असाइनमेंट कैसे लिखे? | असाइनमेंट लिखने का तरीका | Assignment likhne ka tarika
|| असाइनमेंट कैसे लिखे? | असाइनमेंट लिखने का तरीका | Assignment likhne ka tarika | असाइनमेंट लिखने के नियम (Assignment rules for students in Hindi | Assignment matlab kya hota hai ||
Assignment likhne ka tarika:- विद्यार्थी जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है असाइनमेंट और यह हर विद्यार्थी को करना ही होता है। अब यह जो असाइनमेंट होता है वह उसे अपनी कक्षा में बैठकर नहीं करना होता है बल्कि उसे अपने घर बैठकर इसे पूरा करना होता है। यह किसी भी अध्यापक के द्वारा अपने विद्यार्थी को घर पर दिया गया अध्ययन कार्य होता है। इसके लिए छात्र को उस विषय पर अच्छे से रिसर्च करनी होती है और उसके बाद ही उसे लिखना होता (Assignment kaise likhe) है।
अब जिन छात्रों ने पहले असाइनमेंट पर काम नहीं किया है या उन्हें इसके बारे में इतनी जानकारी नहीं है तो अवश्य ही वह खुद को मिले इस काम को देखकर घबरा गए होंगे और उन्हें समझ नहीं आ रहा होगा कि आखिरकार किया जाये तो क्या किया जाए। ऐसे में आज के इस लेख के माध्यम से हम आपके साथ असाइनमेंट के विषय के ऊपर ही बात करने वाले (How to write assignment in Hindi) हैं। कहने का अर्थ यह हुआ कि असाइनमेंट को कैसे लिखा जा सकता है या असाइनमेंट लिखने का क्या तरीका है, वह सब आप इस लेख के माध्यम से जानेंगे।
असाइनमेंट क्या होता है? (Assignment kya hota hai in Hindi)
असाइनमेंट लिखने के तरीके को जानने से पहले यह जान लेना जरुरी है कि आखिरकार यह असाइनमेंट होता क्या है और यह किस विषय पर दिया जा सकता है। तो यहाँ हम आपको एक बात पहले ही बता दें कि यह एक तरह से लेख ही होता है लेकिन विस्तृत रूप में और पूरी रिसर्च के साथ लिखा गया। आपने लेख पहले भी स्कूल या कॉलेज की परीक्षा में लिखे होंगे और यह आपने अपने दिमाग के अनुसार बड़ा करके लिख दिए होंगे जबकि असाइनमेंट के साथ ऐसा नहीं हो सकता है। इसके लिए आपको उस विषय के बारे में पूरी तरह से रिसर्च करनी होगी और फिर ही उसे लिखना (Assignment matlab kya hota hai) होगा।
तो यह असाइनमेंट किसी भी विषय पर दिया जा सकता है लेकिन वह आपके द्वारा पढ़े जा रहे विषय से ही संबंधित होगा ताकि आपको उसका लाभ मिल सके। यहाँ हम यह कहना चाह रहे हैं कि अब यदि आपको विज्ञान के अध्यापक ने किसी विषय पर असाइनमेंट दिया है तो वह आपको सामाजिक विज्ञान के विषय पर लिखने को असाइनमेंट नहीं दे सकता है। अब विज्ञान से जुड़े विषय पर जो असाइनमेंट मिल सकता है वह यह है कि सूर्य के नौ ग्रहों के बारे में जानकारी दीजिये या ब्लैक होल क्या होता है या फिर चुम्बकीय किरणों के बारे में जानकारी या कुछ (Assignment kya hai) और।
इस तरह यह असाइनमेंट किसी भी विषय पर हो सकता है लेकिन आप जिस भी कक्षा में पढ़ रहे हैं या जिस भी कॉलेज में जिस भी विषय पर स्टडी कर रहे हैं, आपको उसी विषय से संबंधित किसी विषय पर ही असाइनमेंट करने को दिया जाएगा। अब यह तो आपके अध्यापक पर निर्भर कार्य है कि वह किस छात्र को किस विषय पर असाइनमेंट करने को देता है।
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असाइनमेंट क्यों दिया जाता है?
अब आपको यह भी जानना होगा कि आखिरकार इस असाइनमेंट को देने का क्या औचित्य होता है या इसे देने से क्या कुछ हो जाता है। तो यहाँ हम आपको बता दें कि विद्यार्थी जीवन में आपसे जो भी कार्य करवाया जाता है या आपको जो भी करने को कहा जाता है, उनमे से हरेक चीज़ का अपना अलग महत्व होता है और वैसा ही कुछ इस असाइनमेंट के साथ है।
अब आप जो भी पढ़ने जाते हैं, उस पर अध्यापक आपको ज्ञान देता है और वही आपको उस विषय से संबंधित हरेक चीज़ को समझाता है जबकि असाइनमेंट के साथ ऐसा नहीं होता है। इस असाइनमेंट के जरिये अध्यापक आपको आपकी स्टडी से संबंधित एक विषय पकड़ा देता है और अब आपको अपनी समझ के अनुसार ही उस विषय पर रिसर्च करनी होती है और उस पर एक रिपोर्ट तैयार कर अपने अध्यापक को देनी होती है जिसका वह मूल्याङ्कन करता है।
एक तरह से आपकी जानकारी को बढ़ाने और विषयों पर रिसर्च कर उस पर अपनी जांच रिपोर्ट लिखने की क्षमता का विकास करने के उद्देश्य से ही आपको यह असाइनमेंट दिया जाता है। आइये अब हम बात करते हैं असाइनमेंट को अच्छी तरह से लिखने के तरीकों के बारे में।
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असाइनमेंट बनाने के लिए क्या चाहिए? (Assignment bnane ke liye kya kya chahiye)
अब जब आपको असाइनमेंट मिल चुका है तो उसे बनाने के लिए आपको क्या कुछ चाहिए होगा, यह भी एक महत्वपूर्ण विषय होता है। तो इसके लिए कुछ चीज़ों को आपको बाजार से जाकर लेना होगा क्योंकि उसके बिना असाइनमेंट नहीं बन सकता है। उदाहरण के तौर पर यदि आप सोच रहे हैं कि आप अपनी कॉपी के पेज पर ही असाइनमेंट को कर देंगे तो आप गलत हैं क्योंकि इसके लिए A4 साइज़ के पेज चाहिए होते हैं जो फोटोकॉपी या प्रिंट वाली दुकान से मिलते हैं, आइये जाने।
- A4 साइज़ के पेपर
- सूचना एकत्र करने के माध्यम जैसे कि पुस्तकें या इंटरनेट इत्यादि।
असाइनमेंट लिखने का तरीका (Assignment likhne ka tarika)
अभी तक आप असाइनमेंट के बारे में बहुत कुछ जान चुके हैं और यह आपको किस उद्देश्य के तहत दिया जाता है, इसकी जानकारी भी आपने ले ली है। तो अब बारी आती है असाइनमेंट को लिखने के बारे में जो इस कड़ी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है। अब यदि आपने इसमें कोई कोताही बरती तो समझ जाइये कि आपकी सारी मेहनत बेकार चली (Assignment kaise banaye in Hindi) जाएगी। ऐसे में आपको असाइनमेंट लिखने का सही तरीका पता होना चाहिए।
बहुत से बच्चे अपने असाइनमेंट में अच्छी बातें तो लिखते हैं और उन्होंने मेहनत भी अच्छी की होती है लेकिन उसे गलत फॉर्मेट में लिखने या सही से चीज़ें नहीं लिखे जाने पर अध्यापक के द्वारा उनके अंक काट लिए जाते हैं और डांट लगायी जाती है वह (Write assignment in Hindi) अलग। ऐसे में यदि आप चाहते हैं कि आपके असाइनमेंट को सबसे अधिक अंक मिले और उसमे कोई गलती ना हो तो अब आपको यह लेख बहुत ही ध्यान के साथ पढ़ना चाहिए। आइये जाने असाइनमेंट लिखने का सही तरीका।
- सबसे पहले तो आप यह देख लें कि आपको अपने असाइनमेंट के लिए कितने पेज की जरुरत पड़ने वाली है क्योंकि कभी यह कम पड़ जाते हैं तो कभी ज्यादा। ऐसे में आप बाजार से एक मौके ज्यादा पेज ले आइये क्योंकि बच भी जाएंगे तो कहीं और या बाद के किसी असाइनमेंट में काम आ (Assignment likhne ka style) जाएंगे।
- अब आप सभी पेज पर स्केल व पेंसिल से हरेक साइड मार्जिन बना लें जो कि एक अच्छे असाइनमेंट की पहचान होती है। कहने का अर्थ यह हुआ कि पेज के हर ओर आपको लगभग एक सेंटीमीटर का स्पेस छोड़ देना चाहिए ताकि वहां से पेज फट भी जाए या बाद में उसे स्टेपल किया जाए तो वहां लिखे अक्षर छुप ना (Assignment likhne ka tarika in Hindi) जाएं।
- अब आपको यह भी ध्यान रखना है कि असाइनमेंट में किसी भी विषय की हैडिंग को काले पेन से लिखना होगा और जो भी उस हैडिंग के अंदर का कंटेंट होगा, उसे आपको नीले पेन से लिखना होगा। कहने का अर्थ यह हुआ कि मान लीजिये कि आप ब्लैक होल क्या है, इस विषय पर लिख रहे हैं तो आपको ब्लैक होल की विशेषता इस हैडिंग को काले पेन से और उसकी विशेषताओं में जो भी लिखने जा रहे हैं, उसे नीले पेन से लिखना होगा।
- अब आप अपने असाइनमेंट में सीधे विषय के ऊपर ही लिखना मत शुरू कर दीजिये क्योंकि पहला पेज इसके लिए नहीं होता है। असाइनमेंट के पहले पेज को उसका कवर पेज भी कहा जा सकता है जिसे आपको सुन्दर रूप देना होता है।
- इस कवर पेज पर आपको अपनी जानकारी जैसे कि आपका नाम, कक्षा का नाम, स्कूल का नाम, अध्यापक का नाम, विषय का नाम, असाइनमेंट के विषय का नाम इत्यादि सब जानकारी लिखनी होती है। आज के समय में लोग असाइनमेंट के पहले पेज को कंप्यूटर से भी निकालने लगे हैं और वो भी विषय से संबंधित फोटो के साथ। तो आप भी ऐसा कर सकते हैं और अपने असाइनमेंट को एक सुन्दर रूप दे सकते हैं।
- अब यदि आपका असाइनमेंट दो से तीन पेज का ही है तो आप दूसरे पेज से ही असाइनमेंट के विषय के ऊपर लिखना शुरू कर सकते हैं लेकिन आमतौर पर कोई असाइनमेंट इतना छोटा मिलता नहीं है और वह न्यूनतम 10 पेज का तो होता ही है। वह इसलिए क्योंकि असाइनमेंट दिया ही छात्रों को गहन अध्ययन व खोज के लिए जाता है ताकि छात्र उस विषय पर अपनी रिसर्च करके उस पर अपना आंकलन लिख सकें।
- इसलिए आपको असाइनमेंट के कवर पेज को डिजाईन करने के बाद उसके दूसरे पेज पर अपने असाइनमेंट के सभी टॉपिक की टेबल देनी चाहिए। कहने का अर्थ यह हुआ कि आपको यहाँ क्रमानुसार अपने असाइनमेंट की सभी हैडिंग लिखनी चाहिए। इसके लिए आप एक पेज को खाली छोड़ सकते हैं और जब आपका असाइनमेंट हो जाए तो इस पेज को बना सकते हैं।
- अब यदि आप असाइनमेंट के दूसरे वाले पेज पर विषय की हैडिंग के साथ साथ यह भी बता देंगे कि वह असाइनमेंट के किस पेज पर है तो यह आपके असाइनमेंट को अध्यापक के सामने प्रभावी बनाने का कार्य करेगा। इसलिए इन छोटी छोटी बातों को ध्यान मे रखकर आप अध्यापक से ज्यादा नंबर बटोर सकते हैं।
- अब तीसरे पेज से आपको असाइनमेंट के विषय के ऊपर लिखना शुरू कर देना होगा। अब इसके लिए आपको जो भी विषय मिला है और आपने उस पर जो भी रिसर्च की है फिर चाहे वह रिसर्च कंप्यूटर से की गयी हो या मोबाइल से या पुस्तकों से या किसी से पूछ कर, यह आप पर निर्भर करता है।
- यह आपको ही तय करना होगा कि आपको उस विषय पर क्या क्या हैडिंग बनानी है, उस पर क्या कुछ लिखना है और यह हम आपको नहीं सिखा सकते हैं क्योंकि इसका कोई निर्धारित प्रारूप नहीं होता है। हालाँकि इसको लेकर कुछ नियम हो सकते हैं जिनके बारे में हम आपको नीचे बता देंगे।
- असाइनमेंट के अंत में आपको लिखे गए विषय के ऊपर एक आंकलन लिखना चाहिए। कहने का अर्थ यह हुआ कि आपने पूरे असाइनमेंट में जो भी लिखा है, उसका एक निष्कर्ष आपको अंत में लिखना होता है जो आपके असाइनमेंट को पूर्ण रूप देता है।
तो इस तरह से आप अपने असाइनमेंट को सही तरीके से लिख सकते हैं। यदि आप हमारे द्वारा बताये गए तरीके को ध्यान में रखकर अपने असाइनमेंट को लिखते हैं तो अवश्य ही आपको अपने अध्यापक से वाहवाही मिलेगी और आप अपनी कक्षा में प्रशंसा के पात्र बनेंगे। इसी के साथ ही हम आपको असाइनमेंट लिखने के कुछ नियम भी बता देते हैं ताकि आप अपने असाइनमेंट को और ज्यादा प्रभावी बना सकें।
असाइनमेंट लिखने के नियम (Assignment rules for students in Hindi)
अभी तक आपने असाइनमेंट लिखने के तरीकों के बारे में जान लिया है लेकिन इसी के साथ ही असाइनमेंट लिखने के कुछ नियम भी होते हैं जो आपके असाइनमेंट को पूरी कक्षा में सबसे ज्यादा प्रभावी बनाने का कार्य करते हैं ताकि आप सभी के सामने एक मिसाल बन (Assignment rules in Hindi) सकें। ऐसे में यदि आप चाहते हैं कि आपके अध्यापक के द्वारा पूरी कक्षा में आपकी प्रशंसा की जाए और आपकी पीठ थपथपाई जाए तो आपको असाइनमेंट लिखने के नियमों के बारे में भी जान लेना चाहिए। आइये जाने असाइनमेंट लिखने के नियमों के बारे में।
- असाइनमेंट लिखने के नियमों में सबसे पहले तो आप इस जरुरी नियम का ध्यान रखें कि आप अपने असाइनमेंट में कहीं भी लाल रंग के पेन का इस्तेमाल नहीं करेंगे। ना ही किसी चित्र की सजावट में या ना ही किसी हैडिंग में और ना ही कहीं और। वह इसलिए क्योंकि जब अध्यापक आपके असाइनमेंट की जांच करेगा तो वह लाल पेन से करेगा और इस स्थिति में उलझन वाली स्थिति हो सकती है और आपके अंक काट लिए जा सकते हैं।
- असाइनमेंट में मुख्य तौर पर केवल काले व नीले रंग के पेन का ही उपयोग किया जाना चाहिए। हालाँकि यदि आप चित्रकारी या डायग्राम भी बना रहे हैं तो उसके लिए अलग अलग रंगों का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन केवल और केवल चित्रकारी में ही, ना की शब्दों में।
- असाइनमेंट में हर पेज पर नंबर लिखा जाना बहुत ही ज्यादा जरुरी होता है और वह नंबर आप एक पेज पर दोनों ओर लिखें अर्थात उसके आगे पीछे। इस नंबर के जरिये आप असाइनमेंट के दूसरे पेज पर बनायी गयी टेबल में हैडिंग के सामने यह भी बता सकते हैं कि उस हैडिंग से जुड़ा कंटेंट किस पेज नंबर पर दिया गया है।
- आजकल तो छात्रों में पेज को व्यर्थ करने का चलन बहुत बढ़ गया है और अध्यापक भी इसको प्राथमिकता देते हैं। यही कारण है कि अधिकतर लोग आपको पेज की एक ओर लिखने को ही कहेंगे लेकिन यह कोई नियम नहीं है। यदि ऐसा ही नियम होता तो समाचार पत्र, पुस्तकें इत्यादि सभी एक पेज पर ही छपी हुई आती। इसलिए आप पेज को व्यर्थ कर पर्यावरण को हानि पहुँचाने की बजाये, उसकी दोनों ओर लिखेंगे तो बेहतर रहेगा।
- असाइनमेंट में ना तो बहुत ही ज्यादा बड़े अक्षरों में लिखा जाना चाहिए और ना ही अत्यधिक छोटे अक्षरों में। इसे आप संतुलित भाषा में सही तरह से लिखेंगे तो यह ज्यादा प्रभावी रहेगा।
- आप अपने असाइनमेंट में केवल लिखते ही ना जाए। कहने का अर्थ यह हुआ कि आपने किसी विषय के ऊपर हैडिंग लिख दी और अब आप उस पर पैराग्राफ ही पैराग्राफ लिखते जा रहे हैं तो यह गलत है। आप उस हैडिंग के अंदर ही अन्य छोटी छोटी हैडिंग बना सकते हैं, पॉइंट्स बना सकते हैं, पैराग्राफ को तोड़ सकते हैं इत्यादि। इसका उदाहरण आप हमारे द्वारा लिखे गए इसी लेख से ही ले सकते हैं।
- आपको अपने असाइनमेंट में अपने विषय से हटकर कुछ भी नहीं लिखना है और ना ही कोई अन्य उदाहरण देना है। अब आप जो भी लिख रहे हैं तो वह आपके विषय से ही संबंधित होना चाहिए या किसी ना किसी चीज़ से उसे लिंक किया हुआ होना चाहिए।
- आप अपने असाइनमेंट में उसका रेफरेंस भी देंगे तो यह बहुत ही बढ़िया बात होगी। कहने का अर्थ यह हुआ कि आपको वह उक्त जानकारी कहाँ से मिली, उसके बारे में जानकारी देना, आपके असाइनमेंट को और ज्यादा प्रभावी बनाने का कार्य करता है।
- अंत में आपको निष्कर्ष से पहले उस विषय के बारे में आपके क्या विचार हैं या आपने उसका किस तरह से आंकलन किया है या आप उस विषय पर क्या सोचते हैं, यह भी लिख देंगे तो यह असाइनमेंट को एक तरह से पूर्ण रूप देने का ही कार्य करेगा।
तो इसी तरह के नियमों को ध्यान में रखकर आप एक सर्वश्रेष्ठ असाइनमेंट बनाने की दिशा में आग बढ़ सकते हैं। हालाँकि इस बात का ध्यान रखें कि आज के इस लेख में हमने आपको असाइनमेंट लिखने के तरीके और नियमों के बारे में ही जानकारी दी है जिनका पालन आप कर भी लेंगे किन्तु आपको जो भी अंक मिलेंगे, वह आपके द्वारा उस विषय पर की गयी रिसर्च और उस पर आपके द्वारा लिखे गए कंटेंट पर ही निर्भर करने वाले हैं।
असाइनमेंट लिखने का तरीका – Related FAQs
प्रश्न: असाइनमेंट कैसे तैयार किया जाता है?
उत्तर: असाइनमेंट तैयार करने के बारे में संपूर्ण जानकारी को हमने इस लेख के माध्यम से देने का प्रयास किया है जो आपको पढ़ना चाहिए।
प्रश्न: असाइनमेंट के पहले पेज में क्या लिखना चाहिए?
उत्तर: इसके बारे में उचित जानकारी आपको ऊपर के लेख को पढ़ कर मिल जायेगी इसीलिए ऊपर का लेख ध्यान से अंत तक पढ़िए।
प्रश्न: असाइनमेंट के लिए कवर पेज कैसे बनाएं?
उत्तर: असाइनमेंट का कवर पेज बनाने की जानकारी हमने ऊपर के लेख में दी है जो आपको पढ़ना चाहिए।
प्रश्न: आप एक असाइनमेंट कैसे शुरू करते हैं?
उत्तर: इसकी जानकारी आपको ऊपर के लेख में मिलेगी जो आपको पढ़ना चाहिए।
तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आपने असाइनमेंट लिखने के तरीके के बारे में जानकारी हासिल कर ली है। साथ ही हमने आपको असाइनमेंट क्या होता है यह क्यों दिया जाता है इसको बनाने के लिए क्या कुछ चाहिए और इसको बनाने के क्या कुछ नियम हैं इत्यादि जानकारी भी इस लेख के माध्यम से दी है ताकि आपके मन में किसी तरह की शंका शेष ना रह जाए। आशा है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा।
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ASSIGNMENT MEANING IN HINDI - EXACT MATCHES
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Definition of assignment.
- a duty that you are assigned to perform (especially in the armed forces); "hazardous duty"
- the instrument by which a claim or right or interest or property is transferred from one person to another
- the act of distributing something to designated places or persons; "the first task is the assignment of an address to each datum"
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Synonym/Similar Words : designation , assigning , naming , appointment , beat , mission , charge , homework , job , practice , post , position , stint , duty , commission , chore
Antonym/Opposite Words : discharge , unemployment , keeping
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कंप्यूटर क्या है? उसके मुख्य भाग, प्रकार और विशेषताएँ की जानकारी हिंदी में
कंप्यूटर क्या है (what is computer in hindi).
कंप्यूटर एक इलेक्ट्रोनिक डिवाइस है जो यूजर के द्वारा दिए गए इनपुट (input) को प्रोसेस करके आउटपुट (Output) देता है. कंप्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन है जो अर्थमेटिक (Arithmetic) और लॉजिकल (Logical) ऑपरेशन को परफॉर्म करता है.
दुसरे शब्दों में कहे तो “ कंप्यूटर एक ऐसी मशीन है जिसका उपयोग दिए गए निर्देशों के अनुसार डाटा को manipulate करने के लिए किया जाता है.”
Computer शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी के “COMPUTE” शब्द से हुई है. जिसका अर्थ “गणना” होता है अतः कंप्यूटर को “गणक” या “संगणक” भी कहा जाता है. पुराने समय में कंप्यूटर का उपयोग केवल गणना करने के लिए किया जाता था लेकिन वर्तमान में आप सभी जानते है कंप्यूटर का उपयोग कुछ कार्यों तक सिमित नहीं है. वर्तमान में छोटे से कार्यों से लेकर बड़े-बड़े साइंटिफिक रिसर्च में कंप्यूटर का उपयोग हो रहा है.
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पुराने समय में कंप्यूटर एक बड़े कमरे के अकार में होते थे. जो वर्तमान के हजारो कंप्यूटर के बराबर उर्जा की खपत करते थे. आजकल कंप्यूटर विभन्न साइज़ और आकार में उपलब्ध है. अब कंप्यूटर को इतना छोटा बनाया जा रहा है की उसे कलाई घडी में फिट किया जा सके.
कंप्यूटर का अविष्कार किसने किया?
