई बातें युवाओं में जोश फूंकने का काम करते हैं। यही वजह है की आज 12 जनवरी का दिन भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर भी मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी को कोलकाता में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। सिर्फ 25 साल की उम्र में ही नरेन्द्रनाथ ने अध्यात्म का मार्ग अपना लिया था। आध्यात्मिक मार्ग अपनाने के बाद उनको स्वामी विवेकानंद के नाम से जाना जाने लगा। 

विवेकानंद की जब भी बात होती है तो अमरीका के शिकागो की धर्म संसद में साल 1893 में दिए गए भाषण की चर्चा जरूर होती है। ये वो भाषण है जिसने पूरी दुनिया के सामने भारत को एक मजबूत छवि के साथ पेश किया। स्वामी विवेकानंद ने अपना भाषण 'अमेरिका के भाईयों और बहनों' के संबोधन से शुरू किया तो पूरे दो मिनट तक हॉल में तालियां बजती रहीं। उस दिन से भारत और भारतीय संस्कृति को दुनियाभर में पहचान मिली।

स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1897 में कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन और 9 दिसंबर 1898 को गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की। स्वामी विवेकानंद को दमा और शुगर की बीमारी थी, जिसकी वजह से उन्होंने 39 साल की बेहद कम उम्र में ही दम तोड़ दिया। लेकिन इतनी कम उम्र में वह विश्वभर में इतनी ख्याति बटोर गए जो हर युवा के लिए एक मिसाल है। उन्होंने सिखाया कि  युवावस्था कितनी महत्वपूर्ण होती है।

स्वामी जी कहते थे कि 'उठो और जागो और तब तक रुको नहीं, जब तक कि तुम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते।' उनका मानना था कि जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी। जो तुम सोचते हो, वो बन जाओगे। यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो, तुम कमजोर हो जाओगे। अगर खुद को ताकतवर सोचते हो, तुम ताकतवर हो जाओगे।'   साथियों, आज युवा दिवस के मौके पर हम सभी न सिर्फ उन्हें याद कर श्रद्धांजिल दें, बल्कि हम उनके दिए ज्ञान, बातों, सीखों व चरित्र के एक छोटे से हिस्से को अपने जीवन में  भी उतारें। यदि हम सभी उनके द्वारा दिए गए ज्ञान के छोटे से हिस्से को भी अपने जीवन में उतार दें, तो हमें सफल होने से कोई नही रोक सकता है। इतना कहकर मैं अपने भाषण को समाप्त करता हूं और आशा करता हूँ कि आपको मेरा यह भाषण पसंद आया होगा। धन्यवाद

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  21. स्वामी विवेकानंद के संदेश

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  22. स्वामी विवेकानंद जी का भाषण

    Swami Vivekananda Speech - स्वामी विवेकानंद जी के वाणी से निकला हर एक शब्द अमृत के समान है. स्वामी विवेकानंद हमेशा से युवाओं को प्रेरित करते आये है ...

  23. Swami Vivekananda Jayanti Speech in Hindi

    Speech On Swami Vivekananda Jayanti : यहां देखें भाषण का एक उदाहरण यहां उपस्थित ...