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श्रम की महत्ता पर निबंध Essay on Dignity of Labor in Hindi

हम सभी के जीवन में श्रम का बहुत महत्व है। श्रम के बिना कुछ भी संभव नहीं होता है। हर कार्य में श्रम की आवश्यकता पड़ती है।  घर में काम करने वाली स्त्रियां जो हमारे लिए प्रतिदिन भोजन बनाती हैं, खाना पकाती हैं, कपड़े धोती हैं, घर की सफाई करती हैं वह भी श्रम का उदाहरण है। परिवार का पुरुष बाहर जाकर नौकरी करता है वह भी श्रम का उदाहरण है।

सच तो यह है कि श्रम के बिना कुछ भी संभव नहीं होता। किसी मकान को बनाने में बहुत श्रम लगता है। उसी तरह किसी व्यवसाय को स्थापित करने में बहुत श्रम लगता है। श्रम की महत्वता हर समय होती है। एक विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए बहुत श्रम करता है। तब जाकर वह अच्छे नंबरों से पास होता है।

Table of Content

हमारे बड़े बूढ़े कहते हैं कि किसी व्यक्ति के पास श्रम ही वास्तविक संपत्ति होती है।  घर में बड़े अक्सर परिश्रम करने की सलाह देते हैं क्योंकि यही जीवन का सार है। महापुरुषों का कहना है कि “श्रम ही जीवन है” राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी कहते थे कि “आराम हराम है” अर्थात व्यक्ति को सदा श्रम करते रहना चाहिए।

इसके बहुत से लाभ हैं। इससे कोई हानि नहीं होती है। इसके फायदे ही फायदे हैं। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने भी कहा है “कर्म करो फल की इच्छा ना करो” जो व्यक्ति बिना कर्म किए फल की इच्छा करते हैं वे जीवन में असफल होते हैं।

क्रिकेट के खेल में श्रम करके ही एक खिलाड़ी 100 रन बना पाता है। सभी दर्शक तालियां बजाकर उसका स्वागत करते हैं। उसी तरह कोई फिल्म अभिनेता श्रम करके ही किरदार को सही तरह से पर्दे पर प्रस्तुत कर पाता है। एक लेखक महीने श्रम करके कोई पुस्तक लिख पाता है।

एक इंजीनियर श्रम करके ही एक अच्छी मोटरसाइकिल या कार बना पाता है। श्रम करके ही वैज्ञानिक भिन्न भिन्न आविष्कार करते हैं। श्रम का महत्व जीवन के प्रत्येक भाग में देखने को मिलता है।

श्रम से लाभ ADVANTAGES OF LABOUR

लक्ष्य पाने में सहायता करता है.

श्रम का महत्व बहुत अधिक है। बिना श्रम के हम अपने लक्ष्य को नहीं पा सकते हैं। एक विद्यार्थी श्रम करके ही परीक्षा में अच्छे अंको से पास होता है। एक बेरोजगार युवक तैयारी करके ही सरकारी नौकरी प्राप्त करता है। एक किसान श्रम करके ही अच्छी फसल उगा पाता है। व्यवसाय में श्रम करके ही एक व्यक्ति अच्छा पैसा कमाता है और पूरे परिवार का खर्च चला सकता है।

शरीर स्वस्थ रखता है

श्रम करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि व्यक्ति कभी बीमार नहीं पड़ता है। वह निरोगी रहता है। उसे दूसरे लोगों की तरह बार-बार डॉक्टर के पास जाकर दवाइयां नहीं लेनी पड़ती है। उसका एक भी पैसा दवाइयों में नष्ट नहीं होता है। जो लोग श्रम करते हैं उनका अच्छा व्यायाम हो जाता है। इसीलिए डॉक्टर भी कहते हैं कि दिन में 20 मिनट कम से कम व्यायाम करना चाहिए।

समाज श्रम करने वाले व्यक्तियों का सम्मान करता है

आपने देखा होगा समाज में जो लोग कुछ काम नहीं करते, निठल्ले घूमते रहते है, व्यर्थ ही समय नष्ट करते रहते हैं, कोई नौकरी, कोई काम, कोई रोजगार नहीं करते। सिर्फ घर पर, मां बाप पर आश्रित होते हैं उनकी समाज में कोई इज्जत नहीं करता है। जो व्यक्ति मेहनत करता है उसे सभी लोग पसंद करते हैं। सभी लोग उसका सम्मान करते हैं।