उन्नीसवीं शताब्दी के शुरवात में अंग्रेज गणितज्ञ चार्ल्स बैबेज (Charles Babbage) ने एक गणना मशीन बनाने की आवश्यकता महसूस कि. और उसके बाद गणना मशीन के निर्माण में कार्य करने लगे.
सन 1822 में चार्ल्स बैबेज ने एक गणना मशीन का निर्माण किया, जिसका नाम डिफेन्स इंजन रखा गया. डिफेन्स इंजन में गियर और सॉफ्ट लगे थे. डिफेन्स इंजन भाप से चलता था.
इसके बाद सन 1833 में चार्ल्स बैबेज में डिफेन्स इंजन का विकसित रूप एनालीटिकल इंजन (Analytical Engine) तैयार किया. एनालीटिकल इंजन एक पावरफुल मशीन था जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के गणना कार्य, निर्देशों की संगृहीत करने में किया जाने लगा.
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चार्ल्स बैबेज का यह एनालीटिकल इंजन आधुनिक कंप्यूटर का आधार बना है. यही कारण है कि चार्ल्स बैबेज को कंप्यूटर के आविष्कार और कंप्यूटर का जनक कहा जाता है.
कंप्यूटर की मुख्य विशेषताएं (Strengths of Computer)
वैसे ये कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा की कंप्यूटर ने हमारे सभी जटिल कार्यों को आसन बना दिया है. आज के समय में कोई भी साधारण आदमी कंप्यूटर की विशेषता और क्षमता को असानी से बता सकता है.
- गति (Speed)
- शुध्दता (Accuracy)
- कर्मठता (Diligence)
- स्वचालन (Automation)
- सार्वभौमिकता (Versatility)
- विश्वसनीयता (Reliability)
- उच्च स्टोरेज क्षमता (High Storage Capacity)
1. गति (Speed)
Computer किसी भी कार्य को बहुत ही तेज गति से कर सकता है. कंप्यूटर कुछ ही मिली सेकंड के अन्दर गुना, भाग और जोड़,घटाव जैसे करोड़ों क्रियाएं (Operation) संपन्न कर सकता है.
2. स्वचालन (Automation)
यदि कंप्यूटर को एक बार निर्देश (Instruction) दे दिया जाये तो वह अपने काम को आटोमेटिक ही करता है. कंप्यूटर काम को शुरू करने के बाद बिना किसी सहायता या व्यवधान के काम को पूरा करता है.
3. शुध्दता (Accuracy)
Computer अपना कार्य को बिना किसी गलती के करता है. कंप्यूटर में गलती की सम्भावना नहीं होती है. कंप्यूटर कोई भी कार्य को 100% शुध्दता (Accuracy) के साथ करता है. कंप्यूटर स्वयं कभी भी गलती नहीं करता है यूजर या ऑपरेटर से गलती हो सकती है.
4. कर्मठता (Diligence)
कंप्यूटर किसी भी कार्य को लगातार घंटो, दिनों एवं महीनो तक कर सकता है. कंप्यूटर को कभी थकावट नहीं होती है. कंप्यूटर लगातार काम करने के बाद भी परिणाम में 100% शुध्दता देता है. कंप्यूटर के लिए कोई भी काम उबाऊ या रूचिपूर्ण नहीं होता है वह सभी कार्य को एक सामान योगदान देता है.
5. विश्वसनीयता (Reliability)
कंप्यूटर पूरी तरह से विश्वसनीय डिवाइस होते है. इसमें जो रिजल्ट प्राप्त होता है वह 100% सही होते है. कंप्यूटर में गलती की सम्भावना नहीं होती है. जो काम कंप्यूटर को दिया जाता है. वह पूरी तरह से बिना किसी रुकावट के पूरा करता है. कंप्यूटर इंसानों की तरह धोखा नहीं देते है.
6. सार्वभौमिकता (Versatility)
सार्वभौमिकता (Versatility) गुण के कारण कंप्यूटर का उपयोग आज पूरी दुनियां में हो रहा है. कंप्यूटर साधारण से साधारण और कठिन से कठिन सभी कार्यों को असानी से कर सकता है. कंप्यूटर का उपयोग गणितीय, व्यवसायिक, शिक्षा, सूचना, मेडिकल, खेलकूद, मौसम एवं वैज्ञानिक रिसर्च जैसे सभी क्षेत्रों में किया जा रहा है.
7. उच्च स्टोरेज क्षमता (High Storage Capacity)
वर्तमान में कंप्यूटर की स्टोरेज क्षमता असीमित है. कंप्यूटर में लाखों करोड़ों शब्दों को एक छोटी से जगह में स्टोर करके रखा जा सकता है. कंप्यूटर में विभिन्न प्रकार के डाटा, सॉफ्टवेर , इमेज, पिक्चर,टेक्स्ट, ऑडियो, विडियो, और एनीमेशन स्टोर करके रख सकता है. कंप्यूटर की सेकेंडरी मेमोरी में डाटा को स्थायी रूप में स्टोर करके रखता है.
8. मल्टीटास्किंग ( Multi-Tasking)
Computer एक समय में एक से अधिक कार्य कर सकता है. कंप्यूटर में गाना सुनते हुए डॉक्यूमेंट और इन्टरनेट में कार्य किया जा सकता है. एक ही समय में एक से अधिक कार्य किया जा सकता है.
कंप्यूटर की सीमाएं (Limitation of Computer)
हर मशीन की कुछ सीमा या लिमिटेशन होती है वैसे ही कंप्यूटर की कुछ सीमाएं है जो हम निचे बता रहे है.
- बुध्दिमता की कमी (Lack of Intelligence)
- आत्मरक्षा करने में अक्षम (Unable to Self-Protection)
- आत्मीयता में कमी (No Feeling)
- इलेक्ट्रिसिटी में निर्भर (Electricity Dependency)
1. बुध्दिमता की कमी (Lack of Intelligence)
कंप्यूटर में बुध्दिमता की कमी होती है. वह स्वयं किसी भी कार्य के लिए डिसीजन नहीं ले पाता है. जब यूजर या ऑपरेटर निर्देश देते है तभी वह कार्य करता है. उदहारण के लिए यूजर ने “2 + 3” दबाया है तो कंप्यूटर तब तक उत्तर नहीं देगा जब तक “=” न दबाया जाये. कंप्यूटर बुध्दी के हिसाब से नहीं बल्कि निर्देशों के हिसाब से कार्य करता है.
2. आत्मरक्षा करने में अक्षम (Unable to Self-Protection)
कंप्यूटर कितना भी शक्तिशाली हो उसका कण्ट्रोल कंप्यूटर यूजर या ऑपरेटर के पास होता है. कंप्यूटर अपनी आत्मरक्षा नहीं कर सकता है. कंप्यूटर गलत और सही का डिसीजन नहीं ले सकता है. कंप्यूटर को निर्देशों से मतलब होता है चाहे निर्देश गलत हो या सही. वह उसका पालन करता है. कंप्यूटर ऑपरेटर या यूजर की पहचान आई डी और पासवर्ड से करता है. यदि कंप्यूटर को नष्ट होने का इंस्ट्रक्शन दिया जाये तो वह अपने आप को भी नष्ट कर लेगा.
- Computer Port क्या है? समझाइए।
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कंप्यूटर के कितने भाग होते हैं?
कंप्यूटर मुख्यतः सॉफ्टवेर और हार्डवेयर से मिलकर बना होता है. जिनके बिना वह काम नहीं कर सकता है. यदि कंप्यूटर से सॉफ्टवेर को हटा दिया जाये, तो वह डैड (मृत) माना जाता है. उसी प्रकार यदि कंप्यूटर के किसी हार्डवेयर पार्ट को हटा दिया जाये तो भी वह काम नहीं कर सकता है. तो दोस्तों आइये देखते है कंप्यूटर के वे महत्वपूर्ण हार्डवेयर और सॉफ्टवेर पार्टस कौन से है.
कंप्यूटर के मुख्य हार्डवेयर पार्ट्स कौन से है?
कंप्यूटर के वे भाग जिनको हम देख और छू सकते है. उसे कंप्यूटर हार्डवेयर कहा जाता है. दुसरे शब्दों में कंप्यूटर के भौतिक भाग (physical part of computer) को हार्डवेयर कहा जाता है. कंप्यूटर बहुत से हार्डवेयर से मिलकर बना होता है. जो निम्नलिखित है-
- कंप्यूटर प्रोसेसर :- कंप्यूटर प्रोसेसर एक चिप होता है. जो कंप्यूटर का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग होता है. जिसे कंप्यूटर का मस्तिस्क भी कहा जाता है. जो कंप्यूटर में चल रहे सभी कार्यों (प्रोसेस) को चलाने (execute) करने का कार्य करता है.
- मेमोरी :- कंप्यूटर के इलेक्ट्रॉनिक स्टोरेज भाग को मेमोरी कहा जाता है. जिसका मुख्य कार्य हार्ड डिस्क और प्रोसेसर के बिच डाटा ट्रान्सफर करना होता है. कंप्यूटर की मुख्य मेमोरी को रैंडम एक्सेस मेमोरी (RAM) कहते है.
- मदरबोर्ड :- कंप्यूटर के मुख्य सर्किट बोर्ड को मदरबोर्ड कहा जाता है. जिसका मुख्य कार्य कंप्यूटर के सभी भाग को कनेक्शन प्रदान करना होगा है. कंप्यूटर के सभी भाग मदरबोर्ड से जुड़े होते है.
- स्टोरेज डिवाइस :- कंप्यूटर के वे भाग जिनका उपयोग कंप्यूटर डाटा को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है. उन्हें स्टोरेज डिवाइस कहते है. जैसे- हार्ड डिस्क, पेन ड्राइव. मेमोरी कार्ड इत्यादि.
- इनपुट डिवाइस :- वे सभी डिवाइस जिनका उपयोग कंप्यूटर में डाटा इनपुट करने किए लिए किया जाता है. उन्हें इनपुट डिवाइस कहा जाता है. जैसे- माउस, स्कैनर, कीबोर्ड, माइक्रोफोन, टच स्क्रीन इत्यादि.
- आउटपुट डिवाइस :- वे सभी डिवाइस जिनका उपयोग कंप्यूटर में रिजल्ट डिस्प्ले करने किए लिए किया जाता है. उन्हें आउटपुट डिवाइस कहा जाता है. जैसे- मॉनिटर, प्रिंटर, स्पीकर, प्रोजेक्टर, फैक्स इत्यादि.
- एक्सटर्नल डिवाइस :- वे सभी डिवाइस जो कंप्यूटर को चलाने के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं होते है. जो कंप्यूटर में बाहरी रूप से कनेक्ट किये जाते है. जो किसी विशिष्ट कार्य के लिए उपयोग किया जाता है. उन्हें एक्सटर्नल डिवाइस कहते है. जैसे- प्रिंटर, स्पीकर, प्रोजेक्टर, फैक्स इत्यादि.
कंप्यूटर के मुख्य सॉफ्टवेर कौन से है?
कंप्यूटर के वे भाग जिनको हम देख सकते है लेकिन छू नहीं सकते है. उसे कंप्यूटर सॉफ्टवेर कहा जाता है. दुसरे शब्दों में कंप्यूटर के लॉजिकल भाग (logical part of computer) को सॉफ्टवेर कहा जाता है. कंप्यूटर में विभिन्न प्रकार के सॉफ्टवेर होते है. जो निम्नलिखित है-
- सिस्टम सॉफ्टवेर :- वे सॉफ्टवेर जो सॉफ्टवेर और हार्डवेयर दोनों के साथ बातचीत (communicate) कर सकते है उन्हें सिस्टम सॉफ्टवेर कहा जाता है. इसका मुख्य कार्य कंप्यूटर हार्डवेयर को कण्ट्रोल और मैनेज करना होता है. जैसे- ऑपरेटिंग सिस्टम, ड्राईवर, असेम्बलर, कम्पाइलर इत्यादि.
- एप्लीकेशन सॉफ्टवेर:- वे सभी सॉफ्टवेर जो केवल सॉफ्टवेर के साथ बातचीत (communicate) कर सकते है उन्हें एप्लीकेशन सॉफ्टवेर कहा जाता है. इसका मुख्य कार्य कंप्यूटर आधारित कार्य करने के लिए होता है. जैसे- नोटपैड, वर्डपैड, कैलकुलेटर इत्यादि.
- यूटिलिटी/ टूल्स :- वे सभी सॉफ्टवेर जो कंप्यूटर की रिपेयरिंग और मेंटेनेस के लिए उपयोग में आते है उन्हें यूटिलिटी या टूल्स कहा जाता है. जैसे – एंटीवायरस, डिस्क डिफ्रेगमेंटर, डिस्क क्लीनअप इत्यादि.
कंप्यूटर के कितने प्रकार होते है?
कंप्यूटर एक multipurpose इलेक्ट्रॉनिक मशीन है. अतः कंप्यूटर को सीधे-सीधे प्रत्यक्ष रूप से बंटाना कठिन समस्या है. जिसके कारण कंप्यूटर को निम्नलिखित 3 आधार पर बाँटा गया है.
- कार्यप्रणाली के आधार पर
- उद्देश्य के आधार पर
- साइज़ के आधार पर
कार्यप्रणाली के आधार पर कंप्यूटर के प्रकार
कंप्यूटर को उसके द्वारा किये जाने वाले कार्यों के आधार पर निम्नलिखित 3 प्रकार में बाँटा गया है.
- एनालॉग कंप्यूटर (Analog Computer)
- डिजिटल कंप्यूटर (Digital Computer)
- हाइब्रिड कंप्यूटर (Hybrid Computer)
1. एनालॉग कंप्यूटर क्या है?
वे सभी कंप्यूटर जिनका उपयोग भौतिक मात्राओं को जैसे तापमान, दाब, उचाई और लम्बाई को मापने के लिए किया जाता है. उन सभी कंप्यूटर को एनालॉग कंप्यूटर (Analog Computer) कहते है.
जैसे:- स्पीडोमीटर, प्रेशर गेज, एनालॉग वोल्टमीटर इत्यादि.
2. डिजिटल कंप्यूटर क्या है?
वे सभी कंप्यूटर जिनका उपयोग डिजिटल गणनाओं के लिए किया जाता है. उन सभी कंप्यूटर को डिजिटल कंप्यूटर (Digital Computer) कहते है. डिजिटल कंप्यूटर डाटा को 0 और 1 में बदलकर इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में स्टोर करता है.
जैसे:- माइक्रो कंप्यूटर, मिनी कंप्यूटर, लैपटॉप, डेस्कटॉप, सुपर कंप्यूटर इत्यादि.
- Malware क्या है? विस्तार से समझाइए।
- Computer क्या है? विस्तार से समझाइए।
3. हाइब्रिड कंप्यूटर क्या है?
वे सभी कंप्यूटर जिनका उपयोग एनालॉग और डिजिटल दोनों के कार्यों के लिए किया जाता है. उन सभी कंप्यूटर को हाइब्रिड कंप्यूटर (Hybrid Computer) कहते है. यह कंप्यूटर एनालॉग और डिजिटल दोनों कंप्यूटर के कॉम्बिनेशन से मिलकर बना होता है. जिसमे दोनों कंप्यूटर के गुण होते है.
जैसे:- मेडिकल उपकरण, मॉडेम इत्यादि.
उद्देश्य के आधार पर कंप्यूटर के प्रकार
कंप्यूटर को उद्देश्य के आधार पर निम्नलिखित 2 प्रकार में बाँटा गया है.
- सामान्य उद्देश्य के लिए कंप्यूटर (General Purpose Computer)
- विशेष उद्देश्य के लिए कंप्यूटर (Special Purpose Computer)
1. General Purpose Computer क्या है?
वे सभी कंप्यूटर जिनका उपयोग सामान्य दैनिक जीवन में होने वाले कार्य के लिए किया जाता है. अर्थात वे सभी कंप्यूटर जिनका उपयोग घरेलु कार्य, व्यावसायिक कार्य, मशीनरी कार्य और गणितीय कार्य के लिए किया जाता है. उनको General Purpose Computer कहते है.
जैसे:- माइक्रो कंप्यूटर, मिनी कंप्यूटर, लैपटॉप, डेस्कटॉप इत्यादि.
2. Special Purpose Computer क्या है?
वे सभी कंप्यूटर जिनका उपयोग विशेष कार्यों के लिए किया जाता है. अर्थात वे सभी कंप्यूटर जिनका उपयोग वैज्ञानिक रिसर्च, अन्तरिक्ष विज्ञान, मौसम विज्ञान, शोध, एवम् उपग्रह कार्यों के लिए किया जाता है. उनको Special Purpose Computer कहते है.
आकर के आधार पर कंप्यूटर के प्रकार
कंप्यूटर को उसके के आकार के आधार पर निम्नलिखित 4 प्रकार में बाँटा गया है.
- माइक्रो कंप्यूटर
- मिनी कंप्यूटर
- मेनफ्रेम कंप्यूटर
- सुपर कंप्यूटर
1. माइक्रो कंप्यूटर क्या है?
आधुनिक युग के सबसे सस्ते और छोटे कंप्यूटर को माइक्रो कंप्यूटर कहा जाता है. ऐसे कंप्यूटर तकनिकी रूप से अन्य कंप्यूटर की तुलना में कम क्षमता वाले कंप्यूटर होते है. माइक्रो कंप्यूटर को personal computer (PC) भी कहा जाता है. इनके माध्यम से निम्न कार्य किये जाते है.
- कंप्यूटर प्रोग्राम बनाना
- गाने सुनना, विडियो देखना
- डॉक्यूमेंट तैयार करना
माइक्रो कंप्यूटर के उदहारण:- लैपटॉप, डेस्कटॉप, पाम्पटॉप इत्यादि.
2. मिनी कंप्यूटर क्या है?
मिनी कंप्यूटर की साइज़ माइक्रो कंप्यूटर से बड़ी होती है. लेकिन मेनफ्रेम और सुपर कंप्यूटर से छोटी होती है. इसलिए इसे मध्यम आकार के कंप्यूटर कहते है. मिनी कंप्यूटर की क्षमता माइक्रो कंप्यूटर से बहुत अधिक होती है.
- ISP क्या है? प्रकार को समझाइए।
- Web Browser क्या है? समझाइए।
मिनी कंप्यूटर का उपयोग छोटी से मध्यम कंपनी अपने कार्यों के लिए करते है. इसका उपयोग व्यक्तिगत रूप में नहीं किया जाता है. क्योकिं या माइक्रो कंप्यूटर से बहुत महँगी होती है. इनके माध्यम से निम्न कार्य किये जाते है.
- कर्मचारियों का payroll तैयार करना
- प्रोडक्शन की डिटेल तैयार करना
- टैक्स का विश्लेषण
मिनी कंप्यूटर के उदहारण:- PDP-8, IBM’s AS/400e, Honeywell200, TI-990 इत्यादि.
3. मेनफ्रेम कंप्यूटर क्या है?
मेनफ्रेम कंप्यूटर का आकार मिनी और माइक्रो कंप्यूटर की तुलना में बहुत बड़ा होता है. साथ ही इनकी कीमत और प्रोसेसिंग क्षमता बहुत अधिक होती है. मेनफ्रेम कंप्यूटर में एक साथ सैकड़ो यूजर कार्य कर सकते है. अनेक माइक्रो कंप्यूटर को जोड़ा जा सकता है.
मेनफ्रेम कंप्यूटर का उपयोग बहुत बड़ी बड़ी कंपनीयां जैसे बैंक और सरकारी विभाग करते है. जिसके माध्यम से निम्न कार्य किये जाते है.
- कर्मचारियों का भुकतान करना
- नोटिस भेजने का कार्य
- टैक्स का विस्तृत ब्यौरा
मेनफ्रेम कंप्यूटर के उदहारण:- IBM 4381, ICL 39 IBM zSeries, System z9 and System z10 servers इत्यादि.
4. सुपर कंप्यूटर क्या है?
सुपर कंप्यूटर अन्य सभी कंप्यूटर की तुलना में अधिक क्षमता वाले, अधिक गति वाले और अधिक स्टोरेज क्षमता वाले कंप्यूटर है. जिसमे अनेक CPU समान्तर क्रम में एक साथ कार्य करते है.
मेनफ्रेम कंप्यूटर का उपयोग बहुत बड़ी बड़ी कंपनीयां और सरकारी विभाग करते है. जिसके माध्यम से निम्न कार्य किये जाते है.
- न्यूक्लियर रिसर्च का कार्य
- वैज्ञानिक रिसर्च का कार्य
- मौसम विभाग का कार्य
सुपर कंप्यूटर के उदहारण:- CRAY-2, XMP-24, NEC-500, Summit, PARAM, इत्यादि.
एम्बेडेड कंप्यूटर क्या है? (Embedded Computer in Hindi)
विभिन्न प्रकार के मशीनों को कण्ट्रोल करने के लिए जिन कंप्यूटर का उपयोग किया जाता है उन सभी कंप्यूटर को “एम्बेडेड कंप्यूटर” कहते है. उदाहरण के लिए एम्बेडेड कंप्यूटर का उपयोग बच्चों के खिलौनों से लेकर, डिजिटल कैमरा, स्मार्ट डिवाइस, रोबोट, लड़ाकू विमान इत्यादि में किया जाता है.
- Network प्रकार को समझाइए।
- Server क्या है? प्रकार को समझाइए।
कंप्यूटर से जुड़े अन्य जानकारी
- मॉनिटर:- मॉनिटर एक Output Device है. जिसके माध्यम से कंप्यूटर रिजल्ट को डिस्प्ले करता है. मॉनिटर 3 प्रकार के होते है. CRT, LCD और LED. वर्तमान में सबसे एडवांस्ड मॉनिटर LED (Light Emitting Diode) है.
- प्रोजेक्टर:- प्रोजेक्टर एक आउटपुट डिवाइस है जिसके माध्यम से कंप्यूटर डिस्प्ले को बड़ी स्क्रीन में दिखाया जाता है. सिनेमा घर और क्रिकेट मैदान में आपने बड़े- बड़े प्रोजेक्टर को लगा जरुर देखा होगा.
- स्कैनर : – स्कैनर एक इनपुट डिवाइस है. जिसके माध्यम से किसी भी इमेज या फोटो को डिजिटल रूप में परिवर्तित किया जाता है. वर्तमान में ऑनलाइन फॉर्म भरते समय हमें विभिन्न डॉक्यूमेंट और सिग्नेचर को स्कैन कराने की जरुरत पड़ती है.
- प्रिंटर : – प्रिंटर एक आउटपुट डिवाइस है. जिसके माध्यम से कंप्यूटर में उपस्थित किसी भी सॉफ्ट कॉपी डॉक्यूमेंट को प्रिंट किया जाता है. वर्तमान में प्रिंटर ब्लैक एंड वाइट और कलर दोनों प्रकार के आते है. इन्हें कंप्यूटर से वायर और Wi-Fi के माध्यम से जोड़ते है.
