ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध – कारण और समाधान

ग्लोबल वार्मिंग पर 500+ शब्द निबंध.

ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसा शब्द है जिससे लगभग हर कोई परिचित है। लेकिन, इसका अर्थ अभी भी हम में से अधिकांश के लिए स्पष्ट नहीं है। तो, ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के वातावरण के समग्र तापमान में क्रमिक वृद्धि को संदर्भित करता है। विभिन्न गतिविधियां हो रही हैं जो धीरे-धीरे तापमान बढ़ा रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग हमारे हिम ग्लेशियरों को तेजी से पिघला रहा है। यह धरती के साथ-साथ इंसानों के लिए भी बेहद हानिकारक है। ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करना काफी चुनौतीपूर्ण है; हालाँकि, यह असहनीय नहीं है। किसी भी समस्या को हल करने में पहला कदम समस्या के कारण की पहचान करना है। इसलिए, हमें पहले ग्लोबल वार्मिंग के कारणों को समझने की आवश्यकता है जो हमें इसे हल करने में आगे बढ़ने में मदद करेंगे। ग्लोबल वार्मिंग पर इस निबंध में, हम ग्लोबल वार्मिंग के कारणों और समाधानों को देखेंगे।

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ग्लोबल वार्मिंग के कारण

ग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर समस्या बन गई है जिस पर अविभाजित ध्यान देने की आवश्यकता है। यह किसी एक कारण से नहीं बल्कि कई कारणों से हो रहा है। ये कारण प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों हैं। प्राकृतिक कारणों में ग्रीनहाउस गैसों की रिहाई शामिल है जो पृथ्वी से भागने में सक्षम नहीं हैं, जिससे तापमान में वृद्धि होती है।

इसके अलावा, ज्वालामुखी विस्फोट भी ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं। यह कहना है कि, इन विस्फोटों से कार्बन डाइऑक्साइड के टन निकलते हैं जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान करते हैं। इसी तरह, मीथेन भी ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार एक बड़ा मुद्दा है।

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उसके बाद, ऑटोमोबाइल और जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक उपयोग से कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त, खनन और पशु पालन जैसी गतिविधियाँ पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक हैं। सबसे आम मुद्दों में से एक है जो तेजी से हो रहा है वनों की कटाई।

इसलिए, जब कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण के सबसे बड़े स्रोतों में से एक ही गायब हो जाएगा, तो गैस को विनियमित करने के लिए कुछ भी नहीं रहेगा। इस प्रकार, यह ग्लोबल वार्मिंग में परिणाम देगा। ग्लोबल वार्मिंग को रोकने और धरती को फिर से बेहतर बनाने के लिए तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए।

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ग्लोबल वार्मिंग समाधान

जैसा कि पहले कहा गया है, यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है लेकिन यह पूरी तरह से असंभव नहीं है। जब संयुक्त प्रयास किए जाते हैं तो ग्लोबल वार्मिंग को रोका जा सकता है। इसके लिए, व्यक्तियों और सरकारों, दोनों को इसे प्राप्त करने की दिशा में कदम उठाने होंगे। हमें ग्रीनहाउस गैस की कमी से शुरू करना चाहिए।

इसके अलावा, उन्हें गैसोलीन की खपत पर नजर रखने की जरूरत है। एक हाइब्रिड कार पर स्विच करें और कार्बन डाइऑक्साइड की रिहाई को कम करें। इसके अलावा, नागरिक सार्वजनिक परिवहन या कारपूल को एक साथ चुन सकते हैं। इसके बाद, रीसाइक्लिंग को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

ग्रीनहाउस प्रभाव क्या है?

उदाहरण के लिए, जब आप खरीदारी करने जाते हैं, तो अपने कपड़े की थैली ले जाएं। एक और कदम जो आप उठा सकते हैं वह है बिजली के उपयोग को सीमित करना जो कार्बन डाइऑक्साइड की रिहाई को रोक देगा। सरकार के हिस्से पर, उन्हें औद्योगिक कचरे को नियंत्रित करना चाहिए और उन्हें हवा में हानिकारक गैसों को बाहर निकालने से रोकना चाहिए। वनों की कटाई को तुरंत रोका जाना चाहिए और पेड़ों के रोपण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

संक्षेप में, हम सभी को इस तथ्य का एहसास होना चाहिए कि हमारी पृथ्वी ठीक नहीं है। इसका इलाज करने की जरूरत है और हम इसे ठीक करने में मदद कर सकते हैं। वर्तमान पीढ़ी को भविष्य की पीढ़ियों की पीड़ा को रोकने के लिए ग्लोबल वार्मिंग को रोकने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इसलिए, हर छोटा कदम, कोई फर्क नहीं पड़ता कि कैसे छोटा वजन बहुत वहन करता है और ग्लोबल वार्मिंग को रोकने में काफी महत्वपूर्ण है।

ग्लोबल वार्मिंग पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न Q.1 ग्लोबल वार्मिंग के कारणों की सूची बनाएँ।

A.1 प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों प्रकार के ग्लोबल वार्मिंग के विभिन्न कारण हैं। प्राकृतिक एक में ग्रीनहाउस गैस, ज्वालामुखी विस्फोट, मीथेन गैस और बहुत कुछ शामिल हैं। अगला, मानव निर्मित कारण वनों की कटाई, खनन, मवेशी पालन, जीवाश्म ईंधन जलाना और अधिक हैं।

Q.2 ग्लोबल वार्मिंग को कोई कैसे रोक सकता है?

A.2 ग्लोबल वार्मिंग को व्यक्तियों और सरकार के संयुक्त प्रयास से रोका जा सकता है। वनों की कटाई पर रोक लगाई जानी चाहिए और पेड़ों को अधिक लगाया जाना चाहिए। ऑटोमोबाइल का उपयोग सीमित होना चाहिए और रीसाइक्लिंग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

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ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध (Global Warming Essay in Hindi)

पृथ्वी के सतह पर औसतन तापमान का बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापमान) कहलाता है। ग्लोबल वार्मिंग मुख्य रूप से मानव प्रेरक कारकों के कारण होता है। औद्योगीकरण में ग्रीन हाउस गैसों का अनियंत्रित उत्सर्जन तथा जीवाश्म ईंधन का जलना ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है। ग्रीन हाउस गैस वायुमंडल में सूर्य की गर्मी को वापस जाने से रोकता है यह एक प्रकार के प्रभाव है जिसे “ग्रीन हाउस गैस प्रभाव” के नाम से जाना जाता है । इसके फलस्वरूप पृथ्वी के सतह पर तापमान बढ़ रहा है। पृथ्वी के बढ़ते तापमान के फलस्वरूप पर्यावरण प्रभावित होता है अतः इस पर ध्यान देना आवश्यक है।

ग्लोबल वार्मिंग पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Global Warming in Hindi, Global Warming par Nibandh Hindi mein)

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध (250 – 300 शब्द).

पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के मात्रा में वृद्धि के कारण पृथ्वी के सतह पर निरंतर तापमान का बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग है। ग्लो पृथ्वी का बढ़ता तापमान विभिन्न आशंकाओं (खतरों) को जन्म देता है, साथ ही इस ग्रह पर जीवन के अस्तित्व के लिए संकट पैदा करता है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण

जीवाश्म ईंधन के दोहन, उर्वरकों का उपयोग, वनों को कांटना, बिजली की अत्यधिक खपत, फ्रिज में उपयोग होने वाले गैस इत्यादि के कारणवश वातावरण में CO2, CO  का अत्यधिक उत्सर्जन हो रहा है।CO2 के स्तर में बढ़ोत्तरी “ग्रीन हाउस गैस प्रभाव” का कारक है, जो सभी ग्रीन हाउस गैस (जलवाष्प, CO2, मीथेन, ओजोन) थर्मल विकरण को अवशोषित करता है, तथा सभी दिशाओं में विकीर्णं होकर और पृथ्वी के सतह पर वापस आ जाते हैं जिससे सतह का तापमान बढ़ कर ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण बनता है।

ग्लोबल वार्मिंग का निवारण

हमें पेड़ो की अन्धाधुन कटाई पर रोक लगाना चाहिए, बिजली का उपयोग कम करना चाहिए, लकड़ी को जलाना बंद करना चाहिए आदि।ग्लोबल वार्मिंग दुनिया के सभी देशों के लिए एक बड़ी समस्या है, जिसका समाधान सकारात्मक शुरूआत के साथ करना चाहिए।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से जीवन पर खतरा बढ़ता जा रहा है। हमें सदैव के लिए बुरी आदतों का त्याग करना चाहिए क्योंकी यह CO2, COके स्तर में वृद्धि कर रहा है और ग्रीन हाउस गैस के प्रभाव से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध – Global Warming par Nibandh (400 शब्द)

आज के समय में ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ी पर्यावरण समस्या है जिसका हम सब सामना कर रहे हैं, तथा जिसका समाधान स्थायी रूप से करना आवश्यक हो गया है। वास्तव में पृथ्वी के सतह पर निरंतर तथा स्थायी रूप से तापमान का बढ़ना, ग्लोबल वार्मिंग प्रक्रिया है। सभी देशों द्वारा विश्व स्तर पर इस विषय पर व्यापक रूप से चर्चा होनी चाहिए। यह दशकों से प्रकृति के संतुलन, जैव विविधता तथा जलवायु परिस्थियों को प्रभावित करता आ रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारक

ग्रीन हाउस गैस जैसे CO 2 , मीथेन, पृथ्वी पर बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग मुख्य कारक हैं। इसका सीधा प्रभाव समुद्री स्तर का विस्तार, पिघलती बर्फ की चट्टाने, ग्लेशियर, अप्रत्याशित जलवायु परिवर्तन पर होता है, यह जीवन पर बढ़ते मृत्यों के संकट का प्रतिनिधित्व करता है। आकड़ों के अनुसार यह अनुमान लगाया जा रहा है की मानव जीवन के बढ़ते मांग के कारण बीसवीं शताब्दी के मध्य से तापमान में बहुत अधिक बढ़ोत्तरी आयी है जिसके फलस्वरूप वैश्विक स्तर पर वायुमंडलीय ग्रीन हाउस गैस सांद्रता के मात्रा में भी वृद्धि हुई है।

पिछली सदी के 1983, 1987, 1988, 1989, और 1991 सबसे गर्म छ: वर्ष रहे हैं, यह मापा गया है। इसने ग्लोबल वार्मिंग में अत्यधिक वृद्धि किया जिसके फलस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं का अनपेक्षित प्रकोप सामने आया जैसे- बाढ़, चक्रवात, सुनामी, सूखा, भूस्खलन, भोजन की कमी, बर्फ पिघलना, महामारी रोग, मृत्यों आदि इस कारणवश प्रकृति के घटना चक्र में असंतुलन उत्पन्न होता है जो इस ग्रह पर जीवन के अस्तित्व के समाप्ति का संकेत है।

ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के कारण, पृथ्वी से वायुमंडल में जल-वाष्पीकरण अधिक होता है जिससे बादल में ग्रीन हाउस गैस का निर्माण होता है जो पुनः ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है। जीवाश्म ईंधन का जलना, उर्वरक का उपयोग, अन्य गैसों मे वृद्धि जैसे- CFCs, ट्रोपोस्फेरिक ओजोन, और नाइट्रस ऑक्साइड भी ग्योबल वार्मिंग के कारक हैं। तकनीकी आधुनीकरण, प्रदुषण विस्फोट, औद्योगिक विस्तार के बढ़ते मांग, जंगलों की अन्धाधुन कटाई तथा शहरीकरण ग्लोबल वार्मिंग वृद्धि में प्रमुख रूप से सहायक हैं।

हम जंगल की कटाई तथा आधुनिक तकनीक के उपयोग से प्राकृतिक प्रक्रियाओं को विक्षुब्ध (Disturb) कर रहे हैं। जैसे वैश्विक कार्बन चक्र, ओजोन के परत में छेद्र बनना तथा UV तंरगों का पृथ्वी पर आगमन जिससे ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि हो रही है।

हवा से कार्बन डाइऑक्साइड हटाने का एक मुख्य स्त्रोत पेड़ है। तथा पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के लिए हमें वनों की कटाई पर रोक लगाना चाहिए तथा ज्यादा से ज्यादा लोगों द्वारा वृक्षारोपड़ किया जाना चाहिए यह ग्लोबल वार्मिंग के स्तर में अत्यधिक कमी ला सकता है। जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण तथा विनाशकारी प्रोद्यौगिकियों का कम उपयोग भी एक अच्छी पहल है, ग्लोबल वार्मिंग नियंत्रण के लिए।

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध – Global Warming per Nibandh (600 शब्द)

ग्लोबल वार्मिंग के विभिन्न कारक हैं, जिसमें कुछ प्रकृति प्रदत्त हैं तथा कुछ मानव निर्मित कारक हैं, ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के सबसे प्रमुख कारकों में ग्रीन हाउस गैस है जो कुछ प्राकृतिक प्रक्रियाओं व मानवीय क्रियाओं से उत्पन्न होता है। बीसवीं शताब्दी में, जनसंख्या वृद्धि, ऊर्जा का अत्यधिक उपयोग से ग्रीन हाउस गैस के स्तर में वृद्धि हुई है। लगभग हर जरूरत को पूरा करने के लिए आधुनिक दुनिया में औद्योगीकरण की बढ़ती मांग, जिससे वातावरण में विभिन्न तरह के ग्रीन हाउस गैस की रिहाई होती है।

कार्बन डाइऑक्साइड CO 2 तथा सल्फर डाइऑक्साइड SO 2 की मात्रा हाल ही के वर्षों में दस गुना बढ़ गई है। विभिन्न प्राकृतिक, औद्योगिक क्रियाएं जिसमें प्रकाश संश्लेषण और ऑक्सीकरण भी सम्मिलित है, इन सब से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि होती है। अन्य ग्रीन हाउस गैस मीथेन, नाइट्रोजन के ऑक्साइड (नाइट्रस आक्साइड), हॉलोकार्बन, क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFCs), क्लोरीन और ब्रोमीन यौगिक इत्यादि कार्बनिक सामाग्री का अवायवीय अपघटन है। कुछ ग्रीन हाउस गैस वायुमंडल में एकत्र होते है और वायुमंडल के संतुलन को विक्षुब्ध करते हैं। उन में गर्म विकरणों को अवशोंषित करने की क्षमता होती है और इसलिए पृथ्वी के सतह पर तापमान में वृद्धि होती है।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव

ग्लोबल वार्मिंग के स्त्रोतों में वृद्धि से साफ तौर पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव देखा जा सकता है। US भूगर्भीय सर्वेक्षण (US Geological Survey) के अनुसार मोंटाना ग्लेशियर नेशनल पार्क पर 150 ग्लेशियर मौजुद थे पर ग्लोबल वार्मिंग के वजह से वर्तमान में मात्र 25 ग्लेशियर बचे हैं। अधिक स्तर पर जलवायु में परिवर्तन तथा तापमान से ऊर्जा (वायुमंडल के उपरी सतह पर ठंडा तथा ऊष्णकटिबंधीय महासागर के गर्म होने से) लेकर तूफान अधिक खतरनाक, शक्तिशाली और मजबूत बन जाते हैं। 2012 को 1885 के बाद सबसे गर्म वर्ष दर्ज किया है तथा 2003 को 2013 के साथ सबसे गर्म वर्ष के रूप में देखा गया है।

ग्लोबल वार्मिंग के फलस्वरूप वातावरण के जलवायु में, बढ़ती गर्मी का मौसम, कम होता ठंड का मौसम, बर्फ के चट्टानों का पिघलना, तापमान का बढ़ना, हवा परिसंचरण पैटर्न में बदलाव, बिन मौसम के वर्षा का होना, ओजोन परत में छेद्र, भारी तूफान की घटना, चक्रवात, सूखा, बाढ़ और इसी तरह के अनेक प्रभाव हैं।

ग्लोबल वार्मिंग का समाधान

सरकारी एजेंसियों, व्यवसाय प्रधान, निजी क्षेत्र, NGOs आदि द्वारा बहुत से कार्यक्रम, ग्लोबल वार्मिंग कम करने के लिए चलाएं तथा क्रियान्वित किए जा रहे हैं। ग्लोबल वर्मिंग के वजह से पहुचने वाले क्षति में कुछ क्षति ऐसे हैं (बर्फ की चट्टानों का पिघलना) जिसे किसी भी समाधान के माध्यम से पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता है। जो भी हो हमें रूकना नहीं चाहिए और सबको बेहतर प्रयास करना चाहिए ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करने के लिए। हमें ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम करना चाहिए तथा वातावरण में हो रहे कुछ जलवायु परिवर्तन जो वर्षों से चला आ रहा है उन्हें अपनाने की कोशिश करनी चाहिए।

ग्लोबल वार्मिंग कम करने के उपाय, हमें बिजली के स्थान पर स्वच्छ ऊर्जा जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा तथा भू-तापिय ऊर्जा द्वारा उत्पादित ऊर्जा का उपयोग करना चाहिए। कोयला, तेल के जलने के स्तर को कम करना चाहिए, परिवहन और ईलेक्ट्रिक उपकरणों का उपयोग कम चाहिए इससे ग्लोबल वार्मिंग का स्तर काफी हद तक कम होगा।

Essay on Global Warming in Hindi

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ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध

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By विकास सिंह

essay on global warming in hindi

ग्लोबल वार्मिंग से तात्पर्य है कि ग्रीन हाउस गैसों द्वारा निर्मित ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण पृथ्वी के सतही तापमान में वृद्धि। ग्लोबल वार्मिंग दुनिया भर में एक बड़ा पर्यावरण और सामाजिक मुद्दा है जिसे हर किसी को विशेष रूप से हमारे बच्चों को जानना चाहिए क्योंकि वे इस देश और दुनिया के भविष्य हैं।

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध, short essay on global warming in hindi (100 शब्द)

ग्लोबल वार्मिंग पूरे विश्व में एक प्रमुख वायुमंडलीय मुद्दा है। सूरज की गर्मी और वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि से हमारी पृथ्वी की सतह दिन-प्रतिदिन गर्म होती जा रही है। इसके बुरे प्रभाव दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं और इंसान के जीवन में बड़ी समस्याएँ पैदा कर रहे हैं। यह बड़े सामाजिक मुद्दों के विषयों में से एक बन गया है, जिसे सामाजिक जागरूकता को एक बड़े स्तर पर लाने की आवश्यकता है।

लोगों को इसका अर्थ, कारण, प्रभाव और समाधान तुरंत जानना चाहिए। लोगों को एक साथ आगे आना चाहिए और पृथ्वी पर जीवन को बचाने के लिए इसे हल करने का प्रयास करना चाहिए।

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध, essay on global warming in hindi (150 शब्द)

ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी पर वायुमंडल का एक बड़ा मुद्दा है जो पृथ्वी के सतह के तापमान में निरंतर वृद्धि का कारण बनता है। यह अनुमान लगाया गया है कि अगले 50 या 100 वर्षों में पृथ्वी का तापमान एक महान स्तर तक बढ़ जाएगा जो पृथ्वी पर रहने की बड़ी समस्या पैदा करेगा। पृथ्वी के तापमान को बढ़ाने का अत्यधिक ज्ञात और सबसे बुनियादी कारण वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड में निरंतर वृद्धि है।

कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि पृथ्वी पर मानव द्वारा कोयला और तेल, वनों की कटाई (पौधों की कटाई) जैसे जीवाश्म ईंधन का उपयोग है। पृथ्वी पर पौधों की घटती संख्या कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को बढ़ाती है, क्योंकि पौधे मानव द्वारा जारी कार्बन डाइऑक्साइड (श्वसन के उपोत्पाद के रूप में) और अन्य साधनों के उपयोग के मुख्य स्रोत हैं। पृथ्वी के तापमान के बढ़ते स्तर से बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं जैसे समुद्र का स्तर गर्म और ऊंचा हो जाता है, ग्लेशियर पिघलते हैं, बाढ़ आती है, तेज तूफान आते हैं, भोजन की कमी होती है, बीमारियां होती हैं, मृत्यु होती है, आदि।

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध, 200 शब्द:

global warming in hindi ग्लोबल वार्मिंग

ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के तापमान के स्तर में स्थिर और निरंतर वृद्धि है। दुनिया भर में इंसान की कुछ ध्यान देने योग्य आदतों के कारण पृथ्वी की सतह दिन-ब-दिन गर्म होती जा रही है। ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के वायुमंडल के लिए सबसे अधिक चिंता का विषय बन गया है क्योंकि यह निरंतर और स्थिर गिरावट प्रक्रिया के माध्यम से पृथ्वी पर दिन प्रतिदिन जीवन की संभावनाओं को कम कर रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग के समाधान की योजना बनाने से पहले, हमें यह सुनिश्चित करने के लिए वातावरण पर इसके कारणों और प्रभावों के बारे में सोचना चाहिए ताकि हम इस मुद्दे से पूरी तरह राहत पा सकें। पृथ्वी की सतह का लगातार गर्म होना पर्यावरण में CO2 का बढ़ता उत्सर्जन है। हालांकि, CO2 का बढ़ता स्तर कई कारणों से है जैसे कि वनों की कटाई, कोयले, तेल, गैस का उपयोग, जीवाश्म ईंधन का जलना, परिवहन के लिए गैसोलीन का जलना, बिजली का अनावश्यक उपयोग आदि, जिसके कारण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होती है।

फिर से यह समुद्र के बढ़ते स्तर, बाढ़, तूफान, चक्रवात, ओजोन परत की क्षति, मौसम के बदलते मिजाज, महामारी के रोगों की आशंका, भोजन की कमी, मृत्यु आदि का कारण बन जाता है। हम इसके लिए किसी एक इकाई को दोष नहीं दे सकते। हर इंसान ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे के लिए ज़िम्मेदार है जिसे केवल वैश्विक जागरूकता और सभी के प्रयासों से हल किया जा सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध, 250 शब्द:

ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के तापमान के स्तर में निरंतर वृद्धि की एक स्थिर प्रक्रिया है। ग्लोबल वार्मिंग अब दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक बन गई है। यह माना जाता है कि पृथ्वी पर कार्बन डाइऑक्साइड गैस और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता स्तर पृथ्वी के वातावरण को गर्म करने के मुख्य कारण हैं। यदि इसे दुनिया भर के सभी देशों के प्रयासों द्वारा तुरंत देखा और हल नहीं किया जाता है, तो यह एक दिन पृथ्वी पर अपने प्रभाव और जीवन के अंत का कारण होगा।

इसके खतरनाक प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं और मानव जीवन के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग समुद्र के बढ़ते स्तर का मुख्य और एकमात्र कारण है, बाढ़, मौसम के मिजाज में बदलाव, तूफान, चक्रवात, महामारी की बीमारी, भोजन की कमी, मृत्यु, आदि। ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे को हल करने का एकमात्र समाधान व्यक्तिगत सामाजिक जागरूकता है। लोगों को इसके अर्थ, कारण, बुरे प्रभाव और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में अन्य बातों से अवगत होना चाहिए ताकि इसे दुनिया भर से मिटाया जा सके और हमेशा की तरह पृथ्वी पर जीवन की संभावनाएं बन सकें।

लोगों को अपनी खराब आदतों को रोककर C02 का उत्पादन बंद कर देना चाहिए जैसे कि तेल, कोयला और गैस का उपयोग रोकना, पौधों को काटना रोकना (क्योंकि वे कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने और ऑक्सीजन का उत्पादन करने के लिए मुख्य स्रोत हैं), बिजली का उपयोग कम से कम करें, आदि। पूरी दुनिया में हर किसी के जीवन में छोटे-छोटे बदलाव, हम ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को कम करके और यहां तक ​​कि इसे एक दिन भी रोक सकते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध, 300 शब्द:

ग्लोबल वार्मिंग पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड गैस के बढ़ते स्तर के कारण पृथ्वी की सतह के गर्म होने में निरंतर वृद्धि है। ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ा मुद्दा बन गया है जिसे दुनिया भर के देशों की सकारात्मक दीक्षा द्वारा हल करने की आवश्यकता है। धीरे-धीरे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि से विभिन्न खतरे पैदा होते हैं और साथ ही इस ग्रह पर जीवन का अस्तित्व कठिन हो जाता है। यह पृथ्वी की जलवायु में क्रमिक और स्थायी परिवर्तनों को बढ़ाता है और इस प्रकार प्रकृति के संतुलन को प्रभावित करता है।

पृथ्वी पर CO2 के स्तर में वृद्धि मानव जीवन को निरंतर ऊष्मा तरंगों, तेज तूफानों की अचानक घटना, अप्रत्याशित और अप्रत्याशित चक्रवात, ओजोन परत को नुकसान, बाढ़, भारी बारिश, सूखा, भोजन की कमी, बीमारियों के माध्यम से एक महान स्तर तक प्रभावित करती है। मृत्यु आदि पर यह शोध किया गया है कि वायुमंडल में सीओ 2 का बढ़ता उत्सर्जन गैर-जीवाश्म ईंधन के जलने, उर्वरकों के उपयोग, वनों को काटने, बिजली के अतिरिक्त उपयोग, रेफ्रिजरेटर में उपयोग की जाने वाली गैसों आदि के कारण होता है।

CO2 का बढ़ता स्तर पृथ्वी पर ग्रीनहाउस प्रभाव का कारण बनता है जिसमें सभी ग्रीनहाउस गैसों (जल वाष्प, CO2, मीथेन, ओजोन) थर्मल विकिरण को अवशोषित करते हैं, जो सभी दिशाओं में फिर से विकीर्ण हो जाते हैं और पृथ्वी की सतह पर वापस आ जाते हैं जिससे वृद्धि होती है। पृथ्वी की सतह का तापमान और ग्लोबल वार्मिंग की ओर ले जाता है।

ग्लोबल वार्मिंग के जीवन को प्रभावित करने वाले प्रभावों को रोकने के लिए, हमें सभी बुरी आदतों से एक स्थायी विराम लेना चाहिए, जिससे CO2 के स्तर में वृद्धि हो सकती है और ग्रीन हाउस प्रभाव और फिर पृथ्वी की सतह के वार्मिंग के कारण ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि हो सकती है। हमें वनों की कटाई को रोकना चाहिए, बिजली का उपयोग कम करना चाहिए, लकड़ी जलाना बंद करना चाहिए आदि।

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध, 400 शब्द:

global warming reason

ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ा पर्यावरणीय मुद्दा है जिसे हम आज सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामना कर रहे हैं जिसे हमें इसे स्थायी रूप से हल करने की आवश्यकता है। वास्तव में, ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी की सतह के तापमान में वृद्धि की निरंतर और स्थिर प्रक्रिया है। इसके प्रभावों को रोकने के लिए दुनिया भर के सभी देशों द्वारा व्यापक रूप से चर्चा की जानी चाहिए। इसने दशकों से प्रकृति के संतुलन, जैव विविधता और पृथ्वी की जलवायु परिस्थितियों को प्रभावित किया है।

सीओ 2, मीथेन जैसी ग्रीन हाउस गैसें पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने का मुख्य कारण हैं जो सीधे समुद्र के जल स्तर पर प्रभाव डालती हैं, जिससे बर्फ के टुकड़े, ग्लेशियर, अप्रत्याशित रूप से बदलती जलवायु जो पृथ्वी पर जीवन के खतरों का प्रतिनिधित्व करती है। सांख्यिकीय के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि मानव जीवन स्तर की बढ़ती मांग के कारण वैश्विक स्तर पर वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैस सांद्रता में वृद्धि के कारण 20 वीं शताब्दी के मध्य से पृथ्वी का तापमान एक महान स्तर तक बढ़ गया है।

यह उस वर्ष को मापा गया है जैसे कि 1983, 1987, 1988, 1989 और 1991 को पिछली शताब्दी के सबसे गर्म छह वर्षों के रूप में थी। यह बढ़ती हुई ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी पर आने वाली अप्रत्याशित आपदाओं जैसे बाढ़, चक्रवात, सुनामी, सूखा, भूस्खलन, बर्फ का पिघलना, भोजन की कमी, महामारी से होने वाली बीमारियों, मृत्यु आदि को बुलाती है, जिससे प्रकृति की घटना असंतुलित हो जाती है और इस ग्रह पर जीवन अस्तित्व का संकेत मिलता है। ।

ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने से पृथ्वी से वायुमंडल में अधिक जल वाष्पीकरण होता है, जो बदले में ग्रीनहाउस गैस बन जाता है और फिर से ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि का कारण बनता है। जीवाश्म ईंधन को जलाने, उर्वरकों के उपयोग, सीएफसी, ट्रोपोस्फेरिक ओजोन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी अन्य गैसों में वृद्धि जैसी अन्य प्रक्रियाएं भी ग्लोबल वार्मिंग का कारण हैं। इस तरह के कारणों के अंतिम कारण तकनीकी उन्नति, जनसंख्या विस्फोट, औद्योगिक विस्तार की बढ़ती मांग, वनों की कटाई, शहरीकरण की ओर प्राथमिकता आदि हैं।

हम वनों की कटाई और वैश्विक कार्बन चक्र जैसी तकनीकी उन्नति के उपयोग और ओजोन परत में छेद बनाने आदि के माध्यम से प्राकृतिक प्रक्रियाओं को विचलित कर रहे हैं और इस तरह से पृथ्वी पर यूवी किरणों को पृथ्वी पर आने की अनुमति दे रहे हैं। पौधे हवा से अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने और संतुलन बनाने का अंतिम स्रोत हैं और इस प्रकार केवल वनों की कटाई को रोककर और अधिक वृक्षारोपण के लिए लोगों को बढ़ाकर हम ग्लोबल वार्मिंग को एक बड़े स्तर पर कम करने की सफलता प्राप्त कर सकते हैं। जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना भी दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग को कम करने की दिशा में एक बड़ा हाथ है क्योंकि यह पृथ्वी पर विनाशकारी प्रौद्योगिकियों के उपयोग को कम करता है।

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध, long essay on global warming in hindi (800 शब्द)

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ग्लोबल वार्मिंग के कारण वातावरण में बहुत सारे जलवायु परिवर्तन होते हैं जैसे कि गर्मी का मौसम बढ़ना, सर्दी का मौसम कम होना, तापमान का बढ़ना, वायु परिसंचरण पैटर्न में बदलाव, जेट स्ट्रीम, बिना मौसम के बारिश, बर्फ के टुकड़ों का पिघलना, ओजोन परत में गिरावट, भारी तूफान की घटना, चक्रवात , बाढ़, सूखा, और इतने सारे प्रभाव।

ग्लोबल वार्मिंग के समाधान:

ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए कई जागरूकता कार्यक्रम और कार्यक्रम सरकारी एजेंसियों, व्यापारिक नेताओं, निजी क्षेत्रों, गैर सरकारी संगठनों, आदि द्वारा चलाए गए और कार्यान्वित किए गए हैं, ग्लोबल वार्मिंग के माध्यम से कुछ नुकसान समाधान द्वारा वापस नहीं किए जा सकते हैं (जैसे कि बर्फ के टुकड़े पिघलना)। हालाँकि, हमें पीछे नहीं हटना चाहिए और ग्लोबल वार्मिंग के मानवीय कारणों को कम करके ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को कम करने के लिए सभी का सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए।

हमें वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने और कुछ जलवायु परिवर्तन अपनाने की कोशिश करनी चाहिए जो पहले से ही वर्षों से हो रहे हैं। विद्युत ऊर्जा का उपयोग करने के बजाय हमें सौर ऊर्जा, पवन और भूतापीय द्वारा निर्मित स्वच्छ ऊर्जा या ऊर्जा का उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। कोयले और तेल के जलने के स्तर को कम करना, परिवहन साधनों का उपयोग, बिजली के उपकरणों का उपयोग आदि ग्लोबल वार्मिंग को काफी हद तक कम कर सकते हैं।

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जलवायु परिवर्तन पर निबंध (Essay on Climate Change in Hindi)

जलवायु परिवर्तन पर निबंध: धरती पर जीवन के अनुकूल जलवायु के कारण ही यहां जीवन संभव है, लेकिन हाल के वर्षों में इसमें लगातार हो रहे परिवर्तन ने वैश्विक स्तर पर चिंता बढ़ाई है। जीवाश्म ईंधन जैसे, कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस आदि को जलाने के कारण पृथ्वी के वातावरण में तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। औसत मौसम में लगातार हो रहे परिवर्तन को जलवायु परिवर्तन या क्लाइमेट चेंज (Climate change) कहा जाता है। दशकों, सदियों या उससे अधिक समय में जलवायु में बड़े स्तर पर हो रहे परिवर्तन से जीवन पर प्रभाव पड़ता है। इन दिनों उद्योग और शहरीकरण से इस परिवर्तन में तेजी देखी गई है।

जलवायु परिवर्तन पर लेख (Essay on climate change in hindi) - जलवायु क्या है?

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जलवायु परिवर्तन पर निबंध (Essay on Climate Change in Hindi)

सामान्यतः जलवायु का मतलब किसी क्षेत्र में लंबे समय तक औसत मौसम से होता है। अतः जब किसी क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) कहते हैं। जलवायु एक ऐसा पहलू है जो दुनिया के हर इंसान के जीवन से जुड़ा हुआ है। जलवायु की दशा हमारे जीवन को बहुत प्रभावित करती है। मानवीय तथा कुछ प्राकृतिक गतिविधियों के कारण जलवायु की दशा बदल रही है। हाल के वर्षों और दशकों में गर्मी के कई रिकॉर्ड टूट गए हैं: यूएन जलवायु रिपोर्ट 2019 इस बात की पुष्टि करती है कि 2010-2019 सबसे गर्म दशक था। वर्ष 2019 में वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) तथा अन्य ग्रीनहाउस गैसें नए रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई थी।

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इन सब वजहों से जलवायु में परिवर्तन आ रहा है, जिसे जलवायु परिवर्तन की संज्ञा दी जा रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि जलवायु में हो रहे नकारात्मक परिवर्तन (Negative changes in climate) पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के लिए बहुत ही खतरनाक सिद्ध होंगे। हालांकि जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों के प्रति सरकारें जागरूक हो रही हैं और लोगों को भी जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों के प्रति आगाह करने की जरूरत है। हमारे देश भारत के लिए राहत की बात है कि वर्ष 2024 में जलवायु प्रदर्शन सूचकांक में सातवें स्थान पर रहा जो बीते वर्ष 2023 में 8वें नंबर पर था। हालांकि इसमें अभी काफी सुधार की जरूरत है।

जलवायु परिवर्तन पर निबंध (jalvayu parivartan par nibandh) से इस विषय के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी मिलेगी। जलवायु परिवर्तन वैश्विक स्तर पर एक बेहद गंभीर मुद्दा है जिससे अवगत करवाने के लिए विद्यालयों में छात्रों को भी जलवायु परिवर्तन पर निबंध (Essay on Climate Change in hindi) लिखने का कार्य दे दिया जाता है या फिर कभी-कभी परीक्षा में अच्छे अंकों के लिए जलवायु परिवर्तन पर निबंध (climate change par nibandh) लिखने से संबंधित प्रश्न पूछ लिए जाते हैं।

हिंदी में निबंध- भाषा कौशल, लिखने का तरीका जानें

जलवायु परिवर्तन पर लेख (jalvayu parivartan par lekh) के प्रारंभ में जलवायु क्या है, पहले इस बात को समझने की जरूरत है। एक बड़े भू-क्षेत्र में लंबे समय तक रहने वाले मौसम की औसत स्थिति को जलवायु की संज्ञा दी जाती है। किसी भू-भाग की जलवायु पर उसकी भौगोलिक स्थिति का सर्वाधिक असर पड़ता है। यूरोपीय देशों में जहां गर्मी की ऋतु छोटी होती है और कड़ाके की ठंड पड़ती है, जबकि भारत में अधिक गर्मी वाले मौसम की प्रधानता रहती है। सर्दियों के 2-3 महीनों को छोड़ दिया जाए, तो शेष समय जलवायु गर्म ही रहता है। भारत के समुद्र तटीय क्षेत्रों में, तो सर्दियों की ऋतु का तापमान औसत स्तर का रहता है। इस तरह किसी क्षेत्र की जलवायु उसकी स्थिति पर निर्भर करती है।

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किसी क्षेत्र विशेष की परंपरागत जलवायु में समय के साथ होने वाले बदलाव को जलवायु परिवर्तन कहा जाता है। जलवायु में आने वाले परिवर्तन के प्रभाव को एक सीमित क्षेत्र में अनुभव किया जा सकता है तथा पूरी दुनिया में भी इसके प्रभाव दिखने लगे हैं। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन की स्थिति गंभीर दशा में पहुँच रही है और पूरे विश्व पर इसका असर देखने को मिल रहा है। संयुक्त राष्ट्र की जलवायु रिपोर्ट (climate report) में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन का पर्यावरण के सभी पहलुओं के साथ-साथ वैश्विक आबादी के स्वास्थ्य और कल्याण पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की अगुवाई में तैयार रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के भौतिक संकेतों - जैसे भूमि और समुद्र के तापमान में वृद्धि, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और बर्फ के पिघलने के अलावा सामाजिक-आर्थिक विकास, मानव स्वास्थ्य, प्रवास और विस्थापन, खाद्य सुरक्षा और भूमि तथा समुद्र के पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव का दस्तावेजीकरण किया गया है। जलवायु परिवर्तन को विस्तार से समझने के लिए क्लाइमेटचेंज नॉलेज पोर्टल https://climateknowledgeportal.worldbank.org/overview पर विजिट कर इसे विस्तार से समझ सकते हैं। यह पोर्टल दुनिया भर में सदियों से हो रहे जलवायु परिवर्न को विस्तार से बताता है। जलवायु परिवर्तन में सकारात्मक सुधार के लिए विश्व पर्यावरण दिवस पर संस्थानों, सरकारों को जागरूक करते हुए इस दिशा में व्यापक पैमाने पर काम करने को प्रोत्साहिक किया जाता है।

बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण भी पृथ्वी के तापमान में लगातर बढ़ोतरी हो रही है। पर्यावरण प्रदूषण के कारण बढ़ते तापमान ने जलवायु परिवर्तन की स्थिति को और गंभीर बनाने का कार्य किया है। जलवायु रिपोर्ट के अनुसार 1980 के दशक के बाद आगामी प्रत्येक दशक, 1850 से किसी भी दशक की तुलना में अधिक गर्म रहा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के महासचिव पेटेरी टालस के इस कथन से भी यह बात समझी जा सकती है - अब तक का सबसे गर्म साल 2016 था, लेकिन जल्द ही इससे अधिक गर्म वर्ष देखने को मिल सकते हैं। यह देखते हुए कि ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि जारी है, तापमान में वृद्धि (global warming) जारी रहेगी। आगामी दशकों के लिए लगाए जाने एक हालिया पूर्वानुमान से संकेत मिलता है कि आने वाले पांच वर्षों में एक नया वार्षिक वैश्विक तापमान रिकॉर्ड मिलने की आशंका है।

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जिसके कारण के कारणों को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है- प्राकृतिक और मानवीय। जलवायु परिवर्तन के प्राकृतिक कारणों में ज्वालामुखी, महासागरीय धाराओं, महाद्वीपों के अलगाव आदि प्रमुख हैं।

ज्वालामुखी- ज्वालामुखी की सक्रियता बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड, जलवाष्प, धूल कण तथा राख को वायुमण्डल में फैलाने के लिए जिम्मेदार है। हालांकि, ज्वालामुखी की सक्रियता कुछ दिनों की ही हो सकती हैं, लेकिन भारी मात्रा में निकलने वाली गैसें तथा राख लंबे समय तक जलवायु के पैटर्न को प्रभावित करती है।

महासागरीय धाराएं- महासागरों की जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका है। वायुमंडल या भू-सतह की तुलना में दुगुना तापमान इनके द्वारा अवशोषित किया जाता है। महासागरीय प्रवाह चारों ओर तापमान के स्थानांतरण के लिए जिम्मेदार है। इनकी वजह से हवाओं की दिशा परिवर्तित कर तापमान को प्रभावित किया जाता है। तापमान को अवशोषित करने वाली ग्रीनहाउस गैस का एक अहम हिस्सा समुद्रों जलवाष्प होती है जो कि वायुमंडल में तापमान को अवशोषित करने का काम करती है।

मिथेन गैस का भंडार- आर्कटिक महासागर की बर्फ के नीचे अतल गहराइयों में मेथेन हाइड्रेट के रूप में ग्रीनहाउस गैस मेथेन का विशाल भंडार है जो विशिष्ट ताप और दाब में हाइड्राइट रूप में रहता है। ताप और दाब में परिवर्तन होने पर यह मिथेन मुक्त होती है और वायुमंडल में घुल जाती है। अपने गैसीय रूप में, मिथेन सबसे शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों में से एक है, जो कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में पृथ्वी को बहुत अधिक गर्म करती है।

ग्रीनहाउस प्रभाव गैसें- वायुमंडल में विद्यमान कार्बन डाईऑक्साइड, मेथेन, जलवाष्प आदि के द्वारा सूर्य के प्रकाश की ऊष्मा के एक भाग को अवशोषित कर लिया जाता है, इस घटना को ग्रीनहाउस प्रभाव कहा जाता है।

जीवाश्म ईंधन का प्रयोग- जीवाश्म ईँधन के प्रयोग के कारण ग्रीनहाउस गैसों खासकर कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर वायुमंडल में बढ़ता जा रहा है। लगभग 33% कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के लिए जीवाश्म ईँधनों के प्रयोग को माना जाता है।

जलवायु परिवर्तन के कारण पूरी दुनिया पर आपदाओं के बादल मंडरा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कुछ परिणाम निम्नलिखित हैं-

जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में बहुत ही जल्दी-जल्दी और घातक बदलाव होने लगे हैं।

साल 2019 दूसरा सबसे गर्म साल रिकॉर्ड किया गया।

अब तक का सबसे गर्म दशक 2010- 2019 रिकॉर्ड किया गया।

वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का स्तर 2019 में नए रिकॉर्ड तक पहुंच गया।

बाढ़, सूखा, झुलसा देने वाली लू, जंगल की आग और क्षेत्रीय चक्रवातों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में जमी बर्फ के पिघलने की दर बढ़ती जा रही है जिससे समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है।

मालदीव की समुद्र तल से ऊंचाई कम होने के कारण यह द्वीपीय राष्ट्र विशेष खतरे में है। इस देश का उच्चतम स्थान समुद्र तल से लगभग 7.5 फीट ऊँचा है जिससे मालदीव के समुद्र में डूबने का खतरे बढ़ता जा रहा है।

दक्षिण अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, एशिया और ओशिनिया सहित अधिकांश भू-क्षेत्र हालिया औसत से अधिक गर्म रहे। अमेरिकी राज्य अलास्का भी तुलानात्मक रूप से गर्म था वहीं इसके विपरीत उत्तरी अमेरिका का एक बड़ा क्षेत्र हाल के औसत से अधिक ठंडा रहा।

वर्ष 2019 जुलाई के अंत में आए लू के थपेड़ों से मध्य और पश्चिमी यूरोप का अधिकांश भाग प्रभावित हुआ। इस दौरान नीदरलैंड में 2964 मौतें लू से जुड़ी पाई गईं जो कि गर्मी के सप्ताह में औसतन होने वाली मौतों की तुलना में लगभग 400 अधिक थीं।

लंबे समय तक तापमान अधिक रहने के कारण मौसम के स्वभाव में बदलाव आ रहा है जिसके चलते प्रकृति में मौजूद सामान्य संतुलन की स्थिति बिगड़ती जा रही है। इससे मनुष्यों के साथ ही पृथ्वी पर जीवन के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है।

जलवायु परिवर्तन तथा ग्लोबल वार्मिंग के चलते उपजे खतरों को देखते हुए ग्लोबल वार्मिंग कारण और निवारण पर साल 2015 में ऐतिहासिक पेरिस समझौते को अपनाया गया जिसका लक्ष्य इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक काल के तापमान से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक होने के स्तर से नीचे रखना है। समझौते का उद्देश्य उपयुक्त वित्तीय प्रवाह, नए प्रौद्योगिकी ढांचे और उन्नत क्षमता निर्माण ढांचे के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए देशों की क्षमता में वृद्धि करना भी है। जलवायु परिवर्तन के खतरे के लिए दुनिया भर में उठाए जा रहे कदमों को मजबूत करने और तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से घटाकर 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों की रूपरेखा के साथ 4 नवंबर, 2016 को जलवाय परिवर्तन पर पेरिस समझौते को क्रियान्वित किया गया।

जीवन और आजीविका बचाने के लिए महामारी और जलवायु आपातकाल दोनों को संबोधित करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। हमारे ग्रह पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। सरकारों को इसमें नागरिकों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त व मजबूत कदम उठाने होंगे। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए सरकारों को सतत विकास के उपायों में निवेश करने, ग्रीन जॉब, हरित अर्थव्यवस्था के निर्माण की ओर आगे बढ़ने की जरूरत है। पृथ्वी पर जीवन को बचाए रखने, पृथ्वी को स्वस्थ रखने और ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से निपटने के लिए विश्व के सभी देशों को एकजुट होकर व पूरी ईमानदारी के साथ काम करना होगा। यह बात ज्ञात हो कि कोई देश अकेले ही ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से निपटने में सक्षम नहीं है। इस खतरे को सभी मिलकर ही दूर कर सकते हैं।

Frequently Asked Question (FAQs)

एक बड़े भू-क्षेत्र में लंबे समय तक रहने वाले मौसम की औसत स्थिति को जलवायु की संज्ञा दी जाती है। किसी भू-भाग की जलवायु पर उसकी भौगोलिक स्थिति का सर्वाधिक असर पड़ता है। 

किसी क्षेत्र विशेष की परंपरागत जलवायु में समय के साथ होने वाले बदलाव को जलवायु परिवर्तन कहा जाता है। जलवायु में आने वाले परिवर्तन के प्रभाव को एक सीमित क्षेत्र में अनुभव किया जा सकता है और पूरी दुनिया में भी। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन की स्थिति गंभीर दिशा में पहुँच रही है और पूरे विश्व में इसका असर देखने को मिल रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। लंबे समय तक तापमान अधिक रहने के कारण मौसम के स्वभाव में बदलाव आ रहा है जिसके चलते प्रकृति में मौजूद सामान्य संतुलन की स्थिति बिगड़ रही है। इससे मनुष्यों के साथ ही पृथ्वी पर जीवन के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन के अन्य परिणामों के बारे में जानकारी लेख में दी गई है।

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global warming essay hindi

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध- Essay on Global Warming in Hindi

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ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध- Essay on Global Warming in Hindi

Global Warming Essay in Hindi in 100 words

ग्लोबल वार्मिंग पर्यायवरण से जुड़ा सबसे बड़ा मुद्दा है। धरती पर कार्बन डाई ऑक्साईड की मात्रा बढ़ने के कारण वातावरण का तापमान दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है जो कि सभी जीवों के लिए बहुत ही हानिकारक है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण वर्षा में कमी आई है जिससे वनस्पति पर बहुत प्रभाव पड़ता है और सभी को अनुकूल वातावरण नहीं मिल पाता है। ग्लोबल वार्मिंग से छुटकारा पाने के लिए हम सबको ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए ताकि वो कार्बन डाई ऑक्साईड को ग्रहण करले और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या खत्म हो सके। हमें वाहनों का भी कम ही प्रयोग करना चाहिए।

Global Warming Essay in Hindi 200 words

Global warming का अर्थ यह होता है कि, लगातार तापमान बढ़ना । जब भी इंसानी प्रजा धरती पर कुछ ऐसा परिवर्तन करती है या फिर कोई ऐसा बदलाव करती है, जिसको ग्लोबल वॉर्मिंग कहा जाता है । धरती पर इन सभी बदलाओ की वजह से , सूरज की रोशनी को लगातार ग्रहण करती हमारी पृथ्वी दिनों-दिन गर्म हो रही है । इसका जो बुरा प्रभाव पड़ रहा है वह यह है कि, धरती पर कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर गति से बढ़ रहा है । यदि ऐसा ही रहा तो वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती पर इंसानओ का विनाश बहुत ही जल्द हो जाएगा ।

Global warming को कैसे रोके ?

वैज्ञानिकों के मुताबिक यदि ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकना है तो मुख्य रूप से सी.एफ.सी जैसे घातक गैसों का उत्सर्जन रोकना होगा । और इसके अलावा हमें फ्रीज , वोशिंग मशीन , एयर कंडीशनर का उपयोग बहुत ही ज्यादा कम करना पड़ेगा ‌। यदि हम भी साथ देंगे तो इस काम को करने में आसानी रहेगी ।

पूरी दुनिया में बहुत सी ऐसी कंपनियां है, जो धुआ बाहर निकालती हैं यह धुआ बहुत ही ज्यादा हानिकारक होता है । क्योंकि इसके अंदर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बहुत ही ज्यादा होती है । इसलिए ऐसी कंपनियों को हमें बंद करवा देनी चाहिए । यदि हम एक दूसरे का साथ देंगे, और हमारे वैज्ञानिक और environment लोगों का साथ देंगे, तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि एक दिन हमारी पृथ्वी Global warming मुक्त हो जाएगी ।

Essay on Global Warming in Hindi in 300 words

ग्लोबल वार्मिंग का साधारण अर्थ ( What is Global Warming in Hindi ) , पृथ्वी के लगातार बढ़ते हुए तापमान से है, जिसके अंतर्गत मौसम एवं जलवायु में एकाएक परिवर्तन हो रहे है । ग्लोबल वार्मिंग 21वीं सदी का सबसे चिंताजनक विषय है, क्योकि धरती पर गर्मी बढने के कारण ग्लेशियर पिघल रहे है, समुंद्र का स्तर बढ़ रहा है, जिससे जीवो के जीवन पर सकंट आन खड़ा है ।

एक शोध के अनुसार ये दावा किया गया है, कि यदि ग्लोबल वार्मिंग इसी प्रकार बढती रही तो धरती को नष्ट होने से कोई नहीं बचा सकता ।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण ( causes of global warming in Hindi ):

• ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे अधिक उतरदायी ग्रीन हाउस गैसेस में लगातार होती बढ़ोतरी है| ग्रीन हाउस गैसेस में कार्बनडाईआक्साइड, मिथेन, आदि गैसेस शामिल है, जो सूर्य से आने वाली’ ऊष्मा को अवशोषित करती है । • अन्यं कारण मानव द्वारा प्रयोक किये जाने वाले स्त्रोत जैसे एसी, फ्रिज, एवं कारखानों से निकलने वाली गर्मी के कारण गर्मी का स्तर बढने लगा है ।

ग्लोबल वार्मिंग के दुष्परिणाम:

ग्लोबल वार्मिंग के घातक परिणामों की सूची काफी विस्तृत है, परन्तु हम यहाँ केवल कुछ महत्वपूर्ण प्रभावों के बारे में चर्चा करेंगे:- • ग्लोबल वार्मिंग की बढ़ोतरी के कारण पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, जिससे प्राक्रतिक व्यवस्था का संतुलन भी बिगड़ता जा रहा है । • ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम में हानिकारक परिवर्तन हो रहे है, बर्फ दिनोदिन पिघल रही है, एवं समुंद्र के जल का स्तर बढ़ रहा है, जिससे बाड़ के हालत बन ने की आशा की जा रही है । • ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न तबाही को एक विश्व युद्ध से भी ज्यादा संकटपूर्ण माना जा रहा है ।

विश्व के सभी वैज्ञानिक चिंताजनक है, एवं विभिन्न प्रयासों में रत है, कि किस प्रकार दुनिया को तबाही से बचाया जाये| इसके लिए हम सभी को जागरूक होकर पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना होगा, एवं इसे तत्वों एवं संसाधनों को त्यागना होगा जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देते है ।

Global Warming Essay in Hindi Language ( 400 words )

ग्लोबल वार्मिंग आज के समय की सबसे बड़ी समस्या है। पृथ्वी के तापमान में निरंतर हो रही वृद्धि को ही ग्लोबल वार्मिंग कहा गया है। हमारा वातावरण दिन प्रतिदिन गर्म होता जा रहा है जिसका मुख्य कारण वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साईड की मात्रा में वृद्धि होना है। ग्लोबल वार्मिंग के हमारे जीवन पर बहुत ही नकारात्म प्रभाव पड़ते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण – ग्लोबल वार्मिंग के बहुत से कारण हैं जिनमें से कुछ प्राकृतिक हैं तो कुछ मानव निर्मित हैं।

1. गरीन हाउस गैस जैसे कार्बन डाई ऑक्साईड, सल्फर डाई ऑक्साईड आदि की वातावरण में वृद्दि के कारण ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हुई है। 2. कारखानों से निकलने वाली विषयुक्त गैसों के कारण वातावरण का तापमान बढ़ रहा है। 3. निरंतर पेड़ो की कटाई के कारण वातावरण में मौजुद कार्बन डाई ऑक्साईड की खपत नहीं हो रही है जिससे कार्बन डाई ऑक्साईड की मात्रा वातावरण में बढ़ती जा रही है। 4. कोयले के प्रयोग से भी जहरीली गैसे निकलती है जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण है।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव- ग्लोबल वार्मिंग के बहुत ही नकारात्मक प्रभाव है। इससे जलवायु परिवर्तन हो रही है जिसके कारण वर्षा अकाल हो रही है और हमारी फसलों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। हमें शुद्ध ऑक्सीजन भी नहीं मिल रही है। ग्लेशियरस पिघल रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ओजोन परत में भी छेद हो गया है जिसके कारण सूर्य की हानिकारक किरणें पृथ्वी पर पहुँच रही है जिससे त्वचा कैंसर की समस्या बढ़ रही है।

ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के समाधान- ग्लोबल वार्मिंग वैश्विक स्तर की समस्या है जिसे कम करने के लिए विश्व के सभी लोगों को निम्लिखित समाधान करने होंगे-

1. ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने होंगे ताकि कार्बन डाई ऑक्साईड को उनके द्वारा ग्रहण कर लिया जाए। 2. कोयले के प्रयोग को कम करना होगा। 3. हमें ऊर्जा के ऐसे स्त्रोतों का प्रयोग करना होगा जो हानिकारक न हो जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि। 4. परिवहन के साधनों को भी कम करके ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ने से रोका जा सकता है। हमें नीजी वाहनों का प्रयोग करने की बजाय सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करना चाहिए। 5. अलग अलग तरह के कैंप लगाकर लोगों को ग्लोबल वार्मिंग से होने वाली हानि के विषय में बताना चाहिए और उन्हें इसे रोकने को प्रति जागरूक करना चाहिए। 6. हमें वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों का कम उत्सर्जन करना चाहिए और जलवायु परिवर्तन को अपनाना चाहिए।

जलवायु परिवर्तन पर निबंध- Climate Change Essay in Hindi

# Global Warming Essay in Hindi   # Global Warming in Hindi Essay # वैश्विक तापमान पर निबंध

# Essay on Global Warming in Hindi 250 words

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1 thought on “ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध- Essay on Global Warming in Hindi”

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Wowww yaar Bohat Badiya Article. Bohat ache se btaya ap ne global warming ke bare mein. Thank you so much

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जलवायु परिवर्तन: चुनौतियाँ और समाधान

  • 31 Mar 2020
  • 21 min read
  • सामान्य अध्ययन-III
  • जलवायु परिवर्तन
  • पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में जलवायु परिवर्तन व उससे उपजी चुनौतियाँ और समाधान से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

वर्ष 2100 तक भारत समेत अमेरिका, कनाडा, जापान, न्यूजीलैंड, रूस और ब्रिटेन जैसे सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएँ जलवायु परिवर्तन के असर से अछूती नहीं रहेंगी। कुछ समय पूर्व कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की एक शोध टीम ने 174 देशों के वर्ष 1960 के बाद जलवायु संबंधी आँकड़ों का अध्ययन किया है। अध्ययन के अनुसार, पृथ्वी पर 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान की स्थिति में विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के साथ-साथ मानव के अस्तित्व पर भी खतरा उत्पन्न हो जाएगा। इसके अतिरिक्त पिछली सदी से अब तक समुद्र के जल स्तर में भी लगभग 8 इंच की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वहीँ संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UN Office for Disaster Risk Reduction-UNDRR) के अनुसार, भारत को जलवायु परिवर्तन के कारण हुई प्राकृतिक आपदाओं से वर्ष 1998-2017 के बीच की समयावधि के दौरान लगभग 8,000 करोड़ डॉलर की आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा है। यदि पूरी दुनिया की बात की जाए तो इसी समयावधि में तकरीबन 3 लाख करोड़ डॉलर की क्षति हुई है। हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क के तत्वावधान में आयोजित COP-25 सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिये विभिन्न दिशा-निर्देश ज़ारी किये गए।         

इस आलेख में जलवायु परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन के कारण, उससे उत्पन्न चुनौतियों पर विश्लेषण किया जाएगा। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के उपायों पर भी विचार-विमर्श किया जाएगा।

क्या है जलवायु परिवर्तन?

