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मैं एक वकील क्यों बनना चाहता हूँ पर निबंध (why I want to become a Lawyer Essay in Hindi)

एक वकील वह व्यक्ति होता है, जो न्यायिक कार्यों से निपटने और दूसरों को उनके अधिकार दिलाने में मदद करता है। वह लोगों की किसी भी तरह की सामाजिक समस्याओं से मदद कर सकते हैं। हर देश में एक कानून होता है और हर किसी को निश्चित रूप से इसका पालन करना चाहिए और जब कोई व्यक्ति नियमों की अवहेलना करता है या कोई समस्या खड़ी करता है, तब लोगों को उनसे निपटने के लिए एक वकील की आवश्यकता पड़ती है। आज हम इस विषय पर आपके लिए कुछ निबंध लेकर आये हैं; मुझे यकीन है कि ये आपकी शैक्षणिक आवश्यकताओं में मददगार साबित होंगे:

मैं एक वकील क्यों बनना चाहता हूँ पर हिंदी में लघु व दीर्घ निबंध (Short and Long Essays on why I want to become a Lawyer in Hindi, Mai Ek Vakil kyo banana chahata hu par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (250 शब्द) – मैं एक वकील क्यों बनना चाहता हूँ.

जब हम एक बच्चे से पूछते हैं कि वह वास्तव में क्या बनना चाहता है, उनमें से कुछ डॉक्टर बनना चाहते हैं, जबकि कुछ इंजीनियर बनने की इच्छा दिखाते हैं। इसी तरह, जब मैं छोटा था, मैं एक वकील बनना चाहता था। मुझे यह पेशा पसंद है क्योंकि यह हमारा अधिकार पाने के बारे में है। मुझे दूसरों की समस्याओं को हल करना अच्छा लगता है और मुझे लगता है कि यह पेशा मेरे लिए एकदम सही है।

मेरी छुपी हुई प्रतिभा

जब मैं छोटा था, मैं काफी ज्यादा टीवी देखा करता था और न्यूज़ भी खूब देखता था। मुझे न्यूज़ चैनल देखना काफी पसंद था क्योंकि यहाँ पर मुझे दुनिया भर में हो रही घटनाओं के बारे में काफी कुछ जानने को मिल जाता था। इसके अलावा जब मैं कुछ अजीब देखता हूँ, तो यह मुझे चोरों या अपराधियों को खोजने और उन्हें दंडित करने के लिए उकसाता है। मगर मेरे पास ऐसा कुछ भी करने का अधिकार नहीं था और मैं छोटा भी था।

एक दिन मैंने अपनी माँ से पूछा, वह कौन सा तरीका है जिससे मैं गरीब लोगों को न्याय दिला सकूँ। तब उन्होंने मुझे बताया कि इस तरह की परिस्थियों से निपटने के लिए मुझे वकील बनना पड़ेगा। उसी दिन से यह पेशा मुझे आकर्षित करने लगा। मैने फैसला कर लिया कि मैं वकील बनूँगा और एक दिन जरुर बनूँगा।

जो भी तुम्हे आकर्षित करे वो करो और ऐसा करने से तुम एक दिन निश्चित रूप से सफल बनोगे। जब हमारा पेशा हमारा शौक बन जाता है तब हमें कोई भी नहीं रोक सकता। वह जोश लाओ और खुद में बदलाव देखो। मुझे सचाई आर न्याय से निपटने में काफी अच्छा लगता है, इसी लिए मैंने यह पेशा चुना। आपका पेशा चुनने की वजह कुछ और हो सकती है।

निबंध 2 (400 शब्द) – वकालत एक पेशे की तरह

अलग अलग लोगों को अलग अलग रंग पसंद होते हैं उसी तरह से जब हम पेशे की बात करते हैं हर किसी का अलग नजरिया होता है। मान लीजिये हम सभी डॉक्टर बन गए और अगर इनमें से किसी को घर बनाने की जरूरत पड़ गयी तो क्या होगा। जब पूरा समाज डॉक्टरों से ही भरा हुआ है तो ऐसे में घर बनाएगा कौन? इसलिए उसे एक इंजीनियर की आवश्यकता पड़ेगी। ठीक इसी तरह से अलग अलग पेशे के लोगों का अपना अलग महत्त्व होता है।

हमें शांति बनाये रखने के लिए पुलिस की आवश्यकता पड़ती है, न्यायिक समस्याओं से निपटने के लिए वकील की जरूरत होती है, कचरा साफ़ करने के लिए सफाई वाले की आवश्यकता होती है, आदि। कोई भी पेशा ना तो बड़ा होता है और ना ही छोटा। एक डॉक्टर की क्लिनिक तब तक साफ़ नहीं हो सकती जब तक की वहां पर कोई सफाई वाला ना हो। हम सभी की पसंद अलग होती है और हम उसी के अनुसार अपना पेशा भी चुनते हैं।

वकील बनने के कुछ सकारात्मक पहलू

  • वकील बनना सिर्फ एक पेशा नहीं है, बल्कि यह हमारी क्षमता को जानने में भी हमारी मदद करता है। कभी-कभी हम यह भी नहीं जानते हैं कि हम कितना कर सकते हैं और एक सामान्य व्यक्ति की क्या-क्या शक्तियां हैं। यह पेशा हमें अपनी ताकत और अधिकार को जानने में मदद करता है।
  • वे यह भी जानते हैं कि किसी समस्या से कैसे निपटना है; असल में हमारे कानून में हर समस्या का हल है। इसलिए, मेरे विचार में, यह सबसे बेहतर पेशों में से एक है।
  • एक वकील को स्मार्ट होना चाहिए और उसके पास एक बहुत अच्छी तार्किक शक्ति होनी चाहिए क्योंकि इससे उन्हें सबूत ढूंढने में मदद मिलती है और अदालत में एक अच्छी मौखिक लड़ाई में भी बल मिलता है।
  • आपको मेरा विश्वास हो या ना हो मगर लोग कभी भी किसी वकील से उलझना पसंद नहीं करते क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसा करने पर वे खुद मुश्किल में पड़ सकते हैं। इसलिए, कई लोग उनसे दूर ही रहते हैं और यह एक अच्छी बात है।
  • मेरे जैसे लोग इस पेशे से प्यार करते हैं क्योंकि मैं किसी भी कीमत पर सच्चाई को खोजना पसंद करता हूँ। यह पेशा सिखाता है कि पेशेवर रूप से कैसे मैं किसी मामले को संभाल सकता हूँ और लोगों की मदद कर सकता हूँ।

वकील की शक्षिक योग्यताएँ

अगर आप एक वकील बनाने की चाहत रखते हैं तो आपको यहाँ बताये गए पाठ्यक्रम को करना होगा;

  • उच्च माध्यमिक पूरा करने के बाद आपको लॉ स्ट्रीम से अपना स्नातक पूरा करना चाहिए। कुछ अन्य स्नातक पाठ्यक्रम जैसे कि बीए, बीबीए, बी.कॉम आदि के साथ भी एलएलबी किया जा सकता है।
  • आप किसी भी विषय से अपना ग्रेजुएशन पूरा कर सकते हैं और साथ में एलएलबी भी कर लेना चाहिए। कई कॉलेज हैं जो इस कोर्स को एक साथ प्रदान कराते हैं और इस कोर्स को पूरा करने में लगभग 5 साल लगते हैं। इसके अलावा, कई विदेशी कॉलेज भी हैं जो कानून के छात्रों के लिए अलग-अलग पाठ्यक्रम मुहैया कराते हैं।

अगर आपके पास सीखने की बेहतर क्षमता है और आप चीजों को याद रखने में भी अच्छे हैं, तो निश्चित रूप से आपको इसके लिए जाना चाहिए; क्योंकि बहुत से अधिनियमों और नियमों को मुंहजुबानी याद होना चाहिए। इन सभी को समझने के लिए तेज दिमाग होना चाहिए। यहाँ पर मैं एक बात और कहना चाहूँगा, यदि आप वास्तव में अपने पेशे के बारे में काफी उत्साहित हैं, तो आपको कोई भी रोक नहीं सकता है।

निबंध 3 (600 शब्द) – आपको वकील क्यों बनना चाहिए?

वकालत एक बहुत ही शानदार पेशा है जहां एक व्यक्ति को सभी प्रकार के कानूनों को जानना चाहिए और न्यायपालिका के कार्यों के बारे में भी अच्छी तरह से जानकारी होनी चाहिए। उसे किसी भी तरह के कानूनी कार्यों से निपटने में सक्षम होना चाहिए। वकीलों को कानूनी व्यवसायी, प्रतिनिधि, बैरिस्टर, कानून एजेंट, आदि के रूप में भी जाना जाता है।

सबसे पहला वकील

इस पद का सबसे पहली बार बाइबल में वर्णन किया गया था और यह ‘ज़ेनस’ था जो पहला वकील था।

बाइबल के अलावा, प्राचीन ग्रीस में भी वकीलों के साक्ष्य देखे जा सकते हैं, जहां वक्ता उसी काम को करने के लिए उपयोग में लाये जाते थे। इसलिए, उन्हें हमारे इतिहास में प्राचीन वकीलों का श्रेय दिया जाता है और इस तरह से हम कह सकते हैं कि वकीलों के प्रमाण प्राचीन रोम में भी देखे जा सकते है।

जब हमारे पास रोम के प्राचीन काल में वकील थे, तब उन्होंने इस क्षेत्र में सबसे पहले काम किया और प्रगति भी की। धीरे-धीरे समय बिता और 1848 में अमेरिका ने इस पेशे को अस्तित्व में लाया।

पुरुष श्रेणी की दुनिया में पहली बार वकील का अस्तित्व साबित करने वाले अलग-अलग नाम हैं। जबकि इसी पेशे में कुछ विश्वव्यापी प्रसिद्ध महिलाएँ भी हैं, जैसे कि ‘अरबेला मैन्सफील्ड’ जो कि संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली महिला वकील थीं; जबकि ‘कोर्नेलिया सोराबजी’ पहली भारतीय महिला थीं और उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में लॉ की पढ़ाई की थी।

मुझे यह पेशा क्यों पसंद है ?

यहाँ पर कई ऐसे पहलू हैं जो मुझे इस पेशे की तरफ आकर्षित करते हैं; मैंने कुछ के बारे में नीचे बताया भी है;

  • मेरे विचार में, हर किसी को उसके अधिकार और उसकी शक्तियों का पता होना चाहिए। यह तभी संभव है जब आपको कानून से सम्बंधित गहरी जानकारी हो। हमारे मौलिक अधिकारों के अलावा, यहाँ पर कुछ और भी नियम और कानून होते हैं जो हमें जानना चाहिए। जैसे आपकी सम्पति और उसके उत्तराधिकारी की जानकारी, आदि।
  • कानून हमें कई तरह की समस्याओं से निपटने में मदद करता है। कभी कभी हम में से कई लोगों को इस बात की कोई जानकारी नहीं होती है कि किसी मामलें में उन्हें क्या करना चाहिए और कुछ समय के बाद वो उसे भूल जाते हैं। असल में कोई भी व्यक्ति अपने एक रुपये के लिए भी लड़ सकता है मगर हममें से काफी कम ही लोग इसके सही तरीकों के बारे में जानते हैं और ऐसे में वो भूल जाते हैं।
  • अगर आप उनमें से एक हैं जो सच के लिए लड़ना पसंद करते हैं तब आप इस पेशे से जुड़ सकते हैं। कभी कभी हम किसी अपने को ही इन झमेलों में देखते है जबकि वो सही भी होते हैं, मगर साक्ष्य और कुछ सामाजिक ताकतों के कमी की वजह से उन्हें झेलना पड़ता है। इस तरह के मामलों में यह पेशा वाकई में मददगार साबित हो सकता है और आप किसी पेशेवर वकील की तरह काम कर सकते हैं या फिर समाज सेवा के तहत भी।
  • कुछ केस जीतने और थोड़ा अनुभव हासिल करने के बाद, कोई भी काफी कुछ सिख जाता है और यहाँ पर ऐसे कई वकील मौजूद हैं जो सिर्फ एक सुनवाई में करोड़ों रुपये तक कमा लेते हैं। इसलिए यहाँ पैसा भी है और पैसा आज के समय में बेहद जरूरी है।
  • अगर आप कुछ समाजसेवा करना चाहते हैं और गरीबों तथा मजबूर लोगों की मदद करना चाहते हैं जिनके पास अच्छे वकील कर पाने के लिए पैसे नही होते, आप उनकी मदद के लिए भी वकील बन सकते हैं।
  • इसमें कोई दो राय नहीं है कि वकीलों के पास काफी अच्छी समझ होती है और वे काफी बुद्धिमान, चुनौतीपूर्ण, बहादुर आदि भी होते हैं और निश्चित रूप से ये सभी गुण आपको एक स्मार्ट व्यक्ति भी बना सकते हैं।

मैं उन लोगों में से हूँ जो सच्चाई का पता लगाना पसंद करते हैं और मुझे यह पेशा मेरे लिये काफी ज्यादा बेहतर लगता है। यह ना सिर्फ लोगों की मदद करता है बल्कि हमारे रोजमर्रा के जीवन में भी हमारी मदद करता है। आमतौर पर, वकील काफी ज्यादा पैसा वसूलते हैं और जीवन का एक चरण ऐसा भी होता है जब हम सभी को इसकी आवश्यकता होती है। इसलिए, इस पेशे को चुनना बेहतर है और यदि आपको जरूरत है तो आप कमा भी सकते हैं, लोगों को सामाजिक कार्य के रूप में भी मदद कर सकते हैं। मेरी राय में, यह सबसे अच्छे पेशों में से एक है।

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वकील पर निबंध | Essay On Lawyer In Hindi

नमस्कार दोस्तों आज हम Essay On Lawyer In Hindi में वकील पर निबंध लेकर आए हैं. Short Essay Advocate In Hindi में हम वकील बेरिस्टर व एडवोकेट के बारे में पढेगे, जिन्हें हिंदी में अधिवक्ता कहा जाता हैं.

आपसी विवादों के निप टान और न्यायालय में कानूनी सुनवाई का कार्य वकील का होता हैं. इस निबंध, स्पीच भाषण अनुच्छेद पैराग्राफ में हम वकील के कार्य और मेरा लक्ष्य वकील बनना पर शोर्ट निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं.

Essay On Lawyer In Hindi

हम उस व्यक्ति को वकील के रूप में जानते है जो कानूनों मुकदमों में हमारा पक्ष न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करता हैं. काले कोट एवं सफेद कमीज पेंट की विशिष्ट पोशाक इनकी विशेषता हैं.

अधिवक्ता, अभिभाषक या वकील ऐडवोकेट आदि रूप में इन्हें जाना जाता हैं. वकील को न्यायालय वाद प्रतिपादन तथा दलील रखने का कानूनी अधिकार हैं.

कानून में विशेष्यज्ञता की डिग्री प्राप्त व्यक्ति जिसे कानून का पूर्ण ज्ञान होने के साथ साथ अपनी बात को प्रभावी ढ़ंग से कहने की क्षमता, ज्ञान, कौशल, या भाषा-शक्ति भी जरुरी होती हैं.

आम बोलचाल की भाषा में एडवोकेट को हम लॉयर और बैरिस्टर मान लेते हैं. मगर इन शब्दों के खेल में उलझीये मत. हिंदी में जिसे हम अधिवक्ता यानी किसी तरफ से बोलने वाला कहते है उसे अंग्रेजी में एडवोकेट कहते हैं.

लॉयर वह व्यक्ति कहलाता हैं जिसके पास कानून की डिग्री एलएलबी हो. प्रत्येक लॉयर एडवोकेट नहीं होता है उन्हें यह उपाधि लेने के लिए बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया द्वारा आयोजित एक परीक्षा को उतीर्ण करना पड़ता हैं.

अब हम वकील और बैरिस्टर के अंतर को समझते हैं. ये दोनों ही कानून की डिग्री प्राप्त व्यक्ति होते हैं जबकि अंतर यह है कि जो स्वदेश में रहकर कानून की डिग्री करता है वह लॉयर या वकील कहलाता हैं

जबकि जो इंग्लैंड आदि देशों से वकालत की पढाई करके आते है उन्हें बैरिस्टर कहा जाता हैं. यह पुरानी रुढ़िवादी परम्परा भर हैं हैसियत के लिहाज से इनमें कोई फर्क नहीं हैं.

देशभर हर साल हजारों स्टूडेंट्स कानून में स्नातक करते हैं. विभिन्न न्यायिक विषयों में गहन अध्ययन और अभ्यास के बाद ही एक वकील बना जा सकता हैं. यह पेशा अधिक ज्ञान की आवश्यकता एवं चुनौतियों से भरा हैं.

दशकों पूर्व तक इस पेशे को धनाढ्य वर्ग से जुड़े लोग ही अपनाते थे. वर्तमान में इसका सामान्यीकरण हो चूका हैं. बदलते वैश्विक परिदृश्य में वकालत पेशा सेवा के व्यवसाय के रूप में उभर रहा हैं.

आपने गौर से किसी व्यक्ति को कोर्ट से निकलते देखा हो तो वह हमेशा काला कोट पहने नजर आएगा, वकीलों की विशेष ड्रेस से जुडी यह परम्परा इंग्लैंड से शुरू हुई.

कहा जाता है कि 1865 में जब इंग्लैड के शाही परिवार ने किंग्‍स चार्ल्‍स द्वितीय की मृत्यु हुई तो राजकीय आदेश जारी किया गया कि न्यायालय में वकील और जज सभी काला कोट पहनेगे.

ब्रिटेन से शुरू हुई  परम्परा आज दुनियाभर में सभी वकील अपनाते हैं. हमारे देश में 1961 के तहत वकीलों के लिए ब्लैक कोट अनिवार्य कर दिया गया था, यह उनके अनुशासन व आत्मविश्वास का प्रतीक माना जाता हैं.

हर व्यक्ति जीवन में कुछ न कुछ बनकर सेवा कार्य करना चाहता है. मेरा भी सपना है कि मैं एक दिन वकील बनकर शोषित पीड़ित समाज की मदद कर सकू. आज के संसार में हर व्यक्ति बिका हुआ हैं.

कानून व न्याय का क्षेत्र भी अछूता नहीं हैं. हमारे सिस्टम में वही पीसता है जो गरीब होता है. एक वकील के रूप में पूर्ण ईमानदारी और सेवा के भाव से काम करते हुए सिस्टम तथा धनी लोगों द्वारा सताए गरीब लोगों को न्याय दिलाने में मुझे सबसे अधिक ख़ुशी प्राप्त होगी.

देरी से मिला न्याय अन्याय के बराबर ही होता हैं. हमारी न्याय व्यवस्था की यही सच्चाई है दशकों तक मुकदमों को वकील चाहकर लम्बा खीचते हैं. अपराधी कई बार इस समय का दुरूपयोग कर सबूतों को मिटाकर बरी भी हो जाते हैं.

यदि मैं वकील बन पाया तो न्यायालय द्वारा लोगों को जल्दी न्याय दिलाने के लिए हरसंभव प्रयास करुगा. अधिकतर न्यायालय में आने वाले मामले छोटे मोटे परिवारिक झगड़े होते हैं. एक वकील के रूप में मैं सामाजिक कार्यकर्ता बनकर आपसी सुलह के लिए पहल कर सकता हूँ.

मैं एक वकील बनकर यह चाहूँगा कि लोग न्याय में विशवास करे तथा इसे बिकाऊ न समझे. हमें आमजन का भरोसा अपने न्यायालयों के लिए जगाना हैं. यह तभी हो सकता है जब न्यायिक तंत्र में धन तथा ताकत के वर्चस्व को तोडा जाए.

आम लोगों को सामर्थ्यवान बनाया जाए जिससे वे अपराधियों के खिलाफ बेझिझक गवाही देने के लिए आगे आए.

एक वकील के रूप में मैं हमारी कानून व्यवस्था को धन के बल छूटने वाले अपराधियों पर काबू पाने में हर सम्भव मदद करने के लिए तैयार रहूँगा.

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  • निबंध ( Hindi Essay)

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Law and Justice Essay In Hindi | Kaanoon Aur Nyaay Nibandh | कानून और न्याय निबंध हिंदी में

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Law and Justice Essay In Hindi : भारत जैसे ही अजाद हुआ वैसे ही भारत के विद्वानों ने विचार किया कि देश को चलाने के लिए नियम और कानून की आवश्यकता होगी और तुरतं ही कानून बनाने की तैयारी कर दी उन्हें मालूम था कि बिना किसी भी कानून के कोई   सँगठित देश नही चलाया जा सकता है , आजकल तो घर चलाने के लिए भी कानून बनते है और जब बात देश की हो तो कानून और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

Table of Contents

लॉ ( नियम ) और जस्टिस क्या हैं – (Law aur Justice Kya Hai)

क्योंकि हर व्यक्ति की सोच अलग – अलग होती है और वो चाहता है कि सब उसके कहे अनुसार या उसके सोचे अनुसार हो तो ये संभव नही है क्योंकि हर दूसरा व्यक्ति भी यही सोचता है कि सब उसके हिसाब से हो बिना उचित या अनुचित का अंतर जाने तब इन लोगो की सहूलियत ले लिए कानून जरूरी होते है कि जो हमे हमारी सीमाएं और सही – गलत के बारे में बताती है इन्हें ही नियम कहते है , कानून हम सभी की सहूलियत के लिए सभी के हित में होते है जहां सभी को बराबर कानून का पालन करना होता है।

किसी किताब में लिखा था कि आपकी सीमाएं वहां खत्म हो जाती है जहां से किसी और कि नाक शुरू होती है , मतलब सभी को बराबर जीने का अधिकार है चाहें वो अमीर हो या गरीब , चाहे वो काला हो या गोरा , बिना नियम के संग़ठन में रहना मुमकिन ही नही है।

जस्टिस की बात करें तो कानून का उल्लंघन करने वाले लोगो के लिए उनके अपराध के हिसाब से सजा दी जाती है और जिसके साथ अपराध होता है उसे तब मिलता है न्याय , लेकिन प्रक्रिया धीमी होने के कारण लोगो का विश्वास कम हो रहा है कानून पर और न्याय व्यवस्था पर।

( और   पढ़ें – स्वच्छ भारत मिशन पर   निबंध   इन   हिंदी )

कब बना कानून – (Kab Bana Kaanoon)

भारत का संबिधान ( कानून )2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन में बन पाया जहां विदेशों में लागू अच्छे कानूनों को भी संबिधान में शामिल किया गया और साथ मे कई नए नियमो को जोड़ा गया , जहां हर व्यक्ति के हित को ध्यान में रखकर कानून का निर्माण किया गया और आज तक जनता के हित को ध्यान में रखकर कानूनों को जोड़ा और हटाया जाता है।

चूंकि संबिधान में विदेशो के अच्छे कानूनों को भी स्थान दिया गया है जिससे भारत का कानून और भी अलग और न्यायप्रिय बन जाता है लेकिन भारत के कानून को सिर्फ और सिर्फ न मानना या कानून का दुरुपयोग ही निराश कर रहा है।

क्यों जरूरी है लॉ ( नियम )-(Kyu Jaroori Hain Law)

हर जगह कानून की आवश्यकता होती है क्योंकि बिना कानून के कोई भी काम नही सकता और हमारे देश मे तो कानून अतिमहत्वपूर्ण हैं क्योंकि हमारे यहां व्यक्ति स्वमं   के हित में किसी और का हित देखता ही नही है , अगर कानून नही होंगे तो कोई भी कुछ कर सकता है ये कानून ही है जो हमे बांधे रहता हैं कुछ गलत करने या देखने से।

अगर सही मायनों में देखे तो कानून हमारे गार्जियन के समान है जो हमारे अच्छे या गलत कामो पर हमें सजा देकर उनमें सुधार के लिए प्रेरित करता है।

भारत मे लॉ ( कानून ) की स्थित – (Bharat Mein Law Ki Stith)

वैसे लिखित में जो भारत का कानून है वो कई देशों के कानूनों और अपनी सोच समझ के हिसाब से बनाया गया है तो वो और भी सर्वश्रेष्ठ हो जाता है लेकिन असल मे जो कानून की स्थित भारत मे है शायद वो कहीं नही होगी , यहां हम सिर्फ बात सरकारी कार्यालयों या लोगो की नही कर रहे बल्कि आम जनता ही क़ानून को अपने हिसाब से चलाना चाहती है , यहां देश के कानून या देश की तरक्की से किसी को कोई लेना देना नही है बस सभी को स्वमं की तरक्की ही चाहिए चाहे वो कानूनी हो या गैर – कानूनी।

यहां कानून को लोग अपने हिसाब से जीते है अगर उनके हित में है तो कानून और खिलाफ है तो मानना ही नही , कानून होता है ताकि लोगो मे   कानून का डर रहे और वो उचित कार्य ही करें लेकिन कानून जितना शख्त होना चाहिए शायद उतना नही है क्योंकि हर वर्ष जाने कितने रेप , मर्डर , चोरी होती ही रहती है और सभी को पता होता है कि चोरी या मर्डर किसने किया है फिर भी बस केस चलता रहता है और मिलती रहती है सिर्फ अगली तारीख , इसमें कोई भी दोहराए नही भारत की कानूनी प्रक्रिया धीमी है , जिस हिसाब से कानून है उस हिसाब से न्याय भी जल्द हो तो अपराधों की संख्या में कमी आएगी।

भारत मे जस्टिस – (Bharat Mein Justice )

भारत मे अपराधों की संख्या अधिक है और न्यायालय , न्यायधीश कम जिस कारण किसी को भी न्याय मिलने में समय लगता है लेकिन अगर यही प्रणाली अच्छी हो जाए तो जल्दी फैसले होंगे और लोगो को न्याय मिलेगा जिससे अपराधों में कमी आएगी और जनता का कानून के प्रति सम्मान भी बढ़ेगा।

कोई केश के सालों तक चलता रहता है और उन्हें न्याय नही मिलता कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि व्यक्ति बूढ़ा होकर मर जाता है लेकिन केस चलता रहता है जिसमे बहुत सुधार की आवश्यकता है , कानून व्यस्थाओ में बड़े कानूनों को शामिल किया जाना चाहिए और अगर व्यक्ति सच मे दोषी है तो उसे तुरंत सजा मिलनी चाहिए।

कानून को दे सम्मान – (Kaanoon Ko De Saaman)

हमे कानून को सम्मान देना होगा क्योंकि जब तक हम कानून का सम्मान नही करेंगे जब तक हम नही मानेंगे कानून तब तक हमारे साथ न्याय कैसे हो सकता है , हमे अपने औऱ दूसरे लोगो के अधिकार और कानून पर हक़   को ध्यान में रखना होगा।

कानून किसी एक का नही है ये सबका है और सभी को बराबर मन्ना होगा तभी साथ मे खुश रह सकते हैं आपको याद रखना होगा कि आपकी बजह से किसी और को कष्ट न पहुचें।

कानून में सुधार की आवश्यकता – (Kaanoon Mein Sudhar Ki Aavashyakata)

  • कानून को सख्त करें ।
  • न्याय प्रणाली कम समय में न्याय दे।
  • न्याय बिना किसी भेदभाव से मिलना चाहिए।
  • न्यायप्रणाली में भृष्ट करचरियों को हटाया जाए।
  • न्याय प्रणाली में जितनी अधिक पारदर्शिता लाई जाए उतना ठीक रहेगा।
  • नियमो को तोड़ने वालों के खिलाफ शख्त कदम उठाएं जाने चाहिए।
  • किसी भी राजनेता को कानूनी प्रणाली में हस्तक्षेप न करने दिया जाए।
  • समय – समय पर कानून प्रणाली को जांचा जाए कि कहीं कुछ गलत तो नही हो रहा।
  • रिश्वतखोरी को बड़ा जुर्म बना दिया जाए और ऐसा करते पाए जाने पर कड़ी सजा दी जाए।
  • न्याय प्रणाली में काविल लोगों को कमहि स्थान दिया जाए।
  • कानून को सर्वोपरि किया जाए।

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Tuesday, October 4, 2022

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वकील पर निबंध | Essay On Lawyer In Hindi

वकील पर निबंध essay on lawyer in hindi.