- कीबोर्ड : – कीबोर्ड एक इनपुट डिवाइस है जिसके माध्यम से अक्षर और अंको को कंप्यूटर में इनपुट किया जाता है. डॉक्यूमेंट तैयार करने में कीबोर्ड का उपयोग किया जाता है. कीबोर्ड वायर्ड और वायरलेस दोनों रूप में आते है. साथ ही कीबोर्ड PS2 और USB कनेक्शन में उपलब्ध होते है.
- माउस : – माउस के इनपुट डिवाइस है. जिसे पॉइंटिंग डिवाइस भी कहा जाता है. इनके माध्यम से कंप्यूटर के आप्शन के सेलेक्ट करना, मूव करना इत्यादि कार्य किये जाते है. माउस वायर्ड और वायरलेस दोनों रूप में आते है. साथ ही माउस PS2 और USB कनेक्शन में उपलब्ध होते है.
- सीडी/डीवीडी ड्राइव : – सीडी/डीवीडी ड्राइव का उपयोग ऑप्टिकल डिस्क जैसे CD और DVD को रीड और राईट करने के लिए किया जाता है. वर्तमान में पेन ड्राइव और मेमोरी कार्ड के आने से इनका उपयोग कम हो गया है.
- फ्लॉपी डिस्क ड्राइव: – यह एक पुराना डिवाइस है. जिसका उपयोग वर्तमान में नहीं किया जाता है. यह एक पोर्टेबल चुम्बकीय मेमोरी डिवाइस है. जिसका उपयोग फ्लॉपी डिस्क को रीड और राईट करने के लिए किया जाता था.
- हार्ड डिस्क : – हार्ड डिस्क एक स्टोरेज डिवाइस है. जिसमे कंप्यूटर के सभी डाटा के साथ साथ ऑपरेटिंग सिस्टम स्टोर रहता है. यह एक परमानेंट स्टोरेज डिवाइस है. हार्ड डिस्क के 3 प्रकार होते है – PATA, SATA, SSD. जिसमे SSD (सॉलिड स्टेट ड्राइव ) वर्तमान का सबसे एडवांस्ड, हाई स्पीड हार्ड डिस्क है.
- ऑपरेटिंग सिस्टम: – ऑपरेटिंग सिस्टम एक सिस्टम सॉफ्टवेर है. जिसके माध्यम से कंप्यूटर चलता है. यदि कंप्यूटर से ऑपरेटिंग सिस्टम को हटा दिया जाये तो कंप्यूटर को मृत(Dead) माना जाता है. ऑपरेटिंग सिस्टम कई प्रकार के है. जैसे विंडोज, मैकिनटोश, लिनक्स, यूनिक्स इत्यादि.
- एंटीवायरस : – एंटीवायरस एक यूटिलिटी प्रोग्राम है. जिसके माध्यम से कंप्यूटर में उपस्थित हार्म फुल फाइल (वायरस) को स्कैन करके दूर किया जाता है. वर्तमान में कई अच्छे एंटीवायरस उपलब्ध है. जैसे क्विक हिल, नेट प्रोटेक्टर इत्यादि.
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तो दोस्तों उम्मींद करता हु यह लेख कंप्यूटर क्या है? ( What is computer in hindi), कंप्यूटर की विशेषताएं , कंप्यूटर के कितने भाग होते हैं?, सुपर कंप्यूटर क्या है, कंप्यूटर क्या है इसकी उपयोगिता एवं विशेषताएँ बताइए आपको बहुत पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख ( computer kya hai ) पसंद आया हो तो लाइक करें। लोगो को शेयर करें।
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अब दोस्तों यदि कोई ये कंप्यूटर क्या है? (What is computer in hindi) से जुड़े तथ्यों की चर्चा करता है मैक कंप्यूटर क्या है? (What is computer in hindi) तो आप आसानी से जवाब दे पाएंगे। दोस्तों कोई सवाल आप पूछना चाहते है तो निचे Comment Box में जरुर लिखे और अगर आपके को सुझाव है तो जरुर दीजियेगा। दोस्तों हमारे अन्य वेबसाइट https://www.nayabusiness.in एवं Youtube चैनल computervidya को अगर आप अभी तक सब्सक्राइब नहीं किये तो तो जरुर सब्सक्राइब कर लेवें।
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IGNOU Assignment Kaise Bnaye and Submit Kaise Kare
- April 17, 2024
Hello Students… Read This Post in English अगर आप IGNOU University में नए Student है तो Starting में इसका प्रोसेस आपके लिए Confusing हो सकता है जैसे की इग्नू एडमिशन Cycle क्या होता है IGNOU में Exams कैसे होते है IGNOU में Assignment क्या होते है और ये कैसे बनाये जाते है और कहा सबमिट किये जाते है इन सब बातो को ही हम निचे बताने जा रहे है आईये देखते है !और हाँ हर एक पॉइंट दूसरे पॉइंट से रिलेटेड है तो पोस्ट को पूरा पढ़े अच्छे से समझने के लिए !
1.IGNOU एक Open University है इसमें दो Admission Cycle/Session होते है एक January और दूसरा July मतलब IGNOU में आप Year में दो बार एडमिशन ले सकते है !
IGNOU Me Exams Kaise Hote Hai?
आईये देखते IGNOU में Exams कैसे होते है Suppose आपने Jan 2022 में Admission लिया है और आपका कोर्स Semester वाइज है जैसे BCA, MCA,MBA etc तो आपका Session Jan 2022 हुआ जिसके Exams जून 2022 में होंगे और Exams form मार्च 2022 में भरे जायगे ठीक इसी प्रकार अगर आपने जुलाई 2022 में एडमिशन लिया है तो आपका Session जुलाई 2022 है जिसके exams Dec 2022 में होंगे और Exams form Sep 2022 में भरे जायेगे !
2.अगर आपका कोर्स Year Wise है जैसे BA, B.com, B.sc,M.sc etc और आपने Jan 2022 में एडमिशन लिया है तो आपका Session Jan 2022 है जिसके Exams Dec 2022 में होंगे और Exams Form Sep 2022 में भरे जायेगे ठीक इसी प्रकार यदि आपने जुलाई 2022 में Admission लिया है तो आपके Exams जून 2023 में होंगे जिसके की Exams Form मार्च 2023 में भरे जायगे !
NOTE- IGNOU में कभी-कभी डेट Extend होती है जैसे की कभी Jan वाले Admission Feb में भी होते है तो भी आपका Session Jan ही होगा , आपको हेमशा आपका Session देखना है वो आप IGNOU Website पर अपना अकाउंट Log in करने के बाद देख सकते है ! जैसे निचे के पिक्चर में दिखया गया है !
IGNOU me Apna Session Aur Assignments Code Kaise Check Kaire?
अपना session और assignments code चेक करने के लिए आपको सबसे पहले निचे दिए गए लिंक पर लोग इन करना है लोग इन करते ही आप निचे की Picture की तरह आपका session और assignments code चेक कर सकते है ! Click Here To Log in
Kya IGNOU me Assignmets Submit Karna Jaruri Hai ?
आईये अब IGNOU Assignments के बारे में समझते है, IGNOU में Assignments Submit करना Compulsory है बिना असाइनमेंट आपकी Degree Complete नहीं होगी और उधर ही Assignments Final Mark-sheet ,में 30%(किसी-किसी Subject में 25% भी ) Marks, Assignments के add होते है मतलब आप कुछ ऐसे समझिये अगर आपके किसी subject में theory में मार्क्स 100 में से 60 है और असाइनमेंट में 100 से 80 तो 60 का 70 % =42 और 80 का 30% =24, तो आपके टोटल मार्क्स उस Subject में 42+24 =66 आएंगे 100 में से, और यही कैलकुलेशन सभी Subjects के साथ होगा तो इसलिए Assignment अच्छे से बनाना बहुत जरुरी है !
IGNOU Assignments Questions Paper kaha se Downlaod kairen ?
Assignments Questions पेपर Download करने के लिए सबसे पहले आपको निचे दिए गए लिंक पर क्लिक करना है अब यह पर एक पेज ओपन हो जायगा इस पेज में एक सर्च बॉक्स दिया हुआ है जिस पर क्लिक करके आप Assignments Questions पेपर आसानी से Download कर सकते है LINK – Download From Here
ध्यान रहे आपको वही Assignments Question पेपर Download करना है जो आपका Session है जैसे अगर आपका सेशन Jan 2021 है तो आपको July 2020 -Jan 2021 का Assignments Question पेपर Download करना है ठीक इसी प्रकार अगर आपका Session जुलाई 2021 है तो आपको जुलाई 2021 -Jan 2022 वाला Assignments Question पेपर Download करना है और उसको Solve करना है !
NOTE:-IGNOU में ईयर में एक बार Assignments Question पेपर आता है और एक ईयर में दो सेशन होते है इसलिए एक Assignment Question पेपर दो सेशन के लिए वैलिड रहता है Assignments Question पेपर में 21 -22 में 21,इसलिए लिखा जिन स्टूडेंट्स ने जुलाई 2021 सेशन में रजिस्ट्रेशन किया है वो इसको सोल्वे करेंगे और 22 इसलिए लिखा है जो स्टूडेंट्स Jan 2022 में रजिस्ट्रेशन करेंगे वो भी इसी को सोल्वे करेंगे !
IGNOU Assignments Kaise Likhe Aur Kaha Submit Kare ?
आईये अब समझते है Assignments Solve करना कैसे Start करे सबसे पहले आपको आपके Session का Assignment Question Paper IGNOU Website से Download कर लेना है फिर उसके बाद Questions के According Answers,Find Out करके लिखना स्टार्ट करना है आप असाइनमेंट लिखने के लिए A4 साइज का Page lined or planed its your choice both Use कर सकते है Assignment Solve करने के बाद आपको आपके Question Paper का black nd white print out निकलवाना है और एक आपको आपका Front पेज बनाना है और एक 5rs वाली फाइल खरीद ले इस फाइल में आपको सबसे पहले Front पेज लगाना हैं फिर Assignment का Question पेपर और फिर जो आपने लिखा है Same यही प्रोसेस सभी subjects के लिए होगा इस प्रकार आपको हर एक Subject code की file बना लेनी है अब ये फाइल Submit करने के लिए रेडी है जो की आपके स्टडी Center submit होगी ,study center का एड्रेस आप आपका IGNOU Account लोग इन करने के बाद देख सकते है ! फ्रंट पेज आप खुद से भी बना सकते है हमने निचे लिंक दिया है इसमें आप देख सकते है खुद से फ्रंट पेज कैसे बना सकते है और आप simply प्रिंट आउट भी निकलवा सकते है !
I hope की ये आर्टिकल आपके लिए Helpfull रहा होगा please इसको आपके इग्नू फ्रैंड्स के साथ शेयर करना न भूले अगर अब भी कोई Confusion है तो आप कमेंट करके पूछ सकते है !
37 thoughts on “IGNOU Assignment Kaise Bnaye and Submit Kaise Kare”
Mera December me exam h maine 23-24 ke assignment bna liye. Yhi bnana tha n please help me
inko hi submit kr dijiye
Hello can we please tell me the process of making assignment .some ideas
hii aman go through this post please
https://ignoubaba.com/how-to-write-ignou-assignment/
HI sir mera 2 sub ka assiment nahi jama huwa h to kya may next sesson me piche wale sesson ka assiment jama kr sakti hu plz help me sir
submit latest assignments for the same codes
Sir if student jo study centre choose kiya form bharte samay vahan abhi nahi hai toh voh kisi dusre study centre pe submit kar sakta hai ya koi dusre ko bhijwa ke submit ho jayega ussi study centre pe bina khud se gye
Hello sir/ma’am Jo Jan2021 session me addmission vale June 2023 ke exam de rhe h unhe kaun se year or session ke assignment likhne honge.
Submit Latest Assignments 22-23
Agr exam ka assignment phle submit kr chuke h dubara nhi dena ..or agr ek bhi br assignment submit nhi Kiya h to dena pdega ok
हैलो, सर/मैम मैने इग्नू कोर्स MAH janurary 2021 में एडमिशन लिया था । किन्हीं कारणों वश मैं उस वर्ष exam नहीं दे सकी और ना ही असाईनमेंट सबमिट कर पाई। इस वर्ष मैने June 2023 में exam का ऑनलाइन फार्म सबमिट किया है। तो मुझे कौन से वर्ष का असाईनमेंट लिख कर सबमिट करना पड़ेगा? कृपया सही मार्गदर्शन करे।
Assignments Always Current Session ke submit krne hote hai, ab aap 22-23 session ke assignemnts bnkar 30th 2023 april tk submit kr skte hai
June 2024 me
Hello mera admission IGNOU July 2021 batch m hua tha toh 2 year ka re-registration July 2022 joki ni ho paya & mne Jan 2023 m admission kraya
Toh kya m July 2023 m exam de skti hu kya Please muje koi bta skta h kya
Ji aap 2024 July me attend kar sakti hai
thanks a lot sir
Sir jo abhi Sep 2022 me M. Com. Me admitted huye hain unka Session July 2022 hoga to wo Assignment July 2022-Jan 2023 wali bnayenge Jiske code MCO 6,22,23,24 hain to wo phle 2nd Semestar k exam prepare krenge Dec. 2022 me jo honge Ya Semestar 1st k liye prepare honge or uski Assignment bnayene jinke Code MCO 1,4,5,21 hain Plz guide us as soon as possible
1st sem ke assignments bnaiye aur 1st sem ke exams ka hi prepare kijiye MCO 1,4,5,21 ke
What type of pen we can use to write assignments? Gel or Ball? Also, what colors we can use?
Hii Siddhi you can use any type of pen gel or ball or any colour pain but don’t use a red pen, also use a black pen for questions and blue for answers you can use other colours pen like green to draw the diagram etc. you can also read this article how to write ignou assignment
For question. Use a black & ans. Use a blue pen
sujriya thannk bro
Please send ma hindi assignment code MHD 1 2 3 4 5 1st year July2021 session
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Assignment Operators In C Language जानिए हिंदी में!
सी लैंग्वेज में असाइनमेंट ऑपरेटर्स क्या है (what is assignment operators in c in hindi).
Assignment operators एक बाइनरी ऑपरेटर है जिसका उपयोग वेरिएबल्स में वैल्यूज को असाइन करने के लिए किया जाता है इसके राइट और लेफ्ट साइड एक एक ऑपरेंड होता है | लेफ्ट साइड का ऑपरेंड वेरिएबल होता है जिसमे वैल्यू को असाइन किया जाता है और राइट साइड के ओपेरंडस में constant, variable और expression में से कोई भी हो सकता है |
x = 18 // right operand is a constant
y = x // right operand is a variable
z = 1 * 12 + x // right operand is an expression
Assignment operator बाकि Operators से काफी कम priority वाला ऑपरेटर है इसकी priority केवल कॉमा ऑपरेटर से ज्यादा है | बाकि सभी ऑपरेटर की priority, Assignment operator से ज्यादा ही है |
हम असाइनमेंट ऑपरेटर द्वारा एक ही वैल्यू को एक साथ कई वेरिएबल्स में असाइन कर सकते हैं।
x = y = z = 100
यहाँ x, y और z को 100 में initialize किया गया है।
C Language में असाइनमेंट ऑपरेटर को दो categories में बांटा जा सकता है |
- Simple assignment operator
- Compound assignment operators
1. Simple Assignment Operator In C
यह ऑपरेटर राइट साइड के ओपेरंडस, जो की एक वेरिएबल होता है में लेफ्ट साइड के वैल्यूज को असाइन करने के लिए उपयोग किया जाता है Simple assignment operators को (=) से रिप्रेजेंट किया जाता है |
Syntax
Variable = constant_variable_anyExpration
x = 10 // right operand is a constant
z = 1 * 15 + x // right operand is an expression
2. Compound Assignment Operators In C
Compound Assignment Operators, किसी वैरिएबल के old value का उपयोग उसके नए वैल्यू का कैलकुलेशन करने के लिए करता है और कैलकुलेशन से प्राप्त वैल्यू को उसी वेरिएबल में फिर से असाइन कर देता है
Compound Assignment Operators के उदाहरण है : ( Example: +=, -=, *=, /=, %=, &=, ^= )
इन दो statements को देखे :
यहाँ इस Example में दूसरे स्टेटमेंट में x वेरिएबल में 5 जोड़ कर फिर से x वेरिएबल में असाइन किया जा रहा है
इस तरह के ऑपरेशन को और भी ज्यादा effecient और कम समय में परफॉर्म करने के लिए सी लैंग्वेज हमें Compound Assignment Operators प्रोवाइड करता है |
Syntax of Compound Assignment Operators
variable op= expression
यहाँ op कोई भी arithmetic operators (+, -, *, /, %) हो सकता हैं।
उपरोक्त statement कार्य के आधार पर निम्नलिखित के बराबर है:
आइए अब हम कुछ महत्वपूर्ण compound assignment operators के बारे में एक-एक करके जानते है |
“ + = ” -: यह ऑपरेटर right operand को left operand में जोड़ता है और आउटपुट को left operand में असाइन करता है।
” – = ” -: यह ऑपरेटर left operand से right operand को घटाता है और परिणाम को left operand को सौंपता है।
“ * = ” -: यह ऑपरेटर left operand के साथ right operand को गुणा करता है और परिणाम को left operand को सौंपता है।
“ / = ” -: यह ऑपरेटर left operand को right operand के साथ विभाजित करता है और परिणाम को बाएं ऑपरेंड को सौंपता है।
“ % = ” -: यह ऑपरेटर दो ऑपरेंड का उपयोग करके मापांक लेता है और परिणाम को left operand को सौंपता है।
कई अन्य असाइनमेंट ऑपरेटर हैं जैसे कि लेफ्ट शिफ्ट और (<< =) ऑपरेटर, राइट शिफ्ट और ऑपरेटर (>> =), बिटवाइज़ और असाइनमेंट ऑपरेटर (& =), बिटवाइज़ OR असाइनमेंट ऑपरेटर (^ =)
List of Assignment Operator s In C In Hindi
= | sum = 101; 101 is assigned to variable sum |
+= | sum += 101; This is same as sum = sum + 101 |
-= | sum -= 101; This is same as sum = sum – 101 |
*= | sum *= 101; This is same as sum = sum * 101 |
/= | sum /= 101; This is same as sum = sum / 101 |
%= | sum %= 101; This is same as sum = sum % 101 |
&= | sum&=101; This is same as sum = sum & 101 |
^= | sum ^= 101; This is same as sum = sum ^ 101 |
Read More -:
- Arithmetic Operators In C
- Relational Operators In C
- Logical Operators In C
- Bitwise Operators In C
- Conditional Operator in C
दोस्तों आशा करता हु कि आज के इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपको सी लैंग्वेज में असाइनमेंट ऑपरेटर्स क्या है? (What Is Assignment Operators In C In Hindi) से संबंधित सभी जानकारी मिल गई होगी |
अगर आप सी लैंग्वेज के Complete Notes चाहते है तो मेरे इस पोस्ट C Language Notes In Hindi को देखे यहाँ आपको C Programming Language के सभी टॉपिक्स step by step मिल जाएगी |
दोस्तों आशा करता हु कि आपको ये पोस्ट पसंद आई होगी और आपको Assignment Operators In C के बारे में काफी जानकरी हुई होगी |
अगर आपको ये पोस्ट पसंद आया है तो इस पोस्ट को अपने अपने दोस्तों को शेयर करना न भूलिएगा ताकि उनको भी ये जानकारी प्राप्त हो सके |
अगर आपको अभी भी Assignment Operators In C Language से संबंधित कोई भी प्रश्न या Doubt है तो आप जरूर बताये मैं आपके सभी सवालों का जवाब दूँगा और ज्यादा जानकारी के लिए आप हमसे संपर्क कर सकते है |
एसी ही नया टेक्नोलॉजी ,Programming Language, Coding , C Language, C++, Python Course , Java Tutorial से रिलेटेड जानकारियाँ पाने के लिए हमारे इस वेबसाइट को सब्सक्राइब कर दीजिए | जिससे हमारी आने वाली नई पोस्ट की सूचनाएं जल्दी प्राप्त होगी |
Thank you आपका दिन मंगलमय हो |
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Jeetu Sahu is A Web Developer | Computer Engineer | Passionate about Coding and Competitive Programming
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BCA क्या है और कैसे करे: योग्यता और करियर सम्बंधित डिटेल्स अपने मोबाइल पर देखे
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BCA तेजी से बदल रहे इस डिजिटल युग में सर्वोत्तम कैरियर प्रदान करने वाला कोर्स है. BCA एक्सपर्ट के अनुसार पूरा विश्व धीरे-धीरे Digitalize हो रहा है, और दुनिया डिजिटल उपकरण के पीछे भाग रही है जिसके वजह से कंप्यूटर के फील्ड में करियर की अपॉर्चुनिटी दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है.
डिजिटल युग एक क्रांति की तरह है जो कभी खत्म नहीं होगा परिणाम स्वरूप बीसीए इस फिल्ड में सर्वोत्तम करियर प्रदान करता है जिसे पूरा कर एक बेहतर कैरियर का नींव तैयार किया जा सकता है. बीसीए एक प्रकार का माध्यम है जिसके द्वारा कंप्यूटर की दुनिया में अपना एक अनोखा पहचान बनाया जा सकता है. यह सिर्फ केरियर की नजर से ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि व्यक्तिगत तौर पर भी बहुत कारगर है.
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BCA क्या है पूरी जानकारी
बीसीए एक अंडर ग्रेजुएट प्रोफेशनल डिग्री कोर्स है जो 12वीं के बाद 3 वर्ष का होता है. BCA लगभग कंप्यूटर साइंस कोर्स के समान ही होता है. कंप्यूटर साइंस और बीसीए कोर्स के बीच का अंतर 30 से 40% तक ही होता है.
इस कोर्स के अंतर्गत कंप्यूटर साइंस के मुख्य टॉपिक्स, कंप्यूटर एप्लीकेशन, और कंप्यूटर भाषा पर विशेष ध्यान केंद्रित कराया जाता है जिसका मुख्य वजह कंप्यूटर में होने वाली सभी गतिविधियों पर सरलता से नजर बनाया जा सके, होता है.
कंप्यूटर के ट्रेंडिंग कोर्स के वजह से बीसीए कोर्स युवाओं की पहली पसंद बना हुआ है. क्योंकि अधिकांशतः यह कोर्स वैसे टोपीक को कवर करता है जो कंप्यूटर नेटवर्किंग, कंप्यूटर भाषा , वेब डेवलपिंग आदि के महत्वपूर्ण अंग होते हैं.
यहां तक दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाले टॉपिक भी शामिल होते हैं जैसे वेबसाइट डिजाइनिंग , ग्राफिक डिजाइनिंग आदि. इसलिए बीसीए कोर्स का महत्त्व अधिक हो जाता है.
BCA Course Highlights
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Undergraduate | |
3 years | |
Semester System | |
Class 12 pass | |
Merit based or Exam based | |
Software Developer, Technical Analyst, System Administrators, Programmer, Tech support and others | |
INR 70,000 – 2 Lakh | |
INR 2 – 8 Lakh | |
Data Structures, Hardware Lab, Operating Systems, Database Management, User Interface Design, UNIX Programming, Financial Management, etc. |
BCA करने के फायदे
- डिजिटल वर्ल्ड में (Compurter के फिल्ड) ग्रेजुएशन प्रोफेशनल डिग्री
- उच्चतम शिक्षा का मौका, जैसे MCA, MBA, P.Hd आदि
- सुनहरा करियर
- IT सेक्टर में करियर Opportunity
- अच्छा सैलरी पैकेज
- कोम्पुर्टर का व्यक्तिगत ज्ञान
BCA का फुल फॉर्म क्या होता है?