  • जलवायु परिवर्तन को समझने से पूर्व यह समझ लेना आवश्यक है कि जलवायु क्या होता है? सामान्यतः जलवायु का आशय किसी दिये गए क्षेत्र में लंबे समय तक औसत मौसम से होता है।
  • अतः जब किसी क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) कहते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन को किसी एक स्थान विशेष में भी महसूस किया जा सकता है एवं संपूर्ण विश्व में भी। यदि वर्तमान संदर्भ में बात करें तो यह इसका प्रभाव लगभग संपूर्ण विश्व में देखने को मिल रहा है।
  • पृथ्वी का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक बताते हैं कि पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। पृथ्वी का तापमान बीते 100 वर्षों में 1 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ गया है। पृथ्वी के तापमान में यह परिवर्तन संख्या की दृष्टि से काफी कम हो सकता है, परंतु इस प्रकार के किसी भी परिवर्तन का मानव जाति पर बड़ा असर हो सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन के कुछ प्रभावों को वर्तमान में भी महसूस किया जा सकता है। पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होने से हिमनद पिघल रहे हैं और महासागरों का जल स्तर बढ़ता जा रहा, परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं और कुछ द्वीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ गया है।

जलवायु परिवर्तन के कारण

जलवायु परिवर्तन के कारणों का बेहतर विश्लेषण करने के लिये इसे दो भागों में विभाजित कर सकते हैं।

प्राकृतिक गतिविधियाँ 

मानवीय गतिविधियाँ.

  • महाद्वीपीय संवहन- सृष्टि के प्रारम्भ में सभी महाद्वीप एक ही बड़े धरातल के रूप में पृथ्वी पर विद्यमान थे, किंतु सागरों के कारण धीरे-धीरे वे एक दूसरे से दूर होते गए और आज उनके अलग-अलग खंड बन गए हैं। महाद्वीपीय संवहन अर्थात महाद्वीपों का खिसकना अब भी जारी है जिसकी वजह से समुद्री धाराएँ तथा हवाएँ प्रभावित होती हैं और इनका सीधा प्रभाव पृथ्वी की जलवायु पर पड़ता है। हिमालय पर्वत की श्रृंखला प्रतिवर्ष एक मिलीमीटर की दर से ऊँची हो रही है, जिसका मुख्य कारण भारतीय उपखंड का धीरे-धीरे एशियाई महाद्वीप की ओर खिसकना माना जाता है।  
  • ज्वालामुखी विस्फोट- ज्वालामुखी विस्फोट होने पर बड़ी मात्रा में विभिन्न गैसें जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, जलवाष्प आदि तथा धूलकण वायुमंडल में उत्सर्जित होते हैं, जो कि वायुमंडल की ऊपरी परत, समतापमंडल में जाकर फैल जाते हैं तथा पृथ्वी पर आने वाले सूर्य प्रकाश की मात्रा घटा देते हैं। जिससे पृथ्वी का तापमान कम हो जाता है। एक अनुमान के अनुसार, प्रतिवर्ष लगभग 100 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड गैस ज्वालामुखी विस्फोट द्वारा वायुमंडल में फैल जाती है। वर्ष 1816 में इंग्लैंड, अमेरिका तथा पश्चिमी यूरोपीय देशों में ग्रीष्म ऋतु में जो अचानक ठंड आई थी, जिसे ‘‘Killing Summer Frost’’ कहा गया, उसका कारण वर्ष 1815 में इंडोनेशिया में हुए अनेक ज्वालामुखी विस्फोटों को माना जाता है।  
  • पृथ्वी का झुकाव- पृथ्वी के झुकाव के कारण ऋतुओं में परिवर्तन होता है। अधिक झुकाव अर्थात अधिक गर्मी तथा अधिक सर्दी और कम झुकाव अर्थात कम गर्मी तथा कम सर्दी का मौसम। इस प्रकार पृथ्वी के झुकाव के कारण जलवायु प्रभावित होती है।
  • समुद्री धाराएँ- जलवायु को संतुलित रखने में सागरों का बड़ा योगदान रहता है। पृथ्वी के 71% भाग में समुद्र व्याप्त है, जो कि वातावरण तथा ज़मीन की तुलना में दोगुना सूर्य का प्रकाश का अवशोषण करते हैं। सागरों को कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे बड़ा सिंक कहा जाता है। वायुमंडल की अपेक्षा 50 गुना अधिक कार्बन डाइऑक्साइड गैस समुद्र में होती है। समुद्री बहाव में बदलाव आने से जलवायु प्रभावित होती है।
  • शहरीकरण- उन्नीसवीं सदी में हुई औद्योगिक क्रांति की ओर सभी का ध्यान आकर्षित हुआ। रोज़गार पाने के लिये गाँवों में स्थित आबादी शहरों की तरफ प्रस्थान करने लगी और शहरों का आकार दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगा। मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई जैसे महानगरों में उनकी क्षमता से कई गुना अधिक आबादी निवास कर रही है, जिससे शहरों के संसाधनों का असीमित दोहन हो रहा है। जैसे-जैसे शहर बढ़ रहे हैं, वहाँ पर उपलब्ध भू-भाग दिन-प्रतिदिन ऊँची-ऊँची इमारतों से ढँकता जा रहा है, जिससे उस स्थान की जल संवर्धन क्षमता कम हो रही है तथा बारिश के पानी से प्राप्त होने वाली शीतलता में भी कमी हो रही है, जिससे वहाँ के पर्यावरण तथा जलवायु पर निरंतर प्रभाव पड़ रहा है।

औद्योगिकीकरण- जलवायु परिवर्तन में औद्योगिकीकरण की बड़ी भूमिका है। विभिन्न प्रकार की मिलें वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड तथा अनेक प्रकार की अन्य ज़हरीली गैसें और धूलकण हवा में छोड़ती हैं, जो वायुमंडल में काफी वर्षों तक विद्यमान रहती है। यह ग्रीन हाउस प्रभाव, ओज़ोन परत का क्षरण तथा भूमंडलीय तापमान में वृद्धि जैसी समस्याओं का कारण बनते हैं। वायु, जल एवं भूमि प्रदूषण भी औद्योगिकीकरण की ही देन हैं।

  • वनोन्मूलन- निरंतर बढ़ती हुई आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये वृक्ष काटे जा रहे हैं। आवास, खेती, लकड़ी और अन्य वन संसाधनों की चाह में वनों की अंधाधुंध कटाई हो रही है, जिससे पृथ्वी का हरित क्षेत्र तेजी से घट रहा है और साथ ही जलवायु के परिवर्तन में तेजी आ रही है। 
  • रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों का प्रयोग- पिछले कुछ दशकों में रासायनिक उर्वरकों की माँग इतनी तेजी से बढ़ी है कि आज विश्व भर में 1000 से भी अधिक प्रकार की कीटनाशी उपलब्ध हैं। जैसे-जैसे इनका उपयोग बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे वायु, जल तथा भूमि में इनकी मात्रा भी बढ़ती जा रही है, जो कि पर्यावरण को निरंतर प्रदूषित कर घातक स्थिति में पहुँचा रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन से प्रभाव 

  • वर्षा पर प्रभाव- जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप दुनिया के मानसूनी क्षेत्रों में वर्षा में वृद्धि होगी जिससे बाढ़, भूस्खलन तथा भूमि अपरदन जैसी समस्याएँ पैदा होंगी। जल की गुणवत्ता में गिरावट आएगी तथा पीने योग्य जल की आपूर्ति पर गंभीर प्रभाव पड़ेंगे। जहाँ तक भारत का प्रश्न है, मध्य तथा उत्तरी भारत में कम वर्षा होगी जबकि इसके विपरीत देश के पूर्वोत्तर तथा दक्षिण-पश्चिमी राज्यों में अधिक वर्षा होगी। परिणामस्वरूप वर्षा जल की कमी से मध्य तथा उत्तरी भारत में सूखे जैसी स्थिति होगी जबकि पूर्वोत्तर तथा दक्षिण पश्चिमी राज्यों में अधिक वर्षा के कारण बाढ़ जैसी समस्या होगी।
  • समुद्री जल स्तर पर प्रभाव- जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप ग्लेशियरों के पिघलने के कारण विश्व का औसत समुद्री जल स्तर इक्कीसवीं शताब्दी के अंत तक 9 से 88 सेमी. तक बढ़ने की संभावना  है, जिससे दुनिया की आधी से अधिक आबादी जो समुद्र से 60 कि.मी. की दूरी पर रहती है, पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप भारत के उड़ीसा, आँध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात और पश्चिम बंगाल राज्यों के तटीय क्षेत्र जलमग्नता के शिकार होंगे। परिणामस्वरूप आसपास के गाँवों व शहरों में 10 करोड़ से भी अधिक लोग विस्थापित होंगे जबकि समुद्र में जल स्तर की वृद्धि के परिणामस्वरूप भारत के लक्षद्वीप तथा अंडमान निकोबार द्वीपों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। समुद्र का जल स्तर बढ़ने से मीठे जल के स्रोत दूषित होंगे परिणामस्वरूप पीने के पानी की समस्या होगी।
  • कृषि पर प्रभाव- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कृषि पैदावार पर पड़ेगा। संयुक्त राज्य अमरीका में फसलों की उत्पादकता में कमी आएगी जबकि दूसरी तरफ उत्तरी तथा पूर्वी अफ्रीका, मध्य पूर्व देशों, भारत, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया तथा मैक्सिको में गर्मी तथा नमी के कारण फसलों की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होगी। वर्षा जल की उपलब्धता के आधार पर धान के क्षेत्रफल में वृद्धि होगी। भारत में जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप गन्ना, मक्का, ज्वार, बाजरा तथा रागी जैसी फसलों की उत्पादकता दर में वृद्धि होगी जबकि इसके विपरीत मुख्य फसलों जैसे गेहूँ, धान तथा जौ की उपज में गिरावट दर्ज होगी। आलू के उत्पादन में भी अभूतपूर्व गिरावट दर्ज होगी।
  • जैव विविधता पर प्रभाव- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव जैवविविधता पर भी पड़ेगा। किसी भी प्रजाति को अनुकूलन हेतु समय की आवश्यकता होती है। वातावरण में अचानक परिवर्तन से अनुकूलन के प्रभाव में उसकी मृत्यु हो जाएगी। जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक प्रभाव समुद्र की तटीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली दलदली क्षेत्र की वनस्पतियों पर पड़ेगा जो तट को स्थिरता प्रदान करने के साथ-साथ समुद्री जीवों के प्रजनन  का आदर्श स्थल भी होती हैं। दलदली वन जिन्हें ज्वारीय वन भी कहा जाता है, तटीय क्षेत्रों को समुद्री तूफानों में रक्षा करने का भी कार्य करते हैं। जैव-विविधता क्षरण के परिणामस्वरूप पारिस्थितिक असंतुलन का खतरा बढ़ेगा।
  • मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु में उष्णता के कारण श्वास तथा हृदय संबंधी  बीमारियों में वृद्धि होगी। जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप न सिर्फ रोगाणुओं में बढ़ोत्तरी होगी अपितु इनकी नई प्रजातियों की भी उत्पत्ति होगी जिसके परिणामस्वरूप फसलों की उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।  मानव स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते एक बड़ी आबादी विस्थापित होगी जो ‘पर्यावरणीय शरणार्थी’ कहलाएगी। इससे स्वास्थ्य संबंधी और भी समस्याएँ पैदा होंगी।

जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु वैश्विक प्रयास

  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, इसके प्रभाव और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने हेतु नीति निर्माताओं को रणनीति बनाने के लिये नियमित वैज्ञानिक आकलन प्रदान करना है। IPCC आकलन सभी स्तरों पर सरकारों को वैज्ञानिक सूचनाएँ प्रदान करता है जिसका इस्तेमाल जलवायु के प्रति उदार नीति विकसित करने के लिये किया जा सकता है।
  • संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। जिसका उद्देश्य वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना है। वर्ष 1995 से लगातार UNFCCC की वार्षिक बैठकों का आयोजन किया जाता है। इसके तहत ही वर्ष 1997 में बहुचर्चित क्योटो समझौता (Kyoto Protocol) हुआ और विकसित देशों (एनेक्स-1 में शामिल देश) द्वारा ग्रीनहाउस गैसों को नियंत्रित करने के लिये लक्ष्य तय किया गया। क्योटो प्रोटोकॉल के तहत 40 औद्योगिक देशों को अलग सूची एनेक्स-1 में रखा गया है।  
  • पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य के साथ संपन्न 32 पृष्ठों एवं 29 लेखों वाले पेरिस समझौते को ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिये एक ऐतिहासिक समझौते के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • COP-25 सम्मेलन में लगभग 200 देशों के प्रतिनिधियों ने उन गरीब देशों की मदद करने के लिये एक घोषणा का समर्थन किया जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझ रहे हैं। इसमें पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप पृथ्वी पर वैश्विक तापन के लिये उत्तरदायी ग्रीनहाउस गैसों में कटौती के लिये "तत्काल आवश्यकता" का आह्वान किया गया।

जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु भारत के प्रयास

  • राष्ट्रीय सौर मिशन
  • विकसित ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन
  • सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन
  • राष्ट्रीय जल मिशन
  • सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन सौर ऊर्जा से संपन्न देशों का एक संधि आधारित अंतर-सरकारी संगठन (Treaty-Based International Intergovernmental Organization) है। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत भारत और फ्रांस ने 30 नवंबर, 2015 को पेरिस जलवायु सम्‍मेलन के दौरान की थी। ISA के प्रमुख उद्देश्यों में वैश्विक स्तर पर 1000 गीगावाट से अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता प्राप्त करना और वर्ष 2030 तक सौर ऊर्जा में निवेश के लिये लगभग 1000 बिलियन डॉलर की राशि को जुटाना शामिल है।

प्रश्न- जलवायु परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का उल्लेख करते हुए इससे निपटने की दिशा में किये जा रहे प्रयासों की समीक्षा कीजिये ।

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ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ता खतरा और उपाय

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कंक्रीट का जंगल? जो पानी की बरबादी करते हैं, उनसे मैं यही पूछना चाहता हूँ कि क्या उन्होंने बिना पानी के जीने की कोई कला सीख ली है, तो हमें भी बताए, ताकि भावी पीढ़ी बिना पानी के जीना सीख सके। नहीं तो तालाब के स्थान पर मॉल बनाना क्या उचित है? आज हो यही रहा है। पानी को बरबाद करने वालों यह समझ लो कि यही पानी तुम्हें बरबाद करके रहेगा। एक बूँद पानी याने एक बूँद खून, यही समझ लो। पानी आपने बरबाद किया, खून आपके परिवार वालों का बहेगा। क्या अपनी ऑंखों का इतना सक्षम बना लोगे कि अपने ही परिवार के किस प्रिय सदस्य का खून बेकार बहता देख पाओगे? अगर नहीं, तो आज से ही नहीं, बल्कि अभी से पानी की एक-एक बूँद को सहेजना शुरू कर दो। अगर ऐसा नहीं किया, तो मारे जाओगे। वैश्विक तापमान यानी ग्लोबल वार्मिंग आज विश्व की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। इससे न केवल मनुष्य, बल्कि धरती पर रहने वाला प्रत्येक प्राणी त्रस्त ( परेशान, इन प्राब्लम) है। ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए दुनियाभर में प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन समस्या कम होने के बजाय साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है। चूंकि यह एक शुरुआत भर है, इसलिए अगर हम अभी से नहीं संभलें तो भविष्य और भी भयावह ( हारिबल, डार्कनेस, ) हो सकता है। आगे बढ़ने से पहले हम यह जान लें कि आखिर ग्लोबल वार्मिंग है क्या। क्या है ग्लोबल वार्मिंग? जैसा कि नाम से ही साफ है, ग्लोबल वार्मिंग धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी है। हमारी धरती प्राकृतिक तौर पर सूर्य की किरणों से उष्मा ( हीट, गर्मी ) प्राप्त करती है। ये किरणें वायुमंडल ( एटमास्पिफयर) से गुजरती हुईं धरती की सतह (जमीन, बेस) से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित ( रिफलेक्शन) होकर पुन: लौट जाती हैं। धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से अधिकांश ( मोस्ट आफ देम, बहुत अधिक ) धरती के ऊपर एक प्रकार से एक प्राकृतिक आवरण ( लेयर, कवर ) बना लेती हैं। यह आवरण लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस प्रकार धरती के वातावरण को गर्म बनाए रखता है। गौरतलब ( इट इस रिकाल्ड, मालूम होना ) है कि मनुष्यों, प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्शियस तापमान आवश्यक होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी सघन ( अधिक मोटा होना) या मोटा होता जाता है। ऐसे में यह आवरण सूर्य की अधिक किरणों को रोकने लगता है और फिर यहीं से शुरू हो जाते हैं ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव ( साइड इफेक्ट) ।

ये भी पढ़े :-  दुनिया पर ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ता प्रभाव     

