Munshi Premchand Biography In Hindi – मुंशी प्रेमचंद की जीवनी

मुंशी प्रेमचंद का संछिप्त जीवन परिचय हिंदी में – (Munshi Premchand Biography in Hindi)

Munshi Premchand Biography in Hindi

नाम – धनपत राय श्रीवास्तव उर्फ़ नवाब राय उर्फ़ मुंशी प्रेमचंद पिता का नाम – अजीब राय माता का नाम – आनंदी देवी पत्नी – शिवरानी देवी व्यवसाय – अध्यापक, लेखक, पत्रकार जन्म स्थान – लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत जन्म तारीख – 31 जुलाई 1880 अवधि/काल – आधुनिक काल उल्लेखनीय कार्य – गोदान, कर्मभूमि, रंगभूमि, सेवासदन, निर्मला और मानसरोवर मृत्यु – 8 अक्टूबर, 1936 वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत

Munshi Premchand Biography in Hindi – मुंशी प्रेमचंद की जीवनी

Munshi Premchand Biography in Hindi – मुंशी प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू में महान लेखक थे, जिनका जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था। इनको नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता था। इनके पिता का नाम अजीब राय और माता का नाम आनंदी देवी था, पत्नी शिवरानी देवी थी। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योग्यदान को देखते हुए बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहा था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा को विकसित किया था, जिससे पूरी सदी के साहित्य को मार्गदर्शन मिला।

प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी थी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। प्रेमचंद को संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक के रूप में जाना जाता है। 20वी सदी के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में की तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उस समय इनके योग्यदान को अतुलनीय माना गया था।

मुंशी प्रेमचंद की रचना-दृष्टि बहुत सारे साहित्य रूपों में प्रवृत्त हुई। इन्होने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। इनको “‘उपन्यास सम्राट” की उपाधि मिली है। प्रेमचंद कुल १५ उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद,7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की लेकिन नाम और यश उनको उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई।

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शुरुआती जीवन परिचय –

1880 में जन्मे मुंशी प्रेमचंद वाराणसी शहर में रहते थे, उनके पिता वहीं लमही गाव में ही डाकघर के मुंशी थे, मुंशी प्रेमचन्द को नवाब राय नाम से ज्यादा जाना जाता है। इनका जीवन बहुत ही दुखदायी और कास्टपूर्ण रहा है, प्रेमचंद जी जब साथ साल के थे तभी उनकी माता का देहांत हो गया , उसके बाद उनके पिता की नौकरी यानि ट्रांसफर गोरखपुर हो गया, जहाँ इनके पिता ने दूसरी शादी कर ली, इनको अपनी सौतेली माँ से उतना अच्छा प्यार और दुलार नहीं मिला, 14 वर्ष की उम्र में इनके पिता का भी देहांत हो गया इस तरह से इनके बचपन में मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था।

इन सब के बाद प्रेमचंद बहुत टूट चुके थे घर का सारा भार अब उनके कन्धों पर आ गया था, इतनी समस्या हो गयी थी की उनके पास पहनने के लिए कपडे तक नहीं हुआ करते थे ऐसी हालात में उन्होंने एक दिन अपनी सभी किताबों को बेचने के लिए एक पुस्तक की दुकान पर पहुंचे वहां उन्हें एक स्कूल के हेड मास्टर मिले, हेड मास्टर ने देखा प्रेमचंद अपनी पुस्तकों को बेच रहे है तो उन्होंने प्रेमचंद को अपने वहां स्कूल में नौकरी दे दी। अपनी गरीबी से लड़ते हुए प्रेमचन्द ने अपनी पढ़ाई मैट्रिक तक पहुंचाई। वे अपने गाँव से दूर बनारस पढ़ने के लिए नंगे पाँव जाया करते थे। आगे चलकर वकील बनना चाहते थे। मगर गरीबी ने तोड़ दिया।

1921 में गांधी के आह्वान पर उन्होने अपनी नौकरी छोड़ दी। इसके बाद उन्होने ने मर्यादा नामक पत्रिका में सम्पादन का कार्य किया। उसके बाद उन्होंने 6 साल तक माधुरी नामक पत्रिका में संपादन का काम किया। वर्ष 1930 से 1932 के बीच उन्होने अपना खुद का मासिक पत्रिका हंस एवं साप्ताहिक पत्रिका जागरण निकलना शुरू किया। उन्होने ने मुंबई मे फिल्म के लिए कथा भी लिखी थी।

उनके कहानी पर एक फिल्म बनी थी जिसका नाम मजदुर था, यह 1934 में प्रदर्शित हुई। लेकिन फ़िल्मी दुनिया उसको पसंद नहीं आयी और वो वापस बनारस आ गए। मुंशी प्रेमचंद 1915 से कहानियां लिखना शुरू कर दिए थे। वर्ष 1925 में सरस्वती पत्रिका में सौत नाम से प्रकाशित हुई। वर्ष 1918 ई से उन्होने उपन्यास लिखना शुरू किया। उनके पहले उपन्यास का नाम सेवासदन है। प्रेमचंद ने लगभग 12 उपन्यास 300+ के करीब कहानियाँ कई लेख एवं नाटक लिखे है।

मुंशी प्रेमचंद से जुड़े कुछ रोचक तक्थ –

  • उन्होंने अपने जीवनकाल में तक़रीबन 300 लघु कथाये और 14 उपन्यास, बहुत से निबंध और पत्र भी लिखे है।
  • बहु-भाषिक साहित्यों का हिंदी अनुवाद भी किया है।
  • उनकी प्रसिद्ध रचनाओ का उनकी मृत्यु के बाद इंग्लिश अनुवाद भी किया गया
  • प्रेमचंद एक उच्चकोटि के इंसान थे।
  • 1900 में मुंशी प्रेमचंद को बहरीच के सरकारी Dist School में Assistant Teacher का जॉब भी मिल गयी थी जहाँ वो महीने के 20 रूपये सैलरी पाते थे।
  • कुछ ही महीनों के बाद उनका स्थानान्तरण प्रतापगढ़ की जिला स्कूल में हुआ, जहा वे एडमिनिस्ट्रेटर के बंगले में रहते थे और उनके बेटे को पढ़ाते थे।
  • प्रेमचंद ने अपना पहला लेख “नवाब राय” के नाम से ही लिखा था।
  • प्रेमचंद के सारे लेख और उपन्यास 8 अक्टूबर 1903 से फेब्रुअरी 1905 तक बनारस पर आधारित उर्दू साप्ताहिक आवाज़-ए-खल्कफ्रोम में प्रकाशित किये जाते थे।
  • उनके जीवन का ज्यादातर समय बनारस और लखनऊ में गुजरा।
  • आगे चलकर वो आधुनिक कथा साहित्य के जन्मदाता कहलाए, उन्हें कथा सम्राट की उपाधि प्रदान की गई।
  • अपनी कहानियों में प्रेमचंद ने मनुष्य के जीवन का सच्चा चित्र खींचा है।
  • 8 अक्टूबर 1936 को जलोदर रोग से उनका देहावसान हो गया।
  • उनके नाम से डाक टिकट भी जारी हुआ था।

मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध पुस्तकें –

• गोदान 1936 • कर्मभूमि 1932 • निर्मला 1925 • कायाकल्प 1927 • रंगभूमि 1925 • सेवासदन 1918 • गबन 1928 • नमक का दरोगा • पूस की रात • पंच परमेश्वर • माता का हृदय • नरक का मार्ग • वफ़ा का खंजर • पुत्र प्रेम • घमंड का पुतला • बंद दरवाजा • कायापलट • कर्मो का फल • कफन • बड़े घर की बेटी • राष्ट्र का सेवक • ईदगाह • मंदिर और मस्जिद • प्रेम सूत्र • माँ • वरदान • काशी में आगमन • बेटो वाली विधवा

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मुंशी प्रेमचंद की जीवनी | About Munshi Premchand Biography In Hindi

Premchand – मुंशी प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय प्रसिद्ध लेखक तथा उपन्यासकार में से एक हैं। उनका जन्म का नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, उन्होंने अपने दुसरे नाम “नवाब राय” के नाम से अपने लेखन की शुरुवात की लेकिन बाद में उन्होंने अपने नाम को बदलकर “प्रेमचंद” रखा। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ कहकर संबोधित किया था।

About Munshi Premchand Biography In Hindi

मुंशी प्रेमचंद का परिचय –  Hindi Writer Munshi Premchand Biography in Hindi

प्रेमचंद ने अपने जीवन में एक दर्जन से भी ज्यादा उपन्यास, तक़रीबन 300 लघु कथाये, बहुत से निबंध और कुछ विदेशी साहित्यों का हिंदी अनुवाद भी किया है। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे।

प्रारंभिक जीवन – Early Life of Munshi Premchand 

प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी केनिकट लमही गाँव में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी था। व पिता का नाम मुंशी अजायबराय था। उनके पिता लमही में डाकमुंशी (पोस्ट ऑफीस) थे। उनके पूर्वज विशाल कायस्थ परिवार से संबंध रखते थे, जिनके पास अपनी खुद की छह बीघा जमीन भी थी। उनके दादा गुर सहाई राय पटवारी थे। प्रेमचंद अपने माता-पिता के चौथे पुत्र थे। उनके माता-पिता ने उनका नाम धनपत राय रखा, जबकि उनके चाचा महाबीर ने उनका उपनाम “नवाब” रखा। प्रेमचंद द्वारा अपने लिए चुना गया पहला नाम “नवाब राय” था।

शिक्षा और शादी – Munshi Premchand Education

उनकी शिक्षा का आरंभ उर्दू, फारसी से हुआ और जीवनयापन का अध्यापन से पढ़ने का शौक उन्‍हें बचपन से ही लग गया। जब मुंशी प्रेमचंद 7 साल के थे तभी उन्होंने लालपुर की मदरसा में शिक्षा प्राप्त करना शुरू किया। मदरसा में प्रेमचंद ने मौलवी से उर्दू और फ़ारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया।

जब प्रेमचंद 8 साल के हुए तो उनके माँ की एक लंबी बीमारी के चलते मृत्यु हो गयी यही। उनकी दादी, ने बाद में प्रेमचंद को बड़ा करने की जिम्मेदारी उठाई, लेकिन वह भी कुछ दिनों बाद चल बसी। उस समय प्रेमचंद को अकेला महसूस होने लगा था, क्योकि उनकी बहन का भी विवाह हो चूका था और उनके पिता पहले से ही काम में व्यस्त रहते थे। और उनके पिता दोबारा शादी कर ली ताकि बच्चो की देखभाल हो सके लेकिन प्रेमचंद को अपने सौतेली माँ से उतना प्यार नही मिला जितना उन्हें चाहिये था। लेकिन प्रेमचंद को बनाने में उनकी सौतेली माँ का बहुत बड़ा हाथ रहा है।

13 साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ ‘शरसार’, मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनके पिता के जमनिया में स्थानांतरण होने के बाद 1890 के मध्य में प्रेमचंद ने बनारस के क्वीन कॉलेज में एडमिशन लिया।

1895 मे उन दिनों की परंपरा के अनुसार मात्र 15 साल की आयु में ही उनका पहला विवाह हो गया। उस समय वे सिर्फ 9 वी कक्षा की पढाई कर रहे थे। पत्नी उम्र में प्रेमचंद से बड़ी और बदसूरत थी। पत्नी की सूरत और उसके जबान ने उनके उपर जले पर नमक का काम किया। इस बारे मे प्रेमचंद स्वयं लिखते हैं, “उम्र में वह मुझसे ज्यादा थी। जब मैंने उसकी सूरत देखी तो मेरा खून सूख गया” उसके साथ – साथ जबान की भी मीठी न थी। उन्होने अपनी शादी के फैसले पर पिता के बारे में लिखा है “पिताजी ने जीवन के अन्तिम सालों में एक ठोकर खाई और स्वयं तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डुबो दिया: मेरी शादी बिना सोंचे समझे कर डाली।” हालांकि उनके पिताजी को भी बाद में इसका एहसास हुआ और काफी अफसोस किया।

1897 में एक लंबी बीमारी के चलते प्रेमचंद के पिता की मृत्यु हो गयी थी। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने उस समय दूसरी श्रेणी में मेट्रिक की परीक्षा पास कर ही ली। लेकिन क्वीन कॉलेज में केवल पहली श्रेणी के विद्यार्थियों को ही फीस कन्सेशन दिया जाता था। इसीलिए प्रेमचंद ने बाद में सेंट्रल हिंदु कॉलेज में एडमिशन लेने की ठानी लेकिन गणित कमजोर होने की वजह से वहा भी उन्हें एडमिशन नही मिल सका। इसीलिये उन्होंने पढाई छोड़ने का निर्णय लिया।

वे आर्य समाज से प्रभावित रहे, जो उस समय का बहुत बड़ा धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था। उन्होंने विधवा-विवाह का समर्थन किया और 1906 में दूसरा विवाह अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुरूप बाल-विधवा शिवरानी देवी से किया। उनकी तीन संताने हुईं- श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव।

प्रेमचन्द की आर्थिक विपत्तियों का अनुमान इस घटना से लगाया जा सकता है कि पैसे के अभाव में उन्हें अपना कोट बेचना पड़ा और पुस्तकें बेचनी पड़ी। एक दिन ऐसी हालत हो गई कि वे अपनी सारी पुस्तकों को लेकर एक बुकसेलर के पास पहुंच गए। वहाँ एक हेडमास्टर मिले जिन्होंने उनको अपने स्कूल में अध्यापक पद पर नियुक्त किया।

सादा एवं सरल जीवन के मालिक प्रेमचन्द सदा मस्त रहते थे। उनके जीवन में विषमताओं और कटुताओं से वह लगातार खेलते रहे। इस खेल को उन्होंने बाज़ी मान लिया जिसको हमेशा जीतना चाहते थे। कहा जाता है कि प्रेमचन्द हंसोड़ प्रकृति के मालिक थे। विषमताओं भरे जीवन में हंसोड़ होना एक बहादुर का काम है। इससे इस बात को भी समझा जा सकता है कि वह अपूर्व जीवनी-शक्ति का द्योतक थे। सरलता, सौजन्य और उदारता की वह मूर्ति थे। जहाँ उनके हृदय में मित्रों के लिए उदार भाव था वहीं उनके हृदय में ग़रीबों एवं पीड़ितों के लिए सहानुभूति का अथाह सागर था। प्रेमचन्द उच्चकोटि के मानव थे।

लेखन कार्य – Munshi Premchand Novels

धनपत राय ने अपना पहला लेख “नवाब राय” के नाम से ही लिखा था। उनका पहला लघु उपन्यास असरार ए मा’ बीड़ (हिंदी में – देवस्थान रहस्य) था जिसमे उन्होंने मंदिरों में पुजारियों द्वारा की जा रही लुट-पात और महिलाओ के साथ किये जा रहे शारीरिक शोषण के बारे में बताया। उनके सारे लेख और उपन्यास 8 अक्टूबर 1903 से फ़रवरी 1905 तक बनारस पर आधारित उर्दू साप्ताहिक आवाज़-ए-खल्कफ्रोम में प्रकाशित किये जाते थे।

1908 मे प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन अर्थात राष्ट्र का विलाप नाम से प्रकाशित हुआ। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत होने के कारण इस पर अंग्रेज़ी सरकार ने रोक लगा दी और इसके लेखक को भविष्‍य में इस तरह का लेखन न करने की चेतावनी दी। सोजे-वतन की सभी प्रतियाँ जब्त कर जला दी गईं। इस घटना के बाद प्रेमचंद के मित्र एवं ज़माना पत्रिका के संपादक  मुंशी दयानारायण निगम  ने उन्हे प्रेमचंद के नाम से लिखने की सलाह दिया। इसके बाद धनपत राय, प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे।

प्रेमचंद ने अपने जीवन में तक़रीबन 300 लघु कथाये और 14 उपन्यास, बहुत से निबंध और पत्र भी लिखे है। इतना ही नही उन्होंने बहुत से विदेशी साहित्यों का हिंदी अनुवाद भी किया है। प्रेमचंद की बहुत सी प्रसिद्ध रचनाओ का उनकी मृत्यु के बाद इंग्लिश अनुवाद भी किया गया है।

प्रेमचन्द की रचना-दृष्टि, विभिन्न साहित्य रूपों में, अभिव्यक्त हुई। वह बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। प्रेमचंद की रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया। उनकी कृतियाँ भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियाँ हैं।

मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु –

सन् 1936 ई में प्रेमचन्द बीमार रहने लगे। उन्होने इस बीमार काल में ही आपने “प्रगतिशील लेखक संघ” की स्थापना में सहयोग दिया। आर्थिक कष्टों तथा इलाज ठीक से न कराये जाने के कारण 8 अक्टूबर 1936 में आपका देहान्त हो गया। और इस तरह वह दीप सदा के लिए बुझ गया जिसने अपनी जीवन की बत्ती को कण-कण जलाकर भारतीयों का पथ आलोकित किया। मरणोपरान्त, उनके बेटे अमृत राय ने ‘कलम का सिपाही’ नाम से उनकी जीवनी लिखी है जो उनके जीवन पर विस्तृत प्रकाश डालती है।

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मुंशी प्रेमचंद की जीवनी – Munshi Premchand Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको मुंशी प्रेमचंद की जीवनी – Munshi Premchand Biography Hindi के बारे में बताएगे।

मुंशी प्रेमचंद की जीवनी – Munshi Premchand Biography Hindi

भारत के प्रसिद्ध लेखकों में जाने-माने मुंशी प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट भी कहा जाता है.

उनके उपन्यास हिंदी साहित्य की ऐसी विरासत है जिसके बिना हिंदी का विकास का अध्ययन अधूरा है.

आज भी मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास बहुत सी किताबों में आते हैं. आज आर्टिकल में हम आपको मुंशी प्रेमचंद के बारे में बताने जा रहे हैं.

जन्म – मुंशी प्रेमचंद की जीवनी

प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 वाराणसी के निकट लमही गांव में हुआ.

उनके पिता का नाम मुंशी अजायबराय लमही और उनकी माता का नाम आनंदी देवी था.

उनके पिता लमही में डाक मुंशी थे. मुंशी प्रेमचंद का मूल नाम धनपत राय था.

उनकी शिक्षा का आरंभ उर्दू, फारसी भाषा से हुआ. शुरुआत से ही उनको पढ़ने लिखने का बहुत ही शौक था. 13 वर्ष की आयु में उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरूबा पढ़ ली और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार के कई उपन्यास भी पढ़ें.

मेट्रिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद में उन्हें एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया. नौकरी करने के साथ-साथ उन्होंने पढ़ाई भी जारी राखी. उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास में इंटर पास किया और इसके बाद में बीए पास करने के बाद शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त किए गए.

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कार्य क्षेत्र – मुंशी प्रेमचंद की जीवनी

मुंशी प्रेमचंद एक अध्यापक, एक लेखक और एक पत्रकार है जिनके द्वारा कई उपन्यास लिखे गए, जिनमें से गोदान, कर्मभूमि, रंगभूमि, सेवासदन जैसे विख्यात उपन्यास शामिल है.

प्रेमचंद को आधुनिक हिंदी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट कहा जाता है. उनकी पहली हिंदी कहानी सरस्वती पत्रिका के नाम से प्रकाशित हुई थी और उनकी अंतिम कहानी का नाम कफन के नाम से रखा गया.

प्रेमचंद की कहानियां और उपन्यास

मुंशी प्रेमचंद द्वारा 118 कहानियों रचना की गई थी.

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  • प्रेम की वेदी

पुरस्कार और सम्मान

  • प्रेमचंद के याद में भारतीय डाक तार विभाग द्वारा 30 पैसे मूल्य का डाक टिकट जारी किया गया.
  • गोरखपुर के जिस स्कूल में मे को पढ़ाते थे वहीं पर प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई.
  • प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी ने प्रेमचंद घर के नाम से उनकी जीवनी लिखी.

निधन – मुंशी प्रेमचंद की जीवनी

मुंशी प्रेमचंद का निधन 8 अक्टूबर 1936 को वाराणसी उत्तर प्रदेश में हुआ.