जिस प्रकार बीसीए एक आकर्षक कोर्स है ठीक उसी प्रकार इस कोर्स का फुल फॉर्म भी आकर्षक है. BCA का अंग्रेजी में फुल फॉर्म Bachelor of Computer Application होता है और हिंदी में “ कंप्यूटर अनुप्रयोग में स्नातक ” होता है.
- BCA = Bachelor of Computer Application
- BCA = कंप्यूटर अनुप्रयोग में स्नातक
BCA के लिए योगता
साइंस, कॉमर्स, और आर्ट्स, किसी भी स्ट्रीम से 12वीं पास किए हुए विद्यार्थी BCA कोर्स के लिए योग्य होते हैं बशर्ते 12वीं के रिजल्ट में कम से कम 45% मार्क्स हो. इस कोर्स के लिए किसी स्पेसिफिक स्ट्रीम की आवश्यकता नहीं होती है.
किसी रजिस्टर्ड बोर्ड से 12वीं पास के किए हुए विद्यार्थी बीसीए कोर्स 3 वर्ष में आसानी से पूरा कर सकते हैं. व्यक्तिगत तौर पर उम्मीदवार के अंदर सोचने, समझने, और कुछ नया करने कि साहस होनी चाहिए. वैसे उम्मीदवार बीसीए में अपना सुनहरा भविष्य स्थापित कर सकते हैं.
सरकारी और गैर सरकारी संस्थान बीसीए में एडमिशन एंट्रेंस एग्जाम और मार्क्स दोनों के आधार पर सुनिश्चित करती है. इसलिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक हो जाता है कि कौन सी संस्थान किस आधार पर एडमिशन लेती है.
आवश्यक योग्यता:
- उम्मीदवार भारत का नागरिक होना चाहिए.
- छात्र को अंग्रेजी सहित कम से कम 50% अंकों के साथ कक्षा 12 वीं या वरिष्ठ माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण होना चाहिए.
- 12वीं की परीक्षा अनिवार्य विषय के रूप में गणित के साथ उत्तीर्ण होनी चाहिए.
- न्यूनतम आयु सीमा 17 वर्ष और अधिकतम आयु 22-25 वर्ष के बीच है.
- छात्रों को आम तौर पर विभिन्न संस्थानों / विश्वविद्यालयों द्वारा आयोजित व्यक्तिगत साक्षात्कार और लिखित परीक्षा के आधार पर प्रवेश दिया जाता है.
- कुछ संस्थान/विश्वविद्यालय योग्यता के आधार पर छात्रों को प्रवेश देते हैं.
- योग्यता परीक्षा (12 वीं) में उम्मीदवार के प्रदर्शन के आधार पर योग्यता तैयार की जाती है.
BCA के लिए आवश्यक स्किल्स:
- क्रिएटिव माइंड
- 12th में कम से कम 45% मार्क्स होने चाहिए
- मैथमेटिक्स आवश्यक है
- बेसिक कंप्यूटर की जानकारी
- अंग्रेजी आवश्यक है
BCA Entrance Exam
बीसीए में आयोजित होने वाले प्रमुख एंट्रेंस एग्जाम इस प्रकार है:
अवश्य पढ़े, IAS कैसे बने
BCA की सिलेबस
इस कोर्स में वर्ष के अनुसार सिलेबस अलग-अलग होते हैं यानि प्रथम वर्ष में अलग, द्वितीय वर्ष में अलग और तृतीय वर्ष में कुछ अलग.
इसलिए अस्पष्ट नहीं पर BCA की कॉमन सिलेबस नीचे दिया जा रहा है जिससे आपकी कंसेप्ट क्लियर हो जाएगा कि बीसीए कोर्स में कौन सी सिलेबस को कवर किया जाता है.
- Visual Basic
- System Analysis & Design
- Organizational Behavior
- C Programming
- Computer Fundamentals
- Computer Laboratory & Practical Work
- Data Structure
- Database Management
- Programming using PHP
- Operating System
- World wide web
- Advanced c language programming
- Database management
- Mathematics
- Software Engineering
- Object-Oriented Programming Using C++
- Web Scripting
- Development.
सिलेबस वर्ष के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं इसलिए अधिक जानकारी के लिए ऑफिशियल वेबसाइट से जानकारी प्राप्त करें.
सेमेस्टर के अनुसार BCA सिलेबस
Hardware Lab (CIA Only) | Case Tools Lab (CIA Only) |
Creative English | Communicative English |
Foundational Mathematics | Basic Discrete Mathematics |
Statistics I For BCA | Operating Systems |
Digital Computer Fundamentals | Data Structures |
Introduction To Programming Using C | Data Structures Lab |
C Programming Lab | Visual Programming Lab |
PC Software Lab | |
Interpersonal Communication | Professional English |
Introductory Algebra | Financial Management |
Financial Accounting | Computer Networks |
Software Engineering | Programming In Java |
Database Management Systems | Java Programming Lab |
Object Oriented Programming Using C++ | DBMS Project Lab |
C++ Lab | Web Technology Lab |
Oracle Lab | Language Lab |
Domain Lab (Cia Only) | |
Unix Programming | Design And Analysis Of Algorithms |
OOAD Using UML | Client-Server Computing |
User Interface Design | Computer Architecture |
Graphics And Animation | Cloud Computing |
Python Programming | Multimedia Applications |
Business Intelligence | Introduction To Soft Computing |
Unix Lab | Advanced Database Management System |
BCA में कितने Subjects होते है?
इस कोर्स में subject कौसे के केटेगरी पर निर्भर करता है. लेकिन सामान्य स्थिति में BCA में सब्जेक्ट्स निम्न प्रकार होते है:
- Introduction to Programming using C
- Operating Systems
- Computer Graphics & Animation
- Programming in Java
- Computer Networks
- Database Management Systems
- Programming language
- database management system
- English computer organization, etc.
- B.Sc में करियर कैसे बनाए
- B.A करना क्यों महत्वपूर्ण है
- B.Com करने के फायदे
BCA कोर्स फ़ीस
बीसीए की कोर्स फीस सरकारी और गैर सरकारी संस्थान में अलग-अलग होते हैं क्योंकि इसकी फीस संस्थान के फैसिलिटी के अनुसार तय किया जाता है कि कौन सी संस्थान किस प्रकार की फैसिलिटी प्रदान करती है.
सामान्यतः गैर सरकारी संस्थान की कोर्स फीस सरकारी संस्थान से ज्यादा होती है जिसका मुख्य वजह संस्थान की सिलेबस, फैसिलिटी और शिक्षा होती है.
बीसीए की न्यूनतम कोर्स फीस प्राइवेट संस्थान में 50 हजार से 2 लाख के बीच और अधिकतम 2 लाख से 10 लाख तक होता है जबकि सरकारी संस्थान कि यहीं फीस लगभग 20 हजार से 40 हजार के बीच होता है.
कॉलेज के अनुसार bca फीस:
College Name | Fees |
---|---|
Ambedkar Institute of Technology | INR 35,000 |
Aliah University | INR 39,900 |
Maharaja Sayajirao University of Baroda | INR 54,920 |
JC Bose University of Science and Technology | INR 2,18,605 |
St Joseph’s College | INR 34,000 |
Jamia Hamdard University | INR 1,25,000 |
St Bede College | INR 44,400 |
Lalit Narayan Mishra Institute of Economic Development and Social Change | INR 1,60,000 |
Mahatma Gandhi University | INR 37,500 |
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BCA में करियर विकल्प
सरकारी और गैर सरकारी कंपनियां में बीसीए डिग्री धारको के लिए बहुत सारे वैकेंसी निकलती रहती है.
बीसीए कोर्स पूरा करने के बाद उम्मीदवार इन कंपनियों में एक अच्छे पैकेज पर नौकरी पा सकते हैं. बहुत सारे विद्यार्थी नौकरी के बजाय इंटर्नशिप पर जाना पसंद करते हैं.
जिसका मुख्य उद्देश्य और अधिक तजुर्बा पाना होता है जिसका फायदा उन्हें बाद में मिलता है क्योंकि एक एक्सपीरियंस उम्मीदवार को फ्रेशर से ज्यादा सैलरी मिलती है.
एक्सपर्ट के अनुसार बीसीए कोर्स पूरा करने के तुरंत बाद उम्मीदवार को इंटरशिप करना चाहिए क्योंकि नॉलेज के साथ-साथ एक्सपीरियंस जल्दी मिलती है.
बीसीए कोर्स पूरा करने वाले उम्मीदवार इन प्रसिद्ध जॉब प्रोफाइल से नौकरी कर सकते हैं और बेहतर सैलरी पैकेज भी पा सकते हैं.
- Accounting Dept
- Insurance Companies
- Academic Institutions
- Information system manager
- Software Developer
- Software Publisher
- Software Developer or Software Publisher
- System Administrator
- Teacher or Lecturer in any organization or institute
- Stock Markets
- Banking Sector
- Finance Manager
- Marketing Manager
- Business Consultant
- Web Designing Companies
- Systems Management Companies
- Software Developing Companies
- E-Commerce & Marketing Sector
- Computer Programmer
- Computer System Analyst
- Database Administration
यह कुछ प्रसिद्ध जॉब प्रोफाइल हैं जिस पर उम्मीदवार BCA करने के बाद जॉब करना पसंद करते हैं.
इसे भी पढ़े,
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- ट्रेवल एंड टूरिज्म क्या है
BCA करने के बाद सैलरी पैकेज
IT सेक्टर भारत का सबसे पॉपुलर इंडस्ट्री है इसमें करियर की ग्रोथ सबसे अधिक है इसलिए BCA किए हुए उम्मीदवार को आईटी सेक्टर में नौकरी आसानी से मिल जाता है. भारत टॉप आईटी सेक्टर होने के साथ-साथ इस फिल्ड में ज्यादा जॉब देने वाला इंडस्ट्री भी है.
इसलिए बीसीए धारकों को बैचलर डिग्री पूरा करने के बाद आईटी सेक्टर में आसानी से जॉब मिल जाता है. फ्रेशर लेवल पर अनुमानित सैलरी 8000 से 16000 के बीच होता है जबकि एक्सपीरियंस लेवल पर अनुमानित सैलरी 20000 से 60000 तक होता है.
सैलेरी पैकेज कंपनी के स्ट्रक्चर पर भी निर्भर करता है कि कंपनी कौन सी सर्विस प्रोवाइड करती है अगर Google, Microsoft, Facebook, IBM आदि की बात की जाए तो इनकी सैलरी ऊपर बताया गए सैलरी से, 2 से 3 गुना अधिक भी हो सकते हैं.
- फ्रेशर लेवल पर अनुमानित सैलरी पैकेज= 8 हजार से 16 हजार तक
- एक्सपीरियंस लेवल पर अनुमानित सैलरी = 20 हजार से 60 हजार तक
जॉब profile के अनुसार BCA की सैलरी:
BCA Job | Average Salary |
---|---|
Software Developer | INR 5 प्रति वर्ष |
System Analyst | INR 6 प्रति वर्ष |
Web Designer | INR 3 प्रति वर्ष |
Technical Associate | INR 2.15 प्रति वर्ष |
Customer Support Technician | INR 2.5 प्रति वर्ष |
IT Technical Support Developer | INR 3.15 प्रति वर्ष |
BCA Course के लिए प्रमुख कॉलेज और यूनिवर्सिटी
- गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली
- यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एनर्जी एंड स्टडीज, देहरादून
- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, मुम्बई
- अम्बेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली
- रुहेलखंड यूनिवर्सिटी, बरेली
- छत्रपति शाहूजी महाराज यूनिवर्सिटी, कानपुर
- मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज, चेन्नई
- लखनऊ यूनिवर्सिटी
- इलाहाबाद यूनिवर्सिटी
- माखनलाल चतुर्वेदी यूनिवर्सिटी, भोपाल
- MS यूनिवर्सिटी, बड़ोदरा
- जेवियर्स इंस्टीट्यूट ऑफ कंप्यूटर एप्लिकेशन, अहमदाबाद
- द आक्सफोर्ड कॉलेज ऑफ साइंस, बैंगलोर
- प्रेसिडेंसी कॉलेज, बैंगलोर
- टेक्नो इंडिया यूनिवर्सिटी, कोलकाता
- देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी, इंदौर
पूछे जाने वाले प्रश्न: FAQs
बीसीए करने में लगभग 50 हजार से 2 लाख रूपये तक का खर्च आता है. सरकारी कॉलेज और प्राइवेट कॉलेज में फ़ीस अलग-अलग होता है. प्राइवेट कॉलेज बीसीए की फ़ीस इससे अधिक भी हो सकता है.
बीसीए करने के लिए सबसे पहले किसी भी मान्यता प्राप्त कॉलेज से 12वी पास करना अनिवार्य है तथा 12वी में कम से कम 50% मार्क्स होना अनिवार्य है.
बीसीए में प्रोग्रामिंग लैंग्वेज, Database management system, Basic mathematics, बेसिक ऑपरेटिंग सिस्टम आदि जैसे सब्जेक्ट्स होते है.
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Internship Kya Hai और कैसे करें – Internship in Hindi
Internship Kya Hai | internship meaning in hindi | internship kya hota hai | what is internship in hindi | internship kaise kare | internship ke fayde
Table of Contents (विषयसूची)
इंटर्नशिप क्या है? और कैसे करें? (What is Internship in Hindi)
Internship Kya Hai? जब कोई Students, कोई College या University में अपना पढ़ाई कर रहा होता है तो उसके मन में अपने भविष्य को लेकर काफी सारे सवाल आते हैं, जिसमें से सबसे मुख्य सवाल होते हैं की ऐसा क्या किया जाए कि पढ़ाई खत्म होने के बाद अपने मनपसंद के क्षेत्र में व्यवसाय या नौकरी कर सकें। और आजकल यह सबको पता चल गया है कि अपने मनपसंद के क्षेत्र में व्यवसाय या नौकरी करने के लिए सिर्फ किताबी Knowledge का होना काफी नहीं है।
दोस्तों आजकल Job के क्षेत्र में काफी Competition देखने को मिल रहा है अब हर किसी के लिए अपने मनपसंद के क्षेत्र में Job पाना आसान नहीं रह गया है अब आपको अच्छा Job पाने के लिए आपके पास सिर्फ Degree रहना ही काफी नहीं है आपके पास किताबी Knowledge के साथ-साथ कुछ Practical Knowledge भी होना बहुत जरुरी है क्योंकि अब पढाई पूरी करने के बाद जब भी आप कोई कंपनी या इंडस्ट्री में Job के लिए Apply करते हैं या कोई Internview देने जाते हैं तो कंपनी यह देखती है की आपके पास आपकी Degree के अलावा और कौन-कौन सा Knowledge है यानी आपके पास पढ़ाई के Knowledge के साथ-साथ कोई Practical Knowledge है कि नहीं।
दोस्तों आजकल Job के क्षेत्र में Competition इतना बढ़ गया है कि यदि कोई कंपनी या इंडस्ट्री में अगर एक पोस्ट के लिए भी Vavancy निकालती है तो उसके लिए सैकड़ों Candidates आवेदन करते हैं ऐसे में कंपनी सबसे बेस्ट Candidate को ही अपने कंपनी में Job देना चाहेगी और इसके लिए आपके पास आपके किताबी Knowledge के साथ-साथ कुछ Practical Knowledge का भी होना बहुत जरूरी है।
यही सब कारणों के कारण आजकल Internship का Demand काफी तेजी से बढ़ने लगा है। यहां तक कि बहुत सारे कोर्स में Internship को Compulsory कर दिया गया है यानी यदि आपको डिग्री चाहिए तो पढ़ाई के दौरान आपको Internship करना ही होगा। आप इंटर्नशिप करेंगे तभी आपको डिग्री दिया जाएगा।
अब जब बहुत सारे Courses में Internship को Compulsory कर दिया गया है यानी पढ़ाई के क्षेत्र में Internship को इतना महत्व दिया जा रहा है तो ऐसे में आपके मन में इंटर्नशिप को लेकर काफी सारे सवाल आ रहे होंगे जैसे की
- इंटर्नशिप क्या है?
- इंटर्नशिप के फायदे क्या है? (Benefits of Internship)
- इंटर्नशिप कितने प्रकार के होते हैं?
- इंटर्नशिप कैसे कर सकते हैं?
- अपने लिए सही इंटर्नशिप का चयन कैसे करें? आदि
दोस्तों अगर आपके मन में भी इंटर्नशिप क्या होता है? ( Internship in Hindi) को लेकर इसी प्रकार के प्रश्न है तो यह Blog आपके लिए काफी Helpfull रहेगा और मुझे पूरा विश्वास है कि इस Blog को पूरा पढ़ने के बाद आपके मन में internship kya hota hai को लेकर जितने भी सारे Doubts हैं सारे Doubts Clear हो जाएंगे और आपको इंटर्नशिप क्या है? से जुड़ी किसी भी प्रश्न के लिए और कोई दूसरा Blog नहीं पढ़ना पड़ेगा।
दोस्तों इंटर्नशिप के बारे कुछ भी जानने से पहले हमलोग यह जान लेते है की इंटर्नशिप को हिंदी में क्या कहा जाता है? यानी इंटर्नशिप मीनिंग इन हिंदी (Meaning of Internship in Hindi)
इंटर्नशिप को हिंदी में क्या कहते हैं? (Internship meaning in hindi)
इंटर्नशिप को हिंदी में क्या कहा जाता है की बात करे तो हिंदी में इंटर्नशिप को “प्रशिक्षुता” कहा जाता है।
सभी प्रकार के नौकरी, शिक्षा, तकनिकी, व्यापर, घरेलु उपचार, पैसे कमाए आदि आदि से जुड़े जानकारी के लिए हमारे टेलीग्राम ग्रुप से जुड़े।
तो चलिए दोस्तों अब हम लोग पूरा Details के साथ जानते हैं कि आखिर यह internship kya hota hai? ( what is internship in hindi )
इंटर्नशिप क्या है? (Internship kya hota hai)
Internship Kya Hai? की बात करें तो Internship एक प्रकार का Training Program है जिसमें आप अपनी Interest के हिसाब से किसी Industry या Company में काम कर सकते हैं और उस काम के बारे में जान सकते हैं।
आसान भाषा में Internship Kya Hai? (Internship in Hindi) की बात करें तो इंटर्नशिप में आप Job करने से पहले Job के लिए तैयार होते हैं! Internship की मदद से आप क्लास रूम से बाहर निकलकर किसी Industry या Company में काम करके Practical Knowledge प्राप्त कर सकते हैं। आप जिस क्षेत्र में भी पढ़ाई किए हैं उस क्षेत्र में Internship करके आप Theory Knowledge के साथ-साथ Practical Knowledge भी प्राप्त कर सकते हैं।
कुछ कंपनियां चाहती है कि आप वहां पर काम करें पर आपको Salary नहीं दिया जाएगा। आपको काम करने का मौका मिल जाएगा और कंपनी को काम करने के लिए आदमी मिल जाएगा। ऐसे में Internship, कंपनी और Students दोनों के लिए फ़ायदेमंद रहती है। वही आपको बता दें कि कुछ कुछ कंपनियां ऐसे भी है जो इंटर्नशिप के दौरान Students को Stipend के रूप में Salary भी देती है।
Internship प्रायः College, University के छात्र छात्राओं को कराया जाता है जो व्यवसाय या नौकरी के क्षेत्र में नए होते हैं यानी Fresher Candidates को इंटर्नशिप करने का मौका दिया जाता है ताकि वह आगे जाकर जिस भी व्यवसाय या नौकरी के क्षेत्र में जाए उसके बारे में पहले ही जान सकें! आपको बता दें कि आमतौर पर इंटर्नशिप 3 से 6 महीने का होता है।
Internship, Fresher candidates के लिए एक ऐसा अवसर है जिसमें वह किसी व्यवसाय या नौकरी के क्षेत्र में Permanent Job करने से पहले उस Job के बारे में जान सकें यानी Internship में स्टूडेंट को Classroom से बाहर निकलकर वह सारी चीजें Real Experiences के साथ करने का मौका मिलेगा जो अभी तक केवल वह क्लास रूम में बैठकर सिर्फ किताबों में ही पढ़ा है।
आजकल बहुत सारी ऐसी कंपनी है जो यह मानने लगी है कि उनके कंपनी में Job करने के लिए सिर्फ किताबी Knowledge का होना काफी नहीं है किताबी Knowledge के साथ-साथ Practical Knowledge का होना भी बहुत जरूरी है। Students के इसी कमी को दूर करके उन्हें Practical Knowledge दिलाने में Internship एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
इंटर्नशिप के फायदे क्या है? (Benefits of Internship in Hindi)
दोस्तों जैसा कि हम लोग Internship Kya Hai? के बारे में जाने, अब आपके मन में यह प्रश्न आ रहा होगा कि इंटर्नशिप के फायदे क्या है? तो इंटर्नशिप के फायदे (Benefits of Internship) की बात करें तो यह एक Fresher Candidates के लिए काफी फ़ायदेमंद होती है।
Practical Knowledge मिलता है
Internship का सबसे अच्छा फायदा यह है कि इसमें Students को Classroom की किताबी दुनिया से बाहर निकलकर Practical Knowledge प्राप्त करने का मौका मिलता है। इसमें Students अपने Interest के हिसाब से किसी भी Companies या Industries में जाकर वहां के काम के बारे में जान सकते हैं और सीख सकते हैं यानी यू कहे तो इंटर्नशिप में Students को Real Work Experiences यानी वास्तविक कार्य अनुभव प्राप्त करने का मौका मिलता है।
Job पाने में मदद करती है
इंटर्नशिप का सबसे बड़ा फायदा है या यूं कहे तो अधिकतर Students अच्छी Job पाने के मकसद से ही Internship करते हैं। तथा इंटर्नशिप शुरुआती दिनों में एक Fresher Student को कोई Job दिलाने में काफी मददगार भी साबित हो रही है।
Communication Skill Develop होता है
जब आप कोई Company या Industry या कोई संस्था में Internship के लिए जाते हैं तो वहां आपको अलग-अलग लोगों से मिलने का मौका मिलता है लोगों के साथ किस प्रकार व्यवहार करना चाहिए, कैसे बातें करना चाहिए, अपने से सीनियर से किस प्रकार बातें करना चाहिए, ये सब का जानकारी मिलता है जिससे आपका Communication Skill काफी Improve होता है।
नई-नई चीजें सीखने को मिलती है
इंटर्नशिप करने के दौरान Students को काफी कुछ नई नई चीजें सीखने को मिलती है जो शायद वे Classroom में पढ़ाई के दौरान कभी नहीं सीख पाते, और इसका फायदा यह होता है कि नई नई चीजें सीखने के साथ ही उन्हें नई नई चीजें करने के लिए प्रोत्साहन भी मिलते रहता है।
पढ़ाई के साथ कमाई का मौका
बहुत सारी ऐसी भी Company या Industry या संस्था है जो Students को इंटर्नशिप के दौरान काम करने के लिए Stipend के रूप में पैसा भी देती है जिससे Students को पढ़ाई के साथ-साथ पैसा कमाने का भी मौका मिल जाता है।
Job Enviroment के बारे में पता चलता है
इंटर्नशिप के दौरान Students को Job Enviroment यानी किसी Company या Industry में नौकरी के माहौल के बारे में पता चलता है यानी वह आगे चलकर जो काम करने वाले हैं उसके बारे में उसे पहले से ही जानकारी मिल जाती है कि उस काम में उसे क्या करना होगा, उसे कितना घंटे काम करना होगा, उसे किसके Under काम करना होगा। ऐसी अनेक सारी बातों की जानकारी उसे पहले से ही पता चल जाते है। जिससे उन्हें यह पता चल जाता है कि आगे जाकर जो वह काम करने वाले हैं वह काम उसके लिए Perfect है कि नहीं।
आत्मविश्वास बढ़ता है
इंटर्नशिप के दौरान स्टूडेंट्स को Practical चीजें सीखने और जानने का मौका मिलता है जिससे उनका आत्मविश्वास यानी Self-Confidence बढ़ता है! और इससे पता चलता है कि Office में Confidence के साथ किस प्रकार काम किया जाए।
इंटर्नशिप कितने प्रकार के होते हैं? (Type of Internship in Hindi)
दोस्तों जैसा कि हम लोग Internship Kya Hai? (Internship in Hindi) के बारे में जाने, इंटर्नशिप के फायदे क्या है? इसके बारे में भी जाने तो चलिए अब हम लोग जानते हैं कि इंटर्नशिप कितने प्रकार के होते हैं! (Type of Internship)
इंटर्नशिप कितने प्रकार के होते हैं की बात करें तो इंटर्नशिप कई प्रकार के होते हैं जिसमें से पूछ प्रमुख हैं
1- Cooperative Education
Cooperative Education यानी सहयोगी शिक्षा Internship का एक प्रकार है जिसमें Company, College और Students के बीच तीन तरफा संबंध होता है! इसमें Company और College के बीच एक प्रकार का करार रहता है जिसमें Company, College के Students को अपने कंपनी में इंटर्नशिप करने का मौका देती है जिससे Students को Practical Knowledge प्राप्त करने का मौका मिल जाता है और कंपनी को काम करने के लिए आदमी मिल जाता है।
2- Practicum
इसमें Students को कॉलेज में या कई बार कॉलेज से बाहर किसी Organization में किसी खास Project पर काम करने के लिए कहा जाता है इसमें कुछ Students का एक टीम बनाकर एक निश्चित समय सीमा के अंदर उस प्रोजेक्ट पर खुद से काम करके पूरा करने के लिए कहा जाता है ताकि उन्हें Practical Knowledge प्राप्त हो सके! Practicum एक प्रकार का कॉलेज कोर्स ही होता है।
3- Externship
Externship एक Short Time Period के लिए होता है यह मुख्यतः 1 से 3 सप्ताह के लिए होता है इसमें Students को एक Short Time Period के लिए किसी Company या Industry या संस्था में वहां के काम के बारे में जानने का मौका मिलता है इसमें Students को अपने हाथों से काम करने का मौका ना के बराबर मिल पाता है यह एक प्रकार का Industrial Visit Tour की तरह होता है।
4- Apprenticeship
Apprenticeship में Students को किसी Company या Industry या संस्था में Practical Knowledge के साथ-साथ Theory Knowledge भी दिया जाता है! इसमें 70-80% Practical Knowledge और बाकी का 20-30% Theory Knowledge भी दिया जाता है।
दोस्तों अगर आपको अपरेंटिस के बारे में पूरी details जानकारी चाहिए की अपरेंटिस क्या है? अपरेंटिस के फायदे क्या है? अपरेंटिस कैसे करे? तो आप नीचे दिए गए लिंक पे क्लिक करके अपरेंटिस के बारे पूरी जानकारी प्राप्त कर सकते है।
अप्रेंटिसशिप मुख्यतः 1 से 2 साल का होता है और कुछ कुछ इससे ज्यादा समय के लिए भी होता है ज्यादातर Students अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद Apprenticeship करते हैं।
दोस्तों अगर आपको अप्रेंटिसशिप के बारे में पूरी जानकारी Details के साथ चाहिए तो आप नीचे दिए गए Link पर Click करके अप्रेंटिसशिप के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
अपरेंटिस क्या है? और कैसे करे?