क्या हैं ग्लोबल वार्मिंग की वजह? ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार तो मनुष्य और उसकी गतिविधियां (एक्टिविटीज ) ही हैं। अपने आप को इस धरती का सबसे बुध्दिमान प्राणी समझने वाला मनुष्य अनजाने में या जानबूझकर अपने ही रहवास ( हैबिटेट,रहने का स्थान) को खत्म करने पर तुला हुआ है। मनुष्य जनित ( मानव निर्मित) इन गतिविधियों से कार्बन डायआक्साइड, मिथेन, नाइट्रोजन आक्साइड इत्यादि ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में बढ़ोतरी हो रही है जिससे इन गैसों का आवरण्ा सघन होता जा रहा है। यही आवरण सूर्य की परावर्तित किरणों को रोक रहा है जिससे धरती के तापमान में वृध्दि हो रही है। वाहनों, हवाई जहाजों, बिजली बनाने वाले संयंत्रों ( प्लांटस), उद्योगों इत्यादि से अंधाधुंध होने वाले गैसीय उत्सर्जन ( गैसों का एमिशन, धुआं निकलना ) की वजह से कार्बन डायआक्साइड में बढ़ोतरी हो रही है। जंगलों का बड़ी संख्या में हो रहा विनाश इसकी दूसरी वजह है। जंगल कार्बन डायआक्साइड की मात्रा को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करते हैं, लेकिन इनकी बेतहाशा कटाई से यह प्राकृतिक नियंत्रक (नेचुरल कंटरोल ) भी हमारे हाथ से छूटता जा रहा है। इसकी एक अन्य वजह सीएफसी है जो रेफ्रीजरेटर्स, अग्निशामक ( आग बुझाने वाला यंत्र) यंत्रों इत्यादि में इस्तेमाल की जाती है। यह धरती के ऊपर बने एक प्राकृतिक आवरण ओजोन परत को नष्ट करने का काम करती है। ओजोन परत सूर्य से निकलने वाली घातक पराबैंगनी ( अल्ट्रावायलेट ) किरणों को धरती पर आने से रोकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ओजोन परत में एक बड़ा छिद्र ( होल) हो चुका है जिससे पराबैंगनी किरणें (अल्टा वायलेट रेज ) सीधे धरती पर पहुंच रही हैं और इस तरह से उसे लगातार गर्म बना रही हैं। यह बढ़ते तापमान का ही नतीजा है कि धु्रवों (पोलर्स ) पर सदियों से जमी बर्फ भी पिघलने लगी है। विकसित या हो अविकसित देश, हर जगह बिजली की जरूरत बढ़ती जा रही है। बिजली के उत्पादन ( प्रोडक्शन) के लिए जीवाष्म ईंधन ( फासिल फयूल) का इस्तेमाल बड़ी मात्रा में करना पड़ता है। जीवाष्म ईंधन के जलने पर कार्बन डायआक्साइड पैदा होती है जो ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को बढ़ा देती है। इसका नतीजा ग्लोबल वार्मिंग के रूप में सामने आता है।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव :

और बढ़ेगा वातावरण का तापमान : पिछले दस सालों में धरती के औसत तापमान में 0.3 से 0.6 डिग्री सेल्शियस की बढ़ोतरी हुई है। आशंका यही जताई जा रही है कि आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग में और बढ़ोतरी ही होगी। समुद्र सतह में बढ़ोतरी : ग्लोबल वार्मिंग से धरती का तापमान बढ़ेगा जिससे ग्लैशियरों पर जमा बर्फ पिघलने लगेगी। कई स्थानों पर तो यह प्रक्रिया शुरू भी हो चुकी है। ग्लैशियरों की बर्फ के पिघलने से समुद्रों में पानी की मात्रा बढ़ जाएगी जिससे साल-दर-साल उनकी सतह में भी बढ़ोतरी होती जाएगी। समुद्रों की सतह बढ़ने से प्राकृतिक तटों का कटाव शुरू हो जाएगा जिससे एक बड़ा हिस्सा डूब जाएगा। इस प्रकार तटीय ( कोस्टल) इलाकों में रहने वाले अधिकांश ( बहुत बडा हिस्सा, मोस्ट आफ देम) लोग बेघर हो जाएंगे। मानव स्वास्थ्य पर असर : जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर मनुष्य पर ही पड़ेगा और कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडेग़ा। गर्मी बढ़ने से मलेरिया, डेंगू और यलो फीवर ( एक प्रकार की बीमारी है जिसका नाम ही यलो फीवर है) जैसे संक्रामक रोग ( एक से दूसरे को होने वाला रोग) बढ़ेंगे। वह समय भी जल्दी ही आ सकता है जब हममें से अधिकाशं को पीने के लिए स्वच्छ जल, खाने के लिए ताजा भोजन और श्वास ( नाक से ली जाने वाली सांस की प्रोसेस) लेने के लिए शुध्द हवा भी नसीब नहीं हो। पशु-पक्षियों व वनस्पतियों पर असर : ग्लोबल वार्मिंग का पशु-पक्षियों और वनस्पतियों पर भी गहरा असर पड़ेगा। माना जा रहा है कि गर्मी बढ़ने के साथ ही पशु-पक्षी और वनस्पतियां धीरे-धीरे उत्तरी और पहाड़ी इलाकों की ओर प्रस्थान ( रवाना होना) करेंगे, लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ अपना अस्तित्व ही खो देंगे। शहरों पर असर : इसमें कोई शक नहीं है कि गर्मी बढ़ने से ठंड भगाने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली ऊर्जा की खपत (कंजम्शन, उपयोग ) में कमी होगी, लेकिन इसकी पूर्ति एयर कंडिशनिंग में हो जाएगी। घरों को ठंडा करने के लिए भारी मात्रा में बिजली का इस्तेमाल करना होगा। बिजली का उपयोग बढ़ेगा तो उससे भी ग्लोबल वार्मिंग में इजाफा ही होगा। ग्लोबल वार्मिंग से कैसे बचें? ग्लोबल वार्मिंग के प्रति दुनियाभर में चिंता बढ़ रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेंट चेंज (आईपीसीसी) और पर्यावरणवादी अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर को दिया गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वालों को नोबेल पुरस्कार देने भर से ही ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटा जा सकता है? बिल्कुल नहीं। इसके लिए हमें कई प्रयास करने होंगे : 1- सभी देश क्योटो संधि का पालन करें। इसके तहत 2012 तक हानिकारक गैसों के उत्सर्जन ( एमिशन, धुएं ) को कम करना होगा। 2- यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है। हम सभी भी पेटोल, डीजल और बिजली का उपयोग कम करके हानिकारक गैसों को कम कर सकते हैं। 3- जंगलों की कटाई को रोकना होगा। हम सभी अधिक से अधिक पेड लगाएं। इससे भी ग्लोबल वार्मिंग के असर को कम किया जा सकता है। 4- टेक्नीकल डेवलपमेंट से भी इससे निपटा जा सकता है। हम ऐसे रेफ्रीजरेटर्स बनाएं जिनमें सीएफसी का इस्तेमाल न होता हो और ऐसे वाहन बनाएं जिनसे कम से कम धुआं निकलता हो। भोपालवासी डॉ. महेश परिमल का छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. अकादमिक कैरियर है। पत्रकारिता और साहित्य से जुड़े अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 700 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन का लम्बे लेखन का अनुभव है। पानी उनके संवेदना का गहरा पक्ष रहा है। डॉ. महेश परिमल वर्तमान में भास्कर ग्रुप में अंशकालीन समीक्षक के रूप में कार्यरत् हैं। उनका संपर्क: डॉ. महेश परिमल, 403, भवानी परिसर, इंद्रपुरी भेल, भोपाल. 462022. ईमेल - [email protected]

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पृथ्वी का तापमान बढ़ाने वाली ग्रीनहाउस गैसों के बारे में पाँच अहम बातें

समुद्र -  वातावरण में मौजूद ग्रीनहाउस गैसों द्वारा समााहित अत्यधिक गर्मी को सोख़कर, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कुछ टाल रहे हैं.

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किसी ग्रीनहाउस में सूर्य का प्रकाश दाख़िल होता है, और गर्मी वहीं ठहर जाती है. ग्रीनहाउस प्रभाव इसी तरह का परिदृश्य पृथ्वी के स्तर पर भी परिभाषित होता है, मगर किसी ग्रीनहाउस में लगे शीशे के बजाय, कुछ तरह की गैसें, वैश्विक तापमान को लगातार बढ़ा रही हैं.

1. ग्रीनहाउस प्रभाव क्या है?

पृथ्वी की सतह, सौर ऊर्जी के लगभग आधे हिस्सा को जज़्ब कर लेती है, जबकि 23 प्रतिशत गर्मी वातावरण में समा जाती है, और बाक़ी गर्मी या तापमान, वापिस अन्तरिक्ष में लौटा दिया जाता है. प्राकृतिक प्रक्रियाएँ सुनिश्चित करती हैं कि सूरज से पृथ्वी की तरफ़ आने वाली और वापिस जाने वाली उर्जा की मात्रा समान हो, जिससे पृथ्वी का तापमान स्थिर रह सके. 

मगर, मानव गतिविधियों के कारण कथाकथित ग्रीनहाउस गैसों (CHGs) का ज़्यादा उत्सर्जन हो रहा है. वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन और नाइट्रोजन जैसी अन्य गैसों के उलट, ग्रीनहाउस गैसें, वातावरण में ही ठहर जाती हैं और पृथ्वी से दूर नहीं जातीं. परिणामस्वरूप ये ऊर्जा पृथ्वी की सतह पर लौट आती है जहाँ ये जज़्ब हो जाती है.

चूँकि पृथ्वी में दाख़िल होने वाली ऊर्जा की मात्रा, वापिस लौटने वाली ऊर्जी की मात्रा से ज़्यादा होती है, इसलिये, पृथ्वी की सतह का तापमान तब तक बढ़ता है जब तक कि नया सन्तुलन हासिल नहीं होता.

दो महिलाएँ, सूखा से बुरी तरह प्रभावित ज़मीन में, अपनी दैनिक ज़रूरतों के लिये, जल तलाश करते हुए.

2. बढ़ता तापमान चिन्ताजनक क्यों?

इस तापमान वृद्धि के जलवायु पर दीर्घकालीन और प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं, और इससे बेशुमार प्राकृतिक प्रणालियाँ भी प्रभावित होती हैं. 

इन प्रभावों में चरम मौसम की आवृत्ति (बारम्बारता) और सघनता में बढ़ोत्तरी होना भी शामिल है जिनमें बाढ़ आना, सूखा पड़ना, जंगलों में भीषण आग लगना और तूफ़ान शामिल हैं. इनके कारण करोड़ों लोग प्रभावित होते हैं और ख़रबों डॉलर का नुक़सान होता है.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ( UNEP ) की ऊर्जा व जलवायु शाखा के प्रमुख मार्क राडका का कहना है, “मानव गतिविधियों के कारण उत्पन्न होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, इनसानों और पर्यावरण के स्वास्थ्य को ख़तरे में डालते हैं. और मज़बूत व ठोस जलवायु कार्रवाई नहीं की गई तो, प्रभाव और भी ज़्यादा व्यापक व गम्भीर होंगे.”

ग्रीनहाउस गैसें का उत्सर्जन जलवायु संकट को समझने व इसका सामना करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है: यूएन पर्यावरण कार्यक्रम की ताज़ातरीन रिपोर्ट में दिखाया गया है कि कोविड-19 के कारण तापमान वृद्धि में मामूली गिरावट हुई है लेकिन, अगर देशों ने उत्सर्जन में कमी करने के लिये, कहीं ज़्यादा व्यापक प्रयास नहीं किये तो, वैश्विक तापमान में इस सदी के अन्त तक 2.7 डिग्री सेल्सियस की ख़तरनाक वृद्धि होने का अनुमान है.

रिपोर्ट में पाया गया है कि अगर इस सदी के अन्त तक, तापमान वृद्धि को पूर्व औद्योगिक काल के स्तर से, 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना है तो, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन वर्ष 2030 तक आधा किये जाने की ज़रूरत है.

दुनिया भर में कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक मन्दी के बावजूद कार्बन डाइ ऑक्साइड के स्तरों में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हो रही है.

3. मुख्य ग्रीनहाउस गैसें कौन सी हैं?

पानी से बनने वाली भाप, कुल मिलाकर ग्रीनहाउस प्रभाव में सबसे बड़ा योगदान करने वाला तत्व है. अलबत्ता वातावरण में, लगभग सारा जल भाप, प्राकृतिक प्रक्रियाओं से आती है. कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2), मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड मुख्य ग्रीनहाउस गैसें हैं जिनके बारे में चिन्ता करने की ज़रूरत है. 

कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) वातावरण में लगभग 1000 वर्षों तक बनी रहती है, मीथेन लगभग एक दशक तक, और नाइट्रस ऑक्साइड लगभग 120 वर्षों तक वातावरण में मौजूद रहती है.

4. मानव गतिविधि से किस तरह ये गैसें उत्पन्न हो रही हैं?

कोयला, तेल, और प्राकृतिक गैस, आज भी दुनिया के अनेक हिस्सों में ऊर्जा के प्रमुख साधन हैं. इन जीवाश्म ईंधनों में कार्बन मुख्य तत्व है और, जब बिजली या ऊर्जा उत्पादन, ऊर्जी प्रेषण, व गर्मी उत्पन्न करने के लिये इनमें से किसी भी तरह के जीवाश्म ईंधन को जलाया जाता है, तो उनसे कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) उत्पन्न होती है.

मानव गतिविधियों के कारण मीथेन गैस का जितना उत्सर्जन होता है, उसमें लगभग 55 हिस्से के लिये, तेल और गैस निकासी, कोयला खुदाई, और कूड़ा घर ज़िम्मेदार हैं. 

मानव गतिविधियों के कारण उत्पन्न होने वाले मीथेन उत्सर्जन की लगभग 32 प्रतिशत मात्रा के लिये, गायों, भेड़ों और ऐसे अन्य मवेशियों को ज़िम्मेदार माना जाता है, जो अपने पेटों में भोजन की सिरका या ख़मीर प्रक्रिया करते हैं. 

खाद को गलाना या उसका अपघटन करना, और धान की खेती भी, मीथेन गैसे उत्सर्जन के अन्य महत्वपूर्ण कारण हैं.

मानव गतिविधियों द्वारा निर्मित नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन मुख्य रूप से कृषि सम्बन्धी गतिविधियों के कारण होता है. भूमि और जल में मौजूद बैक्टीरिया, नाइट्रोजन को प्राकृतिक रूप से नाइट्रस ऑक्साइड में तब्दील करते हैं, मगर उर्वरकों का प्रयोग करने के कारण इस प्रक्रिया में बढ़ोत्तरी होती है जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण में और ज़्यादा नाइट्रोजन एकत्र हो जाती है.

पवन चक्कियाँ नवीनीकृत ऊर्जा का उत्पादन करती हैं और कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता कम करती हैं.

5. ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिये क्या किया जा सकता है?

नवीनीकृत ऊर्जा का प्रयोग करने, कार्बन की क़ीमत निश्चित करना, और कोयला प्रयोग को चरणबद्ध तरीक़े से ख़त्म करने, जैसे कुछ उपायों से, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम किया जा सकता है.  लम्बी अवधि के लिये मानव और पर्यावरण स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिये, अन्ततः उत्सर्जन में कमी के लिये उच्च व मज़बूत लक्ष्य ज़रूरी हैं.

मार्क राडका का कहना है, “हमें ऐसी ठोस नीतियाँ लागू करनी होंगी जिनसे, बढ़े हुए उत्सर्जन पलट सकें. हम इसी रास्ते पर चलते हुए, बेहतर नतीजों की अपेक्षा नहीं कर सकते. कार्रवाई अभी करनी होगी.”

यूएन जलवायु सम्मेलन कॉप-26 के दौरान, योरोपीय संघ और अमेरिका ने वैश्विक मीथेन संकल्प शुरू किया था जिसके तहत 100 से ज़्यादा देश, वर्ष 2030 तक जीवाश्म ईंधन, कृषि और कूड़ा प्रबन्धन क्षेत्रों में, मीथेन उत्सर्जन में 30 प्रतिशत कमी करने के लक्ष्य पर काम करेंगे.

चुनौतियों के बावजूद, सकारात्मक रुख़ अपनाने और आशान्वित रहने का भी एक कारण मौजूद है. वर्ष 2010 से 2021 तक, ऐसी नीतियाँ बनाई और लागू की गई हैं जिनके ज़रिये वर्ष 2030 तक, वार्षिक उत्सर्जन में 11 गीगाटन की कमी लाने का लक्ष्य है.

सर्वसाधारण भी, जलवायु-सकारात्मक कार्रवाई में, अपना निजी योगदान करने की ख़ातिर विचारों के लिये, संयुक्त राष्ट्र के #ActNow अभियान का हिस्सा बन सकते हैं.

पर्यावरण पर कम प्रभाव डालने वाले विकल्प चुनकर, सभी लोग, समाधान व प्रभावकारी बदलाव का हिस्सा बन सकते हैं. 