वकील बनने के काउंसिल ऑफ़ इंडिया के द्वारा आयोजित परीक्षा मे उच्च अंको के साथ उतीर्ण करना पड़ता है। इसे उतीर्ण करने पर डिग्री मिलती है। जिससे इस परीक्षा मे उतीर्ण करने के बाद उस व्यक्ति को लॉयर (अधिवक्ता को अँग्रेजी भाषा मे लॉयर कहा जाता है।) कहते है।

भारतीय न्यायप्रणाली मे वकीलो को दो श्रेणियाँ मे बांटा गया है।-

1. वरिष्ठ अधिवक्ता (ऐडवोकेट) Senior Advocate 

2. अधिवक्ता (वकील) Advocate

वकील (अधिवक्ता) शब्द एंव परिभाषा 

वकील क्या है (what is a lawyer), वकील का नाम तो आप काफी समय से सुन रहे हो पर ये आप नहीं जानते होंगे। कि वकील क्या होता है वकील वह होता है। जो न्यायलय मे लोगो के लिए लड़ता है। या हम इसे यह भी कह सकते है। लोगो को अपना न्याय दिलाने वाला व्यक्ति ही वकील या अधिवक्ता होता है। वह हमारे पक्ष की से दलीलों तथा जजो के सामने अपनी प्रस्तुति देता है। वकील दो प्रकार के होते है। , 1.सरकारी वकील  (government advocate)  2.प्राइवेट वकील (private government), हर व्यक्ति के अपने  कर्तव्य होते है। और उन्हे अपने कर्तव्य की पालना करनी चाहिए। भारतीय वकीलो को अधिवक्ता अधिनियम एवं बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के कर्तव्य का पालन करना चाहिए।                 , एक वकील के अदालत के प्रति प्रमुख कर्तव्य होते है-.

  • गरिमापूर्ण तरीके से कार्य करना
  • न्यायालय का सम्मान करना
  • न्यायिक अधिकारी से अकेले में संवाद नहीं करना 
  • विपक्ष के प्रति गैरकानूनी तरीके से कार्य करने से इंकार करना
  • अनुचित साधनों पर जोर देने वाले मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करने से इंकार करना
  • अपने कार्य पर खुद को झोंक देना। 
  • गलत कागजाद को जमा न करे। 
  • इन्हे अपने कानूनी व्यवसाय के आधार पर अपना कार्य करना चाहिए। 

वकील कैसे बने पूरी जानकारी (How to become a lawyer)

  • Bachelor of Arts and bachelor of law (BA.LLB)
  • Bachelor of Business Administration and a bachelor of laws (BBA.LLB)
  • Bachelor of Commerce and bachelor of laws (B.Com.LLB)
  • Bachelor of social work and bachelor of laws (BSW.LLB)
  • Bachelor of Science and bachelor of laws (BSc.LLB)
  • Bachelor of Science in Law (BSL)

वकील बनने के लिए  न्यूनतम  कितनी आयु की जरूरत होती है?

मैं एक वकील क्यों बनना चाहता हूँ  why do i want to be a lawyer, न्यायलय मे वकीलो द्वारा कालाकोट क्यो पहना जाता है, दुनिया का पहला वकील world's first lawyer.

  • किसी भी व्यक्ति की बात को अच्छे से समझना तथा बेहतर तरीके से व्यक्ति उस व्यक्ति को जवाब देना। 
  • वकील किसी दूसरे पर निर्भर नहीं होते है। वे खुद को स्वतंत्र मानते है। उनकी एक स्वतंत्र  तथा निष्पक्ष सोच होनी चाहिए।
  • एक वकील का कुशल व्यवहार होना चाहिए।
  • एक प्रभवशाली वकील का होना।
  • अपने पक्ष की और से ढृढता तथा मजबूती  से लड़ने चाहिए।
  • वकील मे अनुसंधान कौशल होना चाहिए। 
  • एक वकील मे जवाब देने का लिहाज या बेहतर तरीका होना चाहिए। 
  • वकील की हमेशा एक तार्किक सोच तथा उसे पूरे करने की क्षमता होनी चाहिए। 
  • वकील मे परस्थिति के मुताबिक अच्छा निर्णय लेने की समझ होनी चाहिए। 
  • एक वकील को किसी भी तरह से धर्म या जातिवाद नहीं करना चाहिए।

लॉयर तथा एडवोकेट मे अंतर Difference between Loire and Advocate  

  • एडवोकेट शब्द का प्रयोग अमेरिका मे नहीं किया जाता है। इसका प्रयोग यूनाईडेड किंगडम मे किया जाता है।  
  • लॉयर की तूलना मे एडवोकेट एक विशेष प्रकार का शब्द है।
  • ग्राहको का प्राधिनितित्व करना एडवोकेट का कार्य होता है। 
  • लॉयर शब्द का प्रयोग अमेरिका मे भी किया जाता है।
  • लॉयर एक बहुत ही प्रचलित शब्द है।
  • एक लॉयर का कार्य कानूनी सलाह देना तथा किसी मामले मे जनहित याचिका दाखिल करना एक लॉयर का काम होता है।  

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भारतीय राजनीति

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देश की आपराधिक न्यायिक प्रणाली में सुधार

  • 18 Aug 2023
  • 27 min read
  • सामान्य अध्ययन-II
  • भारतीय संविधान

यह एडिटोरियल 11/08/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित Sedition ‘repealed’, death penalty for mob lynching: the new Bills to overhaul criminal laws पर आधारित है। इसमें देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता के बारे में चर्चा की गई है।

आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधारों से संबंधित मुद्दे, कानूनी सुधारों में मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ, विधेयक के प्रारूपण में पारदर्शिता की कमी, प्रस्तावित कानूनी परिवर्तनों में विसंगतियाँ।

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री ने लोकसभा में तीन नए विधेयक पेश किये जो देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में संपूर्ण बदलाव का प्रस्ताव करते हैं जैसे:

  • भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023, जो IPC, 1860 को प्रतिस्थापित करेगा 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2023, जो CrPC, 1898 को प्रतिस्थापित करेगा 
  • भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023, जो साक्ष्य अधिनियम, 1872 को प्रतिस्थापित करेगा 
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) भारत की आधिकारिक आपराधिक संहिता है जिसे चार्टर अधिनियम, 1833 के तहत वर्ष 1834 में स्थापित प्रथम विधि आयोग के मद्देनजर वर्ष 1860 में तैयार किया गया था।
  • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) भारत में आपराधिक कानून के प्रशासन के लिये प्रक्रियाएँ प्रदान करती है। यह वर्ष 1973 में अधिनियमित हुआ और 1 अप्रैल 1974 को प्रभावी हुआ।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, जो मूल रूप से ब्रिटिश राज के दौरान वर्ष 1872 में इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा भारत में पारित किया गया था, में भारतीय न्यायालयों में साक्ष्य की स्वीकार्यता को नियंत्रित करने वाले नियमों और संबद्ध मुद्दों का समूह शामिल है।

आपराधिक न्याय प्रणाली:

  • आपराधिक न्याय प्रणाली कानूनों, प्रक्रियाओं और संस्थानों का समूह है जिसका उद्देश्य सभी व्यक्तियों के अधिकारों तथा सुरक्षा को सुनिश्चित करते हुए अपराधों को रोकना, पता लगाना, दोषियों पर मुकदमा चलाना व दंडित करना है।
  • इसमें पुलिस बल, न्यायिक संस्थान, विधायी निकाय और फोरेंसिक एवं जाँच एजेंसियों जैसे अन्य सहायक संगठन शामिल हैं।

भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रस्तावित परिवर्तन:

  • यह  विधेयक आतंकवाद एवं अलगाववाद, सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह, देश की संप्रभुता को चुनौती देने जैसे अपराधों को परिभाषित करता है, जिनका पूर्व में कानून के विभिन्न प्रावधानों के तहत उल्लेख किया गया था।
  • यह राजद्रोह के अपराध को रोकने पर केंद्रित है, जिसकी औपनिवेशिक विरासत के रूप में व्यापक रूप से आलोचना की गई थी जो स्वतंत्र भाषण और असहमति पर अंकुश लगाता है।
  • यह मॉब लिंचिंग के लिये अधिकतम सज़ा के रूप में मृत्युदंड का प्रावधान करता है , जो हाल के वर्षों में एक खतरा रहा है।
  • इसमें विवाह के झूठे वादे पर महिलाओं के साथ यौन संबंध बनाने के लिये 10 वर्ष की कैद का प्रस्ताव है, जो धोखे और शोषण का एक सामान्य रूप है।
  • यह विधेयक विशिष्ट अपराधों के लिये सजा के रूप में सामुदायिक सेवा का परिचय देता है, जो अपराधियों को सुधारने और जेलों में भीड़भाड़ को कम करने में मदद कर सकता है।
  • इस विधेयक में चार्जशीट दाखिल करने के लिये अधिकतम 180 दिनों की सीमा तय की गई है, जिससे मुकदमे की प्रक्रिया में तेज़ी आ सकती है और अनिश्चितकालीन देरी को रोका जा सकता है।
  • इस विधेयक में कहा गया है कि पुलिस को शिकायत की स्थिति के विषय में 90 दिनों में सूचित करना होगा, जिससे जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ सकती है।
  • यह विधेयक  यौन हिंसा के व्यक्तियों के बयान की वीडियो-रिकॉर्डिंग को अनिवार्य  बनाता है, जो सबूतों को संरक्षित करने और बलपूर्वक या हेरफेर को रोकने में मदद कर सकता है।
  • इस विधेयक में यह आवश्यक है कि  पुलिस सात वर्ष या उससे अधिक की सज़ा वाले मामले को वापस लेने से पहले पीड़ित से परामर्श करे,  जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि न्याय से समझौता या उसे अस्वीकार नहीं किया जाए।
  • CrPC की धारा 41A को धारा 35 के रूप में पुनः क्रमांकित किया जाएगा। इस परिवर्तन में एक अतिरिक्त सुरक्षा शामिल है, जिसमें कहा गया है कि कम से कम पुलिस उपाधीक्षक (DSP) रैंक के किसी अधिकारी की पूर्व स्वीकृति के बिना कोई गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है, खासकर 3 वर्ष से कम सज़ा वाले दंडनीय अपराधों के लिये या 60 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्तियों के लिये।
  • यह फरार अपराधियों के संबंध में न्यायलय को उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाने और सज़ा सुनाने की अनुमति देता है, जो भगोड़ों को न्याय से बचने से रोक सकता है।
  • यह मजिस्ट्रेटों को ईमेल, एसएमएस, व्हाट्सएप संदेशों आदि जैसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के आधार पर अपराध का संज्ञान लेने का अधिकार देता है, जिससे साक्ष्य संग्रह और सत्यापन की सुविधा मिल सकती है।
  • राष्ट्रपति के निर्णय के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकेगी।

भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 में प्रस्तावित परिवर्तन:

  • यह विधेयक इ लेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को किसी भी उपकरण या सिस्टम द्वारा उत्पन्न या प्रसारित किसी भी जानकारी के रूप में परिभाषित करता है जो किसी भी माध्यम से संग्रहित या पुनर्प्राप्त करने में सक्षम है।
  • यह इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता जैसे प्रमाणिकता, अखंडता, विश्वसनीयता आदि के लिये विशिष्ट मानदंड निर्धारित करता है , जो डिज़िटल डेटा के दुरुपयोग या छेड़छाड़ को रोक सकता है।
  • यह DNA साक्ष्य जैसे सहमति, हिरासत की श्रृंखला आदि की स्वीकार्यता के लिये विशेष प्रावधान प्रदान करता है, जो जैविक साक्ष्य की सटीकता और विश्वसनीयता को बढ़ा सकता है।
  • यह विशेषज्ञ की राय को मेडिकल राय, लिखावट विश्लेषण आदि जैसे साक्ष्य के रूप में मान्यता देता है, जो किसी मामले से संबंधित तथ्यों या परिस्थितियों को स्थापित करने में सहायता कर सकता है।
  • यह आपराधिक न्याय प्रणाली के मूल सिद्धांत के रूप में निर्दोष होने की धारणा का परिचय देता है, जिसका अर्थ है कि अपराध के आरोपी प्रत्येक व्यक्ति को उचित संदेह से परे दोषी साबित होने तक निर्दोष माना जाता है।

भारत की वर्तमान आपराधिक न्याय प्रणाली: 

  • लंबित मामलों की संख्या:  राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार, भारतीय न्यायालयों में न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों पर 4.7 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। इससे न्याय देने में देरी होती है, त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन होता है और इस व्यवस्था में लोगों का विश्वास कम होता है।
  • 135 मिलियन लोगों के देश में, प्रति दस लाख जनसंख्या पर (फरवरी 2023 तक) केवल 21 न्यायाधीश हैं।
  • उच्च न्यायालयों में लगभग 400 रिक्तियाँ हैं। वहीं निचली न्यायपालिका में करीब 35% पद खाली पड़े हैं ।
  • जाँच और अभियोजन की खराब गुणवत्ता: जाँच और अभियोजन एजेंसियाँ अक्सर संपूर्ण, निष्पक्ष और पेशेवर जाँच करने में विफल रहती हैं। उन्हें राजनीतिक और अन्य प्रभावों के हस्तक्षेप, भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी का सामना करना पड़ता है।
  • मानवाधिकारों का उल्लंघन: आपराधिक न्याय प्रणाली पर अधिकतर आरोपियों, पीड़ितों, गवाहों और अन्य हितधारकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया जाता है। हिरासत में यातना, न्यायेत्तर हत्याएँ, झूठी गिरफ्तारियाँ अवैध हिरासत, जबरन बयान, अनुचित परीक्षण और कठोर दंड इसके उदाहरण हैं।
  • पुराने कानून और प्रक्रियाएँ: आपराधिक न्याय प्रणाली उन कानूनों और प्रक्रियाओं पर आधारित है जो 1860 में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए थे। ये कानून पुराने हैं और समकालीन समय के अनुरूप नहीं हैं। ये साइबर अपराध, आतंकवाद, संगठित अपराध, मॉब लिंचिंग आदि जैसे अपराधों के नए रूपों को हल नहीं करते हैं।
  • सार्वजनिक धारणा: द्वितीय ARC ने नोट किया है कि भारत में पुलिस-जनता के संबंध असंतोषजनक हैं क्योंकि लोग पुलिस को भ्रष्ट, अक्षम और अनुत्तरदायी मानते हैं और अक्सर उनसे संपर्क करने में संकोच करते हैं।

भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार हेतु समितियाँ और उनकी सिफारिशें:

  • इसने सिफारिश की कि विभिन्न स्रोतों से खुफिया जानकारी एकत्र करके तथा ऐसे तत्त्वों के खिलाफ उचित कार्रवाई करके इस खतरे से प्रभावी ढंग से निपटान के लिये एक संस्थान स्थापित किया जाना चाहिये।
  • छोटे-मोटे उल्लंघनों के लिये अपराधों की एक नई श्रेणी 'सामाजिक कल्याण अपराध (Social Welfare Offences)' कहलाती है, जिससे ज़ुर्माना लगाकर या सामुदायिक सेवा द्वारा निपटा जा सकता है।
  • प्रतिकूल प्रणाली को एक 'मिश्रित प्रणाली' से बदलना जिसमें तार्किक प्रणाली के कुछ तत्त्व शामिल हैं जैसे न्यायाधीशों को साक्ष्य एकत्र करने तथा गवाहों की जाँच करने में सक्रिय भूमिका निभाने की अनुमति देना।
  • दोषसिद्धि के लिये आवश्यक साक्ष्य के मानक को 'उचित संदेह से परे' से घटाकर 'स्पष्ट और ठोस साक्ष्य' करना।
  • वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के समक्ष की गई स्वीकारोक्ति को साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य बनाना।
  • आपराधिक न्याय के हर चरण में मानवीय गरिमा तथा मानवाधिकारों के लिये सम्मान सुनिश्चित करना।
  • पुनर्स्थापनात्मक न्याय को बढ़ावा देना जो सज़ा देने के बजाय अपराध से होने वाले नुकसान को ठीक करने पर केंद्रित है।
  • आपराधिक न्याय में शामिल विभिन्न एजेंसियों जैसे पुलिस, न्यायपालिका, अभियोजन आदि के बीच समन्वय एवं सहयोग में सुधार करना।
  • पुलिस कार्यप्रणाली के लिये नीतियाँ बनाने, प्रदर्शन का मूल्यांकन करने तथा यह सुनिश्चित करने के लिये राज्य सुरक्षा आयोग की स्थापना करना कि राज्य सरकारें पुलिस पर अनुचित प्रभाव या दबाव न डालें।
  • पुलिस महानिदेशक के लिये एक निश्चित कार्यकाल सुनिश्चित करना, जिसका चयन वस्तुनिष्ठ मानदंडों के आधार पर एक पैनल के तहत किया जाना चाहिये न कि राजनीतिक कार्यपालिका की अनुशंसा के आधार पर।
  • त्वरित जाँच, बेहतर विशेषज्ञता तथा लोगों के साथ बेहतर तालमेल सुनिश्चित करने के लिये पुलिस की जाँच और वैधानिक कार्यों को अलग करना।
  • पुलिस कर्मियों द्वारा गंभीर कदाचार और अधिकारों के दुरुपयोग के आरोपों की जाँच हेतु राज्य एवं ज़िला स्तर पर एक पुलिस शिकायत प्राधिकरण की स्थापना करना।

प्रस्तावित सुधारों का महत्त्व:

  • इन सुधारों का उद्देश्य आपराधिक कानूनों को आधुनिक और सरल बनाना है, जो पुराने और जटिल हैं। यह सुधार कानूनों को भारतीय भावना और लोकाचार के अनुरूप बनाने में सहायक होंगे।
  • इन सुधारों से आतंकवाद, भ्रष्टाचार, मॉब लिंचिंग और संगठित अपराध जैसे नए अपराध भी शामिल होंगे, जो मौजूदा कानूनों द्वारा पर्याप्त रूप से कवर नहीं किये गए हैं। 
  • यह सुधार कुछ यौन अपराधों को लिंग तटस्थ बना देगा, जिसमें महिलाओं के अलावा पुरुषों और ट्रांसजेंडरों को संभावित पीड़ितों और अपराधियों के रूप में शामिल किया जाएगा।
  • इन सुधारों से जाँच, अभियोजन और निर्णय के दौरान इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य तथा फोरेंसिक का उपयोग बढ़ेगा।
  • यह सुधार नागरिकों को किसी भी पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करने की अनुमति देकर सशक्त बनाएगा, चाहे अपराध किसी भी स्थान पर हुआ हो। यह सुधार नागरिकों के जीवन के अधिकार, स्वतंत्रता, गरिमा, गोपनीयता और निष्पक्ष सुनवाई जैसे संवैधानिक अधिकारों की प्रभावी सुरक्षा भी प्रदान करेंगे।

आपराधिक न्याय प्रणाली में वर्तमान प्रस्तावित सुधारों से संबंधित मुद्दे

  • परामर्श एवं पारदर्शिता का अभाव: विधेयकों का प्रारूप आपराधिक कानून सुधार समिति, 2020 द्वारा तैयार किया गया था।
  • इसमें न्यायपालिका, बार, नागरिक समाज या हाशिये पर रहने वाले समुदायों का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं था। इस समिति ने व्यापक परामर्श एवं प्रतिक्रिया के लिये अपनी रिपोर्ट अथवा मसौदा विधेयक भी सार्वजनिक नहीं किया।
  • मानवाधिकारों का संभावित उल्लंघन: विधेयक की आलोचना अस्पष्ट और व्यापक शब्दों का उपयोग करने के लिये की गई है जो आरोपियों, पीड़ितों, गवाहों के साथ अन्य हितधारकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन कर सकते हैं।
  • उदाहरण के लिये, BNS ने धारा 150 के अंर्तगत "भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों" को अपराध घोषित किया है, जो IPC की धारा 124A के अंर्तगत  राजद्रोह के निरस्त अपराध के समान है। इसका प्रयोग असहमति और स्वतंत्र भाषण को दबाने के लिये किया जा सकता है।
  • इसी प्रकार से, BSB धारा 27A के अंर्तगत एक पुलिस अधिकारी के समक्ष किये गए बयानों को साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होने की अनुमति देता है, जिससे हिरासत में यातना तथा दबाव का खतरा बढ़ सकता है।
  • BNSS, पुलिस को बिना किसी न्यायिक निगरानी या सुरक्षा उपायों के गिरफ्तारी, तलाशी, जब्ती एवं हिरासत में लेने की व्यापक शक्तियाँ भी प्रदान करता है।
  • सुसंगति एवं एकरूपता का अभाव: इसे अन्य व्याप्त कानूनों के साथ-साथ एक-दूसरे के साथ विरोधाभासी होने का आरोप लगाया गया है। उदाहरण के लिये,
  • इसके अतिरिक्त, BSB दोषसिद्धि के लिये सबूत के मानक "उचित संदेह" को "स्पष्ट और ठोस सबूत" से बदल देता है, जिसे विधेयक में परिभाषित नहीं किया गया है और न ही समझाया गया है।
  • BNSS अपराधों की एक नई श्रेणी भी निर्मित करता है जिसे "सामाजिक कल्याण अपराध" कहा जाता है, जिसे ज़ुर्माना अथवा सामुदायिक सेवा लगाकर समाधान किया जा सकता है, लेकिन यह निर्दिष्ट नहीं करता है कि कौन से अपराध इस श्रेणी में आते हैं।

क्या किये जाने की आवश्यकता है?

प्रस्तावित सुधारों में चुनौतियों और संभावित कमियों का समाधान करने के लिये अधिक समावेशी एवं व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

  • समावेशी परामर्श : किसी भी सुधार को लागू करने से पहले विविध दृष्टिकोणों को समायोजित करने के लिये सामान्य जनता सहित सभी हितधारकों को शामिल करते हुए एक व्यापक परामर्श प्रक्रिया प्रारंभ करना।
  • मानवाधिकारों की रक्षा: मानवाधिकार सिद्धांतों और सुरक्षा उपायों को शामिल करना, संभावित दुरुपयोग को रोकने के लिये अस्पष्ट शर्तों को परिभाषित करना और उन्हें सीमित करना।
  • सुसंगत कानूनी ढाँचा: प्रस्तावित अध्यादेशों और मौज़ूदा कानूनों में स्थिरता और सुसंगतता सुनिश्चित करना।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: आपराधिक न्याय प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ाना, जिसमें डिजिटल साक्ष्य संग्रह, ऑनलाइन कार्यान्वयन और त्वरित सुनवाई हेतु वीडियो-रिकॉर्ड किये गए बयान, बैकलॉग कम करना और पारदर्शिता बढ़ाना शामिल है।
  • क्षमता निर्माण: कानून प्रवर्तन एजेंसियों, न्यायपालिका और कानूनी सेवाओं की क्षमता बढ़ाने के लिये प्रशिक्षण, भर्ती और बुनियादी ढाँचे में निवेश करना, जिसके परिणामस्वरूप पर्याप्त संसाधनों द्वारा न्याय प्रशासन अधिक कुशल और निष्पक्ष हो सकेगा।
  • पुनर्स्थापनात्मक न्याय (Restorative Justice): पुनर्स्थापनात्मक न्याय सिद्धांतों को अपनाना जो अपराध के मूल कारणों को हल करते हैं, अपराध की पुनरावृत्ति को कम करना और पीड़ितों को समाधान प्रदान करने के लिये सुलह, पुनर्स्थापन तथा पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करना।

जन-जागरूकता: पुलिस-जन संपर्कों को बेहतर बनाने के लिये आपराधिक न्याय प्रणाली के तहत जनता को उनके अधिकारों और उत्तरदायित्वों के बारे में शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान संचालित करना।

इन प्रगतिशील कदमों को आगे बढ़ाकर एक राष्ट्र के रूप में हम एक आपराधिक न्याय प्रणाली की दिशा में कार्य कर सकते हैं जो विधि के शासन को कायम रखती है, मानवाधिकारों की रक्षा करती है और सामान्य जन की विविध आवश्यकताओं को प्रभावी ढंग से पूर्ण करती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न :

भारतीय न्याय संहिता विधेयक, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक और भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 में उल्लिखित भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रस्तावित बदलावों (निरीक्षण) पर चर्चा कीजिये। इन प्रस्तावित बदलावों से संबंधित संभावित लाभों और चिंताओं का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)।

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सीधे आपके मेल बॉक्स में अपना ई मेल एड्रेस सब्मिट करें, एक अच्छा वकील कैसे बनें: सीनियर एडवोकेट फली नरीमन ने दस महत्वपूर्ण सुझाव दिए, livelaw news network.