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मुंशी प्रेमचंद की जीवनी Munshi Premchand Biography in Hindi

इस लेख में आप मुंशी प्रेमचंद की जीवनी Munshi Premchand Biography in Hindi हिन्दी में आप पढ़ेंगे। इसमें आप प्रेमचंद जी का परिचय, जन्म व प्रारंभिक जीवन, शिक्षा, साहित्य, निजी जीवन, मृत्यु जैसी की जानकारियाँ दी गई है।

प्रसिद्ध नाम – मुंशी प्रेमचंद Munshi Premchand जन्म – धनपत राय श्रीवास्तव, 31 जुलाई, 1880, लम्ही, उत्तर पश्चिम, ब्रिटिश भारत पिता – अजीब लाल माता – आनंद देवी व्यवसाय –  लेखक और उपन्यासकार भाषा – हिंदी और उर्दू राष्ट्रीयता – भारतीय प्रसिद्ध लेख – गोदान, बाज़ार-ए-हुस्न, कर्मभूमि, शतरंज के खिलाडी, गबन पत्नी- शिवरानी देवी बच्चों के नाम –   श्रीपत राय, अमृत राय, कमला देवी मृत्यु – 8 अक्टूबर 1936 को 56 वर्ष की आयु में वाराणसी, बनारस स्टेट, ब्रिटिश भारत

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मुंशी प्रेमचंद का परिचय Munshi Premchand Introduction in HIndi

साहित्य जगत को एक नई राह दिखाने वाले अमर साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद्र जी की सभी रचनाएं भारतीय साहित्य और कला की बेशकीमती धरोहर मानी जाती हैं। 

उनकी कलम में इतनी शक्ति थी, कि उनके द्वारा रचित प्रत्येक रचना में कई रहस्य छुपे रहते थे, जो किसी ना किसी प्रकार के संदेश स्वयं के भीतर समेटे हुए रहते थे। 

उर्दू व हिंदी के महान लेखकों में से एक मुंशी प्रेमचंद्र जी को बंगाल के प्रसिद्ध उपन्यासकार ‘शरतचंद्र चट्टोपाध्याय’ द्वारा “उपन्यास सम्राट” की उपाधि प्रदान की गई है। प्रेमचंद की रचनाएं यथार्थवाद और बहुमूल्य होती है। 

वे भारत के कुछ सबसे मशहूर ऐसे लेखकों में शामिल हैं, जिन्होंने आजादी में भी अपना योगदान दिया है। वह ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने लेखन, उपन्यासकार, साहित्यकार और नाटककार जैसे क्षेत्रों में भी गहरी पकड़ बना रखी थी। 

मुंशी प्रेमचंद्र का वास्तविक नाम ‘धनपत राय श्रीवास्तव’ था। वे मुख्यतः उर्दू और हिंदी भाषा में अपने विचारों को लिखना पसंद करते थे। साहित्य जगत में उनके बेमिसाल योगदान को देखते हुए हर साल उनके जन्मदिन पर “मुंशी प्रेमचंद्र जयंती” भी मनाई जाती है।

मुंशी प्रेमचंद का जन्म व प्रारंभिक जीवन Munshi Premchand Birth and Early Life in Hindi

उत्तर प्रदेश के वाराणसी के लमही नामक एक छोटे से गांव में 31 जुलाई 1880 में मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम अजायब राय और माता का नाम आनंदी देवी था।

कहा जाता है कि जब मुंशी प्रेमचंद सिर्फ 7 साल के थे, तभी उनकी माता का देहांत हो गया। बहुत छोटी उम्र में उनका विवाह संपन्न कर दिया गया। 

वे करीब 15 साल के रहे होंगे, जब उनके पिताजी ने उनसे बिना उनकी इच्छा जाने ही एक अमीर घराने की लड़की से मुंशी प्रेमचंद का विवाह करा दिया। 

अगले ही वर्ष जब वे 16 साल के हुए तभी उनके पिता भी चल बसे। मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन बड़े ही कठिनाइयों से गुजरा, जहां उनके ऊपर बहुत कम उम्र में ही गृहस्थ की जिम्मेदारियां भी लाद दी गई।

मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा Education of Munshi Premchand in Hindi

शुरूआत से ही मुंशी प्रेमचन्द को साहित्य और कला में गहरी दिलचस्पी थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा एक मदरसे में संपन्न हुई। जहां उन्होंने हिंदी और उर्दू के साथ थोड़ी बहुत अंग्रेजी भाषा के विषय में भी जाना। 

घर की मुश्किल परिस्थितियों को देखकर उन्होंने कम आमदनी पर छोटी सी नौकरी भी की, जहां उन्हें थोक मूल्य किताबों की बिक्री करने वाले व्यापारी के यहां काम मिला। उन्होंने अपनी पढ़ाई के साथ अपनी रुचि को भी और गहरा किया। 

पिता के देहांत हो जाने के बाद उन पर घर की जिम्मेदारियों का भार और भी बढ़ गया। इतनी कठिनाइयों के बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी और पूरी श्रद्धा से अपने काम में जुटे रहते थे। 

उन्होंने जैसे तैसे करके मैट्रिक की परीक्षा पास किया। आर्थिक परेशानियों के बावजूद उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए बनारस के कॉलेज में दाखिला लिया, जहां उन्होंने वर्ष 1919 में बीए की डिग्री हासिल की।

मुंशी प्रेमचंद का साहित्य में स्थान Literary Work by Munshi Premchand

करीब 13 साल की उम्र से ही मुंशी प्रेमचंद्र जी ने लेखन कार्य प्रारंभ कर दिया था। साहित्य की दुनिया में जब मुंशी प्रेमचंद जी ने अपना पहला कदम रखा, तब उन्होंने सामाजिक मुद्दों से जुड़ी ढेरों रचनाएं की। 

अपने पहले रचना का जिक्र के रुप में उन्होंने एक नाटक प्रस्तुत किया। जो दुर्भाग्य वश कभी प्रकाशित नहीं हुआ। मुंशी जी के उपलब्ध लेखनो में उनकी पहली रचना उर्दू भाषा में रचित उपन्यास ‘असरारे मआबिद’ थी, जिसे धारावाहिक में प्रकाशित भी किया गया था। 

तत्पश्चात इसका हिंदी रूपांतरण किया गया, जिसका नाम ‘देवस्थान रहस्य’ रखा गया। वर्ष 1907 में प्रकाशित हुआ मुंशी जी का दूसरा उपन्यास उर्दू भाषा में रचित हमखुर्मा व हमसवाब था।

वर्ष 1910 में मुंशी प्रेमचंद्र का पहला कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ, जिसका नाम ‘सोज़े – वतन’ (देश का विलाप) था। गौरतलब है कि मुंशीजी “नवाब” नाम से अपनी सभी रचनाएं लिखते थे। 

लेकिन देश भक्ति के रंग से ओतप्रोत उनकी इस रचना ने विदेशी सरकार के मन में भय खड़ा कर दिया, जिसके बाद उन्होंने इसकी सभी प्रतियां भी जप्त कर ली और मुंशी प्रेमचंद्र जी को इस तरह के लेख कभी न लिखने की चेतावनी भी दे डाली।

मुंशी प्रेमचंद्र जी अंग्रेजी सरकार द्वारा जनता के उत्पीड़न, शोषण और बाकी सामाजिक मुद्दों पर खुलकर लिखते थे। अक्सर उन्हें कोर्ट कचहरी में भी तलब कर लिया जाता था। जब उन पर लोगों को भड़काने के आरोप लगने लगे तो उन्होंने अपना नाम नवाब से बदलकर ‘प्रेमचंद्र’ रख लिया। 

बीसवीं सदी में प्रकाशित होने वाली प्रसिद्ध उर्दू ‘जमाना पत्रिका’ के संपादक तथा मुंशी जी के पुराने मित्र दया नारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद्र नाम रखने की सलाह दी थी।

इसके पश्चात प्रकाशित हुई मुंशी प्रेमचंद की अगली रचना ‘बड़े घर की बेटी’ बेहद लोकप्रिय हुई। वर्ष 1918 में प्रेमचंद्र का पहला हिंदी उपन्यास प्रकाशित होने के बाद बहुत प्रसिद्धि में आया जिसका नाम ‘सेवासदन’ था। इसके पश्चात मुंशी प्रेमचंद्र जी ने करीब 300 से भी अधिक कहानियां और ढेरों उपन्यास लिखें। 

जिस तरह अंधेरे में एक दीपक चारों तरफ उजाला कर देता है, उसी प्रकार मुंशी प्रेमचंद्र जी की रचनाएं भी गुलामी के दौर में लोगों में उत्साह भरने का काम करता था। स्वतंत्रता संघर्ष में अपनी भागीदारी दिखाते हुए प्रेमचंद्र जी ने गांधी जी के आवाहन पर वर्ष 1921 में अपनी नौकरी का त्याग कर दिया।

मुंशी प्रेमचंद का निजी जीवन Personal Life of Munshi Premchand in Hindi

अपने पहले वैवाहिक जीवन में कभी भी मुंशी प्रेमचंद्र सुखी नहीं रहे, ऐसा उनका मानना था। उनके पिता ने एक अमीर घराने की लड़की से मुंशी प्रेमचंद का विवाह 15 साल की कच्ची उम्र में ही कर दिया। 

अक्सर उनकी पत्नी और उनके बीच पारिवारिक मतभेद चलता ही रहता था। आखिरकार दोनों ने ही तलाक लेने का फैसला कर लिया, जिसके पश्चात वर्ष 1906 में शिवरानी देवी से मुंशी प्रेमचंद्र जी का दुसरा विवाह हो गया, जो कि एक बाल विधवा थी। 

सौभाग्य से उनका दूसरा विवाह सफल रहा। उनकी दूसरी पत्नी ने हर कदम पर मुंशी प्रेमचंद्र जी का साथ दिया, जिसके वजह से उनकी तरक्की दिन दुगना रात चौगुना होने लगी। 

मुंशी जी की पत्नी एक सुशिक्षित महिला थी, जिन्होंने मुंशी प्रेमचंद्र जी की गई कहानियों में भी शीर्षक पुस्तकों का निर्माण किया था। आगे कुछ समय बाद शिवरानी देवी और मुंशी प्रेमचंद्र की कुल तीन संताने हुई, जिनका नाम कमलादेवी श्रीवास्तव, अमृतराय तथा श्रीपत राय रखा गया।

मुंशी प्रेमचंद की 5 छोटी कहानियाँ 5 Short Stories of Munshi Premchand 

ठाकुर का कुआँ.

गांव में जोखू और गंगी नामक एक गरीब दंपत्ति रहता था, जो निचले वर्ग से ताल्लुक रखता था। उसी गांव में ठाकुर परिवार भी निवास करता था, जो बेहद अमीर और ऊंची जाति का था। जोखू और गंगी बड़े ही मुश्किल से अपना गुजारा कर पाते थे। 

अछूत माने जाने के कारण उन्हें ठाकुर के कुए से पानी पीने की इजाजत नहीं थी। एक दिन घर में पीने का पानी खत्म हो गया था। उस दौरान जोखू की तबीयत खराब चल रही थी और एक रात उसे बड़ी जोर की प्यास लगी।

गंगी ने उसे पानी ला कर दिया, लेकिन जैसे ही जोखू ने उसे पीने के लिए हाथ बढ़ाया उसे बड़ी ही बदबू आ रही थी। उनके पास शुद्ध पानी नहीं था। 

गंगी ने हिम्मत जुटाकर ठाकुर के कुएं से पानी लाने का निर्णय किया। यदि ऐसा करते हुए वह पकड़ी जाती तो लोग उसे अधमरा करके छोड़ देते। इसलिए सब के सो जाने के बाद ही उसने पानी लाने का निर्णय लिया। 

बर्तन के शोर-शराबे के बाद जब हवेली में कुछ लोगों को कुएं के पास किसी के होने की भनक लगी, तो गंगी कैसे भी अपनी जान बचा कर बिना पानी लिए ही वापस घर आ गई और उसने देखा कि जोखू वही बदबूदार गंदा पानी पी रहा था, यह देखकर गंगी अपने आंसू नहीं रोक सकी।

दो बैलों की कथा

यह कहानी हीरा और मोती नमक दो बैलों की हैं, जिन्हें झुरी ने बचपन से ही बड़े लाड प्यार से पालकर बड़ा किया था। एक दिन झुरी को किसी वजह से अपने ससुराल में अपने साले गया के पास अपनी दोनों बैलों को छोड़कर कहीं जाना पड़ा।

हीरा और मोती को यह लगा कि झूरी उन्हें किसी दूसरे मालिक को बेच दिया है। बहुत जल्द ही दोनों ही गया के चंगुल से छूट कर वापस घर पहुंच गई। यह देखकर झूरी तो बहुत खुश हुआ , लेकिन उसकी पत्नी इससे बड़ी गुस्सा हुई। 

दुसरी बार जब हीरा और मोती को गया के पास छोड़ा गया, तो वह उनके साथ बड़ा ही खराब रवैया अपनाने लागा। वह अपनी गायों को हष्ट पुष्ट चार डालता, लेकिन वही हीरा और मोती को खराब भूसा डाल देता था। एक दिन कैसे भी दोनों ही बेल रस्सी छुड़ाकर भाग निकले और मटर के खेत में पहुंच गए। 

वहां के लोगों ने हीरा और मोती को मटर का खेत बर्बाद करते देख लिया और उन्हें पकड़ कर बहुत यातनाएं दी। अंत में हीरा और मोती को एक कसाई के हाथों बेच दिया गया। 

जब कसाई उन्हें अपने साथ ले जा रहा था तभी हीरा और मोती ने अपने मालिक के घर का रास्ता पहचान लिया और दौड़ कर उसके पास पहुंच गई। बड़े दिनों से गुमशुदा हीरा और मोती को देखकर झूरी और उसकी पत्नी बहुत खुश हुए।

यह कहानी समाज के एक ऐसे चेहरे को प्रदर्शित करता है, जहां बड़े बुजुर्गों के साथ अपमान तथा अन्याय किया जाता है। इस कहानी में बुद्धिराम और उसकी पत्नी रूपा द्वारा बूढ़ी काकी को नीचा दिखा कर अपमानित किया जाता है। 

बूढ़ी काकी ने बुद्धिराम को गोद लिया था, जो कि उनका भतीजा लगता था। इसके पश्चात भी रूपा काकी को भरपेट खाना नहीं देती थी। और कई बार तो बूढ़ी काकी को भूखे पेट ही सोना पड़ता था। 

एक दिन घर में तिलक समारोह का कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जहां ढेर सारे व्यंजन, मिठाईयां, कचोरी इत्यादि बने थे। बुद्धिराम की पत्नी रूपा भले ही स्वभाव से क्रोधी थी, लेकिन वह भगवान से डरती थी। 

कार्यक्रम के दिन घर में स्वादिष्ट व्यंजन बनाए गए थे, लेकिन फिर भी बूढ़ी काकी एक कोने में सिमटी भूखी प्यासी बैठी थी। जब रूपा ने बूढ़ी काकी को बचे कुचे झूठे भोजन को चाटते देखा, तो उसे अंदर से बहुत आत्मग्लानि हुई। 

यू बूढ़ी काकी को जूठन खाते देख रूपा को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह भगवान से क्षमा मांगने लगी।

यह कहानी होरीराम नामक एक किसान की है, जिसके परिवार में उसकी पत्नी धनिया, दो बेटियां सपना और रूपा तथा एक बेटा गोबर रहता है। वह एक गरीब किसान होता है, जो बड़ी मुश्किल से अपने परिवार को पालता है। होरी और उसकी पत्नी की यह इच्छा होती है, की उनके पास भी एक गाय हो। 

एक दिन होरी को उसका एक मित्र भोला रास्ते में मिलता है। भोला की पत्नी का निधन हो जाता है, जिसके बाद वह दूसरी शादी करने का निर्णय लेता है और होरी से अपने लिए एक दुल्हन ढूंढने को कहता है। इसके बदले होरी भोला की गायों में से एक गाय की मांग करता है जिसके लिए भोला मान जाता है। 

भोला की विधवा बेटी झुनिया और गोबर एक दुसरे से प्रेम करते हैं। एक दिन गोबर झुनिया को गर्भवती करके अपने द्वार के सामने छोड़ कर शहर भाग जाता है। धर्म कर्म के कारण होरी और उसकी पत्नी झुनिया को बहु स्वीकार कर लेते हैं। 

लेकिन भोला को यह बिल्कुल भी पसंद नहीं आता है और वह होरी से अपनी मित्रता तोड़कर अपनी गाय को वापस करने को कहता है। तत्पश्चात पंचायत में भी षड्यंत्र से होरी को अपनी जमीन का आधा फसल हर्जाना भरना पड़ता है। 

कुछ दिनों बाद होरी की गाय को भी षड्यंत्र करके विश वाला चारा खिला दिया जाता है, जिससे गाय की मौत हो जाती है। कुछ दिनों बाद होरी की तबीयत बिगड़ जाती है और उसका निधन हो जाता है। 

इसके पश्चात होरी का अंतिम संस्कार करने के लिए धनिया पंडित बुलाती है, जो यह शर्त रखता है, कि धनिया को अपनी बिरादरी वालों को भोजन करवाना पड़ेगा और पंडित को एक गाय दान करनी होगी। 

धनिया सोचती है कि जीते जी तो उन्हें गाय का सुख नहीं मिल सका और अब गौदान। कुछ क्षण बाद धानिया भी जमीन पर गिर जाती है और उसकी मौत हो जाती है।

इस रचना में सामाजिक चुनौतियों को दर्शाया गया है, जहां ब्रिटिश साम्राज्य से संबंधित समस्या, गरीबी, छुआछूत , धार्मिक पाखंड, भारतीय नारियों की पवित्रता और सतीत्व की रक्षा से संबंधित परेशानियां इत्यादि ऐसे बहुत सारे मुद्दों पर बात की गई है। 

इसमें मुंशी प्रेमचंद द्वारा गांधीजी के आवाहन करने पर आंदोलन में कूदे लाखों लोगों के जीवन के विषय में भी बताया गया है, जहां अंग्रेजी सरकार द्वारा एक ही जेल में ठूंस ठूंस कर लोगों को रखा जा रहा है और उन पर अत्याचार किए जा रहे हैं। यह एक प्रकार से राजनीतिक उपन्यास का रूप ले लेता है।

मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं Major Literary Works by Munshi Premchand in Hindi

  • मुंशी प्रेमचंद जी की रचनाएं केवल हिंदी और उर्दू में ही नहीं बल्कि कई अन्य भाषाओं में भी प्रकाशित हुई है। उनके द्वारा रचित आज तक का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास ‘गोदान’ है। यह उपन्यास एक किसान के जीवन पर आधारित है, जिसने अकेले ही पूरे विश्व में सर्वाधिक प्रसिद्ध बटोरी है।
  • जितने भी प्रसिद्ध मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं हैं वे सभी इस प्रकार से लिखी गई हैं- असरारे मआबिद उर्फ़ देवस्थान रहस्य, सेवासदन, प्रेमाश्रम, निर्मला, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, गोदान, प्रतिज्ञा, प्रेमा, रंगभूमि, मनोरमा, वरदान, मंगलसूत्र (अपूर्ण)।
  • उनके द्वारा रचित सबसे प्रसिद्ध कहानियों में शामिल है- पूस की रात, बूढ़ी काकी, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, दो बैलों की कथा, कफन, ईदगाह, गुल्ली डंडा, और बंद दरवाजा इत्यादि।
  • अपने पूरे जीवन काल में मुंशी प्रेमचंद्र ने कुल 300 कहानियां 15 उपन्यास 7 बाल पुस्तकें 10 अनुवाद और 3 नाटकों की रचना की थी। इसके अलावा ऐसे सैकड़ों संपादन लेखों की भी रचना की थी, जिनकी गिनती करना बेहद कठिन है।

मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु Death of Premchand

हिंदी साहित्य जगत में क्रांति लाने वाले मुंशी प्रेमचंद्र काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। 8 अक्टूबर 1936 के दिन जलोदर रोग से लंबे समय से पीड़ित होने के कारण उनका देहावसान हो गया। 

मुंशी जी का निधन हिंदुस्तान कि साहित्य और कला जगत के लिए सबसे बड़ी क्षति थी। आज करोड़ों लोगों के दिलों में मुंशी प्रेमचंद्र जी अपनी रचनाओं के कारण जीवित हैं।

मुंशी प्रेमचंद जयंती Munshi Premchand Jayanti

एक ऐसे महान लेखक जिन्होंने अपनी कलम के प्रभाव से हजारों सत्य प्रतीत होने वाले रचनाओं का सृजन किया है, उनके अनमोल योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। 

मुंशी प्रेमचंद्र जी के जन्मदिन के अवसर पर प्रति वर्ष 31 जुलाई को मुंशी प्रेमचंद्र जयंती मनाया जाता है। साहित्य में रुचि रखने वाले दुनिया के तमाम लोग इस दिन हिंदी साहित्य के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद्र जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

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मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय | Munshi Premchand Biography in Hindi

Munshi Premchand Biography in Hindi

मुंशी प्रेमचंद की जीवनी [जन्म, शिक्षा, पुरुस्कार] और प्रसिद्द उपन्यास | Munshi Premchand Biography (Birth, Education, Awards) and Famous Novels in Hindi

हिन्दी की जीवंत कहानियों के पितामह जिनके साहित्य आधुनिक हिन्दी का मार्गदर्शन करते रहेंगे, साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखने वाले, ‘उपन्यास सम्राट’, संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता, सुधी संपादक, महान कथाकार, शोषित, वंचित, ख़ास तौर पर किसानों को अपने रचनाओं में जगह देने वाले अद्वितीय लेखक धनपत राय श्रीवास्तव उर्फ़ मुंशी प्रेमचंद जी प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी थे. समाज की फूटी कौड़ियों से लेकर बेशक़ीमती मोतियों तक को एक धागे में पिरो कर साहित्य की जयमाला बनाने वाले हिंदी कहानी के प्रतीक पुरुष मुंशी प्रेमचंद जी ने हिन्दी साहित्य को आधुनिक रूप प्रदान किया.

मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन परिचय (Munshi Premchand Biography)

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 में बनारस के लहमी गाँव में एक सामान्य परिवार में हुआ था. इनके पिताजी का नाम अजायब राय था. इनके पिता एक पोस्ट मास्टर थे. इनकी माता का नाम आनंदी देवी था. बचपन में एक गंभीर बीमारी के कारण इनकी माता का निधन हो गया था. जब मुंशी प्रेमचंद की उम्र सिर्फ आठ वर्ष थी. माता जी के देहांत के बाद बालक मुंशी का जीवन बड़े ही संघर्ष के साथ गुजरा. प्रेमचंद जी माता के प्यार से वंचित रह गए. मुंशी प्रेमचंद जी के पिताजी ने कुछ ही समय पश्चात दूसरा विवाह कर लिया.

बचपन से ही मुंशी प्रेमचंद की किताबें पड़ने में रूचि थी. इनकी प्रारंभिक शिक्षा अपने ही गाँव लहमी के एक मदरसे में पूरी हुई. जहाँ उन्होंने हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया. जिसके बाद इन्होने स्नातक की पढाई के लिए बनारस के महाविद्यालय में दाखिला लिया. आर्थिक कारणों के चलते उन्हें अपनी पढाई बीच में ही छोडनी पड़ी. जिसके बाद वर्ष 1919 में पुनः दाखिला लेकर आपने बी.ए की डिग्री प्राप्त की.

अपने स्कूल के समय में आर्थिक समस्याओं के चलते इन्होने पुस्तकों की दुकान पर भी कार्य किया. बचपन से प्रेमचंद जी पर जिम्मेदारियां आ गई थी. इनके पिताजी ने रुढ़िवादी विचारों के कारण बहुत ही कम उम्र ने मुंशी प्रेमचंद का विवाह कर दिया था. विवाह के वर्ष प्रेमचंद जी सिर्फ पंद्रह साल के थे. इनके पिताजी ने सिर्फ लड़की का परिवार आर्थिक रूप से संपन्न होने के कारण ही उनका विवाह करा दिया था. प्रेमचंद जी और उनकी पत्नी की बनती नहीं थी. मुंशी जी स्वयं अपनी किताब में लिखते हैं कि उनकी पत्नी उम्र में उनसे बड़ी और व्यवहार में बड़ी ही जिद्दी और झगड़ालू प्रवत्ति की थी.

विवाह के एक ही वर्ष पश्चात मुंशी जी के पिताजी की मृत्यु हो गई. जिसके बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी मुंशी जी पर आ गई. परिवार का खर्च चलाने के लिए इन्होने अपनी पुस्तकें तक बेच दी. इसी बीच इन्होनें एक विद्यालय में शिक्षण का भी कार्य किया. कुछ ही समय बाद मुंशी जी ने ख़राब संबंधों के चलते अपनी पत्नी से तलाक ले लिया और कुछ ही समय बाद लगभग 25 वर्ष की उम्र में एक विधवा औरत से दूसरा विवाह किया.

मुंशी प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यास और रचनाएँ (Munshi Premchand Novels and Poetry)

मुंशी प्रेम चंद की पहली प्रकाशित हिंदी पत्रिका का नाम “सौत” है. मुंशी प्रेमचंद ने उपन्यास, लेख, सम्पादकीय, कहानी, नाटक, समीक्षा, संस्मरण आदि कई रचनाएँ लिखीं. मुंशी प्रेमचंद ने कुल 15 उपन्यास लिखे थे जिनमे से प्रमुख उपन्यास कर्मभूमि, निर्मला, गोदान, गबन, अलंकार, प्रेमा, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, प्रतिज्ञा आदि हैं.

मुंशी प्रेमचंद ने कुल 300 से कुछ अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि लिखे हैं. जिनमे से मुख्य कहानियां ‘पंच परमेश्‍वर’, ‘गुल्‍ली डंडा’, ‘दो बैलों की कथा’, ‘ईदगाह’, ‘बड़े भाई साहब’, ‘पूस की रात’, ‘कफन’, ‘ठाकुर का कुआँ’, ‘सद्गति’, ‘बूढ़ी काकी’, ‘तावान’, ‘विध्‍वंस’, ‘दूध का दाम’, ‘मंत्र’ आदि हैं.

मुंशी प्रेमचंद डाक टिकट और सम्मान (Munshi Premchand Postage Stamp and Honours)

Munshi Premchand Postage Stamp

मुंशी प्रेमचंद हस्ताक्षर (Munshi Premchand Signature)

Munshi Premchand Signature

मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु (Munshi Premchand Death)

अपने जीवन के अंतिम दिनों में “मंगलसूत्र” उपन्यास लिख रहे थे. इस दौरान वे गंभीर रूप से बीमार थे और लम्बी बीमारी के चलते 8 अक्टूबर 1936 को मुंशी प्रेमचंद का निधन हो गया.