  • ग्रीनहाउस गैसें
  • गर्भधारण की योजना व तैयारी
  • गर्भधारण का प्रयास
  • प्रजनन क्षमता (फर्टिलिटी)
  • बंध्यता (इनफर्टिलिटी)
  • गर्भावस्था सप्ताह दर सप्ताह
  • प्रसवपूर्व देखभाल
  • संकेत व लक्षण
  • जटिलताएं (कॉम्प्लीकेशन्स)
  • प्रसवोत्तर देखभाल
  • महीने दर महीने विकास
  • शिशु की देखभाल
  • बचाव व सुरक्षा
  • शिशु की नींद
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  • खेल व गतिविधियां
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ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध (Essay On Global Warming In Hindi)

Essay On Global Warming In Hindi

In this Article

ग्लोबल वार्मिंग पर 10 लाइन का निबंध (10 Lines On Global Warming In Hindi)

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दुनिया भर में कई ऐसी गंभीर समस्याएं बढ़ती जा रही हैं, जिनसे मानव जीवन पर बुरा असर पड़ रहा है। प्रदूषण, वनों की कटाई आदि हमारी धरती को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। लेकिन इन सब में सबसे गंभीर स्थिति ग्लोबल वार्मिंग की है। इस नाम से ही इससे संबंधित समस्या का अंदाजा आप सभी को जरूर हो गया होगा। हमारी धरती की सतह पर लगातार बढ़ रहे तापमान को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है। यह समस्या इंसानों की लापरवाही से बढ़ती जा रही है क्योंकि हम अपनी सुविधाओं के लिए कई ऐसी चीजों का उपयोग कर रहे हैं जिनसे प्रदूषण बढ़ रहा है और प्रदूषण ही ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है। यह समस्या धरती के लिए खतरा बनती जा रही है और इसका समाधान निकालना अनिवार्य हो गया है। कई बार मनुष्य अपने मतलब के लिए पर्यावरण को हानि पहुंचाने से पीछे नहीं हटता और समस्या को अनदेखा कर देता है। ग्लोबल वार्मिंग ज्यादातर ग्रीन हाउस गैसें जैसे सीओ2, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, आदि की वजह से बढ़ता है साथ ही जब पृथ्वी पर पानी अधिक मात्रा में भाप का रूप ले लेता है तो वह यहाँ का तापमान बढ़ाता है और यह भी इसका एक कारण है। ऐसी और भी कई गंभीर स्थितियां मौजूद हैं, जो इंसानों की वजह से उत्पन्न होती हैं। इस लेख में ग्लोबल वार्मिंग का वर्णन निबंध के रूप में किया गया और इसके प्रक्रोप अथवा समाधानों के बारे में भी बताया गया है। अगर आपके बच्चे को स्कूल में इस विषय पर निबंध लिखने को कहा गया है तो यहाँ दिए गए सैंपल निबंध आपके काम आएंगे।

ग्लोबल वार्मिंग का खतरा धरती पर तेजी से बढ़ता जा रहा है और यदि सही वक्त पर इसका समाधान नहीं निकाला गया तो हमारी आने वाली पीढ़ियों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा। यहाँ इस पर 10 लाइन के एक निबंध का प्रारूप है जिससे 100 शब्दों में एक छोटा निबंध भी लिखा जा सकता है।

  • ग्लोबल वार्मिंग का मतलब धरती के तापमान में जरूरत से अधिक वृद्धि होना है।
  • ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण ग्रीनहाउस गैसों को माना जाता है।
  • कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसें इसे बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • सीओ2 जैसी गैस का उत्पादन करने वाली इंडस्ट्री ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा रही हैं।
  • 1880 के बाद से हर साल, औसत वैश्विक तापमान में लगभग 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
  • जंगलों में पेड़ों की कटाई ग्लोबल वार्मिंग में भूमिका निभाती है।
  • ग्लोबल वार्मिंग की समस्या की वजह से मौसम में कई बदलाव होते हैं।
  • धरती के बढ़ते तापमान की वजह से ग्लेशियर पिघल रहें और और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है।
  • इसके कारण मानसून में परिवर्तन आता है और मौसम में गड़बड़ी होती है।
  • ओजोन की परत भी घटती जा रही है, जो हमें सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाती है।

यदि आपका बच्चा छोटा है और उसे ग्लोबल वार्मिंग के बारे में नहीं पता है तो हमारे द्वारा लिखे गए शॉर्ट एस्से उसे पढ़ाएं ताकि उसे कम और सही शब्दों में विषय की जानकारी हो और एक छोटा और बेहतरीन निबंध लिखने के लिए वह इसे याद भी कर सकता है।

इन दिनों ग्लोबल वार्मिंग ने एक गंभीर समस्या का रूप ले लिया है और यह समस्या हर दिन बढ़ती जा रही है। वातावरण में जब हानिकारक गैसों की वृद्धि अधिक हो जाती है तो वह धरती की ऊपरी सतह में समा जाती हैं जिसके कारण धरती का तापमान अधिक हो जाता है और इस समस्या को ग्लोबल वार्मिंग का नाम दिया गया है। इस समस्या का मुख्य कारण ग्रीन हॉउस गैसें जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन आदि का बहुत ज्यादा मात्रा में होने वाला उत्सर्जन है। इन गैसों के प्रक्रोप से धरती को बहुत नुकसान झेलना पड़ रहा है। लेकिन मनुष्य इस समस्या को उत्पन्न करने में अहम भूमिका निभाता है। मनुष्यों की लापरवाही से ही धरती में प्रदूषण बढ़ रहा है और प्रदूषण भी ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देता है। यह समस्या किसी एक देश की नहीं है बल्कि पूरे विश्व में फैली है। देशों में औद्योगीकरण और विकास के लिए कई कारखाने, इंडस्ट्रीज स्थापित हो रहे हैं, लेकिन इनसे निकलने वाले हानिकारक पदार्थ, रसायन, धुआं, प्लास्टिक आदि प्रकृति को प्रभावित कर रहे हैं। जिसकी वजह से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या काफी गंभीर रूप ले चुकी है। सूरज से आने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाव करने वाली ओजोन लेयर में भी छेद हो रहा है, जो काफी खतरनाक साबित हो सकता है। धरती पर गर्मी बढ़ती जा रही है, जिसकी वजह से मौसम पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। गर्मी बढ़ती जा रही है और ठंड में कमी आ गई है। इस गर्मी की वजह से कई ग्लेशियर पिघल रहे हैं और इनका पानी समुद्र में समा रहा। ऐसे में समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और खतरा भी। यदि ग्लोबल वार्मिंग इसी तरह बढ़ता रहा तो वह समय दूर नहीं होगा जब धरती की मौजूदगी खतरे में पड़ जाएगी। इसलिए हमें अभी से ही लोगों को इसके प्रति जागरूक करना होगा और सरकार को भी कई ऐसी योजनाओं का आयोजन करना जिनमें इस समस्या की गंभीरता के बारे में विस्तार से बताया जाए ताकि देश के लोग इसे रोकने के लिए जरूरी कदम उठाएं।

Short Essay on Global Warming in Hindi

प्रकृति ने मनुष्य को बहुत कुछ दिया है और अगर हम प्रकति के साथ छेड़छाड़ करेंगे तो उसका बुरा परिणाम हमें ही भुगतना पड़ेगा। यही हाल ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहा है। यदि आपके बच्चे को ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या के बारे में जानकारी चाहिए या फिर वह इस पर निबंध लिखना चाहता है तो नीचे लिखे 400-600 शब्दों में सीमित निबंध की मदद ले सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग क्या है? (What Is Global Warming?)

जब धरती के वातावरण में मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड और क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन आदि ग्रीन हाउस गैसों का प्रक्रोप अधिक होने लगे और जिसकी वजह से तापमान में वृद्धि हो तो इस समस्या को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है। आज के समय में इंसान कई नई तकनीकों का इस्तेमाल देश के विकास के लिए कर रहा है। लेकिन इन विकसित कार्यों की वजह से मनुष्य हमारे पर्यावरण को लगातार हानि पहुंचा रहा है। इन समस्याओं की वजह से हमारी प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है और कई बुरे प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। जैसे अधिक तापमान बढ़ना, मौसम में बदलाव आना, ग्लेशियर पिघलना आदि। इनकी वजह से आने वाले समय में लोगों को पानी की किल्लत अधिक हो सकती है। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या सिर्फ एक देश की नहीं बल्कि पूरी दुनिया का प्रमुख समस्या बनी हुई है और इसको बढ़ाने के पीछे मनुष्य का हाथ है। अगर समय रहते इस समस्या को नियंत्रित नहीं किया गया तो इंसानों के साथ-साथ पृथ्वी पर रहने वाली सभी जीवों को जान का खतरा हो सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण (Reason of Global Warming)

हमारा वातावरण में कई कारणों की वजह से प्रदूषित हो रहा है लेकिन ग्लोबल वार्मिंग एक अहम समस्या बन गई है और इसके पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण मौजूद हैं –

प्रदूषण – धरती पर प्रदूषण दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा और जिसकी वजह से तापमान में वृद्धि हो रही है। तापमान में वृद्धि होना ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का प्रभाव अधिक बढ़ाता है। वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण तथा भूमि प्रदूषण ये सभी कहीं न कहीं हमारी पृथ्वी को नुकसान पहुंचा रहे हैं। लेकिन इनसे निकलने वाली खतरनाक गैसें धरती के ऊपरी स्तर या वायुमंडल को प्रभावित कर रही हैं, जिनकी वजह से तापमान में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है ।

ग्रीन हॉउस गैस – यह साफ है कि ग्रीन हॉउस गैसों के कारण ही ग्लोबल वार्मिंग जैसी खतरनाक समस्या बढ़ रही है। ये गैसें सूर्य से आने वाली गर्मी को अपने अंदर समा लेती हैं। इन सभी गैसों में सबसे खतरनाक सीओ2 गैस है और यदि यह गैस बाकी अन्य जैसे क्लोरीन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, मीथेन गैसों से मिलती हैं तो यह हमारी धरती की ऊपरी सतह के रेडियोएक्टिव संतुलन को बिगाड़ते हैं क्योंकि इनमें गर्मी को सोखने की क्षमता अधिक होती है जिसकी वजह से धरती का तापमान बढ़ जाता है।

बढ़ती आबादी – विश्व में बढ़ने वाली आबादी भी इसका अहम कारण है। क्योंकि सीओ2 जैसी गैस मनुष्य ऑक्सीजन लेते वक्त बाहर छोड़ता है, जिसकी वजह से वातावरण में इसकी मात्रा अधिक हो जाती है। इसी कारण ग्लोबल वार्मिंग समस्या बढ़ने लगती है।

जंगलों की कटाई – यह ज्सबको पता है कि इंसान विकास के नाम पर जंगलों की कटाई कर रहा है और प्रकृति को हानि पहुंचा रहा है। हमारे वातावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए पेड़ अहम भूमिका निभाते हैं लेकिन इनके कटने से धरती पर गर्मी बढ़ती जा रही है और ग्लेशियर पिघलकर का समुद्र स्तर बढ़ा रहे हैं। जिसके परिणाम स्वरूप कई देश पानी में डूब सकते हैं या फिर इससे काफी तबाही मच सकती है।

औद्योगिक विकास – शहरों के विकास के लिए मानव कई इंडस्ट्रीज और कारखानों का उपयोग कर रहा है। इन्हीं कारखानों से निकलने वाले हानिकारक रसायन, जहरीले पदार्थ, गंदा धुआं और प्लास्टिक आदि पृथ्वी को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

ओजोन लेयर का घटना – अंटाकर्टिका में ओजोन की परत घटती जा रही है जो कि ग्लोबल वार्मिंग का अहम संकेत माना गया है और यह क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस के बढ़ जाने की वजह से हो रहा है। यह समस्या भी इंसानों की देन है क्योंकि इंडस्ट्रीज से लेकर घर तक क्लोरो फ्लोरो कार्बन का नियमित उपयोग किया जा रहा है, जिससे की ओजोन को बहुत नुकसान हो रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग के परिणाम (Consequences Of Global Warming)

पूरे विश्व में ग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर समस्या बन गयी है जिसकी वजह से हमारी प्रकृति को कई तरह से अनचाहे बदलावों से गुजरना पड़ रहा है। कई ऐसी प्राकृतिक घटनाएं है, जैसे बाढ़, सूखा, तूफान आदि जो पृथ्वी का भयंकर नुकसान पहुंचा रहे हैं। सिर्फ इतना ही नहीं ग्लोबल वार्मिंग की वजह धरती के लिए सबसे जरूरी ओजोन की परत भी घटती जा रही है। ओजोन लेयर सूरज से आने वाली हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से धरती को बचाता है। लेकिन अब इसमें छेद होने लगे हैं और यदि यह समस्या ऐसे ही बढ़ती गई तो धरती में मनुष्य के साथ किसी भी अन्य जीवों का गुजारा नामुमकिन है। सूरज से आने वाली ये किरणें बेहद हानिकारक होती हैं। सिर्फ इतना ही नहीं इन दिनों ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम में भी कई तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं। धरती पर गर्मी बढ़ती जा रही है और सर्दी का समय कम होता जा रहा है। बढ़ती गर्मी की वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं और उसका पानी समुद्र में जा रहा है जिसकी वजह से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है जो कि खतरनाक स्थिति पैदा कर सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग रोकने के उपाय (Ways To Prevent Global Warming)

इस समस्या को रोकने के कई उपाय दिए गए हैं जिनका पालन करने से इसमें कमी आ सकती है –

  • हमें लोगों को इस समस्या के लिए जागरूक करना होगा ताकि वह इसकी गंभीरता को समझ सकें।
  • सरकार को ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या के लिए कई योजनाएं बनानी चाहिए जिससे लोगों को इसके दुष्परिणामों की जानकारी हो।
  • जो वस्तु ग्रीन हाउस गैसें का उत्पादन अधिक करती हैं, उनका उपयोग कम करना चाहिए।
  • खुद के निजी वाहन का उपयोग कम कर के सार्वजनिक वाहनों का उपयोग बढ़ा दें।
  • जंगलों को नहीं काटना चाहिए बल्कि जितना हो सके अधिक पेड़-पौधे लगाएं।
  • एयर कंडीशनर का उपयोग जरूरत भर के लिए ही करें।
  • देश की आबादी को नियंत्रित करना जरूरी है।
  • प्लास्टिक की थैलियों की वजह कपड़े के थैले इस्तेमाल करें।
  • गैसोलीन का इस्तेमाल कम से कम करें।

ग्लोबल वार्मिंग के बारे में रोचक तथ्य (Interesting Facts about Global Warming in Hindi)

  • आईपीसीसी 2007 की एक रिपोर्ट के हिसाब से ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस सदी के आखिर तक समुद्र का स्तर 7-23 इंच बढ़ जाएगा।
  • एक स्टडी के अनुसार, 20वीं सदी के आखिर के दो दशक पिछले 400 सालों में सबसे गर्म रहे हैं।
  • ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक की बर्फ तेजी से पिघल रही है और ऐसा अनुमान है कि 2040 तक यहाँ पूरी बर्फ पिघल जाएगी।
  • ग्लोबल वार्मिंग के कारण के कारण विश्व भर में जंगल की आग, लू और भयंकर तूफानों के प्रभाव बढ़ गए हैं।
  • मनुष्य अपनी रोज की गतिविधियों के कारण साल में लगभग 37 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड निकाल रहा है।
  • इसके कारण दुनिया की ठंडी जगहें गर्म हो रही हैं, जिससे बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।

धरती मनुष्यों के लिए बहुत खूबसूरत तोहफा है और इसको संभालकर रखना भी उनकी ही जिम्मेदारी है। ऐसे में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को ध्यान में रखते हुए इस निबंध को लिखा गया है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी हमारे पर्यावरण के खतरों को समझे और इसकी देखभाल और कदर कर सकें। इस निबंध से बच्चों में जागरूकता फैलेगी और वे आगे आने वाले समय में परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए धरती को कम से कम नुकसान पहुंचाने का प्रयास करेंगे।

1. ग्लोबल वार्मिंग की वर्तमान दर क्या है?

पिछले 5 दशकों में वैश्विक तापमान में औसत वृद्धि 1.2 डिग्री सेल्सियस से अधिक है।

2. पृथ्वी का सबसे गर्म दशक कौन सा रहा है ?

पृथ्वी का सबसे गर्म दशक 2000-2009 तक रहा है।

यह भी पढ़ें:

प्रदूषण पर निबंध (Essay on Pollution in Hindi) पर्यावरण पर निबंध (Essay On Environment In Hindi) जल प्रदूषण पर निबंध (Essay On Water Pollution In Hindi)

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  • ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध – Essay on Global Warming in Hindi

हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए लाया हु Essay on Global Warming in Hindi पर पुरा आर्टिकल।ग्लोबल वार्मिंग एक बहुत बड़ी समस्या है जो हर साल तेज़ी से बढ़ती जा रही है। अगर आप अपने बच्चे के लिए Essay on Global Warming in Hindi में ढूंढ रहे है तो हम आपके लिए ग्लोबल वार्मिंग पर लाये है जो आपको बहुत अच्छा लगेगा। आईये पढ़ते है Essay on Garden in Hindi

Essay on Global Warming in Hindi

प्रकृति ने संपूर्ण जीवनमंडल के लिए स्थलजल और वायु के रूप में एक विस्तृत आवरण निर्मित किया है, जिसे हम पर्यावरण की संज्ञा देते हैं। पर्यावरण के संतुलन के लिए प्रकृति ने कुछ नियम भी निर्धारित किए हैं, कितु जब से इस पृथ्वी पर मनुष्य का अवतरण हुआ। है तब से पर्यावरण संतुलन के प्राकृतिक नियमों का खुला उल्लंघन शुरू हो गया और निरंतर प्रकृति की अनदेखी के कारण आज हमारे पर्यावरण को अनेक समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। वायु प्रदूषण जल प्रदूषण भूमि-प्रदूषण ध्वनि-प्रदूषण आदि ने सम्मिलित रूप से संपूर्ण वातावरण को प्रदूषित कर दिया है और इसका परिणाम यह हुआ है कि प्रकृति प्रदत्त जीवनदायी वायुभूमि और जल आज जीवन घातक बन गए हैं।

  • बागीचे पर निबंध
  • इंटरनेट पर निबंध 
  • जवाहरलाल नेहरू पर निबंध 

पर्यावरण क्षरण एक बार फिर चर्चा में है, क्योंकि इसको लेकर एक और विश्वस्तरीय महासम्मेलन का आयोजन जापान के क्योटो शहर में किया गया।

इस सम्मेलन में जिस विषय को केंद्र बनाया गया, वह था। ‘विश्व्यापी तापमान वृद्धि’ अर्थात ग्लोबल वार्मिग’। वातावरण के ताप में वृद्धि वर्तमान विश्व के लिए सर्वाधिक चिंतनीय विषय है, क्योंकि जिस गति से इसकी वृद्धि हो रही है, वह संपूर्ण जीव-समुदाय के लिए घातक साबित हो रही है। हाल में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन से ज्ञात होता है कि पृथ्वी के तापमान में तीव्रगति से वृद्धि हो रही है।

तापमान वृद्धि के कारण समुद्रों की कार्बन डाइ-ऑक्साइड ग्रहण करने की क्षमता में 50 प्रतशित तक की कमी हो सकती है। इससे ग्रीन हाऊस गैसों का और अधिक विकास होगा और तापमान में भी अधिक वृद्धि होगी। समुद्र प्रतिवर्ष वायुमंडल से लगभग दो अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड को अपने अंदर समेट लेता है और इस प्रकार के ग्रीन हाऊस प्रभाव को कम करता है।

तापमान वृद्धि के प्रति अनदेखी तब और अधिक भयावह प्रतीत होता है, जब यह तथ्य सामने आता है कि अमेरिका तथा जापान सहित यूरोप के 4 देश (औद्योगिक दृष्टि से विकसित) संपूर्ण विश्व के 20वें भाग में फैले हैं, किंतु वे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का 80 प्रतिशत छोड़ते हैं। वायुमंडल में छोड़ी जाने वाली ग्रीन हाउस गैसों का लगभग 25 प्रतिशत तो केवल अमेरिका द्वारा छोड़ा जाता है।

पर्यावरण क्षरण को रोकने के लिए पहले तो रियो डि जेनेरो में वर्ष 1992 में फिर वर्ष 1997 में क्योटो में और वर्ष 1998 में ब्यूनस आयर्स में

महासम्मेलन का आयोजन किया जा चुका है। इन सम्मेलनों में सर्वसम्मति से कोई निर्णय नहीं लिया जा सका, क्योंकि अमेरिका और जापान सदृश देशों ने अपना कोई स्पष्ट रवैया नहीं अपनाया। अमेरिका का तो यहाँ तक कहना है कि तापमान या मौसम परिवर्तन के लिए पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, इसलिए ग्रीन हाउस गैस के नियंत्रण के लिए कानून बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। प्रमुख औद्योगिक देश ग्रीन हाउस के विस्तार पर रोक लगाने या उसमें कटौती के लिए तैयार हैं।