22 Oct 2021 11:51 AM GMT

एक अच्छा वकील कैसे बनें: सीनियर एडवोकेट फली नरीमन ने दस महत्वपूर्ण सुझाव दिए

वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन ने गुरुवार को लाइव लॉ के सहयोग से इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट, केरल द्वारा आयोजित ऑनलाइन लेक्चर सीरीज में "एक अच्छा वकील कैसे बने (बीकमिंग एन एडवोकेट)" विषय पर विचार साझा किए।

इस लेक्चर के माध्यम से, वरिष्ठ अधिवक्ता ने कोर्ट रूम वकालत को लेकर महत्वपूर्ण सुझाव दिए जो युवा वकीलों और कानून के छात्रों को कानूनी पेशे में खुद को स्थापित करने में मदद करेगा।

एक बार जब आप एक वकील बन जाते हैं तो आप जीवन भर कानून के छात्र बन जाते हैं: नरीमन

शुरुआत में नरीमन ने जोर देकर कहा कि कानून के क्षेत्र में सीखना एक अंतहीन प्रक्रिया है और युवा वकीलों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे अपने वरिष्ठों के लिए उपयोगी होने के लिए हर समय भारतीय केस कानूनों पर खुद को रखें।

उन्होंने आगे टिप्पणी की कि कोई भी व्यक्ति चाहे कितना भी वरिष्ठ या ज्ञान में या उम्र में उन्नत हो, कभी भी यह नहीं कह सकता कि वह पूरी तरह से कानून जानता है। इस बात पर प्रकाश डाला गया कि कानून उतना ही 'विशाल और अथाह है जैसे की आकाश में तारे।

उन्होंने कहा,

"आपको यह याद रखना होगा कि एक बार जब आप एक वकील बन जाते हैं, तो आप जीवन भर कानून के छात्र बन जाते हैं। चाहे आप किसी कानूनी फर्म में बैठते हों या किसी वकील के लिए किसी कार्यालय में काम करते हों या जब आप प्रैक्टिस करना शुरू करते हों या आप न्यायाधीश बन गए हों।"

अंग्रेजी अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए क्योंकि महत्वपूर्ण संवैधानिक अवधारणाएं अंग्रेजी में हैं

नरीमन ने कहा कि एक वकील के रूप में खुद को स्थापित करने के लिए अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि अंग्रेजी अब विदेशी भाषा नहीं है क्योंकि यह भारत की आधिकारिक भाषाओं में से एक है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय कानून की उत्पत्ति अंग्रेजी में है और सभी महत्वपूर्ण संवैधानिक अवधारणाएं जैसे कि स्वतंत्रता, समानता और कानून का शासन सभी अंग्रेजी में हैं।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने आगे स्पष्ट किया,

"यह आपको अंग्रेज बनाने के लिए नहीं है, यह आपको खुद को स्थापित करने और कानूनी पेशे में सफल होने का अवसर देने के लिए है क्योंकि भारत में कानून मूल रूप से अंग्रेजी हैं और रहेंगे।"

उन्होंने आगे कहा,

"आपको यह याद रखना चाहिए कि अंग्रेजी एक विदेशी भाषा नहीं है, यह भारत की दो राष्ट्रीय (आधिकारिक) भाषाओं में से एक है। इसलिए, आपको सबसे पहले जो करना चाहिए वह अंग्रेजी में पढ़कर अपने ज्ञान और दक्षता में सुधार करना चाहिए। यह आपको खुद को स्थापित करने का अवसर देना है क्योंकि भारत में कानून मूल रूप से अंग्रेजी में हैं और रहेंगे। सभी महान अवधारणाएं एंग्लो-सैक्सन हैं।"

कड़ी मेहनत का सबसे बड़ा दुश्मन एक निश्चित मौद्रिक इनाम है

नरीमन ने बताया कि व्यक्ति जितना अधिक कार्य में लगा रहता है, उसके दिमाग का प्रयोग उतना ही बेहतर होता है। हालांकि, यहां 'काम' जरूरी भुगतान वाला काम नहीं है।

उन्होंने कहा कि एक कनिष्ठ वकील को निर्धारित मौद्रिक या वरिष्ठ द्वारा भुगतान किए गए वजीफे पर निर्भर नहीं होना चाहिए। कड़ी मेहनत का सबसे बड़ा दुश्मन एक निश्चित मौद्रिक इनाम है।"

"बेशक, यदि यह आपके अस्तित्व के लिए आवश्यक है, तो वजीफा लें लेकिन उस पर हमेशा के लिए निर्भर न रहें क्योंकि आप तब हैं जब आप एक कर्मचारी या कार्यालय क्लर्क की स्थिति में हैं। आप जल्द ही कम और कम काम करना शुरू कर देंगे, केवल कार्यालय समय में और फिर अन्य वकीलों की संगति में आप शिकायत करना शुरू कर देंगे कि आपको कितना कम भुगतान किया जाता है।"

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के आलोक में 'तथ्यों के साथ दूरस्थ संबंध' वाले कानून को भी देखना महत्वपूर्ण है

नरीमन ने कहा कि किसी वरिष्ठ की सहायता करते समय या किसी मामले में बहस करते समय, मामले के सभी तथ्यों से अवगत होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि न केवल प्रासंगिक कानून बल्कि तथ्यों के साथ कुछ दूरस्थ संबंध रखने वाले कानून को भी देखना महत्वपूर्ण है।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 165 का हवाला देते हुए वरिष्ठ वकील ने टिप्पणी की,

"कानून की अदालत में केवल प्रासंगिक तथ्यों को ही प्रस्तुत किया जाता है, भारतीय साक्ष्य अधिनियम की एक बहुत ही महत्वपूर्ण ज्ञात धारा है जो धारा 165 है जो निम्नानुसार पढ़ती है, न्यायाधीश उचित खोज या प्राप्त करने के लिए कर सकता है प्रासंगिक तथ्यों का सबूत, किसी भी रूप में, किसी भी समय, कोई भी प्रश्न पूछें और बिना न्यायालय की अनुमति के न तो पक्ष और न ही उनके एजेंट ऐसे किसी भी प्रश्न या आदेश पर आपत्ति करने के हकदार होंगे।"

नरीमन ने आगे बताया कि एक न्यायाधीश से एक कार्यवाही में सच्चाई की खोज के लिए उसके लिए खुले सभी रास्ते तलाशने की उम्मीद की जाती है।

यदि किसी प्रस्ताव पर पहले निर्णय लिया गया है, तो उसे न्यायालय के ध्यान में लाया जाना चाहिए, भले ही वह किसी के मामले के विरुद्ध हो: नरीमन

वकीलों द्वारा न्यायालय के प्रति नैतिक कर्तव्य के बारे में बोलते हुए नरीमन ने जोर देकर कहा कि यदि किसी प्रस्ताव पर पहले निर्णय लिया गया है, तो उसे न्यायालय के ध्यान में लाया जाना चाहिए, भले ही वह किसी के मामले के विरुद्ध हो।

"एक वकील के रूप में, यह आपका कर्तव्य है कि आप इस मुद्दे पर पहले से तय किए गए मामले को अदालत के संज्ञान में लाएं। आप इसे अलग कर सकते हैं, लेकिन आपको इसका हवाला देना चाहिए। कभी भी खारिज किए गए मामले का हवाला न दें।"

कोर्ट में अपना आपा खोना कोर्ट में आधी लड़ाई हारना है

नरीमन ने आगे कहा कि अदालत में किसी के मामले को कम करके आंकना हमेशा बेहतर होता है, बजाय इसके कि उसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाए।

उन्होंने यह भी बताया कि तर्कों को आगे बढ़ाते समय एक वकील का स्वर मामले की ताकत तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

"अदालत में कभी भी अतिशयोक्ति न करें। कम महत्वपूर्ण में बहस करें। बयानबाजी से बचें और बहुत होशियार न हों और भगवान के लिए, इस स्तर पर, अदालत में मजाकिया होने से बचें! आप को ढीठ के रूप में कलंकित किया जाएगा।"

उन्होंने आगे इस बात पर जोर दिया कि एक वकील को कभी भी कोर्ट रूम के अंदर अपना गुस्सा नहीं दिखाना चाहिए।

नरीमन ने कहा,

"न्यायाधीश में अपना आपा खोना अदालत में आधी लड़ाई हारना है। यदि आप गुस्से में हैं और जज की बात से परेशान हैं, तो भी अपने पर नियंत्रण रखें।"

अगर किसी वकील को किसी फैसले के बारे में अपनी नाराजगी व्यक्त करनी है, तो उसके खिलाफ अपील करें: नरीमन

नरीमन ने युवा वकीलों को एक ऐसे जज की आलोचना करने से भी आगाह किया, जिसने शायद प्रतिकूल फैसला सुनाया हो। उन्होंने कहा कि गरिमा के साथ हारना सीखें। उन्होंने आगे कहा कि अगर किसी वकील को किसी फैसले के बारे में अपनी नाराजगी व्यक्त करनी है, तो इसे अपील की अदालत या खुली अदालत में दिखाया जाना चाहिए।

नरीमन ने आगे कहा,

"अपने मामले की सुनवाई कर रहे जज के बारे में किसी निष्कर्ष पर न जाएं। हमारी कानूनी व्यवस्था का पूरा ढांचा बेंच और बार के बीच आपसी सद्भाव के आधार पर मौजूद है।"

मीडिया से बात करते समय सावधानी बरतें

वरिष्ठ वकील ने मीडिया से बात करते समय सावधानी बरतने का भी आग्रह किया। उन्होंने कहा कि वकीलों को कभी भी मीडिया से किसी मामले के बारे में बात नहीं करनी चाहिए जिसमें वह पेश हो रहे हैं।

"इसमें सस्ते प्रचार की बू आती है और न्यायाधीश के साथ अन्याय है। अगर फैसले की आलोचना करने की जरूरत है, तो ऐसी आलोचना की सराहना तब की जाएगी जब यह उदासीन तिमाहियों से आएगा।"

मामलों के भारी बैकलॉग को देखते हुए तर्कों के लिए समय सीमा महत्वपूर्ण है

नरीमन ने यह भी रेखांकित किया कि युवा अधिवक्ताओं को तर्क के लिए आवंटित समय में अपर्याप्तता के बारे में शिकायत करने से बचना चाहिए।

"जब तर्क के लिए समय पूर्व निर्धारित है, न्यायाधीश के साथ बहस न करें क्योंकि यह कानून का अनुशासन है।"

उन्होंने मामलों के बैकलॉग को देखते हुए न्यायालयों द्वारा दलीलों के लिए समय सीमा लगाने का भी समर्थन किया।

"हम सभी समय को लेकर आपत्ति करते हैं लेकिन हमारे न्यायालयों में मामलों का बैकलॉग है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम अधिवक्ताओं को मामलों पर बहस करने में इतना समय लगता है।"

नरीमन ने आगे बताया,

"जब एक वकील बोलता है, तो उसे यह सोचना होता है कि वह क्या कहने जा रहा है और ठीक और संक्षिप्तता के साथ कह रहा है। मैंने हमेशा देखा है कि जो आदमी कम बोलता है वह जीत जाता है।"

वकालत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, केवल साक्ष्य के आधार पर मामले नहीं जीते जाते

नरीमन ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि वकालत एक मामले को जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि यह एक न्यायाधीश को मनाने में एक लंबा रास्ता तय करती है।

नरीमन ने कहा कि यह सोचना एक भ्रम है कि गवाह की अंतर्निहित ताकत के कारण बड़े मामले जीते या हारे जाते हैं। वकालत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि न्यायाधीश भी वकील की तरह इंसान होता है। फर्क सिर्फ इतना है कि उसे भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।

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lawyer essay in hindi

यह लेख भारती विद्यापीठ विश्वविद्यालय, पुणे के न्यू लॉ कॉलेज के Beejal Ahuja ने लिखा है। यह लेख मुफ्त कानूनी सहायता की अवधारणा (कांसेप्ट) और इसे प्रदान करने की चुनौतियों पर चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Sonia Balhara द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

जस्टिस ब्लैकमन ने ठीक ही कहा था कि “न्याय मांगने की अवधारणा को डॉलर के मूल्य (वैल्यू) के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। न्याय पाने में पैसा कोई भूमिका नहीं निभाता है।” न्याय की राह कभी सस्ती नहीं रही  है। अदालतों में न्याय की मांग करते हुए हर कदम पर मोटी रकम चुकानी पड़ती है। भारत के संविधान के आर्टिकल 14 में कहा गया है कि कानून के समक्ष हर एक व्यक्ति के साथ समान व्यवहार किया जाएगा, और धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्म के स्थान सभी के लिए कानून की समान सुरक्षा सुनिश्चित करता है। साथ ही, आर्टिकल 22(1) में कहा गया है कि जिसे गिरफ्तार किया जा रहा है, उसे उसकी पसंद के कानूनी व्यवसायी (प्रैक्टिशनर) से परामर्श (कंसल्ट) करने और बचाव करने के अधिकार से इंकार नहीं किया जा सकता है, और कानून का एक बुनियादी सिद्धांत (बेसिक प्रिंसिपल) है जिसका पालन किया जाना चाहिए, वह है, ऑडी अल्टरम पार्टेम, जिसका मतलब है कि किसी भी पार्टी को अनसुना नहीं छोड़ा जाएगा। न्याय एक मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट) होने के बाद भी, महंगी कानूनी व्यवस्था को वहन (अफ़्फोर्ड) करने में असमर्थता के कारण गरीब लोगों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है और कई बार अन्याय के लिए समझौता करना पड़ता है।

lawyer essay in hindi

कानूनी सहायता गरीब लोगों के लिए मार्ग दिखाने वाले (टॉर्चबियरर) का काम करती है जो अदालती कार्यवाही का खर्च नहीं उठा सकते। यह न्यायिक (ज्यूडिशियल) कार्यवाही, प्रशासनिक (एडमिनिस्ट्रेटिव) कार्यवाही, अर्ध-न्यायिक (क्वासि-ज्यूडिशियल) कार्यवाही, या सभी कानूनी समस्याओं के संबंध में किसी भी परामर्श में गरीब लोगों को दी जाने वाली मुफ्त कानूनी सहायता है। कानूनी सहायता जैसा कि जस्टिस पी.एन. भगवती गरीब और अनपढ़ लोगों के लिए न्याय वितरण प्रणाली (डिलीवरी सिस्टम) तक आसान पहुंच की व्यवस्था है, ताकि अज्ञानता (इग्नोरेंस) और गरीबी उन्हें न्याय मांगने से न रोके। इस सेवा का एकमात्र उद्देश्य गरीब और पददलित (डाउनट्रोड्डेन) लोगों को समान न्याय प्रदान करना है। इसमें न केवल अदालती कार्यवाही में एक वकील के प्रतिनिधित्व के लिए मुफ्त पहुंच शामिल है बल्कि कानूनी जागरूकता, कानूनी सलाह, जनहित याचिका (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन), कानूनी आंदोलन, लोक अदालतें, कानून सुधार और ऐसी कई सेवाएं भी शामिल हैं जो अन्याय को रोक सकती हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (हिस्टोरिकल बैकग्राउंड)

आजादी के बाद कई राज्यों ने जरूरतमंद लोगों के लिए कानूनी सहायता की अवधारणा शुरू की। 1958 में, 14वीं लॉ कमीशन की रिपोर्ट ने गरीबों को समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने पर जोर दिया। केरला पहला राज्य था जिसने गरीब लोगों के लिए कानूनी सहायता पर नीति (पॉलिसी) शुरू की जिसका नाम केरला कानूनी सहायता है। तमिलनाडु और महाराष्ट्र ने भी गरीब और पिछड़े (बैकवर्ड) लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए इसी तरह की योजनाएं शुरू कीं। 1971 में माननीय जस्टिस पी.एन. भगवती एक कमिटी के अध्यक्ष थे जो सभी को न्याय प्रदान करने और कानूनी सहायता की विभिन्न कमि टीज के कामकाज में न्यायाधीशों की भूमिका पर जोर देने के लिए बनाई गई थी, जो थीं-

  • तालुका कानूनी सहायता कमिटी (तालुका लीगल ऐड कमिटी)
  • जिला कानूनी सहायता कमिटी
  • राज्य कानूनी सहायता कमिटी

1973 में, माननीय जस्टिस वी.आर. कृष्णा अय्यर के नेतृत्व में कानूनी सहायता पर एक विशेषज्ञ (एक्सपर्ट) कमिटी द्वारा “ प्रोसेसुअल जस्टिस टू पुअर ” पर एक रिपोर्ट प्रकाशित (पब्लिश्ड) की गई थी। रिपोर्ट में कानूनी सहायता को वैधानिक (स्टेच्यूटरी) आधार देने की आवश्यकता, लॉ स्कूलों में कानूनी सहायता क्लीनिक स्थापित करने की आवश्यकता, जनहित याचिका पर जोर, और कानूनी सहायता प्रणाली को लोगों को आसानी से उपलब्ध कराने के अन्य तरीकों पर जोर दिया गया है। फिर 1977 में जस्टिस पी.एन. भगवती और जस्टिस कृष्ण अय्यर को “ राष्ट्रीय न्यायशास्त्र समान न्याय और सामाजिक न्याय ” के रूप में नामित किया गया। रिपोर्ट ने कानूनी सहायता कार्यक्रमों के कामकाज को देखा, उपचार या न्याय प्राप्त करने में वकीलों के मूल्य और भूमिका को मान्यता दी, और नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी (एनएएलएसए) की स्थापना का भी प्रस्ताव रखा।

1976 में, मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, इसे 42वें संवैधानिक संशोधन (अमेंडमेंट) द्वारा “समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता” पर डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी (डीपीएसपी) के तहत आर्टिकल 39A को सम्मिलित (इनसर्टिंग) करके एक वैधानिक अधिकार बनाया गया था जिसमें कहा गया है कि राज्य के पास सभी को समान न्याय का अवसर सुनिश्चित करने और जरूरतमंदों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए न्यायालय होना चाहिए ताकि आर्थिक (इकोनॉमी) या कोई अन्य विकलांगता (डिसेबिलिटी) किसी को न्याय मांगने से न रोके।

1980 में, कानूनी सहायता योजना के कार्यान्वयन (इम्प्लीमेंटेशन) के लिए कमिटी (सीआईएलएएस) को माननीय जस्टिस पी.एन. भगवती की अध्यक्षता में देश में चल रही कानूनी सहायता गतिविधियों की निगरानी और पर्यवेक्षण (सुपरवाइस्ड) किया और लोक अदालतों की भी शुरुआत की जो विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग (अमीकेबली) से निपटाने के लिए एक प्रभावी उपकरण (टूल) हैं।

न्यायपालिका की भूमिका (रोल ऑफ ज्यूडिशरी)

न्यायपालिका हमेशा भारत में एक प्रमुख समर्थक और मुफ्त कानूनी सहायता की प्रस्तावक  (प्रोपोनेंट) रही है। अतीत से यह स्पष्ट है कि माननीय जस्टिस पी.एन. भगवती और माननीय जस्टिस कृष्ण अय्यर ने कानूनी सहायता आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और भारत में मुफ्त कानूनी सहायता के महत्व पर जोर दिया है। न्यायपालिका के विभिन्न निर्णय कानूनी सहायता कार्यक्रम को बढ़ावा देने में प्रभावी साबित हुए हैं। उनमें से कुछ हैं:

हुसैनारा खातून बनाम होम सेक्रेटरी, स्टेट ऑफ बिहार

इस मामले ने बिहार राज्य में न्याय वितरण प्रणाली की खराब स्थिति को उजागर किया था। ऐसे बहुत से विचाराधीन (अंडरट्रायल्स) कैदी थे जिन्हें जबरदस्ती जेल में डाल दिया गया था और ऐसे आरोपी थे जिन्हें जबरदस्ती दोषी ठहराया गया था और उन्हें ज्यादा सजा दी गई थी, जिसके वे हकदार नहीं थे। इन सभी देरी के पीछे एकमात्र कारण दोषी व्यक्ति द्वारा अपने बचाव के लिए एक वकील को नियुक्त करने में असमर्थता थी। इसकी अध्यक्षता जस्टिस पी.एन. भगवती ने कहा कि मुफ्त कानूनी सेवा का अधिकार किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति के लिए ‘उचित, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण’ प्रक्रिया का एक अनिवार्य हिस्सा है और इसकी गारंटी आर्टिकल 39A और आर्टिकल 21 में निहित (इम्प्लिसिट) है।

स्टेट ऑफ हरियाणा बनाम दर्शन देवी

इस मामले में, माननीय जस्टिस कृष्णा अय्यर ने कहा कि कोई भी गरीब केवल अदालती शुल्क और आदेश XXXIII, सिविल प्रोसीजर कोड के प्रावधानों को लागू करने से इनकार करने के कारण न्याय से वंचित नहीं होना चाहिए, और उन्होंने इसके प्रावधानों को दुर्घटना दावा न्यायाधिकरणों तक बढ़ा दिया गया।

खत्री बनाम स्टेट ऑफ बिहार

इस मामले में माननीय जस्टिस पी.एन. भगवती ने सेशन न्यायाधीशों के लिए यह अनिवार्य कर दिया कि वे आरोपियों को मुफ्त कानूनी सहायता के अपने अधिकारों के बारे में सूचित करें और यदि ऐसा कोई व्यक्ति जो गरीबी या बदहाली के कारण बचाव के लिए एक वकील को नियुक्त करने में असमर्थ है।

शीला बरसे बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

इस मामले में, माननीय न्यायालय द्वारा यह माना गया कि भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 में निहित त्वरित परीक्षण करना एक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है।

सुक दास बनाम यूनियन टेरिटरी ऑफ अरुणाचल प्रदेश

यह न्याय जस्टिस पी.एन. भगवती द्वारा दिए गए ऐतिहासिक निर्णय में से एक था। उन्होंने कहा कि भारत में बड़ी संख्या में निरक्षर लोग हैं जिसके कारण उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी नहीं है। इसलिए, लोगों के बीच कानूनी साक्षरता और कानूनी जागरूकता को बढ़ावा देना आवश्यक है और यह कानूनी सहायता का एक महत्वपूर्ण अवयव ( कंपो नेंट) भी है।

अन्य क़ानून (अदर स्टैच्यूट्स)

कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, 1973 की धारा 304.

इस धारा में कहा गया है कि जब सेशन न्यायालय के समक्ष एक मुकदमे में, आरोपी बचाव के लिए एक प्लीडर या वकील को शामिल करने में सक्षम नहीं है और अगर अदालत को लगता है कि आरोपी एक वकील को शामिल करने की स्थिति में नहीं है, तो यह कर्तव्य है न्यायालय द्वारा आरोपी के बचाव के लिए एक वकील या एक प्लीडर नियुक्त करने के लिए और खर्च राज्य द्वारा वहन किया जाएगा।

सिविल प्रोसीजर कोड, 1908 का नियम 9A

सी.पी.सी के आदेश XXXIII के इस नियम में कहा गया है कि अदालत के पास एक निर्धन व्यक्ति को वकील नियुक्त करने की शक्ति है और ऐसे व्यक्ति को अदालती शुल्क का भुगतान करने से भी छूट मिलती है।

लीगल सर्विस अथॉरिटी एक्ट, 1987

यह एक्ट भारत में कानूनी सहायता आंदोलन का एक नया हिस्सा था। एक्ट में अंतिम संशोधन किए जाने के बाद इसे 1995 में लागू किया गया था। जस्टिस आर.एन. मिश्रा ने इस एक्ट को लागू करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। फिर 1988 में जस्टिस ए.एस आनंद नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी के कार्यकारी अध्यक्ष बने।

एक्ट के 2 उद्देश्य थे: 

  • समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को मुफ्त कानूनी सेवाएं प्रदान करना, यह सुनिश्चित करना कि कोई भी नागरिक किसी भी आर्थिक और अन्य अक्षमता के कारण न्याय से वंचित न रहे, और,
  • लोक अदालतों का आयोजन कर सुनिश्चित करें कि न्याय का समान वितरण हो।

इस एक्ट की धारा 12 उन लोगों की एक श्रेणी (कैटेगरी) निर्धारित करती है जो इस एक्ट के तहत मुफ्त कानूनी सहायता के हकदार हैं। इस एक्ट में राष्ट्रीय, राज्य, जिला और तालुका स्तरों पर संस्थागत (इंस्टीट्यूशनल) ढांचे का भी उल्लेख किया गया है, जो कि नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी, डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी, जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण और तालुका लीगल सर्विस अथॉरिटी है।

नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी (एनएएलएसए)

एनएएलएसए एक शीर्ष निकाय (अपेक्स बॉडी) है जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश पैट्रन-इन-चीफ और सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त (रिटायर्ड) न्यायाधीश कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा नामित किया जाता है। एनएएलएसए एक्ट के तहत कानूनी सेवाओं को आसानी से उपलब्ध कराने के लिए नीतियों और सिद्धांतों के साथ-साथ प्रभावी आर्थिक योजनाओं को तैयार करता है। यह कानूनी सहायता कैम्प भी आयोजित करता है, लोगों को लोक अदालत में विवादों को निपटाने के लिए प्रोत्साहित करता है, कानूनी सेवाओं में रिसर्च शुरू करता है और बढ़ावा देता है, और कानूनी सहायता कार्यक्रमों का आवधिक मूल्यांकन (पेरिओडिक ईवैल्यूएशन ) भी करता है। यह कानूनी साक्षरता को बढ़ावा देता है और विभिन्न लॉ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में कानूनी सहायता क्लीनिक स्थापित करता है और पैरालीगल के प्रशिक्षण को भी बढ़ावा देता है। इसके अलावा, एनएएलएसए स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी की गतिविधियों की निगरानी करता है और गैर-सरकारी संगठनों को कानूनी सहायता योजनाओं को लागू करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी (एसएलएसए)

लीगल सर्विस अथॉरिटी एक्ट हर एक राज्य सरकार के लिए एक स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी होना अनिवार्य बनाता है जिसमें हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पैट्रन-इन-चीफ और कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में हाई कोर्ट के एक सेवारत (सर्विंग) या सेवानिवृत्त न्यायाधीश होते हैं, जो राज्य के गवर्नर द्वारा मनोनीत (नॉमिनेट) कि ए जाते है। स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी एनएएलएसए द्वारा निर्धारित नीतियों, नियमों और रणनीतियों को लागू करता है। यह प्राधिकरण सर्वोच्च निकाय है जो राज्य में होने वाली कानूनी सेवाओं की गतिविधियों की निगरानी करता है। यह लोक अदालतों और विभिन्न कानूनी सहायता कार्यक्रमों का भी आयोजन करता है।

डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी (डीएलएसए)

लीगल सर्विस एक्ट हर एक राज्य के लिए संबंधित राज्य के हर एक जिले में एक डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी का गठन (कंन्स्टिट्यूट) करना अनिवार्य बनाता है जिसमें एक अध्यक्ष के रूप में जिला न्यायाधीश शामिल होंगे। यह प्राधिकरण स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी द्वारा निर्धारित कार्यों और नियमों का पालन करता है। और यह तालुका लीगल सर्विस कमिटी और जिले में घूमने वाली अन्य कानूनी सेवाओं के कार्यों की निगरानी भी करता है और लोक अदालतों का आयोजन करता है।

तालुका लीगल सर्विस कमिटी

स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी द्वारा एक तालुका लीगल सर्विस कमिटी का गठन किया जाता है जिसमें एक पदेन  (एक्स-ऑफिशिओ) अध्यक्ष के रूप में सबसे वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी होता है। यह तालुका में होने वाली कानूनी सेवाओं की गतिविधियों का पर्यवेक्षण और समन्वय (कोआर्डिनेशन) करता है और लोक अदालत का आयोजन भी करता है।

लीगल सर्विस अथॉरिटी एक्ट की धारा 3A में समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को कानूनी सहायता करने वाला और न्याय प्रदान करने के लिए सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमिटी की स्थापना का उल्लेख है। यह समिति सुप्रीम कोर्ट में लोक अदालतों का आयोजन भी करती है और कमिटी के अधीन सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता केंद्र (मेडिएशन सेंटर) भी कार्य करती है।

साथ ही, धारा 8A स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी द्वारा हाई कोर्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी की स्थापना के बारे में बताती है।

लोक अदालतें विवाद समाधान का एक वैकल्पिक (अल्टरनेटिव) माध्यम हैं। लोक अदालतों का मुख्य उद्देश्य अदालतों के कार्यभार को कम करना और मामलों का सस्ता त्वरित (स्पीडी) निपटान सुनिश्चित करना है। लीगल सर्विस अथॉरिटी एक्ट, 1987 का चैप्टर VI लोक अदालतों की शक्तियों से संबंधित प्रावधानों को बताता है। लोक अदालतों के कई लाभ हैं जैसे कि कोई अदालत शुल्क की आवश्यकता नहीं है, यह विवादों को सुलझाने का एक बहुत ही सौहार्दपूर्ण तरीका है, मामलों का त्वरित निपटान है, और पक्ष समझौता करने या तदनुसार समझौता करने के लिए स्वतंत्र हैं।

मुद्दे और चुनौतियां

इतने सारे वैधानिक प्रावधानों, समितियों और प्राधिकरणों के बाद भी, एक रिक्त स्थान है जिसे भरने की आवश्यकता है। आज भी, बहुत से लोग अन्याय के लिए समझौता करते हैं क्योंकि वे अपने बचाव के लिए एक वकील का खर्च नहीं उठा सकते। अदालतों में इतने सारे लंबित मामले क्यों हैं, इसके कई कारण हैं, ऐसे कई लोग हैं जो दोषी हैं लेकिन निर्दोष हैं और अपना बचाव करने में सक्षम नहीं हैं। कानूनी सहायता सेवाओं के कार्यान्वयन के रास्ते में कई चुनौतियाँ और मुद्दे आते हैं।