मुंशी प्रेमचंद के अनमोल वचन (Munshi Premchand Quotes)

  • “ऐश की भूख रोटियों से कभी नहीं मिटती, उसके लिए दुनिया के एक से एक उम्दा पदार्थ चाहिए.”

~मुंशी प्रेमचंद

  • “किसी किश्ती पर अगर फर्ज का मल्लाह न हो तो फिर उसके लिए दरिया में डूब जाने के सिवाय और कोई चारा नहीं.”
  • “मनुष्य का उद्धार पुत्र से नहीं, अपने कर्मों से होता है. यश और कीर्ति भी कर्मों से प्राप्त होती है. संतान वह सबसे कठिन परीक्षा है, जो ईश्वर ने मनुष्य को परखने के लिए दी है. बड़ी~बड़ी आत्माएं, जो सभी परीक्षाओं में सफल हो जाती हैं, यहाँ ठोकर खाकर गिर पड़ती हैं.”
  • “नीतिज्ञ के लिए अपना लक्ष्य ही सब कुछ है. आत्मा का उसके सामने कुछ मूल्य नहीं. गौरव सम्पन्न प्राणियों के लिए चरित्र बल ही सर्वप्रधान है.” “यश त्याग से मिलता है, धोखाधड़ी से नहीं.”
  • “जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में हैं, उनका सुख लूटने में नहीं.”
  • “लगन को कांटों कि परवाह नहीं होती.”
  • “उपहार और विरोध तो सुधारक के पुरस्कार हैं.”
  • “जब हम अपनी भूल पर लज्जित होते हैं, तो यथार्थ बात अपने आप ही मुंह से निकल पड़ती है.”
  • “अपनी भूल अपने ही हाथ सुधर जाए तो,यह उससे कहीं अच्छा है कि दूसरा उसे सुधारे.”
  • “विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला.”
  • “आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर है.”
  • “सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है.”
  • “डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है.”
  • “चिंता रोग का मूल है.”
  • “चिंता एक काली दिवार की भांति चारों ओर से घेर लेती है, जिसमें से निकलने की फिर कोई गली नहीं सूझती.”
  • “अतीत चाहे जैसा हो, उसकी स्मृतियाँ प्रायः सुखद होती हैं.”
  • “दुखियारों को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नहीं होते.”
  • “मै एक मज़दूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं.”
  • “निराशा सम्भव को असम्भव बना देती है.”
  • “बल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद कोई नहीं सुनता.”
  • “दौलत से आदमी को जो सम्‍मान मिलता है, वह उसका नहीं, उसकी दौलत का सम्‍मान है.”
  • “संसार के सारे नाते स्‍नेह के नाते हैं, जहां स्‍नेह नहीं वहां कुछ नहीं है.”
  • “जिस बंदे को पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए मर्यादा और इज्‍जत ढोंग है.”
  • “खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है, जीवन नाम है, आगे बढ़ते रहने की लगन का.”
  • “जीवन की दुर्घटनाओं में अक्‍सर बड़े महत्‍व के नैतिक पहलू छिपे हुए होते हैं.”
  • “कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं.”
  • “मन एक भीरु शत्रु है जो सदैव पीठ के पीछे से वार करता है.”
  • “चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुँचा सकता जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझ कर पी न जाएँ.”
  • “महान व्यक्ति महत्वाकांक्षा के प्रेम से बहुत अधिक आकर्षित होते हैं.”
  • “जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम न जागृत हो, जो हममें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करे, वह हमारे लिए बेकार है वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं है”
  • “आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपने घर की याद आती है.”
  • “जिस प्रकार नेत्रहीन के लिए दर्पण बेकार है उसी प्रकार बुद्धिहीन के लिए विद्या बेकार है.”
  • “न्याय और नीति लक्ष्मी के खिलौने हैं, वह जैसे चाहती है नचाती है.”
  • “युवावस्था आवेशमय होती है, वह क्रोध से आग हो जाती है तो करुणा से पानी भी.”
  • “अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर जाए तो यह उससे कहीं अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे.”
  • “देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता. उसके लिए सच्चा त्यागी होना आवश्यक है.”
  • “मासिक वेतन पूरनमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है.”
  • “क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात नहीं कहता, वह केवल दूसरों का दिल दुखाना चाहता है.”
  • “अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है.”
  • “दुखियारों को हमदर्दी के आँसू भी कम प्यारे नहीं होते”
  • “विजयी व्यक्ति स्वभाव से, बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है.”
  • “नमस्‍कार करने वाला व्‍यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है.”
  • “अच्‍छे कामों की सिद्धि में बड़ी देर लगती है, पर बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं.”
  • “स्वार्थ की माया अत्यन्त प्रबल है.”
  • “केवल बुद्धि के द्वारा ही मानव का मनुष्यत्व प्रकट होता है.”
  • “कार्यकुशल व्यक्ति की सभी जगह जरुरत पड़ती है.”
  • “दया मनुष्य का स्वाभाविक गुण है.”
  • “सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल रहते हैं.”
  • “कर्तव्य कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता. कर्तव्य~पालन में ही चित्त की शांति है.”
  • “नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है.”
  • “अन्याय में सहयोग देना, अन्याय करने के ही समान है.”
  • “आत्म सम्मान की रक्षा, हमारा सबसे पहला धर्म है.”
  • “मनुष्य कितना ही हृदयहीन हो, उसके ह्रदय के किसी न किसी कोने में पराग की भांति रस छिपा रहता है. जिस तरह पत्थर में आग छिपी रहती है, उसी तरह मनुष्य के ह्रदय में भी ~ चाहे वह कितना ही क्रूर क्यों न हो, उत्कृष्ट और कोमल भाव छिपे रहते हैं.”
  • “जो प्रेम असहिष्णु हो, जो दूसरों के मनोभावों का तनिक भी विचार न करे, जो मिथ्या कलंक आरोपण करने में संकोच न करे, वह उन्माद है, प्रेम नहीं.”
  • “मनुष्य बिगड़ता है या तो परिस्थितियों से अथवा पूर्व संस्कारों से. परिस्थितियों से गिरने वाला मनुष्य उन परिस्थितियों का त्याग करने से ही बच सकता है.”
  • “चोर केवल दंड से ही नहीं बचना चाहता, वह अपमान से भी बचना चाहता है. वह दंड से उतना नहीं डरता जितना कि अपमान से.”
  • “जीवन को सफल बनाने के लिए शिक्षा की जरुरत है, डिग्री की नहीं. हमारी डिग्री है – हमारा सेवा भाव, हमारी नम्रता, हमारे जीवन की सरलता. अगर यह डिग्री नहीं मिली, अगर हमारी आत्मा जागृत नहीं हुई तो कागज की डिग्री व्यर्थ है.”
  • “साक्षरता अच्छी चीज है और उससे जीवन की कुछ समस्याएं हल हो जाती है, लेकिन यह समझना कि किसान निरा मुर्ख है, उसके साथ अन्याय करना है.”
  • “दुनिया में विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई भी विद्यालय आज तक नहीं खुला है.”
  • “हम जिनके लिए त्याग करते हैं, उनसे किसी बदले की आशा ना रखकर भी उनके मन पर शासन करना चाहते हैं. चाहे वह शासन उन्हीं के हित के लिए हो.त्याग की मात्रा जितनी ज्यादा होती है, यह शासन भावना उतनी ही प्रबल होती है.”
  • “क्रोध अत्यंत कठोर होता है. वह देखना चाहता है कि मेरा एक-एक वाक्य निशाने पर बैठा है या नहीं. वह मौन को सहन नहीं कर सकता. ऐसा कोई घातक शस्त्र नहीं है जो उसकी शस्त्रशाला में न हो, पर मौन वह मन्त्र है जिसके आगे उसकी सारी शक्ति विफल हो जाती है.”
  • “कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुबाब दिखाने से नहीं.”
  • “सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल रहते हैं.”
  • “दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है.”

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मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय | Munshi Premchand Biography in Hindi (कहानियां, उपन्यास, रचनाएँ, दोहे, प्रसिद्ध कविता)

Munshi Premchand Biography in Hindi

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand Biography in Hindi) हिंदी साहित्य के क्षेत्र में मुंशी प्रेमचंद की गिनती सबसे साहित्यकारों में की जाती है  उनके द्वारा रचित रचना समाज को एक सही दिशा देने का काम करते हैं। हम आपको बता दें कि मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखी गई कहानी और उपन्यास पृष्ठभूमि आम लोगों के जीवन में घटित होने वाली घटना से संबंधित होती हैं। मुंशी प्रेमचंद की कलम ने समाज के सभी विषयों पर अपनी कलम चलाई थी और उनके द्वारा लिखे गए उपन्यास और कहानी का विषय हमारे जीवन से संबंधित थे | हिंदी साहित्य में 1918 से लेकर 1936 का समय प्रेमचंद युग के  नाम से जाना जाता हैं। मुंशी प्रेमचंद एक मशहूर उपन्यासकार कहानीकार और विचारक थे। उन्होंने कुल मिलाकर डेढ़ दर्जन उपन्यास और 300 कहानी लिखी थी |

ऐसे महान व्यक्तित्व के जीवन के बारे में जानने की उत्सुकता हर एक भारतीय के मन में रहती है कि आखिर में मुंशी प्रेमचंद कौन थे? प्रारंभिक जीवन’ शिक्षा ‘परिवार साहित्यिक करियर ‘प्रमुख रचनाएं’ विवाह मृत्यु  इत्यादि के बारे में अगर आप कुछ नहीं जानते हैं तो आज के आर्टिकल में हम आपको Munshi Premchand Jeevan Parichay के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी उपलब्ध करवाएंगे आपसे अनुरोध है कि आर्टिकल पर बने रहे हैं चलिए जानते हैं:-

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय हिंदी में | Munshi Premchand ji ka Jeevan Parichay- Overview

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मुंशी प्रेमचंद का शुरुआती जीवन ( Munshi Premchand Early Life)

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश, वाराणसी के लमही  गांव में हुआ था हम आपको बता देंगे  इनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था जब उनकी उम्र 6 साल की थी उनके मन का देहांत हो गया उसके बाद उनके पिताजी ने दूसरी शादी कर ली और उनकी सौतेली मां उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती थी  इसके बावजूद भी मुंशी प्रेमचंद अपना अधिकांश में पढ़ाई में व्यतीत करते थे और उन्हें बचपन में किताबें पढ़ने का बहुत ज्यादा शौक था  इसलिए मुंशी प्रेमचंद ने एक किताब की दुकान में काम कर लिया  जहां पर उन्हें किताबें पढ़ने के साथ-साथ पैसे भी मिला करते थे |

मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा (Munshi Premchand Education)

बाल अवस्था में मुंशी प्रेमचंद को काफी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा था  इसके बावजूद भी होगा लगातार अपनी शिक्षा पर ध्यान देते थ सन् 1898 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद इन्होंने एक स्थानीय स्कूल में शिक्षक का काम करना शुरू किया जहां परिवार बच्चों को पढ़ाई करते थे और अपनी शिक्षा भी इसी दौरान उन्होंने पूरी की 1910 में उन्होंने 12वीं की परीक्षा प्राप्त कर ली और उसके बाद  मुंशी जी ने फारसी, इतिहास और अंग्रेज़ी विषयों के क्षेत्र में उन्होंने 1919 में बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।  इसके बाद उन्हें शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर का पद मिल गया लेकिन 1921 में गांधी जी के द्वारा संचालित असहयोग आंदोलन के कारण उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी |

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मुंशी प्रेमचंद के बारे में व्यक्तिगत जानकारी

मुंशी प्रेमचंद का परिवार ( munshi premchand family), मुंशी प्रेमचंद का विवाह (munshi premchand’s marriage).

15 साल की उम्र में मुंशी प्रेमचंद ने शादी किया लेकिन शादी के बाद उनका वैवाहिक जीवन काफी असफल साबित हुआ उनकी पत्नी काफी झगड़ालू स्वभाव के लिए जिसके कारण उनके वैवाहिक जीवन में हमेशा लड़ाई झगड़ा हुआ करते थे जिसके कारण मुंशी प्रेमचंद ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया और उसके बाद  उन्होंने एक विधवा औरत से शादी की जिनका नाम शिवरानी देवी हैं।  विवाह के उपरान्त उन्हें तीन संतानें हुई जिनके नाम श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव थे। 

मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन (Literary Life of Munshi Premchand)

एक दर्जन उपन्यासों और 300 कहानी मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखी गई थी हम आपको बता दे कि उनकी कहानी की वास्तविकता जितनी मार्मिक आज है उतना उसे समय बिता हम आपको बताते हैं कि उसे वक्त उन्होंने ऐसी कई विषयों पर अपनी कलम चलाई थी | जो सामान्य लोगों के जीवन से संबंधित थे | उन्होंने कई पत्र पत्रिकाओं में भी अपनी कलम चलाई थी  जिसका विवरण नीचे दे रहा है:-

प्रेमचंद जी की प्रमुख रचनाओं के नाम | Names of Major Works of Premchand ji

प्रेमचंद ने अपने पूरे साहित्यिक जीवन काल में उपन्यास नाटक और कहानी लिखी थी जिसकी रचना का केंद्र बिंदु समाज में रहने वाला सामान्य नागरिकता और समाज में उसे समय जिस प्रकार की कुरीतियों और असमानता थी | उनका भी उन्होंने पुरजोर विरोध किया और अपने साहित्य के माध्यम से समाज में सामाजिक सुधार लाने का प्रयास किया था |

मुंशी प्रेमचंद जी की प्रमुख कहानियों की सूची

मुंशी प्रेमचंद ने कुल मिलाकर अपने साहित्यिक जीवन में 300 से अधिक कहानी लिखी हैं, उनके कहानियों का संग्रह मानसरोवर में संग्रहित है 1915 में प्रेमचंद की पहली कहानी सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई थी उनके सभी प्रमुख कहानियों की सूची का विवरण हम आपको नीचे दे रहे हैं:-

 मुंशी प्रेमचंद जी के प्रमुख उपन्यासों की सूची

मुंशी प्रेमचंद जी के प्रमुख नाटक | major plays of munshi premchand ji.

2.  संग्राम

3.  प्रेम की विधि

प्रेमचंद के जीवन संबंधी विवाद

Munshi Premchand Wikibio:- मुंशी प्रेमचंद महान रचनाकार होने के बावजूद भी उनका जीवन विवाद से भरा हुआ था हम आपको बता दें कि प्रेमचंद के अध्‍येता कमलकिशोर गोयनका ने अपनी पुस्‍तक ‘प्रेमचंद : अध्‍ययन की नई दिशाएं’ में  उन्होंने प्रेमचंद पर कई प्रकार के गंभीर आरोप लगाए हैं ताकि उनके साहित्य के महत्व और उनकी छवि को खराब किया जा सके उन्होंने अपने रचना में आरोप लगाया है कि प्रेमचंद ने अपनी पहली पत्नी को बिना किसी कारण से छोड़ा था और दूसरे विवाह होने के बावजूद भी उनका संबंध कई महिलाओं के साथ रहा जैसा की उनकी उनके दूसरी पत्नी शिवरानी देवी ने ‘प्रेमचंद घर में’ में उद्धृत किया है), इसके अलावा कहा जाता है कि मुंशी प्रेमचंद ने’जागरण विवाद’ में विनोदशंकर व्‍यास के साथ धोखा किया था |

इसके अलावा प्रेमचंद ने अपनी प्रेस के वरिष्‍ठ कर्मचारी प्रवासीलाल वर्मा के धोखाधड़ी जैसी घटना को अंजाम दिया था  प्रेमचंद के बारे में कहा जाता था कि उन्होंने अपनी बेटी की बीमारी को ठीक करने के लिए झाड़ फूंक का सहारा लिया था जबकि उन्होंने अपने कई साहित्यिक रचना में झाड़ फूंक अंधविश्वास बताया था  इतने आरोप लगाने के बाद भी मुंशी प्रेमचंद की अहमियत हिंदी साहित्य में अधिक है और लोग उनकी काबिलियत को सलाम करते हैं |

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय PDF

मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय का पीडीएफ (PDF) अगर आप प्राप्त करना चाहते हैं तो उसका विवरण हम आपको आर्टिकल में उपलब्ध करवाएंगे:-

Download PDF :

पुरस्कार व सम्मान (Awards And Honors)

मुंशी प्रेमचंद को अपने साहित्यिक जीवन में निम्नलिखित प्रकार के पुरस्कार और सम्मान दिए गए थे इसका विवरण हम आपको नीचे दे रहे हैं आई जानते हैं-

●  मुंशी प्रेमचंद के नाम का 30 पैसे डाक टिकट जारी किया गया है |

●  मुंशी प्रेमचंद के नाम पर प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है जिसमें बचपन समय में मुंशी प्रेमचंद पढ़ाई करते थे |

प्रेमचंद के अनमोल वचन | (Premchand’s Precious Words)

प्रेमचंद के द्वारा रचित अनमोल वचन कौन-कौन से हैं इसका संक्षिप्त और विस्तार पूर्व विवरण  नीचे आपको उपलब्ध करवा रहे हैं  चलिए जानते हैं-

Faq’s: Munshi Premchand Biography in Hindi

Q.2 मुंशी प्रेमचंद का जन्म कब और कहां हुआ था.

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था |

Q.3 मुंशी प्रेमचंद की कितनी रचनाएं हैं?

मुंशी प्रेमचंद ने कुल मिलाकर 300 से अधिक रचनाएं लिखी हैं। उनके सभी कहानियों का संग्रह मानसरोवर में संग्रहित किया गया है

Q.4 प्रेमचंद ने कौन सी भाषा लिखी थी?

प्रेमचंद अपनी रचना हिंदी और उर्दू में लिखा करते थे |

Q.5 प्रेमचंद का पहला उपन्यास कौन सा है?

प्रेमचंद का पहला उपन्यास सेवा सदन का जो 1918 में प्रकाशित हुआ था |

Q.6 मुंशी प्रेमचंद की मृत्यृ कब हुई?

1936 के बाद से मुंशी प्रेमचंद का  स्वास्थ्य खराब हो गया और पैसे की कमी के कारण उनका इलाज भी अच्छी तरह से नहीं हो पाया था  8 अक्टूबर 1936  को उन्होंने आखिरी सांस ली आज भले ही मुंशी प्रेमचंद इस दुनिया में नहीं है लेकिन हिंदी साहित्य में उनकी जगह कोई भी साहित्यकार ले नहीं सकता है और उन्होंने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में जिस प्रकार का योगदान दिया हैं।

Summary: मुंशी प्रेमचंद जीवनी (Munshi Premchand Jivani)

इस लेख में हमने Munshi Premchand Biography in Hindi  के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी उपलब्ध करवाई है ऐसे में आर्टिकल संबंधित कोई भी आप बहुमूल्य सुझाव या प्रश्न है तो आप हमारे कमेंट सेक्शन में जाकर पूछ सकते हैं उसका उत्तर हम आपको जरूर देंगे तब तक के लिए धन्यवाद और मिलते हैं अगले आर्टिकल में यदि आप बायोग्राफी संबंधित अपडेट जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप Easyhindi.in को Bookmark कर ले जैसे ही कोई नई पोस्ट पब्लिश की जाएगी उसकी जानकारी आपको नोटिफिकेशन के माध्यम से मिल जाएगा |

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Munshi Premchand Biography in Hindi | मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय

Munshi Premchand

मुंशी प्रेमचंद से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां

  • मुंशी प्रेमचंद एक भारतीय लेखक थे जो अपने कलम नाम मुंशी प्रेमचंद से अधिक लोकप्रिय हैं। उन्हें अपनी लेखन की विपुल शैली के लिए जाना जाता है। जिन्होंने भारतीय साहित्य की एक विशिष्ट शाखा “हिंदुस्तानी साहित्य” में कई उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाएँ दी हैं।

Munshi Premchand’s House in Lamahi Village, Varanasi

  • उनके दादा गुरु सहाय राय ब्रिटिश सरकार के अधिकारी थे और उन्होंने ग्राम भूमि रिकॉर्ड-कीपर का पद संभाला था; जिसे उत्तर भारत में “पटवारी” के नाम से जाना जाता है।
  • सात साल की उम्र में उन्होंने अपने गांव लमही के पास लालपुर में एक मदरसे में उर्दू की पढ़ाई करना शुरू कर दिया, जहां उन्होंने एक मौलवी से फारसी और उर्दू की शिक्षा प्राप्त की।
जिस तरह सूखी लकड़ी जल्दी से जल उठती है, उसी तरह क्षुधा (भूख) से बावला मनुष्य ज़रा-ज़रा सी बात पर तिनक जाता है।”
  • उनकी माँ के निधन के बाद प्रेमचंद को उनकी दादी ने पाला था; हालाँकि उनकी दादी की भी जल्द ही मृत्यु हो गई। इस हादसे ने प्रेमचंद को अपनी माँ से अकेला और बे-सहारा बना दिया; क्योंकि उनके पिता एक व्यस्त व्यक्ति थे जबकि उनकी बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी।

Tilism-e-Hoshruba

  • उन्होंने अपने जीवन में कुछ निबंधों, बच्चों की कहानियों और आत्मकथाओं के अलावा 14 उपन्यास और करीब 300 लघु कथाएँ लिखीं हैं।
बच्चों के लिए बाप एक फालतू-सी चीज – एक विलास की वस्तु है, जैसे घोड़े के लिए चने या बाबुओं के लिए मोहनभोग। माँ रोटी-दाल है। मोहनभोग उम्र-भर न मिले तो किसका नुकसान है; मगर एक दिन रोटी-दाल के दर्शन न हों, तो फिर देखिए, क्या हाल होता है।”
हमें अपने साहित्य का स्तर ऊंचा करना होगा, ताकि वह समाज की अधिक उपयोगी सेवा कर सके… हमारा साहित्य जीवन के हर पहलू पर चर्चा करेगा और उसका आकलन करेगा और हम अब अन्य भाषाओं और साहित्य के बचे हुए खाने से संतुष्ट नहीं होंगे। हम स्वयं अपने साहित्य की पूंजी बढ़ाएंगे।”
  • गोरखपुर प्रवास के दौरान उन्होंने अपनी पहली साहित्यिक रचना लिखी; हालाँकि यह कभी प्रकाशित नहीं हो सकी और अब खो भी गई।
  • 1890 के दशक के मध्य में अपने पिता की जमनिया में पोस्टिंग के बाद, प्रेमचंद ने बनारस के क्वींस कॉलेज में दाखिला लिया। क्वीन्स कॉलेज में 9वीं कक्षा में पढ़ते हुए उन्होंने एक अमीर जमींदार परिवार की लड़की से शादी कर ली। कथित तौर पर शादी उनके नाना ने तय की थी।