ग्रीन हाउस गैसों का कुल 165 प्रतिशत इन दोनों देशो द्वारा उत्सर्जित किया जाता है। किंतु यह तर्क देते समय वे यह भूल जाते हैं कि विश्व की कुल जनसंख्या का 16 प्रतिशत भारत में निवास करता है। जबकि कुल जहरीली गैसों क मात्र 3.5 प्रतिशत ही उसके द्वारा उत्सर्जित किया जाता है। क्योटो सम्मेलन में 140 देशों ने ताप वृद्धि को रोकने पर अपनी आम सहमति व्यक्त की थी।

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इससे औद्योगिक देशों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषित गैसों के विस्तार पर कुछ हद तक रोक लगने की उम्मीद है। यूरोपअमेरिका और जापान के साथ 21 बड़े औद्योगिक देशों के ग्रीन हाउरू | गैसों के विस्तार पर कुछ हद तक रोक लगने की उम्मीद है। यहाँ पर समझौते के अनुसार |

अमेरिका 7 प्रतिशतयूरोपीय देश 8 प्रतिशत तथा जापान ने 8 प्रतिशत की कटौती के स्वीकार किया है। 1992 के रियो डि जेनेरो के पृथ्वी सम्मेलन में तापमान-वृद्धि को रोक का जो विचार विश्व के समक्ष प्रस्तुत हुआ। उसको कार्यरूप देने की दिशा में क्योटो सम्मेलन का कारगर ऐतिहासिक कदम हुआ है। किंतुइसके लिए और अधिक सार्थक प्रयत्नों र्क | आवश्यकता है।

  • पर्यावरण पर निबंध 
  • दहेज प्रथा पर निबंध व भाषण
  • Muhavare in Hindi

प्रकृति ने संपूर्ण जीवमण्डल के लिए स्थलजल और वायु के रूप में एक विस्तृत आवरण निर्मित किया है, जिसे हम ‘पर्यावरण’ की संज्ञा देते हैं। पर्यावरण के संतुलन के लिए प्रकृति ने कुछ नियम भी निर्धारित किए हैं, किंतु जब से इस | पृथ्वी पर मनुष्य का अवतरण हुआ है, तब से पर्यावरण संतुलन के प्राकृतिक नियमों का खुला उल्लंघन शुरू हुआ है और निरंतर प्रकृति की अनदेखी के कारण आज हमारे पर्यावरण को अनेक समस्याओं से जूझना पड़ रहा है।

वायु प्रदूषण जलप्रदूषणभूमि प्रदूषणध्वनि-प्रदूषण आदि ने सम्मिलित रूप से संपूर्ण वातावरण को प्रदूषित कर दिया है और इसका परिणाम यह हुआ है कि प्रकृतिप्रदत्त जीवनदायी वायुभूमि और जलत्रितत्व आज जीवन घातक बन गए हैं।

पर्यावरण क्षरण एक बार फिर चर्चा में है, क्योंकि इसको लेकर एक और विश्वस्तरीय महासम्मलेन का आयोजन 1 से 10 दिसंबर, 1997 तक जापान के क्योटो शहर में किया गया। इस सम्मेलन में जिस विषय को केंद्र बनाया गयावह था-विश्वव्यापी तापमान वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग)।

वातावरण में तापमान की वृद्धि वर्तमान विश्व के लिए सर्वाधिक चिंतनीय विषय है, क्योंकि जिस गति से इसकी

वृद्धि हो रही है, वह संपूर्ण जीवसमुदाय के लिए घातक सिद्ध हो रही है। व्यापक उत्परिवर्तनों के बावजूद लम्बी अवधि तक मनुष्य एवं पर्यावरण का संबंध लगभग सौहार्दपूर्ण रहा है और पर्यावरण लगभग अपरिवर्तित रहा। पर्यावरण का संतुलन बिगड़ना शुरू हुआ पश्चिमी देशों की औद्योगिक क्रांति के बाद से मनुष्य की आर्थिक व भौतिक समृद्धि प्राप्त करने की आकांक्षा दिन-बदिन बढ़ती गई और परिणामों को अनदेखा करते हुए वह प्रकृति तथा पर्यावरण का शोषण करने लगा।

औद्योगिक क्रांति ने वायुप्रदूषण को चिंतनीय स्थिति तक पहुंचा दिया। नवीन उद्योगों में कोयले का अंधाधुंध प्रयोग शुरू हुआ। कोयले का प्रयोग विद्युत् उत्पादन के लिए भी होने लगा। इसके परिणामस्वरूप 19वीं और 20वीं सदी के आरंभ में यूरोप एवं अमेरिका के नगरों पर काला आवरण-सा छाने लगा। सेंट पीट्सबर्ग एवं पेंसिलवेनिया सदृश औद्योगिक नगरों में तो वायु प्रदूषण की मात्रा इतनी अधिक हो जाती थी कि वाहन चालकों को दिन में भी हेडलाइट का उपयोग करना पड़ता था।

  • कुत्ता पर निबंध 
  • क्रिकेट पर निबंध 
  • कंप्यूटर पर निबंध 

इस संदर्भ में ध्यातव्य है कि, जिस गति से औद्योगीकरण की प्रक्रिया बढ़ रही है, उससे न्यून गति नहीं है वायु प्रदूषण में वृद्धि की। मनुष्य की विलासिता की प्रवृत्ति ने अभी भी उसे प्रदूषण की गंभीरता से अवगत होने से रोके रखा है। प्रशीतन के विश्वव्यापी अनियंत्रित प्रयोग ने वातावरण में क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस की मात्रा बढ़ा दी है और इसके परिणामस्वरूप वायुमण्डल के ओजोनस्तर में छिद्र हो गया है।

इससे पृथ्वी के तापमान एवं मनुष्य के स्वास्थ्य को कितना नुकसान पहुंचेगा, वह अनुमान से परे है। वस्तुतः, मनुष्य प्रकृति से अपने अनुकूलन के बदले प्रकृति को अपने अनुकूल बनाने की जितनी चेष्टा करेगा, वह पर्यावरण को और फिर उसके परिणामस्वरूप चक्रीय श्रृंखला में अपनी क्षमता को ही नुकसान पहुंचाना शुरू कर देगा।

आज मनुष्य के अनियंत्रित हाथ एवरेस्ट की चोटी से लेकर समुद्री तल तक के लिए प्रदूषण का संकट पैदा करने लगे हैं। वह मात्र अपने अहं की तुष्टि एवं झूठे प्रभाव की प्रतिष्ठा के लिए आणविक विस्फोटों की अनवरत श्रृंखला चला रहा है। जिसके रेडियाधर्मी प्रभाव कई पीढ़ियों के लिए शारीरिक व मानसिक विकृति के वाहक बन सकते हैं। मनुष्य ने ऐसे ही विस्फोटों एवं अन्य औद्योगिक तथा रासायनिक कारणों से प्रकृति के गैसीय संतुलन को कुप्रभावित किया है और उससे पृथ्वी का तापमान तीव्र गति से बढ़ने लगा है, जिससे बर्फ के पिघलने एवं उससे भू-क्षेत्रों के जलमग्न हो जाने की आशंका प्रकट की जाने लगी है। पर्यावरणीय कुष्प्रभावों की वजह से ही वातावरण अब हमेशा असामान्य-सी स्थिति में नजर आता है-कभी गर्मी हद से अधिक बढ़ जाती है, तो कभी ठंड असामान्य रूप से बढ़ जाती है, वर्षा का अनियमित हो जाना भी पर्यावरणीय कुप्रभाव का ही सूचक है।

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पृथ्वी के पर्यावरण में हस्तक्षेप के विनाशकारी परिणाम तापमान वृद्धि के रूप में सामने आ रहे हैं। यदि विश्व-वायुमण्डल में कार्बनडाईऑक्साइडमिथेन और कार्बनमोनोऑक्साइड आदि गैसें छोड़े जाने की वर्तमान गति बनी रही या इसमें और तीव्रता आ गयीतो 21वीं सदी के मध्य (2050) तक भूमण्डल का तापमान 35॰ बढ़ जाएगा। तापमान वृद्धि से आर्कटिक और अंटार्कटिका की बर्फ टोपियां तथा हिमनद पिघलने लगेंगेजिसके परिणाम कितने घातक होंगे, उसकी कल्पना प्रत्येक व्यक्ति कर सकता है।

एक अनुमान के अनुसार, जिस गति से तापमान में वृद्धि हो रही है, उससे समुद्र के जल स्तर में 3 फीट की वृद्धि हो सकती है।

हाल में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन से ज्ञात होता है कि पृथ्वी के तापमान में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। तापमान वृद्धि के कारण समुद्रों की कार्बन डाइ-ऑक्साइड ग्रहण करने की क्षमता में 50 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। इससे ग्रीन हाउस गैसों का और अधिक विकास होगा और तापमान में और अधिक वृद्धि होगी। समुद्र प्रतिवर्ष वायुमण्डल से लगभग दो अरब टन कार्बन-डाइऑक्साइड को अपने अंदर समेट लेते हैं और इस प्रकार वे ग्रीन हाउस प्रभाव को कम करते हैं।

यहां एक तथ्य ध्यातव्य है कि, जीवाश्म ईंधनों के कारण वायुमण्डल में छह अरब टन कार्बन जाता है। वैज्ञानिकों ने अनुमान किया है कि अगली डेढ़ शताब्दियों में कार्बन स्तर प्रतिवर्ष एक प्रतिशत बढ़ जाएगा और इस कारण वायुमण्डल में गैस की सांद्रता चार गुना बढ़ जाएगी।

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तापमान वृद्धि के प्रति अनदेखी का स्वरूप तब और अधिक भयावह प्रतीत होता है, जब यह तथ्य सामने आता है कि अमेरिका तथा जापान सहित यूरोप के 21 देश (औद्योगिक दृष्टि से विकसित) संपूर्ण विश्व के 20वें भाग में फैले हैं, किंतु वे वातावरण में कार्बनडाइ-ऑक्साइड का 80 प्रतिशत छोड़ते हैं।

वायुमण्डल में छोड़ी जाने वाली ग्रीन हाउस गैसों का लगभग 25 प्रतिशत तो केवल अमेरिका द्वारा ही छोड़ा जाता है। पर्यावरण क्षरण को रोकने के लिए पहले तो रियो डि जेनेरो में वर्ष 1992 में फिर वर्ष 1997 में क्योटो में और वर्ष 1998 में ब्यूनस आयर्स में महासम्मेलन का आयोजन किया जा चुका है।

इन सम्मेलनों में सर्वसम्मति से कोई निर्णय नहीं लिया जा सका, क्योंकि अमेरिका और जापान सदृश देशों ने अपना कोई स्पष्ट रवैया नहीं अपनाया। अमेरिका का तो यहां तक कहना है कि तापमान या मौसम परिवर्तन के लिए पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं, इसलिए ग्रीन हाउस गैस के नियंत्रण के लिए कानून बनाने की कोई आवश्यकता नहीं। प्रमुख औद्योगिक देश इसी तर्क के आधार पर ग्रीन हाउस के विस्तार पर रोक लगाने या उसमें कटौती करने के लिए 2010 ई. से तैयार हैं।

इस संदर्भ में एक तथ्य और ध्यातव्य है कि, बहुतसे देश कह रहे हैं कि चीन और भारत तीव्र गति से अपना औद्योगिक विकास कर रहे है, इसलिए वे अपनी औद्योगिक गतिविधियों को नियंत्रित नहीं कर सकते। ग्रीन हाउस गैसों के कुल का 16.5 प्रतिशत इन दोनों देशों द्वारा उत्सर्जित किया जाता है। किंतुयह तर्क देते समय वे यह भूल जाते हैं कि विश्व की कुल जनसंख्या का 16 प्रतिशत भाग भारत में निवास करता है, जबकि कुल जहरीली गैसों का मात्र .5 प्रतिशत ही उसके द्वारा उत्सर्जित किया जाता है।

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  • UPSC FAQs /

Global Warming in Hindi : जानिये जलवायु परिवर्तन क्या है और इसके कारण

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  • Updated on  
  • अगस्त 29, 2023

Global Warming in Hindi

प्रतियोगी परीक्षाओं में करंट अफेयर्स से जुड़े क्वेश्चन पूछे जाते हैं, क्योंकि करंट अफेयर्स का उद्देश्य मनुष्य की समझ को विस्तार करना है। UPSC में प्री और मेंस एग्जाम के अलावा इंटरव्यू का भी महत्वपूर्ण रोल है, इसलिए कैंडिडेट्स को रोजाना हो रहीं आसपास और देश-दुनिया की घटनाओं को समझना होगा। आज हम इस ब्लाॅग Global Warming in Hindi में जलवायु परिवर्तन क्या है और इसके कारणों के बारे में जानेंगे, जिसे आप अपनी तैयारी में जोड़ सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन क्या है?

ग्लोबल वार्मिंग यानी जलवायु परिवर्तन (Global Warming in Hindi) को तापमान और मौसम होने वाले परिवर्तन से जोड़ा जाता है। वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ने के कारण पृथ्वी के औसतन तापमान में होने वाली वृद्धि को ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन कहते हैं। ग्लेशियरों का पिघलना और समुद्री जलस्तर बढ़ना भी ग्लोबल वार्मिंग का असर है। कुछ रिसर्च और रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीते कुछ वर्षों में देखा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हुई है।

यह भी पढ़ें- ग्लोबल वार्मिंग का क्या प्रभाव पड़ता है जानिए इन निबंधों के द्वारा

जलवायु परिवर्तन के कारण क्या हैं?

Global Warming in Hindi जानने के साथ इसके कारण भी समझना आवश्यक है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण यहां बताए जा रहे हैंः

  • गैसों का उत्सर्जन- विनिर्माण और उद्योग उत्सर्जन का उत्पादन करते हैं। निर्माण उद्योग की तरह खनन और अन्य औद्योगिक प्रक्रियाएं भी गैसें छोड़ती हैं। विनिर्माण प्रक्रिया में उपयोग की जाने वाली मशीनें अक्सर कोयला, तेल या गैस पर चलती हैं; और कुछ सामग्रियां, जैसे प्लास्टिक, जीवाश्म ईंधन से प्राप्त रसायनों से बनाई जाती हैं। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की वजह से जलवायु काफी परिवर्तित हो रही है।
  • वनों की कटाई- खेतों या चरागाहों के निर्माण के लिए या अन्य कारणों से जंगलों को काटने से उत्सर्जन होता है, क्योंकि जब पेड़ों को काटा जाता है, तो वह अपने द्वारा संग्रहीत कार्बन छोड़ते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, हर साल लगभग 12 मिलियन हेक्टेयर जंगल नष्ट हो जाते हैं। वनों की कटाई, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग एक चौथाई के लिए जिम्मेदार है।
  • परिवहन का ज्यादा उपयोग- अधिकांश कारें, ट्रक, जहाज और विमान जीवाश्म ईंधन पर चलते हैं। यह परिवहन को ग्रीनहाउस गैसों, विशेषकर कार्बन-डाइऑक्साइड उत्सर्जन का एक प्रमुख कारण है। जहाजों और विमानों से उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है।
  • भोजन उत्पादन (फूड मैन्युफैक्चरिंग) में गैसों का उत्सर्जन- भोजन के उत्पादन में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का कारण शामिल है। जीवाश्म ईंधन के साथ कृषि उपकरण या मछली पकड़ने वाली नौकाओं को चलाने के लिए ऊर्जा का उपयोग। यह सब भोजन उत्पादन यानी फूड मैन्युफैक्चरिंग को जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण बनाता है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भोजन की पैकेजिंग और वितरण से भी होता है।
  • बिजली खपत- विश्व स्तर पर आवासीय और व्यावसायिक बिल्डिंग आधी से अधिक बिजली की खपत करती हैं। ये बिल्डिंग हीटिंग और कूलिंग के लिए कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस का उपयोग करती हैं, इसलिए काफी मात्रा में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है।

Global Warming in Hindi

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव क्या हैं?

Global Warming in Hindi जानने के साथ इसके प्रभाव भी समझना आवश्यक है। ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव यहां बताए जा रहे हैंः

  • ग्लेशियरों के गायब होने, जल्दी बर्फ पिघलने और गंभीर सूखे के कारण पानी की अधिक कमी हो जाएगी और जंगलों में आग का खतरा बढ़ता रहेगा।
  • गर्मी बढ़ेगी और बीते कुछ वर्षों में देखा जा सकता है कि सभी भूमि क्षेत्रों में अधिक गर्म दिन और लू चल रही है। 
  • जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की उपलब्धता बदल रही है, जिससे अधिक क्षेत्रों में इसकी कमी हो रही है। 
  • ग्लोबल वार्मिंग के कारण पहले से ही पानी की कमी वाले क्षेत्रों में पानी की कमी हो गई है और इससे कृषि सूखे का खतरा बढ़ गया है, जिससे फसलों पर असर पड़ रहा है।
  • ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बढ़ती गर्मी से बीमारियों का खतरा अधिक होता है और बाहर काम करना कठिन बन जाता है।
  • समुद्र का स्तर बढ़ने से पूर्वी समुद्री तटों पर और खाड़ी जैसे अन्य क्षेत्रों में और भी अधिक तटीय बाढ़ आ जाएगी।
  • जंगलों, खेतों और शहरों को परेशान करने वाले नए कीटों, भारी बारिश और बढ़ती बाढ़ का सामना करना पड़ेगा। ये सभी कृषि और मत्स्य पालन को नुकसान पहुंचा सकते हैं या नष्ट कर सकते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन मूंगा चट्टानों और अल्पाइन घास के मैदानों, जैसे- आवासों का विघटन, कई पौधों और जानवरों की प्रजातियों को विलुप्त होने की ओर ले जा सकता है।
  • पराग-उत्पादक रैगवीड की बढ़ती वृद्धि, वायु प्रदूषण के उच्च स्तर और रोगजनकों और मच्छरों के लिए अनुकूल स्थितियों के प्रसार के कारण एलर्जी, अस्थमा और संक्रामक रोग का प्रकोप अधिक हो जाएगा।

जब किसी क्षेत्र विशेष के औसतन मौसम में परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है।

भारत में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है और इससे कई नुकसान हैं।

एनवायरोमेंट में गैसों के बढ़ने से जलवायु बदल रही है।

आशा है कि इस ब्लाॅग में आपको Global Warming in Hindi की पूरी जानकारी मिल गई होगी। एग्जाम की तैयारी और बेहतर करने व UPSC में पूछे जाने वाले क्वैश्चंस के बारे में अधिक जानकारी के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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स्टडी अब्राॅड प्लेटफाॅर्म Leverage Edu में सीखने की प्रक्रिया जारी है। शुभम को 4 वर्षों का अनुभव है, वह पूर्व में Dainik Jagran और News Nib News Website में कंटेंट डेवलपर रहे चुके हैं। न्यूज, एग्जाम अपडेट्स और UPSC में करंट अफेयर्स लगातार लिख रहे हैं। पत्रकारिता में स्नातक करने के बाद शुभम ने एजुकेशन के अलावा स्पोर्ट्स और बिजनेस बीट पर भी काम किया है। उन्हें लिखने और रिसर्च बेस्ड स्टोरीज पर फोकस करने के अलावा क्रिकेट खेलना और देखना पसंद है।

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भूमंडलीय ऊष्मीकरण पर निबंध – An Essay on Global Warming in Hindi –  Reason, Result and How to Stop Global Warming (Important Topic for All Classes)

Essay on Global warming in Hindi  – हमारी दुनिया को अभी प्रभावित करने वाले सबसे गंभीर पर्यावरणीय मुद्दों में से एक भूमंडलीय ऊष्मीकरण है, जिसे आमतौर पर जलवायु परिवर्तन के रूप में जाना जाता है। वैश्विक तापमान वास्तव में लगातार बढ़ रहा है , पिघलती बर्फ की टोपियां और समुद्र का स्तर कार्बन डाइऑक्साइड , जैसे कि ग्रीनहाउस गैसों में तेजी से वृद्धि के परिणामस्वरूप बढ़ रहा है। गंभीर मौसम पैटर्न, प्राकृतिक आपदाएं, और पर्यावरणीय गिरावट इन परिवर्तनों से मजबूर हो रही हैं, जो संवेदनशील पारिस्थितिक संतुलन को परेशान कर रहे हैं। ध्रुवीय भालू ग्लोबल वार्मिंग से प्रभावित होने वाले जानवरों में से एक हैं, और यह उनके अस्तित्व के लिए एक गंभीर खतरा है। इस संकट को दूर करने के लिए अक्षय ऊर्जा के स्रोतों पर स्विच करना और सतत विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है। बढ़ते तापमान के मुद्दे के कारण, निहितार्थ और संभावित समाधान इस निबंध में शामिल किए जाएंगे ।

इस ग्‍लोबल वॉर्मिंग पर निबंध में हम आज की सबसे जटिल समस्याओं में से एक भूमंडलीय ऊष्मीकरण या ग्‍लोबल वॉर्मिंग के विषय पर कुछ महत्वपूर्ण जानकारियों को साँझा कर रहे हैं। भूमंडलीय ऊष्मीकरण या ग्‍लोबल वॉर्मिंग एक ऐसा विषय है जिस पर आपको किसी भी कक्षा में निबंध लिखने के लिए कहा जा सकता है। अतः आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई जानकारियाँ आपके लिए सहायक सिद्ध होगी।

  • भूमंडलीय ऊष्मीकरण या ग्लोबल वॉर्मिंग की परिभाषा

भूमंडलीय ऊष्मीकरण या ग्लोबल वॉर्मिंग का अर्थ

भूमंडलीय ऊष्मीकरण या ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण.