श्रम करने वाले देश विकसित हो गये

हम यह पाते हैं कि जिन देशों के लोग बहुत श्रम करते हैं वो अब विकसित देश बन चुके हैं हमारा भारत देश आज भी विकासशील है। हमारे देश के बारे में यह धारणा है कि हम लोग आलसी और आराम तलब होते हैं।

कुछ हद तक यह सही भी है जबकि अमेरिका, जापान, रूस, इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में लोग बहुत काम करते हैं। वे आराम तो बहुत कम करते हैं। यही वजह है कि उनके देश विकसित हो चुके हैं और जीवन स्तर उच्च है। जबकि भारत में आज भी ज्यादातर लोग गरीब है।

बिना श्रम के वस्तु प्राप्त होने पर व्यक्ति उसका सम्मान नहीं करता

आप लोगों ने वह कहानी तो जरूर सुनी होगी जिसमें एक पिता अपने बेटे को श्रम का महत्व बताता है। वह एक 10 रूपये  का नोट अपने बेटे को देता है और कहता है कि उसे जाकर कुएं में फेंक दे। हर बार उसका बेटा ऐसा करता है। उसे कोई दर्द नही होता है। फिर वह कहता है कि जाओ 10 रूपये कमा कर लाओ। बहुत मेहनत करने पर उसके बेटे को 10 रूपये प्राप्त होते हैं।

पिता फिर कहता है कि अपनी मेहनत की कमाई वाले उस 10 रूपये को कुएं में फेंक दो। बेटा उसे फेंकने से मना कर देता है क्योंकि वह 10 रूपये  उसकी मेहनत के हैं। इस तरह पिता अपने बेटे को श्रम का महत्व समझाता है। इसी तरह जब हमें कोई भी वस्तु बिना श्रम के प्राप्त हो जाती है तो हम उसका सम्मान नहीं करते हैं।

श्रम करने पर स्वाभिमान जागता है

जो व्यक्ति श्रम करके अपना भरण पोषण करते हैं, जो अपने मां-बाप या दूसरों पर आश्रित नहीं होते हैं वे स्वयं का बहुत सम्मान करते हैं। क्योंकि जो भी पैसा उनके पास है वह उन्होंने मेहनत से कमाया है। जो भी रोटी वो खाते हैं वह उनकी मेहनत की कमाई की है। श्रम करने पर व्यक्ति स्वयं की नज़रों में बढ़ जाता है। उसका स्वाभिमान जाग जाता है।

मनुष्य जीवन श्रम करने ले लिए ही मिला है

बहुत से महापुरुषों का कहना है कि मनुष्य का जीवन बहुत सौभाग्य से मिलता है। यह व्यर्थ करने के लिए नहीं है। 84 लाख योनियों में मनुष्य जीवन सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है। मनुष्य जीवन को कभी भी नष्ट नहीं करना चाहिए। जीवन का एक-एक पल अच्छे कामों में लगाना चाहिए।

आशा करते हैं आपको श्रम पर यह जानकारी या निबंध अच्छा लगा होगा। कमेंट के माध्यम से हमें ज़रूर बताएं।

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नमस्कार रीडर्स, मैं बिजय कुमार, 1Hindi का फाउंडर हूँ। मैं एक प्रोफेशनल Blogger हूँ। मैं अपने इस Hindi Website पर Motivational, Self Development और Online Technology, Health से जुड़े अपने Knowledge को Share करता हूँ।

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Dignity Of Labour Essay In Hindi

परिश्रम का सम्मान पर निबन्ध – Dignity Of Labour Essay In Hindi

परिश्रम का सम्मान पर निबन्ध – essay on dignity of labour in hindi.