Queen’s College in Varanasi where Munshi Premchand studied

  • अपनी पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्होंने बनारस में एक वकील के बेटे को 5 रुपये के मासिक वेतन पर कोचिंग देना शुरू किया।
  • प्रेमचंद इतने उत्साही पाठक थे कि एक बार उन्हें कई कर्जों से छुटकारा पाने के लिए अपने पुस्तकों के संग्रह को बेचना पड़ा और यह एक ऐसी घटना के दौरान था जब वह अपनी एकत्रित पुस्तकों को बेचने के लिए एक किताब की दुकान पर गए थे। जिसके बाद वह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के चुनार में एक मिशनरी स्कूल के प्रधानाध्यापक से मिले, जहाँ उन्हें शिक्षक की नौकरी की पेशकश की। प्रेमचंद ने 18 रुपये के मासिक वेतन पर नौकरी स्वीकार कर ली।

Bust of Munshi Premchand in Pratapgarh

  • अपने पहले लघु उपन्यास ‘असरार ए माआबिद’ में उन्होंने छद्म नाम “नवाब राय” के तहत लिखा, उन्होंने गरीब महिलाओं के यौन शोषण और मंदिर के पुजारियों के बीच भ्रष्टाचार को संबोधित किया। हालाँकि उपन्यास को सिगफ्रीड शुल्ज और प्रकाश चंद्र गुप्ता जैसे साहित्यिक आलोचकों से आलोचना मिली, जिन्होंने इसे “अपरिपक्व काम” करार दिया।

A special issue of Urdu magazine Zamana

  • उनका दूसरा लघु उपन्यास ‘हमखुरमा-ओ-हमसवब’ जिसे उन्होंने छद्म नाम ‘बाबू नवाब राय बनारसी’ के तहत लिखा था। इस उपन्यास में उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के मुद्दे पर प्रकाश डाला; यह मुद्दा जो तत्कालीन रूढ़िवादी समाज में नीले रंग से बोल्ट की तरह था।

Soz-e-Watan By Premchand

  • उर्दू पत्रिका ज़माना के संपादक मुंशी दया नारायण निगम ने उन्हें छद्म नाम “प्रेमचंद” की सलाह दी थी।
  • वर्ष 1914 में जब प्रेमचंद ने पहली बार हिंदी में लेख लिखना शुरू किया, तब वह उर्दू के एक लोकप्रिय कथा लेखक बन चुके थे।

Saut By Munshi Premchand

  • हिंदी में उनका पहला प्रमुख उपन्यास “सेवासदन” (मूल रूप से उर्दू में बाज़ार-ए-हुस्न शीर्षक से लिखा गया) जिसे कलकत्ता स्थित प्रकाशक द्वारा 450 में ख़रीदा गया।
  • 8 फरवरी 1921 को गोरखपुर में महात्मा गांधी द्वारा आयोजित एक बैठक में भाग लेने के बाद, जहां गांधी ने असहयोग आंदोलन में योगदान देने के लिए लोगों को अपनी सरकारी नौकरी छोड़ने के लिए बुलाया था। प्रेमचंद ने गोरखपुर के नॉर्मल हाई स्कूल में अपनी नौकरी छोड़ने का फैसला किया; हालाँकि वह शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं थे और उनकी पत्नी भी उस समय अपने तीसरे बच्चे के साथ गर्भवती थी।
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  • ऐसा माना जाता है कि प्रेमचंद को बॉम्बे में गैर-साहित्यिक कार्यों का व्यावसायिक वातावरण पसंद नहीं था और 4 अप्रैल 1935 को बनारस लौट आए, जहाँ वह 1936 में अपनी मृत्यु तक रहे।
  • उनके अंतिम दिन आर्थिक तंगी से भरे थे और 8 अक्टूबर 1936 को लम्बी बीमारी के चलते उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के कुछ दिन पहले, प्रेमचंद को लखनऊ में प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अध्यक्ष के रूप में चुना गया था।
जीत कर आप अपने धोखेबाजियों की डींग मार सकते हैं, जीत में सब-कुछ माफ है। हार की लज्जा तो पी जाने की ही वस्तु है।”
  • रवींद्रनाथ टैगोर और इकबाल जैसे अपने समकालीन लेखकों के विपरीत उन्हें भारत के बाहर ज्यादा सराहना नहीं मिली। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति न मिलने का कारण यह माना जाता है कि उन्होंने कभी भारत से बाहर यात्रा नहीं की और न ही विदेश में अध्ययन किया था।
हममें खूबसूरती का मायार बदला होगा (हमें सुंदरता के मापदंडों को फिर से परिभाषित करना होगा)।”
सबसे ज्यादा प्रसन्न है हामिद। वह चार-पांच साल का गरीब-सूरत, दुबला-पतला लड़का, जिसका बाप गत वर्ष हैजे की भेंट हो गया और मां न जाने क्यों पीली होती-होती एक दिन मर गई। किसी को पता न चला, क्या बीमारी है। कहती भी तो कौन सुनने वाला था। दिल पर जो बीतती थी, वह दिल ही में सहती और जब न सहा गया तो संसार से विदा हो गई। अब हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोद में सोता है और उतना ही प्रसन्न है। उसके अब्बाजान रुपए कमाने गए हैं। बहुत-सी थैलियां लेकर आएंगे। अम्मीजान अल्लाह मियां के घर से उसके लिए बड़ी अच्छी-अच्छी चीजें लाने गई है, इसलिए हामिद प्रसन्न है। आशा तो बड़ी चीज है और फिर बच्चों की आशा! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती हैं।”

Google Doodle celebrates Premchand on his 136th birthday

  • मुंशी प्रेमचंद की साहित्यिक कृतियों से प्रेरित होकर कई हिंदी फिल्में, नाटक और टेलीविजन धारावाहिक बने हैं।

Mahatma Gandhi Biography in Hindi | महात्मा गांधी जीवन परिचय

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मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand

writer premchand biography in hindi

प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई सन् 1880 को बनारस शहर से चार मील दूर लमही गाँव में हुआ था। आपके पिता का नाम अजायब राय था। वह डाकखाने में मामूली नौकर के तौर पर काम करते थे।

धनपतराय की उम्र जब केवल आठ साल की थी तो माता के स्वर्गवास हो जाने के बाद से अपने जीवन के अन्त तक लगातार विषम परिस्थितियों का सामना धनपतराय को करना पड़ा। पिताजी ने दूसरी शादी कर ली जिसके कारण बालक प्रेम व स्नेह को चाहते हुए भी ना पा सका।  कहा जाता है कि आपके घर में भयंकर गरीबी थी। पहनने के लिए कपड़े न होते थे और न ही खाने के लिए पर्याप्त भोजन मिलता था। इन सबके अलावा घर में सौतेली माँ का व्यवहार भी हालत को खस्ता कर रहा था।

आपके पिता ने केवल 15 वर्ष की आयु में आपका विवाह करा दिया। पत्नी उम्र में आपसे बड़ी और बदसूरत थी। पत्नी की सूरत और उसके जबान ने आपके जले पर नमक का काम किया। आप स्वयं लिखते हैं, "उम्र में वह मुझसे ज्यादा थी। जब मैंने उसकी सूरत देखी तो मेरा खून सूख गया।" उसके साथ-साथ जबान की भी मीठी न थी। आपने अपनी शादी के फैसले पर पिता के बारे में लिखा है "पिताजी ने जीवन के अन्तिम सालों में एक ठोकर खाई और स्वयं तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डुबो दिया: मेरी शादी बिना सोंचे समझे कर डाली।" हालांकि आपके पिताजी को भी बाद में इसका एहसास हुआ और काफी अफसोस किया।

विवाह के एक वर्ष बाद ही पिताजी का देहान्त हो गया। अचानक आपके सिर पर पूरे घर का बोझ आ गया। एक साथ पाँच लोगों का खर्चा सहन करना पड़ा। पाँच लोगों में विमाता, उसके दो बच्चे पत्नी और स्वयं। प्रेमचन्द की आर्थिक विपत्तियों का अनुमान इस घटना से लगाया जा सकता है कि पैसे के अभाव में उन्हें अपना कोट बेचना पड़ा और पुस्तकें बेचनी पड़ी। एक दिन ऐसी हालत हो गई कि वे अपनी सारी पुस्तकों को लेकर एक बुकसेलर के पास पहुंच गए। वहाँ एक हेडमास्टर मिले जिन्होंने आपको अपने स्कूल में अध्यापक पद पर नियुक्त किया।

अपनी गरीबी से लड़ते हुए प्रेमचन्द ने अपनी पढ़ाई मैट्रिक तक पहुंचाई। जीवन के आरंभ में आप अपने गाँव से दूर बनारस पढ़ने के लिए नंगे पाँव जाया करते थे। इसी बीच पिता का देहान्त हो गया। पढ़ने का शौक था, आगे चलकर वकील बनना चाहते थे। मगर गरीबी ने तोड़ दिया। स्कूल आने - जाने के झंझट से बचने के लिए एक वकील साहब के यहाँ ट्यूशन पकड़ लिया और उसी के घर एक कमरा लेकर रहने लगे। ट्यूशन का पाँच रुपया मिलता था। पाँच रुपये में से तीन रुपये घर वालों को और दो रुपये से अपनी जिन्दगी की गाड़ी को आगे बढ़ाते रहे। इस दो रुपये से क्या होता महीना भर तंगी और अभाव का जीवन बिताते थे। इन्हीं जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों में मैट्रिक पास किया।

साहित्यिक रुचि

गरीबी, अभाव, शोषण तथा उत्पीड़न जैसी जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी प्रेमचन्द के साहित्य की ओर उनके झुकाव को रोक न सकी। प्रेमचन्द जब मिडिल में थे तभी से आपने उपन्यास पढ़ना आरंभ कर दिया था। आपको बचपन से ही उर्दू आती थी। आप पर नॉवल और उर्दू उपन्यास का ऐसा उन्माद छाया कि आप बुकसेलर की दुकान पर बैठकर ही सब नॉवल पढ़ गए। आपने दो - तीन साल के अन्दर ही सैकड़ों नॉवेलों को पढ़ डाला।

आपने बचपन में ही उर्दू के समकालीन उपन्यासकार सरुर मोलमा शार, रतन नाथ सरशार आदि के दीवाने हो गये कि जहाँ भी इनकी किताब मिलती उसे पढ़ने का हर संभव प्रयास करते थे। आपकी रुचि इस बात से साफ झलकती है कि एक किताब को पढ़ने के लिए आपने एक तम्बाकू वाले से दोस्ती करली और उसकी दुकान पर मौजूद "तिलस्मे - होशरुबा" पढ़ डाली।

अंग्रेजी के अपने जमाने के मशहूर उपन्यासकार रोनाल्ड की किताबों के उर्दू तरजुमो को आपने काफी कम उम्र में ही पढ़ लिया था। इतनी बड़ी - बड़ी किताबों और उपन्यासकारों को पढ़ने के बावजूद प्रेमचन्द ने अपने मार्ग को अपने व्यक्तिगत विषम जीवन अनुभव तक ही महदूद रखा।

तेरह वर्ष की उम्र में से ही प्रेमचन्द ने लिखना आरंभ कर दिया था। शुरु में आपने कुछ नाटक लिखे फिर बाद में उर्दू में उपन्यास लिखना आरंभ किया। इस तरह आपका साहित्यिक सफर शुरु हुआ जो मरते दम तक साथ - साथ रहा।

प्रेमचन्द की दूसरी शादी

आपकी पहली पत्नी पारिवारिक कटुताओं के कारण घर छोड़कर मायके चली गई फिर वह कभी नहीं आई। विच्छेद के बावजूद कुछ सालों तक वह अपनी पहली पत्नी को खर्चा भेजते रहे। 1905 के अन्तिम दिनों में आपने शिवरानी देवी से शादी कर ली। शिवरानी देवी एक बाल विधवा थी और विधवा के प्रति आप सदा स्नेह के पात्र रहे थे।

दूसरी शादी के पश्चात् आपके जीवन में परिस्थितियां कुछ बदली और आय की आर्थिक तंगी कम हुई। आपके लेखन में अधिक सजगता आई। आपकी पदोन्नति हुई तथा आप स्कूलों के डिप्टी इन्सपेक्टर बना दिये गए। इसी खुशहाली के जमाने में आपकी पाँच कहानियों का संग्रह 'सोजे वतन' प्रकाश में आया। यह संग्रह काफी मशहूर हुआ।

सादा एवं सरल जीवन के मालिक प्रेमचन्द सदा मस्त रहते थे। उनके जीवन में विषमताओं और कटुताओं से वह लगातार खेलते रहे। इस खेल को उन्होंने बाजी मान लिया जिसको हमेशा जीतना चाहते थे। अपने जीवन की परेशानियों को लेकर उन्होंने एक बार मुंशी दयानारायण निगम को एक पत्र में लिखा "हमारा काम तो केवल खेलना है- खूब दिल लगाकर खेलना- खूब जी-तोड़ खेलना, अपने को हार से इस तरह बचाना मानों हम दोनों लोकों की संपत्ति खो बैठेंगे। किन्तु हारने के पश्चात् - पटखनी खाने के बाद, धूल झाड़ खड़े हो जाना चाहिए और फिर ताल ठोंक कर विरोधी से कहना चाहिए कि एक बार फिर जैसा कि सूरदास कह गए हैं, "तुम जीते हम हारे। पर फिर लड़ेंगे।" कहा जाता है कि प्रेमचन्द हंसोड़ प्रकृति के मालिक थे। विषमताओं भरे जीवन में हंसोड़ होना एक बहादुर का काम है। इससे इस बात को भी समझा जा सकता है कि वह अपूर्व जीवनी-शक्ति का द्योतक थे। सरलता, सौजन्यता और उदारता के वह मूर्ति थे।

जहां उनके हृदय में मित्रों के लिए उदार भाव था वहीं उनके हृदय में गरीबों एवं पीड़ितों के लिए सहानुभूति का अथाह सागर था। जैसा कि उनकी पत्नी कहती हैं "कि जाड़े के दिनों में चालीस - चालीस रुपये दो बार दिए गए दोनों बार उन्होंने वह रुपये प्रेस के मजदूरों को दे दिये। मेरे नाराज होने पर उन्होंने कहा कि यह कहां का इंसाफ है कि हमारे प्रेस में काम करने वाले मजदूर भूखे हों और हम गरम सूट पहनें।"

प्रेमचन्द उच्चकोटि के मानव थे। आपको गाँव जीवन से अच्छा प्रेम था। वह सदा साधारण गंवई लिबास में रहते थे। जीवन का अधिकांश भाग उन्होंने गाँव में ही गुजारा। बाहर से बिल्कुल साधारण दिखने वाले प्रेमचन्द अन्दर से जीवनी-शक्ति के मालिक थे। अन्दर से जरा सा भी किसी ने देखा तो उसे प्रभावित होना ही था। वह आडम्बर एवं दिखावा से मीलों दूर रहते थे। जीवन में न तो उनको विलास मिला और न ही उनको इसकी तमन्ना थी। तमाम महापुरुषों की तरह अपना काम स्वयं करना पसंद करते थे।

ईश्वर के प्रति आस्था

जीवन के प्रति उनकी अगाढ़ आस्था थी लेकिन जीवन की विषमताओं के कारण वह कभी भी ईश्वर के बारे में आस्थावादी नहीं बन सके। धीरे - धीरे वे अनीश्वरवादी से बन गए थे। एक बार उन्होंने जैनेन्दजी को लिखा "तुम आस्तिकता की ओर बढ़े जा रहे हो - जा रहीं रहे पक्के भग्त बनते जा रहे हो। मैं संदेह से पक्का नास्तिक बनता जा रहा हूँ।"

मृत्यू के कुछ घंटे पहले भी उन्होंने जैनेन्द्रजी से कहा था - "जैनेन्द्र, लोग ऐसे समय में ईश्वर को याद करते हैं मुझे भी याद दिलाई जाती है। पर मुझे अभी तक ईश्वर को कष्ट देने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई।"

प्रेमचन्द की कृतियाँ

प्रेमचन्द ने अपने नाते के मामू के एक विशेष प्रसंग को लेकर अपनी सबसे पहली रचना लिखी। 13 साल की आयु में। 1894 में "होनहार बिरवार के चिकने-चिकने पात" नामक नाटक की रचना की। 1898  में एक उपन्यास लिखा। लगभग इसी समय "रुठी रानी" नामक दूसरा उपन्यास जिसका विषय इतिहास था, की रचना की। 1902 में प्रेमा और 1904 -05  में "हम खुर्मा व हम सवाब" नामक उपन्यास लिखे गए। इन उपन्यासों में विधवा-जीवन और विधवा-समस्या का चित्रण प्रेमचन्द ने काफी अच्छे ढंग से किया।

जब कुछ आर्थिक निर्जिंश्चतता आई तो 1907 में पाँच कहानियों का संग्रह सोजे वतन (वतन का दुख दर्द) की रचना की, जैसाकि इसके नाम से ही मालूम होता है, इसमें देश प्रेम और देश को जनता के दर्द को रचनाकार ने प्रस्तुत किया। अंग्रेज शासकों को इस संग्रह से बगावत की झलक मालूम हुई। इस समय प्रेमचन्द नवाबराय के नाम से लिखा करते थे। लिहाजा नवाबराय की खोज शुरु हुई। नवाबराय पकड़ लिये गए। उस दिन आपके सामने ही आपकी इस कृति को अंग्रेजी शासकों ने जला दिया और बिना आज्ञा न लिखने का बंधन लगा दिया गया।

इस बंधन से बचने के लिए प्रेमचन्द ने दयानारायण निगम को पत्र लिखा और उनको बताया कि वह अब कभी नयाबराय या धनपतराय के नाम से नहीं लिखेंगे तो मुंशी दयानारायण निगम ने पहली बार प्रेमचन्द नाम सुझाया। यहीं से धनपतराय हमेशा के लिए प्रेमचन्द हो गये।

"सेवा सदन", "मिल मजदूर" तथा 1935 में गोदान की रचना की। गोदान आपकी समस्त रचनाओं में सबसे अधिक लोकप्रिय हुई।  अपने जीवन के अंतिम दिनों में 'मंगलसूत्र' उपन्यास लिखना आरंभ किया। दुर्भाग्यवश मंगलसूत्र को अधूरा ही छोड़ गये। इससे पहले उन्होंने महाजनी और पूँजीवादी युग प्रवृत्ति की निन्दा करते हुए "महाजनी सभ्यता" नाम से एक लेख भी लिखा था।

1936 में प्रेमचन्द बीमार रहने लगे। अपने इस बीमार काल में ही आपने "प्रगतिशील लेखक संघ" की स्थापना में सहयोग दिया। आर्थिक कष्टों तथा इलाज ठीक से न कराये जाने के कारण 8 अक्टूबर 1936 को आपका देहान्त हो गया। इस तरह यह दीप सदा के लिए बुझ गया जिसने अपनी जीवन की बत्ती को कण-कण जलाकर हिंदी साहित्य का पथ आलोकित किया।

Author's Collection

प्रेमचंद की सर्वोत्तम 15 कहानियां.

मुंशी प्रेमचंद को उनके समकालीन पत्रकार बनारसीदास चतुर्वेदी ने 1930 में उनकी प्रिय रचनाओं के बारे में प्रश्न किया, "आपकी सर्वोत्तम पन्द्रह गल्पें कौनसी हैं?"

प्रेमचंद ने उत्तर दिया, "इस प्रश्न का जवाब देना कठिन है। 200 से ऊपर गल्पों में कहाँ से चुनूँ, लेकिन स्मृति से काम लेकर लिखता हूँ -

  • बड़े घर की बेटी
  • रानी सारन्धा
  • नमक का दरोगा
  • मन्दिर और मसजिद

पुत्र-प्रेम

बाबू चैतन्यदास ने अर्थशास्त्र खूब पढ़ा था, और केवल पढ़ा ही नहीं था, उसका यथायोग्य व्यवहार भी वे करते थे। वे वकील थे, दो-तीन गांवों में उनकी जमींदारी भी थी, बैंक में भी कुछ रुपये थे। यह सब उसी अर्थशास्त्र के ज्ञान का फल था। जब कोई खर्च सामने आता तब उनके मन में स्वभावतः: प्रश्न होता था - इससे स्वयं मेरा उपकार होगा या किसी अन्य पुरुष का? यदि दो में से किसी का कुछ भी उपकार न होता तो वे बड़ी निर्दयता से उस खर्च का गला दबा देते थे। ‘व्यर्थ' को वे विष के समाने समझते थे। अर्थशास्त्र के सिद्धांत उनके जीवन-स्तम्भ हो गये थे।

प्रेमचंद की लघुकथाएं

प्रेमचंद के लघुकथा साहित्य की चर्चा करें तो प्रेमचंद ने लघु आकार की विभिन्न कथा-कहानियां रची हैं। इनमें से कुछ लघु-कथा के मानक पर खरी उतरती है व अन्य लघु-कहानियां कही जा सकती हैं। प्रेमचंद की लघु-कथाओं में - कश्मीरी सेब, राष्ट्र का सेवक, देवी, बंद दरवाज़ा, व बाबाजी का भोग प्रसिद्ध हैं। यह पृष्ठ प्रेमचंद की लघु-कथाओं को समर्पित है।

हल्कू ने आकर स्त्री से कहा-सहना आया है, लाओ, जो रुपए रखे हैं, उसे दे दूँ। किसी तरह गला तो छूटे। मुन्नी झाड़ू लगा रही थी। पीछे फिर कर बोली-तीन ही तो रुपए हैं, दे दोगे तो कंबल कहाँ से आवेगा? माघ-पूस की रात हार में कैसे कटेगी? उससे कह दो, फसल पर रुपए दे देंगे। अभी नहीं।

प्रेम की होली

गंगी का सत्रहवाँ साल था, पर वह तीन साल से विधवा थी, और जानती थी कि मैं विधवा हूँ, मेरे लिए संसार के सुखों के द्वार बन्द हैं। फिर वह क्यों रोये और कलपे? मेले से सभी तो मिठाई के दोने और फूलों के हार लेकर नहीं लौटते? कितनों ही का तो मेले की सजी दुकानें और उन पर खड़े नर-नारी देखकर ही मनोरंजन हो जाता है। गंगी खाती-पीती थी, हँसती-बोलती थी, किसी ने उसे मुँह लटकाये, अपने भाग्य को रोते नहीं देखा। घड़ी रात को उठकर गोबर निकालकर, गाय-बैलों को सानी देना, फिर उपले पाथना, उसका नित्य का नियम था। तब वह अपने भैया को गाय दुहाने के लिए जगाती थी। फिर कुएँ से पानी लाती, चौके का धन्धा शुरू हो जाता। गाँव की भावजें उससे हँसी करतीं, पर एक विशेष प्रकार की हँसी छोड़क़र सहेलियाँ ससुराल से आकर उससे सारी कथा कहतीं, पर एक विशेष प्रसंग बचाकर। सभी उसके वैधव्य का आदर करते थे। जिस छोटे से अपराध के लिए, उसकी भावज पर घुड़कियाँ पड़तीं, उसकी माँ को गालियाँ मिलतीं, उसके भाई पर मार पड़ती, वह उसके लिए क्षम्य था। जिसे ईश्वर ने मारा है, उसे क्या कोई मारे! जो बातें उसके लिए वर्जित थीं उनकी ओर उसका मन ही न जाता था। उसके लिए उसका अस्तित्व ही न था। जवानी के इस उमड़े हुए सागर में मतवाली लहरें न थीं, डरावनी गरज न थी, अचल शान्ति का साम्राज्य था।

सद्गति | प्रेमचंद की कहानी

दुखी चमार द्वार पर झाडू लगा रहा था और उसकी पत्नी झुरिया, घर को गोबर से लीप रही थी। दोनों अपने-अपने काम से फुर्सत पा चुके थे, तो चमारिन ने कहा, 'तो जाके पंडित बाबा से कह आओ न। ऐसा न हो कहीं चले जाएं जाएं।'

मेरा जीवन सपाट, समतल मैदान है, जिसमें कहीं-कहीं गढ़े तो हैं, पर टीलों, पर्वतों, घने जंगलों, गहरी घाटियों और खण्डहरों का स्थान नहीं है। जो सज्जन पहाड़ों की सैर के शौकीन हैं, उन्हें तो यहाँ निराशा ही होगी। मेरा जन्म सम्वत् १९६७ में हुआ। पिता डाकखाने में क्लर्क थे, माता मरीज। एक बड़ी बहिन भी थी। उस समय पिताजी शायद २० रुपये पाते थे। ४० रुपये तक पहुँचते-पहुँचते उनकी मृत्यु हो गयी। यों वह बड़े ही विचारशील, जीवन-पथ पर आँखें खोलकर चलने वाले आदमी थे; लेकिन आखिरी दिनों में एक ठोकर खा ही गये और खुद तो गिरे ही थे, उसी धक्के में मुझे भी गिरा दिया। पन्द्रह साल की अवस्था में उन्होंने मेरा विवाह कर दिया और विवाह करने के साल ही भर बाद परलोक सिधारे। उस समय मैं नवें दरजे में पढ़ता था। घर में मेरी स्त्री थी, विमाता थी, उनके दो बालक थे, और आमदनी एक पैसे की नहीं। घर में जो कुछ लेई-पूँजी थी, वह पिताजी की छ: महीने की बीमारी और क्रिया-कर्म में खर्च हो चुकी थी। और मुझे अरमान था, वकील बनने का और एम०ए० पास करने का। नौकरी उस जमाने में भी इतनी ही दुष्प्राप्य थी, जितनी अब है। दौड़-धूप करके शायद दस-बारह की कोई जगह पा जाता; पर यहाँ तो आगे पढ़ने की धुन थी-पाँव में लोहे की नहीं अष्टधातु की बेडिय़ाँ थीं और मैं चढऩा चाहता था पहाड़ पर!