इंटर्नशिप कैसे कर सकते हैं? (How To Do Internship in Hindi)
दोस्तों जैसा कि हम लोग Internship Kya Hai? (Internship in Hindi) के बारे में जाने और अब अगर आपको इंटर्नशिप करने का मन कर रहा है तो चलिए अब हम लोग जानते हैं कि आप इंटर्नशिप किस प्रकार कर सकते हैं। (Internship Kaise Kare)
कॉलेज की मदद से
दोस्तों बहुत सारे बड़े-बड़े College और University में बहुत सारे बड़े-बड़े कंपनी खुद आते हैं और Students को इंटर्नशिप Provide करते हैं यानी कंपनी खुद College या University में आकर Students को अपने कंपनी में इंटर्नशिप करने का मौका देती है इसके लिए कंपनी की ओर से कुछ आदमी College या University में आते हैं और Students का Interview लेते हैं और फिर जो Students इंटरव्यू में Qualify होते हैं उन्हें अपने कंपनी में इंटर्नशिप करने का मौका देती है।
स्वयं किसी कंपनी में आवेदन करके
और यदि आपका कॉलेज आपको कहीं से इंटर्नशिप करने का Offer नहीं दे रही है तो आप खुद से भी इंटर्नशिप कर सकते हैं इसके लिए आपको सबसे पहले यह पता लगाना होगा की आपके आसपास कौन सा कंपनी इंटर्नशिप करने का मौका देती है और फिर आप उस कंपनी में इंटर्नशिप करने के लिए आवेदन दे सकते हैं और यदि आप कोई ऐसा कंपनी ढूंढ लेते हैं जहां आपका कोई Relatives है तो आपके लिए इंटर्नशिप करना और भी Easy हो जाता है।
Online माध्यम से
इसके साथ ही आप Online भी Internship के लिए आवेदन कर सकते हैं बहुत सारे ऐसे Websites है जहां पर इंटर्नशिप करने का Offer दिया जाता है उसकी मदद से आप अपने लिए Internship ढूंढ सकते हैं।
नीचे कुछ वेबसाइट के नाम दिए गए हैं जहां से आप अपने लिए इंटर्नशिप के लिए आवेदन कर सकते हैं।
www.internshala.com
www.internships.com
www.internshipfinder.com
सही इंटर्नशिप का चयन कैसे करें?
दोस्तों जैसा कि हम लोग Internship Kya Hai? इंटर्नशिप के फायदे क्या है? (Benefits of Internship in hindi) इंटर्नशिप कितने प्रकार के होते हैं? Internship Kaise Kare? आदि के बारे में जाने तो चलिए अब हम लोग जानते हैं कि आप खुद के लिए एक सही Internship का चयन कैसे कर सकते हैं।
दोस्तों जब भी आप अपने लिए इंटर्नशिप का चयन करें तो अपनी खुद की रुचि यानी Interest के हिसाब से इंटर्नशिप का चयन करें! अपने दोस्तों या किसी और का देखा देखी में कभी भी अपने लिए इंटर्नशिप Choose ना करें। आपको जिस क्षेत्र में Interest है और आगे जाकर आप जिस क्षेत्र में काम करना चाहते हैं उसी क्षेत्र में इंटर्नशिप करें।
इंटर्नशिप से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें
- अधिकतर बहुत सारी कंपनी में जहां आप इंटर्नशिप के लिए जाते हैं वहां कोई ना कोई एक Special Person होता है जो आपको शुरुआत में सारी चीजें बताता है या समझाता है कि आपको किस प्रकार काम करना है! आप उनके Under काम करके वहां के Work के बारे में जानते हैं।
- वहीं बहुत सारी कंपनी ऐसे भी है जहां कोई Special Person नहीं होता है आपको दूसरे Workers का काम देख देख कर और उनसे पूछ पूछ कर ही सीखना पड़ता है।
- दोस्तों आपको बता दें कि इंटर्नशिप करने के लिए ऐसा जरूरी नहीं है कि आपको Higher Qualification की जरूरत है अगर आप 10th या 12th पास है तो भी आप अपनी Interest के हिसाब से Internship कर सकते हैं।
- दोस्तों इंटर्नशिप Full Time और Part Time दोनों प्रकार के होते हैं! अगर आपको इंटर्नशिप करने के लिए ज्यादा समय नहीं मिल पा रहा है तो आप Part Time Internship भी कर सकते हैं।
इंटर्नशिप का उद्देश (Aim of Internship in Hindi)
दोस्तों हम लोग जो कॉलेज या यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं और फिर पढ़ाई Complete करने के बाद जब हम कोई इंडस्ट्री या कंपनी में Job करने जाते हैं तो कॉलेज या यूनिवर्सिटी के पढ़ाई और इंडस्ट्री या कंपनी के काम यह दोनों के बीच काफी बड़ा अंतर हमें देखने को मिलता है।
हम लोगों को कॉलेज या यूनिवर्सिटी में Theory Knowledge तो काफी अच्छा दिया जाता है पर वह किसी इंडस्ट्री या कंपनी में काम करने योग्य नहीं बनाता है कॉलेज या यूनिवर्सिटी में ज्यादातर Theory Khowledge दिया जाता है और Practical Knowledge ना के बराबर दिया जाता है जिससे जब कोई Fresher Candidates कोई इंडस्ट्री या कंपनी में काम करने जाते हैं तो उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
इंटर्नशिप का उद्देश्य इसी अंतर को कम करना है ताकि Students को अपने पढ़ाई के दौरान ही Theory Khowledge के साथ-साथ Practical Knowledge मिल सके तथा किसी इंडस्ट्री या कंपनी के Job Enviroment, Job Cultulture आदि के बारे में जान सके।
Internship Frequently Asked Questions (FAQs)
इंटर्नशिप किसे कहते है.
Internship एक प्रकार का Training Program ही है जिसमें आप अपनी Interest के हिसाब से किसी Industry या Company में काम कर सकते हैं और उस काम के बारे में जान सकते हैं! इंटर्नशिप में आप Job करने से पहले Job के लिए तैयार होते हैं! इंटर्नशिप की मदद से आप क्लास रूम से बाहर निकलकर किसी Industry या Company में काम करके Practical Knowledge प्राप्त कर सकते हैं।
इंटर्नशिप के लाभ
Practical Knowledge मिलता है! Job पाने में मदद करती है! Communication Skill Develop होता है! नई-नई चीजें सीखने को मिलती है! पढ़ाई के साथ कमाई करने का मौका मिलता है! Job Enviroment के बारे में पता चलता है! आत्मविश्वास बढ़ता है।
मैं एक इंटर्नशिप कैसे ढूंढ सकता हूं?
इंटर्नशिप आप Offline और Online दोनों माध्यम से ढूंढ सकते हैं! Offline माध्यम से इंटर्नशिप ढूंढने के लिए आपको सबसे पहले यह पता लगाना होगा की आपके आसपास कौन सा कंपनी इंटर्नशिप करने का मौका देती है और फिर आप उस कंपनी में इंटर्नशिप करने के लिए आवेदन दे सकते हैं| वहीं अगर आपको Online माध्यम से इंटर्नशिप ढूंढना है तो बहुत सारे ऐसे Websites है जहां पर इंटर्नशिप करने का Offer दिया जाता है उसकी मदद से आप अपने लिए Internship ढूंढ सकते हैं।
इंटर्नशिप कब करना चाहिए?
इंटर्नशिप कॉलेज छुट्टी के समय में करना ज्यादा अच्छा रहता है क्योंकि इस समय आपका क्लास भी नहीं छूटता है और आपका इंटर्नशिप भी हो जाता है यानी कॉलेज छुट्टी के समय में इंटर्नशिप करने से आपके पढ़ाई में कोई फर्क नहीं पड़ता है।
इंटर्नशिप के प्रकार
Cooperative Education, Practicum, Externship, Apprentice, etc.
इंटर्नशिप को हिंदी में क्या कहते हैं?
इंटर्नशिप को हिंदी में प्रशिक्षुता कहा जाता है।
इंटर्नशिप कितने दिनों का होता है?
इंटर्नशिप आमतौर पर 3 से 6 महीने का होता है।
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8 thoughts on “Internship Kya Hai और कैसे करें – Internship in Hindi”
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यह लेख विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज, इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली में कानून के छात्र Yash Sharma द्वारा लिखा गया है। इस लेख में कानूनी समझौते या कानूनी डीड के सभी बुनियादी नियमों और बुनियादी बातों को इसके घटकों के साथ शामिल किया गया है। इस लेख का अनुवाद Shreya Prakash द्वारा किया गया है।
Table of Contents
हम अपने जीवन में हर दिन कई उदाहरणों में अनुबंधों (कॉन्ट्रैक्ट्स) और डीड्स का सामना करते हैं। एक कानूनी समझौता और एक डीड दोनों कानून की अदालत में लागू करने योग्य हैं। ये दस्तावेज़ अनुबंध में उल्लिखित कानूनी दायित्वों में बंधे पक्षों के अधिकारों और उपायों की रक्षा करते हैं। किसी भी पक्ष द्वारा व्यक्तिगत उपयोग के लिए विवाद या अनुबंध के गलत उल्लंघन के लिए कोई गुंजाइश या बचाव का रास्ता नहीं छोड़ना चाहिए। एक कानूनी समझौता और एक डीड अपने उपयोग में थोड़ा भिन्न होता है, लेकिन इन दस्तावेजों के प्रारूपण (ड्राफ्टिंग) के मूल सिद्धांत समान रहते हैं। इस लेख में, एक समझौते या डीड का मसौदा (ड्राफ्ट) तैयार करने के बुनियादी और महत्वपूर्ण मौलिक नियमों को अलग से संकलित (कॉम्प्लाई) किया गया है। अनुबंध के लक्ष्य या उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उल्लिखित सभी तत्व या नियम महत्वपूर्ण हैं।
समझौतों और डीड के बीच संक्षिप्त अंतर
भारतीय कानूनों में, भारतीय अनुबंध अधिनियम (इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट), 1872 में एक समझौते की अवधारणा (कॉन्सेप्ट) का उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि एक प्रस्ताव तब बनता है जब एक प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है और यह एक वादा बन जाता है। एक समझौते में कानूनी प्रवर्तनीयता (एनफोर्सेबिलिटी) का अभाव है। एक समझौते का बहुत ही मूल अर्थ कानूनी रूप से उन्हें विचार के लिए बाध्य करने के लिए एक समझौते का प्रस्ताव और स्वीकार करना है। दूसरे शब्दों में, एक कानूनी समझौते को एक अनुबंध भी कहा जा सकता है जो कानूनी रूप से लागू करने योग्य है।
एक अनुबंध के लिए विचार आवश्यक है प्रत्येक पक्ष को वादे के अनुसार कुछ कार्य करने से परहेज करना पड़ता है या कुछ करने के बदले में कुछ देना होता है। विचार के संदर्भ में, एक डीड एक कानूनी समझौते से अलग होता है क्योंकि इसके वैध होने के लिए कानूनी डीड में विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। एक डीड अपने आप में पक्ष द्वारा एक गंभीर संकेत है कि वादे को पूरा करने के लिए बाध्य होने का इरादा ज़रूरी है।
समझौतों का प्रारूपण (ड्राफ्टिंग ऑफ़ एग्रीमेंट)
एक समझौता तब बनता है जब दो पक्ष एक वादा करते हैं और एक अनुबंध में शामिल होने का निर्णय लेते हैं। भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के अनुसार, पक्षों को एक वास्तविक विचार (बोनाफाइड थॉट) के साथ प्रस्ताव को स्वीकार करके अनुबंध में शामिल होने के लिए कानूनी रूप से सक्षम होना चाहिए। यह समझौता पक्षों को एक पारस्परिक (क्विड प्रो क्वो) संबंध में बांधता है, जहां उन दोनों को अपनी देनदारियों (लायबिलिटीज) का निर्वहन करना पड़ता है जैसा कि उनके द्वारा वादा किया गया था या स्वीकार किया गया था।
भारतीय कानून के अनुसार, एक व्यक्ति अनुबंध करने के लिए सक्षम है यदि वह भारतीय बहुमत अधिनियम (इंडियन मेजॉरिटी एक्ट), 1875 द्वारा परिभाषित किया गया है और स्वस्थ दिमाग का है और किसी भी कानून से प्रतिबंधित नहीं है। अच्छा प्रारूपण महत्वपूर्ण है क्योंकि अनुबंध केवल एक समझौता नहीं है बल्कि यह दोनों पक्षों के अधिकारों की रक्षा करता है और उन्हें कानूनी उपचार भी देता है। एक समझौता दोनों पक्षों को कुछ जिम्मेदारियों, शर्तों, शिष्टाचार, मुद्दों आदि से बांधता है। इसीलिए प्रारूपण पूर्ण-प्रमाण होना चाहिए ताकि कोई भी अंत ढीला न छूटे जिसके परिणामस्वरूप कोई नुकसान हो सकते हैं।
एक कानूनी दस्तावेज में सामग्री के प्रारूपण में कुछ अवयव (इंग्रेडिएंट्स) होंगे-
- भविष्यवादी।
- सीधे और छोटे वाक्य।
अनुबंध के आवश्यक घटक (एसेंशियल कंपोनेंट्स ऑफ़ कॉन्ट्रैक्ट)
प्रत्येक कानूनी समझौते के कुछ आवश्यक घटकों का उल्लेख इस प्रकार है: –
पक्षों को परिभाषित करना
इसका मतलब है कि पक्षों को उनके चरित्र, वित्तीय स्थिरता (फाइनेंशियल स्टेबिलिटी), मानसिक स्वास्थ्य और कानूनी क्षमता के संदर्भ में मान्य किया जाना चाहिए। यह इस बात की भी पुष्टि करता है कि कोई पक्ष शोषणकारी (एक्सप्लॉयटिव), अनैतिक (अनेथिकल) या किसी की जिम्मेदारी के प्रति अनिच्छुक नहीं हो सकती है। यदि किसी एक व्यक्ति द्वारा किसी एक पक्ष के प्रतिस्थापन (सब्सटिट्यूशन) की संभावना है, तो उसका भी उल्लेख तब किया जाता है जब पक्षों को परिभाषित किया जाता है।
पक्षों का दायित्व (ऑब्लिगेशन ऑफ़ पार्टीज)
यदि प्रत्येक पक्ष के दायित्वों और देनदारियों का उल्लेख या पर्याप्त रूप से परिभाषित नहीं किया गया है तो विवादों की गुंजाइश बढ़ जाती है। साथ ही, एक मद (आइटम) के रूप में विचार के साथ-साथ, यह प्राथमिकता दी जाती है कि प्रगति माप पद्धति (प्रोग्रेस मेज़रमेंट मेथड) भी बताई गई हो। दायित्व प्रभावी और न्यायसंगत होना चाहिए जो पक्षों पर भी निर्भर करता है, लेकिन अपने कार्य को करने के लिए किसी के दायित्व के उल्लंघन के मामले में उपचार प्रक्रिया का भी उल्लेख किया जाना चाहिए।
भुगतान की शर्तें (पेमेंट टर्म्स)
एक अनुबंध में अक्सर प्रतिफल (कन्सिडरेशन) में किए गए कार्य के लिए भुगतान शामिल होता है। यह भुगतान अनुबंध के पूरा होने के विभिन्न चरणों में किया जा सकता है। इस तरह के विवादों से बचने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि भुगतान की इन किश्तों (इंस्टॉलमेंट) में से अधिकांश, यदि संभव हो तो, समझौते में निर्दिष्ट हैं। इस तरह के मुद्दों से बचने के लिए या डिलीवरी के अनुपात (रेश्यो) में आंशिक (पार्शियली) रूप से भुगतान करने के लिए वितरण या देयता (लायबिलिटी) के निर्वहन के बाद भुगतान करना उचित है। साथ ही, उस समय जब उत्पाद या सेवा की गुणवत्ता और मानक (स्टेंडर्ड) का सत्यापन (वेरिफाइड) किया जा रहा है, यदि पूर्व भुगतान की कोई आवश्यकता है तो इसे लाया जाना चाहिए।
एकीकरण खंड (इंटीग्रेशन क्लॉज़)
एकीकरण खंड भविष्य में अनुबंध में संशोधन (अमेंडमेंट) की गुंजाइश को समझाता है। पक्षों की समझ के लिए यह महत्वपूर्ण है कि, भविष्य में अनुबंध में उल्लिखित सभी नियम और शर्तों को नहीं बदला जाएगा। यह शर्त आम तौर पर समझौते का एक सम्मिलित घटक है। खंड में यह अवश्य बताया जाना चाहिए कि ऐसे संशोधन लिखित रूप में या पक्षों द्वारा सहमत किसी अन्य तरीके से किए जाएंगे। ऐसे प्रावधान (प्रोविजन) तब तक वैध हैं जब तक वे ऐसे संशोधनों की आवश्यकता को दर्शाते हैं।
समापन (टर्मिनेशन)
अवधि के अंत से पहले अनुबंध या वादे की समाप्ति को अनुबंध का उल्लंघन माना जा सकता है। कुछ मामलों में समाप्ति हो सकती है, यदि कोई पक्ष अपने दायित्वों को आंशिक रूप से या पूर्ण रूप से निर्वहन करने से इंकार कर देता है, एक अप्रत्याशित घटना के कारण जैसे कि कुछ आपदा या कुछ भी जो किसी के दायित्व को निर्वहन करने की संभावना प्रदान करता है। कभी-कभी पक्षों की सुविधा के लिए, वे अब अपने रिश्ते को जारी नहीं रखना चाहते हैं। समाप्ति खंड ऐसी परिस्थितियों या शर्तों का उल्लेख करते हैं जिनके तहत अनुबंध समाप्त किया जा सकता है। ये समाप्ति खंड काफी समस्याग्रस्त हो सकते हैं क्योंकि कभी-कभी उस रिश्ते को समाप्त करने का रास्ता खोजना मुश्किल होता है जिसमें सभी पक्षों को संतोषजनक परिणाम मिलता है या खंड के संविधान को पूरा करता है।
एक समझौते में खंड शामिल होंगे
मसौदा तैयार करते समय इन सभी वर्गों को पहले बताए गए तत्वों (एलिमेंट्स) को बनाए रखते हुए समझौते में बरकरार रखा जाएगा। वे खंड इस प्रकार हैं-
प्रस्तावना (प्रिएंबल)
प्रस्तावना दोनों पक्षों को संविदात्मक दायित्वों (कॉन्ट्रैक्चुअल ऑब्लिगेशन) में बाध्य करने के लिए महत्वपूर्ण सभी बुनियादी जानकारी बताती है जैसे पक्षों का नाम, गठन की तारीख और समय के बारे में जानकारी, और उन स्थानों का पता जहां से व्यवसाय संचालित (ऑपरेट) किया जा रहा है। प्रस्तावना में एक से अधिक पक्षों के शामिल होने की संभावना की पहचान की गई है और उन पक्षों को कॉर्पोरेट पेरेंट्स, ट्रस्टी, सहायक और गारंटर जैसे अन्य पक्षों के साथ उनके संबंधों के रूप में पहचाना जाता है। प्रस्तावना में अनुबंध के सभी व्यक्ति पक्ष, उनकी कानूनी स्थिति और क्षमता, व्यवसाय का स्थान, दायित्व का इच्छित दायरा, पक्ष के स्वामित्व (ओनरशिप) में परिवर्तन, और एक तृतीय-पक्ष लाभार्थी (थर्ड-पार्टी बेनिफिशियरी) जैसी जानकारी निर्दिष्ट होगी।
ये बुनियादी संरचना (बेसिक स्ट्रक्चर), पाठ और संदर्भ प्रदान करके अनुबंध के लिए उत्प्रेरक (कैटेलिस्ट) के रूप में कार्य करते हैं। एक प्रस्तावना एक गैर-बाध्यकारी घोषणात्मक (डिक्लेरेटिव) कथन है जिसे एक तथ्य या कथन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जो इरादे को निर्दिष्ट करता है। यदि अनुबंध किसी उत्पाद की खरीद से संबंधित है तो यह सामग्री में एक अंतर्दृष्टि देगा जबकि विनिर्देश (स्पेसिफिकेशन) अनुबंध के मुख्य भाग में बने रहेंगे।