सार्वजनिक कानूनी शिक्षा और कानूनी जागरूकता का अभाव (लैक ऑफ पब्लिक लीगल एजुकेशन एंड लीगल अवेयरनेस)

ये कानूनी सहायता सेवाएं गरीब और अनपढ़ लोगों के लिए हैं, और प्रमुख मुद्दा यह है कि वे शिक्षित नहीं हैं। उनके पास कानूनी शिक्षा नहीं है, यानी वे अपने मूल अधिकारों और कानूनी अधिकारों से अवगत नहीं हैं। लोगों को कानूनी सहायता सेवाओं के बारे में अधिक जानकारी नहीं है जिसका वे स्वयं लाभ उठा सकते हैं। इसलिए, कानूनी सहायता आंदोलन ने लक्ष्य हासिल नहीं किया है, क्योंकि लोग लोक अदालतों, कानूनी सहायता आदि से ज्यादा परिचित नहीं हैं।

अधिवक्ताओं (एडवोकेट्स), वकीलों आदि के समर्थन का अभाव 

इन दिनों सभी वकील और एडवोकेट्स अपनी सेवाओं के लिए उचित शुल्क चाहते हैं, और उनमें से ज्यादातर ऐसी सामाजिक सेवाओं में भाग लेने में रुचि नहीं रखते हैं। बहुत कम वकील हैं जो इन सेवाओं में योगदान करते हैं लेकिन अच्छी गुणवत्ता (क्वालिटी) वाले कानूनी प्रतिनिधित्व (रिप्रजेंटेशन) की कमी न्याय के वितरण (डिलीवरी) में बाधा डालती है।

लोक अदालतों को शक्तियों का अभाव

लोक अदालतों के पास सिविल अदालतों की तुलना में सीमित शक्तियाँ हैं। सबसे पहले, उचित प्रक्रियाओं की कमी। फिर इसमें वे पक्षकारों को कार्यवाही के लिए उपस्थित होने के लिए बाध्य (बाउंड) नहीं कर सकते। कई बार कोई एक पक्ष सुनवाई के लिए उपस्थित नहीं होता और फिर यहां भी निस्तारण (डिस्पोजल) में देरी हो जाती है।

पैरा-लीगल वॉलंटियर्स का कम उपयोग

इन पैरा-लीगल वॉलंटियर्स की मूल भूमिका कानूनी सहायता कैम्प्स, योजनाओं को बढ़ावा देना और समाज के गरीब और कमजोर वर्गों तक पहुंचना है। लेकिन इन पैरा लीगल वॉलंटियर्स के उचित प्रशिक्षण (ट्रेनिंग), निगरानी, ​​सत्यापन (वेरिफिकेशन) का अभाव है। और ये स्वयंसेवक भी पूरी आबादी की तुलना में बहुत कम संख्या में हैं।

समाधान और सुझाव

कानूनी सहायता का लक्ष्य तभी प्राप्त होगा जब सभी जरूरतमंद और गरीब लोग जागरूक होंगे और इसका लाभ उठा रहे होंगे, क्योंकि यह उनका मौलिक अधिकार है। इसलिए, कानूनी सहायता प्रणाली में उन कमियों को भरने के लिए कुछ सुधार किए जाने हैं।

गैर सरकारी संगठनों की भूमिका (रोल ऑफ एनजीओ)

लोगों के बीच उनके अधिकारों और प्रभावी न्याय वितरण के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका को शामिल करना और बढ़ाना।

कानूनी सहायता कार्यक्रम और कानूनी जागरूकता

लोगों के अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने और जरूरतमंद लोगों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए बड़े स्तर पर कानूनी सहायता कैम्प्स और लोक अदालतों का एक संगठन होना चाहिए। विभिन्न पिछड़े क्षेत्रों में अधिकारों, कानूनों के बारे में जागरूक करने और वैकल्पिक विवाद मध्यस्थता, लोक अदालतों आदि के माध्यम से विवादों को हल करके उन्हें मुफ्त कानूनी सेवाओं का विकल्प चुनने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न पिछड़े क्षेत्रों में पात्रता (एंटाइटलमेंट) केंद्रों की स्थापना होनी चाहिए।

कानूनी साक्षरता मिशन (लीगल लिटरेसी मिशन)

अन्य विकसित (डेवलप्ड) देशों में लोगों को कानूनों और अधिकारों के बारे में सूचित करने के लिए 2 साल या 5 साल की योजना है। भारत लोगों को उनके अधिकारों और कानूनों के बारे में शिक्षित करने के लिए 5 साल की योजना भी पेश कर सकता है।

वकीलों को बेहतर पारिश्रमिक (रैम्यूनरेशन)

आजकल, वकीलों के लिए एक अच्छा प्रतिनिधित्व मिलना मुश्किल है क्योंकि वे मुफ्त कानूनी सेवाएं देने में रुचि नहीं रखते हैं, और सेवाओं के लिए कुछ शुल्क की अपेक्षा करते हैं। इसलिए, अदालतों या सरकार द्वारा वकीलों को भुगतान किए जाने वाले पारिश्रमिक में वृद्धि की जानी चाहिए, जो अभियुक्तों को मुफ्त में पेश कर रहे हैं या उनका बचाव कर रहे हैं।

प्रतिक्रिया दृष्टिकोण (फीडबैक एप्रोच)

काउंसलों के काम की निगरानी का मूल्यांकन प्रतिक्रिया दृष्टिकोण के माध्यम से किया जाना चाहिए, अर्थात लोगों से परिषद के काम की प्रतिक्रिया के बारे में पूछकर और फिर हर एक अधिवक्ता की उचित प्रगति रिपोर्ट होनी चाहिए। यह सब एक उचित निगरानी समिति का गठन करके किया जा सकता है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

रेजिनाल्ड हेबर स्मिथ ने अपनी पुस्तक ‘जस्टिस एंड द पूअर’ में खूबसूरती से लिखा है कि “कानून तक समान पहुंच के बिना, सिस्टम न केवल गरीबों को उनकी एकमात्र सुरक्षा से वंचित करता है, लेकिन यह उनके उत्पीड़कों के बैंड में अब तक का सबसे शक्तिशाली और क्रूर हथियार रखता है।”  

भारत में एक सफल कानूनी सहायता आंदोलन के लिए, सरकार को जागरूकता फैलाने और लोगों को उनके मूल मौलिक अधिकारों के बारे में शिक्षित करके उचित कदम उठाने की जरूरत है। सरकार का एकमात्र उद्देश्य ‘सभी को समान न्याय’ प्रदान करना होना चाहिए। लोगों के बीच जागरूकता और कानूनी शिक्षा की कमी की प्रमुख समस्या या मुद्दे को हल करके लीगल सर्विस अथॉरिटी एक्ट को उचित कार्यान्वयन की आवश्यकता है। यदि लोग शिक्षित और अधिकारों के प्रति जागरूक होंगे तो मुफ्त कानूनी सहायता सेवाओं आदि का उचित उपयोग होगा। इन सबके कारण, यह अधिकारों का शोषण और जरूरतमंद लोगों द्वारा अधिकारों से वंचित करता है। कानूनी सहायता सेवाओं का उचित प्रबंधन और निगरानी होनी चाहिए।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

  • https://www.academia.edu/36325912/Legal_Aid_and_Awareness_in_India_Issues_and_Challenges?auto=download  
  • http://www.legalserviceindia.com/legal/article-82-legal-aid-and-awareness-in-india-issues-and-challenges.html  

lawyer essay in hindi

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Essay on the Indian Legal System | Hindi

lawyer essay in hindi

Here is an essay on the Indian legal system especially written for school and college students in Hindi language.

किसी भी व्यवस्था को चलाने के लिए एक संविधान की आवश्यकता होती है जिसके अनुसार व्यवस्था चलती है और उसके बाद व्यवस्था का जो महत्वपूर्ण अंग है वह है कानून, संविधान का पूरक कानून को कहा जा सकता है क्योंकि बिना कानून के कोई भी संविधान पूरक नहीं है यदि किसी राष्ट्र का कानून शख्त है तो निश्चित ही कहा जा सकता है कि उस देश की व्यवस्था भी उतनी ही अधिक मजबूत होगी और यदि किसी देश का कानून व संविधान दोंनों ही लचीला है तो कहा जा सकता है कि उस देश में अपराध, भ्रष्टाचार, शोषण व उत्पीडन की अधिकता होगी जैसा की भारत वर्ष में देखा जा सकता है ।

भारतीय संविधान जितना विस्तृत है उससे भी कहीं अधिक विस्तृत है भारतीय कानून लेकिन विस्तृता के साथ ही भारतीय कानून में जितनी प्राचीनता है शायद ही दुनिया के किसी देश में होगी जो समय बदलने के साथ भी वही है जिसको आज तक बदलने की कोशिश भी नहीं की गई है ।

आज भी अगर देखा जाये और विश्लेषण किया जाये तो पाया जाता है कि अधिकतर कानून तो वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल ही नहीं हैं और वे मृतप्राय हो चुके हैं और जो बचे हैं उनमें भी संशोधन की आवश्यकता महसूस की जा रही है ।

सर्वाधिक व्यवहार में आने वाले कानूनों की यदि बात करें तो वो भी अत्यधिक पुराने हैं कि न्याय व्यवस्था के शुरूआती समय में जब कानून बचपन की अवस्था में कहे जा सकते थे और अब कानून अपनी किशोरावस्था से गुजरते हुए युवावस्था और वृद्धावस्था में पहुंच गये हैं जैसे भारतीय दंड संहिता 1860 का बना अंग्रेजों का कानून है जिसमें देखा जाए तो धारा-290 के दोषी को मात्र दो सौ रूपये जुर्माने से दंडित करने का प्रावधान है ।

धारा-282 में भी मात्र एक हजार रूपये जुर्माने का प्रावधान है और धारा-283 में दो सौ रूपये का दंड धारा-284 में एक हजार रूपये का दंड इसी प्रकार धारा-285 जो अग्नि या ज्वलनशील पदार्थ के सम्बन्ध में उपेक्षापूर्ण आचरण जैसे अपराध में मात्र एक हजार रूपये के जुर्माने का प्रावधान करती है । विस्फोटक पदार्थ जैसे गम्भीर पदार्थ के उपेक्षापूर्ण आचरण के सम्बन्ध में भी एक हजार रूपये जुर्माने के दंड का प्रावधान धारा-286 में किया गया है ।

धारा-287, 288 और 289 जैसे उपेक्षापूर्ण अपराधों में भी मात्र एक हजार रूपये जुर्माने का ही प्रावधान है किशोर बालक को अश्लील वस्तुओं के विक्रय के सम्बध में धारा-283 में पांच हजार रूपये जुर्माने का प्रावधान      है । उक्त सभी जुर्माने सन् 1860 के अनुसार ही निर्धारित किये गये हैं ।

उपरोक्त मात्र धाराएं ही नहीं हैं । इनके अलावा भी भारतीय दण्ड संहिता में धारा हैं जिनके निर्धारित जुर्मानों को देखकर कहा जा सकता है कि कोई भी अपराधी आसानी से कानून तोड़ने के लिए अपना मन बना सकता है यदि वर्तमान समय और सन् 1860 की तुलना की जाये तो मंहगाई व पैसे की कीमत के अनुसार सन् 1860 के एक हजार रूपये आज के लगभग दस लाख रूपये से भी अधिक बैठते हैं और यदि देश की सरकारें समय के साथ कानून की समीक्षा कर जुर्माने, सजा आदि में संशोधन कर सन् 1860 के जर्माना राशि को आज के अनुसार संशोधित करते तो निश्चित ही अपराधों के ग्राफ में कमी आती क्योंकि जब एक अपराधी का एक छोटे से अपराध में आज की मंहगाई के अनुसार जुर्माना भुगतना पड़ता ।

तो निश्चित ही दूसरे अपराधियों को भी इससे सबक मिलता और वे भविष्य में अपराध करने से बचते लेकिन जब अपराधियों को भी मालूम है कि कानून सन् 1860 का है और जुर्माना भी दो सौ रूपये या एक हजार रूपये ही होगा तो क्या कोई अपराधी कानून से डरेगा या वह अपराध करने से बचेगा अर्थात कदापि नहीं ।

ADVERTISEMENTS:

यह भारतीय व्यवस्था की ही कमी कही जा सकती है कि सम्पूर्ण कानूनो को चलाने वाला कानून जिसे कानूनों की माँ कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी जिसे हम दण्ड प्रक्रिया संहिता कहते हैं । जो 1973 का बना हुआ है और 1974 से लागू किया गया ।

कहा जाता है जिसमें कुछ धाराएं तो ऐसी हैं कि वर्तमान समय में तो उनका कोई औचित्य ही नहीं है वैसे दण्ड प्रक्रिया संहिता में संशोधन होते रहे हैं उसके बाद भी दण्ड प्रक्रिया संहिता में संशोधन की आवश्यकता बनी हुई है जैसे धारा-107, 116 आदि ऐसी धाराएं है जो शान्ति भंग की आशंका में पहले से ही सम्भावित लोगों को बंधक पत्र भरवाती है ।

लेकिन वास्तविकता इससे इतर है सी.आ.पी.सी. की धारा- 107,116 की कार्यवाही में बंधक पत्र भी महज औपचारिकता बनकर रह गया है कार्यपालक मजिस्ट्रेट के न्यायालय के बाबू दो सौ रूपये लेकर बंधक पत्र भर देते हैं ।

उसके बाद नियमानुसार प्रत्येक पन्द्रह दिन बाद कार्यपालक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में उपस्थिति आवश्यक होती है लेकिन बाबूओं की कृपा से बंधक पत्र भरने के बाद उपस्थिति की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती है अन्यथा नियमानुसार छ: माह तक प्रत्येक पन्द्रह दिन के बाद उपस्थिति आवश्यक होती है ।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा- 167(2) के उपबंधों के अनुसार जब अभियुक्त अभिरक्षा में हो और निर्धारित अभिरक्षा अवधि यथास्थिति 90 दिन या 60 दिन में पूरी नहीं हो पाती तो इस अवधि के बाद अभियुक्त सम्बंधित मजिस्ट्रेट को जमानत देने को तैयार हो और जमानत दे देता है तो वह सम्बंधित मजिस्ट्रेट द्वारा जमानत पर छोड़े जाने का अधिकारी है अर्थात पुलिस की कमी का लाभ अभियुक्त जमानत के रूप में लेने का अधिकारी है ।

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा- 154(1) न के अनुसार संज्ञेय अपराध कारित होने पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दी जा सकती है और धारा-154(2) के अनुसार प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर.) की प्रतिलिपि सूचना देने वाले को तत्काल निःशुल्क दी जायेगी और यदि किसी थाने का भारसाधक अधिकारी इत्तिला अभिलिखित करने से इंकार करता है तो पीड़ित व्यक्ति इत्तिला का सार लिखित रूप से डाक द्वारा सम्बंधित पुलिस अधीक्षक को भेज सकता है यदि तब भी प्रथम सूचना रिपोर्ट अभिलिखित नहीं होती है तो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-156(3) के अनुसार मजिस्ट्रेट के सम्मुख वाद लाया जा सकता है ।

जिस पर संबंधित मजिस्ट्रेट संज्ञान लेकर प्रथम सूचना रिपोर्ट अभिलिखित करने के लिए संबंधित थाने के भारसाधक अधिकारी को आदेशित कर सकेगा जिसमें विवेचना जारी हो सकेगी । दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-156(3) बहुत ही महत्वपूर्ण धारा है जिसका उपयोग व दुरूपयोग दोनों ही है यदि उपयोग की बात करें तो वे लोग जो पुलिस के द्वारा अपनी प्रथम सूचना रिपोर्ट अभिलिखित नहीं करा पाते उनके लिए तो कई दिनों से भूखे को खाना मिलने के समान है जो खाना खाकर अपनी भूख को शांत करते हैं और यदि दुरूपयोग की बात करें दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-156(3) सबसे खतरनाक है जिसका इस्तेमाल रंजिश रखने वाले लोग स्थानीय थानाध्यक्ष महोदय की मिलीभगत से अपने विरोधियों पर मुकदमा पंजीकृत कराने का कार्य करते हैं ।

जिसमें थानाध्यक्ष महोदय भी अपनी कृपा से बिना किसी हिचक के उक्त कार्य को कराते हैं । इसी कारण धारा- 156(3) बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है जिसका उपयोग व दुरूपयोग कर भारतीय व्यवस्था के  अंग अपना कर्त्तव्य निभाते हैं ।

धारा- 164 की यदि बात करें तो इसका महत्व उस परिस्थिति में बहुत अधिक हो जाता है जब अपहरित युवती या प्रेमी संग गई युवती द्वारा स्वीकारोक्ति की जाती है आमतौर पर देखा गया है कि अपनी मर्जी से प्रेमी संग गई युवती धारा-164 के तहत कोई कथन अभिलिखित करती है और अपने घर वालों के दवाब में उल्टे अपने प्रेमी को ही फरना देती है जो सम्भव होता है । दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-164 के आधार पर जब उस युवती का कथन मजिस्ट्रेट द्वारा बद कमरे में लिया जाता है और उसके कथन के आधार पर ही वह युवक दोषी या निर्दोष साबित होता है ।

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-198 के अन्तर्गत कोई न्यायालय भारतीय दंड संहिता की धारा-497 एवं 498 में दंडनीय अपराध का संज्ञान उस स्त्री के पति के परिवाद पर करेगा जो स्त्री जारता की दोषी है क्योंकि इस स्थिति में उस स्त्री के पति के अधिकारों का ही हनन होता है इसलिए न्यायालय उसी के परिवाद पर ही संज्ञान लेता है किसी अन्य के परिवाद पर नहीं । दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-216(1) के अनुसार न्यायालय निर्णय सुनाये जाने से पहले आरोप में परिवर्तन या परिवर्धन कर सकता है ।

माना किसी व्यक्ति द्वारा कोई अपराध कारित किया गया उसके बाद आरोप पत्र दाखिल हुआ, परीक्षण चलाया गया, गवाही हुई, अन्वेषण अधिकारी द्वारा भी गवाही दी गई, डाक्टर ने भी गवाही दी, आरोपियों द्वारा भी न्यायालय ने पूछताछ की गई । इतना समय बीतने के उपरान्त भी जिसमें न्यायालय का भी बहुमूल्य समय नष्ट हुआ ।

पुलिस का भी समय नष्ट हुआ और आरोपियों द्वारा पीड़ित पक्ष से समझौता उस वक्त कर लिया जब न्यायालय द्वारा निर्णय सुनाया जाना ही था और न्यायालय में कुछ इस तरह गवाही करायी गई कि अपराध आरोपियों ने नहीं बल्कि किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया गया और दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-216(1) के अनुसार न्यायालय को निर्णय सुनाये जाने से पहले निर्णय बदलना पड़ा ।

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-249 के अनुसार जब कार्यवाही किसी परिवाद पर संस्थित की जाती है और मामले की सुनवायी के लिए नियत किसी दिन परिवादी अनुपस्थित है और अपराध का विधिपूर्वक शमन किया जा सकता है या यह संज्ञेय अपराध नहीं है तब मजिस्ट्रेट आरोप के विचरित किये जाने से पूर्व किसी भी समय अभियुक्त को स्वविवेकानुसार उन्मोचित कर सकेगा अर्थात दण्ड प्रक्रिया संहिता की कितनी ही धाराएं आरोपियों को भी लाभ पहुंचाने का कार्य करती हैं और कुछ धाराएँ तो ऐसी हैं ।

जिनका सीधा-सीधा लाभ अभियुक्तगण उठाते चले आ रहे हैं । सिविल प्रक्रिया संहिता हो या दण्ड प्रक्रिया संहिता या फिर भारतीय दण्ड संहिता सभी की कमजोरियों का लाभ अपराधीगण उठा रहे हैं जिसका प्रमुख कारण है भारतीय व्योवृद्ध कानून, अन्यथा भारतवर्ष में दुनिया के किसी अन्य देश की तुलना में अपराधिक ग्राफ इतना अधिक नहीं होता ।

पुलिस एक्ट भी अंग्रेजों के जमाने का ही है जिसे अंग्रेजों द्वारा सन् 1861 में बनाया गया था । उसके बाद 1888 में और 1949 में संशोधन किया गया । जिस समय भारत देश अंग्रेजों का गुलाम था उस वक्त जो कानून देश में लागू थे वे ही कानून आज भी लागू हैं तो फिर किस बात की आजादी ।

जब कानून अंग्रेजों का है तो ये ही कहा जा सकता है कि हम आज भी गुलामी के कानून से ही शासित हो रहे हैं । बस अन्तर सिर्फ इतना है कि उस वक्त कानून अंग्रेजों द्वारा शासित होता था और आज भारतियों द्वारा शासित होता है । हमने इतना विचार तक नहीं किया कि हम अंग्रेजों के बनाये कानून से ही शासित हो रहे हैं ।

या तो हमारी सामर्थ्य ही नहीं है कि हम अपने लिए अपना कानून बना सके या फिर हम अंग्रेजो के बनाये कानून से चलने के आदी हो गये हैं । भारतीय संविदा अधिनियम को ही लें तो उक्त अधिनियम भी आजादी के पहले अर्थात 1872 का है ।

सम्पन्ति अंतरण अधिनियम की यदि बात करें तो वह भी आजादी के पहले 1882 का, विभाजन अधिनियम 1893 का है तो भारतीय न्यास अधिनियम भी 1882 का है घातक दुर्घटना अधिनियम 1855 का तो परिसीमन अधिनियम 1963 का है तो हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 का है । भारतीय साध्य अधिनियम 1872 का है ।

उक्त अधिनियम ऐसे हैं जिनमें समय परिवर्तन के साथ ही परिवर्तन की आवश्यकता महसूस की जा रही है लेकिन न तो उक्त अधिनियमों में कोई परिर्वन ही किया गया और न ही परिवर्तन करने का प्रयास किया गया और इसके अलावा यदि राज्य सरकारों के अधिनियमों की चर्चा करें तो उनकी स्थिति भी कुछ ऐसी ही है ।

जमींदारी विनाश अधिनियम 1951 हो या स्थावर सम्पत्ति अधिग्रहण और अर्जन अधिनियम 1952 हो, आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 हो सभी अधिनियम उस वक्त के है जब देश में गरीबी, भूखमरी चरमसीमा पर थी और देश की आबादी भी लगभग बीस से पच्चीस करोड़ थी उस वक्त अनाज भी दस से बीस पैसे प्रति किलो और देशी घी भी एक रूपये प्रति किलो हुआ करता था । लोग पैदल यात्रा करते थे या बैलगाड़ी के द्वारा, मोटर गाड़ी तो बिरले ही दिखायी देती थी ।

उस वक्त के कानून वर्तमान समय में अप्रसांगिक है लेकिन उसके बाद भी सभी कानून अपना कार्य कर रहे हैं । न्याय किसी को मिले या न मिले लेकिन कानून अपना कार्य कर रहे है । अगर कहा जाये कि वर्तमान भारतीय कानून भारतीय व्यवस्था पर बोझ बने हुए हैं जिनको सहन करना भारतीय जनमानुष की आदत का हिस्सा बन गया है ।

न्याय मिलना तो दूर, न्याय की कल्पना करना मात्र ही न्याय रह गया है । जिसका मुख्य कारण भारतीय कानूनों का अपनी वृद्धावस्था में होना है भारतीय कानूनों में संशोधन की आवश्यकता समय की माग है अन्यथा ऐसे कानूनों के भरोसे न्याय मिलने की आशा करना बेईमानी है ।

यदि सिविल प्रक्रिया संहिता की ही बात करें तो वह भी आजादी के पहले अंग्रेजों के द्वारा निर्मित सन् 1908 का कानून है । भारत में मुख्यतया लागू और व्यवहार में आने वाले कानून भारतीय दण्ड संहिता 1860, दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973, सिविल प्रक्रिया संहिता 1908, भारतीय साध्य अधिनियम 1872 के है ।

जिनमें संशोधन की आवश्यकता वर्तमान समय की मांग है लेकिन अनेकों विधि रिपोर्टों में सुझाये गये संशोधन प्रस्तावों को नजर अंदाज कर भारतीय व्यवस्था को आगे बढा रहे हैं । लेकिन भारतीय व्यवस्था भी वृद्धावस्था में जा चुके भारतीय कानूनों का बोझ उठाने के लिए अब तैयार नजर नही आती ।

सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 को यदि देखा जाए तो सर्वाधिक निष्प्राण दर्शित होती है क्योंकि आपराधिक मुकदमों में तो न्याय मिलने की कुछ समय सीमा है भी फास्ट ट्रैक न्यायालय है जहां 10-15 साल में तो निर्णय आ ही जाता है लेकिन यदि सिविल मुकदमों की बात करें तो भारतीय व्यवस्था में तीन-तीन पीढ़ी मुकदमा लड़ती रहती है तो वाद चलता रहता है लेकिन वाद का निस्तारण नहीं हो पाता तो क्या हम कह सकते हैं कि सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 सही कार्य कर रही है कदापि नही ।

एक वाद जो एक व्यक्ति की जमीन पर दूसरे द्वारा कब्जा करने से सम्बन्धित है जिसमें उस व्यक्ति ने बिना किसी मालिकाना अधिकार के किसी कमजोर व्यक्ति की जमीन पर कब्जा कर लिया भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-110 के अनुसार कब्जा स्वामित्व का प्रथम द्रष्टया साक्ष्य है ।

जमीन का वास्तविक मालिक आर्थिक व शारीरिक रूप से कमजोर है तो वह अपनी जमीन से कब्जा हटाने में नाकाम रहता है उसके बाद सिविल न्यायालय में वाद चलता है वादी व प्रतिवादी के बीच वाद को चलते हुए 25 वर्ष हो गये । वादी की मृत्यु हो जाती है प्रतिवादी की भी मृत्यु हो जाती है उनके वारिश वादी व प्रतिवादी बनते हैं ।

वाद चलता रहता है निस्तारित होने पर डिक्री वादी के पक्ष में हो जाती है तो प्रतिवादी अपील दायर करता है वाद पुन: चल जाता है इसी दौरान वादी व प्रतिवादी दोनों की मृत्यु हो जाती है । तदोपरान्त उनके वारिश वादी प्रतिवादी बनते हैं । वाद चलता रहता है और निस्तारण नहीं हो पाता ।

कुछ इस प्रकार भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के अन्तर्गत वाद चलते रहते हैं लेकिन वादी को कोई उपचार नहीं मिल पाता जिससे सिद्ध होता है कि भारतीय कानून कहीं न कहीं कमजोर पड़ गये हैं । जो इस भारी भरकम भारतीय व्यवस्था का बोझ उठाने में अक्षम दिखायी पड़ते हैं ।

भारतीय कानूनों की वृद्धावस्था सूची में यदि देखा जाए तो और अधिक लम्बी होती जाती है वे औद्योगिक कानून हों या श्रम कानून सभी बहुत पुराने हो चुके हैं । औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 का है जिसमें हल्का सा संशोधन किया गया वो भी हाल ही में अन्यथा समस्त औद्योगिक विवादों का निपटारा सन् 1947 के अनुसार ही किया जा रहा है । परिस्थितियां बदल गई लेकिन कानून नहीं बदला ।