प्रेमचंद के आलेख व निबंध

प्रेमचंद के साहित्य व भाषा संबंधित निबंध व भाषण 'कुछ विचार' नामक संग्रह में संकलित हैं। इसके अतिरिक्त 'साहित्य' का उद्देश्य में प्रेमचंद की अधिकांश सम्पादकीय टिप्पणियां संकलित हैं।

यहाँ प्रेमचंद के भाषण, आलेख व निबंधों को संकलित किया जा रहा है। निसंदेह यह संकलन पाठकों को साहित्यकार प्रेमचंद को एक विचारक के रूप में भी समझने का अवसर प्रदान करेगा।

प्रेमचंद ने कहा था

  • बनी हुई बात को निभाना मुश्किल नहीं है, बिगड़ी हुई बात को बनाना मुश्किल है। [रंगभूमि]
  • क्रिया के पश्चात् प्रतिक्रिया नैसर्गिक नियम है। [ मानसरोवर - सवासेर गेहूँ]
  • रूखी रोटियाँ चाँदी के थाल में भी परोसी जायें तो वे पूरियाँ न हो जायेंगी। [सेवासदन]
  • कड़वी दवा को ख़रीद कर लाने, उनका काढ़ा बनाने और उसे उठाकर पीने में बड़ा अन्तर है। [सेवासदन]
  • चोर को पकड़ने के लिए विरले ही निकलते हैं, पकड़े गए चोर पर पंचलत्तिया़ जमाने के लिए सभी पहुँच जाते हैं। [रंगभूमि]
  • जिनके लिए अपनी ज़िन्दगानी ख़राब कर दो, वे भी गाढ़े समय पर मुँह फेर लेते हैं। [रंगभूमि]
  • मुलम्मे की जरूरत सोने को नहीं होती। [कायाकल्प]
  • सूरज जलता भी है, रोशनी भी देता है। [कायाकल्प]
  • सीधे का मुँह कुत्ता चाटता है। [कायाकल्प]
  • उत्सव आपस में प्रीति बढ़ाने के लिए मनाए जाते है। जब प्रीति के बदले द्वेष बढ़े, तो उनका न मनाना ही अच्छा है। [कायाकल्प]
  • पारस को छूकर लोहा सोना होे जाता है, पारस लोहा नहीं हो सकता। [ मानसरोवर - मंदिर]
  • बिना तप के सिद्धि नहीं मिलती। [मानसरोवर - बहिष्कार]
  • अपने रोने से छुट्टी ही नहीं मिलती, दूसरों के लिए कोई क्योकर रोये? [मानसरोवर -जेल]
  • मर्द लज्जित करता है तो हमें क्रोध आता है। स्त्रियाँ लज्जित करती हैं तो ग्लानि उत्पन्न होती है। [मानसरोवर - जलूस]
  • अगर माँस खाना अच्छा समझते हो तो खुलकर खाओ। बुरा समझते हो तो मत खाओ; लेकिन अच्छा समझना और छिपकर खाना यह मेरी समझ में नहीं आता। मैं तो इसे कायरता भी कहता हूँ और धूर्तता भी, जो वास्तव में एक है।

प्रेमचंद कुछ संस्मरण

प्रेमचंद अपनी वाक्-पटुता के लिए भी प्रसिद्ध हैं। धीर-गंभीर दिखने वाले 'प्रेमचंद' कर्म और वाणी के धनी थे। प्रेमचंद के बहुत से किस्से कहे-सुने जाते हैं। यहाँ उन्हीं संस्मरणों को आपके लिए संकलित किया जा रहा है।

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प्रेमचन्द का जीवन परिचय | Biography 0f Premchand In Hindi | PremChand Ka Jivan Parichay

हिन्दी कथा साहित्य के कुशल चितेरे मुंशी प्रेमचंद को हिंदी तथा उर्दू भाषा के सर्वकालिक महान लेखकों में से एक माना जाता है । उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य का वह सूरज है जिसकी चमक कभी कम नहीं हो सकती ।

उनकी कहानियों के पात्र आम जन-जीवन के इतने निकट होते हैं कि उन्हें समाज के हर वर्ग में देखा जा सकता है । प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, इन्हें नवाब राय तथा प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है।

उपन्यास लेखन के क्षेत्र में प्रेमचंद के योगदान को देखते हुए बंगाल के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार शरदचंद्र चट्टोपाध्याय ने इन्हे उपन्यास सम्राट के नाम से संबोधित किया था ।

साथ ही इनके प्रसिद्ध साहित्यकार पुत्र अमृत राय ने इन्हें कलम का सिपाही नाम दिया । हिंदी साहित्य जगत में अमर उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद को अत्यंत गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है।

सामाजिक कुरीतियों तथा मानव जीवन के प्रत्येक पहलू को इन्होंने अपनी सशक्त लेखनी द्वारा इतने सजीव और मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया है कि पुस्तक पढ़ते समय कहानी के पात्र पाठक की आंखों के आगे सहज ही किसी चलचित्र की भांति साकार हो उठते हैं।

प्रिय पाठकों ! प्रेमचन्द का जीवन परिचय | Biography of Premchand in Hindi | premchand ka jivan parichay लेख के माध्यम से हम आपको बता रहे हैं कि हिंदी साहित्य के प्रथम उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद भारत के उन महान लेखकों में से थे जिन्होंने अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों, रूढिवादियों एवं शोषणकर्ताओं पर कुठाराघात करके अपने पाठकों को न केवल स्वस्थ मनोरंजन दिया बल्कि सामाजिक बुराइयों के दुष्परिणाम को उजागर करते हुए जड़ से समाप्त करने का संदेश दिया।

लगभग आधी शताब्दी का समय बीत जाने के बाद भी प्रेमचंद की कथावस्तु का ताना-बाना हम समाज में ठीक वैसा ही पाते हैं । तो चलिए दोस्तों जानते हैं प्रेमचंद कि जीवनी/ कहानी के बारे में –

Table of Contents

प्रेमचन्द का जीवन परिचय | Biography Of Premchand In Hindi | PremChand Ka Jivan Parichay

प्रेमचन्द का जीवन परिचय ( premchand ji ka jeevan parichay )- munshi premchand biography in hindi.

मुंशी प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई, 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से लगभग छः किलोमीटर दूर लमही गांव में एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनका असली नाम धनपतराय था। उनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल था, और माता का नाम आनन्दी देवी था ।

पिता डाकघर में मुंशी के पद पर सरकारी नौकरी करते थे। मुंशी प्रेमचंद बचपन में बहुत नटखट और शैतान बालक थे । उन्हें मिठाई के रूप में गुड़ खाने का बहुत शौक था । उस जमाने में उर्दू भाषा का सरकारी काम-काज की भाषा में विशेष प्रभाव था।

प्रेमचन्द के घराने में सभी उर्दू के जानकार थे, अतः पिता ने उन्हें भी प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू में दिलाने की शुरूआत की। गांव के करीब लालगंज नामक गांव में एक मौलवी के पास उन्हें उर्दू-फारसी शिक्षा के लिए भेजा ।

प्रेमचंद की शिक्षा-दीक्षा – Education of Premchand

आरम्भिक शिक्षा मौलवियों से प्राप्त करने वाले प्रेमचन्द ने मैट्रिक की परीक्षा 1898 में पास कर ली थी । और उसके बाद स्थानीय विद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे । नौकरी के साथ-साथ इन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा ।

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इन्होंने 1910 में इतिहास, दर्शन, फारसी और अंग्रेजी में इण्टर की परीक्षा पास की और 1919 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य, फारसी व इतिहास विषयों में द्वितीय श्रेणी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की, फिर शिक्षा विभाग में डिप्टी इंस्पेक्टर बने ।

Biography Of Premchand In Hindi

व्यक्तिगत जीवन – Personal Life (Premchand ki Jivani)

प्रेमचंद कायस्थ परिवार से थे, उनका परिवार बड़ा था और मात्र 6 बीघा जमीन थी । प्रेमचंद के दादाजी गुरु सहाय लाल एक पटवारी थे। पिता डाक मुंशी थे जिनका वेतन लगभग ₹25 प्रतिमाह था । उनकी माता आनंदी देवी कुशल गृहिणी थीं ।

घरेलू वातावरण ऐसा था कि पिता नौकरी पर तो मां घरेलू काम-काज में ! बच्चा पढ़ रहा है या नहीं, इस बात को देखने वाला कोई न था। यही वजह थी कि प्रेमचन्द का स्वभाव खिलन्दड़ बन गया।

थोड़ी सी पढ़ाई, ढेरों खेल बचपन के खिलन्दड़ दिनों को प्रेमचन्द कभी न भूले। उनके उपन्यास और कहानियों में जगह-जगह उन दिनों के खेलों का जिक्र मिल जाता है। मां के साथ दादी का लाड़ प्यार भी खूब मिलता था।

इस तरह बचपन के दिन प्रेमचन्द के खूब मौज-मस्ती में गुजरे । पर, अभी उनकी उम्र सात साल की ही थी कि मां ऐसी गम्भीर रूप से बीमार पड़ीं कि उठ न सकीं।

बालक धनपत को बेसहारा छोड़कर मां इस दुनिया से सिधार गयीं। मां के निधन से जीवन में आयी रिक्तता का वर्णन मुंशी प्रेमचन्द ने अपने उपन्यासों में जगह-जगह लिखा है।

उनके पिता ने 2 वर्ष बाद ही दूसरा विवाह कर लिया। प्रेमचंद को छोटी उम्र में ही सौतेली माँ का साथ मिला, निश्चित ही सौतेली मां से शायद उन्हें वह ममता प्राप्त नहीं हुई, जो एक माँ से प्राप्त होती है, शायद इसी कारण उनकी रचनाओं में कई जगहों पर सौतेली मां का वर्णन है।

प्रेमचंद का विवाह – Marriage of Premchand

15 वर्ष की छोटी उम्र में ही प्रेमचंद का विवाह हो गया । उनकी यह शादी उनके सौतेले नाना के द्वारा कराई गई थी। उस समय की रचनाओं के विवरण से ऐसा लगता है कि उनकी पत्नी ना तो देखने में ही सुंदर थी और शायद झगड़ालू प्रवृत्ति की थी।

इन सब कारणों से उनका यह विवाह लंबा नहीं चल सका, और उन्होंने अपनी पत्नी से संबंध विच्छेद कर लिया। शादी के एक वर्ष बाद ही उनके पिता का निधन हो गया, और परिवार का पूरा बोझ इन पर ही आ गया । उन्हें पाँच लोगों के परिवार का खर्च उठाना पड़ता था।

उनके आर्थिक संकट का पता इस बात से चलता है कि उन्होंने पैसों के अभाव के कारण अपना कोट और किताबें बेच दीं थीं ।

प्रेमचंद का दूसरा विवाह – Second Marriage of Premchand

सन् 1906 में प्रेमचंद ने शिवरानी देवी नाम की एक बाल-विधवा से दूसरा विवाह कर लिया । शिवरानी देवी से उनको तीन संतान थी – श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी ।

शिवरानी देवी के पिता फतेहपुर के पास रहने वाले एक जमीदार थे। समय के उस दौर में एक विधवा से विवाह करने वाले प्रेमचंद के साहसी व्यक्तित्व का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

दूसरे विवाह के पश्चात प्रेमचंद की परिस्थितियों में बदलाव आया, आर्थिक संकट कम हो गए, वह अपने लेखन कार्य को अधिक सजगता से करने लगे , और उनकी पदोन्नति हुई और वे स्कूलों के डिप्टी इंस्पेक्टर बन गए ।

ये प्रेमचंद जी के खुशहाली के दिन थे , इन्ही दिनों इनकी पाँच कहानियों का संग्रह “सोज़े वतन” प्रकाशित हुआ , और बहुत लोकप्रिय हुआ।

प्रेमचंद की साहित्यिक रूचि – Literary Interest of Premchand

Premchand Ki Jivani in Hindi में उनकी साहित्यिक रुचि के बारे में आपको यहाँ बताने जा रहे हैं- प्रेमचंद को बचपन से ही पढ़ने का बड़ा शौक था।

उन्होंने उस जमाने के मशहूर लेखकों रतननाथ सरसार , मिर्जा रुसवा और मौलाना शरर की कृतियों को बड़े चाव से पढ़ा और उसका मनन किया।

“ तिलिस्म होशरुबा ” उस जमाने की बहुत मशहूर तिलिस्मी और अय्यारी कथानक पर आधारित पुस्तक थी, कई खण्डों में थी, उन्होंने वह बारह-तेरह साल की उम्र में पूरी पढ़ डाली थी।

अंग्रेजी भाषा में लिखी लेखक रेनाल्ड की “मिस्ट्रीज ऑफ द कोर्ट ऑफ लन्दन” भी उन्होंने पढ़ी। मौलाना सज्जाद हुसैन की हास्य कृतियों का भी अध्ययन किया।

अय्यारी, तिलिस्म, रहस्य-रोमांच, हास्य कृतियों का शौक से अध्ययन करने वाले प्रेमचन्द उन विषयों के एकदम विपरीत सामाजिक जीवन पर आधारित उपन्यास और कहानियां कैसे लिखने लगे।

यह जरा ताज्जुब की बात लगती पर शायद कुदरत ने उन्हें कलम के सिपाही के रूप में ही उतारा था। सिपाही बनकर सामाजिक जीवन की व्यथा की कलम के माध्यम से रक्षा की और जीवन भर उसी काम में लगे रहे।

प्रेमचन्द का साहित्यिक परिचय- Literary Introduction of Premchand

प्रेमचन्द ने अपनी लेखनी की शुरूआत भी उर्दू भाषा में की। धनपत राय के बजाय उन्होंने नवाबराय के नाम से लिखना आरम्भ किया।

उनकी पहली कहानी मात्र 17 वर्ष की उम्र में, 1907 में ज़माना पत्रिका में प्रकाशित हुई। कहानी का शीर्षक था ‘संसार का सबसे अनमोल रत्न’ ।

लेखन की शुरूआत की तो लिखते चले गये और कहानियां छपती चली गयीं। 1910 में उनका पहला कहानी संग्रह “सोज़े-वतन” ( राष्ट्र का विलाप ) शीर्षक से छपकर बाजार में आया ( क्योंकि यह राष्ट्रभक्ति की भावना से ओतप्रोत था ) तो अंग्रेज सरकार के कान खड़े हुए।

सोजे वतन के लिए हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने प्रेमचंद को तलब किया , तथा उन पर अपनी पुस्तक सोजे वतन के माध्यम से जनता को भड़काने का आरोप लगाया गया ।

सोज़े-वतन को जब्त कर उसकी प्रतियां जला दी गयीं। कलम के सिपाही पर कलम चलाने की पाबन्दी लग गयी। प्रेमचंद उस समय नवाब राय के नाम से लिखा करते थे।

नवाब राय पर सरकारी तौर पर अनेक प्रतिबन्ध लग गये। इन प्रतिबन्धों के कारण वे नवाब राय के नाम से न लिख सकते थे।

तब, उस समय के प्रसिद्ध पत्रकार प्रेमचंद के अभिन्न मित्र ज़माना पत्रिका के सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें नया नाम दिया – प्रेमचन्द ।

और इसके बाद वे प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे। पत्रिका के लेखन कार्य की शुरुआत उन्होंने जमाना पत्रिका से ही शुरू की।

प्रेमचंद पर महात्मा गाँधी जी का प्रभाव – Influence of Mahatma Gandhi on Premchand

सन् 1920 में, महात्मा गाँधी जी के आन्दोलन से प्रभावित होकर उनके आह्वान पर प्रेमचन्द ने सरकारी नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया ।

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प्रेमचंद का कार्य क्षेत्र – Premchand’s Work Area

नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद कुछ समय तक मर्यादा पत्रिका का संपादन किया, फिर लगभग 6 वर्ष तक माधुरी नाम की एक अन्य पत्रिका का संपादन भी किया ।

फिर 1930 में बनारस में ही रहते हुए प्रेमचंद जी ने अपना ही स्वयं का एक मासिक पत्र हंस के नाम से प्रकाशित किया तत्पश्चात 1932 में जागरण नाम का एक और साप्ताहिक पत्र शुरू किया ।

1934 में रिलीज हुई मजदूर नामक फिल्म की कथा का लेखन इन्होंने ही किया परन्तु मुंबई (बम्बई) की सभ्यता और फिल्मी दुनिया की आवों-हवा उन्हें रास ना आई और अपने 1 वर्ष का कॉन्ट्रैक्ट का समय पूरा किए बगैर ही अपने 2 महीने की पगार छोड़कर बनारस वापस आ गए ।

1936 में उन्होंने अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन की अध्यक्षता भी की। प्रेमचंद जी ने 1915 से कहानियां लिखना प्रारंभ किया तथा 1918 से उपन्यासों को लिखना भी प्रारंभ किया।

पंच परमेश्वर , प्रेमचन्द जी की हिन्दी में प्रकाशित पहली कहानी थी। उन्होंने 300 के लगभग कहानियां और15 उपन्यास लिखे। 3 नाटक, 10 अनुवाद 7 बाल-पुस्तकें, भाषण, पत्र, लेख और सम्पादन कार्य भी किया।

पर उनकी ख्याति का मूल आधार उपन्यास व कथा साहित्य बना। प्रेमचंद जी की कई रचनाओं का अनुवाद रूसी, जर्मनी, अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में हुआ । गोदान उपन्यास को उनकी कालजयी रचना माना जाता है ।

प्रेमचंद की रचनाएं- Compositions of Premchand

मुंशी प्रेमचंद की लेखन प्रतिभा साहित्य की विभिन्न विधाओँ में दिखाई देती है क्योंकि उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, लेख, समीक्षा, संस्मरण, संपादकीय आदि लगभग प्रत्येक क्षेत्र में साहित्य सृजन किया।

इसी कारण “उपन्यास सम्राट” उपाधि उन्हे अपने जीवन काल में ही मिल गई थी। सेवा सदन, गबन, कायाकल्प, प्रेमाश्रय, रंगभूमि और गोदान उपन्यास उनकी श्रेष्ठ कृतियों में गिने जाते हैं।

उनकी कहानियां मानसरोवर के आठ खण्डों में संकलित हैं। उनके निबन्ध ‘कुछ विचार’ नामक पुस्तक में संकलित हैं। सामाजिक और राजनीतिक निबन्ध ‘विविध प्रसंग’ में संग्रहीत हैं। कफन उनके द्वारा लिखी गई अंतिम कहानी थी ।

Premchand ki Rachnaen, Premchand Biography in Hindi

रचनाओं का विषय- Subject of Compositions

उनकी रचनाओं का मूल विषय राष्ट्रीय जागरण और समाज सुधार है, जिसकी वजह से उनकी रचनाएं आदर्शवाद से प्रेरित कही  जाती है।

किसान, शोषित व  मजदूरों  के प्रति उनकी बहुत सहानुभूति होती थी। उनकी रचनाओं में आदर्श और यथार्थ का सहज चित्रण मिलता है।

भाषा – Language

मुंशी प्रेमचंद की भाषा सहज, सरल तथा पात्रों के अनुकूल है । इसी कारण उन्हें उपन्यास सम्राट कहा गया।

“मुंशी” उपनाम के विषय में बहस – (Munshi Premchand in Hindi )

प्रेमचन्द का जीवन परिचय में हम आपको बता रहे है कि प्रेमचंद जी को हमेशा “मुंशी प्रेमचंद” के नाम से पुकारा जाता है परंतु उनके नाम प्रेमचंद के पहले ” मुंशी” शब्द कब और कैसे जुड़ा इस विषय में लोगों के बीच एक अलग प्रकार की बहस हमेशा रही है।

कुछ लोगों का कहना है प्रेमचंद जी एक अध्यापक थे तथा अध्यापकों को उस काल में मुंशी कहा जाता था, इसी कारण उन्हें मुंशी प्रेमचंद कहा जाने लगा।

इस मान्यता के अलावा कुछ अन्य लोगों का तर्क है कि प्रेमचंद जी कायस्थ थे, और उन दिनों कायस्थ लोगों के नाम के पहले सम्मान के तौर पर “मुंशी” शब्द का प्रयोग करने की परंपरा थी।

इन सभी तर्कों में सबसे प्रमाणिक तथ्य यह है कि – प्रेमचंद एवं ‘कन्हैयालाल मुंशी ‘ के सह संपादन में “हंस” नाम का एक पत्र प्रकाशित होता था।

उसी पत्र की कुछ प्रतियों पर कन्हैयालाल मुंशी का पूरा नाम छापने के स्थान पर केवल “मुंशी” ही छपा होता था और इसके साथ ही प्रेमचंद का नाम भी छपा होता था , अतः वह पढ़ने वाले को इस प्रकार दिखाई देता था – मुंशी, प्रेमचंद

हंस पत्र के संपादक दो अलग-अलग लोग प्रेमचंद तथा कन्हैयालाल मुंशी थे । परंतु लंबे समय तक इन दो नामों को पढ़ते-पढ़ते लोगों ने इसे एक ही नाम की तरह पढ़ना, बोलना शुरू कर दिया।

और इस प्रकार ‘ प्रेमचंद’ “मुंशी प्रेमचंद” बन गए। मुंशी शब्द उनके नाम का एक ऐसा अभिन्न उपसर्ग बन गया कि मुंशी शब्द के बिना उनका नाम अधूरा प्रतीत होता है।

प्रेमचंद की मृत्यु- Premchand Death

अपने जीवन के अंतिम दिनों में प्रेमचंद जी गंभीर रूप से बीमार हो गए , उनकी लंबी बीमारी के कारण उनका अंतिम उपन्यास “मंगलसूत्र” भी पूरा नहीं हो सका, जिसे उनके साहित्यकार पुत्र अमृत ने पूर्ण किया ।

अंततः महान रचनाकार “कलम के जादूगर” का निधन 8 अक्टूबर, 1936 को जलोदर नामक भयंकर बीमारी के कारण वाराणसी में हुआ।

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लगभग 33 वर्षों के अपने लेखकीय जीवन में वे हिंदी साहित्य को ऐसी विरासत देकर गए हैं जो चिरकाल तक हमारी धरोहर रहेगी।

इस प्रकार अपने साहित्य-प्रेम की लौ से अपने जीवन को तिल-तिल जलाकर हिन्दी साहित्य के पथ को आलोकित कर यह दीप हमेशा के लिए बुझ गया ।

प्रेमचंद पर डाक टिकट व सम्मान – Postage Stamp and Honour on Premchand

भारतीय डाक एवं तार विभाग की और से मुंशी प्रेमचंद जी की स्मृति में व उन्हें सम्मान प्रदान करने के लिए 31 जुलाई 1980 को उनकी जन्मशती के महत्वपूर्ण मौके पर 30 पैसे का एक डाक टिकट जारी किया गया।

Biography Of Premchand In Hindi

प्रेमचंद गोरखपुर के जिस विद्यालय में शिक्षक के तौर पर कार्यरत थे वहां “प्रेमचंद साहित्य संस्थान” की स्थापना की गई है । इसी विद्यालय में उनकी एक वक्ष प्रतिमा तथा उन से जुड़ी हुई वस्तुओं का एक संग्रहालय भी बनवाया गया है।

सरकार की ओर से प्रेमचंद जी की 125 वीं सालगिरह पर घोषणा की गई कि उनके गांव में प्रेमचंद जी के नाम पर एक स्मारक तथा शोध एवं अध्ययन केंद्र की स्थापना की जाएगी।

प्रश्न – प्रेमचंद का जन्म कब हुआ ?