वे आवश्यक सामग्री, संरचना और भुगतान विधि देते हुए अनुबंध के चरण का उल्लेख करते हुए अनुबंध का एक संक्षिप्त विवरण देते हैं। वे शरीर के विनिर्देशों के विवरण में आए बिना अनुबंध के लक्ष्य और उद्देश्य का उल्लेख करके अनुबंध की आत्मा को निर्धारित करते हैं।
यह कीवर्ड, शर्तों और संक्षिप्त रूपों को परिभाषित करता है जो अनुबंध में कई बार प्रकट हो सकते हैं और समझने के लिए आवश्यक हैं।
हिस्से या सामग्री का मामला (बॉडी और मैटर ऑफ़ कंटेंट)
यह खंड एक विशेष विधि और भुगतान की गुंजाइश, पूरा होने का समय और अनुबंध की मौलिक सामग्री का निपटान करके लेनदेन प्रकृति के लक्षण वर्णन से निपटने वाले अनुबंध के प्रावधानों को निर्धारित करता है।
विचार और भुगतान की शर्तें
यह उन सभी विविधताओं से संबंधित है जिनमें भुगतान किया जा सकता है जैसे भुगतान की जाने वाली राशि, भुगतान की शर्तें, या कोई भी वित्तीय सूत्र (फाइनेंशियल फॉर्मूला) जो समायोजन (एडजस्टमेंट) को बंद करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें कुल लागत को जोड़ने वाले सभी कारकों को शामिल करते हुए अंतिम मूल्य का विवरण शामिल होता है। यह समझने के लिए किया जाता है क्योंकि खरीदार और विक्रेता के लिए कर के निहितार्थ (टैक्स इम्प्लिकेशन्स) अलग-अलग हो सकते हैं।
आपूर्ति और सेवाओं का दायरा (स्कोप ऑफ़ सप्लाई एंड सर्विसेज)
इसमें प्रतिफल के रूप में उपलब्ध कराए गए या बेचे गए सभी उत्पादों और सेवाओं की सूची शामिल है। यह स्पष्ट करने के लिए यह उल्लेख करना आवश्यक है कि दोनों पक्ष अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं और बदले में उन्हें क्या मिलेगा। इस प्रयोजन (पर्पज) के लिए, एक उचित अनुसूची बनाई जानी है और अनुबंध के साथ संलग्न (एडजॉइंड) किया जाना है।
क्षतिपूर्ति और जोखिम आवंटन (इन्डेम्निटी एंड रिस्क एलोकेशन)
कानूनी समझौते के मुख्य उद्देश्यों में से एक यह है कि यह किसी भी शर्तों के उल्लंघन के लिए अदालत में लागू करने योग्य है। उस प्रयोजन के लिए, क्षतिपूर्ति से संबंधित प्रावधान निर्दिष्ट करना महत्वपूर्ण है यदि एक पक्ष को पता चलता है कि किसी अन्य पक्ष ने अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन किया है। यह उपकरण पक्षों को सुरक्षा प्राप्त करने के लिए एक तंत्र (मैकेनिज्म) के रूप में कार्य करता है।
गोपनीयता (कॉन्फिडेंशियलिटी)
इस खंड का एकमात्र उद्देश्य यह है कि यदि दोनों पक्ष अन्य पक्षों के लिए उपलब्ध जानकारी और शर्तों को गोपनीय और गुप्त रखना चाहते हैं, तो वे इस प्रावधान का उपयोग करके ऐसा कर सकते हैं।
प्रभावी तिथि, समापन समय और वैधता
एक अनुबंध अस्पष्ट नहीं होना चाहिए और उस उद्देश्य के लिए, सभी विवरण सही और सटीक रूप से निर्दिष्ट किए जाने चाहिए। उस तारीख का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है जब पक्षों द्वारा संविदात्मक दायित्वों को स्वीकार किया गया था। यह वह तारीख नहीं हो सकती है जब अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन एक भविष्य की तारीख जब से पक्षों के दायित्व या अधिकार शुरू हो सकते हैं। अनुबंध का समय या पूरा होने का समय पक्षों को उनकी देनदारियों के निर्वहन के लिए उल्लिखित या दिया गया समय है। वैधता समय एक तारीख या समय से दूसरी तारीख का अंतराल है जिसके बीच अनुबंध की शर्तें लागू होंगी।
टर्मिनेशन क्लॉज में पक्षों के बीच आपसी समझौते के साथ अनुबंध से बाहर निकलने का तरीका बताया गया है। यह प्रावधान इस संबंध के अंत के संबंध में अस्पष्टता को दूर करता है।
विविध प्रावधान (मिसलेनियस प्रोविजन)
इस खंड में कई प्रावधान और खंड शामिल हैं जो किसी विशेष खंड में नहीं आते हैं। ये प्रावधान समय-समय पर बहुत काम के साबित होते हैं।
डीड्स का प्रारूपण (ड्राफ्टिंग ऑफ़ डीड्स)
मसौदा तैयार करने के लिए, डीड के अर्थ को समझना महत्वपूर्ण है। एक डीड एक दस्तावेज है जो दोनों पक्षों के लिए बाध्यकारी जिम्मेदारियों और देनदारियों का निर्माण करता है। पक्षों द्वारा बिना चुनौती के कानूनी क्षमता के साथ हस्ताक्षर किए जाएंगे और एक गवाह द्वारा गवाही दी जाएगी। व्यवसायों और सेवाओं और उत्पादों में काम करने वाले लोगों के लिए कार्यों का मसौदा तैयार करना महत्वपूर्ण है। जीवन के कई उदाहरणों जैसे पार्टनरशिप डीड, एलएलपी डीड, गिफ्ट डीड, शेयर परचेज डीड, लीज डीड आदि पर काम हमारे सामने आते हैं।
डीड की तैयारी (प्रेपरेशन ऑफ़ डीड)
एक डीड को 3 भागों में विभाजित किया जा सकता है, अर्थात् गैर-संचालन (नॉन-ऑपरेटिव) भाग, ऑपरेटिव भाग और औपचारिक (फॉर्मल) भाग। प्रत्येक भाग के लिए, एक अलग प्रारूपण तकनीक का पालन किया जाता है। प्रत्येक खंड के प्रारूपण को निम्नलिखित तरीके से समझाया गया है-
गैर-ऑपरेटिव भाग
- डीड का शीर्षक/विवरण, संक्षेप में, इस बात का मूल विचार देता है कि डीड किस बारे में है और यह किस उद्देश्य को कवर करेगा।
- डीड में किसी भी अस्पष्टता को दूर करने के लिए डीड का स्थान और तारीख। इन विवरणों को बताने का एक पारंपरिक तरीका है, वह यह है कि “साझेदारी का यह डीड मुंबई में सितंबर के इस सातवें दिन, दो हजार और बीस … के बीच…. बनाया गया है।”
- इसके बाद पक्षों का विवरण आता है। कुंजी पक्षों की पहचान है, इसलिए विवरण इस तरह से बनाया गया है कि उनकी पहचान भी आसान हो। कृत्रिम (आर्टिफिशियल) व्यक्ति के मामले में: जिस कानून के तहत इसका गठन किया गया है, उसकी पंजीकरण संख्या (रजिस्ट्रेशन नंबर), यदि कोई हो, के साथ पंजीकृत पते के साथ देना होगा।
- अंत में, पाठ उस पक्ष के मकसद के संक्षिप्त विवरण के साथ खेल में आता है जिसके लिए वे एक डीड में बाध्य होने के लिए सहमत हुए हैं। इसे “जबकि डीड के पक्षकार इच्छुक हैं …” के रूप में कहा गया है।
ऑपरेटिव पार्ट
- यह भाग बाध्य पक्षों के बीच प्रतिफल और लेन-देन और ऐसे लेन-देन के इरादे से संबंधित है। इस तत्व को “टेस्टेटम” कहा जाता है।
- यह हैबेंडम भाग है जो बताए गए हितों को परिभाषित करता है और इसमें शामिल संपत्ति पर एक सीमा निर्धारित करता है। उदाहरण के लिए “डीड में शामिल संपत्ति भारग्रस्त (इनकंबर्ड ) / भार रहित है।”
- डीड की विषय वस्तु के अनुसार अपवाद (एक्सेप्शन) और आरक्षण भाग, पक्षों द्वारा अपेक्षित विचार से निपटने के लिए कुछ अपवादों और आरक्षणों को निर्दिष्ट करता है।
- ज़ब्ती (फॉफिचर) और नवीनीकरण (रिन्यूअल) भाग कुछ शर्तों को बताता है जिनका उल्लंघन करने पर इस तरह की समाप्ति से संबंधित नुकसान के साथ-साथ डीड की समाप्ति होगी। साथ ही, यह डीड के नवीनीकरण के लिए शर्तों को निर्धारित करता है।
औपचारिक (फॉर्मल)
- प्रशंसापत्र (टेस्टीमोनियम) भाग इस तथ्य को बताता है कि पक्षों ने डीड पर हस्ताक्षर किए हैं। यह आमतौर पर इस तरह से शुरू होता है- “जिसके गवाह में, उपरोक्त तिथि और स्थान पर डीड के उपरोक्त पक्षों ने गवाहों की उपस्थिति में अपना हाथ रखा है”।
- फिर प्रशंसापत्र के तुरंत बाद पक्षों के हस्ताक्षर आते हैं। पक्षों को गवाहों की उपस्थिति में हस्ताक्षर पृष्ठ के बाईं ओर अपने हस्ताक्षर करने चाहिए।
- इसके बाद, इसे गवाहों द्वारा प्रमाणित किया जाना है। पक्षों के हस्ताक्षर के बाद, गवाहों को हस्ताक्षर करने वाले पृष्ठ के दाईं ओर अपने नाम, पिता का नाम, पता और व्यवसाय का उल्लेख करते हुए, पक्षों के हस्ताक्षर के समानांतर और निष्पादकों (एक्जीक्यूटेंट) की उपस्थिति में अपने हस्ताक्षर करने होते हैं।
- संपत्ति का एक पार्सल या अनुसूची या अनुलग्नक (अटैचमेंट) को संलग्न (अटैच) किया जाना चाहिए जिसमें सभी जानकारी शामिल हो यदि शामिल संपत्ति अचल (इम्मूवे बल ) है। पार्सल में संपत्ति के आसपास के बुनियादी विवरण शामिल होने चाहिए।
नमूना किराया समझौता (सैंपल रेंट एग्रीमेंट)
यह लीज डीड जनवरी 2021 के इस 7वें दिन नई दिल्ली में निष्पादित की जाती है और
ABC (बाद में लेसर कहा जाता है, जिसमें एक भाग के उनके उत्तराधिकारी ( हियर्स ), कानूनी प्रतिनिधि ( लीगल रिप्रेजेंटेटिव ), और असाइन किए गए अभिव्यक्ति ( सक्सेसर्स) शामिल होंगे):
पते का XYZ निवासी (इसके बाद लेसी कहा जाएगा)
जबकि लेसर यह दर्शाता है कि वह अपार्टमेंट के पते पर स्थित अपार्टमेंट का पूर्ण मालिक है, जिसमें स्थान और वस्तुओं का विवरण शामिल है।
जबकि लेसी ने लेसर से अपार्टमेंट के संबंध में लीज देने का अनुरोध किया है और लेसी ने लेसर को अपार्टमेंट को केवल आवासीय उद्देश्यों के लिए, निम्नलिखित नियमों और शर्तों पर लीज पर देने पर सहमति व्यक्त की है:
अब यह डीड इस प्रकार गवाह है:
- परिसर के संबंध में लीज की अवधि 15 जनवरी 2021 से शुरू होने वाले 11 महीने (ग्यारह महीने) की अवधि के लिए होगी और 15 दिसंबर 2021 तक वैध होगी। इसके बाद, इसे पारस्परिक रूप से सहमत शर्तों पर बढ़ाया जा सकता है।
- हालांकि, लेसी को लिखित में एक महीने का नोटिस या उसके एवज (इनलियू) में एक महीने का किराया देकर लीज को समाप्त करने का अधिकार हो सकता है।
- कि लेसी को xxx (अक्षरों में) रुपये का मासिक किराया परिसर के लिए देना होगा। किराए का भुगतान चेक द्वारा या ABC के नाम पर आरटीजीएस/बैंक हस्तांतरण के माध्यम से किया जाएगा।
- इसके अलावा, लेसी द्वारा देय किराए के लिए, लेसी बिजली और पानी की खपत के लिए संबंधित अधिकारियों द्वारा उठाई गई सभी मांगों को पूरा करेगा और लेसी के शुरू होने की तारीख से लेकर गृह कर के अलावा बिजली और पानी, रसोई गैस की खपत के अलावा समाप्त हो जाएगा। मृत्यु के संबंध में या उसके कब्जे के आत्मसमर्पण तक का निर्धारण।
- कि लेसी किसी भी परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति को पूरी तरह या उसके हिस्से को किसी भी व्यक्ति को किराए पर नहीं देगा, आवंटित नहीं करेगा या उसके साथ भाग नहीं लेगा।
- यह कि दिन-प्रतिदिन की छोटी-मोटी मरम्मत की जिम्मेदारी अपने खर्च पर लेसी की होगी।
- यह कि लेसी निर्धारित परिसर में कोई संरचनात्मक परिवर्धन (स्ट्रक्चरल एडिशन) और स्थायी प्रकृति के परिवर्तन नहीं करेगा।
- यह कि लेसी मृत परिसर पर लागू स्थानीय प्राधिकरण के सभी नियमों और विनियमों का पालन करेगा।
- कि लेसी सरकार द्वारा किसी भी मांग, दावों, कार्यों या कार्यवाही के लिए लेसी को परिसर के शांत कब्जे के संबंध में अधिकारियों से स्वतंत्र और हानिरहित रखेगा।
- निर्धारित तिथि के भीतर लेसी द्वारा किराए का भुगतान न करने या 2 महीने के लिए बकाया होने की स्थिति में, लेसी को बकाया ब्याज सहित किराया का भुगतान करने के लिए कम से कम 15 (पंद्रह) दिनों की मांग नोटिस जारी करना होगा। लेसी के पास लीज को तुरंत समाप्त करने और लेसर द्वारा लेसी को देय किसी बकाया या देय राशि का दावा करने के लिए बिना किसी पूर्वाग्रह (प्रेज्यूडिस) के उक्त परिसर में फिर से प्रवेश करने और वापस लेने का अधिकार होगा।
- उस मामले में, जहां लेसी द्वारा लीज के निर्धारण पर या अन्यथा लेसी द्वारा इसकी समाप्ति पर लेसी की चूक के लिए यहां ऊपर बताए गए तरीकों से परिसर खाली नहीं किया जाता है, लेसी की समाप्ति से शुरू होने वाले मासिक किराए का भुगतान करना होगा। इस दिए गए किराए का भुगतान लेसी को परिसर के कब्जे की वसूली के लिए लेसी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू करने से नहीं रोकेगा।
- कि लेसी ने परिसर में पूर्ण, फिटिंग और फिक्स्चर और विद्युत उपकरण (इलेक्ट्रिकल एप्लायंस) स्थापित किए हैं। लेसी इन्हें उचित देखभाल के साथ बनाए रखेगा और उन्हें अच्छी काम करने की स्थिति में रखेगा।
- इस लीज एग्रीमेंट में निर्धारित नियमों और शर्तों में कोई बदलाव या संशोधन तब तक मान्य नहीं होगा जब तक कि इस लीज एग्रीमेंट को संशोधन में शामिल नहीं किया जाता है।
- कि लेसी किसी भी ज्वलनशील (इंफ्लेमेबल), खतरनाक, निषिद्ध या अप्रिय सामान ( प्रोहिबिटेड और ऑबनॉक्सियस गुड्स ), सामग्री, चीजों को/या परिसर या उसके किसी हिस्से में संग्रहीत (स्टोर) नहीं करेगा। लेसी परिसर से कोई भी अवैध या अनैतिक कार्य नहीं करेगा।
- लेसी अपनी सुविधा के आधार पर लेसी के साथ मुलाकात के लिए अपॉइंटमेंट तय करने के बाद लेसी को अपने दलालों, संभावित किरायेदारों के माध्यम से लीज की समाप्ति से 15 दिन पहले अपार्टमेंट दिखाने की अनुमति देगा।
कि दोनों पक्षों, जमींदार और सिद्धांतों ने इस समझौते को पढ़ और समझ लिया है और बिना किसी दबाव के इस पर हस्ताक्षर करने के लिए सहमत हो गए हैं।
इस बात के गवाह में कि नीचे दिए गए गवाहों की उपस्थिति में पहली बार ऊपर उल्लिखित 7 जनवरी 2021 को लेसर और लेसी ने नई दिल्ली में अपना हाथ सब्सक्राइब किया है।
(मकान मालिक के हस्ताक्षर) (लेसी के हस्ताक्षर)
एक समझौते या डीड की कानूनी प्रवर्तनीयता (एंफोर्सिएबिलिटी) देने का मुख्य उद्देश्य उन पक्षों के अधिकारों की रक्षा करना है जो नुकसान के लिए किसी भी मुआवजे के साथ गलत तरीके से भंग होने पर प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए अस्पष्टता या गलत धारणा की किसी भी गुंजाइश को दूर करना महत्वपूर्ण है। उसके लिए एक अनुबंध का एक अच्छा मसौदा आवश्यक है। यह अनुबंध के नियमों और शर्तों या किसी भी संबंधित मुद्दे के बारे में किसी भी विवाद से बचने में मदद करता है जो दस्तावेज़ के अनुचित प्रारूपण के कारण सामने आ सकता है।
प्रस्तावना, पक्ष विवरण, पाठ, और विषय वस्तु जैसी मूल बातें कानूनी कार्य और कानूनी समझौते दोनों में आम हैं। इन दस्तावेजों के लेखन में, स्पष्टता, सरलता और परिभाषाओं के समान सिद्धांतों का उपयोग किया जाता है। सभी तत्वों, वर्गों और भागों को ठीक से लिखा जाना चाहिए अन्यथा यह पक्षों के अधिकारों की गुणवत्ता और सुरक्षा से समझौता करेगा।
- https://vakilsearch.com/advice/types-legal-deeds-india/
- https://www.mondaq.com/india/contracts-and-commercial-law/445620/legal-contractsagreements-drafting-and-legal-vetting
- http://www.legalservicesindia.com/article/1669/Fundamental-Principles-of-Contract-Drafting.html
- https://www.lawyered.in/legal-disrupt/articles/drafting-contracts-or-agreements/
- https://taxguru.in/corporate-law/general-principles-drafting-focus-contents-deed.html#:~:text=Drafting%20is%20the%20collection%20and,be%20understood%20without%20any%20ambiguity.
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के.एन. मेहरा बनाम राजस्थान राज्य (1957), कानून के स्रोत के रूप में रीति रिवाज़, प्रत्यास्थापन का सिद्धांत, कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें.
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एचआईवी एड्स क्या है, लक्षण, कारण, जांच, इलाज और बचाव – HIV AIDS in Hindi
HIV AIDS in Hindi एचआईवी एड्स का नाम सुनते ही एक भयानक और गंभीर बीमारी की तस्वीर सामने आती है। वैसे तो ज्यादातर बीमारियाँ गंभीर और बुरी ही होती है परन्तु एचआईवी एड्स का नाम सुनते ही हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते है क्योकि सभी जानते है की एड्स एक ऐसी गंभीर बीमारी है जिसमे व्यक्ति जीने की चाह छोड़ देता है और बुरी तरह अवसादग्रस्त हो जाता है।
इसलिए एचआईवी एड्स क्या है और यह कैसे होता है इसके क्या लक्षण है कैसे इनसे बचाव किया जा सकता है यह सब जानना बहुत अधिक आवश्यक भी है। ताकि समय रहते हम इस बीमारी का इलाज करवा सके और एक स्वस्थ जीवन जी सकें।
आज के लेख में हम यही जानेंगे की एचआईवी एड्स क्या है इसके लक्षण, कारण, जांच, इलाज और बचाव क्या है।
एचआईवी एड्स क्या है – HIV AIDS kya hai in hindi
एचआईवी और एड्स में क्या अंतर है इसे पहचाने – hiv aids me kya antar hai ise pehchane in hindi, एचआईवी एड्स होने का कारण – hiv aids hone ka karan in hindi, एचआईवी एड्स के लक्षण – hiv aids ke lakshan in hindi, एचआईवी एड्स से होने वाली जटिलताये – hiv aids se hone wali jatiltaye in hindi, एचआईवी एड्स की जांच – hiv aids ki janch in hindi, एचआईवी एड्स का इलाज – hiv aids ka ilaj in hindi, एचआईवी एड्स से बचाव – hiv aids se bachav in hindi, एचआईवी और एड्स के मिथक और तथ्य – hiv aids myths and facts in hindi.