भारत में श्रम कानूनों की अधिकता तो है लेकिन उनका पालन कराना सरकारों के बूते की बात नहीं है भारत में जितना अधिक कानून कर्मकारों के लिए उपलब्ध है शायद ही दुनिया के किसी अन्य देश में हो व्यवसाय संघ अधिनियम 1926 है ।

इन्डस्ट्रीयल एम्पलाइमेन्ट (स्टेन्डींग आर्डर) एक्ट-1946, कर्मकार प्रतिकार अधिनियम-1923, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम 1948, कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम 1952, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948, पेमेन्ट ऑफ वेजीज अधिनियम 1936, फैक्ट्री अधिनियम 1948, उद्योग (विकास और नियमावली) अधिनियम 1951 बोनस अधिनियम 1965, अप्रैन्टीस अधिनियम 1961, कलेक्शन ऑफ स्टेटीस एक्ट-1953 मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 पेमेन्ट ऑफ ग्रेचुवटी एक्ट 1972, बाल श्रम अधिनियम 1986 संविदा श्रमिक अधिनियम 1970 सामान वेतन अधिनियम 1976, बन्धुवा मजदूरी अधिनियम 1976, खान अधिनियम 1952 आदि मुख्य अधिनियम श्रमिकों के हितों के लिए ही हैं लेकिन क्या उक्त अधिनियमों का पालन श्रमिक हितों के लिए हो रहा है ।

यह कहना मुश्किल है क्योंकि श्रमिकों के लिए तो केवल कानून बना हुआ है । जिनका लागू होना या न होना कोई खास महत्व नहीं रखता और यह भी महत्व नहीं रखता कि श्रमिक हित सुरक्षित हैं या नहीं । तभी तो श्रम कानूनों का जितना उल्लंघन भारतवर्ष में हो रहा है ।

शायद ही किसी अन्य देश में हो, भारतीय श्रम कानूनों की लम्बी फेहरिस्त का लाभ श्रमिक वर्ग को न मिलकर उद्योगों के स्वामी ही उठा रहे हैं । यही कारण है कि भारतीय श्रमिक उत्पीड़न का शिकार हो रहा       है । वह न तो कोई अतिरिक्त लाभ ही ले रहा है और न अपनी रोजमर्रा की आवश्यकता पूर्ति ही कर पा रहा है ।

श्रम कानूनों की अधिकता के बावजूद भी भारतीय श्रमिक आठ घंटे के स्थान पर 16-16 घंटे काम करने को विवश हैं । जिसके बदले में श्रमिक को दोगुना वेतन मिलना चाहिए । जैसा कि श्रम कानूनों में प्रावधान है लेकिन ऐसा नहीं होता ।

भारतवर्ष में केवल कानून है उनका अनुपालन नहीं अन्यथा जितना कानून भारतवर्ष में है उसका आधा भी यदि ईमानदारी से लागू हो जाये तो निश्चित ही भारत के श्रमिकों की स्थिति में सुधार आयेगा लेकिन भारतवर्ष में ईमानदारी की बात करना अब बेईमानी है अब भारतवासी राजा हरिश्चन्द्र को भूल गये हैं वे भूल गये हैं अपने दर्शन को, वे भूल गये हैं कि हमारे पूर्वजों ने सच्चाई और ईमानदारी के लिए कितने कष्ट उठाये थे और आज हम उनके आदर्शों को भूल गये हैं ।

भारतीय जनमानुष ने प्रतियोगिता के इस दौर में अपने पूर्वजों के आदर्शो, सिद्धान्तों का बलिदान कर दिया है । वे केवल आगे बढ़ने के लिए धन कमाने के लिए गरीब मजदूरों के अधिकारों का भी हनन कर रहे  हैं । वे मजदूरों को भी उनका पूरा पारिश्रमिक नहीं दे रहे हैं ।

भारत के लघु उद्योगों की यदि स्थिति देखी जाऐ तो हृदय भर आता है जब देखतें है कि एक श्रमिक अपने बीबी-बच्चों को सुबह अकेला छोड़कर सात बजे फैक्ट्री में काम करना शुरू करता है और दोपहर मे मात्र आधा घंटे का लंच करने के बाद सात बजे या दस-ग्यारह बजे तक कार्य और कभी-कभी तो चौबीस घंटे भी कार्य करते देखा जाता है ।

जिसके बदले में उसको मिलता है बामुश्किल चार से पांच हजार रूपये जिसमें वह श्रमिक महीने भर का राशन, बच्चों को स्कूल फीस, कमरे का किराया आदि चुका पाता है और कई बार यदि कोई बीमार पड़ गया, या तो किराया नहीं जायेगा या राशन वाले का उधार हो जायेगा ।

ऐसी स्थिति में भारतीय श्रमिक अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं । यदि श्रमिक अधिक समय तक बीमार हो गया तो उसको रोजगार से भी हाथ धोना पड़ सकता है । ऐसे लघु उद्योगों में न तो कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम लागू होता है और न ही समान वेतन अधिनियम ऐसे उद्योगों में काम करने वाले श्रमिक केवल दिहाड़ी मजदूर की भांति मशीन की तरह फैक्ट्री में कार्य करते हैं अपना दिहाड़ी लेकर जीवन यापन करते हैं ।

उनको नहीं मालूम की कोई कर्मचारी राज्य बीमा भी लागू है या समान वेतन अधिनियम, ऐसी दयनीय स्थिति से होते हुए यदि हमने ऊंची विकास दर हासिल भी कर ली तो भी हमने काफी महंगी कीमत पर विकास दर प्राप्त की कही जा सकती है ।

जब एक भारतवासी दूसरे भारतवासी का खून चूस कर आगे बढता है उन्नति करता है तो उसे हम उन्नति नहीं श्रमिक हत्या की संज्ञा देंगे । श्रम कानूनों का पालन करते हुए उन्नति करना ही उन्नति है अन्यथा दूसरे अवैधानिक रास्तों से होते हुए श्रम कानूनों का उल्लंघन करके की गई उन्नति, उन्नति नहीं कही जा सकती ।

जब श्रमिक अधिकरों का हनन किया गया हो, श्रम कानूनों का उल्लंघन किया गया हो साथ ही कर कानूनों का भी उल्लंघन हुआ हो और उसके बाद कोई यह दावा करता है कि उसने उन्नति की है तो निश्चित ही वह गलत है वह श्रमिकों के उत्पीड़न का दोषी है । वह सरकार का भी अपराधी है वह अपराधी है ।

उन दूध मुंहे बच्चों का जिन्हें पैदा होते ही माँ का दूध भी नसीब नहीं होता वह अपराधी है उन बुर्जुग माता-पिता का जिन्हें गरीबी के कारण उनकी ही औलाद बोझ समझने लगती है । वह अपराधी है उन कन्याओं का जिन्हें माता-पिता शादी के खर्च के डर से गर्भ में ही हत्या करनी पड़ती है ।

वह अपराधी है उन बच्चों का जो गरीबी के कारण अच्छे स्कूल में पढाई करने के स्थान पर चाय वाले की दुकान या होटलों में बर्तन साफ करने का कार्य करना पड़ता है । भारतवर्ष मे कानूनों की भरमार है बाल श्रम प्रतिषेध अधिनियम भी है लेकिन शहरों में मुख्यत: चाय वाले की दुकान पर, ढाबे पर, होटलों में, बूट पालिश, अखबार बाटना जैसे कार्यो में बच्चों को लगे हुए देखा जा सकता है ।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी एम॰सी॰ मेहता बनाम तमिलनाडू राज्य के वाद में बाल श्रम को प्रतिबंधित किया गया था । उसके बाद भी कई वादों में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बाल श्रम पर दिशा निर्देश दिये जा चुके हैं । भारतीय संविधान का अनुच्छेद-24 भी कारखानों आदि में चौदह वर्ष से कम आयु के बच्चों को काम करने को प्रतिबंधित करता है ।

इतना कानून व संवैधानिक प्रावधानों के बाद भी भारतवर्ष में बाल श्रम रूकने का नाम नहीं ले रहा । आखिर क्या कारण हो सकता है । भारतीय कानूनों की कमजोरी कहें या भारतीय व्यवस्था की कमजोरी या भारतीय जनमानुष की कमजोरी, जो वह बच्चों को कार्य कराने के लिए मजबूर है । कुछ हद तक तो भारतीय व्यवस्था की ही कमजोरी कही जा सकती है ।

जो भारतवर्ष में प्रत्येक विषय पर कानून है लेकिन कानून का पालन न तो भारतीय जनता ही करना चाहती है और न ही भारतीय कार्यपालिका, दोनों ही कानून को केवल मूकदर्शक के रूप में देखना चाहते हैं ओर देख रहे है तो क्या हम इस व्यवस्था को परिवर्तित कर सकते हैं ?

सम्भवत: नहीं क्योंकि जब आम नागरिक ही कानून तोड़ने में अपना बड़प्पन समझता है तो क्या हम आशा कर सकते हैं कि हम कानून का पालन करा पायेंगे अर्थात कदापि नहीं । कानून का पालन कराने में भी हमें स्वयं ही पहल करनी होगी । कानून का पालन न होने के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं ।

भ्रष्टाचार जिसकी मूल वजह है यदि हम अपने आप को सुधार लें । हम दृढ निश्चय कर लें कि हम कोई भी गैर कानूनी कार्य नहीं करेंगे और गलती से या अनजाने में कोई अवैधानिक कार्य हो जाता है तो हमें उसका दण्ड भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि एक बार यदि हमने दण्ड भुगत लिया तो निश्चित ही जीवन में पुन: हम कोई अवैधानिक कार्य नहीं करेंगे ।

हम सदैव कानून का पालन करेंगे और यदि कानून तोड़ने पर हमने भ्रष्ट आचरण का सहारा लिया तो यह भी निश्चित है कि हम पुन: कानून तोड़ने का कार्य करेंगे और फिर दण्ड से बचने के लिए भ्रष्टाचार का ही सहारा लेंगे और धीरे-धीरे हम भ्रष्ट आचरण करने के आदी हो जायेंगे हम कानून तोडना अपनी आदत का हिस्सा बना लेंगे और दण्ड से बचने के लिए भष्टाचार को अपनी ढाल के रूप में इस्तेमाल करेगे ।

आज का युग भ्रष्टाचार का युग है चारों तरफ लूट मची हुई है सब अपनी-अपनी तिजोरियां भरने में जुटे हुए हैं देश के कई वरिष्ठ अधिकारियों का उदाहरण आपके सामने हैं लेकिन होता किसी का कुछ नहीं गवाह खरीदे जाते हैं या मार दिये जाते हैं या अधिकतर पर तो कार्यवाही होती ही नहीं ।

इसी से प्रेरित होकर आगे आने वाले अधिकारी भी ऐसा ही करता है ये चलता रहेगा चलता रहा है । कुछ नहीं होने वाला किसी का भ्रष्टचार चरमसीमा पर पहुच चुका है अन्तर केवल इतना है कि सरकार बदलने पर उसका तरीका बदल जाता है भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता लेकिन हम सब यदि जागरूक हो जायें तो थोड़ा कम किया जा सकता है ।

देश का शायद ही कोई ऐसा विभाग होगा जहां भ्रष्टाचार न हो इसके लिए जितना दोषी वह तंत्र है जो भ्रष्टचार कर रहा है उससे कहीं अधिक दोषी हम और आप हैं जो इस भ्रष्टाचार रूपी वृक्ष की जड़ो में खाद पानी दे रहे हैं ।

हम चाहते है कि भ्रष्टाचार खत्म हो सब कुछ विधिवत हो लेकिन हम साथ ही ये भी चाहते है कि कोई चमत्कार हो कोई फरिश्ता या अवतार आये और इस भ्रष्टाचार रूपी वृक्ष को उखाड़ फेंके और हम आराम से ऐसा होते देखें । हममें इतनी हिम्मत नहीं है कि सामने आकर उसका मुकाबला करें ।

हम चाहते हैं कि फिर से सरदार भगतसिंह पैदा हो सुभाष चन्द्र बोस इस पृथ्वी पर अवतरित हों लेकिन हो सब पडोसी के घर पर अपने को आंच न आये और शहीदों में उनका नाम आ जाये तथा हम राजभोग का आनन्द उठा सके । जैसे पहले होता आया है आज हर कोई भगतसिंह, सुभाष चन्द्र बोस की तलाश में लगा रहता है ।

कोई खुद भगतसिंह व सुभाष बनने की क्यों नहीं सोचता सब सोचते हैं कि कोई और देख लेगा मैं क्यों मुसीबत मोल लूं । लेकिन आज तक तह कोई और नहीं आ पाया है सब कुछ ऐसे ही चल रहा है और चलता रहेगा । जब तक देश का प्रत्येक नागरिक अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेगा तब तक ऐसा ही होता रहेगा ।

हम तहसील में जाते हैं जाति या आय प्रमाण पत्र बनवाने के लिए तो हम प्रक्रिया से काम करवाने के स्थान पर किसी दलाल को ढूंढते हैं कि जल्द से जल्द बनवा दो चाहे सौ के स्थान पर दो सौ रूपये ले लो बस बार-बार न आना पड़े तो ये भ्रष्टाचार को हम बढ़ावा दे रहे हैं या कोई ओर हम गाड़ी या मोटर साइकिल से कहीं जा रहे हैं लेकिन कागज पूरे नहीं है न ड्राईविंग लाइसेंस है न प्रदूषण प्रमाण पत्र, न बीमा, रास्ते में पुलिस ने रोक लिया जांच में कोई भी कागज नहीं है फिर दरोगा जी के हाथ पैर जोड़ते हैं गिड़गिड़ाते हैं और दो तीन सौ रूपये देकर छूट जाते हैं क्या जरूरत थी ऐसा करने की और पैसा देने की यदि गाड़ी के कागज पूरे रखते तो भ्रष्टाचार कौन बढा रहा है ।

हम या कोई ओर, कुछ हद तक इस भ्रष्टाचार को बढाने में हम स्वयं ही जिम्मेदार हैं क्या कभी किसी ने किसी अधिकारी या कर्मचारी या जनप्रतिनिधि के किसी गलत कार्य का विरोध किया है नहीं किया ना । हम डरते हैं कि कहीं कुछ अपने ऊपर न आ पड़े ।

ऐसा होता है जब तक हम स्वयं को योग्य नहीं बनाते कि जो भ्रष्टाचार का विरोध कर सके । योग्यता दो तरह से है एक तो हम ऐसा कोई कार्य न करें जिससे हमें किसी कानूनी कार्यवाही का सामना करना पडें । जब हम स्वयं अपने आप को इस योग्य पायेंगे तो हमारे अन्दर आत्म विश्वास अपने आपही आ जायेगा ।

दूसरा भ्रष्टाचार का संगठित होकर विरोध करें क्योंकि अकेला चना कभी भाड़ नहीं फूंक सकता । कर सके तो निश्चित ही आपके साथ लोग संगठित हो जायेंगे और आप और बेहतर तरीके से भ्रष्टाचार का विरोध कर सकेंगे । आज भी देश में ऐसे युवाओं की कमी नहीं है जो ऐसा करना चाहते हैं ।

लेकिन मार्ग दर्शन के अभाव में वो कर नहीं पाते उन्हें आगे लाना होगा । देश का प्रत्येक नागरिक यदि मन में ठान ले कि भ्रष्टाचार का विरोध करना है तो निश्चित ही वो दिन दूर नहीं जब भ्रष्टाचारी स्वयं सोचने पर मजबूर हो जायेंगे ऐसा होगा जब प्रत्येक नागरिक अपने अधिकारों व कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक हो, देखते हैं कोई कैसे फिर उनको गुमराह करता है ।

भ्रष्टाचार के लिए कहीं तक लोगों को अपने अधिकारों व कर्त्तव्यों के प्रति जानाकरी न होना भी जिम्मेदार है । हमें पता होना चाहिए कि जो कार्य हम कर रहे हैं वह कानून वैद्य है या नहीं । हम दोष देते हैं कि नौकरी नहीं मिली नौकरी के लिए लाखों रूपये रिश्वत देते हैं नौकरी पा लेते है तो क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि जो नौकरी पैसे देकर प्राप्त की है क्या उस नौकरी को पाने वाला भ्रष्ट आचरण नहीं करेगा ।

दोषी कौन है हम या कोई ओर । हम पहले गलत कार्य करते हैं फिर सजा से बचने के लिए धन का इस्तेमाल करते हैं तो भ्रष्टाचार कौन बढा रहा है हम या कोई ओर । भ्रष्टाचार बढाने के लिए जितना दोषी भ्रष्ट तंत्र है उससे कहीं अधिक दोषी हम और आप हैं जो इसे बढ़ावा दे रहे हैं ।

पहले हमें स्वयं को सुधारना होगा तत्पश्चात हमें इस भ्रष्टाचार रूपी तंत्र को उखाड़ने का संकल्प लेना होगा । तभी भारतीय कानूनों का सही से पालन हो पायेगा अन्यथा कदापि नहीं । भारतीय संविधान की ही यदि बात की जाये तो निश्चित ही कुछ अनुच्छेदों को संशोधित करना वर्तमान समय की मांग है ।

जिन्हें समय बदलने के साथ ही बदलता रहना चाहिए और उनको वर्तमान समय और परिस्थतियों के अनुसार संशोधित करते रहना चाहिए ताकि किसी भी नागरिक को असुविधा का सामना न करना पड़े । संविधान व कानून किसी भी देश, राज्य व संस्था को विधिवत रूप से चलाने के लिए बनाये जाते हैं और यदि किसी देश का संविधान व कानून ही लचीला हो तो क्या उस देश का नागरिक अपने आपको सुरक्षित महसूस कर पायेगा ? कदापि नहीं ।

फिर तो एक ही प्रकार का कार्य चलता रहेगा और वह भी उक्त उक्ति की तरह की- “पैसे लेते पकड़े जाओ तो पैसे देकर छूट जाओ” यदि किसी देश का कानून व संविधान इतना लचीला हो जहां अपराधियों को कानून का डर, भय न हो उस देश की व्यवस्था कैसी हो सकती है इसका तो केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है ।

भ्रष्टाचार सभी देशों में है लेकिन भारत के सम्बन्ध में कुछ ज्यादा ही है जहां भारतीय नागरिक देश की प्रतिष्ठा से जुड़े हुए मामलों में भी कानून तोड़ने से नहीं आते । कुछ भारतीय तो कानूनों का उल्लंघन करना अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानते हैं और कानून की कमियों का भरपूर लाभ उठाते हैं ।

तभी तो कुछ लोग पेशेवर अपराधी या पेशेवर भूमाफिया आदि ऐसे अपराध करते हैं और उन अपराधों को करने के आदी हैं । भारतीय कानूनों की कमियों का लाभ उठाते हैं धन्य हैं ऐसे भारतीय कानून जो केवल पुस्तकालयों की शोभा मात्र है और उनके बने हुए भी वर्षों हो गये न तो समय के साथ कोई संशोधन और न कोई नयापन । सब कुछ पुराने ढर्रे पर ही चल रहा है और ऐसे ही चलते रहने की अपेक्षा की जा सकती है ।

कर्म न करने को आज कानून कहते हैं

खाली रहना जिसमें शान समझते हैं

दण्ड का जिसमें भय नही उसे कानून कहते हैं

अपराध करके छूट जाएं जिसमें उसे कानून कहते हैं

भ्रष्टाचारी पैदा जो करे उसे आज कानून कहते हैं

बलात्कारी को इज्जत जो दे उसे आज कानून कहते हैं

अपराधी को मंत्री जो बना दे उसे कानून कहते हैं

बडे से बडा अपराध जो करके घर में बैठा दे उसे कानून कहते हैं

गरीब को रोटी को तरसा दे उसे कानून कहते हैं

कमजोर की सम्पत्ति का वारिस गुंडो को बना दे उसे कानून कहते हैं

दूधमुहे बच्चों से पिता का साया जो हटा दे उसे कानून कहते हैं

हक के लिए लड़ने वालों को सलाखों में जो पहुँचा दे उसे कानून कहते हैं

देशद्रोही को सम्मान जो दिलवा दे उसे कानून कहते हैं

और कानून उसी को कहते हैं जो कानून को भी मरवा दे ।

भारतीय व्यवस्था की कमियों में एक सबसे बड़ी कमी कानून है । जो संविधान लागू होने के 60 वर्ष बाद भी आज प्रभावशाली नहीं है जिनका जानकार लोग बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं । अब सेवा कर को ही ले लीजिए जिसको लागू हुए ज्यादा समय नहीं हुआ लेकिन सरकार को बहुत अधिक राजस्व की प्राप्ति सेवा कर से ही होती है जो अधिकतर सेवाओं पर लगाया जाता है लेकिन क्या कारण है देश के नीति निर्धारक-निर्धारक  सबसे बड़ी सेवाओं चिकित्सा सेवा और विधिक सेवा पर सेवाकर लगाने में नाकाम रहे हैं । जबकि ये सेवाएं अधिक सेवाकर देने का माध्यम बन सकता है ।

एक अधिवक्ता जो 10-12 लाख रूपये मासिक कमाता हो लेकिन उसका कुछ भी अंश कर के रूप में । चाहे आयकर हो या सेवाकर के रूप में जमा नहीं करता तो क्या आप कह सकते हैं कि वह व्यक्ति देश के हित में है या देश हित के विषय में सोच सकता है या देश के विकास में भागीदार है अर्थात कदापि नहीं ।

तो क्या ऐसे उच्च आय वाले अधिवक्ता आयकर व सेवाकर के दायरे में होने चाहिए ? यही स्थिति चिकित्सा क्षेत्र की भी है जहां डाक्टर रोजाना 10-15 हजार रूपये अपनी सेवा से कमा रहे हैं लेकिन उसका कुछ भी अंश आयकर या सेवाकर के रूप में नहीं अदा कर रहे तो क्या वह डाक्टर देश का हितैषी है या वह देश के विकास में सहयोगी है कदापि नहीं । अर्थात ऐसे डाक्टर सेवाकर व आयकर के दायरे में आने चाहिए या नहीं यह निर्णय तो सरकार को करना है ।

आम जनता को संविधान ने अगर मौलिक अधिकार दिये हैं तो साथ ही मौलिक कर्त्तव्य भी दिये हैं जिन्हें देश का नागरिक नहीं जानना चाहता । वे केवल अपने अधिकार जानता है ओर कुछ नहीं । देश हित की बात करना आज भारतीय पीढ़ी से मुर्खता होगी क्योंकि आधुनिकता में सब कुछ भूल चुके हैं । वे भूल चुके हैं कि हम किस देश के नागरिक हैं, हमारी संस्कृति क्या है ? हम आज कहां खड़े हैं ? हमें कहां होना चाहिए था ?

हमारे कुछ कर्त्तव्य भी हैं । तभी तो डाक्टर वकील लाखों रूपये मासिक कमाने के बावजूद उसका कुछ भी अंश कर के रूप में अदा नहीं करते । ऐसे सैकड़ो-हजारों उदाहरण भारत देश में देखने को मिल सकते  हैं । जो आयकर आदि जैसे करों को चोरी करने में अपनी बुद्धिमत्ता व श्रेष्ठता समझते हैं कि हमने सरकारी कर की चोरी करके बहुत ही बुद्धिमता का कार्य किया है । जो देश के साथ चोरी है, गद्दारी है । लेकिन इस चोरी को बढ़ाने में सहयोगी हैं देश के नीतिकार, जो आज तक इन बड़ी सेवाओं को आयकर व सेवाकर के दायरे में न ला सके ।

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वकील पर निबंध Essay on lawyer in hindi

Essay on lawyer in hindi.

दोस्तों आज हम आपको इस लेख के माध्यम से वकील पर लिखे निबंध के बारे में बताने जा रहे हैं तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस लेख को पढ़कर वकील पर लिखे निबंध की जानकारी प्राप्त करते हैं ।

lawyer essay in hindi

आज हम देखते हैं की दुनिया में कितने झगड़े हो रहे हैं ।समाज में कई तरह के आपसी विवाद हो जाते हैं जिन विवादों को सुलझाने में कई तरह की समस्या आ जाती है। अधिक विवाद बढ़ जाने के कारण व्यक्ति अपने विवाद को सुलझाने के लिए न्यायालय में जाता है ।

जब व्यक्ति अपने विवाद को सुलझाने के लिए , न्याय प्राप्त करने के लिए न्यायालय में जाता है तब उसे अपनी ओर से जज के सामने दलीलें प्रस्तुत करने के लिए वकील की आवश्यकता होती है ।

एक वकील के द्वारा ही हमारी ओर से जज के सामने दलीलें प्रस्तुत की जाती हैं  जिन दलीलों के माध्यम से जज साहब न्याय करते हैं । जब वकील हमारी ओर से कोर्ट में केस लड़ता है तब हमको न्याय प्राप्त होता है ।

वकील काले कलर का कोर्ट पहनता है , सफेद शर्ट , ब्लैक पेंट पहनता है । भारतीय न्याय प्रणाली के हिसाब से वकीलों को दो श्रेणी मे विभाजित किया गया है । वरिष्ठ अधिवक्ता और अधिवक्ता ।

वरिष्ठ अधिवक्ता काफी अनुभवी होता है । वह किसी भी तरह की लापरवाही केस लड़ते समय नहीं करता है । काफी अनुभव वरिष्ठ अधिवक्ता को होता है । जब वकील वरिष्ठ अधिवक्ता की श्रेणी में आ जाता है तब वह अपने आप को एक सफल वकील के रूप में देखता है । दूसरी श्रेणी अधिवक्ता की है । वकील बनने के लिए एलएलबी करना होती है । कई तरह की कानूनी किताबें पढ़ने केे बाद बकालात करने की परमिशन मिलती है ।

जब वकील को डिग्री मिल जाती है तब वह वरिष्ठ वकील के पास अनुभव प्राप्त करने के लिए जाता है । धीरे-धीरे वरिष्ठ वकील के साथ काम करके वह अनुभव प्राप्त कर वरिष्ठ वकील की श्रेणी में आ जाता है और हम सभी की ओर से दलील कोर्ट में प्रस्तुत कर हम सभी को न्याय दिलाता है ।

अधिवक्ता हमारी ओर से जो भी सबूत कोर्ट में , न्यायालय में प्रस्तुत करता हैं , सबूतों को जज के समक्ष प्रस्तुत करता है जिसके बाद जज साहब उन सबूतों को देखकर फैसला सुनाते हैं ।

वकील दो तरह के होते हैं सरकारी वकील और प्राइवेट वकील । सरकारी वकील वह वकील होता है जो सरकार की ओर से दलीलें मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत करता है । जब कोई व्यक्ति अपराध करता है तब उस व्यक्ति को पुलिस के माध्यम से गिरफ्तार किया जाता है जिसके  बाद उस अपराधी को सरकारी वकील और पुलिस के माध्यम से कोर्ट में पेश किया जाता है । अपराधी के विरोध में सरकारी वकील अपनी दलीलें प्रस्तुत करता है ।

प्राइवेट वकील होता है जो हम सभी की ओर से कोर्ट में दलीलें प्रस्तुत करता है ।  एक वकील का कर्तव्य हम सभी को न्याय दिलाना होता है । वकील जब सच्चाई के साथ वकालात करता है और एक सच्चे व्यक्ति को न्याय दिलाता है तब वह एक ईमानदार वकील कहलाता है ।

जब वकील हमारी तरफ से कोर्ट में मजिस्ट्रेट के सामने दलीलें प्रस्तुत करता है तब मजिस्ट्रेट साहब उन दलीलों को सुनकर , सबूतों को देखकर और उन सबूतों की जांच पड़ताल कर एक न्याय प्रद फैसला सुनाता है जिसके बाद सच्चाई की जीत होती है ।

यही एक सच्चे वकील का कर्तव्य है । एक ईमानदार वकील अपने क्लाइंट को न्याय दिलाने के लिए गैर कानूनी तरीके से कार्य करने से इंकार कर देता है यही ईमानदार वकील का सबसे बड़ा कर्तव्य है । आज की दुनिया में लड़ाई झगड़ों के साथ-साथ कारोबार के लिए भी एक वकील की आवश्यकता होती है क्योंकि व्यवसाय करने के लिए सरकार को समय पर टेक्स भरने की पूरी जानकारी एक बकरी के द्वारा ही दी जाती है ।

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दोस्तों हमारे द्वारा लिखा गया यह सुंदर लेख आपको कैसा लगा हमें कमेंट के माध्यम से बताने की कृपा करें धन्यवाद ।

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जानिए, क्या है कानून-व्यवस्था

कानून व्यवस्था सामाजिक तौर पर महत्वपूर्ण होती है. यह एक अच्छे समाज और माहौल का निर्माण करती है. आइए जानते हैं क्या होती है कानून व्यवस्था..

कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी पुलिस के कंधों पर

परवेज़ सागर

  • 30 दिसंबर 2015,
  • (अपडेटेड 07 जनवरी 2016, 7:11 PM IST)

lawyer essay in hindi

कानून व्यवस्था एक ऐसा शब्द है जो आए दिन खबरों के माध्यम से आप सुनते और पढ़ते हैं. यह शब्द केवल खबरों के लिहाज से ही नहीं बल्कि सामाजिक तौर पर भी महत्वपूर्ण है. बेहतर कानून व्यवस्था अच्छे समाज और माहौल का निर्माण करती है.

क्या है कानून व्यवस्था किसी भी राज्य, शहर अथवा क्षेत्र में शांति बनाए रखना, अपराधों को कम करना और नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना कानून व्यवस्था का मुख्य अंग है. अक्सर जहां भी कहीं राजनीतिक या सामाजिक बवाल या टकराव होता है, या फिर माहौल तनावपूर्ण हो जाता है, तो कानून व्यवस्था का संकट खड़ा हो जाता है. यानी किसी क्षेत्र में अशांति या हिंसा होना भी कानून व्यवस्था का सकंट ही होता है.

कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी भारत का गृह मंत्रालय देश की आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मामलों के लिए उत्तरदायी है. यह आपराधिक न्‍याय प्रणाली के लिए कानून अधिनियमित करता है. देश में पुलिस बल को सार्वजनिक व्यवस्था का रख-रखाव करने और अपराधों की रोकथाम और उनका पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. भारत के प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश का अपना अलग पुलिस बल है. राज्यों की पुलिस के पास ही कानून व्यवस्था को बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है.

कानून व्यवस्था में केंद्र की भूमिका भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत ‘पुलिस’ और ‘लोक व्यवस्था’ राज्य के विषय हैं. अपराध रोकना, पता लगाना, दर्ज करना, जांच-पड़ताल करना और अपराधियों के विरुद्ध अभियोजन चलाने की मुख्य जिम्मेदारी राज्य सरकारों और खासकर पुलिस को दी गई है. संविधान के मुताबिक ही केन्द्र सरकार पुलिस के आधुनिकीकरण, अस्त्र-शस्त्र, संचार, उपस्कर, मोबिलिटी, प्रशिक्षण और अन्य अवसंरचना के लिए राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है.

एनसीआरबी है मददगार कानून व्यवस्था और अपराधों से संबंधित घटनाओं को रोकने के लिए केन्द्रीय सुरक्षा और सूचना एजेंसियां राज्य की कानून और प्रवर्तन इकाईयों को नियमित रूप से जानकारी देती हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) गृह मंत्रालय की एक नोडल एजेंसी है, जो अपराधों को बेहतर ढंग से रोकने और नियंत्रित करने के लिए राज्यों की सहायता करती है. और राज्यों को अपराध संबंधी आंकड़े जुटाने और उनका विश्लेषण करने का कार्य करती है.

सीसीआईएस भी है सहायक अपराध अपराधी सूचना प्रणाली (सीसीआईएस) के तहत देश के सभी जिलों में जिला अपराध रिकार्ड ब्यूरो (डीसीआरबी) और राज्य अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एससीआरबी) को कंप्यूटरीकृत प्रणाली से जोड़ दिया गया है. यह प्रणाली अपराध रोकने, उनका पता लगाने और सेवा प्रदाता तंत्रों में सुधार करने में सहायक है. इसकी मदद के पुलिस और कानूनी प्रवर्तन एजेंसियां अपराधों, अपराधियों और अपराध से जुड़ी संपत्ति का राष्ट्र स्तरीय डाटाबेस रखती हैं.

कानून व्यवस्था को मजबूत करेगी ओसीआईएस एनसीआरबी के दिशा निर्देश में संगठित अपराध के खतरे से प्रभावी ढंग से निपटने के मकसद से एक और नई प्रणाली स्थापित की जा रही है. जिसे संगठित अपराध सूचना प्रणाली यानी ओसीआईएस का नाम दिया गया है. इसके तहत विभिन्न अपराधों से संबंधित आंकड़े आसानी से उपलब्ध होंगे जो कानून व्यवस्था को बेहतर बनाने में सहायक साबित होंगे.

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वकील कैसे बनें – How To Become a Lawyer in Hindi

by Editor January 12, 2019, 9:06 AM

स्कूल की पढ़ाई खतम करने के बाद या कॉलेज में ग्रेजुएट होने के बाद यदि आपकी भी इच्छा एक वकील (lawyer) बनने की है तो यहाँ हम – वकील कैसे बनें (How To become a Lawyer in Hindi) इसके बारे में मार्गदर्शन देने जा रहे हैं। 

वकील कौन होता है?

एक वकील वह व्यक्ति होता है जो कानून का अभ्यास करने का लाइसेंस रखता है। वे अपने ग्राहकों की ओर से वकालत करते हैं, या वे कानूनी क्षेत्र में दूसरी हैसियत से काम करते हैं। सभी वकील सक्रिय रूप से कानून का अभ्यास नहीं करते हैं। कानूनी लाइसेंस प्राप्त करने के लिए सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद जब आपको लायसंस मिल जाता है तब आप एक वकील बनते हैं। वकील बनने की राह  चुनौतीपूर्ण हो सकती है। 

वकील सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र दोनों में काम करते हैं। जो वकील ग्राहकों का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे अपने ग्राहकों को कानून को समझने में मदद करते हैं और अपने ग्राहक को कानूनी लड़ाई जिताने के लिए कानूनी कार्यवाही में मदद करते हैं। वकील कानूनी दस्तावेज तैयार कर सकते हैं, गवाह का साक्षात्कार कर सकते हैं, मुकदमों का संचालन कर सकते हैं, अदालत की मंशा पर बहस कर सकते हैं और परीक्षण कर सकते हैं।

वकील कैसे बनें – How To Become Lawyer in Hindi

आमतौर पर LLB (Bachelor of laws) नाम की कानून में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद ही आप एक पेशेवर वकील बन सकते हैं। यह डिग्री आप तीन प्रकार के संस्थानों से प्राप्त कर सकते हैं

  • सार्वजनिक विश्वविद्यालय / कॉलेज
  • नेशनल लॉ स्कूल
  •  निजी संस्थान

LLB का यह कोर्स 3 या 5 वर्ष का होता है।

  • 3 साल की LLB डिग्री केवल उन लोगों के लिए है जिनके पास पहले से ही स्नातक (Graduation) की डिग्री है।
  • यदि आप 10 + 2 में हैं, तो आप 5 साल की  डिग्री के लिए आवेदन कर सकते हैं। 5-वर्षीय पैटर्न में, कुछ निर्दिष्ट पाठ्यक्रमों को पूरा करने के बाद, आपको 3 साल के अंत में बीए या बीएससी की उपाधि से सम्मानित किया जाएगा। कोर्स के सभी पांच साल पूरे करने के बाद ही आपको एलएलबी डिग्री मिलेगी।

LLB कोर्स करने की योग्यता – Eligiblity 

  • अगर आप Graduate हैं तो आपको 3 साल का LLB कोर्स पूरा करना होगा। जिसमे उम्र की कोई सीमा नहीं है। Graduation में आपके 50% होना जरूरी है। 
  • यदि आप 10+2 के बाद LLB कोर्स कर रहे हैं तो आपको 5 साल का कोर्स पूरा करना होगा। जिसमे आपकी उम्र 20 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए और साथ ही आपके 10+2 में 50% मार्क्स होना जरूरी है। 

Law School मे Admission लेना 

LLB की डिग्री प्राप्त करने के लिए आपको लॉं कॉलेज में दाखिला लेना होगा जिसमे एड्मिशन के लिए आपको कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) देना होगा।  कई अन्य लॉ कॉलेज, लॉ स्कूल एडमिशन टेस्ट – इंडिया (LSAT) के माध्यम से प्रवेश देते हैं। 

प्रमुख लॉं कॉलेज जहां आप एड्मिशन ले सकते हैं:

  • School of Law, Christ University at Bengaluru. They have their own entrance test. The pattern is same as CLAT.
  • Symbiosis Law School (SET exam)- Pune, Noida, and Hyderabad
  • NLU (D) (AILET exam)- Delhi
  • Amity University- Noida & quite a few other campuses.
  • GLC- Bombay

बार काउंसिल के लिए नामांकन करें 

वकील बनने के अंतिम चरण में आपको किसी भी राज्य की बार काउंसिल में खुद को नामांकित करना है। स्टेट बार काउंसिल में पंजीकरण की एक समान प्रक्रिया नहीं है। पंजीकरण के बाद, आपको अखिल भारतीय बार परीक्षा – All India Bar Examination (AIBE) को पार करना होगा। परीक्षा का आयोजन बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा किया जाता है, और एक बार जब आप इसे क्लियर कर लेते हैं, तो आपको प्रैक्टिस का प्रमाण पत्र मिल जाता है। 

LLB की पढ़ाई पूरी करने के बाद, आप या तो अपनी लॉं प्रैक्टिस जारी रख सकते हैं या आप पढ़ाई जारी रख सकते हैं जिसमे आप एलएलएम कोर्स (LLM – Master of Laws) का विकल्प चुन सकते हैं। यह LLB के बाद का कोर्स होता है। 

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भारतीय न्यायपालिका और इसके कार्य Indian Judiciary System and Its functions in Hindi

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भारतीय न्यायपालिका के तीन भाग हैं- सर्वोच्च न्यायालय, राज्य न्यायपालिका, अधीनस्थ न्यायालय तथा लोक अदालत। देश में लोकतंत्र की रक्षा के लिए न्यायपालिका का होना बहुत आवश्यक है। यह आम कानून पर आधारित व्यवस्था है। यह व्यवस्था अंग्रेजों ने बनाई थी।

Table of Content

सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) Supreme Court On India

भारत में दिल्ली स्थित सर्वोच्च न्यायालय को भारत की शीर्ष न्यायपालिका कहते हैं। भारत में सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) की स्थापना 28 जनवरी 1950 को हुई थी। इसका मुखिया “प्रधान न्यायाधीश” होता है।

उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) High Court of India

जिला और अधीनस्थ न्यायालय district and session court.

इस प्रकार के न्यायालयों की स्थापना जिला स्तर पर की गई है। जिले के अंतर्गत उपजे विवाद, लड़ाई झगड़े और दूसरे मामलों का निपटारा इस प्रकार के न्यायालय करते हैं।

ट्रिब्यूनल Tribunal

भारतीय न्यायपालिका के प्रमुख कार्य major functions of indian judiciary, भारत में न्यायपालिका की भूमिका और कार्य role of judiciary and its importance.

देश में न्यायपालिका का महत्व बहुत अधिक है। बहुत से कामों को करने के लिए न्यायपालिका सक्षम होती है। भारत में न्यायपालिका को पूर्ण स्वतंत्रता दी गई है जिससे वह लोकतंत्र और नागरिकों के हितों की रक्षा कर सकें।

कानून की व्याख्या करना

झगड़ों और विवादों का निपटारा, सभी विवादों का निपटारा, नए कानून बनाने में योगदान.

कई बार न्यायपालिका के सामने ऐसे मुकदमे आते हैं जिसमें कानून स्पष्ट नहीं होता है। इन मुकदमों को “समता के सिद्धांत” के आधार पर सुलझाया जाता है। इस तरह के फैसले आगे चलकर कानून का रूप ले लेते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि न्यायपालिका नये कानून बनाने में भी योगदान करती है।

लोकतंत्र की रक्षा करना

जनता के अधिकारों की रक्षा करना, भारतीय न्यायपालिका की विशेषताएं  characteristics of indian judiciary system, इंग्लैंड की न्यायपालिका जैसी.

भारत की न्यायपालिका का गठन इंग्लैंड की न्यायपालिका के आधार पर किया गया है। पर इसके साथ ही इसमें कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन भी किए गए हैं।

भारतीय न्यायपालिका पूरी तरह स्वतंत्र है

संगठित न्यायपालिका, सर्वोच्च न्यायालय सबसे उच्च ऊपर, ब्रिटेन की न्यायपालिका जैसी व्यवस्था.

भारत की न्यायपालिका बहुत अधिक ब्रिटेन की न्यायपालिका जैसी है जिसमें सभी लोग एक जैसे कानून में बंधे होते हैं। भारत में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से लेकर एक साधारण व्यक्ति सभी एक जैसे कानून से बंधे हुए हैं।

दो प्रकार के न्यायालय की व्यवस्था

देश में न्यायपालिका सर्वोच्च है.

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भारतीय कानून की जानकारी | परिभाषा, अधिकार, नियम | Indian Law in Hindi

Indian law in hindi.

आज जब हम आधुनिक युग की बात करें या फिर प्राचीन समय की दोनों ही कालो में हमें कानून के बारे में देखने और सुनने का मौका मिलता है, लेकिन अक्सर आम जन इन कानूनों के बारे में या तो अनभिज्ञ रहता है या तो थोड़ा बहुत जानता है जिसका कारण हमारे कानूनों की भाषा का जटिल होना | दोस्तों हम इसी बात को ध्यान में रख कर आपके लिए लाये हैं आपके अपने इस लॉ पोर्टल Nocriminals.org   पर “कानून की जानकारी”   आसान भाषा में, इस पेज पर आपको न केवल IPC , CrPC के जटिल प्रावधानों को आसानी से समझया गया है बल्कि इसके साथ ही संविधान तथा और अन्य अधिनियम से सम्बंधित जानकारियां  विस्तार से आम जान की भाषा में बताया गया है जिससे सभी लोग अपने कानून और अधिकारों से परिचित हो सकें | 

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असंज्ञेय अपराध (Non Cognizable) क्या है

हम पोर्टल के इस सेगमेंट में आपको IPC, भारतीय संविधान , CrPC व सभी भारतीय कानूनों के बारे में सटीकता के साथ जानकारी देने का प्रयास करेंगे जिसमे प्रोफेशनल वकील की भाषा के साथ सामान्य व्यक्ति भी समझ का भी ध्यान रखा जायेगा | आप यहाँ भारतीय कानून की जानकारी और कानून  की परिभाषा, नागरिको के अधिकार, कानून के नियम इन सबके बारे में आसानी से समझेंगे | आपको बताते चले कि लोकतन्त्रीय आस्थाओं, नागरिकों के अधिकारों व स्वतन्त्रओं की रक्षा करने और सभ्य समाज के निर्माण के लिए कानून का शासन बहुत जरूरी है, या यूँ  कहें कि इसका कोई अन्य विकल्प नहीं है। कानून का शासन का अर्थ है कि कानून के सामने सब समान होते हैं । यह सर्व विदित है कि कानून राजनीतिक शक्ति को निरंकुश बनने से रोकती है और समाज में सुव्यवस्था भी बनाए रखने में मदद करती है।

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कानून की जानकारी

जब आपको अपने कानून और  भारतीय संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों के बारे में पता रहता है तब ही केवल आप इनका प्रयोग कर सकते हैं परन्तु दुर्भाग्यवश कानून के बनने के इतने दिनों बाद भी आज तक लोगों को इसके बारे में जानकारी नहीं हैं | इस पेज पर हमने यही प्रयास किया है कि ऐसे  कानूनों और अधिकारों की चर्चा की जाये जो कि साधारण लोगों  को शोषण से बचाये |

1. ड्राइविंग के समय यदि आपके 100ml ब्लड में अल्कोहल का लेवल 30mg से ज्यादा मिलता है तो पुलिस बिना वारंट आपको गिरफ्तार कर सकती है | ये बात मोटर वाहन एक्ट, 1988, सेक्शन -185,२०२ के तहत बताई गई है |

2. किसी भी महिला को शाम 6 बजे के बाद और सुबह 6 बजे से पहले गिरफ्तार नही किया जा सकता है | ये बात दंड प्रक्रिया संहिता, सेक्शन 46 में निहित है |

3. पुलिस अफसर FIR लिखने से मना नही कर सकते, ऐसा करने पर उन्हें 6 महीने से 1 साल तक की जेल हो सकती है| ये आता है (Indian Penal Code) भारतीय दंड संहिता , 166 A के अंतर्गत |

4. कोई भी शादीशुदा व्यक्ति किसी अविवाहित लड़की या विधवा महिला से उसकी सहमती से शारीरिक सम्बन्ध बनाता है तो यह अपराध की श्रेणी में नही आता है | (Indian Penal Code) भारतीय दंड संहिता व्यभिचार, धारा ४९८

5. यदि दो वयस्क लड़का या लड़की अपनी मर्जी से लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहते हैं तो यह गैर कानूनी नही है | और तो और इन दोनों से पैदा होने वाली संतान भी गैर कानूनी नही है और संतान को अपने पिता की संपत्ति में हक़ भी मिलेगा | इसको (Domestic Violence Act) घरेलू हिंसा अधिनियम , 2005 के अंतर्गत बताया गया है 

6. कोई भी कंपनी गर्भवती महिला को नौकरी से नहीं निकाल सकती, ऐसा करने पर अधिकतम 3 साल तक की सजा हो सकती है| ये मातृत्व लाभ अधिनियम, १९६१के अंतर्गत आता है |

7. तलाक निम्न आधारों पर लिया जा सकता है : हिंदू मैरिज एक्ट के तहत कोई भी (पति या पत्नी) कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दे सकता है। व्यभिचार (शादी के बाहर शारीरिक रिश्ता बनाना), शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना, नपुंसकता, बिना बताए छोड़कर जाना, हिंदू धर्म छोड़कर कोई और धर्म अपनाना, पागलपन, लाइलाज बीमारी, वैराग्य लेने और सात साल तक कोई अता-पता न होने के आधार पर तलाक की अर्जी दाखिल की जा सकती है। इसको हिंदू मैरिज एक्ट (Hindu Marriage Act) की धारा-13 में बताया गया है |

 8. कोई भी दुकानदार किसी उत्पाद के लिए उस पर अंकित अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक रुपये नही मांग सकता है परन्तु उपभोक्ता, अधिकतम खुदरा मूल्य से कम पर उत्पाद खरीदने के लिए दुकानदार से भाव तौल कर सकता है | अधिकतम खुदरा मूल्य अधिनियम, 2014

संज्ञेय अपराध (Cognisable Offence) क्या है

आप यहाँ हमसे कोई भी कानून से सम्बंधित सीधा सवाल भी पूछ सकते है, नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स की सहायता से आप अपना क्वेश्चन पोस्ट कर सकते है जिसका हम जल्द से जल्द जवाब देने का प्रयास करेंगे | यदि क्वेश्चन के अलावा और  कुछ भी शंका कानून को लेकर आपके मन में हो या इससे सम्बंधित अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो आप हमसे बेझिझक पूँछ सकते है |

जज (न्यायाधीश) कैसे बने

6 thoughts on “भारतीय कानून की जानकारी | परिभाषा, अधिकार, नियम | Indian Law in Hindi”

498 a agar koi patni apne pati ke uper galat tarike se fasana chahe to bachane ke liye kya kare

Tab uski baat man lo

यदि पुलिस fir नहीं लिखतिह् तो उसके खिलाफ कहा शिकायत करें जिससे उस पर कार्यवाही हो सके आपके दवारा दी गई जानकारी बहुत अच्छी लगी।

1. संज्ञेय अपराध होने पर भी यदि पुलिस FIR दर्ज नहीं करती है तो आपको वरिष्ठ अधिकारी के पास जाना चाहिए और लिखित शिकायत दर्ज करवाना चाहिए.

2. अगर तब भी रिपोर्ट दर्ज न हो, तो CRPC (क्रिमिनल प्रोसीजर कोड) के सेक्शन 156(3) के तहत मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की अदालत में अर्जी देनी चाहिए. मैट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट के पास यह शक्ति है कि वह FIR दर्ज करने के लिए पुलिस को आदेश दे सकता है.

3.सर्वोच्च न्यायालय ने प्राथमिकी अर्थात FIR दर्ज नहीं करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश भी जारी किए हैं. न्यायालय ने यह भी व्यवस्था दी है कि FIR दर्ज होने के एक सप्ताह के अंदर प्राथमिक जांच पूरी की जानी चाहिए. इस जांच का मकसद मामले की पड़ताल कर अपराध की गंभीरता को जांचना है. इस तरह पुलिस इसलिए मामला दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकती है कि शिकायत की सच्चाई पर उन्हें संदेह है.

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Synctech Learn: Helping Students in, Nibandh,10 lines essays

10 lines on Lawyer in Hindi - Wakeel par nibandh ( वकील पर 10 लाईने )

Today, we are sharing ten lines essay on Lawyer . This article can help the students who are looking for information about Lawyer in Hindi . This essay is very simple and easy to remember. The level of this essay is medium so any students can write on this topic. This article is generally useful for class 1, class 2, and class 3 .

wakeel par nibandh

10 lines on Lawyer in Hindi

  • वकील उस व्यक्ति को कहते है जो मुक़दमे में हमारी ओर से न्यायालय में प्रस्तुति देता है।
  • कोर्ट में किसी व्यक्ति के बदले बोलने वाला व्यक्ति वकील कहलाता है।
  • वकील एक बहुत ही सम्मानित पेशा है जो सालों पढाई करने के बाद किया जा सकता है।
  • वकील को हम कोर्ट के आस-पास उनके ड्रेस से पहचान सकते है।
  • ये काले रंग का कोट और सफ़ेद रंग की कमीज, तथा एक टाई नुमा बैंड पहन कर न्यायालय में आते है।
  • हम वकील को कई अन्य नामों से भी जानते है, जैसे - अधिवक्ता, अभिभाषक, ऐडवोकेट इत्यादि।
  • वकीलों का बोलने की शैली बहुत ही अनोखा होता है, यह अपने ज्ञान और भाषा का प्रयोग कर अपने क्लाइंट को मुकदमे में जीत हासिल करवाते है।
  • भारत में वकील की उपाधि प्राप्त करने के लिए एल. एल. बी. की पढाई पास करनी होती है।
  • एक वकील बनने के लिए व्यक्ति की आयु 35 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
  • वकील दो प्रकार के होते है, सरकारी वकील और प्राइवेट वकील।

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Children in school, are often asked to write 10 lines about Lawyer in Hindi . We help the students to do their homework in an effective way. If you liked this article, then please comment below and tell us how you liked it. We use your comments to further improve our service. We hope you have got some learning on the above subject. You can also visit my YouTube channel that is https://www.youtube.com/synctechlearn. You can also follow us on Facebook https://www.facebook.com/synctechlearn .

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What it's like to think about and want sex all the time — and the consequences

A woman lies in bed with striped blue covers pulled up to her eyes. She looks to the side with a playful expression.

Veronica thinks about sex all the time.

She says while being constantly horny can be "lovely", it's often exhausting — and distracting.

While the stereotype of men always wanting sex and women doing what they can to avoid it might ring true for some, there are women like Veronica (who asked we don't use her real name) who feel ruled by sexual desire.

That can be tricky to navigate at times, according to sex educator Emily Nagoski, especially because there is a long history of telling women that pursuing sexual pleasure is reserved only for men.

So what happens when women are horny — really horny — all the time? ABC podcast Ladies We Need to Talk spoke to Ms Nagoski and a few sexually charged women to find out.

Understanding high sexual desire

There's not much research into why some women have higher sexual appetites than others, but Ms Nagoski says sexual response is the product of a balance between excitatory and inhibitory processes .

"The first part is the sexual excitation system — or the gas pedal.

"It noticed all the sex-related information and in the environment. That's everything you see, hear, smell, touch or taste.

"It notices all your internal bodily sensations and it notices everything you think, believe or imagine — anything it codes as being sex-related, and it sends that turn-on signal that many of us are familiar with."

She says fortunately, we also have the "brakes", which notice "all the good reasons" not to be turned on right now.

We all have different things that turn us on and off, and some people have more sensitive accelerators or brakes than others.

"Women with low sensitivity brakes tend to be the ones who engage in higher risk behaviours … that they know intellectually, have a higher risk of unwanted consequences," Ms Nagoski says.

How high sexual desire can impact relationships

Veronica's constant thoughts around sex have caused her feelings of shame.

She says her impulses mean she hasn't always practised safe sex, and some of her choices have ruined relationships.

"And I have ended up making some terrible mistakes with other people and hurting people; hurting my friends because of things I've done."

Veronica's high sexual desire also leads to awkward moments with strangers.

"I have ended up coming out with … a dirty joke or something … when obviously that's a very inappropriate thing to be saying to someone who I'm hiring to put gyprock on my walls."

In the early days of new relationships with men, Veronica says they're happy to "keep up". But it doesn't last.

It's something Sarah can relate to, who says she'd like to be having sex with her boyfriend once or twice a day. Instead, it's once or twice a week.

"It's really shitty on my self-esteem," says Sarah, who we've given a pseudonym.

"That is mainly due to … the stereotype that all men want it all the time.

"And so then I look at my boyfriend and think, why doesn't he want it all the time? Is there something wrong with him, or is there something wrong with me?"

Communicating about desire with your sexual partner

Talking about sex is typically more difficult than having it, says Ms Nagoski.

Communicating with our sexual partners about our desires is key to meeting one another's needs, she says.

"If your partner just isn't under any circumstances interested in having as much sex as you would like to have — you have a lot of options.

"Are there non-sex ways to get some of those needs met for high desire women?"

She for some people, sex is a powerful and efficient way to experience connection, but there are "a lot" of other ways to experience that.

Looking to Sarah as an example, Ms Nagoski says her partner may feel pressured to perform or obligated to have sex all the time — which is more often a brake as opposed to an accelerator.

Taking away the expectation or pressure around sex can for some people create room for desire to build, she says.

Although the mismatched sex drive with her partner sometimes makes Sarah feel rejected, she also calls it her superpower.

"I realise that I really love my capacity for pleasure … and I actually wouldn't trade that for the world."

Finding a sexual match

Two women in bed lying down and holding each other together and kissing.

Jade, who also asked we keep her name confidential, didn't discover her high sexual desire until later in life.

She was in a heterosexual relationship with a sex life she described as "OK".

Jade began questioning her sexuality and eventually left the marriage. Sex with a woman for the first time was her sexual awakening.

"It was all-consuming to begin with … I couldn't really think of anything else."

When Jade met her now wife, they were having sex about seven times a day.

Four years later it happens about once most days. Jade says she's pleased their desires are evenly matched.

"I would be really disappointed if I was with someone who didn't have a sex drive like mine."

While we might feel sexually compatible with someone, Ms Nagoski says our interest in sex can fluctuate throughout life.