संकेत-बिंदु –

  • परिश्रम की आवश्यकता
  • परिश्रम-सफलता का मूलमंत्र
  • महापुरुषों की सफलता का राज़
  • विद्यार्थी जीवन और परिश्रम

सफलता का मूलमंत्र-श्रम (Saphalata Ka Moolamantr Shram) – Labor of success

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न  हिंदी निबंध  विषय पा सकते हैं।

भूमिका – यदि हम मनुष्य की उन्नति के सौ-डेढ़ सौ साल पहले और आज की स्थिति पर विचार करें, तो हमें ज़मीन-आसमान का अंतर नज़र आता है। मीलों लंबे पुल, गंगनचुंबी इमारतें, ऊसर को भी हरा-भरा बना देना, ऊँचे-नीचे पहाड़ों का सीना चीरकर रेल की पटरियाँ आदि सब कैसे संभव हुआ, तो हमें इसका एक जवाब मिलता है-श्रम के कारण। निश्चित ही श्रम में असंभव को भी संभव बना देने की शक्ति है।

परिश्रम की आवश्यकता – जीवन में किसी काम को करने के लिए परिश्रम की आवश्यकता होती है। यहाँ तक कि थाली में सामने रखे गए भोजन को मुँह तक ले जाने के लिए परिश्रम की आवश्यकता होती है। शेर जंगल का राजा होता है, पर उसे भी अपने भोजन के लिए श्रम करना होता है। कहा भी गया है –

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। नहि सुप्तस्य सिंहस्य मुखे प्रविशन्ति मृगाः।।

जीवन को सुखमय बनाने के लिए धन की ज़रूरत होती है। ज्ञानवान बनने के लिए विद्या की ज़रूरत होती है। इनको पाने के लिए परिश्रम के अलावा कोई रास्ता नहीं है। थके व्यक्ति को अपना पसीना सुखाने के लिए हवा चाहिए। यह हवा भी बिना परिश्रम नहीं मिलती है तभी तो कबीर दास ने कहा है –

विद्या धन उद्यम बिना कहो जु पावे कौन।। बिना डुलाए न मिले, ज्यों पंखा की पौन।।

परिश्रम सफलता का मूलमंत्र – धरती पर जितने भी जीव हैं, वे किसी न किसी उद्देश्य के लिए परिश्रम करते दिखाई पड़ते हैं। चिड़िया को अपने चारे और पानी के लिए जंगल में भटकना पड़ता है, तालाब या नदी तक उडान भरनी पड़ती है। चींटी का जीवन परिश्रम का उदाहरण है। वह अपने वजन से अधिक भार लेकर यात्रा करती है और सरदी में जब बरफ़ जम जाती है तो आराम से उसी भोजन पर दिन बिताती है जो उसने बरफ़ पड़ने से पहले एकत्र किया था।

इसी तरह मधुमक्खियाँ पराग की खोज में कई-कई मील का चक्कर काटती हैं। वे बहुत ही मेहनत से छत्ता तैयार करती हैं। उसी छत्ते में अपने द्वारा लाए पराग से शहद तैयार करती हैं। भगवान राम और उनकी सेना ने अथक परिश्रम से समुद्र को बाँधकर पुल बना लिया था। इसी की मदद से उन्होंने लंका को जीता था।

महापुरुषों की सफलता का राज – परिश्रम में सफलता का रहस्य छिपा है। इस बात को हमारे महापुरुष अच्छे से जानते थे। हमारे देश के ऋषिमुनि अपने परिश्रम से जंगल में मंगल कर देते थे। वैज्ञानिकों की सफलता का राज़ उनका अथक परिश्रम ही है। अब्राहम लिंकन, महात्मा गांधी, अब्दुल कलाम आदि अपने परिश्रम के कारण ही जाने-पहचाने जाते हैं। सरदार पटेल ने स्वतंत्रता उपरांत देश की रियासतों के एकीकरण के जो अथक परिश्रम किया उसे कैसे भुलाया जा सकता है।

विद्यार्थी जीवन और परिश्रम – विद्यार्थी जीवन, जीवन के निर्माण का काल होता है। इस समय जो छात्र परिश्रम करने की आदत डाल लेते हैं, वे हर कक्षा में अच्छे ग्रेड हासिल करते हैं और सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते जाते हैं। इसके विपरीत जो छात्र आलस करते हैं, वे हर चीज़ गँवाते जाते हैं। तभी तो कहा गया है – अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम्।

उपसंहार – परिश्रम सफलता का साधन है। परिश्रम से मनोवांछित सफलता प्राप्त की जा सकती है। परिश्रम से मुँह मोड़ने वाला सुखी होने की बात सोच भी नहीं सकता है। विश्व की उन्नति और प्रगति का मूल परिश्रम ही है। अतः हमें भी परिश्रमी बनना चाहिए।

श्रम का महत्त्व |Essay on The Importance of Labour in Hindi

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श्रम का महत्त्व |Essay on The Importance of Labour in Hindi!