  • भूमंडलीय ऊष्मीकरण या ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभाव

भूमंडलीय ऊष्मीकरण या ग्लोबल वॉर्मिंग के घातक परिणाम

भूमंडलीय ऊष्मीकरण या ग्लोबल वॉर्मिंग के रोकथाम के उपाय, भूमंडलीय ऊष्मीकरण या ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रति जागरूकता.

आज के युग में मनुष्य दिनों-दिन कई तरह की नई-नई तकनीकें विकसित करता आ रहा है। विकास के लिए मनुष्य कई तरह से प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहा है जिसकी वजह से प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में बहुत मुश्किल हो रही है। इन सब के कारण धरती को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जिनमें से ग्लोबल वार्मिंग एक बहुत ही भयंकर समस्या है। ग्लोबल वार्मिंग हमारे देश के लिए ही नहीं अपितु पूरे विश्व के लिए बहुत बड़ी समस्या है । सूरज की रोशनी को लगातार ग्रहण करते हुए हमारी पृथ्वी दिनों-दिन गर्म होती जा रही है, जिससे वातावरण में कॉर्बनडाई ऑक्साइड का स्तर बढ़ रहा है। इस समस्या से ना केवल मनुष्य, बल्कि धरती पर रहने वाले प्रत्येक प्राणी को नुकसान पहुँच रहा है

और इस समस्या से निपटने के लिए प्रत्येक देश कुछ ना कुछ उपाय लगातार कर रहा है परंतु यह ग्लोबल वार्मिंग घटने की बजाय निरंतर बढ़ ही रहा है। इस समस्या से निपटने के लिये लोगों को इसका अर्थ, कारण और प्रभाव पता होना चाहिये जिससे जल्द से जल्द इसके समाधान तक पहुँचा जा सके। इससे मुकाबला करने के लिये हम सभी को एक साथ आगे आना चाहिए और धरती पर जीवन को बचाने के लिये इसका समाधान करना चाहिए।

ग्लोबल वॉर्मिंग की परिभाषा – Definition of Global warming

धरती के वातावरण में तापमान के लगातार हो रही विश्वव्यापी बढ़ोतरी को ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। दूसरे शब्दों में – जब वायुमंडल में कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है तो वायुमंडल के तापमान में बढ़ोतरी हो जाती है। तापमान में हुए इस बदलाव को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है।

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ग्लोबल का अर्थ है ‘पृथ्वी’ और वॉर्मिंग का अर्थ है ‘गर्म’। भूमंडलीय ऊष्मीकरण (या ग्‍लोबल वॉर्मिंग) का अर्थ पृथ्वी की निकटस्‍थ-सतह वायु और महासागर के औसत तापमान में 20वीं शताब्‍दी से हो रही वृद्धि और उसकी अनुमानित निरंतरता है। आसान शब्दों में समझें तो ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है ‘पृथ्वी के तापमान में वृद्धि और इसके कारण मौसम में होने वाले परिवर्तन’। पृथ्वी के तापमान में हो रही इस वृद्धि (जिसे 100 सालों के औसत तापमान पर 10 फारेनहाईट आँका गया है) के परिणाम स्वरूप बारिश के तरीकों में बदलाव, हिमखण्डों और ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि और वनस्पति तथा जन्तु जगत पर प्रभावों के रूप के सामने आ सकते हैं।

ग्रीन हाउस गैस

ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसें हैं । ग्रीन हाउस गैसें वे गैसें होती हैं, जो सूर्य से मिल रही गर्मी को अपने अंदर सोख लेती हैं । ग्रीन हाउस गैसों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण गैस कार्बन डाइऑक्साइड है, जिसे हम जीवित प्राणी अपनी सांस के साथ उत्सर्जन करते हैं। पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है। दूसरी ग्रीनहाउस गैसें हैं – नाइट्रोजन ऑक्साइड, CFCs क्लोरिन और ब्रोमाईन कम्पाउंड आदि। ये सभी वातावरण में एक साथ मिल जाते हैं और वातावरण के रेडियोएक्टिव संतुलन को बिगाड़ते हैं। उनके पास गर्म विकीकरण को सोखने की क्षमता है जिससे धरती की सतह गर्म होने लगती है।

वायुमंडल के तापमान में होने वाली लगातार वृद्धि के कारणों में प्रदूषण भी एक कारण है । प्रदूषण कई तरह का होता है – वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि। प्रदूषण के कारण वायुमंडल में कई तरह की गैसें बनती जा रही है। ये गैसें ही तापमान वृद्धि का मुख्य कारण है और प्रदुषण इन गैसों को बनने में मदद करता है। See Essay on Pollution in Hindi 

जनसंख्या वृद्धि

जनसंख्या वृद्धि भी वायुमंडल के तापमान को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देती है क्योंकि एक रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग में 90 प्रतिशत योगदान मानवजनित कार्बन उत्सर्जन का है।

शहरीकरण को बढ़ावा देते हुए शहरी इलाकों में कारखाने और कम्पनियाँ लगातार बढ़ती जा रहीं हैं। जिनसे विषैले पदार्थ, पलास्टिक, रसायन, धुआँ आदि निकलता है। ये सभी पदार्थ वातावरण को गर्म करने का कार्य बखूबी निभाते हैं।

जंगलों की कटाई

मनुष्य अपनी सुविधाओं के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ करता रहता है। मनुष्य ने धरती के वातावरण को संतुलित बनाए रखने वाले पेड़-पौधों को काट कर वातावरण को अत्याधिक गर्म कर दिया है , जिसके कारण समुद्र का जल-स्तर बढ़ रहा है, समुद्र के इस तरह जल-स्तर बढ़ने से दुनिया के कई हिस्से जल में लीन हो जाएंगे भारी तबाही मचेगी यह किसी विश्व युद्ध या किसी “एस्टेरॉयड” के पृथ्वी से टकराने से होने वाली तबाही से भी ज्यादा भयानक तबाही होगी।यह हमारी पृथ्वी के लिए बहुत ही हानिकारक सिद्ध होगा।

ओजोन परत में कमी आना

अंर्टाटिका में ओजोन परत में कमी आना भी ग्लोबल वार्मिंग का एक कारण है। CFC गैस के बढ़ने से ओजोन परत में कमी आ रही है। ये ग्लोबल वार्मिंग का मानव जनित कारण है। CFC गैस का इस्तेमाल कई जगहों पर औद्योगिक तरल सफाई में एरोसॉल प्रणोदक की तरह और फ्रिज में होता है, जिसके नियमित बढ़ने से ओजोन परत में कमी आती है।

ओजोन परत का काम धरती को नुकसान दायक किरणों से बचाना है। जबकि, धरती के सतह की ग्लोबल वार्मिंग बढ़ना इस बात का संकेत है कि ओजोन परत में क्षरण हो रहा है। सूरज की हानिकारक अल्ट्रा वॉइलेट किरणें जीवमंडल में प्रवेश कर जाती है और ग्रीनहाउस गैसों के द्वारा उसे सोख लिया जाता है जिससे अंतत: ग्लोबल वार्मिंग में बढ़ौतरी होती है।

उर्वरक और कीटनाशक

खेतों में फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली उर्वरक और कीटनाशक पर्यावरण के लिए हानिकारक है। ये केवल मिट्टी को ही प्रदूषित नहीं करते बल्कि पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसों को छोड़ते हैं जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए ज़िम्मेवार हैं।

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ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव

(i) ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने के साधनों के कारण कुछ वर्षों में इसका प्रभाव बिल्कुल स्पष्ट हो चुका है। अमेरिका के भूगर्भीय सर्वेक्षणों के अनुसार, मोंटाना ग्लेशियर राष्ट्रीय पार्क में 150 ग्लेशियर हुआ करते थे लेकिन इसके प्रभाव की वजह से अब सिर्फ 25 ही बचे हैं । (ii) बड़े जलवायु परिवर्तन से तूफान अब और खतरनाक और शक्तिशाली होता जा रहा है । तापमान अंतर से ऊर्जा लेकर प्राकृतिक तूफान बहुत ज्यादा शक्तिशाली हो जा रहे है। 1895 के बाद से साल 2012 को सबसे गर्म साल के रुप में दर्ज किया गया है और साल 2003 के साथ 2013 को 1880 के बाद से सबसे गर्म साल के रुप में दर्ज किया गया। (iii) ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बहुत सारे जलवायु परिवर्तन हुए है जैसे गर्मी के मौसम में बढ़ौतरी, ठंडी के मौसम में कमी,तापमान में वृद्धि, वायु-चक्रण के रुप में बदलाव, जेट स्ट्रीम, बिन मौसम बरसात, बर्फ की चोटियों का पिघलना, ओजोन परत में क्षरण, भयंकर तूफान, चक्रवात, बाढ़, सूखा आदि। (iv) अगर इस तरह से ग्लोबल वार्मिंग बढती रहेगी तो जो भी बर्फीले स्थान है वो पिघल कर अपना अस्तित्व खो देंगे। आजकल गर्मी और अधिक बढती जा रही है और सर्दियों में ठंड कम होती जा रही है। जब हम सर्वे को देखते हैं तो हमें पता चलता है कि पृथ्वी का तापमान धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। (v) कार्बन-डाइऑक्साइड गैस के बढने की वजह से कैंसर जैसी बीमारी हो सकती है। (vi) ग्लोबल वार्मिंग की वजह से रेगिस्तान का विस्तार होने के साथ-साथ पशु-पक्षियों की कई प्रजातियाँ भी विलुप्त हो रही हैं। (vii) ग्लोबल वार्मिंग के अधिक बढने की वजह से आक्सीजन की मात्रा भी कम होती जा रही है जिसकी वजह से ओजोन परत कमजोर होती जा रही है।

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ग्रीन हाउस गैसें वो गैसें होती हैं, जो पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश कर यहाँ का तापमान बढ़ाने में कारक बनती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इन गैसों का उत्सर्जन अगर इसी प्रकार चलता रहा तो 21वीं शताब्दी में पृथ्वी का तापमान 3 डिग्री से 8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो इसके परिणाम बहुत घातक होंगे। दुनिया के कई हिस्सों में बिछी बर्फ की चादरें पिघल जाएँगी, समुद्र का जल स्तर कई फीट ऊपर तक बढ़ जाएगा। समुद्र के इस बर्ताव से दुनिया के कई हिस्से जलमग्न हो जाएँगे, भारी तबाही मचेगी। यह तबाही किसी विश्व युद्ध या किसी ‘ऐस्टेराइड’ के पृथ्वी से टकराने के बाद होने वाली तबाही से भी बढ़कर होगी। हमारे ग्रह पृथ्वी के साथ-साथ मानवीय जीवन के लिये भी यह स्थिति बहुत हानिकारक होगी।

(i) सरकारी एजेंसियों, व्यापारिक नेतृत्व, निजी क्षेत्रों और एनजीओ आदि के द्वारा, जागरुकता अभियान चलाए जाने चाहिए। जागरूकता के अभियान का काम किसी भी एक राष्ट्र के करने से नहीं होगा इस काम को हर राष्ट्र के द्वारा करना जरूरी है। (ii) ग्लोबल वार्मिंग से बहुत तरह की हानियाँ हुई हैं जिन्हें ठीक तो नहीं किया जा सकता लेकिन ग्लोबल वार्मिंग को बढने से रोका जा सकता है जिससे बर्फीले इलाकों को पिघलने से बचाया जा सके। (iii) वाहनों और उद्योगों में हानिकारक गैसों के लिए समाधान किये जाने चाहिए जिससे ग्लोबल वार्मिंग को कम किया जा सके। (iv) जो चीज़ें ओजोन परत को हानि पहुँचाती हैं उन सभी चीजों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। हमें कुछ उपायों के द्वारा इसे बढने से रोकना होगा। (v) जिन वाहनों से प्रदूषण होता है उन पर रोक लगानी चाहिए। जितना हो सके प्रदूषण करने वाले वहनों का कम प्रयोग करना चाहिए जिससे प्रदूषण को कम किया जा सके। (vi) घर और ऑफिस में कम-से-कम एयर-कंडीशनर का प्रयोग करना चाहिए। एयर-कंडीशनर से निकलने वाली CFC गैसें वायुमंडल को गर्म करती हैं। (vii) पेड़ों की कटाई को रोककर अधिक-से-अधिक पेड़ लगाने चाहिए। (viii) सामान्य बल्बों की जगह पर कम ऊर्जा की खपत वाले बल्बों का प्रयोग करना चाहिए। (ix) जिन वस्तुओं को नष्ट नहीं किया जा सकता हैं उन्हें रिसाइक्लिंग की सहायता से दुबारा प्रयोग में लाना चाहिए। (x) लाईटों का कम प्रयोग करना चाहिए जब आवश्यकता हो तभी लाईटों का प्रयोग करना चाहिए। बिजली के साधनों का कम-से-कम प्रयोग करना चाहिए। (xi) गर्म पानी का बहुत ही कम प्रयोग करना चाहिए। (xii) पैकिंग करने वाले प्लास्टिक के साधनों का कम प्रयोग करना चाहिए। (xiii) जितना हो सके स्वच्छ ईंधन का प्रयोग करना चाहिए। (xiv) जल संरक्षण और वायु संरक्षण के लिए प्रयास करने चाहिए। (xv) हमें वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का कम से कम उत्सर्जन करना चाहिए और उन जलवायु परिवर्तनों को अपनाना चाहिये जो वर्षों से होते आ रहे है। (xvi) बिजली की ऊर्जा के बजाए शुद्ध और साफ ऊर्जा के इस्तेमाल की कोशिश करनी चाहिये अथवा सौर, वायु और जियोथर्मल से उत्पन्न ऊर्जा का इस्तेमाल करना चाहिये। (xvii) तेल जलाने और कोयले के इस्तेमाल, परिवहन के साधनों, और बिजली के सामानों के स्तर को घटाने से ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को घटाया जा सकता है। (xviii) जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण किया जाना चाहिए।

ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को गंभीरता से लेते हुए सभी देशों को एक-जुट हो कर कानून पारित करना चाहिए। लोगों को इसके परिणामों से अवगत करवाने के लिए सेमीनार करवाने चाहिए, ताकि सभी व्यक्ति इसके घातक परिणामों को जान सके और जागरूक हो सके। ये समस्या किसी एक की नहीं है बल्कि उन सभी की हैं जो धरती पर सांस ले रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का कोई इलाज नहीं है। इसके बारे में सिर्फ जागरूकता फैलाकर ही इससे लड़ा जा सकता है। हमें अपनी पृथ्वी को सही मायनों में ‘ग्रीन’ बनाना होगा। अपने ‘कार्बन फुटप्रिंट्स’(प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन को मापने का पैमाना) को कम करने के लिए जनसंख्या को बढ़ने से रोकना होगा। हम अपने आस-पास के वातावरण को प्रदूषण से जितना मुक्त रखेंगे, इस पृथ्वी को बचाने में उतनी ही बड़ी भूमिका निभाएँगे।

ग्लोबल वार्मिंग मानव के द्वारा ही विकसित प्रक्रिया है क्योंकि कोई भी परिवर्तन बिना किसी चीज को छुए अपने आप नहीं होता है। यदि ग्लोबल वार्मिंग को नहीं रोका गया तो इसका भयंकर रूप हमें आगे देखने को मिलेगा, जिसमें शायद पृथ्वी का अस्तित्व ही ना रहे इसलिए हम मानवों को सामंजस्य, बुद्धि और एकता के साथ मिलकर इसके बारे में सोचना चाहिए या फिर कोई उपाय ढूँढना अनिवार्य है, क्योंकि जिस ऑक्सीजन को लेकर हमारी साँसें चलती है, इन खतरनाक गैसों की वजह से कहीं वही साँसें थमने ना लगे। इसलिए तकनीकी और आर्थिक आराम से ज्यादा अच्छा प्राकृतिक सुधार जरूरी है। ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए जितने हो सकें उतने प्रयत्न ज़रूर करने चाहिए।

वृक्षारोपण के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा कम हो सके और प्रदूषण को कम किया जा सके।

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