"It's really about how you feel about this moment in your life and the changes that are happening in your body, and what's going on with all of your relationships and your overall situation in life."

While high sexual desire "took over most of her life" for a long time, Veronica says she's more comfortable with it today and makes better decisions.

"It would have been nice if I could control it more, but I don't think I would change it."

ABC Everyday

  • X (formerly Twitter)

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Should you ever have sex when you don't really feel like it.

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I've worked for six presidents. Here's what upsets me most about the immunity ruling.

Monday’s 6-3 Supreme Court decision granting lifetime criminal immunity to presidents for official acts while in office is breathtaking in its dangerous implications for our nation’s future. By rewriting the rule that has governed presidential authority for the past 235 years — that no one, not even a president, is above the law — the court has given a green light to any future president inclined to wield his or her executive authority irrespective of the laws that apply to all other citizens and residents of the U.S. King George III would be pleased.

I have no idea what motivated the majority to endorse such a sweeping display of judicial activism . It is no secret that some of these justices have strongly conservative ideological leanings . Some also have been less than discreet in broadcasting their political views .

I have no idea what motivated the majority to endorse such a sweeping display of judicial activism.

But regardless of motivation, what appalls and worries me most are the abject ignorance and apparent indifference of the six. Their ruling will have deeply disturbing practical consequences if an unprincipled and politically corrupt individual is ever elected president of the United States in the future.  

For the first 50 months of the Obama administration, I served as assistant to the president of the United States for homeland security and counterterrorism. In that role, I served as President Barack Obama’s senior counterterrorism adviser, as well as the individual who conveyed to the appropriate department or agency the president’s authorization to use lethal force against terrorists operating outside areas of active military hostilities. In each instance, President Obama was exacting in his insistence that the intelligence be vetted and verified and that the legal review be thorough, well-documented and unimpeachable.

Some have disagreed with Obama’s decisions , but I firmly believe his primary focus, and the focus of all those involved in the deliberations, was to make sure that every act of his presidency was firmly anchored in law. Moreover, the president and his advisers wanted every lawful act of the administration to be principled, ethical, judicious, proportional, fair and necessary to save innocent lives. I bore witness to the president’s moral compass as he used it to guide and inform his actions, counterterrorism and otherwise.

I am confident that President Joe Biden has a similarly strong and unwavering commitment to the rule of law. I am equally confident that he adheres to longstanding American principles and values as he carries out the solemn duties of the presidency. His public criticism of the Supreme Court ruling underscores that commitment.

But what if a future president embraces the ruling? What if a future president with dictator-like ambitions seeks to quash any real or perceived political opposition by using the broad and unrivaled powers of the presidency, up to and including the use of lethal force? Such an individual may well wield the Supreme Court’s “Stay-Out-of-Jail card” as a cudgel and a helpful and expedient opportunity to vanquish adversaries, critics and rivals. For a president without a conscience or a sense of decency, the freedom to exercise limitless and unaccountable power could present too great a temptation to pass up.  

So, while a president has now been given immunity for official acts, irrespective of how patently heinous, grievous and criminal they might be, what about the implementers of those orders? What about the individuals, the civilian and uniformed members of the executive branch, who might be called on to break the law on behalf of their commander in chief? Law-abiding individuals would have a choice of unattractive options. If they perceive an order to be unlawful, they might refuse to comply, risking immediate dismissal, as well as potential criminal charges a corrupt and vengeful president could direct the Department of Justice to pursue .

On the other hand, if individuals agree to carry out unlawful actions for which only presidents enjoys immunity, they would leave themselves open to subsequent criminal charges levied by the Department of Justice in future administrations. Perhaps, for some of these loyalists and sycophantic supplicants, a lawless president would be able to extend his nonsensical immunity by pre-emptively issuing pardons. The image of jackbooted thugs carrying out the dirty work of despots in other countries certainly comes to mind.   

In writing for the majority, Supreme Court Chief Justice John Roberts , who until this week had impressed me as a decidedly right-leaning but still generally sensible member of the nation’s highest court, said that the liberal justices’ dissent struck “a tone of chilling doom that is wholly disproportionate to what the Court actually does today.” The accuracy of that statement, however, is wholly dependent on whether only good and honest individuals who firmly believe in the rule of law take up future residence in the White House.

I was fortunate to serve six presidents — from Jimmy Carter to Obama — all of whom viewed the rule of law as part of the bedrock foundation of our country. Unfortunately, not all current aspirants for America’s solemn office are either good or honest. Donald Trump has already demonstrated his willingness to use every unethical trick in the book not only to skirt the law, but also to undermine it. Thanks to the Roberts court, there is now a ruling to help men like Trump trample it.  

This is certainly not the America I thought we would live in as we celebrate the 248th anniversary of our country’s independence.  

John O. Brennan was the director of the CIA from 2013 to 2017. He is a senior intelligence and national security analyst for NBC News and MSNBC and the author of "Undaunted."

The Demand for Democracy in Sentencing

12 Pages Posted: 11 Jul 2024

Con Reynolds

Government of the United States of America - Sentencing Commission; Cornell Law School

Carlton Reeves

Affiliation not provided to ssrn.

Date Written: July 03, 2024

In making the federal sentencing guidelines advisory, Booker v. United States made the influence of those guidelines dependent on their perceived legitimacy. This Article argues that, given the link between law's legitimacy and its democratic character, Booker should be read as a demand for democracy in sentencing. This demand echoes the one imbued in the U.S. Sentencing Commission's statutory charter, which gives the agency unique potential to create administrative governance that is of the people, for the people, and by the people. In detailing past and present efforts to fulfill that potential, this Article invites readers to assist the Commission in its continuing pursuit of more democratic sentencing policy.

Keywords: democracy, sentencing, criminal law, administrative law

Suggested Citation: Suggested Citation

Con Reynolds (Contact Author)

Government of the united states of america - sentencing commission ( email ).

One Columbus Cir., NE - Ste. 2-500 Washington, DC 20002 United States

Cornell Law School ( email )

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हिंदी निबंध (Hindi Nibandh / Essay in Hindi) - हिंदी निबंध लेखन, हिंदी निबंध 100, 200, 300, 500 शब्दों में

हिंदी में निबंध (Essay in Hindi) - छात्र जीवन में विभिन्न विषयों पर हिंदी निबंध (essay in hindi) लिखने की आवश्यकता होती है। हिंदी निबंध लेखन (essay writing in hindi) के कई फायदे हैं। हिंदी निबंध से किसी विषय से जुड़ी जानकारी को व्यवस्थित रूप देना आ जाता है और विचारों को अभिव्यक्त करने का कौशल विकसित होता है। हिंदी निबंध (hindi nibandh) लिखने की गतिविधि से इन विषयों पर छात्रों के ज्ञान के दायरे का विस्तार होता है जो कि शिक्षा के अहम उद्देश्यों में से एक है। हिंदी में निबंध या लेख लिखने से विषय के बारे में समालोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित होता है। साथ ही अच्छा हिंदी निबंध (hindi nibandh) लिखने पर अंक भी अच्छे प्राप्त होते हैं। इसके अलावा हिंदी निबंध (hindi nibandh) किसी विषय से जुड़े आपके पूर्वाग्रहों को दूर कर सटीक जानकारी प्रदान करते हैं जिससे अज्ञानता की वजह से हम लोगों के सामने शर्मिंदा होने से बच जाते हैं।

आइए सबसे पहले जानते हैं कि हिंदी में निबंध की परिभाषा (definition of essay) क्या होती है?

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हिंदी निबंध (Hindi Nibandh / Essay in Hindi) - हिंदी निबंध लेखन, हिंदी निबंध 100, 200, 300, 500 शब्दों में

कुछ सामान्य विषयों (common topics) पर जानकारी जुटाने में छात्रों की सहायता करने के उद्देश्य से हमने हिंदी में निबंध (Essay in Hindi) तथा भाषणों के रूप में कई लेख तैयार किए हैं। स्कूली छात्रों (कक्षा 1 से 12 तक) एवं प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लगे विद्यार्थियों के लिए उपयोगी हिंदी निबंध (hindi nibandh), भाषण तथा कविता (useful essays, speeches and poems) से उनको बहुत मदद मिलेगी तथा उनके ज्ञान के दायरे में विस्तार होगा। ऐसे में यदि कभी परीक्षा में इससे संबंधित निबंध आ जाए या भाषण देना होगा, तो छात्र उन परिस्थितियों / प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन कर पाएँगे।

महत्वपूर्ण लेख :

  • 10वीं के बाद लोकप्रिय कोर्स
  • 12वीं के बाद लोकप्रिय कोर्स
  • क्या एनसीईआरटी पुस्तकें जेईई मेन की तैयारी के लिए काफी हैं?
  • कक्षा 9वीं से नीट की तैयारी कैसे करें

छात्र जीवन प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के सबसे सुनहरे समय में से एक होता है जिसमें उसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। वास्तव में जीवन की आपाधापी और चिंताओं से परे मस्ती से भरा छात्र जीवन ज्ञान अर्जित करने को समर्पित होता है। छात्र जीवन में अर्जित ज्ञान भावी जीवन तथा करियर के लिए सशक्त आधार तैयार करने का काम करता है। नींव जितनी अच्छी और मजबूत होगी उस पर तैयार होने वाला भवन भी उतना ही मजबूत होगा और जीवन उतना ही सुखद और चिंतारहित होगा। इसे देखते हुए स्कूलों में शिक्षक छात्रों को विषयों से संबंधित अकादमिक ज्ञान से लैस करने के साथ ही विभिन्न प्रकार की पाठ्येतर गतिविधियों के जरिए उनके ज्ञान के दायरे का विस्तार करने का प्रयास करते हैं। इन पाठ्येतर गतिविधियों में समय-समय पर हिंदी निबंध (hindi nibandh) या लेख और भाषण प्रतियोगिताओं का आयोजन करना शामिल है।

करियर संबंधी महत्वपूर्ण लेख :

  • डॉक्टर कैसे बनें?
  • सॉफ्टवेयर इंजीनियर कैसे बनें
  • इंजीनियर कैसे बन सकते हैं?

निबंध, गद्य विधा की एक लेखन शैली है। हिंदी साहित्य कोष के अनुसार निबंध ‘किसी विषय या वस्तु पर उसके स्वरूप, प्रकृति, गुण-दोष आदि की दृष्टि से लेखक की गद्यात्मक अभिव्यक्ति है।’ एक अन्य परिभाषा में सीमित समय और सीमित शब्दों में क्रमबद्ध विचारों की अभिव्यक्ति को निबंध की संज्ञा दी गई है। इस तरह कह सकते हैं कि मोटे तौर पर किसी विषय पर अपने विचारों को लिखकर की गई अभिव्यक्ति ही निबंध है।

अन्य महत्वपूर्ण लेख :

  • हिंदी दिवस पर भाषण
  • हिंदी दिवस पर कविता
  • हिंदी पत्र लेखन

आइए अब जानते हैं कि निबंध के कितने अंग होते हैं और इन्हें किस प्रकार प्रभावपूर्ण ढंग से लिखकर आकर्षक बनाया जा सकता है। किसी भी हिंदी निबंध (Essay in hindi) के मोटे तौर पर तीन भाग होते हैं। ये हैं - प्रस्तावना या भूमिका, विषय विस्तार और उपसंहार।

प्रस्तावना (भूमिका)- हिंदी निबंध के इस हिस्से में विषय से पाठकों का परिचय कराया जाता है। निबंध की भूमिका या प्रस्तावना, इसका बेहद अहम हिस्सा होती है। जितनी अच्छी भूमिका होगी पाठकों की रुचि भी निबंध में उतनी ही अधिक होगी। प्रस्तावना छोटी और सटीक होनी चाहिए ताकि पाठक संपूर्ण हिंदी लेख (hindi me lekh) पढ़ने को प्रेरित हों और जुड़ाव बना सकें।

विषय विस्तार- निबंध का यह मुख्य भाग होता है जिसमें विषय के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाती है। इसमें इसके सभी संभव पहलुओं की जानकारी दी जाती है। हिंदी निबंध (hindi nibandh) के इस हिस्से में अपने विचारों को सिलसिलेवार ढंग से लिखकर अभिव्यक्त करने की खूबी का प्रदर्शन करना होता है।

उपसंहार- निबंध का यह अंतिम भाग होता है, इसमें हिंदी निबंध (hindi nibandh) के विषय पर अपने विचारों का सार रखते हुए पाठक के सामने निष्कर्ष रखा जाता है।

ये भी देखें :

अग्निपथ योजना रजिस्ट्रेशन

अग्निपथ योजना एडमिट कार्ड

अग्निपथ योजना सिलेबस

अंत में यह जानना भी अत्यधिक आवश्यक है कि निबंध कितने प्रकार के होते हैं। मोटे तौर निबंध को निम्नलिखित श्रेणियों में रखा जाता है-

वर्णनात्मक निबंध - इस तरह के निबंधों में किसी घटना, वस्तु, स्थान, यात्रा आदि का वर्णन किया जाता है। इसमें त्योहार, यात्रा, आयोजन आदि पर लेखन शामिल है। इनमें घटनाओं का एक क्रम होता है और इस तरह के निबंध लिखने आसान होते हैं।

विचारात्मक निबंध - इस तरह के निबंधों में मनन-चिंतन की अधिक आवश्यकता होती है। अक्सर ये किसी समस्या – सामाजिक, राजनीतिक या व्यक्तिगत- पर लिखे जाते हैं। विज्ञान वरदान या अभिशाप, राष्ट्रीय एकता की समस्या, बेरोजगारी की समस्या आदि ऐसे विषय हो सकते हैं। इन हिंदी निबंधों (hindi nibandh) में विषय के अच्छे-बुरे पहलुओं पर विचार व्यक्त किया जाता है और समस्या को दूर करने के उपाय भी सुझाए जाते हैं।

भावात्मक निबंध - ऐसे निबंध जिनमें भावनाओं को व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता होती है। इनमें कल्पनाशीलता के लिए अधिक छूट होती है। भाव की प्रधानता के कारण इन निबंधों में लेखक की आत्मीयता झलकती है। मेरा प्रिय मित्र, यदि मैं डॉक्टर होता जैसे विषय इस श्रेणी में रखे जा सकते हैं।

इसके साथ ही विषय वस्तु की दृष्टि से भी निबंधों को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, खेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसी बहुत सी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।

ये भी पढ़ें-

  • केंद्रीय विद्यालय एडमिशन
  • नवोदय कक्षा 6 प्रवेश
  • एनवीएस एडमिशन कक्षा 9

जिस प्रकार बातचीत को आकर्षक और प्रभावी बनाने के लिए लोग मुहावरे, लोकोक्तियों, सूक्तियों, दोहों, कविताओं आदि की मदद लेते हैं, ठीक उसी तरह निबंध को भी प्रभावी बनाने के लिए इनकी सहायता ली जानी चाहिए। उदाहरण के लिए मित्रता पर हिंदी निबंध (hindi nibandh) लिखते समय तुलसीदास जी की इन पंक्तियों की मदद ले सकते हैं -

जे न मित्र दुख होंहि दुखारी, तिन्हिं बिलोकत पातक भारी।

यानि कि जो व्यक्ति मित्र के दुख से दुखी नहीं होता है, उनको देखने से बड़ा पाप होता है।

हिंदी या मातृभाषा पर निबंध लिखते समय भारतेंदु हरिश्चंद्र की पंक्तियों का प्रयोग करने से चार चाँद लग जाएगा-

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

प्रासंगिकता और अपने विवेक के अनुसार लेखक निबंधों में ऐसी सामग्री का उपयोग निबंध को प्रभावी बनाने के लिए कर सकते हैं। इनका भंडार तैयार करने के लिए जब कभी कोई पंक्ति या उद्धरण अच्छा लगे, तो एकत्रित करते रहें और समय-समय पर इनको दोहराते रहें।

उपरोक्त सभी प्रारूपों का उपयोग कर छात्रों के लिए हमने निम्नलिखित हिंदी में निबंध (Essay in Hindi) तैयार किए हैं -

योग के लाभ के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 21 जून को विश्व योग दिवस मनाया जाता है। हमारे हिंदू धर्मग्रंथों में प्राचीन भारतीय योग पद्धति का जिक्र मिलता है। भारत वह देश है जहां योग ने सबसे पहले शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अनुशासन के रूप में लोकप्रियता हासिल की। यह "योज" से लिया गया है, जिसका संस्कृत में अर्थ है "एकजुट होना" और महर्षि पतंजलि को योग के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है। योग के महत्व और फायदों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए इसे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता देने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के बाद, 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में निर्धारित किया गया है। इस कार्यक्रम में संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, कनाडा सहित 170 से अधिक देशों के प्रतिभागियों ने भाग लिया। योग की महत्ता को देखते हुए दुनिया भर में योग के सकारात्मक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की शुरुआत हुई और यह हर साल 21 जून को मनाया जाता है।

15 अगस्त, 1947 को हमारा देश भारत 200 सालों के अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ था। यही वजह है कि यह दिन इतिहास में दर्ज हो गया तथा इसे भारत के स्वतंत्रता दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा। इस दिन देश के प्रधानमंत्री लालकिले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते तो हैं ही और साथ ही इसके बाद वे पूरे देश को लालकिले से संबोधित भी करते हैं। इस दौरान प्रधानमंत्री का पूरा भाषण टीवी व रेडियो के माध्यम से पूरे देश में प्रसारित किया जाता है। इसके अलावा देश भर में इस दिन सभी कार्यालयों में छुट्टी होती है। स्कूल्स व कॉलेज में रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। स्वतंत्रता दिवस से संबंधित संपूर्ण जानकारी आपको इस लेख में मिलेगी जो निश्चित तौर पर आपके लिए लेख लिखने में सहायक सिद्ध होगी।

सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सुभाष चंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के नेता थे और बाद में उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया। इसके माध्यम से भारत में सभी ब्रिटिश विरोधी ताकतों को एकजुट करने की पहल की थी। बोस ब्रिटिश सरकार के मुखर आलोचक थे और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए और अधिक आक्रामक कार्रवाई की वकालत करते थे। विद्यार्थियों को अक्सर कक्षा और परीक्षा में सुभाष चंद्र बोस जयंती (subhash chandra bose jayanti) या सुभाष चंद्र बोस पर हिंदी में निबंध (subhash chandra bose essay in hindi) लिखने को कहा जाता है। यहां सुभाष चंद्र बोस पर 100, 200 और 500 शब्दों का निबंध दिया गया है।

भारत में 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ। इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। गणतंत्र दिवस के सम्मान में स्कूलों में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। गणतंत्र दिवस के दिन सभी स्कूलों, सरकारी व गैर सरकारी दफ्तरों में झंडोत्तोलन होता है। राष्ट्रगान गाया जाता है। मिठाईयां बांटी जाती है और अवकाश रहता है। छात्रों और बच्चों के लिए 100, 200 और 500 शब्दों में गणतंत्र दिवस पर निबंध पढ़ें।

26 जनवरी, 1950 को हमारे देश का संविधान लागू किया गया, इसमें भारत को गणतांत्रिक व्यवस्था वाला देश बनाने की राह तैयार की गई। गणतंत्र दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में भाषण (रिपब्लिक डे स्पीच) देने के लिए हिंदी भाषण की उपयुक्त सामग्री (Republic Day Speech Ideas) की यदि आपको भी तलाश है तो समझ लीजिए कि गणतंत्र दिवस पर भाषण (Republic Day speech in Hindi) की आपकी तलाश यहां खत्म होती है। इस राष्ट्रीय पर्व के बारे में विद्यार्थियों को जागरूक बनाने और उनके ज्ञान को परखने के लिए गणतत्र दिवस पर निबंध (Republic day essay) लिखने का प्रश्न भी परीक्षाओं में पूछा जाता है। इस लेख में दी गई जानकारी की मदद से Gantantra Diwas par nibandh लिखने में भी मदद मिलेगी। Gantantra Diwas par lekh bhashan तैयार करने में इस लेख में दी गई जानकारी की मदद लें और अच्छा प्रदर्शन करें।

मोबाइल फ़ोन को सेल्युलर फ़ोन भी कहा जाता है। मोबाइल आज आधुनिक प्रौद्योगिकी का एक अहम हिस्सा है जिसने दुनिया को एक साथ लाकर हमारे जीवन को बहुत प्रभावित किया है। मोबाइल हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। मोबाइल में इंटरनेट के इस्तेमाल ने कई कामों को बेहद आसान कर दिया है। मनोरंजन, संचार के साथ रोजमर्रा के कामों में भी इसकी अहम भूमिका हो गई है। इस निबंध में मोबाइल फोन के बारे में बताया गया है।

भारत में प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने जनभाषा हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया। इस दिन की याद में हर वर्ष 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया जाता है। वहीं हिंदी भाषा को सम्मान देने के लिए 10 जनवरी को प्रतिवर्ष विश्व हिंदी दिवस (World Hindi Diwas) मनाया जाता है। इस लेख में राष्ट्रीय हिंदी दिवस (14 सितंबर) और विश्व हिंदी दिवस (10 जनवरी) के बारे में चर्चा की गई है।

दुनिया के कई देशों में मजदूरों और श्रमिकों को सम्मान देने के उद्देश्य से हर वर्ष 1 मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है। इसे लेबर डे, श्रमिक दिवस या मई डे भी कहा जाता है। श्रम दिवस एक विशेष दिन है जो मजदूरों और श्रम वर्ग को समर्पित है। यह मजदूरों की कड़ी मेहनत को सम्मानित करने का दिन है। ज्यादातर देशों में इसे 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। श्रम दिवस का इतिहास और उत्पत्ति अलग-अलग देशों में अलग-अलग है। विद्यार्थियों को कक्षा में मजदूर दिवस पर निबंध लिखने, मजदूर दिवस पर भाषण देने के लिए कहा जाता है। इस निबंध की मदद से विद्यार्थी अपनी तैयारी कर सकते हैं।

मकर संक्रांति का त्योहार यूपी, बिहार, दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित देश के विभिन्न राज्यों में 14 जनवरी को मनाया जाता है। इसे खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान के बाद पूजा करके दान करते हैं। इस दिन खिचड़ी, तिल-गुड, चिउड़ा-दही खाने का रिवाज है। प्रयागराज में इस दिन से कुंभ मेला आरंभ होता है। इस लेख में मकर संक्रांति के बारे में बताया गया है।

पर्यावरण से संबंधित मुद्दों की चर्चा करते समय ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा अक्सर होती है। ग्लोबल वार्मिंग का संबंध वैश्विक तापमान में वृद्धि से है। इसके अनेक कारण हैं। इनमें वनों का लगातार कम होना और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन प्रमुख है। वनों का विस्तार करके और ग्रीन हाउस गैसों पर नियंत्रण करके हम ग्लोबल वार्मिंग की समस्या के समाधान की दिशा में कदम उठा सकते हैं। ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध- कारण और समाधान में इस विषय पर चर्चा की गई है।

भारत में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है। समाचारों में अक्सर भ्रष्टाचार से जुड़े मामले प्रकाश में आते रहते हैं। सरकार ने भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए कई उपाय किए हैं। अलग-अलग एजेंसियां भ्रष्टाचार करने वालों पर कार्रवाई करती रहती हैं। फिर भी आम जनता को भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है। हालांकि डिजीटल इंडिया की पहल के बाद कई मामलों में पारदर्शिता आई है। लेकिन भ्रष्टाचार के मामले कम हुए है, समाप्त नहीं हुए हैं। भ्रष्टाचार पर निबंध के माध्यम से आपको इस विषय पर सभी पहलुओं की जानकारी मिलेगी।

समय-समय पर ईश्वरीय शक्ति का एहसास कराने के लिए संत-महापुरुषों का जन्म होता रहा है। गुरु नानक भी ऐसे ही विभूति थे। उन्होंने अपने कार्यों से लोगों को चमत्कृत कर दिया। गुरु नानक की तर्कसम्मत बातों से आम जनमानस उनका मुरीद हो गया। उन्होंने दुनिया को मानवता, प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया। भारत, पाकिस्तान, अरब और अन्य जगहों पर वर्षों तक यात्रा की और लोगों को उपदेश दिए। गुरु नानक जयंती पर निबंध से आपको उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी मिलेगी।

कुत्ता हमारे आसपास रहने वाला जानवर है। सड़कों पर, गलियों में कहीं भी कुत्ते घूमते हुए दिख जाते हैं। शौक से लोग कुत्तों को पालते भी हैं। क्योंकि वे घर की रखवाली में सहायक होते हैं। बच्चों को अक्सर परीक्षा में मेरा पालतू कुत्ता विषय पर निबंध लिखने को कहा जाता है। यह लेख बच्चों को मेरा पालतू कुत्ता विषय पर निबंध लिखने में सहायक होगा।

स्वामी विवेकानंद जी हमारे देश का गौरव हैं। विश्व-पटल पर वास्तविक भारत को उजागर करने का कार्य सबसे पहले किसी ने किया तो वें स्वामी विवेकानंद जी ही थे। उन्होंने ही विश्व को भारतीय मानसिकता, विचार, धर्म, और प्रवृति से परिचित करवाया। स्वामी विवेकानंद जी के बारे में जानने के लिए आपको इस लेख को पढ़ना चाहिए। यह लेख निश्चित रूप से आपके व्यक्तित्व में सकारात्मक परिवर्तन करेगा।

हम सभी ने "महिला सशक्तिकरण" या नारी सशक्तिकरण के बारे में सुना होगा। "महिला सशक्तिकरण"(mahila sashaktikaran essay) समाज में महिलाओं की स्थिति को सुदृढ़ बनाने और सभी लैंगिक असमानताओं को कम करने के लिए किए गए कार्यों को संदर्भित करता है। व्यापक अर्थ में, यह विभिन्न नीतिगत उपायों को लागू करके महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण से संबंधित है। प्रत्येक बालिका की स्कूल में उपस्थिति सुनिश्चित करना और उनकी शिक्षा को अनिवार्य बनाना, महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस लेख में "महिला सशक्तिकरण"(mahila sashaktikaran essay) पर कुछ सैंपल निबंध दिए गए हैं, जो निश्चित रूप से सभी के लिए सहायक होंगे।

भगत सिंह एक युवा क्रांतिकारी थे जिन्होंने भारत की आजादी के लिए लड़ते हुए बहुत कम उम्र में ही अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। देश के लिए उनकी भक्ति निर्विवाद है। शहीद भगत सिंह महज 23 साल की उम्र में शहीद हो गए। उन्होंने न केवल भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि वह इसे हासिल करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालने को भी तैयार थे। उनके निधन से पूरे देश में देशभक्ति की भावना प्रबल हो गई। उनके समर्थकों द्वारा उन्हें शहीद के रूप में सम्मानित किया गया था। वह हमेशा हमारे बीच शहीद भगत सिंह के नाम से ही जाने जाएंगे। भगत सिंह के जीवन परिचय के लिए अक्सर छोटी कक्षा के छात्रों को भगत सिंह पर निबंध तैयार करने को कहा जाता है। इस लेख के माध्यम से आपको भगत सिंह पर निबंध तैयार करने में सहायता मिलेगी।