परिश्रम ही मनुष्य जीवन का सच्चा सौंदर्य है । संसार में प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है । संसार-चक्र सुख की प्राप्ति के लिए चल रहा है । संसार का यह चक्र यदि एक क्षण के लिए रुक जाए तो प्रलय हो सकती है ।

इसी परिवर्तन और परिश्रम का नाम जीवन है । हम देखते हैं कि निर्गुणी व्यक्ति गुणवान् हो जाते है; मूर्ख बड़े-बड़े शास्त्रों में पारंगत हो जाते हैं; निर्धन धनवान् बनकर सुख व चैन की जिंदगी बिताने लगते हैं । यह किसके बल पर होता है ? सब श्रम के बल पर ही न । ‘श्रम’ का अर्थ है- तन-मन से किसी कार्य को पूरा करने के लिए प्रयत्नशील होना ।

जिस व्यक्ति ने परिश्रम के बल पर आगे बढ़ने की चेष्टा की, वह निरंतर आगे बढ़ा । मानव-जीवन की उन्नति का मुख्य साधन परिश्रम है । जो मनुष्य जितना अधिक परिश्रम करता है, उसे जीवन में उतनी ही अधिक सफलता मिलती है ।

जीवन में श्रम का अत्यधिक महत्त्व है । परिश्रमी व्यक्ति कै लिए कोई कार्य कठिन नहीं । इसी परिश्रम के बल पर मनुष्य ने प्रकृति को चुनौती दी है- समुद्र लाँघ लिया, पहाड़ की दुर्गम चोटियों पर वह चढ़ गया, आकाश का कोई कोना आज उसकी पहुँच से बाहर नहीं ।

वस्तुत: परिश्रम का दूसरा नाम ही सफलता है । किसी ने ठीक ही कहा है:

”उद्योगिन पुरुष र्सिंहमुपैति लक्ष्मी:

ADVERTISEMENTS:

दैवेन देयमिति का पुरुषा: वदन्ति । ”

अर्थात् परिश्रमी व्यक्ति ही लक्ष्मी को प्राप्त करता है । सबकुछ भाग्य से मिलता है, ऐसा कायर लोग कहते हैं । कम बुद्धिवाला व्यक्ति भी श्रम के कारण सफलता प्राप्त कर लेता है और एक दिन विद्वान् बन जाता है । किसी ने ठीक ही कहा है-

”करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान ।

रसरी आवत जात तें सिल पर परत निसान ।। ”

श्रम दो प्रकार का होता है- शारीरिक और मानसिक । शरीर द्वारा किया गया श्रम शारीरिक कहलाता है । यह व्यायाम, खेल-कूद तथा कार्य के रूप में प्रकट होता है । शारीरिक श्रम मनुष्य को नीरोग, प्रसन्नचित्त और हृष्ट-पुष्ट बनाता है । मानसिक श्रम मनुष्य का बौद्धिक विकास करता है । दोनों का समन्वय ही जीवन में पूर्णता लाता है । अत: जीवन की सफलता श्रम पर निर्भर है ।

यूनान के डिमास्थनीज को पहले बोलना तक नहीं आता था, परंतु आगे चलकर अपने श्रम के बल पर वह एक उच्च कोटि का वक्ता बन गया । राइट बंधुओं ने जब जहाज उड़ाने की बात सोची थी तब सबने उनका उपहास उड़ाया था, लेकिन वे विचलित नहीं हुए । वे निरंतर प्रयत्न करते रहे । अंत में उन्हें श्रम का फल मिला ।