उत्तर – प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 में हुआ ।

प्रश्न – प्रेमचंद किस नाम से मशहूर हैं ?

उत्तर – प्रेमचंद, मुंशी प्रेमचंद के नाम से मशहूर हैं ।

प्र श्न – प्रेमचंद के कितने बच्चे थे ?

उत्तर – प्रेमचंद के दो बेटे तथा एक बेटी थी ।

प्रश्न – प्रेमचंद के दादाजी का क्या नाम था ?

उत्तर – प्रेमचंद के दादाजी का नाम श्री गुरु सहाय राय था ।

प्रश्न – प्रेमचंद के माता-पिता का क्या नाम है ?

उत्तर – प्रेमचंद के पिता का नाम मुंशी अजायब लाल था, और माता का नाम आनन्दी देवी था ।

प्रश्न – प्रेमचंद की पहली कहानी कौन सी है ?

उत्तर – प्रेमचंद के नाम से प्रकाशित उनकी पहली कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ है ।

प्रश्न – प्रेमचंद की अंतिम कहानी कौन सी है ?

उत्तर – प्रेमचंद का सर्वाधिक महत्वपूर्ण व अंतिम उपन्यास ‘गोदान’ को माना जाता है।

प्रश्न – प्रेमचंद की मृत्यु कब और कैसे हुई ?

उत्तर – प्रेमचंद की मृत्यु 8 अक्टूबर, 1936 को जलोदर नामक भयंकर बीमारी के कारण वाराणसी में हुई ।

तो दोस्तों , प्रेमचन्द का जीवन परिचय | Premchand ki Jivani in Hindi | premchand ka jivan parichay | premchand biography in hindi लेख आपको कैसा लगा ?

हमें पूर्ण विश्वास है कि आपको महान उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय से संबंधित वृहत एवं विस्तृत जानकारी अवश्य पसंद आई होगी।

दोस्तों जैसा कि हमने पहले भी कहा है कि आपकी समालोचना से हमें बेहतर लिखने की प्रेरणा मिलती है । अतः हमारे लेख पढ़ने के बाद कमेंट बॉक्स में अपनी राय लिखकर हमें अवश्य भेजें।

अगर इस लेख से संबंधित आपके कोई प्रश्न हो तो आप कॉमेंट करके पूछ सकते हैं, लेख को पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद !

अंत में – हमारे आर्टिकल पढ़ते रहिए , हमारा उत्साह बढ़ाते रहिए , खुश रहिए और मस्त रहिए।

ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जियें ।  

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47 thoughts on “प्रेमचन्द का जीवन परिचय | Biography 0f Premchand In Hindi | PremChand Ka Jivan Parichay”

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Munshi Premchand Biography in Hindi | मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

Munshi Premchand Biography in Hindi : मुंशी प्रेमचंद एक बहुत गुणी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे. प्रेमचन्द अपनी हिंदी और उर्दू भाषी रचनाओ के लिए जाने जाते है. प्रेमचंद को “कलम के सिपाही” की संज्ञा भी दी गयी है.उनकी हिंदी और उर्दू भाषा में अच्छी पकड़ थी. वे बनना तो वकील चाहते थे लेकिन हालत ने उन्हें साहित्यकार बना दिया. उन्होंने अपना बचपन बहुत गरीबी और तंगहाली में व्यतीत किया है.

उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें और हजारों पृष्ठ के लेख, सम्पादकीय, व्याख्यान, भूमिका, पत्र आदि की रचना की थी, लेकिन जो यश और प्रतिष्ठा उनसे उपन्यास और कहानी प्राप्त हुई.

उनकी रचना से लिए एक वाक्य आप को बताते है “हाड़ कपा देने वाली सर्दियों की रातो में खेतो की रखवाली की तखलीफ़ खेत जलजाने से कहीं ज्यादा थी किसानो के लिए इसलिए उस का जब खेत जल जाता है तो मुहँ से उसके निकलता है चलो अब रात को पहरेदारी तो नही करनी पड़ेगी”

आज भी न जाने कितने लोग है जो जिंदगी की तकलीफ के सामने हार जाते है और हाथ पर हाथ रख कर बेठ जाते है. इंसान के भीतर छुपे ऐसे गुण मनुभावो को करीब 100 साल पहले किसी फिल्म की तरह सामने रख देता था जिंदगी का वो चितेरा जिसे आप हम सभी कहते है “कलम का सिपाही” आइये विस्तार पूर्वक मुंशी प्रेमचंद के जीवन के बारे में जानते है.

मुंशी प्रेमचंद जी की जीवनी (Munshi Premchand Biography in Hindi)

31 जुलाई 1880 में प्रेमचंद का जन्म हुआ था उनकी माँ का नाम आनंदी देवी था और पिता का नाम मुंशी अजायब राय था. उनके पिताजी लहरी गाँव में डाक मुंशी थे. माता पिता ने प्रेमचंद का नाम धनपत राय रखा था. जब प्रेमचंद 8 साल के थे तब उनकी माता की मृत्यु हो गयी थी. इसके बाद प्रेमचंद के पिताजी ने दूसरी शादी कर ली.

शोतेली माँ का व्यवहार प्रेमचंद के साथ बहुत खराब था. जिस उम्र में उन्हें प्रेम की आवश्कता थी उस समय सिर्फ उन्हें डाट- डपट के आलावा कुछ नही मिला. प्रेमचंद जब 15 साल के थे तब उनके पिता ने उनकी शादी करा दी थी. साल भर बाद ही पिता के देहांत के बाद पांच लोगो के परिवार की जिम्मदारी उनके कंधो पर आ गयी थी.

इन्ही हालत के बाद प्रेमचंद ने लिखना शुरु किया था. हालाँकि तेरह साल की उम्र में ही प्रेमचंद ने लिखना शुरु कर दिया था. प्रेमचंद उस समय इतने गरीब थे की उनके पास पहनने के लिए कपड़े भी नही थे. घर के खर्चे चलाने के लिए प्रेमचंद को अपने घर की कीमती वस्तुओं के साथ- साथ अपना कोट और किताबे भी बेचनी पड़ी.

यह भी पढ़ें –  10 सर्वश्रेष्ठ हिंदी उपन्यास – Best Hindi Novels

इसी दोरान जब वो अपनी पुस्तके एक दुकान पर बेचने निकले तो उन्हें वह एक विधालय के हेडमास्टर मिले उन्होंने प्रेमचंद को अपने विधालय में अध्यापक की नोकरी पर रख लिया. 1905 में प्रेमचंद पत्नी विवाद की वजह से घर छोड़ कर चली गयी और फिर कभी लोट कर वापस नहीं आयी.

पत्नी से सम्बन्ध खत्म होने के प्रेमचंद ने दूसरी शादी शिवरानी से विवाह कर लिया. शिवरानी एक विधवा थी इसीलिए प्रेमचंद ने उनसे विवाह किया था.

लेकिन उनकी पहली हिंदी कहानी 1915 में सरस्वती पत्रिका में “सोत” नाम से प्रकाशित हुई थी. इस बीच 1919 में बीए पास करने के बाद प्रेमचंद को शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर की नोकरी भी मिल गयी थी. तो बाद में दूसरी तरफ साहित्य का सफर भी मरते दम तक जारी रहा. 8 अक्टूबर 1936 को उनकी मृत्यु हो गयी थी.

अपनी मोत से दो साल पहले अपनी आर्थिक स्थति में सुधार करने के लिए मायानगरी मुंबई गये थे. अजन्ता कम्पनी में कहानी लेखक की नोकरी भी की लेकिन फिल्म उधोग उन्हें रास नही आया. साल भर में ही कॉन्ट्रैक्ट पूरा किये बिना लोट आये थे.

मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा (Munshi Premchand’s Education)-

प्रेमचंद के घर की हालत खराब थी इसलिए उन्होंने एक साधारण विधालय में पढाई की थी वे पढाई करने के लिए अपने गाँव से नंगे पांव ही पैदल बनारस जाया करते थे. उनकी शुरु से ही उर्दू और हिंदी भाषा में पकड़ रही है. लेकिन उर्दू भाषा उन्हें अच्छी लगती थी शायद इसी कारण उन्होंने पहले अपनी रचनाये उर्दू में लिखी.

उन्होंने 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी इसके साथ ही उन्होंने एक स्थानीय विधालय में शिक्षक की नोकरी करने लगे और उन्होंने अपनी पढाई जारी रखी और 1910 में उन्‍होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर पास किया.

प्रेमचंद पढ़ लिख कर वकील बनना चाहते थे, लेकिन गरीबी की वजह से उनका यह ख्वाब पूरा नही हो पाया. इस बीच वो बच्चो को ट्यूशन पढ़ाने लगे और इससे उन्हें पांच रूपये मिलते थे. इसमे से तीन रूपये वे अपने घर वालो को देते थे और बचे दो रूपये से वो अपनी जिंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ाते थे.

तभी प्रेमचंद का साहित्य की तरफ झुकाव बढ़ गया. प्रेमचंद ने उपन्यास पढना प्रारम्भ कर दिया. उन पर किताब पढने का असा जनून सवार हुआ की उन्होंने किताब बेचने वाले की दुकान में ही साडी किताबे पढ़ डाली. इसके बाद 1919 में बीए पास की और फिर शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर की नोकरी करने लगे.

प्रेमचन्द के प्रसिद्ध उपन्यास (Premchand’s Famous Novels)-

मुंशी प्रेमचन्द के प्रसिद्ध नाटक (munshi premchand’s famous drama)-.

  • संग्राम – 1923
  • कर्बला – 1924
  • प्रेम की वेदी – 1933

प्रेमचन्द की प्रसिद्ध कहानियाँ (Best Stories of Premchand)-

  • गुल्‍ली डंडा
  • दो बैलों की कथा
  • पंच परमेश्‍वर
  • ठाकुर का कुआँ
  • पंच परमेश्‍वर आदि है.

मुंशी प्रेमचंद विशेष (Munshi Premchand Special)-

#1 लिव इन रिलेशनशिप पर जिसने 100 साल पहले लिखा, जिसकी कलम से डर गये अंग्रेज. उस विद्रोही की कहानी जिसे दुनिया कहती थी कलम का सिपाही,

#2 हम बात कर रहे है कलम के सिपाही प्रेमचन्द की उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द की हिंदी कहानी के पितामाह की, जिन्होंने हिन्दू कहानी को तिल्स्म्यारी और जादूगरी से निकाल कर आम आदमी की कहानी, आम आदमी की भाषा बना दिया.

#3 हिंदी में उर्दू के सहज इस्तेमाल से वो जुबान दी जिसमे पिछले 100 वर्ष में बनने वाली अनगंत फिल्मो ने करोड़ो का कारोबार किया और कर रही है.

#4 प्रेमचंद को आज जमाना भूल गया है लेकिन 100 साल पहले उन्होंने “जमाना” नाम की पत्रिका में ही धारावाहिक कहानियाँ “सूजे वतन” लिखी थी.

#5 प्रेमचंद की कहानी “सोजे वतन” से अंग्रेज इतना डर गए थे की उनका एक हाथ कटवाने की कोशिश भी की गयी लेकिन वहाँ का दारोगा रहमदिल था तो उनका नाम ही बदल दिया था और उन्हें बिना इजाजत कहानिया लिखने के लिए मना कर दिया था. इसी के बाद “धनपतराय” के नाम से कहानिया लिखने वाले कलम का सिपाही प्रेमचन्द हो गया लेकिन उनकी कलम नही डरी. वो गुलाम भारत के समाज की कुरूतियो को किसी माहिर सर्जन की तरह चीर-फाड़ करने लगे.

#6 सेवासदन, कफन, गोदान, निर्मला, रंगभूमि उनकी करीब 300 से अधिक रचनाओ में बहुतो का अनुवाद अंग्रेजी, रुसी, जर्मनी समेत दुनिया की तमाम भाषाओ में हुआ इन रचनाओ में एक कहानी “मिस पदमा” भी जो ऐसी आजाद ख्याल वकील की कहानी है जो एक प्रोफेसर के साथ बिना शादी के रहती है और धोखा खाती है. लिव इन रिलेशनशिप आज के दोर की घटना हो सकती है लकिन ऐसा होगा यह भविष्यवाणी प्रेमचंद 100 साल पहले कर चुके थे.

#7 अपनी प्रगतिशील सोच और अपनी कहानियों के मुताबित ही प्रेमचंद ने पहली शादी नाकाम होने के बाद एक बालविवाह शिवरानी से विवाह किया था जो उस जमाने में बहुत बड़ी बात थी

#8 महात्मा गाँधी को फटकार – जब उस जमाने में हिंदुस्तान में भूकंप आया तो महात्मा गांधीजी ने कहा की ये हम भारतवासियों के पाप का परिणाम है, प्रेमचंद ने फोरन हास्य सम्पाद में लिखा कि बापू बात बिल्कुल गलत है, अवैज्ञानिक है, भूकंप का हम भारतवासियों के पाप या पूर्णय से कोई लेना देना नही है यह एक शुद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया है भूकंप और इसलिए भूकंप आया है.

#9 वाराणसी से 4 किलोमीटर दूर उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का पुश्तेनी गाँव लमही है

#10 प्रेमचंद का संघर्ष केवल किताबो में ही नही उनकी रचनाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी नोजवानो की प्रेरणा बनी रही है और उनकी रचना के पात्र अब मूर्तियों की शक्ल भी ले चुके है.

#11 प्रेमचंद आज भी इसलिए याद किया जाते है क्योंकी उनकी कहानियाँ झूठी नही थी उनकी कहानियों के किरदार गढ़े हुए नही थे बल्कि लमही के आस-पास से उठाये गये थे.

#12 प्रेमचंद की कहानियों पर फिल्मे भी बन चुकि है जैसे शतरंज के खिलाड़ी, गोदान, हीरा-मोती और गबन. यही नही जाने माने कृतिकार निर्देशक गुलजार भी प्रेमचन्द को श्रधांजलि देने के लिए उनकी रचनाओ पर करीब डेढ़ दशक पहले दूरदर्शन के लिए “तहरीर” सीरियल का निर्माण कर चुके है.

#13 मनरेगा मजदुर के जमाने में प्रेमचंद की कहानी “कफ़न” मजदूर की मजबूरी को सबसे मजबूत तरीके से उठाती है.

#14 शुरुवात में प्रेमचंद हिंदी की बजाए उर्दू में लिखा करते थे

#15 1918 में मुंशी प्रेमचंद का पहला उपन्यास “सेवासदन” प्रकाशित हुआ था, लेकिन वो इसे पहले ही उर्दू में बाजार-ए-हसन के नाम से लिख चुके थे.

#16 1921 में आये किसान जीवन पर उनके पहले उपन्यास प्रेमाश्रम भी पहले उर्दू में गोसा आफ़ियत नाम से तैयार हुआ था. हालाँकि दोनों ही उपन्यासों को उन्होंने पहले हिंदी में प्रकाशित कराया था.

#17 जब मुंशी प्रेमचंद लिखने बैठते थे उसके बाद उन्हें खाने (भूख) का भी पता नही चलता था और प्रेमचंद हुक्का पीने के शोकीन थे.

यह भी पढ़ें –

Mahadevi Verma in Hindi | महादेवी वर्मा की जीवनी

Nitish Rajput Biography in Hindi – नीतीश राजपूत

19 thoughts on “Munshi Premchand Biography in Hindi | मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय”

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Thank you, Bhumika

Arre good yaar bahut badhiya hai bae

Badhiya bhai, sarahna ke liye bhut bhut dhanyawad.

प्रेमचंद जी की पहली पत्नी का नाम क्या था? वे कितने वर्ष साथ में रही तथा उनसे कितनी संतानें पैदा हुई?

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DEVASHISH MIRJHA, Sarahna ke liye aap ka bhut bhut dhanyawad aise hi biography padhne ke liye hindiyatra par aate rahe.

more about munshi premchand

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उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

इस लेख में प्रसिद्ध उपन्यासकार हिंदी साहित्य के पितामह मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय (Biography of Munshi Premchand in Hindi) जानने वाले हैं। इस जीवन परिचय में इनके परिवार, माता-पिता, उनका बचपन का नाम, जन्म कब और कहां हुआ, प्रमुख रचनाएं और अंतिम पूर्ण उपन्यास आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।

मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य की नींव रखने वाले प्रथम ऐसे उपन्यासकार, कहानीकार है, जिन्होंने अपनी रचनाओं में निम्न वर्गीय लोग जैसे कि किसान आदि को महत्वपूर्ण स्थान दिया।

Biography of Munshi Premchand in Hindi

मुंशी प्रेमचंद का बचपन बहुत ही कष्टकारी था। फिर भी मुंशी प्रेमचंद ने अपना साहस नहीं छोड़ा और अपने इसी मेहनत के चलते आज भी श्रेष्ठ उपन्यासकार तथा कहानीकार है।

तो आइए मुंशी प्रेमचंद के बारे में विस्तारपूर्वक सभी जानकारी प्राप्त करते हैं कि उन्होंने किन परिस्थितियों का सामना करके इस उपलब्धि को प्राप्त किया है।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand Biography in Hindi)

मुंशी प्रेमचंद कौन थे.

मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ कहानीकार तथा उपन्यासकार है। मुंशी प्रेमचंद का स्थान हिंदी साहित्य में उपन्यासकार के रूप में सबसे ऊपर है। मुंशी प्रेमचंद अपनी रचनाओं को बड़ी ही मेहनत और लगन के साथ लिखा करते थे।

ऐसा भी कहा जाता है कि मुंशी प्रेमचंद जब अपनी रचनाओं को लिखना प्रारंभ करते थे तो वह उस किरदार में स्वयं को मान लेते थे और फिर अपनी रचनाओं की विशेषता प्रकट करते थे।

उनके इसी विशेषता के कारण उन्हें हिंदी साहित्य में सर्वश्रेष्ठ उपन्यासकार और कथाकार के रूप में ख्याति प्राप्त है।

मुंशी प्रेमचंद का जन्म कब और कहां हुआ?