वसुधैव कुटुंबकम एक संस्कृत वाक्यांश है जिसका अर्थ है "संपूर्ण विश्व एक परिवार है"। यह महा उपनिषद् से लिया गया है। वसुधैव कुटुंबकम वह दार्शनिक अवधारणा है जो सार्वभौमिक भाईचारे और सभी प्राणियों के परस्पर संबंध के विचार को पोषित करती है। यह वाक्यांश संदेश देता है कि प्रत्येक व्यक्ति वैश्विक समुदाय का सदस्य है और हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए, सभी की गरिमा का ध्यान रखने के साथ ही सबके प्रति दयाभाव रखना चाहिए। वसुधैव कुटुंबकम की भावना को पोषित करने की आवश्यकता सदैव रही है पर इसकी आवश्यकता इस समय में पहले से कहीं अधिक है। समय की जरूरत को देखते हुए इसके महत्व से भावी नागरिकों को अवगत कराने के लिए वसुधैव कुटुंबकम विषय पर निबंध या भाषणों का आयोजन भी स्कूलों में किया जाता है। कॅरियर्स360 के द्वारा छात्रों की इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए वसुधैव कुटुंबकम विषय पर यह लेख तैयार किया गया है।

गाय भारत के एक बेहद महत्वपूर्ण पशु में से एक है जिस पर न जाने कितने ही लोगों की आजीविका आश्रित है क्योंकि गाय के शरीर से प्राप्त होने वाली हर वस्तु का उपयोग भारतीय लोगों द्वारा किसी न किसी रूप में किया जाता है। ना सिर्फ आजीविका के लिहाज से, बल्कि आस्था के दृष्टिकोण से भी भारत में गाय एक महत्वपूर्ण पशु है क्योंकि भारत में मौजूद सबसे बड़ी आबादी यानी हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए गाय आस्था का प्रतीक है। ऐसे में विद्यालयों में गाय को लेकर निबंध लिखने का कार्य दिया जाना आम है। गाय के इस निबंध के माध्यम से छात्रों को परीक्षा में पूछे जाने वाले गाय पर निबंध को लिखने में भी सहायता मिलेगी।

क्रिसमस (christmas in hindi) भारत सहित दुनिया भर में मनाए जाने वाले बेहद महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह ईसाइयों का प्रमुख त्योहार है। प्रत्येक वर्ष इसे 25 दिसंबर को मनाया जाता है। क्रिसमस का महत्व समझाने के लिए कई बार स्कूलों में बच्चों को क्रिसमस पर निबंध (christmas in hindi) लिखने का कार्य दिया जाता है। क्रिसमस पर एग्जाम के लिए प्रभावी निबंध तैयार करने का तरीका सीखें।

रक्षाबंधन हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व पूरी तरह से भाई और बहन के रिश्ते को समर्पित त्योहार है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षाबंधन बांध कर उनके लंबी उम्र की कामना करती हैं। वहीं भाई अपनी बहनों को कोई तोहफा देने के साथ ही जीवन भर उनके सुख-दुख में उनका साथ देने का वचन देते हैं। इस दिन छोटी बच्चियाँ देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को राखी बांधती हैं। रक्षाबंधन पर हिंदी में निबंध (essay on rakshabandhan in hindi) आधारित इस लेख से विद्यार्थियों को रक्षाबंधन के त्योहार पर न सिर्फ लेख लिखने में सहायता प्राप्त होगी, बल्कि वे इसकी सहायता से रक्षाबंधन के पर्व का महत्व भी समझ सकेंगे।

होली त्योहार जल्द ही देश भर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला है। होली आकर्षक और मनोहर रंगों का त्योहार है, यह एक ऐसा त्योहार है जो हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन की सीमा से परे जाकर लोगों को भाई-चारे का संदेश देता है। होली अंदर के अहंकार और बुराई को मिटा कर सभी के साथ हिल-मिलकर, भाई-चारे, प्रेम और सौहार्द्र के साथ रहने का त्योहार है। होली पर हिंदी में निबंध (hindi mein holi par nibandh) को पढ़ने से होली के सभी पहलुओं को जानने में मदद मिलेगी और यदि परीक्षा में holi par hindi mein nibandh लिखने को आया तो अच्छा अंक लाने में भी सहायता मिलेगी।

दशहरा हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। बच्चों को विद्यालयों में दशहरा पर निबंध (Essay in hindi on Dussehra) लिखने को भी कहा जाता है, जिससे उनकी दशहरा के प्रति उत्सुकता बनी रहे और उन्हें दशहरा के बारे पूर्ण जानकारी भी मिले। दशहरा पर निबंध (Essay on Dussehra in Hindi) के इस लेख में हम देखेंगे कि लोग दशहरा कैसे और क्यों मनाते हैं, इसलिए हिंदी में दशहरा पर निबंध (Essay on Dussehra in Hindi) के इस लेख को पूरा जरूर पढ़ें।

हमें उम्मीद है कि दीवाली त्योहार पर हिंदी में निबंध उन युवा शिक्षार्थियों के लिए फायदेमंद साबित होगा जो इस विषय पर निबंध लिखना चाहते हैं। हमने नीचे दिए गए निबंध में शुभ दिवाली त्योहार (Diwali Festival) के सार को सही ठहराने के लिए अपनी ओर से एक मामूली प्रयास किया है। बच्चे दिवाली पर हिंदी के इस निबंध से कुछ सीख कर लाभ उठा सकते हैं कि वाक्यों को कैसे तैयार किया जाए, Class 1 से 10 तक के लिए दीपावली पर निबंध हिंदी में तैयार करने के लिए इसके लिंक पर जाएँ।

बाल दिवस पर भाषण (Children's Day Speech In Hindi), बाल दिवस पर हिंदी में निबंध (Children's Day essay In Hindi), बाल दिवस गीत, कविता पाठ, चित्रकला, खेलकूद आदि से जुड़ी प्रतियोगिताएं बाल दिवस के मौके पर आयोजित की जाती हैं। स्कूलों में बाल दिवस पर भाषण देने और बाल दिवस पर हिंदी में निबंध लिखने के लिए उपयोगी सामग्री इस लेख में मिलेगी जिसकी मदद से बाल दिवस पर भाषण देने और बाल दिवस के लिए निबंध तैयार करने में मदद मिलेगी। कई बार तो परीक्षाओं में भी बाल दिवस पर लेख लिखने का प्रश्न पूछा जाता है। इसमें भी यह लेख मददगार होगा।

हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है। भारत देश अनेकता में एकता वाला देश है। अपने विविध धर्म, संस्कृति, भाषाओं और परंपराओं के साथ, भारत के लोग सद्भाव, एकता और सौहार्द के साथ रहते हैं। भारत में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं में, हिंदी सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली और बोली जाने वाली भाषा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार 14 सितंबर 1949 को हिंदी भाषा को राजभाषा के रूप में अपनाया गया था। हमारी मातृभाषा हिंदी और देश के प्रति सम्मान दिखाने के लिए हिंदी दिवस का आयोजन किया जाता है। हिंदी दिवस पर भाषण के लिए उपयोगी जानकारी इस लेख में मिलेगी।

हिन्दी में कवियों की परम्परा बहुत लम्बी है। हिंदी के महान कवियों ने कालजयी रचनाएं लिखी हैं। हिंदी में निबंध और वाद-विवाद आदि का जितना महत्व है उतना ही महत्व हिंदी कविताओं और कविता-पाठ का भी है। हिंदी दिवस पर विद्यालय या अन्य किसी आयोजन पर हिंदी कविता भी चार चाँद लगाने का काम करेगी। हिंदी दिवस कविता के इस लेख में हम हिंदी भाषा के सम्मान में रचित, हिंदी का महत्व बतलाती विभिन्न कविताओं की जानकारी दी गई है।

प्रदूषण पृथ्वी पर वर्तमान के उन प्रमुख मुद्दों में से एक है, जो हमारी पृथ्वी को व्यापक स्तर पर प्रभावित कर रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो लंबे समय से चर्चा में है, 21वीं सदी में इसका हानिकारक प्रभाव बड़े पैमाने पर महसूस किया जा रहा है। हालांकि विभिन्न देशों की सरकारों ने इन प्रभावों को रोकने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं, लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है। इससे कई प्राकृतिक प्रक्रियाओं में गड़बड़ी आती है। इतना ही नहीं, आज कई वनस्पतियां और जीव-जंतु या तो विलुप्त हो चुके हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं। प्रदूषण की मात्रा में तेजी से वृद्धि के कारण पशु तेजी से न सिर्फ अपना घर खो रहे हैं, बल्कि जीने लायक प्रकृति को भी खो रहे हैं। प्रदूषण ने दुनिया भर के कई प्रमुख शहरों को प्रभावित किया है। इन प्रदूषित शहरों में से अधिकांश भारत में ही स्थित हैं। दुनिया के कुछ सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली, कानपुर, बामेंडा, मॉस्को, हेज़, चेरनोबिल, बीजिंग शामिल हैं। हालांकि इन शहरों ने प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन अभी बहुत कुछ और बहुत ही तेजी के साथ किए जाने की जरूरत है।

वायु प्रदूषण पर हिंदी में निबंध के ज़रिए हम इसके बारे में थोड़ा गहराई से जानेंगे। वायु प्रदूषण पर लेख (Essay on Air Pollution) से इस समस्या को जहाँ समझने में आसानी होगी वहीं हम वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार पहलुओं के बारे में भी जान सकेंगे। इससे स्कूली विद्यार्थियों को वायु प्रदूषण पर निबंध (Essay on Air Pollution) तैयार करने में भी मदद होगी। हिंदी में वायु प्रदूषण पर निबंध से परीक्षा में बेहतर स्कोर लाने में मदद मिलेगी।

एक बड़े भू-क्षेत्र में लंबे समय तक रहने वाले मौसम की औसत स्थिति को जलवायु की संज्ञा दी जाती है। किसी भू-भाग की जलवायु पर उसकी भौगोलिक स्थिति का सर्वाधिक असर पड़ता है। पृथ्वी ग्रह का बुखार (तापमान) लगातार बढ़ रहा है। सरकारों को इसमें नागरिकों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने होंगे। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए सरकारों को सतत विकास के उपायों में निवेश करने, ग्रीन जॉब, हरित अर्थव्यवस्था के निर्माण की ओर आगे बढ़ने की जरूरत है। पृथ्वी पर जीवन को बचाए रखने, इसे स्वस्थ रखने और ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से निपटने के लिए सभी देशों को मिलकर ईमानदारी से काम करना होगा। ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन पर निबंध के जरिए छात्रों को इस विषय और इससे जुड़ी समस्याओं और समाधान के बारे में जानने को मिलेगा।

हमारी यह पृथ्वी जिस पर हम सभी निवास करते हैं इसके पर्यावरण के संरक्षण के लिए विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) हर साल 5 जून को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1972 में मानव पर्यावरण पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन के दौरान हुई थी। पहला विश्व पर्यावरण दिवस (Environment Day) 5 जून 1974 को “केवल एक पृथ्वी” (Only One Earth) स्लोगन/थीम के साथ मनाया गया था, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने भी भाग लिया था। इसी सम्मलेन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की भी स्थापना की गई थी। इस विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) को मनाने का उद्देश्य विश्व के लोगों के भीतर पर्यावरण (Environment) के प्रति जागरूकता लाना और साथ ही प्रकृति के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करना भी है। इसी विषय पर विचार करते हुए 19 नवंबर, 1986 को पर्यवरण संरक्षण अधिनियम लागू किया गया तथा 1987 से हर वर्ष पर्यावरण दिवस की मेजबानी करने के लिए अलग-अलग देश को चुना गया।

आज के युग में जब हम अपना अधिकतर समय पढाई पर केंद्रित करने का प्रयास करते नजर आते हैं और साथ ही अपना ज़्यादातर समय ऑनलाइन रह कर व्यतीत करना पसंद करते हैं, ऐसे में हमारे जीवन में खेलों का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। खेल हमारे लिए केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं, अपितु हमारे सर्वांगीण विकास का एक माध्यम भी है। हमारे जीवन में खेल उतना ही जरूरी है, जितना पढाई करना। आज कल के युग में मानव जीवन में शारीरिक कार्य की तुलना में मानसिक कार्य में बढ़ोतरी हुई है और हमारी जीवन शैली भी बदल गई है, हम रात को देर से सोते हैं और साथ ही सुबह देर से उठते हैं। जाहिर है कि यह दिनचर्या स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं है और इसके साथ ही कार्य या पढाई की वजह से मानसिक तनाव पहले की तुलना में वृद्धि महसूस की जा सकती है। ऐसी स्थिति में जब हमारे जीवन में शारीरिक परिश्रम अधिक नहीं है, तो हमारे जीवन में खेलो का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है।

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हमेशा से कहा जाता रहा है कि ‘आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है’, जैसे-जैसे मानव की आवश्यकता बढती गई, वैसे-वैसे उसने अपनी सुविधा के लिए अविष्कार करना आरंभ किया। विज्ञान से तात्पर्य एक ऐसे व्यवस्थित ज्ञान से है जो विचार, अवलोकन तथा प्रयोगों से प्राप्त किया जाता है, जो कि किसी अध्ययन की प्रकृति या सिद्धांतों की जानकारी प्राप्त करने के लिए किए जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिए भी किया जाता है, जो तथ्य, सिद्धांत और तरीकों का प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करता है।

शिक्षक अपने शिष्य के जीवन के साथ साथ उसके चरित्र निर्माण में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। कहा जाता है कि सबसे पहली गुरु माँ होती है, जो अपने बच्चों को जीवन प्रदान करने के साथ-साथ जीवन के आधार का ज्ञान भी देती है। इसके बाद अन्य शिक्षकों का स्थान होता है। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करना बहुत ही बड़ा और कठिन कार्य है। व्यक्ति को शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ उसके चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करना भी उसी प्रकार का कार्य है, जैसे कोई कुम्हार मिट्टी से बर्तन बनाने का कार्य करता है। इसी प्रकार शिक्षक अपने छात्रों को शिक्षा प्रदान करने के साथ साथ उसके व्यक्तित्व का निर्माण भी करते हैं।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत 1908 में हुई थी, जब न्यूयॉर्क शहर की सड़को पर हजारों महिलाएं घंटों काम के लिए बेहतर वेतन और सम्मान तथा समानता के अधिकार को प्राप्त करने के लिए उतरी थीं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का प्रस्ताव क्लारा जेटकिन का था जिन्होंने 1910 में यह प्रस्ताव रखा था। पहला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड में मनाया गया था।

हम उम्मीद करते हैं कि स्कूली छात्रों के लिए तैयार उपयोगी हिंदी में निबंध, भाषण और कविता (Essays, speech and poems for school students) के इस संकलन से निश्चित तौर पर छात्रों को मदद मिलेगी।

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बाल श्रम को बच्चो द्वारा रोजगार के लिए किसी भी प्रकार के कार्य को करने के रूप में परिभाषित किया गया है जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास में बाधा डालता है और उन्हें मूलभूत शैक्षिक और मनोरंजक जरूरतों तक पहुंच से वंचित करता है। एक बच्चे को आम तौर व्यस्क तब माना जाता है जब वह पंद्रह वर्ष या उससे अधिक का हो जाता है। इस आयु सीमा से कम के बच्चों को किसी भी प्रकार के जबरन रोजगार में संलग्न होने की अनुमति नहीं है। बाल श्रम बच्चों को सामान्य परवरिश का अनुभव करने, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने और उनके शारीरिक और भावनात्मक विकास में बाधा के रूप में देखा जाता है। जानिए कैसे तैयार करें बाल श्रम या फिर कहें तो बाल मजदूरी पर निबंध।

एपीजे अब्दुल कलाम की गिनती आला दर्जे के वैज्ञानिक होने के साथ ही प्रभावी नेता के तौर पर भी होती है। वह 21वीं सदी के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों में से एक हैं। कलाम देश के 11वें राष्ट्रपति बने, अपने कार्यकाल में समाज को लाभ पहुंचाने वाली कई पहलों की शुरुआत की। मेरा प्रिय नेता विषय पर अक्सर परीक्षा में निबंध लिखने का प्रश्न पूछा जाता है। जानिए कैसे तैयार करें अपने प्रिय नेता: एपीजे अब्दुल कलाम पर निबंध।

हमारे जीवन में बहुत सारे लोग आते हैं। उनमें से कई को भुला दिया जाता है, लेकिन कुछ का हम पर स्थायी प्रभाव पड़ता है। भले ही हमारे कई दोस्त हों, उनमें से कम ही हमारे अच्छे दोस्त होते हैं। कहा भी जाता है कि सौ दोस्तों की भीड़ के मुक़ाबले जीवन में एक सच्चा/अच्छा दोस्त होना काफी है। यह लेख छात्रों को 'मेरे प्रिय मित्र'(My Best Friend Nibandh) पर निबंध तैयार करने में सहायता करेगा।

3 फरवरी, 1879 को भारत के हैदराबाद में एक बंगाली परिवार ने सरोजिनी नायडू का दुनिया में स्वागत किया। उन्होंने कम उम्र में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। उन्होंने कैम्ब्रिज में किंग्स कॉलेज और गिर्टन, दोनों ही पाठ्यक्रमों में दाखिला लेकर अपनी पढ़ाई पूरी की। जब वह एक बच्ची थी, तो कुछ भारतीय परिवारों ने अपनी बेटियों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। हालाँकि, सरोजिनी नायडू के परिवार ने लगातार उदार मूल्यों का समर्थन किया। वह न्याय की लड़ाई में विरोध की प्रभावशीलता पर विश्वास करते हुए बड़ी हुई। सरोजिनी नायडू से संबंधित अधिक जानकारी के लिए इस लेख को पढ़ें।

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Frequently Asked Question (FAQs)

किसी भी हिंदी निबंध (Essay in hindi) को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- ये हैं- प्रस्तावना या भूमिका, विषय विस्तार और उपसंहार (conclusion)।

हिंदी निबंध लेखन शैली की दृष्टि से मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं-

वर्णनात्मक हिंदी निबंध - इस तरह के निबंधों में किसी घटना, वस्तु, स्थान, यात्रा आदि का वर्णन किया जाता है।

विचारात्मक निबंध - इस तरह के निबंधों में मनन-चिंतन की अधिक आवश्यकता होती है।

भावात्मक निबंध - ऐसे निबंध जिनमें भावनाओं को व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता होती है।

विषय वस्तु की दृष्टि से भी निबंधों को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, खेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसी बहुत सी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।

निबंध में समुचित जगहों पर मुहावरे, लोकोक्तियों, सूक्तियों, दोहों, कविता का प्रयोग करके इसे प्रभावी बनाने में मदद मिलती है। हिंदी निबंध के प्रभावी होने पर न केवल बेहतर अंक मिलेंगी बल्कि असल जीवन में अपनी बात रखने का कौशल भी विकसित होगा।

कुछ उपयोगी विषयों पर हिंदी में निबंध के लिए ऊपर लेख में दिए गए लिंक्स की मदद ली जा सकती है।

निबंध, गद्य विधा की एक लेखन शैली है। हिंदी साहित्य कोष के अनुसार निबंध ‘किसी विषय या वस्तु पर उसके स्वरूप, प्रकृति, गुण-दोष आदि की दृष्टि से लेखक की गद्यात्मक अभिव्यक्ति है।’ एक अन्य परिभाषा में सीमित समय और सीमित शब्दों में क्रमबद्ध विचारों की अभिव्यक्ति को निबंध की संज्ञा दी गई है। इस तरह कह सकते हैं कि मोटे तौर पर किसी विषय पर अपने विचारों को लिखकर की गई अभिव्यक्ति निबंध है।

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Legal Aid in Hindi – नि:शुल्क कानूनी सहायता – पूरी जानकारी

नि:शुल्क कानूनी सहायता (Legal Aid in Hindi):- दोस्तों जिन लोगो के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही हो जाती है, लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं होते हैं, कि वे उस कानूनी कार्यवाही को लड़ सके। जैसे वकील की फीस और कोर्ट के अन्य खर्चे को बहन कर सकें। कभी ऐसी सिचुएशन भी आ जाती है, की किसी गरीब व्यक्ति को सिविल या क्रिमिनल केस फाइल करना ज़रूरी है। लेकिन उसके पास इतने साधन नहीं है, कि वो कोर्ट की फीस, वकील की फीस और मुकदमे के अन्य खर्चे बहन कर पाए। तो क्या ऐसे में उस व्यक्ति को बिना न्याय के ही रहने दिया जाएगा? या फिर ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई है, कि ऐसे लोगों को भी न्याय मिल सके। जो वकील की फीस और मुकदमे के अन्य खर्चो को बहन नहीं कर सकते हैं। आज के इस आर्टिकल में हम Legal Aid in Hindi (नि:शुल्क कानूनी सहायता) पर बात करेंगे।

Legal Aid in Hindi

Legal Aid in Hindi – नि:शुल्क कानूनी सहायता

दोस्तों भारत का संविधान यह कहता है, कि हर व्यक्ति को न्याय मिले, कोई भी व्यक्ति न्याय से वंचित ना रहे। इसके लिए कानून में प्रावधान किए गए हैं। उन्नीस सौ सत्तासी (1987) में सेवा प्राधिकरण नियम बनाया गया। जिसका मुख्य उदेश्ये गरीब व्यक्तियों और ज़रूरतमंद व्यक्तियों को मुफ्त में कानूनी सलाह या सहायता देने का हैं। इस अधिनियम में सेवा प्रदान करने के लिए तीन स्तर बनाए गए हैं।

  • राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण
  • राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण
  • जिला विधिक सेवा प्राधिकरण

राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, राज्य स्तर पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और जिला स्तर पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण हर स्तर पर कुछ अधिवक्ता की नियुक्ति की जाती है। और इन अधिवक्ता के द्वारा गरीब या अन्य व्यक्तियों को जो सहायता प्रदान की जाती है, उनकी फीस का भुगतान सरकार द्वारा किया जाता है।

मुफ्त में कानूनी सहायता प्राप्त करने का अधिकार किस किस को होता है?

  • महिलाएं और बच्चे।
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्य।
  • औद्योगिक श्रमिक।
  • बड़ी आपदाओं, हिंसा, बाढ़, सूखे, भूकंप और औद्योगिक आपदाओं के शिकार लोग।
  • विकलांग व्यक्ति।
  • हिरासरत में रखे गए लोग।
  • ऐसे व्यक्ति जिनकी वार्षिक आय कम है।
  • मानव तस्करी के शिकार या बेगार में संलग्न लोग।

मुफ्त में कानूनी सहायता प्राप्त करने के व्यक्ति को क्या करना होगा?

सबसे पहले उस व्यक्ति को कोर्ट के अंदर संबंधित प्राधिकरण में जाना होता है। और वहां से एक फॉर्म लेना होता है, फिर उस फॉर्म को भर कर उसके साथ एफिडेविट लगाकर प्राधिकरण में जमा करवाना होता है। प्राधिकरण के द्वारा उसके फॉर्म में भरी हुई जानकारी की जांच की जाती है, यदि जांच में वह व्यक्ति सही पाया जाता है, तो उसके लिए एक अधिवक्ता की नियुक्ति की जाती है। उस अधिवक्ता के द्वारा उस व्यक्ति के केस को लड़ने के लिए वो सारे काम किए जायेंगे जो एक सामान्य अधिवक्ता करता है। फिर उस व्यक्ति को कोई भी फीस अधिवक्ता को नहीं देनी होती है। बल्कि उस अधिवक्ता की फ़ीस का भुगतान सरकार के द्वारा किया जाता है।

Free Legal Aid in Hindi – मुफ्त कानूनी सहायता हिंदी में

इसके अलावा यदि किसी मामले में किसी अभियुक्त को कोर्ट के सामने लाया जाता है, और वह अभियुक्त कोर्ट के सामने ये जाहिर करता है, कि मेरे पास अपना कोई अधिवक्ता नहीं है, और मेरे पास इतने साधन भी नहीं है, कि मैं किसी अधिवक्ता को नियुक्त कर सकू। तब ऐसे में जज साहब भी सेवा प्राधिकरण के सचिव को उस अभियुक्त की सहायता प्रदान करने के लिए वकील उपलब्ध करने के लिए लिख सकते है। फिर उस अभियुक्त को वकील सेवा प्राधिकरण अधिनियम के अंतर्गत उपलब्ध करवा दिया जाता है।

कोर्ट के दुबारा कुछ ऐसे व्यक्तियों को मुफ्त में सहायता देने के लिए पात्र नहीं माना गया है, जिन पर मान हानि के लिए मुकदमा किया गया हो, या जो कोर्ट की अवमानना के लिए दोषी हो, या फिर कोई ऐसा व्यक्ति जिस पर सरकार के द्वारा किसी नियम को तोड़ने के लिए या कानून को भंग करने के लिए फाइन लगाया गया हो। ऐसे व्यक्तियों को मुफ्त में कानूनी सहायता नहीं मिलती है।

आशा करता हूँ, मेरे दुबारा नि:शुल्क कानूनी सहायता (Legal Aid in Hindi) की दी हुई जानकारी आपको पसंद आयी होगी।

FAQs:- (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)

उत्तर:- इसके लिए आपको विधिक सेवा प्राधिकरण विभाग में जाकर एक फॉर्म लेकर उसको भरना होगा। और उसके साथ एक एफिडेविट लगाकर प्राधिकरण में जमा करवाना होता है।

उत्तर:- उन्नीस सौ सत्तासी (1987) में सेवा प्राधिकरण नियम बनाया गया। जिसका मुख्य उदेश्ये गरीब व्यक्तियों और ज़रूरतमंद व्यक्तियों को मुफ्त में कानूनी सलाह या सहायता देने का हैं।

उत्तर:- हाँ, अगर आप इनमे से एक हो-

मैंने “ नि:शुल्क कानूनी सहायता (Legal Aid in Hindi)” के बारे में बताया है। अगर आपकी कोई भी क्वेरी या वेबसाइट पर अपलोड हुए जजमेंट को PDF में चाहते है, तो आप हमसे ईमेल के दुबारा संपर्क कर सकते है। आपको Contact पेज पर Email ID ओर Contact फॉर्म मिलेगा आप कांटेक्ट फॉर्म भी Fill करके हमसे बात कर सकते है।

Advocate Ashutosh Chauhan

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The Supreme Court Creates a Lawless Presidency

A ripped picture of a gavel on top, with the bottom half of Donald Trump’s face below.

By Kate Shaw

Contributing Opinion Writer

The Supreme Court’s radical decision handing the president broad immunity from criminal prosecution on Monday will rightly be understood as enormously increasing the power and enormously reducing the accountability of the president.

But it should also be understood as a decision about the court’s own power and accountability. In casting aside the text, structure and history of the Constitution in favor of gauzy concerns about the need to “safeguard the independence and effective functioning of the executive branch” and to “enable the president to carry out his constitutional duties without undue caution,” the court reveals that it will rule — and rule us all — based on its own free-floating and distorted vision of an optimal constitutional order.

It is increasingly clear that this court sees itself as something other than a participant in our democratic system. It sees itself as the enforcer of the separation of powers, but not itself subject to that separation.

Most immediately, the decision continues to shield Donald Trump from meaningful accountability for his actions before and on Jan. 6, 2021. The court had already given Mr. Trump a decisive win in the form of its monthslong delay in deciding this case — his federal criminal trial for election interference, originally scheduled to begin on March 4, appears less and less likely ever to come to pass.

But the opinion itself grants Mr. Trump a more enduring win, and democracy an even more enduring loss: It jettisons the long-settled principle that presidents, like all others, are subject to the operation of law, and announces that all official acts taken by a president are entitled to either absolute or presumptive immunity from criminal prosecution.

The court’s misguided decision in this case could not come at a more dangerous time. It has removed a major check on the office of the presidency at the very moment when Mr. Trump is running for office on a promise to weaponize the apparatus of government against those he views as his enemies.

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