राणा प्रताप और शिवाजी ने अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र कराने के लिए कितना श्रम किया ? महात्मा गांधी ने निरंतर प्रयतन कर सदियों से गुलामी की जंजीरों में जकड़े भारत को स्वतंत्र कराया । जार्ज वाशिंगटन, अब्राहम लिंकन आदि की उन्नति का श्रेय श्रम को ही जाता है । ईश्वरचंद्र को ‘विद्यासागर’ कहलाने का गौरव श्रम के कारण ही प्राप्त हुआ ।

श्रम का महत्ता बताते हुए गांधीजी ने कहा था- “जो अपने हिस्से का परिश्रम किए बिना ही भोजन करते है, वे चोर हैं ।” बाइबिल में भी कहा गया है कि अगर कोई काम नहीं करता तो उसे भोजन नहीं करना चाहिए । गीता और उपनिषद् तो यहाँ तक कहती हैं कि हमें इस संसार में कर्म करते हुए अर्थात् परिश्रम करते हुए ही जीना चाहिए ।

संसार में सुख के सकल पदार्थ हैं, फिर भी परिश्रमहीन मनुष्य उन्हें प्राप्त नहीं कर सकता । तुलसीदासजी ने ठीक ही कहा है:

”सकल पदारथ यहि जग माहीं । करमहीन नर पावत नाहीं ।।”

परिश्रम से कठिन-से-कठिन कार्य सिद्ध हो जाते हैं । श्रम में ऐसी शक्ति छुपी रहती हें, जो मानव को सिंह की भाँति बलवान् बनाकर मार्ग की कठिनाइयाँ दूर कर देती है । श्रम ही सफलता की कुंजी है ।

अत: यदि हम अपना व्यक्तिगत विकास चाहते हैं, राष्ट्र की समृद्धि चाहते हैं या विश्व की प्रगति चाहते हैं, तो हमें परिश्रम को आधार-स्तंभ बनाना पड़ेगा ।

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dignity of labour essay in hindi

Dignity Of Labour Essay: Suitable For All Class Students

Abdul Aouwal's Profile Picture

  • Abdul Aouwal
  • May 21, 2024

Work or labor has no alternative. There is no shame in working. All must work according to their ability. Man can not, and should not, live without labour. Although man is the greatest creature of the universe, he has to earn his own bread; nobody brings him his livelihood by a wave of any magic wand. Whatever he needs, he must acquire through hard work. If anyone wants to have anything without undertaking the burden of labour, he has io indulge in illegal activities which deserves no dignity at all.

Labour gives us life and livelihood. That is why it is above all other things in life.

The main success of man's life is to strike a unique balance between his needs desires or dreams and achievements. What man wants really exits in the world. But if he wants to have it, he has to labor hard. He has to earn all this: his bread for survival, knowledge, success, wealth, friendship, fame and all other things that he craves for. Likewise, social status, historical identity, esteem from others—these all need to be procured through hard labor. If there is to be anything called luck, then it must be a series of blanks that must be filled up by hard labor. Or, more specifically 

"Luck is what happens when preparation meets opportunity."

So, preparation must be there. Nothing can actually come to man from the empty luck.

Likewise, we have to define fate in a practical way. It can be said that fate is the external environment of man which he directly or indirectly reacts to but can not control. It is, in other words, a set of restrictions. We can not, as has already been said, control fate, but we can easily control ourselves. And it can be possible by dint of labour. Hence the saying goes:

"When fate shuts the door, come in through the window."

Therefore, labor makes everything possible. Without it, nothing can be done or achieved. Even any religious practice without any labor has no value. Pure religion is what we do after our prayer is over. Prayer is indeed a preparation. For this reason, labor is given the most importan in all religious books of the world.

The idle brain is the root of all evils, they say. This may do big harms to the society as well as the nation. Thoughts which are aloof from work or labour do not advance much; they reduce into daydreams and fancies. An author aptly says, " There is no such way by which man can escape from labour, and the act of thinking is more laborious."

No labor is detestable. The thinking of the scholar, the leading of the leader, the advice of the specialist all these are as essential as to us as the labor of the cooley, the day laborer, the sweeper, the farmer, the hawker, the shopkeeper, the clerk, and all others. If we abhor the work of the sweeper and he postpones his work only for two days, then this gentlemanly town life of ours will become a hell. Likewise, if the cobbler ceases to work, and yet we want to keep our status intact, then we ourselves will have to become cobblers, at least for our own purposes. Therefore, all types of work are dignified and valuable. We all are labourers.