प्रेमचंद का जन्म वाराणसी जिले के लमही नामक ग्राम में 31 जुलाई 1880 को हुआ था। प्रेमचंद का बचपन बड़ी कठिनाइयों में व्यतीत हुआ। जीवन की विषम परिस्थितियों में भी उनका अध्ययन क्रम निरंतर चलता रहा।

मुंशी प्रेमचंद के पिता का नाम अजायब राय था और माता का नाम आनन्दी देवी था। मुंशी प्रेमचंद के पिता डाकखाने में एक नौकर के तौर पर काम करते थे।

मुंशी प्रेमचंद के बचपन का नाम और उनकी कहानी

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के बचपन का नाम धनपत राय था। जब मुंशी प्रेमचंद की उम्र लगभग 8 वर्ष की थी तभी उनके माता का स्वर्गवास हो गया।

अपनी माता के स्वर्गवास हो जाने के पश्चात उनको जीवन में बहुत ही विषम परिस्थितियों से गुजारना पड़ा।

मुंशी प्रेमचंद के पिता अजायब राय ने दूसरा विवाह कर लिया, जिसके कारण प्रेमचंद चाह कर भी माता का प्रेम और स्नेह नहीं प्राप्त कर सके।

लोगों का कहना है कि अपने घर की भयंकर गरीबी के कारण उनके पास पहनने के लिए कपड़े भी नहीं थे और ना ही खाने के लिए पर्याप्त भोजन होता था।

इन सब परिस्थितियों के बावजूद घर में उनकी सौतेली माता का व्यवहार में उनकी हालत को और खराब कर देता था।

मुंशी प्रेमचंद जी का विवाह

लोगों का कहना है कि जब मुंशी प्रेमचंद महज 15 वर्ष के थे तभी उनके पिता ने उनका विवाह करा दिया था।

जिस लड़की से मुंशी प्रेमचंद का विवाह हुआ था, वह मुंशी प्रेमचंद से उम्र में बड़ी और बहुत ही बदसूरत भी थी।

मुंशी प्रेमचंद की पत्नी की सूरत बुरी तो थी, साथ ही उनके पत्नी का व्यवहार भी बहुत बुरा था। पत्नी की कटुता पूर्ण बातें ऐसी लगती थी कि जैसे कोई जले पर नमक छिड़क रहा हो।

उन्होंने अपनी एक रचना में स्वयं लिखा है “उम्र में वह मुझसे ज्यादा थी, तब मैंने उसकी सूरत देखी तो मेरा खून सूख गया।”

मुंशी प्रेमचंद ने अपने विवाह को लेकर अपने पिता के ऊपर भी कुछ लिखा है “पिताजी ने जीवन के अंतिम सालों में एक ठोकर खाई और स्वयं तो गिरे ही साथ में मुझे भी डुबो दिया, मेरी शादी बिना सोचे समझे कर डाली।”

हालांकि मुंशी प्रेमचंद के पिता को उनके इस करनी का बाद में पश्चाताप भी हुआ।

मुंशी प्रेमचंद के विवाह के ठीक 1 वर्ष बाद उनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद अचानक पूरे परिवार का बोझ मुंशी प्रेमचंद के सर आ गया।

अब मुंशी प्रेमचंद के ऊपर 5 लोगों का खर्चा आन पड़ा। इन पांच लोगों मे उनकी विधवा माता, उनके दो बच्चे और उनकी पत्नी के साथ-साथ स्वयं का भी बोझ था।

प्रेमचंद के आर्थिक विपत्ति का अनुमान इस घटना से लगाया जा सकता है कि उन्हें पैसों की इतनी जरूरत थी कि उन्हें अपना कोट भी बेचना पड़ा, कोट के साथ-साथ उन्हें अपनी पुस्तक बेचनी पड़ी।

वह जब एक बार अपनी पुस्तक को बेचने के लिए बुकसेलर के पास पहुंचे, तभी वहां पर एक स्कूल के हेड मास्टर आन पड़े और उन्होंने मुंशी प्रेमचंद को अपने विद्यालय में अध्यापक पद पर नियुक्त किया।

यह भी पढ़े: मुंशी प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां

मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा

मुंशी प्रेमचंद ने बीए तक की शिक्षा प्राप्त की। जीवन की विषम परिस्थितियों में भी उनका अध्ययन क्रम चलता रहा। उन्होंने उर्दू का भी विशेष ज्ञान प्राप्त किया।

जैसा कि आपको पहले बताया उनके बचपन का नाम धनपत राय था और मुंशी प्रेमचंद को उर्दू का विशेष ज्ञान था, इस कारण उन्होंने अपनी एक पत्रिका को अपने नाम धनपत राय के उर्दू अर्थ नवाब राय नाम से कहानी लिखते थे।

आजीविका चलाने हेतु मुंशी प्रेमचंद द्वारा कार्य

मुंशी प्रेमचंद ने आज इनका चलाने के लिए एक विद्यालय में अध्यापक पद को सुशोभित किया और अपने इस बात को अपने कर्तव्य और निष्ठा के साथ करने लगे।

अपने इसी कर्तव्य निष्ठा के दम पर वह उस विद्यालय के अध्यापक से सब इंस्पेक्टर बन गए। वह कुछ समय तक काशी विद्यापीठ में भी अध्यापक के पद को सुशोभित किया है।

मुंशी प्रेमचंद की कृतियां

प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य के हर एक विधाओं में अपनी उत्कृष्ट रचना के जरिए हिंदी साहित्य के लेखकों में अपना उत्कृष्ट स्थान बनाया है।

प्रेमचंद ने अपनी अधिकांश रचना उर्दू भाषा में लिखी, जिसके बाद में हिंदी में रूपांतरित किया गया। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी, जर्मनी, रूसी जैसे अनेक भाषाओं में भी अनुवाद किया गया।

प्रेमचंद ने कुल 300 के करीब कहानियां, 12 से भी अधिक उपन्यास और कुछ नाटक भी लिखे। कुछ साहित्य का इन्होंने अनुवाद कार्य भी किया।

कहानी लेखन की शुरुआत इन्होंने 1915 से करी, वही उपन्यास लिखने की शुरुआत 1918 से की थी। कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट भी माना जाता है।

इनकी कहानी रचना में कफन सबसे ज्यादा प्रख्यात माना जाता है और इनके अंतिम कहानी थी, जिसे इन्होंने हिंदी और उर्दू में लिखी थी।

इनकी सभी उपन्यासों में गोदान सबसे अधिक चर्चा में रहती है। प्रेमचंद की साहिब रचना का समय 33 वर्षों का रहा और इस 33 वर्षों में इन्होंने साहित्य की ऐसी विरासत आज की पीढ़ी को देकर गए, जो गुणों की दृष्टि से अमूल्य है।

प्रेमचंद के साहित्य का आरंभ 1901 में शुरू हुआ, जो पहली हिंदी कहानी सरस्वती पत्रिका मैं सोत नाम से प्रकाशित हुई और अंतिम कहानी कफन 1936 में प्रकाशित हुई।

प्रेमचंद की कहानियों का दौर 20 वर्षों तक चला, जिसमें अनेकों रंग देखने को मिले है। इनकी कहानी में काल्पनिक, पौराणिक, धार्मिक रचनाएं थी।

1908 में प्रेमचंद के पांच कहानियों का संग्रह सोजे वतन प्रकाशित हुआ था, जो एक देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत था। जिस कारण अंग्रेजी सरकार ने प्रेमचंद को कहानी लिखने पर प्रतिबंध लगा दिया।

इससे पहले तक प्रेमचंद धनपत राय नाम से अपने कहानियों का प्रकाशन करते थे। लेकिन अंग्रेजी सरकार के इस घोषणा के बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से आगे कहानियों का प्रकाशन करना शुरू किया।

प्रेमचंद नाम से इनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी 1910 में जमाना पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।

उनके कृतियों में जीवन सत्य का आदर्श रूप उभर कर सामने आता है। इसके परिणाम स्वरूप वे सार्वभौमिक कलाकार के रूप में भी प्रतिष्ठित है।

मुंशी प्रेमचंद ने कहानी संग्रह, उपन्यास, नाटक, निबंध, अनुवाद इत्यादि रचनाएं की है, जिनमें से कुछ प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं।

कहानी संग्रह

सप्त सरोज, प्रेम पूर्णिमा, लाल फीता, नवनीत, बड़े घर की बेटी, नमक का दरोगा, प्रेम द्वादशी, प्रेम प्रमोद, प्रेम पचीसी, प्रेम प्रसून, प्रेम तीर्थ, प्रेम चतुर्थी, शब्द सुमन, प्रेम पंचमी, प्रेरणा, प्रेम प्रतिज्ञा, पंच प्रसून, समर यात्रा, नवजीवन आदि।

प्रेमचंद ने एक से बढ़कर एक उपन्यास लिखे, इनकी उपन्यास रचना इनके समय काल में बहुत ज्यादा प्रसिद्ध हुई। यहां तक कि आज भी उनके उपन्यास को लोग बहुत ही चाव से पढ़ते हैं।

प्रेमचंद का पहला उपन्यास 8 अक्टूबर 1903 को उर्दू साप्ताहिक ‘’आवाज-ए-खल्क़’’ में ‘अपूर्ण’ नाम से प्रकाशित हुआ था।

इनका दूसरा उपन्यास ‘हमखुर्मा व हमसवाब’ था और 1907 में इस उपन्यास का ‘प्रेमा’ नाम से हिंदी में रूपांतरण होकर प्रकाशित हुआ।

प्रेमचंद ने अपने अधिकांश उपन्यास को उर्दू भाषा में लिखा। हालांकि अधिकांश उर्दू उपन्यासों का हिंदी में रूपांतरण किया गया।

1918 में प्रेमचंद ने “सेवासदन” नाम का उपन्यास की रचना की। हालांकि यह उपन्यास हिंदी में लिखी गई थी।

उर्दू में लिखी गई इस उपन्यास का नाम ‘बाजारे-हुस्‍न’ था। यह उपन्यास वेश्यावृत्ति पर आधारित है। इस उपन्यास के जरिए प्रेमचंद ने भारत के नारी की पराधीनता को बताया है।

1921 में अवध के किसान आंदोलन के दौर में प्रेमचंद की आई उपन्यास “प्रेमाश्रम” में किसान जीवन का वर्णन किया गया है। इसे भी प्रेमचंद ने ‘गोशाए-आफियत’ नाम से पहले उर्दू में लिखा था।

लेकिन सबसे पहले इसका हिंदी रूपांतरण का प्रकाशन हुआ। इस तरह 1903 से शुरू होकर 1936 तक ‘गोदान’ तक इनका उपन्यास पहुंचकर खत्म हुआ।

साल 1925 में प्रेमचंद की आई उपन्यास रंगभूमि में इन्होंने एक अंधे भिखारी सूरदास को कथा का नायक बनाकर हिंदी कथा साहित्य में क्रांतिकारी बदलाव लाने का प्रयास किया।

इनका उपन्यास रचना “गोदान” हिंदी साहित्य के उत्कृष्ट उपन्यास मानी जाती है, जिसका स्थान विश्व साहित्य में भी बहुत मायने रखता है।

इस उपन्यास में इन्होंने एक सामान्य किसान को पूरे उपन्यास का नायक बनाकर भारत के उस समय किसान स्थिति को बहुत ही सुंदर तरीके से वर्णित किया है।

मंगलसूत्र प्रेमचंद की अंतिम उपन्यास रचना थी, जो अधूरी थी। प्रेमचंद की कई उपन्यासों का दुनिया की कई भाषाओं में रूपांतरण किया गया।

इस तरह प्रेमचंद ने हिंदी उपन्यास को जो ऊंचाई प्रदान की है, वह सच में सराहनीय है।

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प्रसिद्ध उपन्यास संग्रह

सेवा सदन, रंगभूमि, कर्मभूमि, गोदान, गबन, कायाकल्प, निर्मला, सेवा सदन, प्रेम आश्रम, मंगलसूत्र आदि। मुंशी प्रेमचंद का अधूरा उपन्यास मंगलसूत्र है।

मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियां

शतरंज के खिलाड़ी, पूस की रात, आत्माराम, रानी सारंधा आदि मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियां हैं।

मुंशी प्रेमचंद की कथा शिल्प

मुंशी प्रेमचंद का विशाल कहानी साहित्य मानव प्रकृति, मानव इतिहास तथा मानवीयता के हृदयस्पर्शी एवं कलापूर्ण चित्र से परिपूर्ण है।

उन्होंने सांस्कृतिक उन्नयन, राष्ट्र सेवा, आत्म गौरव आदि के सचिव एवं रोचक चित्रण के साथ-साथ मानव के वास्तविक स्वरूप को दर्शाने में अपूर्व कौशल दर्शाया है।

उनकी कहानियों में दमन, शोषण एवं अन्याय के विरुद्ध आवाज बुलंद करने की सलाह दी गई है तथा सामाजिक विकृतियों पर व्यंग के माध्यम से प्रहार किया गया है।

मुंशी प्रेमचंद की कहानी रचना का केंद्र बिंदु मानव है। उनकी कहानियों में लोक जीवन के विभिन्न पक्षों का मार्मिक चित्रण किया गया है।

प्रेमचंद के कथावस्तु का गठन समाज के विभिन्न धरातल को स्पर्श करते हुए यथार्थ जगत की घटनाओं, भावनाओं, चिंतन – मनन एवं जीवन संघर्षों को लेकर चलता है।

मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में पात्रों का मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है।

इसके साथ ही इन्होंने मानव की अनुभूतियों एवं संवेदना को भी महत्व दिया है। मुंशी प्रेमचंद मानव मन के सूक्ष्म तम भाव का आकर्षण चित्र अपनी रचनाओं में लाने में सफल रहे हैं।

मुंशी प्रेमचंद की भाषा शैली

मुंशी प्रेमचंद ने अपनी भाषा शैली के क्षेत्र में उदार एवं व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है। मुहावरों और लोकोक्तियों की लाक्षणिक तथा आकर्षक योजना ने उनकी अभिव्यक्ति को और भी अधिक सशक्त बनाया है।

उनकी कहानियों का वास्तविक सौंदर्य का मुख्य आधार उनके पात्रों की सहायता है, जिसके लिए मुंशी प्रेमचंद ने जन भाषा का स्वाभाविक प्रयोग किया है जैसे कि कल्लू, हरखू इत्यादि जैसे सरल शब्द।

उनकी भाषा में व्यवहारिकता एवं साहित्यकता का सजीव चित्रण है। मुंशी प्रेमचंद की भाषा शैली सरल, रोचक, प्रवाह एवं प्रभावपूर्ण है।

मुंशी प्रेमचंद की साहित्यिक रुचि

मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में आपको गरीबी, आभाव, शोषण तथा उत्पीड़न आदि जैसी दैनिक जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियां मिल जाएंगे।

मुंशी प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में इन साहित्य रुचियो को इसलिए स्थान दिया है क्योंकि यह खुद भी इस परिस्थितियों से गुजर चुके हैं।

प्रेमचंद जब मिडिल स्कूल में थे, उन्होंने तभी से उपन्यास को पढ़ना आरंभ कर दिया था। मुंशी प्रेमचंद को बचपन से ही उर्दू आती थी, इसलिए उन्होंने अपने कुछ उपन्यास को उर्दू में लिखा है।

प्रेमचंद के जीवन संबंधी विवाद

प्रेमचंद निसंदेह एक महान रचनाकार है, लेकिन इसके बावजूद भी प्रेमचंद के जीवन पर कई आरोप लगाए गए हैं।

प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी द्वारा प्रेमचंद के जीवन पर लिखा गया रचना “प्रेमचंद घर में” उद्धृत किया हैं, जिसके माध्यम से कुछ लोग प्रेमचंद पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि इन्होंने अपनी पहली पत्नी को बिना वजह छोड़ दिया था और दूसरी विवाह के बाद भी इनका संबंध अन्य महिलाओं से रहा था।

कमल किशोर गोयनका द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘प्रेमचंद: अध्‍ययन की नई दिशाएं’ में इन्होंने प्रेमचंद के जीवन पर कुछ आरोप लगाकर उनके महत्व को कम करने का प्रयास किया है।

प्रेमचंद के जीवन से संबंधित चाहे कुछ भी विवाद हो लेकिन अपनी उत्कृष्ट रचनाओं के कारण ही आज भी युवाओं के बीच इनकी रचनाएं काफी ज्यादा प्रसिद्ध है।

यही कारण है कि आज भी इनके विवादों पर किसी का नजर नहीं पड़ता है। लोग इनकी काबिलियत को देखते हैं। इनके द्वारा लिखे गए अनेकों उपन्यास, कहानी और कविताओं की सराहना करते हैं।

मुंशी के विषय में विवाद

प्रेमचंद जिन्हें ‘मुंशी प्रेमचंद’ के नाम से भी जाना जाता है। असल में तो इनका नाम धनपत राय था, लेकिन इनके नाम के आगे मुंशी शब्द किस तरह और कब जुड़ा इसके बारे में सटीक रूप से किसी को भी मालूम नहीं है।

हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि प्रेमचंद अपने समय में अध्यापक रह चुके हैं और उस समय अध्यापकों को प्रायः मुंशीजी कहा जाता था।

यह भी कारण हो सकता है कि प्रेमचंद को मुंशी प्रेमचंद कहा जाता है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि मुंशी शब्द कायस्थों के नाम के पहले सम्मान पूर्वक लगाया जाता था और इसीलिए प्रेमचंद के नाम के पहले मुंशी शब्द जुड़ गया।

इस तरह बहुत से लोगों का मानना है कि मुंशी शब्द एक सम्मान सूचक शब्द है, जो प्रेमचंद के प्रशंसकों ने कभी लगा दिया होगा।

प्रोफेसर सुखदेव सिंह के अनुसार प्रेमचंद ने कभी भी अपने नाम के आगे मुंशी शब्द का प्रयोग नहीं किया था।

कुछ लोगों का यह भी मानना है कि प्रेमचंद और कन्हैयालाल मुंशी के सह संपादन में “हंस” नामक पत्रिका इनके समय में निकलता था। यह कारण भी प्रेमचंद के नाम के आगे मुंशी लगाने का हो सकता है।

मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु

जैसा कि आपको बताया मुंशी प्रेमचंद का एक अपूर्ण उपन्यास मंगलसूत्र है। मंगलसूत्र अपूर्ण रहने का कारण है कि जब मुंशी प्रेमचंद मंगलसूत्र की रचना कर रहे थे और उन्होंने लगभग मंगलसूत्र उपन्यास की आधी रचना को पूरा कर लिया था, तभी अचानक उनकी तबीयत में कुछ बदलाव आया और उनकी मृत्यु हो गई। मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु 8 अक्टूबर 1936 को हुई।

प्रेमचंद के बारे में रोचक तथ्य

  • प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था, लेकिन इनकी रचना सोजे वतन जो पांच कहानियों का संग्रह था और यह कहानी देशभक्ति से ओतप्रोत था। इसलिए अंग्रेजी सरकार ने इन पर कहानी लिखने के लिए प्रतिबंध लगा दिया था। जिस कारण इन्होंने अपना नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से अपनी कहानियों को पत्रिका में प्रकाशन करना शुरू किया। उसके बाद से इनकी जितनी भी रचनाएं आई, उसमें प्रेमचंद नाम लिखा होता था।
  • 1936 में प्रेमचंद ने लखनऊ में भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन की अध्यक्षता की थी।
  • प्रेमचंद ने अपनी पहली पत्नी को छोड़कर एक विधवा महिला शिवरानी देवी से दोबारा विवाह किया था।
  • प्रेमचंद को कलम के सिपाही का उपनाम इनके बेटे अमृत राय ने दिया था।
  • 1921 में प्रेमचंद महात्मा गांधी के आवाहन पर अपनी नौकरी छोड़ दी थी।
  • प्रेमचंद ने मासिक पत्र हंस, जागरण नामक सप्ताहिक पत्र और माधुरी नामक पत्रिका का संपादन अपने समय में किया था।
  • प्रेमचंद की दूसरी पत्नी शिवरानी देवी ने भी प्रेमचंद की जीवनी प्रेमचंद घर में नाम से लिखी थी। इस पुस्तक का प्रकाशन साल 1944 में पहली बार किया गया था, लेकिन बाद में साल 2005 में दोबारा इसको संशोधित करके प्रकाशित किया गया था। इसमें उन्होंने प्रेमचंद के व्यक्तित्व के कई हिस्से का उजागर किया है।

पुरस्कार व सम्मान

  • प्रेमचंद की 125 वीं सालगिरह पर उत्तर प्रदेश सरकार ने वाराणसी में प्रेमचंद के नाम पर एक स्मारक, शोध एवं अध्ययन संस्थान बनाने की घोषणा की थी।
  • प्रेमचंद गोरखपुर के जिस स्कूल में पढ़ाया करते थे, वहां पर साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है। जिसके बरामदे में एक भित्तीलेख है, जिसके दाहिने ओर प्रेमचंद का चित्र उकेरा गया है और वहां पर प्रेमचंद के जीवन से संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है और इनकी एक प्रतिमा भी स्थापित है।
  • 31 जुलाई 1980 को प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाकघर विभाग की ओर से 30 पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया गया था।

कलम का सिपाही लेखक प्रेमचंद को कहा जाता है। क्योंकि प्रेमचंद के लेखन का मुकाबला आज के बड़े-बड़े लेखक भी नहीं कर पाए हैं। ये अपने समय के सबसे बड़े साहित्यकार हुए हैं, इसीलिए इन्हें कलम का सिपाही कहा जाता है।

प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था।

प्रेमचंद को कलम का सिपाही कहकर उनके बेटे ने ही इन्हें सम्मान दिया था। प्रेमचंद के बेटे अमृत राय ने प्रेमचंद की जीवनी कलम के सिपाही के नाम से लिखी थी, जिसका बाद में अंग्रेजी और उर्दू भाषा में भी रूपांतरण किया गया और चीनी, रूसी जैसे अन्य विदेशी भाषाओं में भी इसका रूपांतरण किया गया।

प्रेमचंद के बेटे अमृतराय द्वारा लिखी गई प्रेमचंद की जीवनी ‘कलम का सिपाही’ का पहला संस्करण 1962 में प्रकाशित हुआ था।

प्रेमचंद को उनके उपन्यास सेवासदन के प्रकाशन के बाद उन्हें अच्छी ख्याति मिली और एक अच्छे उपन्यासकार के रूप में जाने जाने लगे। यह उपन्यास वेश्यावृत्ति पर आधारित उपन्यास है।

प्रेमचंद द्वारा 1922 में रचित इनके उपन्यास प्रेमाश्रम किसान जीवन पर आधारित है।

प्रेमचंद की आखिरी कहानी रचना मंगलसूत्र है। मंगलसूत्र को प्रेमचंद की आखिरी उपन्यास मानी जाती है।

31 जुलाई 1880

मुंशी प्रेमचंद के पिता डाकखाने में एक नौकर के तौर पर काम करते थे।

आज के इस लेख में आपको बताया कि हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद के बचपन का समय किस प्रकार से व्यतीत हुआ है और उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में भी हमने इस लेख के माध्यम से आपको बताया है।

हम उम्मीद करते हैं कि हमारे द्वारा शेयर की गई यह उपन्यास सम्राट प्रेमचंद का जीवन परिचय (munshi premchand biography in hindi) आपको पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर जरूर करें। यदि आपका इस लेख से जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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Rahul Singh Tanwar

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मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन परिचय

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय, रचनाएं, कहानी, उपन्यास, नाटक, साहित्यिक परिचय

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय.

मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के करीब लमही गांव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनका मूल नाम धनपतराय था। प्रेमचंद जी के पिता का नाम श्री अजायब राय था और माता जी का नाम श्रीमती आनंदी देवी था मुंशी प्रेमचंद्र जी की प्रारंभिक शिक्षा बनारस में हुई थी। बी.ए. तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होंने शिक्षा विभाग में नौकरी कर ली परंतु असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के लिए नौकरी से त्यागपत्र दे दिया लेखन कार्य के प्रति पूरी तरह समर्पित हो गए। मुंशी प्रेमचंद जी की मृत्यु सन 1936 में हुआ था

मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन परिचय

मुंशी प्रेमचंद जी की साहित्य परिचय

डा.द्वारिका प्रसाद सक्सेना ने लिखा है। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद का आगमन एक ऐतिहासिक घटना थी उनकी कहानियों में एसी घोर यंत्रणा, दुखद, गरीबी, असप्त दुख, महान स्वार्थ, और मिथ्या आडंबर से तड़पते हुए व्यक्ति की अकुलाहट देखने को मिलती है। जो हमारे मन को कचोट जाती है। और हमारे हृदय में टीस पैदा कर देती।, 33 वर्षों के रचनात्मक जीवन में ऐसा साहित्य सौंप गए।

मुंशी प्रेमचंद्र जी की रचनाएं

मुंशी प्रेमचंद की पहली कहानी सन् 1915 में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई ।

कहानी संग्रह – नव निधि, ग्राम में जीवन की कहानीया, प्रेरणा, कफन, प्रेम प्रसून, प्रेम पच्चीसी, प्रेम चतुर्थी, मनमोहक, मानसरोवर (आठ भाग), समर यात्रा, सप्त सरोज, अग्नि समाधि, प्रेमगंगा, और सप्त सुमन। उपन्यास – सेवा सदन ,प्रेमाश्रम ,रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन, गोदान, प्रतिज्ञा, मंगलसूत्र नाटक – कर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी, रूठी रानी। निबंध संग्रह – विविध प्रसंग( तीन खंडों में) कुछ विचार। संपादन कार्य – माधुरी, हंस, मर्यादा, जागरण। जीवन चरित्र – कलम, तलवार और त्याग, दुर्गादास, महात्मा शेखसादी और रामचर्चा। अनुदित – अहंकार, सुखदास, आजाद कथा, चांदी की डिबिया, टालस्टाय की कहानियां और सृष्टि का आरंभ।

प्रेमचंद जी की भाषा

इनकी भाषा सजीव मुहावरेदार तथा बोलचाल के निकट है। तत्सम तथा उर्दू शब्दों का सुंदर प्रयोग, और प्रेमचंद जी की भाषा में दो रूप है। एक वह रूप जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता है। और दूसरा रूप जिसमें उर्दू ,संस्कृत और हिंदी के व्यवहारिक शब्दों का प्रयोग किया गया। इसी भाषा का भावपूर्ण, वर्णनात्मक, कथा संवादात्मक, का प्रयोग इन्होंने अपने श्रेष्ठ कृतियों में किया है। यह भाषा अधिक सजीव व्यवहारिक और प्रवाह्मयी हैं। यही भाषा प्रेमचंद जी की प्रतिनिधि भाषा है। प्रेमचंद जी ने अपने साहित्य की रचना जनसाधारण के लिए किया। इसी कारण उन्होंने सरल सजीव एवम सरस शैली में ही अपनी रचनाओं का सृजन किया। वे विषय एव भावो के अनुरूप शैली को परिवर्तित करने में  दक्ष थे।

प्रेमचंद जी की शैली

प्रेमचंद जी ने अपने साहित्य मे निम्नलिखित शैलियों का प्रयोग किया है।

1. वर्णनात्मक शैली – किसी पात्र, वस्तु, घटना आदि का वर्णन करते समय इस शैली का प्रयोग किया जाता है। नाटकीय सजीवता इनके द्वारा प्रयुक्त इस शैली की प्रमुख विशेषता है।

2 . मनोवैज्ञानिक शैली – मुंशी प्रेमचंद जी ने मन के भाव तथा पात्रो के मन में उत्पन्न अंतर्द्वंद को चित्रित करने के लिए शैली का प्रयोग किया है।

3. विवेचनात्मक शैली – प्रेमचंद जी ने अपने गंभीर विचारों को व्यक्त करने के लिए विवेचनात्मक शैली को अपनाया है। इस शैली में संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग अधिक किया गया है।

4. भावनात्मक शैली – काव्यात्मक एवं आलांकरिकता पर आधारित इनकी शैली के अंतर्गत मानव जीवन से संबंधित विभिन्न भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है।

5. हास्य व्यंग्यात्मक शैली – सामाजिक विषमताओं का चित्रण करते समय इस शैली का प्रभावपूर्ण प्रयोग किया गया है।

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मुंशिप्रेमचंद जी के कार्य क्षेत्र

मुंशी प्रेमचंद आधुनिक युग में हिंदी कहानी लेखकों के पितामह कहलाए जाते है। उनके साहित्य जीवन का प्रारंभ 1901 मे हो चुका था। उनकी पहली कहानी संस्कृति पत्रिका में सन् 1915 मे प्रकाशित हुई थी। और 1931 मे अंतिम कहानी कफ़न प्रकाश हुई थी। उनकी लिखी हुई कहानी मे अनेकों रंग देखने को मिलते है। जबकि उनसे पहले लिखी कहानियों में अधिकतर काल्पनिक, राजनीतिक, और धार्मिक कहानियां ही लिखी जाती थी। प्रेमचंद जी ने अपनी लेखनी में यथार्थवाद को ही दर्शाया था। प्रेमचंद जी की लेखनी के बाद ही भारतीय साहित्य का बहुत सा विमर्श जो बाद में उभर कर आया। चाहे वो दलित साहित्य से संबंधित हो या नारी साहित्य से संबंधित, परंतु प्रेमचंद जी के नाम पहली कहानी बड़े घर की बेटी जमाना, 1910 मे पत्रिका के दिसम्बर अंक में प्रकाशित हुई। उनके मरणो उपरांत उनकी कहानियां मानसरोवर नाम से आठ खंडो मे प्रकाशित हुई थी। महान सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी का कहना था कि साहित्यकार राजनीतिक और देशभक्ति के पीछे चलने वाली सच्चाई नही बल्कि उनके आगे मशाल लेकर चलने वाली सच्चाई हैं। और ये बात उनकी साहित्य में उजागर हुई थीं। उन्होंने महात्मा गांधी जी के आव्हान कार्य मे जुट कर अपनी नौकरी छोड़ दी थी। और अपने लेखन कार्य का ही संपादन और अध्यक्षता पद को संभाला। एसे लेखन कार्य से ओतप्रोत लेखक दुनिया में कभी-कभी ही जन्म लेते है। जिनका लेखन देखते ही बनता है। एसे साहित्यकार अपनी लेखनी जीवन की छबियो को दिखाते है। जिनको पड़ कर जीवन की सच्चाई झलकती है।

मुंशी प्रेमचंद जी जैसे साहित्यकार हमें कम ही देखने को मिलते है। क्युकी इनका साहित्य न केवल पुस्तकों तक ही सीमित रहता है। बल्कि जीवन के क्षेत्रो में एक अमिथ छाप छोड़ता है। एक श्रेष्ठ कथाकार और उपन्यासकार को हिंदी साहित्य में उदित इस चन्द्र को हमारा देश सदैव नमन करता है।

संबंधित प्रश्न उत्तर

Q.1 प्रेमचंद का जन्म कहां हुआ था.

वाराणसी के लमही नामक गांव में

Q.2 प्रेमचंद की मृत्यु कब हुई थी?

8 अक्टूबर 1936 में

Q.3 प्रेमचंद के नाटक के नाम लिखिए?

कर्बला, संग्राम, रूठी रानी, प्रेम की वेदी

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मुंशी प्रेमचन्द्र जीवनी | munshi premchand Biography in Hindi | मुंशी प्रेमचन्द्र का जीवन परिचय | munshi premchand jivani

By: Sakshi Pandey

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अमूमन हिन्दी साहित्य का इतिहास अनगिनत होनहार शख्सियतों के हुनरों से खजाना है। लेकिन इसी कड़ी में एक नाम ऐसा भी है, जिसने अपनी कल्पना और कलम के समागम को साहित्य के पन्नों पर कुछ इस कदर उकेरा कि लोग उनकी कलम के कायल हो गए। दशकों बाद भी उनकी कहानियां हर बच्चे की जुबां पर हैं, तो उनके उपन्यासों की दास्तां के दीवाने भी कई हैं। हिन्दी साहित्य के सुनहरे इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाली वो अद्भुत हस्ती हैं मुंशी प्रेमचन्द्र। (munshi premchand biograophy in Hindi )

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मुंशी प्रेमचन्द्र का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश राज्य में बनारस (वाराणसी) जिले के लमही नामक गांव में हुआ था। मुंशी जी के बचपन का नाम (munshi premchand childhood name) धनपत राय था। तीन बहनों में सबसे छोटे भाई मुंशी जी नवाब राय के नाम से भी मशहूर थे।

सन् अट्ठारह सौ अस्सी, लमही सुंदर ग्राम। प्रेमचंद को जनम भयो, हिन्दी साहित काम।। परमेश्वर पंचन बसें, प्रेमचंद कहि बात। हल्कू कम्बल बिन मरे, वही पूस की रात।।

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munshi premch Biography in Hindi

मुंशी जी के पिता अजायब राय गांव के ही डाकघर में मुंशी थे, वहीं उनकी माता का नाम आनन्दी था, जिनके नाम का जिक्र मुंशी प्रेमचन्द्र की मशहूर कहानी बड़े घर की बेटी में आनन्दी का किरदार निभाने वाली मुख्य नायिका के रूप में मिलता है।

मुंशी प्रेमचन्द्र बचपन से ही अपनी मां और दादी के बेहद करीब थे। लेकिन मुंशी जी महज 8 साल के थे, जब उनकी माता का स्वर्गवास हो गया और कुछ समय बाद उनकी दादी भी चल बसीं। वहीं उनकी बड़ी बहन की भी शादी हो चुकी थी।ऐसे में मुंशी जी बेहद अकेले हो गए। इसी बीच पिता का तबादला गोरखपुर हो गया।

मंशी जी के बचपन का जिक्र करते हुए रामविलास शर्मा जी कहते हैं- “जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। जब पंद्रह वर्ष के हुए तब उनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष के होने पर 1897 में उनके पिता का भी देहांत हो गया।”

मुंशी जी नौंवी कक्षा में थे, जब उनका विवाह एक बड़े सेठ की बेटी से कर दिया गया था। हालांकि साल 1906 में शिवरानी राय से हुआ, जोकि एक बाल विधवा थीं।

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मुंशी जी ने 7 साल की उम्र में लमही में ही स्थित एक मदरसे से अपनी स्कूली शिक्षा शुरु की थी। मुंशी जी को बचपन से ही किताबें पढ़ने का बेहद शौक था। उन्होंने छोटी सी उम्र में पारसी भाषा में लिखित तिलिस्म-ए-होशरुबा किताब पढ़ ली थी। इसी दौरान मंशी जी को किताबों की दुकान पर नौकरी मिल गई। किताबों की बिक्री के साथ-साथ मुंशी जी को यहां ढ़ेर सारी किताबें पढ़ने का मौका मिला।

वहीं मुंसी जी ने एक मिशनरी स्कूल से अंग्रेजी भाषा की शिक्षा प्राप्त की, जिसके बाद उन्होंने जॉर्ज रेनॉल्ड्स के द्वारा लिखी मशहूर किताब ‘ द मिस्ट्री ऑफ द कोर्ट ऑफ लंदन ’ का आठवां संस्करण भी पढ़ा।

हालांकि किताबों के शौकीन मुंशी जी गणित में काफी कमजोर थे। नतीजतन उन्हें बनारस के क्वीन्स कॉलेज में दाखिला तो मिल गया लेकिन विश्वविद्यालय के नियमानुसार परीक्षाओं में पहली श्रेणी हासिल करने वाले विद्यार्थियों को ही आगे की पढ़ाई करने की अनुमति थी। वहीं प्रेमचन्द्र जी का नाम दूसरी श्रेणी में आने के कारण कॉलेज से उनका नाम काट दिया गया।

जिसके बाद उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में दाखिला लेने की कोशिश की लेकिन गणित कमजोर होने के कारण यहां भी बात न बन सकी।

मुंशी जी की शिक्षा के बारे में लिखते हुए रामविलास शर्मा जी कहते हैं कि- “1910 में मुंशी जी ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद 1919 में अंग्रेजी, फारसी और इतिहास विषय से स्नातक किया। जिसके बाद मुंशी जी शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए।

हालांकि 1921 में महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन का आह्वान करने के साथ ही मुंशी जी ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और पूरी तरह से साहित्य के कार्य जुट गए।

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munshi premch Biography in Hindi

मुंशी प्रेमचन्द्र के अंदर लिखने का हुनर बचपन से ही था। उन्होंने अपनी पहली कहानी गोरखपुर में ही लिखि थी। यह कहानी एक पढ़े-लिखे नौजवान और एक पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखने वाली महिला की प्रेम कहानी थी।

दरअसल पन्द्रह – सोलह साल तक की जिस उम्र में आम बच्चे दुनिया से रुबरु होने की कला सीखना शुरु करते हैं, उसी उम्र तक मुंशी जी जिंदगी की कई हकीकतों से वाकिफ हो चुके थे। राम विलास शर्मा की जुबां में – “सौतेली माँ का व्यवहार, बचपन में शादी, पंडे-पुरोहित का कर्मकांड, किसानों और क्लर्कों का दुखी जीवन-यह सब प्रेमचंद ने सोलह साल की उम्र में ही देख लिया था।”

शायद यही कारण था कि उनकी परिपक्कवता की झलक उनके साहित्य में आसानी से देखी जा सकती थी। मुंशी जी ने ‘देवस्थान रहस्य’ शीर्षक नाम से अपना पहला उन्यास लिखा, जिसे उन्होंने ‘नवाब राय’ केनाम से प्रकाशित कराया। ( munshi premchand ka jivan parichay )

साल 1909 में इन्सपेक्टर के पद पर तैनात मुंशी जी का तबादला कानपुर हो गया। इसी दौरान मुंशी जी की मुलाकात प्रसिद्ध उर्दू पत्रिका ‘जमाना’ के संपादक मुंशी दया नारायण निगम से हुई।

जिसके बाद जमाना के हर संस्करण में मुंशी जी के द्वारा लिखी अनगिनत कहानियां और विचार छपने लगे। इन विचारों में राजनीतिक टिप्पणियों से लेकर तंज, रोचक कहानियां सहित कई मंनोरंजन की लेखनियां शामिल थीं।

मुंशी प्रेमचन्द्र जी की पहली कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’ 1907 में जमाना पत्रिका का हिस्सा बना। वहीं उनका दूसरा उपन्यास ‘प्रेमा’ भी 1907 में ही संपादित हुआ। यह उपन्यास विधवा विवाह पर आधारित था।

1907 में जमाना ने पहली बार मुंशी जी की कहानियों का कलेक्शन ‘शोज-ए-वतन’ के नाम से छापा।

1909 में ही मुंशी जी का तबादला हमीरपुर कर दिया गया। इस समय तक मुंशी जी न सिर्फ साहित्य की दुनिया में बल्कि समूचे हिन्दुस्तान में उर्दू लेखक के रुप में एक जानी-मानी हस्ती बन चुके थे।

इसी दौरान पहली बार ब्रिटिश हुकूमत की नजर मुंशी जी द्वारा लिखी कहानी संग्रह ‘शोज-ए-वतन’ पर पड़ी। ब्रिटिश सरकार ने मुंशी जी की इस किताब पर बैन लगा दिया और इसी के साथ मुंशी जी के घर की तलाशी के दौरान किताब की 500 कॉपियों को भी जला कर राख कर दिया गया।

इतने बड़े हादसे और मुंशी जी से ब्रिटिश हुकूमत की नाराजगी के बाद जमाना पत्रिका के संपादक दया नारायण जी ने जमाना के सभी संस्करणों से मुंशी जी का नाम नवाब राय से बदल कर प्रेमचन्द्र रख दिया और तब से मुंशी जी साहित्य की दुनिया में प्रेमचन्द्र के नाम से प्रख्यात हो गए।

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1921 में आजादी की आवाज बने महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन का आगाज किया। गांधी जी के आह्वान पर समूचा देश ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक जुट हो गया। इसी कड़ी में राष्ट्रप्रेम से प्रेरित होकर मुंशी जी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और बनारस वापस लौट कर अपना सारा जीवन साहित्य को सौंपने का फैसला कर लिया।

1923 में मुंशी जी ने बनारस में सरस्वती प्रेस की नींव रखी। 1924 में मुंशी जी ने भक्तिकाल के मशहूर कवि सूरदास पर आधारित ‘रंगभूमि’का प्रकाशन किया। वहीं एक के बाद एक प्रेमचन्द्र द्वारा प्रकाशित कई लेखिनिया लोकप्रिय होती गईं।

1928 में मुंशी जी ने मशहूर उपन्यास गबन (munshi premchand gaban) का प्रकाशन किया। जिसके बाद बनारस में उन्हें मर्यादा पत्रिका का संपादक नियुक्त कर दिय गया और फिर बाद में मुंशी जी ने लखनऊ आधारित माधुरी पत्रिका के संपादन का कार्य संभाला।

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31 मई 1934 को मुंशी प्रेमचन्द्र हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई पहुंच गए।  बंबई में मुंशी जी को अजंता सीनेटोन के बैनर तले फिल्म लेखन के लिए 8000 रुपए पर एक साल का कॉन्ट्रैक्ट मिला।

मुंशी प्रेमचन्द्र ने मोहन भवानी के निर्देशन में बनी फिल्म मजदूर की कहानी लिखी। इस फिल्म को दिल्ली और लाहौर में रिलीज किया गया। फिल्म फैक्ट्री में काम करने वाले गरीब मजदूरों पर आधारित थी। नतीजतन फिल्म की रिलीज के साथ ही कई दिल्ली और लाहौर के मील मदजूरों ने अपने मालिकों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया, जिसके चलते ब्रिटिश सरकार ने फिल्म पर पाबंदी लगा दी।

वहीं दूसरी तरफ बनारस में मुंशी जी की सरस्वती प्रकाशन कर्ज में डूब चुकी थी और मजदूर फिल्म से प्रभावित होकर प्रकाशन के कामगारों ने भी कई महीनों की तनख्वा बकाया रहने पर हड़ताल शुरु कर दी।

लिहाजा 4 अप्रैल 1935 को मुंशी जी बनारस के लिए रवाना ह गए। हालांकि बाद में बाम्बे टॉकीज के मालिक हिमांशु रॉय ने कई बार मुंशी जी से बंबई वापस आने की गुजारिश की लेकिन मुंशी जी बनारस छोड़ कर जाना मुनासिब नहीं समझा।

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बंबई से वापस आने के बाद मुंशी जी ने इलाहाबाद में बसने का फैसला किया। इसी दौरान1936 में मुंशी जी को लखनऊ आधारित प्रोग्रेसिव राइटर एसोसीएशन का अध्यक्ष चुना गया। इसी साल पिछले काफी दिनों से बिमार (munshi premchand death cause) होने के कारण 8 अक्टूबर 1936 को हिन्दी साहित्य के महान लेखक मुंशी प्रेमचन्द्र जी ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

1936 में ही मुंशी जी की मशहूर उपन्यास गोदान (munshi premchand godan) प्रकाशित हुई, जिसका प्रकाशन अंग्रेजी में ‘द गिफ्ट ऑफ काऊ’ के नाम से हुआ।शुल्ज ने गोदान का जिक्र करते हुए लिखा- गोदान एक बेहतरीन और संतुलित उपन्यास है। हालांकि मुंशी जी की रचनाएं उचित अनुवाद के अभाव में सीमित जनसंख्या तक ही पहुंच सुनिश्चित कर सकेंगी। जिसके कारण रविन्द्रनाथ टैगोर और इकबाल जैसे अन्य महान लेखकों की अपेक्षा मुंशी प्रेमचन्द्र का नाम देश के बाहर कुछ चुंनिदा लोग ही जान सकेंगे।”

मुंशी जी के निधन के बाद 1938 में उनकी आखिरी कहानी ‘क्रिकेट मैचिंग’ का प्रकाशन जमाना पत्रिका में किया गया।

मुंशी जी के मशहूर उपन्यास (munshi premchand novels)

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Reference- 29 March 2021, munshi premchand Biography in Hindi , wikipedia

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मुंशी प्रेमचंद की जीवनी Munshi Premchand Biography in Hindi

Biography of munshi premchand in hindi.

मुंशी प्रेमचंद

Munshi Premchand Biography in Hindi

मुंशी प्रेमचंद (Hindi Writer Munshi Premchand) को आधुनिक हिंदी का पितामह कहा जाता है| आसमान में जो स्थान ध्रुव तारे का है वही स्थान हिन्दी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद का है| मुंशी जी हिन्दी के प्रमुख लेखकों में से एक हैं| खासकर हिन्दी और उर्दू में प्रेमचंद जी का विशेष लगाव रहा है| मुंशी जी को उपन्यास सम्राट भी कहा जाता है| आज भी स्कूल और विद्यालयों में मुंशी जी की कहानियां बच्चों को पढ़ाई जाती हैं| प्रेमचंद जी हिंदी के सबसे लोकप्रिय और जाने माने लेखक हैं|

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस से थोड़ी दूर लमही नामक गाँव में हुआ था| मुंशी जी के पिता अजायब राय जी एक डाकखाने में छोटी नौकरी करते थे| मुंशी जी उस समय मात्र 8 वर्ष के रहे होंगे जब इनकी माँ का देहांत हो गया| बाल्यावस्था में ही इनके ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा| इनके पिता ने घर की देखभाल के लिए दूसरी शादी कर ली लेकिन सौतेली माँ की आँखों में मुंशी जी के लिए कोई प्रेम नहीं था| बचपन में ही गरीबी और बड़ी विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा|

उस समय बहुत कम उम्र में ही लोगों की शादियाँ हो जाया करती थीं सो प्रेमचंद जी का विवाह भी मात्र 15 वर्ष की आयु में ही हो गया| मुंशी जी ने खुद अपनी पत्नी के बारे में लिखा है कि वो उम्र में मुंशी जी से बड़ी और कुरूप थीं|

विवाह के एक वर्ष बाद ही पिता का देहांत हो गया| प्रेमचंद जी पर मानो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा| सौतेली माँ के 2 बच्चे, अपनी पत्नी और एक खुद – इस तरह 4 लोगों जिम्मेदारी मुंशी जी के कंधों पर ही आ पड़ी|

मुंशी जी ने परिवार का खर्चा चलाने के लिए अपने कपड़े और किताबें तक बेच दीं| लेकिन पढ़ाई का शौक मुंशी जी को शुरुआत से ही था इसी बीच उन्होंने एक स्कूल में अध्यापक की नौकरी कर ली|

मुंशी जी जब छोटे थे तो अपने गाँव से बहुत दूर बनारस में पैदल ही पढ़ने जाते थे| बचपन से ही एक बड़ा वकील बनना चाहते थे| पढ़ाई का शौक भी था लेकिन गरीबी की वजह से सारे सपने दम तोड़ते नजर आ रहे थे| मुंशी जी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपनी स्कूल की फीस देते थे| किसी तरह मुश्किल ने मैट्रिक पास किया|

परिस्थितियां कठिन जरूर थीं लेकिन साहित्य के प्रति उनका लगाव लगातार बढ़ता ही जा रहा था| मुंशी जी ने 13 साल की छोटी सी उम्र में अपनी पहली कहानी लिखी थी| कम उम्र में ही उन्होंने बड़े बड़े लेखकों के सारे उपन्यास पढ़ डाले| पढ़ने का इतना शौक था कि घंटों बुकसेलर की दुकान पर बैठकर ही पढ़ते रहते थे|

मुंशी प्रेमचंद के पहली पत्नी से सम्बन्ध मधुर नहीं थे| उनकी पत्नी अपने मायके जाकर रहने लगीं| तब मुंशी जी ने एक विधवा से शादी करके विधवा विवाह को बढ़ावा दिया|

प्रेमचन्द जी बड़े हंसमुख प्रवर्ति के व्यक्ति थे| ऊपर से सादा दिखने वाले मुंशी जी को गांव और लोगों से विशेष प्रेम था| उनका व्यक्तित्व इतना शानदार और सरल था कि हर कोई उनसे बड़ी जल्दी प्रभावित हो जाता था|

उर्दू और हिन्दी में मुंशी जी का विशेष लगाव था| शुरुआत में ये कहानियां लिखा करते थे और फिर नाटक और कई प्रसिद्ध उपन्यास भी लिखे| मात्र 13 वर्ष की उम्र में ही उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ हो चुका था| पर उनकी पहली हिन्दी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसम्बर अंक “सौत” नाम से प्रकाशित हुई| मुंशी प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि कई रचनाएँ लिखीं| उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि लिखे लेकिन सबसे इन सबमें इनके उपन्यासों को सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली और इसलिए इन्हें “उपन्यास सम्राट” के नाम से जाना जाने लगा|

प्रेमचंद जी की मुख्य कहानियां इस प्रकार हैं – ‘पंच परमेश्‍वर’, ‘गुल्‍ली डंडा’, ‘दो बैलों की कथा’, ‘ईदगाह’, ‘बड़े भाई साहब’, ‘पूस की रात’, ‘कफन’, ‘ठाकुर का कुआँ’, ‘सद्गति’, ‘बूढ़ी काकी’, ‘तावान’, ‘विध्‍वंस’, ‘दूध का दाम’, ‘मंत्र’ आदि

प्रेमचंद के कुछ मुख्य उपन्यास इस प्रकार हैं – कर्मभूमि, निर्मला, गोदान, गबन, अलंकार, प्रेमा, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, प्रतिज्ञा

मुंशी जी ने पूरे जीवन हिंदी की जो सेवा की वो अतुलनीय है| 8 अक्टूबर 1936 को सरस्वती का ये पुत्र सदा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गया लेकिन उनकी कृतियाँ आज भी उन्हें हमारे दिलों में जिंदा बनाए हुए हैं|

सर्वश्रेष्ठ 145 मुंशी प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर : Munshi Premchand Ki Kahani

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