एचआईवी को मानव प्रतिरक्षा वायरस (human immunodeficiency virus) कहते है, यह एक तरह का वायरस है जो हमारे शरीर में जाकर उन कोशिकाओ (CD4 cells or T cells) को नुकसान पहुंचाता है जो हमारे शरीर में बीमारियों से लड़ती है और हमे स्वस्थ रखती है। यह वायरस हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) को कमजोर कर देता है और हमे बीमार बना देता है जिससे इस वायरस को हमारे शरीर को संक्रमित करना और भी आसान हो जाता है। और इसके संक्रमण से व्यक्ति ना केवल बीमार होता है बल्कि उसकी जान भी जा सकती है। यदि कोई व्यक्ति एचआईवी से ग्रसित हो गया है तो यह वायरस उम्रभर उनके शरीर में रहता है।
एचआईवी की बीमारी कभी ठीक तो नही हो सकती और ना ही इसके लक्षण बहुत लम्बे समय तक पता चल पाते है, परन्तु दवाईयों से कुछ हद तक इसका इलाज संभव है और उनसे स्वस्थ रहा जा सकता है। एचआईवी की दवाईया लेकर इस बीमारी को इस हद तक ठीक किया जा सकता है की इसके लक्षण इनकी विशेष जांच में भी पता नहीं चल पायेंगे और आप लम्बे समय तक एक स्वस्थ जीवन जी सकते है।
परन्तु एचआईवी की जाँच ही एक मात्र उपाय है जिससे आप स्वस्थ रह सकते है नही तो यह बीमारी एड्स में बदल सकती है पर अगर आप एचआईवी की दवाईयों की मदद लेते है तो एचआईवी पीड़ित होकर भी आप एक लम्बा जीवन जी सकते है।
(और पढ़े – HIV एड्स के शुरुआती लक्षण जो आपको पता होने चाहिए… )
एचआईवी एक तरह का वायरस है जो एड्स का कारण बनता है। एड्स को एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएंसी सिंड्रोम (acquired immune deficiency syndrome) कहा जाता है। एचआईवी और एड्स को एक ही चीज कहना बिलकुल गलत होगा, क्योकि ज़रूरी नही है की एचआईवी पीड़ित लोगों को हमेशा एड्स हो।
किसी व्यक्ति में एड्स होने की संभावना तब बढ़ जाती है जब CD4 या T cells एचआईवी से बहुत ज्यादा संक्रमित हो चुकी हो और बिलकुल कमजोर हो चुकी हो क्योकि तब हमारे शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता खत्म हो चुकी रहती है और हमारा शरीर एकदम कमजोर हो जाता है। एड्स को एचआईवी का सबसे खतरनाक स्तर माना जाता है क्योकि एड्स होने के बाद व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।
एचआईवी एड्स होने के कई कारण होते है, जिनकी सूचि नीचे दी गयी है-
असुरक्षित यौन सम्बन्ध स्थापित करना – यदि आप किसी भी एचआईवी पीड़ित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन सम्बन्ध स्थापित करते है तो आपको भी एड्स होने की संभावना हो सकती है, यह भी एड्स होने का मुख्य कारण हो सकता है।
दूषित रक्त किसी को चढ़ाना- यदि किसी स्वस्थ व्यक्ति को एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति का रक्त चढ़ाया जाये, तब इस स्तिथि में भी उस स्वस्थ व्यक्ति को एड्स होने की संभावना बढ़ जाती है।
संक्रमित सुई का इस्तेमाल करना- कभी भी किसी व्यक्ति की इस्तेमाल की हुए सुई खुद इस्तेमाल करने से भी एचआईवी संक्रमित होने का खतरा रहता है। ज़्यादातर लोग ड्रग्स लेने के लिए एक दूसरे की इस्तेमाल की हुई सुई खुद भी इस्तेमाल करते है परन्तु हो सकता है वह व्यक्ति एचआईवी संक्रमित हो जिससे आपकी जान को भी खतरा हो सकता है और टैटू गुदवाने या पियरसिंग के लिए भी किसी अन्य व्यक्ति की सीरिंज (syringes) या सुई उपयोग करना खतरनाक हो सकता है।
एचआईवी संक्रमित माँ का अपने बच्चे को स्तनपान कराना- यदि कोई महिला पहले से एचआईवी संक्रमित है और वह किसी बच्चे को जन्म देती है और उसे अपना स्तनपान करवाती है तो यह संभावना उत्पन्न हो सकती है की माँ का स्तनपान कराने से उस बच्चे को भी एड्स हो जाये इसलिए बच्चे के जन्म से पहले ही महिला को अपनी जाँच और इलाज करवाना चाहिए।
संक्रमित गर्भवती महिला द्वारा बच्चे को जन्म देना- यदि कोई महिला गर्भवती है तो उसे शुरुआती महीनों में ही अपना एचआईवी का टेस्ट करवाना चाहिए यदि वह टेस्ट में एचआईवी संक्रमित निकलती है तो उस संक्रमण का सही समय पर इलाज करवाना बहुत जरुरी है ताकि उनका होने वाला बच्चा इस बीमारी से सुरक्षित रहे नही तो उसे भी यह गंभीर बीमारी हो सकती है।
इन सभी कारणों से एड्स होने की संभावना रहती है इसलिए इन सभी कारणों को ध्यान रखे और ऐसा कुछ भी हुआ हो तो डॉक्टर से सलाह अवश्य ले और एचआईवी की जाँच कराएं।
(और पढ़े – सुरक्षित सेक्स करने के तरीके… )
ज़्यादातर एचआईवी संक्रमित लोगों में वायरस के प्रवेश करने के महीनो और सालों तक इस तरह के कोई भी लक्षण दिखाए नही देते है परन्तु लगभग 80 प्रतिशत लोगों में फ्लू जैसे लक्षण उत्पन्न होते है जिसे 2-6 हफ्ते के बीच में पता चलने पर इसका तुरन्त इलाज करवाना चाहिए। इसे तीव्र रेट्रोवायरल सिंड्रोम (acute retroviral syndrome) के रूप में भी जाना जाता है।
एचआईवी संक्रमण के कुछ लक्षणों में शामिल हो सकते हैं:
- जोड़ों का दर्द
- मांसपेशी में दर्द
- गले में खराश
- पसीना आना (विशेष रूप से रात में)
- बढ़ी हुई ग्रंथियां
- एक लाल चकत्ते या दाद होना
- अचानक वजन कम होना
- मौखिक खमीर संक्रमण (thrush)
यह सभी लक्षण एचआईवी के शुरूआती लक्षण हो सकते है परन्तु इन लक्षणों से यह मतलब नही है की आपको एचआईवी हो यह किसी अन्य बीमारी के लक्षण भी हो सकते है इसलिए यदि आपको ऐसा लगता है तो एचआईवी का टेस्ट जरुर करवाएं। जब हमारा शरीर एचआईवी के वायरस की वजह से कमजोर हो जाता है और हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता ख़त्म हो जाती है तब एड्स होने की संभावना बढ़ जाती है। वैसे तो एचआईवी संक्रमित व्यक्ति भी हमेशा स्वस्थ दिखाई देता है और ज़्यादातर मामलों में तक़रीबन 10 साल तक इस बीमारी का पता नही चलता है,परन्तु यदि हमें ऐसे कोई भी लक्षण दिखाई दे तो टेस्ट जरुर करवाना चाहिए इसलिए हमें एड्स के कुछ शुरूआती लक्षणों को भी पहचाना बहुत जरुरी है, इसलिए एड्स के कुछ लक्षणों की सूचि नीचे दी गयी है:-
- धुंधला दिखाई देना
- दस्त (जो लम्बे समय से चल रहा हो)
- हफ्तों तक चलने वाला 100 ° F (37 ° C) का बुखार
- रात को पसीना आना
- बहुत अधिक थकान लगना
- सांस की तकलीफ या अपच
- हफ्तों तक रहने वाली ग्रंथियों में सूजन
- अचानक बहुत तेजी से वजन कम होना
- जीभ या मुंह पर सफेद धब्बे होना
इन सभी लक्षणों के चलते जान का खतरा हो सकता है इसलिए शुरूआती स्तर पर ही एचआईवी की दवाईयों के साथ इसका सही इलाज करवाने से काफी हद्द तक इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है।
अवसरवादी संक्रमण की रोकथाम
वैसे तो लेट स्टेज एचआईवी में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और हमारे शरीर में किसी भी तरह के संक्रमण, बीमारियों या कैंसर से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है परन्तु यदि एड्स के लक्षण दिखाई देने से पहले कोई भी संक्रमण हमारे शरीर में होता है तो यह गंभीर स्वास्थ्य समस्या पैदा कर सकता है जिससे जान का जोखिम भी हो सकता है, इसी तरह की स्थिति को डॉक्टर अवसरवादी संक्रमण कहते है। यदि किसी भी तरह की जांच में कोई ऐसा संक्रमण दिखाई देता है तो डॉक्टर एड्स की जाँच कराने का कहते है।
(और पढ़े – महिलाओं में एचआईवी एड्स के लक्षण… )
एचआईवी संक्रमण आपके शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को इस तरह कमजोर कर देती है की अन्य गंभीर बीमारियाँ होने की संभावना कई अधिक बढ़ जाती है, कई विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ इसमें शामिल है जैसे-
संक्रमण से होने वाली बीमारी जैसे-
- क्षय रोग (टीबी)
- साइटोमेगालोवायरस (Cytomegalovirus)
- कैंडिडिआसिस (Candidiasis)
- क्रिप्टोकोकल मेनिन्जाइटिस (Cryptococcal meningitis)
- टोक्सोप्लाज़मोसिज़ (Toxoplasmosis)
विभिन्न प्रकार के कैंसर जैसे-
- कपोसी सारकोमा (Kaposi’s sarcoma)
- लिंफोमा (Lymphoma)
कुछ अन्य जटिलताये भी हो सकती है जैसे –
- न्यूरोलॉजिकल जटिलताये (Neurological complications)
- गुर्दे की बीमारी (kidney diseases)
- वेस्टिंग सिंड्रोम (wasting syndrome)
(और पढ़े – टीबी के कारण, लक्षण, निदान एवं बचाव… )
एचआईवी संक्रमण की जाँच के लिए कई तरह के टेस्ट उपलब्ध है जिन्हें करवाकर आप सही समय पर इलाज शुरू कर सकते है जैसे-
एलिसा टेस्ट ( ELISA Test ) – एलिसा टेस्ट में रक्त का सैंपल लेकर एचआईवी संक्रमण की जाँच की जाती है अगर उसमे आपका रिजल्ट पॉजिटिव आता है तो इसका मतलब यह नहीं है आप एचआईवी संक्रमित है यह सकारात्मक परिणाम किसी अन्य बीमारी जैसे लाईम रोग, सिफलिस और ल्यूपस की वजह से भी हो सकता है इसलिए इसे सुनिश्चित करने के लिए अन्य तरह की जाँच की जाती है।
वेस्टर्न ब्लॉट ( western blot ) – यदि किसी व्यक्ति का एलिसा टेस्ट पॉजिटिव निकलता है तो उसे पक्का करने के लिए वेस्टर्न ब्लॉट टेस्ट किया जाता है अगर उसमें परिणाम पॉजिटिव ही आता है तो इसका मतलब वह व्यक्ति एचआईवी संक्रमित है।
CD4 काउंट टेस्ट ( CD4 Count test ) – CD4 कोशिकाएँ एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका (white blood cells) होती हैं जो विशेष रूप से एचआईवी के वायरस द्वारा लक्षित होती है और यह वायरस उसे नष्ट कर देता है। एक स्वस्थ व्यक्ति की सीडी 4 काउंट 500 से 1,000 तक होती है, परन्तु यदि किसी व्यक्ति की सीडी 4 काउंट 200 से कम हो जाती है तब वह एड्स से संक्रमित हो सकता है।
(और पढ़े – एचआईवी टेस्ट क्या है, प्रकार, प्रक्रिया… )
फिलहाल तो एचआईवी एड्स का कोई इलाज मौजूद नही है परन्तु कुछ दवाईयों की मदद से इसे कंट्रोल किया जा सकता है। कुछ दवाईयों के नाम की सूचि निचे दी गयी है-
आपातकालीन एचआईवी की गोलियाँ, या पोस्ट-एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस (PEP)
यदि किसी व्यक्ति को ऐसा लगता है कि वह पिछले 3 दिनों के भीतर एचआईवी वायरस के संपर्क में आ गया हैं, तो एंटी-एचआईवी दवाएं, जिसे पोस्ट-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस (पीईपी) कहा जाता है, उस दवाई को लेकर संक्रमण को रोक सकते है। वायरस के संभावित संपर्क में आने के बाद जितनी जल्दी हो सके पीईपी लें और संक्रमण की रोकथाम करें।
पीईपी कुल 28 दिनों तक चलने वाला उपचार है, और चिकित्सकिय उपचार पूरा होने के बाद एचआईवी की निगरानी करना जरुरी है अन्यथा यह संक्रमण जानलेवा हो सकता है।
एंटीरेट्रोवाइरल ड्रग्स (Antiretroviral Drugs)
एचआईवी के उपचार में एंटीरेट्रोवाइरल (antiretroviral drugs) दवाएं भी शामिल हैं जो एचआईवी संक्रमण से लड़ती हैं और शरीर में वायरस के असर को कम कर देती हैं। एचआईवी संक्रमित लोग आम तौर पर अत्यधिक सक्रिय एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (HAART) नामक दवाओं के साथ एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (कार्ट) का मेडिकेशन लेते हैं।
कुछ अन्य प्रकार के एंटीरेट्रोवाइरल ड्रग्स (antiretroviral drugs) भी है जिनके नाम है-
प्रोटीज अवरोधक (Protease Inhibitors)
प्रोटीज एक एंजाइम है जिसमें एचआईवी को दोहराने (replicate) की क्षमता होती है। ये दवाएं एंजाइम की क्रिया को बांधती देती हैं और इसकी कार्य करने की क्षमता को रोकती हैं, जिससे एचआईवी स्वयं की प्रतियां (copy) नही बना पाता है, और यह एचआईवी से होने वाले संक्रमण को रोकता है जिससे एड्स जैसी गंभीर बीमारी को रोका जा सकता है और उसका उपचार किया जा सकता है।
इंटीग्रेज इनहिबिटर(Integrase Inhibitors)
टी कोशिकाओं को संक्रमित करने के लिए एचआईवी को एक और एंजाइम की आवश्यकता होती है जिसे इंटीग्रेज इनहिबिटर कहा जाता है। एचआईवी एड्स के इलाज में यह दवा इंटीग्रेज एंजाइम को ब्लाक करने का काम करती है। जिससे एड्स होने की संभावना कम हो जाती है।
न्यूक्लियोसाइड / न्यूक्लियोटाइड रिवर्स ट्रांस्क्रिप्टेज़ इनहिबिटर (NRTIs)
इन दवाओं को नूकस (nukes) भी कहा जाता है, यह एचआईवी के वायरस के साथ हस्तक्षेप करते हैं और उसे अपनी प्रतियाँ (replica) बनाने से रोकते है। जिससे एड्स या एचआईवी संक्रमण का इलाज किया जा सकता है।
गैर-न्यूक्लियोसाइड रिवर्स ट्रांस्क्रिप्टेज़ इनहिबिटर (NNRTIs)
NNRTIs और NRTIs एक समान तरीके से काम करते हैं, जिससे एचआईवी वायरस को प्रतियाँ बनाने में और अधिक मुश्किल होती है।
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अपने आप को एचआईवी से संक्रमित होने से बचाने के लिए आपको कुछ सावधानियों पर गौर करना होगा जैसे-
असुरक्षित यौन सम्बन्ध करने से बचें – कभी भी अपने साथी के साथ सावधानी का प्रयोग जैसे कंडोम का इस्तेमाल करके ही यौन सम्बन्ध स्थापित करें।
संक्रमित सुई का इस्तेमाल ना करें – कभी भी किसी व्यक्ति की इस्तेमाल की हुए सुई खुद इस्तेमाल ना करें ज़्यादातर लोग ड्रग्स लेने के लिए एक दूसरे की इस्तेमाल की हुई सुई खुद भी इस्तेमाल करते है परन्तु हो सकता है वह व्यक्ति एचआईवी संक्रमित हो जिससे आपकी जान को भी खतरा हो सकता है और टैटू गुदवाने या पियरसिंग के लिए भी किसी अन्य व्यक्ति की सीरिंज (syringes) या सुई उपयोग ना करें इससे एड्स होने का खतरा हो सकता है।
दूषित रक्त कभी ना चढ़ाये – कभी भी किसी स्वस्थ व्यक्ति को एचआईवी संक्रमित व्यक्ति का रक्त ना चढ़ाये, हमेशा रक्त चढ़वाने से पहले उसकी जाँच करवाएं। अन्यथा उस व्यक्ति को भी एचआईवी होने का खतरा हो सकता है।
शरीर के तरल पदार्थ का संपर्क – खुले घाव या कट पर दूषित रक्त, वीर्य (semen) या योनी का तरल पदार्थ (vaginal fluid) गिर जाने से भी एड्स होने की संभावना उत्पन्न हो सकती है।
संक्रमित महिला के स्तनपान कराने से – यदि कोई महिला एचआईवी संक्रमित है तो वह बच्चे के जन्म से पहले अपनी अच्छी तरह जाँच करवाएं और उस संक्रमण का इलाज करवाएं नही तो महिला के स्तनपान कराने से नवजात को भी संक्रमण हो सकता है और उसे भी एड्स होने की संभावना हो सकती है।
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हमारे समाज में एचआईवी और एड्स से पीड़ित लोगों को हेय की दृष्टि से देखा जाता है और उनको लगता है की ऐसे लोगों के साथ उठने, बैठे, खाने, पीने या हाथ मिलाने से दूसरो को भी यह संक्रमण हो जायेगा परन्तु यह सब बातें गलत है, नीचे दी गयी सूचि में से कुछ भी करने से यह संक्रमण नही फैलता है, जैसे –
- पीड़ित से हाथ मिलाने
- एक ही बर्तन में खाना खाने से
- पीड़ित की खांसी या छींकों से
- एक ही टॉयलेट इस्तेमाल करने से
- एक ही तौलिया इस्तेमाल करने से
इन सभी बातों का ध्यान रखे और किसी भी एचआईवी और एड्स पीड़ित व्यक्ति को हेय दृष्टि से ना देखे और अगर आप इस बीमारी से संक्रमित है तो अपना अच्छे से इलाज करवाएं।
(और पढ़े – एचआईवी एड्स से जुड़े मिथक और तथ्य विस्तार से… )
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इस लेख "Website Designing in Hindi" में, जानिए वेबसाइट डिजाइनिंग क्या है? वेब डिजाइन का अर्थ (Web Design Meaning in Hindi) और इसके प्रकार आदि।
Website Designing in Hindi : शब्द “ वेबसाइट डिजाइनिंग ” उन वेबसाइटों के लेआउट का वर्णन करता है जो ऑनलाइन देखी जाती हैं। सॉफ्टवेयर विकास के बजाय, यह आमतौर पर वेबसाइट विकास के उपयोगकर्ता अनुभव घटकों को संदर्भित करता है। इस लेख में जानिए वास्तव में वेबसाइट डिजाइनिंग क्या है।
वेबसाइट डिजाइनिंग बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि आपके दर्शकों के लिए अच्छा वेबसाइट डिजाइन यह है कि यह उन्हें साइट को आसानी से नेविगेट करने में मदद कर सकता है। यदि आप “ वेब डिज़ाइन ” और “ वेबसाइट डिज़ाइनिंग ” शब्द से भ्रमित हैं, तो चिंता न करें! इस पाठ में आप वेबसाइट या वेब डिजाइनिंग के बारे में सब कुछ सीखने जा रहे हैं।
Table of Contents
वेबसाइट डिजाइनिंग क्या है – Website Designing in Hindi
वेबसाइट डिजाइनिंग का मतलब वेबसाइटों की योजना बनाना , बनाना और अपडेट करना होता है। मुख्य रूप से, वेब डिजाइनिंग इस बात की योजना है कि वेबसाइट कैसी दिखेगी, महसूस होगी या इस्तेमाल की जाएगी। यानी, वेब डिजाइनिंग कंपनियों को अपने व्यवसाय के लिए एक स्पष्ट ब्रांड बनाने या बनाए रखने में मदद करती है।
दूसरे शब्दों में, यह इलेक्ट्रॉनिक फाइलों के संग्रह की अवधारणा, योजना और निर्माण और लेआउट, फ़ॉन्ट, रंग , पाठ, शैली, सामग्री उत्पादन, संरचना, ग्राफिक्स, छवियों का निर्धारण करने और वेबसाइट के संपूर्ण व्यक्तित्व को बनाने के लिए प्रभावशाली सुविधाओं का उपयोग करने की एक प्रक्रिया है। जो आपकी साइट के विज़िटर्स को पेज डिलीवर करते हैं।
वेब डिज़ाइन क्या है – Web Design Meaning in Hindi
शब्द “ वेब डिज़ाइन ” आमतौर पर मार्कअप लिखने सहित वेबसाइट के फ्रंट-एंड डिज़ाइन से संबंधित डिज़ाइन प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए उपयोग किया जाता है। मूल रूप से, वेब डिज़ाइन वह है जो किसी वेबसाइट का उपयोग करते समय समग्र रूप और अनुभव प्रदान करती है।
वेब डिज़ाइन एक बहु-विषयक कार्य है, जहाँ आपको न केवल डिज़ाइन (टाइपोग्राफी, रंग सिद्धांत) में ज्ञान की आवश्यकता होती है, बल्कि एक वेबसाइट ( HTML , CSS , JavaScript ) विकसित करने के कौशल की भी आवश्यकता होती है।
वेबसाइट डिजाइन के प्रकार – Types of Website Design
यहां छह (6) सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले वेब या वेबसाइट डिज़ाइन के प्रकार दिए गए हैं:
- सिंगल पेज डिजाइन (Single page) ।
- स्थिर वेबसाइट डिजाइन (Static website) ।
- गतिशील वेबसाइट डिजाइन (Dynamic website) ।
- प्रभावी डिजाइन (Responsive Design) ।
- तरल डिजाइन (Liquid Design) ।
- निश्चित डिजाइन (Fixed Design) ।
वेब डिजाइनर क्या है – Web Designer Meaning in Hindi
एक वेब डिज़ाइनर एक IT पेशेवर होता है जो किसी वेबसाइट के लेआउट, दृश्य रूप और उपयोगिता को डिज़ाइन करने के लिए ज़िम्मेदार होता है। मूल रूप से, एक वेब डिज़ाइनर एक वेबसाइट का लेआउट और डिज़ाइन बनाता है।
सरल शब्दों में, एक वेबसाइट डिज़ाइनर किसी वेबसाइट को अच्छा बनाता है। वे दृश्य तत्वों (elements) को बनाने के लिए कोडिंग और प्रोग्रामिंग भाषा और ग्राफिक उपकरण का उपयोग करते हैं। वेबसाइट डिज़ाइनरों के पास आमतौर पर UI (प्रयोक्ता इंटरफ़ेस), में विशेषज्ञता होती है, जिसका अर्थ है कि वे रणनीतिक रूप से ऐसी वेब डिज़ाइन करते हैं जो आगंतुकों के लिए सहज और नेविगेट करने में आसान हो।
- और पढ़ें: वेब डिज़ाइनर बनने के बारे में जानें ।
- वेब डेवलपर बनने के तरीके के बारे में जानें ।
Website Designing Tools in Hindi
एक वेबसाइट डिजाइन करने के लिए आपको यह जानना होगा कि आपको किस तरह के टूल्स की जानकारी होनी चाहिए। यहां कुछ सबसे महत्वपूर्ण उपकरण दिए गए हैं जिन्हें आपको वेब पेज या वेबसाइट डिजाइन करना सीखना चाहिए:
- डिज़ाइन सॉफ़्टवेयर टूल : Adobe Photoshop, स्केच और इलस्ट्रेटर।
- एचटीएमएल : वेबसाइट की संरचना के लिए HTML का उपयोग करें।
- CSS : वेबसाइट या HTML तत्वों को स्टाइल करने के लिए।
- जावास्क्रिप्ट : वेबसाइट डिजाइन को इंटरैक्टिव बनाने के लिए।
यदि आप वेब डिजाइनिंग सीखना शुरू करना चाहते हैं, तो HTML से शुरुआत करें। यहाँ HTML की बुनियादी समझ का वीडियो है:
जानना चाहते हैं कि वेब डिज़ाइनर कैसे बनें?