But it is a matter of great regret that in this sub-contiment, even in this modern age, people are socially classified according to what they do, and consequently, are considered as of varying status. We consider that labourer as mean but for whose labour we could not have been in the so-called higher position. It is very sad. No nation believing in such incongruous classification of mankind has ever prospered enough. In the developed countries, a labourer is most esteemed. All kinds of labour are encouraged there. We too should take lessons from their examples.

Only labour has made it possible to create the great things of the world. The Taj, the Great Wall of China, Mona Lisa-all these are fruits of unfatigued labour. Nothing has been, can be, and will be possible without labour.

In conclusion, a famous man can be quoted: "Man's greatest friends are the ten fingers of his hands." He is quite right. But it should not be forgotten that physical labor and mental labor are complementary to each other.

Dignity of labor essay 2

Topic: (Introduction, Classification, Importance, Manual labor does not make man low, Conclusion)

The work of a clerk, a teacher, a professor, a lawyer, a doctor does not require much physical labor. On the contrary, the work of a cultivator, a miner, an artisan requires physical labor. When we say that the work of the cultivators, miners, artisans etc. is as respected as the work of the clerk, the teacher, the lawyer, and the doctor, we mean there is the dignity of labor.

There are two kinds of labor-manual and intellectual. Each of them has the dignity of its own and none is inferior to the other.

There is a great importance of manual labor in human life. We grow crops, build houses and factories, construct roads and streets etc. by manual labor. Manual labor is also necessary for the fields, mines, mills, and ships. If the sweepers, the porters, the carpenters, mason, the blacksmith, and the peasants did not perform their duties, the whole of mankind could not have enjoyed the present result of civilization. It gives us good physical exercise and so keeps our body fit and strong. It helps the continuation of our existence in this world. We cannot live without food, drink, clothes, and houses. But these are gifts of manual labor. So manual labor is more essential than the intellectual.

In our country, people usually do not respect manual labor. They think that manual labor lowers down their position in society. So they hate manual labor. A man with a little bit of education does not even wash his own clothes because of his vanity.

But this picture is quite different in the developed countries of the world. For instance, Tolstoy came of a very rich family. He himself did manual work like another peasant. Great men of the world believe that manual labor can never lower down the prestige of a man.

At present, the outlook of our countrymen has not yet completely changed. But we should understand that manual labor makes a man great and dignified. An ordinary laborer without education is better than an educated idle man. So, we should feel that there is the dignity of labor in every sphere of life.

Dignity Of Labor Essay 3

Introduction : Everything has its own dignity whatever it may be. It is dignified in accordance with its utilization and utility. It is the most valuable powerful element of success in life .

Kinds of labor: Labour is of two types-manual and intellectual. Each of them should have a dignity of its own. But unfortunately, most of our educated persons have a wrong idea of manual labour. Consequently, they look down upon the people engaged in manual work. In such a context we should keep in mind that manual labour has noting debasing about it.'

Manual labor : Manual labor is at the root of our livelihood. The food, drink, clothes, and houses without which we cannot live are all the gifts of manual labor. It is manual labor that drives the plow and reaps the harvest. It grinds the corn and turns it into bread. It spins the thread and weaves our clothes. It lays brick upon brick and builds our houses. Manual-workers are thus the backbone of a nation. In western countries, all house-hold works are done by the people themselves. They have to clean their own floors and wash their own bathrooms. There is no porter to carry their pieces of luggage. A passenger has to carry his own bag. A carpenter, a mason or an electrician has his own dignity.

Intellectual labor: Labour of this type is dignified to many. Working in the office, bank, insurance company etc is regarded as intellectual labor. It has a touch with manual labor. The country's development in the international field depends on it. Science, literature, culture, technology etc are intellectual labor. But unfortunately, many people in our country still think that manual labor is not dignified. It is ridiculous to think that a clerical job is more dignified than manual work in agriculture, horticulture, carpentry, pottery, tailoring, book-binding, spinning, weaving, dairy, poultry etc. This false notion should be changed. It is especially important in the context of the economic realities of the country. Indeed this dignity of labor may be a powerful means of combating the problem of unemployment which is becoming large in our country.

Importance: Dignity of labor has an important role in the country. No nation can develop unless her people undergo any labor. If we consider the developed countries, we find that the people of those countries did not hesitate but labored hard. Labour of any kind is dignified as it can give everything to society. The nation's development depends largely on labor. All the great men in the world labored hard and achieved dignity.

Difficult to provide employment: We cannot expect that every educated young man would be given a secured and comfortable job with a chair and a table and a fan in an office or in a bank. We must admit that no government can provide employment to all the unemployed youths.

Labour gives dignity: Hence self-reliance and dignity of labor may be the only reasonable way to solve the problem of unemployment. We should remember that God has given us not only the head but hands also. We should fully utilize these gifts to enrich our lives. Moreover, those who are engaged in intellectual jobs should do some manual works for keeping a balance between the two for a normal and healthy life.

Teaching dignity of labor: Thus we should have an ideal position of manual labor in our society. And for this, the dignity of labor should be taught from childhood. If every child is asked to do his or her own work as much as possible, it will be good for the future struggle of life. We should all bear in mind that work is worship and in this way, the dignity of labor should be recognized in its due importance.

Conclusion : Labour of any kind pays much more than anything else. It helps contribute to the economic development of an individual and a nation.

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    Here is an essay on the ‘Importance of Labour’ in Hindi language. कहा गया है कि कर्म ही जीवन है । कर्म के अभाव में जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता । मनुष्य को जीवनपर्यन्त कोई-न-कोई कर्म करते रहना पड़ता है और कर्म का आधार है- श्रम । यही कारण है कि प्राचीन ही नहीं आधुनिक विश्व साहित्य में भी श्रम की महिमा का बखान किया गया है ।.

  5. श्रम का महत्व पर निबन्ध | Essay on Importance of Labour in Hindi

    श्रम अपने आप में ही एक लक्ष्य है । श्रम करके चित्त प्रसन्न होता है । देह तंदरूस्त रहती है । व्यक्ति उन्नति करे अथवा न करे परिवार अथवा समाज में सम्मान मिलता है । किन्तु यह होता नहीं है कि व्यक्ति श्रम करे और वह उन्नति न करे । श्रम करने वाला व्यक्ति सदैव उन्नति करता है ।.

  6. श्रम का महत्त्व |Essay on The Importance of Labour in Hindi

    श्रम दो प्रकार का होता है- शारीरिक और मानसिक । शरीर द्वारा किया गया श्रम शारीरिक कहलाता है । यह व्यायाम, खेल-कूद तथा कार्य के रूप में प्रकट होता है । शारीरिक श्रम मनुष्य को नीरोग, प्रसन्नचित्त और हृष्ट-पुष्ट बनाता है । मानसिक श्रम मनुष्य का बौद्धिक विकास करता है । दोनों का समन्वय ही जीवन में पूर्णता लाता है । अत: जीवन की सफलता श्रम पर निर्भर है ।.

  7. मजदूर दिवस पर निबंध (Labour Day Essay in Hindi)

    मजदूर दिवस पर छोटा व बड़ा निबंध कक्षा 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के विद्यार्थियों के लिए। Short and Long Essay on Labour Day in Hindi Language. Majdur Divas par Nibandh Hindi mein.

  8. Essay on Dignity of Labour in Hindi - essayonhindi.in

    Here Is We Share Short Info about Labour in Hindi- परिश्रम का सम्मान पर निबंध Essay on Dignity of Labour in Hindi- parishram par Nibandh.For School St

  9. India’s Labour Reforms - दृष्टि आईएएस

    A labour reform does not only mean creating jobs, but also improving working conditions so that one can work with dignity, freedom, and safety.

  10. Dignity Of Labour Essay: Suitable For All Class Students

    Teaching dignity of labor: Thus we should have an ideal position of manual labor in our society. And for this, the dignity of labor should be taught from childhood. If every child is asked to do his or her own work as much as possible, it will be good for the future struggle of life.