यदि आप एक वेबसाइट डिज़ाइनर बनने में रुचि रखते हैं, तो कुछ ऐसे कौशल हैं जिन्हें आप इस करियर पथ को शुरू करने के लिए विकसित कर सकते हैं। इसे आसान बनाने के लिए हमारे पास वेब डिज़ाइनर बनने के बारे में एक विस्तृत जानकारीपूर्ण लेख है, जानने के लिए बटन पर क्लिक करें:
वेब डिज़ाइनर कैसे बनें
Web Design FAQs
वेब डिज़ाइनिंग एक वेबसाइट बनाने और बनाए रखने की प्रक्रिया है। वेब डिजाइनिंग में विभिन्न पहलू शामिल होते हैं जैसे फ्रंटएंड कोडिंग , वेबसाइट वायर फ्रेम, लेआउट डिजाइन, रंग संयोजन, फोंट चयन, ग्राफिक डिजाइन, वेबपेज इंटरैक्शन, UX और UI, एनिमेशन, आदि।
वेब डिजाइनिंग सीखने के लिए आपको ग्राफिक सॉफ़्टवेयर जैसे Photoshop या Illustrator सीखना होगा और कुछ कोडिंग भाषाओं जैसे HTML, CSS, और जावास्क्रिप्ट का उपयोग करके वेबसाइट डिजाइनिंग करना होगा।
वेब डिजाइन इंटरनेट के लिए एक वेबसाइट डिजाइन और विकसित करने का कार्य है। मूल रूप से, वेब डिजाइनिंग फ्रंटएंड डेवलपमेंट का एक हिस्सा है। इसमें तीन वेब प्रौद्योगिकियां, एचटीएमएल, सीएसएस और जावास्क्रिप्ट, और यूआई डेवलपमेंट शामिल हैं।
मूल रूप से, वेब डिज़ाइनर कई तकनीकों का उपयोग करते हैं लेकिन आमतौर पर HTML, CSS और अतिरिक्त वेब डिज़ाइन टूल सहित हाइपरटेक्स्ट और हाइपरमीडिया संसाधनों पर भरोसा करते हैं। एक पेशेवर वेब डिज़ाइन आपके व्यवसाय को ऑनलाइन प्रशंसनीय दिखाने में मदद करता है।
मुझे उम्मीद है कि यह लेख “ Website Designing in Hindi “, आपको यह समझने में मदद करेगा कि वास्तव में वेबसाइट डिजाइनिंग क्या है और वेब डिजाइन का अर्थ क्या है आदि।
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Great full knowledge thank you sir.
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नारीवाद क्या है? नारीवाद का अर्थ एवं परिभाषा (Feminism)
- मई 30, 2024
- Social Work
- नारीवाद का परिचय :-
नारीवाद वह है जो महिलाओं के सशक्तिकरण की तलाश करता है और जिनके लिए पितृसत्ता सशक्तिकरण के इस मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। उदारवादी नारीवादियों, रेडिकल और सांस्कृतिक नारीवादियों या समाजवादी और मार्क्सवादी नारीवादियों में महिलाओं के अधिकारों की वकालत करने वालों का वर्गीकरण न केवल इस एकता के महत्व को कम आंकता है बल्कि यह भी गलत तरीके से प्रस्तुत करता है कि नारीवाद की विचारधारा उदारवाद और समाजवाद के लिए केवल एक सहायक है।
यह ऐतिहासिक रूप से सही नहीं है। वास्तव में, उदारवाद और समाजवाद की महिलाओं के अधिकारों को संबोधित करने में विफलता की पृष्ठभूमि के खिलाफ नारीवाद का उदय हुआ है।
नारीवाद की अवधारणा :-
नारीवाद का अर्थ :-, नारीवाद की परिभाषाएं :-, महिलाएं यौन प्राणी नहीं हैं, वे इंसान हैं –, समान अधिकार और समान अवसर –, एक पति एक पत्नी विवाह का विरोध –, महिलाओं की पारंपरिक भूमिका में बदलाव –, महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता –, परिवार संस्था का विरोध –, बच्चों की सार्वजनिक देखभाल –, पितृसत्ता का विरोध –, नारी एक उत्पीड़ित वर्ग है –, लैंगिक स्वतंत्रता –, उदारवादी नारीवाद –, समाजवादी नारीवाद –, मार्क्सवादी नारीवाद –, रेडिकल नारीवाद –, अराजकतावादी नारीवाद –, पारिस्थितिक नारीवाद –, उदारपंथी नारीवाद –, संक्षिप्त विवरण :-.
नारीवाद एक गतिशील और लगातार बदलती विचारधारा है जो महिला उत्पीड़न के विभिन्न पहलुओं को समझने की दिशा में प्रयास कर रही है जिसमें उदारवादी नारीवाद, मार्क्सवादी-समाजवादी नारीवाद और रेडिकल नारीवाद तीन उल्लेखनीय विचारधाराएँ हैं। लेकिन एक विचार जो इन सभी नारीवादी दृष्टिकोणों में समान है, वह यह है कि यह सभी मौजूदा स्त्री-पुरुष संबंधों को बदलने की ओर केंद्रित है। दूसरे शब्दों में, ये सभी विचारधाराएँ इस तथ्य से उपजी हैं कि न्याय के आधार पर महिलाओं को स्वतंत्रता और समानता देना आवश्यक है।
नारीवाद परिप्रेक्ष्य ने स्वतंत्रता और समानता के लोकतांत्रिक मूल्यों और महिलाओं की अधीनता के बीच अंतर्विरोध को रेखांकित किया है। जिसमें लिंग परिवार और समाज में महिलाओं की दोयम स्थिति, महिलाओं की समानता, कानूनी सुधारों की मांग, समानता आदि पर नारीवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता रहा है।
गर्डा लर्न के अनुसार – नारीवादी अध्ययनों के सामने सबसे बड़ी चुनौती उन विभिन्न रूपों और परिस्थितियों की पहचान करना है जिनमें पितृसत्ता विभिन्न क्षेत्रों और विभिन्न अवधियों में उभरती है और वे कौन सी विशेषताएं हैं जो पितृसत्तात्मक संरचनाओं को विशिष्ट रूप देती हैं।
नारीवाद को और भी स्पष्ट करने के लिए कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाओं का उल्लेख कर सकते हैं –
“महिलाओं की बनिस्बत नारीवाद का दृष्टिकोण है क्योंकि सर्वहारा वर्ग के अनुभव की तरह, एक दमित समूह होने के नाते महिलाओं के अपने अनुभवों और गतिविधियों में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू होते हैं। नारीवादी दृष्टिकोण इन अनुभवों में निहित मुक्ति की संभावनाओं को चुनकर उनका विस्तार करता है।” हार्डस्टॉक
“नारी पुरुष प्रधान समाज की कृति है। वह नारीवाद और समाज, अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए, जन्म से ही महिला को कई नियमों के ढांचे के भीतर एक अंतर्संबंध में ढालता चला गया है।” सीमोन द बोउवार
नारीवाद की विशेषताएं :-
नारीवाद की विशेषताएं इस प्रकार हैं:-
नारीवाद का विचार है कि महिलाएं सिर्फ यौन प्राणी नहीं हैं और महिलाओं को केवल मां, पत्नी और बहन के रूप में ही नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि सामान्य इंसान के रूप में देखा जाना चाहिए।
नारीवादियों का मानना है कि महिलाओं में पुरुषों के समान क्षमता और बुद्धि होती है और वे सभी कार्य करने में सक्षम होती हैं जो पुरुष करते हैं। महिलाओं को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में पुरुषों की अधीनता को स्वीकार करना पड़ता है क्योंकि उन्हें पुरुषों के समान विकास के अवसर प्रदान नहीं किए जाते हैं।
महिलाओं और पुरुषों को जीवन के हर क्षेत्र में समान अधिकार दिए जाने चाहिए और सभी को सम्मान के अवसर उपलब्ध होने चाहिए। नारीवाद के समर्थकों का विचार है कि महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार होने चाहिए।
महिलाओं को भी पुरुषों की तरह स्वतंत्र रूप से अपना जीवन जीने, अपनी पसंद के अनुसार कोई भी व्यवसाय अपनाने, संपत्ति रखने और विवाह करने और तलाक लेने का अधिकार होना चाहिए। राजनीतिक क्षेत्र में भी मताधिकार करने, चुनाव लड़ने और उच्च सरकारी पदों पर आसीन होने का अधिकार होना चाहिए। नौकरी के मामले में लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
नारीवादी विचारक एक पति -एक पत्नी विवाह की प्रथा के खिलाफ है। उनका मानना है कि इस प्रथा के तहत महिला अपने पति की गुलाम बनी रहती है और अपना सारा जीवन पति की सेवा, बच्चों की परवरिश और घर के अन्य कामों में लगा देती है। अतः महिलाओं को इस दासता की प्रथा से मुक्त करने के लिए इस प्रथा को समाप्त करना होगा।
नारीवादियों का मानना है कि परंपरागत विचारधारा के अनुसार महिलाएं घर का काम करने, पति की सेवा करने, बच्चे पैदा करने और उनका पालन-पोषण करने आदि के खिलाफ हैं। महिलाओं की यह भूमिका दैवीय नहीं बल्कि पुरुषों द्वारा बनाई गई है। इस प्रकार, जब तक महिलाएँ स्वतंत्र नहीं होंगी, तब तक उनकी भूमिका नहीं बदली जा सकती।
महिलाओं पर पुरुषों के प्रभुत्व का मुख्य कारण यह है कि महिलाओं की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता है। यदि महिलाओं को शिक्षित कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया जाए तो उन्हें पुरुषों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा और वे स्वतंत्र रूप से जीवन यापन कर सकेंगी। पुरुषों की तरह, महिलाओं को भी शिक्षित किया जाना चाहिए और उन्हें उद्योग और नौकरी या अन्य व्यवसायों जैसे चिकित्सा, वकालत, इंजीनियरिंग आदि करने में सक्षम बनाया जाना चाहिए।
महिलाओं की अधीनता और उत्पीड़न में परिवार की संस्था को एक महत्वपूर्ण कारक माना जाता है। परिवार में महिलाओं की भूमिका घर की चार दीवारी तक सीमित कर दी गई है, इसलिए महिलाओं को अपनी क्षमताओं के विकास का पूरा अवसर नहीं मिल पाता है। इतना ही नहीं, परिवार में बच्चों का समाजीकरण भी इस प्रकार किया जाता है कि पुरुष स्त्री पर हावी रहता है। परिवार द्वारा लड़कियों की तुलना में लड़कों को भी हर क्षेत्र में अधिक प्राथमिकता दी जाती है।
कुछ नारीवादी समर्थकों का मानना है कि बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी समाज की होनी चाहिए। महिला प्रसूति गृहों एवं बाल पोषण गृहों तथा शिशुओं के उपचार की समुचित व्यवस्था हो। इसमें बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी प्रशिक्षित नर्सों को सामूहिक रूप से निभानी चाहिए।
नारीवादी विचारक पितृसत्ता को महिलाओं के शोषण, उत्पीड़न और दुर्व्यवहार का कारण माना जाता है। पितृसत्तात्मक समाज में पुरुष स्त्री पर अपना वर्चस्व स्थापित करता है और उसे निर्देश देता है। नारीवाद के समर्थक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का विरोध करते हैं।
नारीवादियों का मानना है कि महिलाएं समाज का उत्पीड़ित वर्ग हैं और वे लगभग सभी समाजों में शोषण की शिकार हैं। परंपरागत रूप से, पैतृक संपत्ति में उनका कोई कानूनी अधिकार नहीं था। वे पुरुषों से पीछे थीं, संपत्ति की मालकिन भी नहीं बन सकीं, न ही नौकरी आदि करके आत्मनिर्भर बन सकीं।
आज भी अधिकांश महिलाएं अपने पारंपरिक कार्यों में व्यस्त हैं जैसे घर का काम करना, बच्चे को जन्म देना और उसका पालन-पोषण करना और घर में सभी की सेवा करना आदि। । अधिकांश महिलाएं आज भी अपनी आवश्यकता ओं के लिए आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर हैं।
कुछ उग्र नारीवादियों का मानना है कि काम वासना की पूर्ति एक निजी पहलू है जिसमें समाज को तब तक दखल नहीं देना चाहिए जब तक कि दूसरे को नुकसान न हो। इसलिए स्त्री को अपनी इच्छा के अनुसार यौन संबंध जोड़ने और तोड़ने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
नारीवाद के प्रकार :-
अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत में उदारवादी नारीवादियों ने मानवीय गरिमा और समानता की उदार धारणाओं और महिलाओं के जीवन की वास्तविक वास्तविकता के बीच विरोधाभासों को जोरदार ढंग से सामने रखा था।
उदारवादी नारीवाद उदारवाद की दार्शनिक परंपराओं का पालन करता है। १७वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से लेकर १८वीं शताब्दी के परवर्ती काल तक, पश्चिमी दुनिया फलते-फूलते सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों का उत्पाद थी। विज्ञान में प्रगति और जीव विज्ञान , भूगोल और भौतिकी में नई खोजों और वैज्ञानिक कानूनों आदि के संदर्भ में प्रगति के कारण तर्क को परंपरा से अधिक महत्व दिया गया। परिवर्तन के इस काल को विवेक का युग और ज्ञान का युग कहा गया।
उदारवादी नारीवाद ने उन आम धारणाओं को सफलतापूर्वक सामने लाया जो परिवार और समाज में महिलाओं की दोयम दर्जे को सही ठहराती हैं। उन्होंने महिलाओं के सार्वजनिक जीवन में शामिल होने के अधिकार की वकालत की और मानव के रूप में उनकी समग्र क्षमताओं को फलने-फूलने का अवसर प्रदान करने की मांग की। उदारवादी नारीवाद ने महिलाओं की असमानता और अधीनता को रेखांकित किया है।
समाजवादी नारीवादियों ने बताया कि कैसे पूंजीवादी पितृसत्ता में महिलाएं समाज के पुनरुत्पादन के लिए महत्वपूर्ण कार्य करती हैं। प्रति सप्ताह इतने लंबे समय तक काम करने के बावजूद महिलाओं को पुनरुत्पादन के संबंध में इसके लिए वेतन या किसी अन्य तरीके से कोई मुआवजा नहीं मिलता है। यह स्पष्ट था कि इस श्रम को उत्पादक या अनुत्पादक श्रम के रूप में वर्गीकृत किया जाए या लिंग प्रभावित उत्पादन कहा जाए, यह एक प्रकार का शोषण था। समाजवादी नारीवादियों का दावा है कि पुनरुत्पादन के संबंधों की विषय संरचना महिलाओं के अलगाव को जन्म देती है।
मार्क्सवादियों ने तर्क दिया कि जबकि पूंजीवाद आमतौर पर संबंधों को वस्तुनिष्ठ बनाता है, यह घरेलू अनुत्पादक श्रम का निजीकरण कर रहा था। उन्होंने बिना महिलाओं के उजरती श्रम को पूंजी संचय की प्रक्रिया से जोड़कर इसे समझने की कोशिश की। पूंजीपतियों के मुनाफे की दर वहां तेज होती है जहां घरेलू श्रम अदृश्य होता है और जब श्रमिकों की मजदूरी तय होती है, तो पूंजीपति श्रमिकों के पुनरुत्पादन में इसके योगदान की उपेक्षा कर सकते हैं।
मार्क्स इस श्रम शक्ति के पुनरुत्पादन के महत्व से अवगत थे, लेकिन उनका मानना था कि यह पुनरुत्पादन मुख्य रूप से बाजार में आता है जहां श्रमिक अपनी मजदूरी का उपयोग भोजन और जीवन की अन्य आवश्यकताओं के लिए करता है।
समाजवादी और मार्क्सवादी नारीवादियों के लिए पितृसत्ता को इस तरह समझने का सवाल मार्क्सवादी धारणाओं से ही संभव था। यह सवाल अब भी कायम है कि क्या महिलाओं के शोषण को मजदूर वर्ग के शोषण के मॉडल के रूप में समझा जा सकता है।यह स्पष्ट था कि जिस प्रकार पूंजीपति अत्यधिक मूल्य के शोषण के माध्यम से श्रमिकों का शोषण करता है, उसी प्रकार पुरुषों को बिना किसी मुआवजे के महिलाओं के घरेलू श्रम से लाभ होता है।
रेडिकल नारीवाद सिद्धांत 1970 के दशक से विकसित हुआ है, लेकिन इसके अंतर्निहित प्रमुख विषयों और बहसों का स्रोत इन अग्रणी कार्यों में पाया जा सकता है। इसके अलावा, रेडिकल नारीवाद का विस्तार समलैंगिक नारीवाद, विषमलैंगिकता और पारिस्थितिक नारीवाद के क्षेत्रों में भी हुआ है।
रेडिकल नारीवाद इस बात से सहमत है कि लिंग आधारित लिंग अंतर हमारे जीवन के लगभग हर पहलू की संरचना करते हैं और इतने सर्वव्यापी हैं कि वे आमतौर पर किसी का ध्यान नहीं जाते हैं। रेडिकल नारीवाद का उद्देश्य लिंगों के बीच सभी अंतरों को उजागर करना है, जो न केवल जैसे क्षेत्रों में परस्पर संबंधित हैं कानून, रोजगार बल्कि हमारे व्यक्तिगत संबंधों में भी। उनका दायरा घर और खुद के बारे में आत्मसात करने की धारणाओं तक फैला हुआ है।
रेडिकल नारीवाद दिखाता है कि कैसे समकालीन समाज संरचना में लिंग आधारित अंतर समग्र जीवन की संरचना करता है, यानी न केवल पुरुष और महिलाएं अलग-अलग कपड़े पहनते हैं, अलग-अलग खाते हैं, काम पर और घर पर या खाली समय में अलग-अलग गतिविधियों में संलग्न होते हैं। इसलिए, विभिन्न प्रकार के सामाजिक संबंध और यहाँ तक कि यौन संबंध भी स्थापित हो जाते हैं।
उदारवादी नारीवाद, मार्क्सवादी-समाजवादी नारीवाद और उग्र नारीवाद तीन उल्लेखनीय विचारधाराएँ हैं जिनके बारे में बहुत बात की जाती है। इसके अलावा, अश्वेत नारीवाद है जो इन विचारधाराओं से व्यापक स्वायत्तता का दावा करती है, जिसका वास्तव में अर्थ है कि ये विचारधाराएँ जाति-आधारित शोषण की उपेक्षा करती हैं।
अराजकतावादी नारीवादियों ने भी अपने अलग-अलग मतभेदों को बनाए रखा है और अराजकतावाद के अधिनायकवादी विरोधी तर्क में विश्वास करते हैं। इसी तरह, पर्यावरण संबंधी नारीवादी महिलाओं को प्रकृति, पर्यावरण और पृथ्वी के बारे में चिंताओं से जोड़ती हैं।
पारिस्थितिक नारीवाद एक सक्रिय और शैक्षिक आंदोलन है जो दर्शाता है कि महिलाओं के शोषण और प्रकृति के शोषण के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध है। पारिस्थितिक नारीवाद का विचार पहली बार फ्रांसीसी नारीवाद में दिया गया था जब नारीवाद की तीसरी लहर चल रही थी। हालाँकि, जो पारिस्थितिक नारीवाद की श्रेणी को विभक्त किया गया है वह एक विवादास्पद बिंदु है।
कैटजेन वारेन ने लिखा है- नारी के शोषण और प्रकृति के शोषण के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध है। पारिस्थितिक नारीवाद 1980 के दशक से 1990 के दशक तक फला-फूला जब पर्यावरण और समलैंगिक आंदोलन हो रहे थे।
हर जगह मौजूद पर्यावरण का विनाश – वर्ग, नस्ल, लिंग – पारिस्थितिक नारीवाद का सम्मेलन कार्य है जो इन दोनों को जोड़ता है। सांस्कृतिक, पारिस्थितिक नारीवाद प्रकृति को एक पुराने और पारंपरिक तरीके से एक देवी के रूप में देखता है। कुछ नारीवाद इसे आध्यात्मिक रूप से भी जोड़ते हैं।
उदारवादी और समाजवादी/मार्क्सवादी नारीवादी विचारधाराओं दोनों ने समलैंगिकता वाद और अलगाववाद (पुरुष-से-अलगाववाद) जैसे अत्यंत उग्र प्रस्तावों के लिए आलोचना की है। इसके अलावा, समाजवादी/मार्क्सवादी नारीवादियों का तर्क है कि रेडिकल नारीवाद पितृसत्ता के ऐतिहासिक, आर्थिक और भौतिक आधार की उपेक्षा करता है और परिणामस्वरूप एक गैर-ऐतिहासिक, जैविक नियतत्ववाद के तर्क में फंसा रहता है।
नारीवाद महिलाओं का सशक्तिकरण चाहता है। नारीवाद के परिप्रेक्ष्य ने स्वतंत्रता और समानता के लोकतांत्रिक मूल्य और महिला की अधीनता के बीच विरोधाभास को रेखांकित किया है। जिसमें लिंग परिवार और समाज में महिलाओं की दोयम प्रस्थिति , महिलाओं की समानता, कानूनी सुधारों की मांग, समानता आदि पर एक नारीवादी दृष्टिकोण लेता है।
नारीवाद किसे कहते हैं?
नारीवाद एक गतिशील और लगातार बदलती विचारधारा है जो महिला उत्पीड़न के विभिन्न पहलुओं को समझने की दिशा में प्रयासरत है।
नारीवाद की विशेषताएं बताइए?
- महिलाएं यौन प्राणी नहीं हैं, वे इंसान हैं
- समान अधिकार और समान अवसर
- एक पति एक पत्नी विवाह का विरोध
- महिलाओं की पारंपरिक भूमिका में बदलाव
- महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता
- परिवार संस्था का विरोध
- बच्चों की सार्वजनिक देखभाल
- पितृसत्ता का विरोध
- नारी एक उत्पीड़ित वर्ग है
- लैंगिक स्वतंत्रता
social worker
Hi, I Am Social Worker इस ब्लॉग का उद्देश्य छात्रों को सरल शब्दों में और आसानी से अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराना है।
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